इनमें से बंगाल का लोकगीत कौन सा है? - inamen se bangaal ka lokageet kaun sa hai?

उत्तर: इस वाक्य का अर्थ कुछ इस प्रकार है कि पूरब की बोलियों में हमेशा मैथिल-कोकिल विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। जिन्होनें इन गीतों की रचना की थी और वो अपने गीतों के कारण पूरब में खासे जाने गए हैं। परन्तु इसके विपरीत सारे देश के अलग-अलग राज्यों में व उनके गाँवों में वहाँ के लोग समय को व अवसर को देखकर स्वयं ही गीतों की रचना करने वाले रचनाकार (विद्यापति) आज भी मौजूद हैं।

बाउल एक प्रकार का लोक (फोक) गायन है, इसका गायन करने वाले को बंगाल में बाउल कहते हैं। इसी बाउल का दुसरा रूप भाट होता है जो ज्यादातर राजस्थान एवं मध्य-प्रदेश में पाये जाते हैं। उत्तर-प्रदेश में इसे फकीर या जोगी भी कहा जाता है। सामान्यतौर पर आउल, बाउल, फकीर, साई, दरबेस, जोगी एवं भाट बाउल के ही रूप है। इन सभी में एक समानता होती है कि ये ईश्वर की भक्ति में इस तरह लीन होते है कि इन्हे बाउल पागल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुवात बंगलादेश से हुई। वहाँ इसे बाउल या पागल कहा जाता है। बाउल विश्वव्यापी है यह हिन्दु-मुस्लिम कोई भी हो सकता है। बाउल का रहन-सहन, पहनावा एवं जीवन व्यतीत करने का तरीका वैश्णव धर्म के बहुत करीब होता है। ज्यादातर बाउल वैश्णव धर्म का पालन करते है वैश्णव धर्म में पुरुष वैश्णव एवं स्त्री को वैश्ण्वी कहते है।

अरुण पटुआ श्रीखोल या मृदंग बजाते हुए

बाउल एक ऐसा गायक होता है जो कभी भी अपना जीवन एक-दो दिन से ज्यादा एक स्थान पर व्यतीत नहीं करता है। यह गाँव-गाँव जाकर भगवान विष्णु के भजन एवं लोक गीत गाकर भिक्षा मागं कर अपना जीवनयापन करते हैं। लेकिन यह जरुरी नहीं कि हर वैश्णवी बाउल गाकर भिक्षा मांगे परन्तु बाउल (आउल, फकीर, साई, दरबेस, जोगी एवं भाट) गाकर ही भिक्षा मागंता है। वैश्णवी विष्णु के पुजारी होते हैं। वैष्णवी खंजनी, करताल (जिसे आजकल खडताल भी कहते है) एवं खौल बजाकर भिक्षा मागंते हैं। वैष्णवी बाउल के परिधान सफेद होते है वह सफेद लुंगी, कुर्ता, एवं पगड़ी पहनते हैं। ऐसा माना जाता है कि बाउल का चित भी सफेद कपड़ों के समान शांत, पवित्र एवं पावन होता है। लेकिन बाउल का परिधान सफेद लुंगी, गेरुवा कुर्ता एवं पगड़ी, गले में माला तथा ललट एवं कंठ पर मिट्टी तथा चंदन के मिश्रण का तिलक लगाते हैं। बाउल मुख्यता एकतारा, डुगी, गुबगुबी, पैरों में घुंगरु कंधे पर झोला जो छोटे-छोटे विभिन्न रंगीन कपड़ों से बना होता है डालकर चलता है। बाउल अपना जीवन ईश्वर की भक्ति एवं मानव की भलाई में व्यतीत करता है। बाउल को मोह-माया, धन-दौलत, घर-बाहर की कोई चिंता नहीं होती है।

बंगाल में जहाँ बाउल गायक रहते है उस स्थान को आखरा या आखरा आश्रम कहते हैं। आज के प्रसिद्ध बाउल श्री पूर्ण दास, बालीगंज, कलकत्ता (जिनका जन्म स्थान बौलपुर, शान्तिनिकेतन, जिला-वीरभूम है) जिन्होने विश्व में बाउल गायन का प्रदर्शन कर बाउल गायन की पहचान दुनिया भर (अमेरिका, जापन, बंगलादेश, ब्रिटिश) के बाउल गायक शान्तिनिकेतन के नजदीक बौलपुर में अजय नदी के पास जयदेव मन्दिर के बगल में केदुली मेला (इसे जयदेव मेला के नाम से भी जानते है) जो १४ दिन के लिए लगता है में भाग लेने के लिए आते हैं। यह पौष संक्रान्ति के दिन शुरु होता है बाउल गायन कितना महत्वपुर्ण है यह इसी से पता चलता है कि इस मेले के पहले ३ दिन बाउल गायन के लिए ही होते है।

ऐसा सभी बाउल गायको का मानना है कि बाउल गायन की शुरुवात भारत (बंगाल) में केन्दुली नामक स्थान जो जिला वीरभूम के अंर्तगत आता है जिसको अब बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि जयदेव केन्दुली के नाम से जाना जाता है से हुई। अजय नदी के पास केन्दुली मेला लगने का एक बहुत बड़ा कारण यह हो सकता है कि पौष संक्रान्ति के दिन अजय नदी जो काटवा, वरदमान नाम स्थान पर भगीरथी नदी में मिलती है जो गंगा नदी का ही एक भाग है का पानी सुबह कुछ क्षणों के लिए उलटा बहता है। इस समय या इस दिन नदी में स्नान करने से गंगा में स्नान करने के समान होता है। श्री पुर्ण दास बाउल बालीगंज, कलकत्ता बताते है कि बाउल गायन जगत में सबसे ज्यादा गायन भबा पागला का लिखा गया है। भबा पागला मुस्लिम समुदाय से संबधित थे वह बंगलादेश के प्रसिद्ध एवं ऐसे बाउल गीतकार थे जो खुद गाना लिखते, गाते और बजाते थे। भबा पागला के अलावा भी अनेक बाउल गायक इस गायन में जाने जाते है जैसे बंगलादेश के लालन फकीर जिनके गायन से भारत के ख्याति प्राप्त लेखक रविन्द्र नाथ टैगोर भी प्रभावित हुए थे। बाउल लालन फकीर ने अंग्रेजों एवं दुष्ट जमींदारों के खिलाफ गायन किया था। श्री पुर्ण दास बाउल आगे कहते है कि ज्यादातर बाउल बोलपुर जिला वीरभूम के आस पास पाये जाते है लेकिन बाउल गायन ज्यादातर बंगलादेश में जाना एवं गाया जाता है।

श्री अरुण पटुआ, जिला वीर भूम के अनुसार उनके गुरु श्री निमाई दास बाउल बताते है कि बाउल एक सादा एवं सच्चा जीवन व्यतीत करता है। वह अपने हाथ से बनाया साधा निरामीस खाना खाता है, साधा पीता है एवं अपने हाथ से साधा सीला कपडा पहनता है। श्री कृष्णा चरण बाउल, मनहोर पुर, जिला वीर भूम बताते है कि बाउल रोज मागॅता है और रोज खाता है आने वाले कल की उसे चिंता नहीं होती है।

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लोकगीत Class 6 MCQs Questions with Answers

Question 1.
‘लोकगीत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
(a) प्रेमचंद
(b) विष्णु प्रभाकर
(c) विनय महाजन
(d) भगवतशरण उपाध्याय

Answer

Answer: (d) भगवतशरण उपाध्याय


Question 2.
लोकगीतों की भाषा कैसी होती है?
(a) संस्कृतनिष्ठ
(b) शास्त्रीय
(c) आम बोलचाल
(d) अनगढ़

Answer

Answer: (c) आम बोलचाल


Question 3.
लोकगीत शास्त्रीय संगीत से किस मायने में भिन्न है?
(a) लय, सुर और ताल में
(b) मधुरता में
(c) सोच, ताज़गी और लोकप्रियता में
(d) इनमें कोई नहीं

Answer

Answer: (c) सोच, ताज़गी और लोकप्रियता में


Question 4.
लोकगीतों की रचना में किसका विशेष योगदान है?
(a) बच्चों का
(b) स्त्रियों का
(c) पुरुषों का
(d) इनमें कोई नहीं

Answer

Answer: (b) स्त्रियों का


Question 5.
इनमें से कौन बंगाल का लोकगीत है?
(a) कजरी
(b) बाउल
(c) पूरबी
(d) सावन

Answer

Answer: (b) बाउल


(1)

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाए जाते हैं। सदा से ये गाए जाते रहे हैं और इनके रचने वाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं।

Question 1.
लोकगीत शास्त्रीय संगीत से किस मायने में भिन्न हैं?
(a) लय, सुर और ताल में
(b) लोच, ताज़गी और लोकप्रियता से
(c) मधुरता से
(d) इनमें कोई नहीं

Answer

Answer: (b) लोच, ताज़गी और लोकप्रियता से


Question 2.
लोकगीत के लिए साधना की ज़रूरत क्यों नहीं पड़ती?
(a) ये हमारे दैनिक जीवन में रचे बसे हैं।
(b) ये बहुत आसान हैं।
(c) ऊँचे स्तर पर इनकी पूछ नहीं है।
(d) इन्हें कोई भी गा सकता है।

Answer

Answer: (a) ये हमारे दैनिक जीवन में रचे बसे हैं।


Question 3.
लोकगीतों की रचना किसने की है?
(a) शहर के लोगों ने
(b) संगीतकारों ने
(c) बड़े-बड़े विद्वानों ने
(d) गाँव के लोगों ने

Answer

Answer: (d) गाँव के लोगों ने


(2)

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार तो बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड-खांड, ओराँव-मुंडा, भील-संथाल आदि फैले हुए हैं, जिनमें आज भी जीवन नियमों की जकड़ में बँध न सका और निरवंद्व लहराता है। इनके गीत और नाच अधिकतर साथ-साथ और बड़े दलों में गाए और नाचे जाते हैं। बीस-बीस, तीस-तीस आदमियों और औरतों के दल एक साथ या एक-दूसरे के जवाब में गाते हैं। दिशाएँ गूंज उठती हैं।

Question 1.
आदिवासियों का संगीत कैसा है?
(a) गैर शास्त्रीय
(b) ओजस्वी और सजीव
(c) शास्त्रीय
(d) केवल महिलाओं द्वारा गाए जाने वाला

Answer

Answer: (b) ओजस्वी और सजीव


Question 2.
आदिवासियों का जीवन कैसा है?
(a) नियमों में बँधा
(b) बंधन रहित
(c) कठिन
(d) उपर्युक्त सभी

Answer

Answer: (b) बंधन रहित


Question 3.
लोकगीत और नाच किसमें गाए जाते हैं?
(a) समूहों में
(b) अकेले
(c) विशेष वाद्य यंत्रों पर
(d) इनमें कोई नहीं

Answer

Answer: (a) समूहों में


(3)

वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में है। उनका संबंध देहात की जनता से है। बड़ी जान होती है इनमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं। हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल संबंधी गीत पंजाबी में और ढोला-मारू आदि के गीत राजस्थानी में बड़े चाव से गाए जाते हैं।

Question 1.
लोकगीतों का वास्तविक संबंध किनसे है?
(a) शहरों से
(b) कस्बों से
(c) गाँव व देहातों से
(d) दूर-दराज के प्रांतों से

Answer

Answer: (c) गाँव व देहातों से


Question 2.
बंगाल के प्रमुख लोकगीत कौन से हैं?
(a) चैता
(b) कजरी
(c) माहिया
(d) बाउल और मतिथासीत

Answer

Answer: (d) बाउल और मतिथासीत


Question 3.
सोहनी-महीवाल कहाँ का लोकगीत है?
(a) बंगाल का
(b) बिहार का
(c) पंजाब का
(d) उत्तर प्रदेश

Answer

Answer: (c) पंजाब का


(4)

भोजपुरी में करीब तीस-चालीस बरसों से ‘बिदेसिया’ का प्रचार हुआ है। गाने वालों के अनेक समूह इन्हें गाते हुए देहात में फिरते हैं। उधर के जिलों में विशेषकर बिहार में बिदेसिया से बढ़कर दूसरे गाने लोकप्रिय नहीं हैं। इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है, परदेशी प्रेमी की और इनमें करुणा और विरह का रस बरसता है। जंगल की जातियों आदि के भी दलगीत होते हैं जो अधिकतर बिरहा आदि में गाए जाते हैं। पुरुष एक ओर और स्त्रियाँ दूसरी ओर एक-दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर गाते हैं और दिशाएँ गुंजा देते हैं। पर इधर कुछ काल से इस प्रकार के दलीय गायन का ह्रास हुआ है? एक-दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने आल्हा के हैं ? अधिकतर से बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं। आरंभ तो इसका चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक से माना जाता है जिसने आल्हा-ऊदल की वीरता का अपने महाकाव्य में बखान किया।

Question 1.
बिदेसिया का प्रचार किस बोली में अधिकतर हुआ है?
(a) बुंदेलखंडी
(b) मैथिली
(c) छत्तीसगढ़
(d) भोजपुरी

Answer

Answer: (d) भोजपुरी


Question 2.
“बिदेसिया’ गीत किस प्रकार के होते हैं?
(a) प्रेम के
(b) वीर रस के
(c) हँसी के
(d) करुणा एवं विरह के

Answer

Answer: (d) करुणा एवं विरह के


Question 3.
जंगल की जातियों के गीत किस प्रकार गाए जाते हैं?
(a) अकेले
(b) केवल स्त्रियाँ ही गाती हैं।
(c) केवल पुरुष ही गाते हैं
(d) स्त्रियाँ और पुरुष दल बनाकर गाते हैं।

Answer

Answer: (d) स्त्रियाँ और पुरुष दल बनाकर गाते हैं।


(5)

लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाए जाते हैं। सदा से ये गाए जाते रहे हैं और इनके रचनेवाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं।

Question 1.
गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।

Answer

Answer:
पाठ का नाम-लोकगीत
लेखक का नाम-भगवतशरण उपाध्याय


Question 2.
लोकगीत की क्या विशेषता है?

Answer

Answer: लोकगीतों की रचना गाँव के लोगों ने ही की है। इनके लिए विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये त्योहारों और विशेष अवसरों पर साधारण ढोलक और झाँझ आदि की सहायता से गाए जाते हैं। इसके लिए विशेष प्रकार के वाद्यों की आवश्यकता नहीं होती।


Question 3.
लोकगीत कब गाए जाते हैं ?

Answer

Answer: लोकगीत त्योहारों और विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।


(6)

वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। इनका संबंध देहात की जनता से है। बडी जान होती है इसमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं। हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल संबंधी गीत पंजाब में और ढोला-मारू आदि के गीत राजस्थान में बड़े चाव से गाए जाते हैं।

Question 1.
लोकगीतों का संबंध कहाँ से है?

Answer

Answer: लोकगीतों का संबंध गाँव देहातों से है।


Question 2.
चैता, कजरी, बारहमासा, सावन कहाँ गाए जाते हैं ?

Answer

Answer: चैता, कजरी, बारहमासा और सावन लोकगीत पूर्वी उत्तर प्रदेश में गाए जाते हैं।


Question 3.
पंजाबी और राजस्थानी गीतों के नाम लिखो।

Answer

Answer: पंजाबी लोकगीत है-हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल तथा माहिया। राजस्थानी लोकगीत है ढोला-मारू।


(7)

एक दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने आल्हा के हैं। अधिकतर ये बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं। आरंभ तो इसका चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक से माना जाता है जिसने आल्हा-ऊदल की वीरता का अपने महाकाव्य में बखान किया, पर निश्चय ही उसके छंद को लेकर जनबोली में उसके विषय को दूसरे देहाती कवियों ने भी समय-समय पर अपने गीतों में उतारा और ये गीत हमारे गाँवों में आज भी बहुत प्रेम से गाए जाते हैं। इन्हें गाने वाले गाँव-गाँव ढोलक लिए फिरते हैं। इसी की सीमा पर उन गीतों का भी स्थान है जिन्हें नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं। अधिकतर ये गद्य-पद्यात्मक हैं और इनके अपने बोल हैं।

Question 1.
आल्हा किसमें गाए जाते हैं ?

Answer

Answer: आल्हा अधिकतर बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं। ये काफी लोकप्रिय हैं।


Question 2.
आल्हा अधिकतर कहाँ गाए जाते हैं ?

Answer

Answer: आल्हा अधिकतर बुंदेलखंड क्षेत्र में गाए जाते हैं।


Question 3.
आल्हा गाने वाले कहाँ मिलते हैं?

Answer

Answer: आल्हा गाने वाले गाँव-गाँव में ढोलक लिए आल्हा गाते फिरते हैं।


(8)

एक विशेष बात यह है कि नारियों के गाने साधारणत: अकेले नहीं गाए जाते, दल बाँधकर गाए जाते हैं। अनेक कंठ एक साथ फूटते हैं। यद्यपि अधिकतर उनमें मेल नहीं होता, फिर भी त्योहारों और शुभ अवसरों पर वे बहुत ही भले लगते हैं। गाँवों और नगरों में गायिकाएँ भी होती हैं जो विवाह, जन्म आदि के अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं। सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ उल्लसित होकर दल बाँधकर गाती हैं।

Question 1.
गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।

Answer

Answer:
पाठ का नाम-लोकगीत
लेखक का नाम-भगवतशरण उपाध्याय


Question 2.
नारियों के गीतों की क्या विशेषता है?

Answer

Answer: नारियों के गीतों की विशेषताएँ हैं-औरतें दल बाँधकर गाती हैं।


Question 3.
नारियों के गीत सुनने में कैसे लगते हैं ?

Answer

Answer: नारियों के गीत सुनने में उनकी आवाज़ में मेल नहीं होता है।


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बंगाल का लोकगीत कौन से हैं?

बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं

लोकगीत किसका गीत है?

लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है।

लोकगीत का नाम क्या है?

सभी राज्यों के लोकगीत.

लोकगीत कितने होते हैं?

लोकगीत कितने प्रकार के होते हैं? लोकगीत को मुख्य पांच भागों में विभाजित किया जा सकता है : संस्कार गीत, गाथा-गीत (लोकगाथा), पर्वगीत, पेशा गीत और जातीय गीत.