कठपुतली कविता का केन्द्रीय भाव 30-40 शब्दों में लिखिए । - kathaputalee kavita ka kendreey bhaav 30-40 shabdon mein likhie .

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Hindi (301) Syllabus

प्र-1 पीढिया और गिटटियां पाठ के आधार पर बतायें की पुरानी पीढी के लिए नई क्या क्या व्यवस्था कर दी थी ?
उत्तर-1 नई पीढ़ी ने पुरानी पीढ़ी को मंदिर में देवता बनाकर स्थापित कर दिया। उनके रोजाना आरती उतारनी शुरू कर दी और रोज भोग लगाने लगे। उन्हें यहें यह करा रोयल्टी भी दिलवाएंगे।

प्र-2 ' पीढिया और गिटटिया ' कहानी का  संक्षेप मे लिखिये ?
उत्तर-2 ' पिढिया और गिटटियां ' कहानी मे डॉ हरिशंकर परसाई ने दो पीढ़िओ का संघर्ष दिखाया है। इसके अतिरिक्त कटाक्ष किया है जो बिना काम किये ही फल प्राप्त करने में विश्वास रखता है।

प्र-3 'कठपुतली' कविता के आधार पर बताये कि स्वाधीन चेतना   क्यों जरूरी है।
उत्तर-3 कठपुतली कविता के आधार पर स्वाधीन चेतना-आज की पीढ़ी अगर अपनी चेतना स्वाधीन रखना चाहती है तो उसे पराधीनता से टकराना होगा। यह टकराहट जितनी जबरदस्त होगी उतनी ही उसकी विवेक अर्थात चिंतन का दरवाजा खुलता चला जायेगा। जो व्यक्ति अपनी स्वतंत्र चेतना पर विश्वास करता है, वही जीवन में सुचारू और स्वाभिमान के साथ जी सकता है।

प्र-4 मनुष्य कठपुतली बनकर जीवन व्यतीत करने में ही क्यों सुखी रहता है? आप अपने अनुभव के आधार पर बताये।
उत्तर-4 कठपुतली का दुर्भाग्य यह है कि उसे मनुष्य के हाथ में बंधी डोर के मुताबिक नाचना पड़ता है। इससे ज्यादा उसकी नियति और नहीं है। इसी में वह अपने जीवन के तमाम सुख देखती है आज का आदमी भी ऐसा ही हो गया है। उसे लगता है कि किसी की कठपुतली बनकर वह जितनी आसानी से अपनी जिंदगी की तमाम सहूलियते हासिल कर सकता है उतनी आजाद रहकर नहीं। अपने आप  को दूसरों के हाथों में सौंपना वह अपनी भलाई मानता है। आम जिंदगी में भी देखा गया है कि जिसने अपने अधिकारी की जी हुजूरी की उसने सुख में अपनी तमाम उम्र गुजारी। यह तो उसे मरते वक्त पता चलता है कि उसने सारी आयु कठपुतली बनकर गुजारी है।

प्र-5 ' पीढिया और गिट्टिया ' के आधार पर बताइए कि पुरानी पीढ़ी के लोग नई पीढ़ी को आगे क्यों नहीं आने देना चाहते?
उत्तर-5 पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को गैर-जिम्मेदार कहती है। इसलिए ऐसी पीढ़ी पर जिम्मेदारी नहीं सौंपना चाहती। इस पीढ़ी को डर है कि यह हमारा वर्चस्व समाप्त कर नई पीढी अपना वर्चस्व स्थापित न कर ले। पुरानी पीढ़ी का यह झूठ भय, समाज की युवा पीढ़ी के विकास, उसकी स्वतंत्रता और उसके सुख को प्रभावित कर रहा है।

प्र-6 ' आखरी चट्टान ' के आधार पर सूर्यास्त के सौंदर्य का वर्णन कीजिये?
उत्तर-6 सूरज का गोला धीरे-धीरे नीचे आ रहा था और समुंद्र जल स्पर्श कर रहा था। जैसे खून बह रहा हो। इस तरह सूर्यास्त छिप गया।

प्र-7 ' आखिरी चट्टान ' किसे कहा गया है? यहाँ सैलानी क्यों जाते हैं?
उत्तर-7 ' आखिरी चट्टान ' लेखक ने कन्याकुमारी में समुंद्र में स्थित उचुनावस चट्टान को कहा है जिस पर स्वामी विवेकानंद का समाधिस्थल बना है। यह चट्टान वहा है जहाँ अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी समुंद्रो का संगमस्थल है। लोग वहां सूर्योदय का भाव द्दश्य देखने के लिए आते हैं।

प्र-8 ' विवेकानंद शीला स्मारक ' कन्याकुमारी तथा समस्त भारत-वासिओ के गौरव का प्रतीक है। इस विषय पर अपने विचार लिखिये?
उत्तर -8 ' विवेकानंद शीला स्मारक ' कन्याकुमारी में स्थित है। यहाँ स्वामी विवेकानंद ने समाधि लगाई थी। यह समस्त भारतवासियों के लिए गौरव का प्रतीक है क्योंकि यहां कुछ रमणीय और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। और इसके अतिरिक्त यहाँ कन्याकुमारी का सुन्दर मंदिर है। यहाँ तीनों समुंद्र मिलते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ का सूर्योदय और सूर्योस्त पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग यह आलौकिक द्दश्य देखने के लिए आते हैं। यह अनुभव मैंने स्वयं किया है। पिछले वर्ष में कन्याकुमारी गया। जब सूर्योस्त होने वाला था तो मैंने उसके दर्शन के लिए विवेकानंद चट्टान पर पहुंचा। यहाँ पहुंचने के लिए मैंने स्टीमर का सहारा लिया। चट्टान पर बने स्वामी विवेकानंद स्मारक के जब सबसे ऊपर पहुंचा तो सूर्य की किरणो से सुनहरी जल में उमड़ती लहरों को देखकर आनंदित हो उठा। सूर्य के छिपने का नजारा मुझे आज तक स्मरणीय है।

प्र-9 ' दो कलाकार ' कहानी के आधार पर अरुणा के व्यक्तित्व की दो विशेषताएं बताये?
उत्तर-9 अरुणा के व्यक्तित्व की दो विशेषताएं-1 अरुणा मध्यवर्गीय परिवार की लड़की है। वह स्वभाव से रोगियों से प्रेम करती है। 2- पुलिया दाई के बच्चे को बचाने के लिए वह उसकी सेवा में दिन-रात लगा देती है।

प्र-10 क्या ' दो कलाकार ' कहानी की पात्र अरुणा को कलाकार माना जा सकता है? दो तर्क देते हुए उत्तर की पुष्टि कीजिये।
उत्तर-10 चित्रा की कलाकार नहीं है, अरुणा भी है। सच्चा कलाकार वही होता है जो मानवीय गुणों से संपन्न होता है। उसमें दया, महू, ममता, सहानुभूति, सहयोग और सेवा आदि गुण होने चाहिये। यह गुण हमे अरुणा में मिलते हैं। चित्रा तो चित्र में अपनी अमूर्त भावनाओं को मूर्त रूप देती है, जबकि अरुणा समाज-सेवा में अपने विचारों को मूर्त रूप प्रदान करती है इसलिए अरुणा भी कलाकार है। अरुणा के विचार उसके कलाकार मानने की पुष्टि करते हैं।

प्र-11 चित्रा और अरुणा में से यथा वादी कौन है? और आदर्शवादी कौन? उदाहरणों से अपने मत की पुष्टि कीजिये।
उत्तर-11 ' दो कलाकार ' यथार्थोन्मुख आदर्शवादी कहानी है। अरुणा अपने चित्रों को मूर्त रूप प्रदान करती है। उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। वह चित्रा के सामान केवल कैनवस पर चित्र नहीं उतारती, रंग और तूलिका से उसमें रंग नहीं भर्ती अपितु रचनात्मक कार्य में विश्वास करती है। समाज सेवा से दूसरों के जीवन में रंग भर्ती है। अनाथ बच्चों को वह पालती है। निर्धन व असहाये बच्चों को आश्रय प्रदान करती है। उसे समाज, परिवार की चिंता नहीं है। उसका दृष्टिकोण आम आदमी के लिए एक आदर्श की स्थापना करता है। वह निः सवार्थ भाव से अपने कामों को पूरी इमानदारी से करती है। चित्रा केवल चित्रकला है। वह अपने विचारों को कैनवस पर उतारती है, जबकि अरुणा यथार्थोन्मुख आदर्शवादी है। वह तन-मन से समाज-सेवा में जुटी रहती है।

प्र-12 'अनुराधा ' कहानी के माध्यम से उठाई गई दो समस्याओ पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-12 'अनुराधा ' कहानी में कथाकार ने प्रमुख रूप से दो समस्याओ को उठाया है पहली समस्या एड्स से संबंधित है। व्यक्ति अगर जीवन-साथी के प्रति ईमानदार रहे तो एड्स का रोग नहीं हो सकता। और अगर हो जाये तो इसे छिपाने की आवश्यकता नहीं है। दूसरी समस्या इस कहानी में नारी के अधिकारों की उठाई गई है। अनुराधा की सास-ससुर परम्परावादी है और उसे आगे बढ़ने से रोकते है। ऐसी स्थितिओ को चुपचाप सहन करना ठीक नहीं है। इसके लिए उसे संघर्ष करना ही होगा। अनुराधा का चरित्र आज की नारी को उसके अधिकारों के प्रति सन्देश देता है।

प्र-13 ' अनुराधा ' कहानी की पात्र अनुराधा के चरित्र की दो प्रमुख विशेषताएं उदहारण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-13 अनुराधा के चरित्र की दो विशेषताएं इस प्रकार है-1 आदर्श बहु है अनुराधा। ससुराल में उसका आचरण सास-ससुर व पति की सेवा का रहा। वह जानती थी कि पति का रोग उसे लग सकता है। लेकिन फिर भी पति की इच्छा पूर्ण करने के लिए उसके बच्चे की माँ बनी।
2- जब अनुराधा को यह जानकारी हो जाती है कि उसे उसके अधिकारों से वंचित करने की साजिश रची जा रही है तो सचेत हो जाती है। वह सास-ससुर के खिलाफ विद्रोह कर अपनी चेकबुक व पासबुक लेने के लिए शहर में रह रहे अजय के पास जाती है।

प्र-14 पठित कहानी ' अनुराधा ' की नायिका अनुराधा द्वारा लिए गए निर्णय से आप कहाँ तक सहमत है। पक्ष अथवा विपक्ष में कोई दो तर्क देते हुए उत्तर की पुष्टि कीजिये।
उत्तर-14 जब ' अनुराधा ' की नायिका अनुराधा को उसके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है तो निर्णय लेती है कि अब उसे स्वयं सुरक्षित होना पड़ेगा। परिजन उसे उसके अधिकारों से वंचित रखना चाहते है। उसे यह अहसास होता है कि शायद विजय का रोग उसे लग गया है और अगर यह सच है तो उसके होने वाले बच्चे को भी यह रोग निश्चित रूप से लगेगा। इसलिए वह निर्णय लेती है किए अपना इलाज करवाएगी। इसी निर्णय के कारण वह अपने ससुर से कहती कि उसका विधिवत स्वस्थ्य- परीक्षण कराया जाये। जब ससुर उसकी बात नहीं सुनता और सास उसे ससुर के सामने जवाब चलाने पर फटकार लगाती है तो बगावत कर उठती है।

प्र-15 'अनपढ बनाये रखने की साजिश ' के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? किन्ही दो बिन्दुओ का उल्लेख कीजिये।
उत्तर-15= 'अनपढ बनाये रखने की साजिश ' में मुख्यता दो बिदुओ पर प्रकाश डाला गया है-
1. इसमें लेखक ने बताया है कि सामन्तवादी और पूंजीवादी वर्ग आम लोगो को शिक्षा से वंचित रखने की साजिश रच रहा है।
2. सामंत वर्ग और पूंजीवादी वर्ग ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि उनमे जनचेतना और जाग्रति का विकास न हो सके।

प्र-16 ' आज के आधुनिक सामंत सारे देश को दूरदर्शन केन्द्रो के बढ़ते हुए जाल में बांधकर अपने जरिये वचन या घटिया मनोरंजन पिला रहे है ' कथन से क्या आप सहमत है? तर्क सहित उत्तर दीजिये।
उत्तर-16 राजेंद्र यादव का यह कथन पूर्णतः सत्य है कि आज के आधुनिक सामंत सारे देश को दूरदर्शन केन्द्रो के बढ़ते हुए जाल में बांधकर अपने जरिये घटिया मनोरंजन पिला रहे है। शिक्षा जैसी आवश्यक चीज से लोगो को वंचित रखा जा रहा है और सरकार तथा पूंजीपति वर्ग व्यर्थ की ऐसी चीजों पर पैसा लगा रहे है जिनसे केवल मुट्ठीभर लोगो की स्वार्थ पूर्ति और मनोरंजन होता है। अच्छी किताबो ने जहा महापुरषो और अच्छी संस्कृति के विकास में मदद दी है वही तानाशाही ने हमेशा किताबे नष्ट करने पर ध्यान दिया है क्योंकि घटिया किताबो, चमकदार पत्रिकाओं और टेलीविज़न का जाल भी लोगो को सही ज्ञान के रास्ते से भटकाकर मन बहलाव और भोग-विलास के रास्ते पर ले जाने का काम कर रहा है। कागज़ की कीमते मॅहगी होने से दुखी होकर यह संपादकीय लिखा गया था।

प्र-17 ' परशुराम के उपदेश ' कविता के आधार पर स्वतंत्रता की दो विशेषताएं बताये?
उत्तर-17 स्वतंत्रता की दो विशेषताएं-
1- स्वतंत्रता व्यक्ति का बाहरी नहीं अपितु भीतरी गुण है। जो स्वतंत्र रहने का पक्का इरादा कर लेता है, वही रह सकता है।
2-जो व्यक्ति किसी भी तरह की पराधीनता स्वीकार नहीं करता, वही स्वतंत्र रहता है।

प्र-18 ' वह तोड़ती पत्थर ' कविता के आधार पर मजदूरों के कठिन जीवन पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-18 मजदूरों का जीवन बहुत कठिन है। वे दिनभर सड़क पर काम करते है। भवन निर्माण करते है। गर्मी, सर्दी, बरसात की परवाह नहीं करते। पर उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि वे जानते है कि मेहनत से ही घर चलना है।

प्र-19 ' वह तोड़ती पत्थर '- कविता का केंद्रीय भाव लिखिये। 
उत्तर-19 ' वह तोड़ती पत्थर ' में कवि निराला ने सड़क पर पत्थर तोड़ती मजदूरनी का वर्णन किया है। वह छायाहीन पेड़ तले बैठी है। उसकी पृष्टभूमि साधारण मजदूर परिवार की है, लेकिन सुशील एवं चरित्रवान है। सांवला शरीर है। लेकिन श्रम के कारण सुगठित हो गया है। काम में लगी है। हथौड़ा उठाकर पत्थर तोड़ रही है। सामने पूँजीपतिओ के भवन है। उन्हें एक नज़र देखती है और फिर काम में लग जाती है। कवि बताना चाहता है कि महलो में रहने वाले अनुकूल परिस्थितिओ में भी काम करना नहीं चाहते, जबकि शोषित प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कार्य कर रहे है।

प्र-20 ' वह तोड़ती पत्थर ' कविता के आधार पर शोषक और शोषित के जीवन का अंतर बताइये।
उत्तर-20 ' वह तोड़ती पत्थर ' निराला जी की प्रगतिशील रचना है। इसमें कवि ने शोषक एवं शोषित वर्ग में व्याप्त असमानता का वर्णन किया है। मजदूर प्रतिकूल परिस्थितिओ में रहकर भी मन लगा कर अपना काम करते है, जबकि शोषक अनकल परिस्थितिओ में रहकर भी काम नहीं करते। कवि इस रचना के माध्यम से कहना चाहता है कि शोषित निर्धन होने के बाद भी स्वाभिमानपूर्वक जीना जानते है।

प्र-21 ' वह तोड़ती पत्थर ' कविता के आधार पर ग्रीष्म ऋतु की भीषणता का वर्णन कीजिये। 
उत्तर-21 ' वह तोड़ती पत्थर ' कवि ने ग्रीष्म ऋतु की भीषणता का वर्णन किया है। तेज धूप पड रही है। धूप जैसे चढ़ती है, गर्मी और भीषण होती जाती है। काम करने वाली मजदूरनी तेज गर्मी सहकर भी अपने काम में व्यस्त है। गरम लू थपे अंदर धीरे धीरे सुलग रही है। चारो और धूल का गुब्बार- सा छा गया है। गर्द का एक -एक कण चिंगारी-सा देने वाली है। इस समय धरती ऐसी तपती है मानो रूई अंदर ही जलने लगता है।

प्र-22 ' एक था पेड़ और एक था ठूठ ' पाठ में पेड़ और ठूठ किस बात के प्रतीक है? 
उत्तर-22 ' एक था पेड़ और एक था ठूठ ' पाठ में पेड़ सरस जीवन का प्रतीक है। जैसे हवा का झोंका आता है तो पेड़ झूमने लगता है। व्यक्ति को इसी तरह होना चाहिए कि अपने आपको परिस्थितिओ के अनुसार ढाल ले। ठूठ मानो उस पेड़ का कंकाल है जैसा कि हर व्यक्ति को एक न एक दिन सभी को होना है और जिसमे जीवन नहीं है। अगर वह परिस्थितिओ के अनुसार अपने आप को नहीं ढाल सकता है तो ठूठ है और निर्जीव है।

प्र-23 ' पेड़ और ठूंठ किनका प्रतीक है ' एक था पेड़ और एक था ठूंठ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-23 इस निबंध में वृक्ष जीवन में परिस्थितियों से समस्याओ से समझौता करने का प्रतीक है और सूखा वृक्ष ऐसे व्यक्ति का प्रतीक है जो रावण के सामान जिद्दी होते है। न तो किसी को देते है न कुछ लेते है। न किसी से कुछ कहते है न किसी की सुनते है। और न किसी की मानते है और न किसी को मानते है। सिर्फ अपनी ही चलाते है। इस प्रकार हरा-भरा पेड़ रस भरे जीवन का प्रतीक है और ठूंठ व्यक्ति के जिद्दी स्वभाव का।

प्र-24 ' एक था पेड़ और एक था ठूठ ' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिये कि पेड़ जैसे लोगो और ठूठ जैसे लोगो के व्यक्तित्व में क्या अंतर होता है? आपने भी इन दोनों तरह के लोगो को देखा होगा कि उनके विषय में अपने अनुभव लिखिए। 
उत्तर-24 पेड़ हरा-भरा होता है। तेज हवा के झोंके आने पर झूमता है लेकिन ठूठ जैसे के तैसे खड़ा रहता है। वह निर्जीव है इसलिए उसमे जीवन नहीं है। वीर भी नहीं है , चाहे दृढ़ता से खड़ा ही क्यों न हो। अतः जिन व्यक्तिओ में हरे-भरे पेड़ की तरह जीवन है वे कठिन परिस्थितिओ का सामना कर जाते है क्योंकि समझौतावादी होते है। लेकिन जो ऐसा नहीं करते टूट जाते है।

प्र-25 ' क्रोध सब मनोविकार से फुर्तीला है ' कथन का आशय स्पष्ट कीजिये। अनुभव आधारित कोई दो उदाहरण देते हुए उत्तर की पुष्टि कीजिये। 
उत्तर-25 क्रोध नामक मनोविकार अन्य मनोविकार की तुलना में अत्याधिक चंचल और आवेशपूर्ण होता है। वह अपने फुर्तीलेपन को तुरंत ही प्रकट करने लगता है। इस प्रकार यह मनोविकार सभी मनोविकारो की तुलना में कहीं ज्यादा आवेग लिए होता है। जब हमें कोई व्यक्ति थप्पड़ मारता है तो हम उसे तत्काल थप्पड़ का जवाब देते है। इससे यह साबित होता है कि क्रोध सभी मनोविकारो से फुर्तीला है। इसी तरह घर में अगर कोई डांटता है तो हम गुस्से में ज्यादा खाना शुरु कर देते है या खाने से उठ कर चले जाते है। यह भी फुर्तीलेपन को दर्शाता है।

प्र-26 रामचंद्र शुक्ल ने ' क्रोध ' पाठ में बैर को क्रोध का आचार या मुरब्बा क्यों कहा है? 
उत्तर-26 जिस प्रकार आचार या मुरब्बा एक दिन में नहीं बनता बल्कि आचार या मुरब्बे को बनने में हफ्ते-महीने लगते है। उसी प्रकार जब कभी हमें किसी पर क्रोध आता है और किसी वजह से हम उस व्यक्ति पर क्रोध प्रकट नहीं कर पाते तो हमारे मन में उससे बदला लेने की या सबक सिखाने भावना बन जाती है फिर चाहे कुछ दिन बाद या महीने बाद या वर्षों के बाद भी उससे बदला लेते है उसे सबक सिखाते है। इस प्रकार यह क्रोध बैर में बदल जाता है

प्र-27 शुक्ल जी ने क्रोध को अंधा क्यों कहा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-27 शुक्ल जी ने क्रोध को अंधा कहा है क्योंकि क्रोध करने वाला व्यक्ति कारण और परिणाम बिना सोचे-समझे लाल-पीला हो अकेले ही कई शत्रुओ पर टूट पड़ता है जिस कारण उसकी हार होती है। समाज भी उसका साथ नहीं देता। दूसरा जब कोई परिणाम का विचार किये बिना, अपनी शक्ति व सामर्थ्य को आंके बिना और योजना बनाये बिना विपक्ष पर टूट पड़ता है तो उसकी असफलता निश्चित होती है। इसे क्रोध का अंधापन कहते है।

प्र-28 ' मुझे कदम कदम पर ' कविता का केंद्रीय भाव लिखिये। उत्तर-28 ' मुझे कदम कदम पर ' कविता का केंद्रीय भाव यह है कि वर्तमान युग में कवि की कठिनाई विषयो का अभाव नहीं है, उसकी कठिनाई यह है कि विषय बहुत अधिक है परन्तु वह स्वयं उनमे से चुनाव कर पाने में असमर्थ है। वह सभी विषयो पर लिखना चाहता है क्योंकि सभी विषय उसे अपनी ओर खींचते है। कवि का मानना है कि उसकी यह सोच गलत है कि प्रत्येक पत्थर हिरा होगा , हर आत्मा बेचैन होगी या हर मुस्कान सदानीरा होगी या फिर प्रत्येक वाणी में महाकाव्य की पीड़ा समाई होगी। चोहराहे पर पहुंचकर उसे लगता है कि उसे एक कहानी मिल गई है फिर दूसरो से बाते करने पर लगता है कि उसे उपन्यास का प्लाट मिल गया है। उसे खुशी होती है कि वह चोहराहे से नए प्रतीक व नए रूपचित्र लेकर लौट रहा है।

प्र-29 'मौन ' अथवा ' भरत का भातृप्रेम ' कविता का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-29 ' मौन ' कविता का केंद्रीय भाव- कवि ने मौन कविता में अपनी प्रिया से कुछ क्षण शांति से व्यतीत करने का अनुरोध किया है। वह अपनी प्रिया से कह रहा है- 'आओ प्रिये! हम दोनों कुछ देर के लिए एक स्थान पर बैठे और गतिशील जीवन से कुछ समय निकालकर स्वयं को आराम दे। दोनों एक ही राह पर चलने वाले जीवन साथी है। जीवन के क्षणिक और स्थायी कष्टों को भूलकर कुछ देर बैठे और चुप रहे। जिस तरह चुपचाप बूंद बह जाती है उसी तरह हमारा मन जीवन के विशाल प्रवाह में बह जाए। हम उत्थान और पतन की चोट आसानी से सेह जाए। जैसे प्रातः कालीन पवन बहने से छोटे-छोटे पत्ते कभी ऊपर और कभी नीचे होते रहते और चुपचाप झोंके सहते रहते है। उसी तरह हम भी जीवन के उतार-चढ़ाव सहते रहे.
भरत का भातृप्रेम कविता का केंद्रीय भाव- गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के अयोध्याकाण्ड से यह प्रसंग लिया गया है। रामचरितमानस में यह प्रसंग बहुत मार्मिक रूप में है। राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वन चले गए। भरत ननिहाल से वापस आये। राम को न पाकर दुखी हुए और उन्हें वापस अयोध्या लाने के लिए गुरुओ, माताओ और अयोध्यवासिओ के साथ चित्रकूट आये। वह राम के समक्ष अपने नेत्रों में जल भर कर निवेदन किया -नाथ! मेरा अभिप्रायः तो मुनिनाथ गुरु वशिष्ठ ने आपके समक्ष प्रकट कर दिया है। मेरे स्वामी कृपालु है। ये अपराधी पर भी कृपा करते है। इन्होंने मुझे अपने मन से कभी अलग नहीं किया है। मेरे हारने पर भी मुझे जीतकर मुझे प्रसन्न करते रहे है। मुझ पर उनका अतिशय दुलार है पर यह दुलार विधाता को नहीं ऋचा, इसलिए मुझे कष्ट उठाना पड़ा है। मैं राम के समक्ष यह अपराध स्वीकार करता हूँ कि मैंने माता को बिना सोचे-समझे कटु शब्द कह कर कष्ट पहुंचाया है। मुझे तो यही लगता है कि मेरे अपराधों पर दंड की व्यवस्था प्रभु राम ही कर सकते है। वस्तुतः इस प्रकरण के माध्यम से राम भरत का भातृप्रेम देखने को मिलता है।

प्र-30 ' मैं नीर भरी दुःख की बदली ' कविता में महादेवी वर्मा ने नारी के जीवन की तुलना एक जल भरी बदली से की है, कैसे?
उत्तर-30 ' मैं नीर भरी दुःख की बदली ' कविता में महादेवी वर्मा ने नारी-जीवन की तुलना एक जल-भरी बदली से की है। जैसे बदली की हर गर्जन व हलचल के पीछे एक स्थिरता है। जैसे उस पर किसी क्रंदन का प्रभाव नहीं पड़ता जबकि उस गर्जन पर विश्व प्रसन्न होता है क्योंकि भीषण गर्मी से राहत देता है। उसी तरह विरहिणी नारी के स्पंदन में चीरस्पन्दन बसा है। जो सदा से स्पंदन रहित है, स्थिर है। बादलो की गर्दन में पीड़ित और चोट खाये लोगो की पीड़ा अभिवयक्त हो रही है। ऐसा लगता है कि गर्जन किसी की पीड़ा के स्वर नहीं है बल्कि कोई जोर-जोर से हँस रहा है। उसकी आँखों में दीपक जलते रहते है। ये दीपक विरह की अग्नि के भी हो सकते है और उम्मीद के भी। आंसू उसकी पलकों में नदी के सामान बहने के लिए आतुर रहते है। वह अपनी विरह-वेदना को आंसुओ के रूप में प्रवाहित करती रहती है, जैसे- बदली जल बूंदो को प्रवाहित करती है।

प्र-31 भरत का अपने बड़े भाई श्री राम के प्रति आदर व प्रेम की प्रासंगिकता की पुष्टि आज के सन्दर्भ में कीजिये। 
उत्तर-31 ' भरत का भातृप्रेम' आज के संदर्भ में नहीं दिखाई देता। आज तो भाई-भाई का दुश्मन बना हुआ है। भाई-भाई में न तो आदर भाव रहा है और न विश्वास। आज के युग में केवल धन का संबंध सबसे बड़ा समझा जाने लगा है। आज समाज को सुव्यवस्थित करने की जरुरत है। यह तभी संभव है, जब भाईओ में उस तरह के प्रेम-भाव की स्थापना हो, जैसा भरत व राम का प्रेमभाव था।

प्र-32 ' परशुराम के उपदेश 'अथवा' मैं नीर भरी दुःख की बदली' कविता का केंद्रीय भाव 40-50 शब्दों में स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-32 ' परशुराम के उपदेश' का केंद्रीय भाव - व्यक्ति को अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। यह उसका धर्म है। अत्याचार और अन्याय सहना कायरो का काम है। मानव को प्रकृति से अनेक प्राकृतिक शक्तिया प्राप्त हुई है जिनकी पहचान हो जाने पर उसकी भुजाओ में शक्ति आ जाती है। एक-एक वीर सैकड़ो को पराजित कर सकता है। प्रत्येक भारतवासी अपनी शक्ति पहचाने और एकजुट होकर शत्रु पर टूट पड़े।
मैं नीर भरी दुःख की बदली ' कविता का केंद्रीय भाव - ' मैं नीर भरी दुःख की बदली कविता में कवियत्री ने नारी-वेदना चित्रित की है। वह नारीवेदना को जलभरी बदली के उपमान के माध्यम से रूपायित करती है और विभिन्न व्यंजनाओं से अपने कथन को पुष्ट करती है। वह नारी को त्याग एवं समर्पण की मूर्ती मानती है और आंसुओ से भरी वेदना में पग-पग संगीतमय होने पर चिंता का भार लिए , मिट्टी में प्राण संचार करने वाली नारी की पीड़ा प्रकट करती है।

प्र-33 बाहिर लैके दियवा, वारन जाय.... प्रस्तुत बरवै में रहीम ने गृहस्थ प्रेम का अत्यंत सुन्दर चित्रण किया है। स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-33 रहीम ने अपने इस दोहे में गृहस्थ-प्रेम का सुन्दर चित्रण किया है। वे एक ऐसे परिवार का चित्रण कर रहे है जिसमे सास-ननंद आदि है पर वहां रहने वाली स्त्री अपने पति की आतुरता से प्रतीक्षा करते हुए परिवार की मर्यादा का पालन कर रही है। शाम होने पर नायिका प्रिय की प्रतीक्षा कर रही है। बार-बार दिया जलाती है लेकिन उसके मन की बेचैनी कहीं सास-ननंद न भाप ले , इसलिए बुझाती भी है। सौंदर्य यह है कि प्रिय प्रतीक्षा भी है और लोक-मर्यादा भी।

प्र-34 ' प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी.... ' पद में संत रैदास ने ईश्वर की उपमा कई उपनामो से दी है। उसे स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-34 कवि रैदास ने ईश्वर की उपमा चन्दन, बादल, चाँद और मोती से दी है। इन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है-
i. ईश्वर चन्दन है और में पानी हूँ।
ii. ईश्वर बादल है और मैं मोर हूँ।
iii. ईश्वर चाँद है और मैं चकोर है।
iv. ईश्वर दीपक है और में बाती हूँ।
v. ईश्वर मोती है और मैं धागा हूँ।

प्र-35 छायावाद और प्रगतिवाद में अंतर के दो बिन्दुओ को उदाहरणसहित स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-35 छायावाद और प्रगतिवाद में अंतर के दो बिन्दु: 
छायावाद- छायावाद विशेष रूप से हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग ई.स.1918 से 1936 तक की प्रमुख युगवाणी रही। इसमें जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा आदि मुख्य कवि हुए। यह सामान्य रूप से भावोच्छवास प्रेरित स्वच्छन्द कल्पना-वैभव की वह स्वच्छंद प्रवृत्ति है जो देश-कालगत वैशिष्ट्य के साथ संसार की सभी जातियों के विभिन्न उत्थानशील युगों की आशा, आकांक्षा में निरंतर व्यक्त होती रही है। स्वच्छन्दता की इस सामान्य भावधारा की विशेष अभिव्यक्ति का नाम हिंदी साहित्य में छायावाद पड़ा।
-प्रगतिवाद -प्रगतिवाद का अभिप्राय उस साहित्यिक आन्दोलन अथवा वाद से है, जिसमे मानव को उसकी यथार्थ दशा से अवगत कराने से अनन्तर प्रगति अथवा उत्कर्ष की प्रेरणा दी जाती है। प्रगतिवाद का उददेश्य साहित्य मे यथार्थवाद की स्थापना करना था। प्रगतिवाद का प्रारम्भ 1936 ई० से माना गया है।

प्र-36 निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति का उदाहरण देते हुए अंतर स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-36 भक्तिकाल की प्रमुख दो शाखाये हैं- निर्गुण भक्ति शाखा और सगुण भक्ति शाखा। निर्गुण भक्ति शाखा की भी दो उपशाखाये हैं- प्रेममार्गी शाखा और ज्ञानमार्गी शाखा। प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं, जबकि ज्ञानमार्गी शाखा के कवि संत कबीर। सगुण भक्ति शाखा भी दो शाखाओं में विभाजित हैं- रामभक्ति शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा। रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं और कृष्ण भक्ति शाखा के महाकवि सूरदास। सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति धाराओं में मुख्य अंतर यह है कि ज्ञानमार्गी निर्गुण ईश्वर की उपासना करते हैं, जबकि सगुण भक्ति के उपासक ईश्वर के अवतार रूप को पूजते है।

प्र-37 राम-भक्ति काव्य की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। 
उत्तर-37 राम-भक्ति में राम को विष्णु का अवतार माना गया है। इस काव्य-धारा के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम है। तुलसीदास का रामचरितमानस इस काव्य-धारा का बड़ा ग्रन्थ है। इसकी प्रमुख रचनाएँ अवधी भाषा में है लेकिन तुलसी की ब्रजभाषा में भी रचनाएँ उपलब्ध है।

प्र-38 कृष्ण-भक्ति काव्य की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। 
उत्तर-38 कृष्ण-भक्ति कवियों ने विष्णु के अवतार कृष्ण को ईश्वर मानकर भक्ति की है। इनकी काव्य रचना का आधार श्रीमद भागवत है। मीरा ने कृष्ण को अपना पति माना है। मीरा की भक्ति दांपत्य भाव की है। इस काव्य-धारा में जहाँ कृष्ण की बाल-लीलाओं का सुन्दर वर्णन है, वहीं गोपियों के विरह का अत्यंत मोहक वर्णन है। दूसरे प्रमुख भक्त है सूरदास है। इस काव्य-धारा की भाषा ब्रज है।

प्र-39 राजेंद्र यादव की भाषा शैली की विशेषताएं? 
उत्तर-39 राजेंद्र यादव की भाषा शैली की विशेषताएं इस प्रकार है-
i. राजेंद्र यादव की रचना "अनपढ बनाये रखने की साजिश" की दृष्टि से आदर्श संपादकीय नहीं है। यह बहुत विस्तार लिए है। लेकिन इसकी इनकी भाषा सुबोध , ओजपूर्ण तथा चुटीली है।
ii. इसमें व्यंग्य का भी जोरदार ढंग से प्रयोग किया गया है। भाषा प्रवाह पूर्ण है। उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर प्रयोग हुआ है।

प्र-40 रामचंद्र शुक्ल की भाषा की विशेषताएं? 
उत्तर-40 राम चन्द्र शुक्ल की भाषा शैली की विशेषताएं-
i. आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा तत्सम प्रधान है। वे विषय के अनुकूल संस्कृत तत्सम शब्दों का प्रयोग करते है
ii. आचार्य शुक्ल विषय का विवेचन करते हुए मुहावरों का प्रयोग करते है। इससे उनकी भाषा में प्रभावोत्पादकता आ जाती है।

प्र-41 आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली की विशेषताएं? 
उत्तर-41 आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली-
i. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की भाषा सहज और स्वाभाविक है। भाषा में बोल-चाल के शब्दों की प्रधानता है। इसी कारण गंभीर विषय को सरलता से स्पष्ट कर देते है।
ii. इन्होने अपनी भाषा में मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। जैसे- दांत निपोरना, हॉ हजूरी करना, जाल बिछाना आदि।

प्र-42 छोटी रानी के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं को सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर-42 छोटी रानी के चरित्र की विशेषताएं- 
i. छोटी रानी महत्वाकांक्षिणी है। नायक सिंह का कोई वैध पुत्र नहीं है। उसका दासीपुत्र कुंजर सिंह राज्य अधिकार से वंचित है, इसलिए राज्य सिंहासन पर स्वयं बैठना चाहती है।
ii. राज्यगद्दी पर बैठने के लिए वह षड्यंत्र रचती है। इस षड्यंत्र में कुंजर सिंह और बड़ी रानी को भी शामिल कर लेती है।
iii. छोटी रानी के चरित्र में बड़ा गुण है कि वह वीर है और अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए साहसपूर्ण काम करती है। वह देश-द्रोह की प्रतीक है।

प्र-43 कुमुद के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश इलिये।
उत्तर-43 कमद के चरित्र की विशेषताएं-
i. कुमुद जन्म से अत्यंत सुन्दर है। किशोरावस्था में पहुंचते-पहुंचते उसकी ख्याति चारो तरफ फेल जाती है। लोग उसे दुर्गा का अवतार मानते थे।
ii. कुमुद का प्रेमी हृदय है। वह कुमार सिंह से प्रेम करती है।
iii. कुमुद को जब अलीमर्दान अपने नापाक हाथो से स्पर्श करना चाहता है तो वह अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए बेतवा नदी में छलांग लगाकर अपने प्राणो का विसर्जन कर देती है।

प्र-44 अलीमर्दान के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये?
उत्तर-44 अलीमर्दान के चरित्र की विशेषताएं-
i. कालपी का फौजदार अलीमर्दान मुगल दरबार की राजनीति से जुड़ा है। हिन्दू राजाओ पर नज़र रखता है और उन्हें डराता रहता है।
ii. राजा नायक सिंह की मृत्यु के बाद जब छोटी रानी बगावत करती है तो वह उसके राखीबंध भाई होने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और अपने दरबारिओ तथा रामदयाल के उकसाने पर दुर्गा की अवतार समझी जाने वाली कुमुद को अपनी रानी बनाने का निश्चय करता है।
iii. अलीमर्दान हिन्दुओ की धार्मिक भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाता वह दुर्गा का मंदिर ध्वस्त होता है मगर अलीमर्दान की तोपों से नहीं।

प्र-45 कुंजर सिंह के चरित्र की विशेषताएं?
उत्तर-45 कुंजर सिंह के चरित्र की विशेषताएं-
i. कुंजर सिंह दासी पुत्र होने के कारण राज सिंहासन का अधिकारी नहीं है।
ii. देशभक्त है। देवीसिंह के राज्यासीन होने पर विद्रोह कर देता है।
iii. वह स्वाभिमानी प्रकृति का है और राष्ट्र की आन बचाने के लिए विदेशी सहायता लेने से इंकार कर देता है और देश व प्रेम के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है।

प्र-46 'विराटा की पदमिनी ' की भाषा- शैली की तीन विशेषताओं पर प्रकाश इलिये।
उत्तर-46 ' विराटा की पदमिनी ' की भाषा- शैली की तीन विशेषताएं-
i. 'विराटा की पद्मिनी' में हिंदी का प्रयोग किया गया है पर उसके बिच बुंदेली शब्दों का समावेश है जिससे भाषा बहुत ही आकर्षक हो गई है।
ii. 'विराटा की पद्मिनी ' की भाषा में ध्वनि मूलक और अर्थ मूलक आदि शैली के प्रयोग से मधुरता आ गई है।
iii. 'विराटा की पदमिनी ' की भाषा उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों की सहायता से नवीन बन गई है।

प्र-47 क्या ' विराटा की पद्मिनी को ऐतिहासिक उपन्यास माना जा सकता है? पक्ष या विपक्ष में तीन तर्क दीजिये।
उत्तर-47 नहीं, विराटा की पद्मिनी ' को ऐतिहासिक उपन्यास नहीं माना जा सकता। इस ' विराटा की पद्मिनी ' के विपक्ष में तर्क
i. यह एक काल्पनिक उपन्यास है क्योंकि बहुत से पात्र और घटनाये वास्तव में नहीं हई।
ii. इस उपन्यास में कल्पना और लोककथा का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है।
iii. इस उपन्यास की किसी बी घटना और पात्र के बारे में , हमारी इतिहास की पुस्तकों में कोई जानकारी नहीं है।

प्र-48 ' विराटा की पद्मिनी ' उपन्यास के संवादों की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-48 'विराटा की पद्मिनी ' उपन्यास की संवाद की तीन विशेषताएं
i. विराटा की पद्मिनी के संवाद सरस हैं और रोचक है।
ii. संवाद पात्रानुकूल हैं और उनमे परिस्थिति की मांग झलकती है।
iii. दरबारियों के संवादों में चाटुकारिता, छल-कपट और मरने-मारने की शब्दावली है।

प्र-49 गोमती ने दुर्गा से क्या वरदान माँगा?
उत्तर-49 गोमती ने दुर्गा से वरदान मांगा की " कुंजर सिंह का नाश हो, अलीमर्दान मर्दित हो और दलीप नगर का राजा विजयी हो।

प्र-50 कुंजर सिंह को अलीमर्दान की सहायता क्यों अच्छी नहीं लगी ?

या 

कुंवर सिंह अलीमर्दान से सहायता क्यों नहीं लेना चाहता था?
उत्तर-50 कुंजर सिंह को अलीमर्दान की सहायता अच्छी नहीं लागी। कुंजर सिंह नहीं चाहता था कि दिलीप नगर के गृह क्लेश में कोई विदेशी बाहरी ताकत दखलंदाजी करे और इसके बदले राज्य के किसी हिस्से पर अधिकार कर ले।

प्र-51 नायक सिंह ने देवी सिंह को क्या वचन दिया?
उत्तर-51 नायक सिंह ने देवी सिंह को यह वचन दिया कि वह ऐसा पुरस्कार देगा जैसा उसने कभी न पाया होगा।

प्र-52 छोटी रानी ने बड़ी रानी को अपने षड्यंत्र में कैसे शामिल किया?
उत्तर-52 छोटी रानी ने बड़ी रानी को अपनी मीठी , चिकनी-चुपड़ी बातो से अपनी तरफ कर लिया। उसने बड़ी रानी को यह भी यकीन दिलाया कि उनके महल से बहार निकलते ही देवी सिंह से असंतुष्ट सरदार उनकी सहायता के लिए पहुंच जाएंगे।

प्र-53 कुंजर सिंह ने कुमुद की रक्षा के लिए क्या प्रस्ताव रखा और कुमुद ने इसका क्या उत्तर दिया ?
उत्तर-53 कुंवर सिंह कुमुद को विराटा के दुर्गा मंदिर से हटाकर किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का प्रस्ताव रखता है पर कुमुद इसे स्वीकार नहीं करती क्योंकि उसे कुंजर सिंह की शक्ति पर विश्वास है।

प्र-54 अलीमर्दान के सिंहगढ़ आने से कुंजर सिंह प्रसन्न क्यों नहीं था?
उत्तर-54 कुंवर सिंह जानता था कि अलीमर्दान कुमुद को अपने साथ ले जायेगा और उनके मंदिरो का अपमान करेगा. इसलिए वह अलीमर्दान के सिंहगढ़ आने पर प्रसन्न नहीं हआ।

प्र-55 प्रारूपण किसे कहते है?
उत्तर-55 प्रारूपण का अर्थ है ' प्राक-रूप' अर्थात पत्र का पहला या कच्चा रूप। इसे तैयार करने का कार्य प्रारूपण कहलाता है। दूसरे आसान शब्दों में, अगर किसी कार्यालय में कोई पत्र प्राप्त होता है तो उसका जवाब देने के लिए जो कच्चा रूप तैयार किया जाता है को ही प्रारूप या प्रारूपण कहते है।

प्र-56 प्रारूपण की विशेषताएं?
उत्तर-56 प्रारूपण की 5 विशेषताएं इस प्रकार है-
i. प्रारूपण तैयार करते समये इसके विभिन्न रूपो की जानकारी आवश्यक है।
ii. प्रारूपण अपने में पूर्ण विषय पर आधारित होना चाहिए।
iii. प्रारूप तैयार करते समय क्रमबद्ध रूप से विचारों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
iv. पत्र का उत्तर सटीक तथा समुचित होना चहिये।
v. प्रारूपण की भाषा शिष्ट, सहज व सरल होनी चाहिए।

प्र-57 टिप्पण और टिप्पणी में अंतर ?
उत्तर-57 टिप्पण- अंग्रेजी शब्द नेटिंग का पर्याय है। इस शब्द का सामान्य अर्थ किसी मामले में राय व सम्मति देना होता है। लेकिन कार्यालयी हिंदी में इसका अर्थ बहार से आने वाले पत्रों या प्रशासनिक मामलो पर कार्यवाई करने के उद्देश्य से फाइल पर लिखने से है।
टिप्पणी- इसमें प्रायः किसी विषय पर अपने विचारों को संक्षेप में अर्थात कम शब्दों में प्रकट करना किया जाता है।

प्र-58 प्रतिवेदन से आप क्या समझते है?
उत्तर-58 प्रतिवेदन शब्द अंग्रेजी के रिपोर्टिग शब्द का हिंदी अर्थ है। यह एक प्रकार का लिखित विवरण है जिसमे किसी विषय अथवा कार्य से सम्बंधित विविध तथ्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रतिवेदन में किसी घटना, कार्य योजना आदि के सम्बन्ध में छानबीन, पूछताछ आदि करने के बाद तैयार
किया गया विवरण होता है।

प्र-59 प्रतिवेदन क्यों लिखा जाता है?
उत्तर-59 प्रतिवेदन लिखने का उद्देश्ये किसी कार्य या विषय के विविध तथ्यों के बारे में उन लोगो को जानकारी देना है जो उससे किसी प्रकार सम्बंधित है, परन्तु उन्हें सभी तत्वों की पूरी जानकारी नहीं है।

प्र-60 प्रतिवेदन के मुख्य तत्व कौन-कौन से है?
उत्तर-60 प्रतिवेदन के तत्व-
i. प्रतिवेदन किसी विवादित प्रश्न, घटना, ज्वलंत समस्या, स्थिति, अनियमितता की जानकारी पर कार्यवाई करने के लिए लिखा जाता है।
ii. प्रतिवेदन के लिए किसी घटना या स्थिति की संपूर्ण जानकारी के लिए किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी सौपी जाती है। यह जिम्मेदारी किसी समिति को भी सौपी जा सकती है। समिति या व्यक्ति मामले की सच्चाई तक पहुंचने का प्रयास करते है।
iii. सूक्ष्म निरीक्षण तथा पूरी जाँच-पड़ताल के माध्यम से समस्या की जड़ तक पंहुचा जाता है। प्रतिवेदन की प्रमाणिकता दिए गए साक्ष्यों तथा तथ्यों पर निर्भर करती है। सुझाव तथा सिफारिशों के माध्यम से ही प्रतिवेदन या समिति अपने विचार अभिव्यक्त करती है। प्रतिवेदन निश्चित अवधि में पूरा किया जाता है।

प्र-61 कुछ प्रमुख पारिभाषिक शब्द- टेलीप्रिंटर, वर्गीकृत विज्ञापन, कयामुख, ई-मेल, दैनिक, ब्रेकिंग न्यूज़, पीत पत्रकारिता?
उत्तर 61
i. टेलीप्रिंटर-दूरदराज के इलाको से तेजी के साथ समाचार भेजने की टाइपराइटर जैसी मशीन।
ii. वर्गीकृत विज्ञापन-विज्ञापन जो विषयो के अनुसार बांटकर छापे जाते है। जैसे- आवश्यकता है, वैवाहिक विज्ञापन, मित्र बनाये, टेंडर नोटिस आदि।
iii. कथामुख- किसी समाचार के प्रारंभिक अंश को कथामुख कहते है।
iv. ई-मेल - इंटरनेट से संचालित होने वाली एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है ई-मेल । ई-मेल का अर्थ है इलेक्ट्रॉनिक मेल। इसके माध्यम से किसी भी चिट्ठी ना संदेश को बिजली की गति के साथ संबंधित व्यक्ति को दुनिआ के किसी भी कोने में पहुंचाया जा सकता है।
v. दैनिक -वह समाचार पत्र जो प्रतिदिन प्रकाशित होता है।
vi. ब्रेकिंग न्यूज-अचानक उभर कर आई बड़ी खबर।
vii. पीत पत्रकारिता-पीत पत्रकारिता उस पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की उपेक्षा करके सनसनी फैलाने वाले समाचार या ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इससे समाचारपत्रों की बिक्री बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है। पीत पत्रकारिता में समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है।

प्र-62 ' जन संचार माध्यम ' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-62 जन संचार माध्यम का अर्थ है एक साथ लाखो-करोडो लोगो तक सूचना पहुंचाना। इसे संचार , जनसंचार या मास्स कम्युनिकेशन मीडिया भी कहते है। समाचार-पत्र, रेडिओ, टेलीविज़न और मोबाइल फ़ोन जनसंचार के माध्यम है।

प्र-63 संचार माध्यमों के किन्ही दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये?
उत्तर-63 संचार माध्यम के दो उद्देश्य है- सूचना पहुँचाना और मनोरंजन करना।

प्र-64 किस प्रमुख बात के कारण कोई घटना समाचार बनती है?
उत्तर-64 प्रमुख बात में रुचि होनी चाहिए और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। अगर मोहल्ले में दो आदमियों में झगड़ा हो जाये तो वह घटना समाचार नहीं है लेकिन अगर झगडे में कुछ घायल हो जाये या कोई मर जाये तो वह समाचार के दायरे में आती है।

प्र-65 पत्रकारिता के क्षेत्र में इंटरनेट तथा ईमेल के महत्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-65 पत्रकारिता के क्षेत्र में इंटरनेट और ईमेल ने क्रांति कर दी है। इंटरनेट से पत्रकार सर्च इंजन लोग-ऑन कर अपनी मनचाही सूचनाएं एकत्र कर सकते है। विभिन्न औद्योगिक घराने से निकलने वाले उन सब समाचारों को पढ़ सकते है जिन्हे इंटरनेट पर डाल दिया गया है। यह एक प्रकार की लाइब्रेरी है जिसमे दुनिया भर की जानकारिया मौजूद है। इंटरनेट एक प्रकार से श्रव्य और दृश्य माध्यमों का मिला जुला रूप है। यही नहीं, इसके माध्यम से ईमेल के द्वारा सन्देश मनचाही जगह भेजे जा सकते है और प्राप्त किये जा सकते है। इसके जरिये लोगो से बात की जा सकती है और अनुसंधान किये जा सकते है। ईमेल से दूरदराज के संवाददाता अपने समाचार कुछ मिंटो में भेज सकते है जिनसे पाठक अपने क्षेत्रीय समाचार उसी दिन पढ़ सकते है। इस प्रकार पत्रकारिता के क्षेत्र में इंटरनेट और ईमेल ने निश्चित रूप से एक क्रान्ति कर दी है।

प्र-66 चौथा स्तम्भ या चौथा खंभा किसे और क्यों कहा जाता है? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उतर-66 समाचार पत्रों को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ या चौथा खम्भा कहा जाता है। इसका दूसरा नाम खबरपालिका है। विधानपालिका कानून बनाती है, कार्यपालिका कानून लागू कराती है और न्यायपालिका कानून तोड़ने वालो को दंड देती है। समाचार अर्थात खबरपालिका इन तीनो पर नजर रखती है। समाचारपत्र का काम तीनो की गड़बड़ियों को उजागर करना है इसलिए इसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ या चौथा खम्बा कहा जाता है।

प्र-67 रेडियो की भाषा कैसी होनी चाहिए? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क भी लिखिये।
उतर-67 रेडियो की भाषा संयत, सरल और सरस होनी चाहिए। उसमे ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिसके लिए श्रोता को शब्दकोष देखना पड़े। एक बार के लिए समाचार पत्र में तो ऐसी भाषा का प्रयोग हो सकता है क्योंकि उसके पास शब्दकोष का अर्थ देखने के लिए और खबरद बारा पढ़ने का वक्त होता है पर रेडियो के साथ यह बात नहीं है।

प्र-68 पी.टी.आई. क्या है? इसके कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर-68 पी टी आई का पूरा नाम प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया है। यह समाचार एजेंसी है। इसका काम समाचार पत्रों और रेडिओ, दूरदर्शन चैनल को समाचार बेचना है। समाचार पत्र को भी इससे समाचार खरीदना सस्ता पड़ता है।

प्र-69 प्रायोजित कार्यक्रम क्या होते है। उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-69 संचार साधनो की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए आज कुछ कम्पनियो ने अपने कार्यक्रम प्रायोजित करना आरम्भ कर दिए है। कुछ तो लोकप्रिय कार्यक्रमों को एक प्रकार से खरीद लेती है। वह उन कार्यक्रमों में यथास्थान अपनी कम्पनियो के उत्पादों का विज्ञापन करती है या कार्यक्रम के आरम्भ में अंत में विज्ञापन देती है। कुछ कम्पनियाँ दूरदर्शन से कुछ अवधि खरीद लेती है और वह उस अवधि में अपनी रूचि के अनुकूल कार्यक्रम दिखाती है।

प्र-70 समाचार संकलन के किन्ही दो सोतों पर प्रकाश डालिये/उल्लेख कीजिये?
उत्तर-70 समाचार संकलन के सोत- कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
i. संवाददाता- समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती है कि जिले में घूम-घूम कर दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
ii. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों को प्रकाशन के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई.भारत, यू.एन.आई.भारत, ए.पी. अमेरिका, ए.एफ.पी. फ़्रान्स, रायटर ब्रिटेन।
iii. पुलिस विभाग-सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिस-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
iv. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनी उपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
v. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
vi. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख सोत हैं।
vii. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।

प्र-71 फीचर किसे कहते है?
उत्तर-71 फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव - जन्तु, तीज - त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति - परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रोचक विषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है

प्र-72 आप अपनी पुरानी मारुति कार बेचना चाहते है। उसके लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिये, जिसमे कार की विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख हो।
उत्तर-72 कार बिकाउ है- मारुति 800, मोडल नंबर 2008 , रंग लाल , बढ़िया सीट कवर, कोई स्क्रैच नहीं है , नए टायर लगे है अच्छी स्थति में , कीमत मात्र 80000 , इच्छुक व्यक्ति संपर्क करे 98xxxxxxxxI

प्र-73 कुछ राज्यों में साइबर-अपराधों के निम्नलिखित आंकड़ों को दंड आरेख के द्वारा प्रदर्शित कीजिये।
उत्तर प्रदेश-101
दिल्ली-50
बिहार-25
झारखंड-8

उत्तराखंड-10

प्र-74= निम्नलिखित सूचनाओं को वृक्ष-आरेख द्वारा समझाये

हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल आदिकाल के नाम से जाना जाता है। इसमें तीन प्रकार का साहित्य रचा

गया है-1. धार्मिक प्रचार एवं प्रसार का साहित्य, 2. वीरकाव्य तथा 3.अन्य। धार्मिक साहित्य में

i. सिद्ध साहित्य

ii. नाथ साहित्य और जैन साहित्य। 2. वीर काव्य में रासो और 3.अन्य के अंतर्गत अमीर खुसरो का काव्य और दूसरा विद्यापति का काव्य।

समास

समास का तात्पर्य है-दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं।

समास के छः भेद होते हैं:

1.अव्ययीभाव

2.तत्पुरुष

3.द्विगु

4.द्वन्द्व

5.बहुव्रीहि

6.कर्मधारय

1.अव्ययीभाव समास = जिस समास का पहला पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।

उदाहरण-

आजीवन-जीवन-भर

यथासाध्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम- क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज-रोज़-रोज
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक-शक के बिना
निडर-डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना

2.तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)

विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद है-

कर्म तत्पुरुष (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)

तत्पुरुष समास के दो प्रमुख उपभेद है:

कर्मधारय समास और द्विगु समास

3. द्विगु समास


जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। यह समास समहूवाची भी होता है। जैसे-

नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
चौमासा = चार मासों का समूह
नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह
शताब्दी सौ वर्षों का समूह
त्रयम्बकेश्वर = तीन लोकों का ईश्वर
त्रिफला = तीन फलों का समूह
चौराहा = चार राहो का समूह

4. द्वन्द्व समास- जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं लगता है, वह वंद्व समास कहलाता है। जैसेेे-

5. कर्मधारय समास

जिस समास का उत्तरपद(बाद का शब्द) प्रधान है। इसमें एक शब्द विशेषण, दूसरा विशेष्य होता है; अर्थात दोनों में से एक शब्द की तुलना दूसरे से की जाती है।
जैसे-

समस्त पद - समास विग्रह
चंद्रमुख - चंद्र जैसा मुख
कमलनयन - कमल के समान नयन
दहीबड़ा - दही में डूबा बड़ा
नीलकमल - नीला कमल
पीतांबर - पीला अंबर (वस्त्र)
नरसिंह - नरों में सिंह के समान

6. बहवीहि समास: जिस समास के समस्त पदों में कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद प्रधान हो, उसे बहुव्रीहि समास के नाम से जाना जाता है।
जैसे-


कारक

कारक =जो किसी शब्द का क्रिया के साथ सम्बन्ध बताए वह कारक है !

कारक के आठ भेद हैं :-

जिनका विवरण इस प्रकार है :- 

नीचे कारकों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं :
1. कर्ता कारक
जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह 'कर्ता' कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न 'ने है।
जैसे-
1.राजेश ने पानी पिया।
2. सीता ने गाना गाया।
3.राम ने रावण को मारा।

2. कर्म कारक
क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न 'को' है।
जैसे -
1.पिता ने बच्चे को गोद में उठा लिया।
2.रमेश ने सुरेश को हरा दिया।
3.मोहन ने सांप को मारा।

3. करण कारक
संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो
वह करण कारक कहलाता है। इसके विभक्ति-चिहन से के दवारा है।

जैसे-
1.बालक गेंद से खेल रहे है।
2.वह ठण्ड से कांप रहा था।
3.सीता कलम से लिखती है।

4. संप्रदान कारक
संप्रदान का अर्थ है-देना। अर्थात कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न के लिए को हैं।
जैसे-
1.स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।
2.गुरुजी को फल दो।
3.यह पुस्तक गीता को दे दो।
4.उसने देश के लिए जान दे दी।

5. अपादान कारक
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न से है।
जैसे-
1.बच्चा छत से गिर पड़ा।
2.संगीता घोड़े से गिर पड़ी।
3.पत्ते पेड़ से टूट कर गिरते हैं।
4.वह धीरे धीरे सब से दूर हो गया।

6. संबंध कारक
शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न 'का', 'के', 'की', 'रा', 'रे', 'री है।
जैसे-

7. अधिकरण कारक 
शब्द के जिस रूप से क्रिया के स्थान का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न में, 'पर' हैं.
 जैसे-
1.भंवरा फूलों पर मॅडरा रहा है।
2.कमरे में टीवी. रखा है।
3.वहां कमरे में कोई नहीं था।
4.यह दूध यह मेज़ पर रख दो।

8. संबोधन कारक
जिससे किसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है।
जैसे-
1.अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ?
2.हे गोपाल ! यहाँ आओ।
3.हे अर्जुन ! तुम्हें यह लड़ाई लड़नी ही होगी।
4.अरे ! ये तो वही है जिसे तुम खोज रहे थे।

अलंकार

'अलंकार' का शाब्दिक अर्थ है- 'अभूषण'। जिस प्रकार स्त्रियां स्वयं को आभूषणों से सुसज्जित होती है, उसी प्रकार कवि एवं लेखक भाषा को शब्दों या

उनके अर्थो से सजाते है। शब्दों एवं अर्थों के इसी इस्तेमाल को 'अलंकार' कहते है।

अलंकार को दो भागों में विभाजित किया गया है:

शब्दालंकार- शब्द पर आश्रित अलंकार अर्थालंकार- अर्थ पर आश्रित अलंकार

शब्दालंकार - ये शब्द पर आधारित होते हैं ! प्रमुख शब्दालंकार हैं - अनुप्रास , यमक , शलेष आदि ।

अर्थालंकार - ये अर्थ पर आधारित होते हैं। प्रमुख अर्थालंकार हैं - उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा,

1- अनुप्रास अलंकार - जहां किसी वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है !
जैसे-
भूरी-भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया ।
'भ' की आवृत्ति अनेक बार होने से यहां अनुप्रास अलंकार है !

2-यमक अलंकार :- जहाँ एक ही शब्द अधिक बार इस्तेमाल हो लेकिन अर्थ हर बार अलग हो ,वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण -1
कनक कनक ते सौगुनी,मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर,वा पाये बौराय।।
यहाँ कनक शब्द का दो बार इस्तेमाल हुआ है जिसमे एक कनक का अर्थ है - धतूरा और दूसरे का सोना(Gold) है।

उदाहरण -2

सजना है मुझे सजना के लिए।
यहाँ पहले सजना का अर्थ है - श्रृंगार करना और दूसरे सजना का अर्थ - नायक(प्रेमी)। शब्द दो बार इस्तेमाल हुआ है अर्थ अलग-अलग हैं। अत: यमक अलंकार है।

3-श्लेष अलंकार :- जहाँ पर ऐसे शब्दों का प्रयोग हो जिनसे एक से अधिक अर्थ निलकते हो वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है ।
जैसे-
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून ॥
यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं - चमक , आत्म-सम्मान और जल।अत: शलेष अलंकार है क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन हैं।

4-उपमा अलंकार :- जहाँ दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समानता दिखाई जाये ,वहाँ उपमा अलंकार होता है ।
उदाहरण - 1
सागर-सा गंभीर हृदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन। 
इसमे सागर तथा गिरी उपमान ,मन और हृदय उपमेय सा वाचक गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।
हरिपद कोमल कमल से।
हरिपद (उपमेय ) की तुलना कमल (उपमान ) से कोमलता के कारण की गई। अत: उपमा अलंकार है !

5-रूपक अलंकार:- जहाँ गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाये मतलब जहाँ दो वस्तुओ में बहुत अधिक समानता के कारण एक वस्तु को दूसरी का ही रूप दे दिया जाये वहाँ रुपक अलंकार होता है ।
उदाहरण-1
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
यहाँ राम रतन (उपमेय) में धन (उपमान) का आरोप है
उदाहरण-2
चरण-कमल बंदो हरिराई
यहाँ भगवान के चरणों को ' कमल ' बना दिया गया है, अतः यह रूपक अलंकार है।

6-अतिशयोक्ति अलंकार- जहाँ किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाए, वहां अतिश्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण -1
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई,गये निसाचर भागि।।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
उदाहरण -2
आगे नदिया पडी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार.
राणा ने सोचा इस पार, तब तक था चेतक उस पार.
राणा जी नदी के इस पार सोच रहे थे कि इस बड़ी नदी को कैसे पार करे, लेकिन राणा जी के सोचने से पहले ही चेतक नाम का घोडा नदी पार कर जाता है। इस तरह चेतक का खूब बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया गया है।

7-उत्प्रेक्षा अलंकार :- जहाँ उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण -1
सखि सोहत गोपाल के,उर गुंजन की माल।
बाहर सोहत मनु पिये,दावानल की ज्वाल ॥
उदाहरण -2 मुख मानो चन्द्रमा है।
यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा (उपमान ) मान लिया गया है। यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

इस अलंकार की पहचान - मनु , मानो, मनहुँ, जानहु, जनु , जानो शब्दों से होती है।

8-मानवीकरण अलंकार- जब निर्जीव वस्तु का वर्णन जीवित वस्तुओ या प्राणिओ की तरह किया जाता है, तो वह मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण-1
जैसे- " सागर के ऊपर नाच-नाच करती है लहरें मधुर गान"। 

इस पंक्ति में "सागार" तथा "लेहरो" का वर्णन जीवित प्राणियों की तरह किया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।


कठपुतली कविता का केंद्रीय भाव क्या है?

भावार्थ – कठपुतली दूसरों के हाथों में बंधकर नाचने से परेशान हो गयी है और अब वो सारे धागे तोड़कर स्वतंत्र होना चाहती है। भाव यही है कि किसी को भी पराधीनता या गुलामी पसंद नहीं होती , सभी स्वतंत्रता से रहना पसंद करते हैं।

कठपुतली कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?

'कठपुतली' कविता के माध्यम से कवि संदेश देना चाहता है कि आजादी का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पराधीनता व्यक्ति को व्यथित कर देता है। अतः स्वतंत्र होना और उसे बनाए रखना बहुत जरूरी है, भले ही यह कठिन क्यों न हो।

कठपुतली पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?

कठपुतली पाठ मनुष्य को अपनी आज़ादी के प्रति सचेत रहने की प्रेरणा देता है। उसके अनुसार गुलामी का जीवन कितना भी सुंदर क्यों न हो परन्तु मनुष्य कहलाता गुलाम ही है। अतः हमें गुलामी से मुक्त होने के प्रयास करने चाहिए और अन्य लोगों को भी इसके प्रति सचेत करते रहना चाहिए।

कठपुतली कविता में कौन सा भाव छिपा है?

वो कोई कठपुतली भी नहीं होती, जिसे हम अपने इशारों पर नचा सकें। उनका भी दिल होता है। उच्च शिक्षा पाना कोई अपराध नहीं है जिसकी वज़ह से उसे शर्मिंदा होना पड़े और अपनी योग्यता को छुपाना पड़े।

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