संक्रामक रोग किसे कहते हैं? संक्रामक रोग के लक्षण तथा कारण क्या – क्या है? संक्रामक रोग का प्रसार कैसे होता है?
संक्रामक रोग :-
वैसे रोग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं| ऐसे रोग सूक्ष्मजीवों से होते हैं| सूक्ष्मजीव रोगी के शरीर में वृद्धि करते हैं और शरीर को रोग का आश्रय बना देते हैं|
संक्रामक रोग के लक्षण :-
शरीर के ताप में वृद्धि, हृदय गति में वृद्धि, श्वसन दर में वृद्धि, जीभ का सुखना, भूख कम लगना, पेशाब का गाढ़ा और पीला हो जाना आदि संक्रमण का मुख्य लक्षण हैं|
संक्रामक रोग के कारण :-
संक्रामक रोग का प्रसार :-
संक्रामक रोग का प्रसार निम्नलिखित तरीकों से होता है-
1. भोजन और जल द्वारा :-
इस माध्यम से फैलने वाले रोग हैजा, टाइफाइड अमीबी पेचिश, अतिसार इत्यादि है| इन रोगों का संक्रमण दूषित जल या दूषित भोजन के सेवन से होता है| रोगजनक जीव मनुष्य के पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं| फीताकृमि, गोलकृमि भी पाचन तंत्र को प्रभावित कर रोग उत्पन्न करते हैं| यह रोगाणु मल के साथ रोगी के शरीर से बाहर निकलते रहते हैं, ऐसे मनुष्य को रोगवाहक कहते हैं|
- रोगवाहक के मल पर जब मक्खियां बैठती है तब मल में मौजूद रोगाणु उनके शरीर से चिपक जाते हैं तथा ये मक्खियां बाद में खुले भोजन पर बैठकर भोजन को दूषित कर देते हैं| जब एक सामान्य स्वास्थ्य व्यक्ति इस दूषित जल या भोजन का सेवन करता है तब उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में परजीवी पहुंचकर रोग संक्रमण का प्रसार करते हैं|
2. वायु द्वारा :-
वायु में मौजूद जीवाणु द्वारा भी संक्रमण होता है जो नासिका छिद्र के द्वारा श्वसन मार्ग में प्रवेश कर जाते हैं| ऐसे जीवाणु द्वारा क्षयरोग, कुकुरखांसी इत्यादि उत्पन्न होते हैं|
3. संपर्क द्वारा :-
गोनोरिया, ट्रेकोमा, स्केबीज इत्यादि रोग संपर्क द्वारा भी फैलते हैं|
4. चोट द्वारा :-
त्वचा जब किसी कारणवश घायल हो जाती है तब उस घाव के जरिए रोगाणु शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं तथा रोग उत्पन्न कर देते हैं| जैसे रेबीज विषाणु द्वारा, टेटनस और अल्सर बैक्टीरिया द्वारा होते हैं|
5. कीटों द्वारा :-
मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार, टाइफाइड इत्यादि रोगों के परजीवी कीटों की लार ग्रंथियों में स्थित रहते हैं, जब यह कीट स्वस्थ मनुष्य को काटते हैं तब उस संस्थान से निकलकर ये परजीवी मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर रोग उत्पन्न कर देते हैं|
संसर्गज (संक्रामक ) रोगों से आप क्या समझते हैं? संक्रामक रोगों के प्रकार और उनके प्रसार तथा नियंत्रण के ऊपर बतलाइये ।Table of Contents
- संक्रामक रोग का अर्थ
- संक्रामक रोगों के प्रकार और उनके प्रसार
- संक्रामक रोग नियंत्रण के सामान्य उपाय
संक्रामक रोग का अर्थ
फैलने वाले रोग जो एक व्यक्ति से दूसरे तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से फैलते हैं या पशु से दूसरे पशु तक ऐसे वातावरण जैसे हवा, धूल, मिट्टी, पानी, भोजन के कारण फैलते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। उदाहरणतया एड्स, चेचक, मीजल, वूपिंग कफ, क्षय रोग, वायरल, हेपेटाइटिस, हेपेटाइटिस बी, टायफायड, मलेरिया, रेबीज, टेटेनस आदि संक्रामक रोगों की श्रेणी में आते हैं।
संक्रामक रोगों के प्रकार और उनके प्रसार
संक्रामक रोगों को मुख्यतः उनके सम्प्रेषण के तरीकों के अनुसार चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. वायु-जनित संक्रमण – इस समूह में वे रोग कारक आते हैं जो अन्तःश्वसन के माध्यम से शरीर में जाने के बाद संक्रमण और रोग को जन्म देते हैं। सामान्यतः प्राथमिक रोग प्रक्रिया श्वसन तंत्र से आरम्भ होती है और अंततः संक्रमण एक श्वसन से सम्बन्धित रोग (डिप्थीरिया, तपेदिक) अथवा श्वसन से असम्बन्धित रोग (चेचक, खसरा, कुष्ठ रोग) के रूप में सामने आता है। वायु-जनित संक्रमण के फैलाने के मुख्य 4 माध्यम हैं
(i) प्रत्यक्ष बिन्दुक संक्रमण- एक व्यक्ति द्वारा खाँसने, छींकने, हँसने और बात करने की क्रिया के दौरान उसके मुख एवं नासिका से थूक के कण उसके पास 1 मीटर के दायरे में स्थित व्यक्तियों में मुख एवं नाक के माध्यम से प्रवेश करते हैं। इस प्रकार का संक्रमण तब होता है जब रोग के कारकों में कम जीवन क्षमता होती है जैसे सामान्य सर्दी-जुकाम और कुकर खाँसी ।
(ii) प्रत्यक्ष वायु-जनित संक्रमण- कुछ बिन्दुक कण या बिन्दुक नाभिक वायु में अपनी उपस्थिति लंबे समय तक दर्ज कराते हैं और वायु के माध्यम से लंबी दूरी तय करते हैं ऐसे बिन्दु कण अन्तःश्वसन के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। चेचक और खसरा रोग का फैलाव इसी प्रकार से होता है।
(iii) अप्रत्यक्ष वायु-जनित संक्रमण – कुछ बड़े बिन्दुक कण कपड़े, बिस्तर या फर्श पर गिर जाते हैं, और वहीं संग्रहित रहते हैं। जब ये बिन्दुक कण सूख जाते हैं तो रोग कारक सीधे या धूल के माध्यम से अन्तःश्वसित कर लिये जाते हैं। सन्निपात बुखार गले में खराश और तपेदिक इसी प्रकार फैलते हैं।
(iv) सम्पर्क-जनित संक्रमण – इस प्रकार के संक्रमण प्रत्यक्ष रूप से चुम्बन एवं अप्रत्यक्ष रूप से दूषित भोजन, दूध, हाथ, शल्यक्रिया के उपकरण आदि से फैलते हैं। उदाहरणार्थ गले में खराश और डिप्थीरिया।
3. जल एवं भोजन-जनित संक्रमण – इस तरह के संक्रमण संदूषित जल और भोजन के माध्यम से फैलते हैं। इस प्रकार के संक्रमण सामान्यतः मलीय पदार्थ से सम्बन्धित होते हैं। रोग के कारक जल एवं भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं, ये आँतों में बहुगुणित होते हैं और मल के रूप में शरीर से निष्कासित कर दिये जाते हैं ये संदूषित मल धूल एवं मक्खियों के माध्यम से जल, दूध, भोजन एवं हाथों को संक्रमित कर देता है।
4. सम्पर्क या सतही संक्रमण – इस समूह के अंतर्गत संक्रमण रोगी व्यक्ति की त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली से बाहर आता है और शारीरिक या यौन सम्पर्क के दौरान स्वस्थ व्यक्ति में उसकी त्वचा और श्लेष्मा 1 झिल्ली के माध्यम से प्रवेश करता है। इस प्रकार का संक्रमण अप्रत्यक्ष रूप से भी संक्रमित पदार्थों के द्वारा फैल सकता है जैसे काजल तीली और रूमाल से ट्रैकोमा के द्वारा गोनोरियल वल्ववोवेजिनिटस और जुराबों के द्वारा दाद-खाज ।
5. कीट जनित संक्रमण – कीट रोग कारकों को दो तरीके से फैलाते हैं-
1. यांत्रिक वेक्टर के रूप में – संक्रमण मक्खियों के पंख, पैर और मुख के माध्यम से भोजन और जल में पहुँचता है। हैजा और कुछ अन्य जल और खाद्य जनित रोग इसी प्रकार फैलते हैं।
2. जैविक वेक्टर के रूप में – इस रूप में संक्रमण मक्खियों और कीटों से मानव में उनके काटने से या त्वचा के संक्रमित करने से फैलता है।
संक्रामक रोग नियंत्रण के सामान्य उपाय
संक्रामक रोगों के नियंत्रण के लिए किए जाने वाले उपायों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
I. संक्रमण के स्त्रोतों का नियंत्रण – संक्रामक रोग फैलाने वाले स्रोतों का नियंत्रण निम्न तरीकों से करते हैं-
1. शीघ्र रोग उपचार – किसी समुदाय विशेष में संक्रामक रोग के प्रसार को रोकने के लिए प्रथम कदम संभावित रोगियों का सही एवं शीघ्र उपचार या उनकी पहचान करना है।
2. अधिसूचना – ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत रोग फैलाने के 24 घण्टे के अंदर ही स्वास्थ्यकर्त्ता के दौरान नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य को सूचित करना पड़ता है, तथा शहरी क्षेत्रों में इसकी सूचना स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी जैसे कि नगर पालिका या नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी।
3. पृथक्करण – संक्रामक रोगों से पीड़ित व्यक्ति या व्यक्तियों को पृथक् रखना चाहिए। इसका उद्देश्य समुदाय में रोग के प्रसार को सीमित करना होता है इनको अलग रखने का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इसके लिए हर स्थिति में घर से बेहतर अस्पताल होता है।
4. उपचार – उपचार करने से रोग के संचार में कमी आती है, रोग की अवधि कम हो जाती है और नये रोगी बनने पर रोक लग जाती है।
5. निगरानी – इसकी अन्तर्गत संक्रमण के नये स्रोतों का पता लगाने के लिए सभी रोगियों की उनके क्षेत्र में उचित जाँच पड़ताल और त्वरित नियंत्रण करने के उपायों को लागू करना भी सम्मिलित है।
6. विसंक्रमण – रोगी के द्वारा उत्सर्जित व्यर्थ पदार्थों को और रोगी के द्वारा उपयोग में लायी हुई वस्तुओं को नष्ट कर देना चाहिए।
II. रोग संचार के मार्गों को अवरुद्ध करना- रोग संचार के विभिन्न मार्गों को अवरुद्ध करने के लिए निम्नलिखित उपलब्ध उपायों का उपयोग करना चाहिए-
(a) उपलबध जल प्रदायों को विसंक्रमित करना। (b) मानव प्रकार के कीटों पर नियंत्रण करना। (c) विभिन्न प्रकार के कीटों पर नियंत्रण करना। (d) भोजन स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना।