व्यक्तित्व विकृति के विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व विकृति से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का व्यवहार इतना अधिक विचलित हो जाता है कि उसके बारे में किसी प्रकार का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और न ही दूसरे लोग उनके व्यवहार का कोई ठीक-ठीक अर्थ निकाल पाते हैं। परिणामस्वरूप ऐसा व्यवहार लोगों को मान्य नहीं होता है। पाठकों, आपकी जानकारी के लिये बता दें कि व्यक्तित्व विकृति में व्यक्ति सामान्यत: किसी प्रकार की चिन्ता या अवसाद से ग्रस्त नहीं रहता है। किसी विकृति को व्यक्तित्व विकृति की श्रेणी में रखने के लिये यह आवश्यक है कि विकृत शीलगुण का स्वरूप चिरकालिक हो। व्यक्तित्व विकार के सभी लक्षण प्राय: किशोरावस्था तक स्पष्ट रूप से दिखायी देने लगते हैं और वयस्कावस्था में भी बने रहते हैं, किन्तु मध्यावस्था अथवा प्रौढ़ावस्था के आते-आते लगभग समाप्त हो जाते है। कारसन एवं बुचर ने व्यक्तित्व विकृति को चारित्रिक विकृति का नाम दिया है। Show
व्यक्तित्व विकृति के लक्षण या व्यक्तित्व विकृति का नैदानिक स्वरूप-जैसा कि आप जानते है मनोवैज्ञानिकों एवं मनश्चिकित्सकों द्वारा व्यक्तित्व विकृति के अनेक प्रकार बताये गये है और प्रत्येक प्रकार की अपनी कुछ अलग विशेषतायें हैं, किन्तु फिर भी कुछ विशेषतायें ऐसी है, जो सभी प्रकार की व्यक्तित्व विकृतियों में पायी जाती है। 1) विघटित व्यक्तिगत संबंध 2) चिरकालिक दु:खदायी व्यवहार 3) नकारात्मक नतीजा 4) एक ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना 5) व्यवहार परिवर्तन के विरोधी
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति की कुछ ऐसी सामान्य विशेषतायें हैं, जिनसे इनके स्वरूप को समझने में सहायता मिलती हैं। नीचे व्यक्तित्व विकृति का एक उदाहरण दिया जा रहा है जिससे इन विशेषताओं को और ज्यादा ढंग से समझा जा सकता है। ‘‘ मार्क नाम के एक 22 साल के युवक को मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में लाया गया, जिस पर चोरी एवं डकैती का मुकदमा चलने वाला था। उस युवक की केस स्टडी से पता लगा कि वह 9 वर्ष की आयु से ही अनेक बार सामाजिक रूप से घिनौने कार्य करने के कारण जेल जा चुका था। इसके साथ-साथ वह कर्त्तव्यत्यागिता और अपने विध्वंसात्मक व्यवहार के कारण विद्यालय से भी निकाल दिया गया था। अनेक बार वह कई दिनों एवं सप्ताहों के लिये घर से भाग गया था। आज तक वह लम्बे समय तक टिककर कोई भी नौकरी नहीं कर पाया। उसके मित्र भी न के बराबर थें। इसलिये उसे अकेला ही कहा जा सकता है। शुरूआत में तो वह किसी भी व्यक्ति से अत्यन्त आकर्षक ढंग से मिलता था किन्तु तत्काल ही वह अपने आक्रामक एवं आत्म-उन्मुखी व्यवहार के कारण उनसे झगड़ लेता था।’’ पाठकों, उपर्युक्त केस उदाहरण में व्यक्तित्व विकार के प्राय: सभी लक्षण स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहे हैं। व्यक्तित्व विकृति के कारणव्यक्तित्व विकृति के मूल रूप से क्या-क्या कारण है, इस पर मनोवैज्ञानिकों एवं मनश्चिकित्सकों द्वारा ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया है। व्यक्तित्व विकृति के कारणों के संबंध में पर्याप्त अध्ययन एवं जानकारी न होने के प्रमुख कारण हैं- 1. इसका प्रथम कारण तो यह है कि व्यक्तित्व विकार की औपचारिक रूप से स्वतंत्र पहचान 1952 के पहले नहीं हो पायी थी। अत: इस क्षेत्र में आवश्यक शोध अध्ययन की कमी है। 2. दूसरा प्रमुख कारण यह है कि व्यक्तित्व विकृतियों का स्पष्ट रूप से निदान करने में लोगों को अभी भी अनेक प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और इस विकृति से ग्रसित लोग अभी भी उपचार हेतु मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में नहीं जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति के कारणों को लेकर अनेक कठिनाइयाँ मौजूद है, किन्तु इसके बावजूद अन्य मनोविकारों के समान ही व्यक्तित्व विकृति के भी तीन प्रमुख कारण बताये गये हैं।
जैविक कारक –मनोवैज्ञानिकों एवं मनोचिकित्सक ने व्यक्तित्व विकृति के कारणों में जैविक कारकों की भूमिका को प्रधान रूप से स्वीकार किया है। विभिन्न प्रयोगात्मक अध्ययनों के अनुसार बच्चों में विशेष तरह की शरीर संगठनात्मक प्रतिक्रिया प्रवृत्ति जैसे-अति संवेदनशीलता उच्च अथवा जीवन शक्ति आदि कारणों से एक विशेष प्रकार की व्यक्तित्व विकृति के उत्पन्न होने की संभावना रहती है। केन्टलर एवं गु्रयनवर्ग के अनुसार स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में जैविक या शारीरिक कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। लोरैन्गर एवं उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन के आधार पर ज्ञात किया कि सीमान्त रेखीय व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में शारीरिक कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते है। इसके साथ ही समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति की उत्पत्ति में भी जैविक कारकों को महत्त्वपूर्ण माना गया है। मनोवैज्ञानिक कारक-व्यक्तित्व विकृति में जैविक कारकों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक कारकों की भूमिका को भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। इन मनोवैज्ञानिक कारकों में प्रारंभिक सीखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस मत के अनुसार बच्चे बचपन में ही अपने आसपास के वातावरण से कुछ-कुछ अनुक्रियाओं को कुछ खास ढंग से करना सीख जाते हैं, जो आगे चलकर व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करती है। वैसे तो सभी प्रकार की व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में मनोवैज्ञानिक कारक महत्त्वपूर्ण है, किन्तु इनमें भी समाज-विरोधी व्यक्तित्व विकार के कारणों में इनकी विशिष्ट भूमिका को स्वीकार किया गया है। सामाजिक -सांस्कृतिक कारक-जैविक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों की तरह सामाजिक-सांस्कृतिक कारक किस प्रकार व्यक्तित्व विकृतियों को उत्पन्न करते हैं यह बात अभी अधिक स्पष्ट नहीं हो पायी है। इस संबंध में और अधिक शोध अध्ययन की आवश्यकता है। मनोवैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि आधुनिक आरामतलब जिन्दगी, तुरंत संतुष्टि, समस्याओं का तुरंत समाधान होना आदि के कारण व्यक्ति में उत्तरदायित्वहीनता एवं आत्मकेन्द्रितता जैसे लक्षण विकसित होने लगते है, जो धीरे-धीरे व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करती हैं। फिर भी इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहने के लिये पर्याप्त शोध की आवश्यकता है। व्यक्तित्व विकृति के निदान में सम्मिलित समस्यायें-व्यक्तित्व विकृतियों का ठीक-ठीक निदान करने में अनेक तरह की समस्यायें है।
इस प्रकार आप समझ गये होंगे कि व्यक्तित्व विकृति के निदान या पहचान में नैदानिक मनोवैज्ञानिकों एवं मनश्चिकित्सकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे निदान की विश्वसनीयता बुरी तरह प्रभावित होती है। इन समस्याओं को दूर करने के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्तित्व विकृति के निदान हेतु वस्तुनिष्ठ कसौटी तैयार की जाये। व्यक्तित्व विकृति के प्रकार
इन 10 तरह की व्यक्तित्व विकृतियों को समूह अ, समूह ब एवं समूह स में बाँटा गया है, समूह अ –समूह अ में तीन व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-
इन तीनों प्रकार के व्यक्तित्व विकृतियों के व्यवहार में प्राय: समानता देखने को मिलती है। इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृतियों में व्यक्ति का व्यवहार विचित्र, असामाजिक एवं अनियमित होता है। समूह ब –इस समूह में चार व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-
इन चारों विकृतियों को एक ही समूह में इसलिये रखा गया है, क्योंकि इन चारों ही व्यक्तित्व विकारों में रोगी का व्यवहार सांवेगिक, नाटकीय एवं सनकी जैसा होता है। समूह स –समूह स में तीन व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-
चिन्ता या डर लक्षण के आधार पर इन तीनों विकारों को एक श्रेणी में रखा गया है। यद्यपि मनोग्रस्तिबाध्यता विकृति में रोगी ज्यादा चिन्तित या भयग्रस्त नहीं रहता है। स्थिर व्यामोही प्रतिक्रियाओं के प्रमुख लक्षण क्या है?स्थिर-व्यामोह व्यक्तित्व विकार से पीड़ित लोग आमतौर पर उन स्थितियों में भी संदिग्ध हो जाते हैं, जहाँ अधिकतर लोग अपने संदेह को निराधार पाते हैं वे उनसे असंबंधित या उनके दूर से संबंधित घटनाओं की व्याख्या उन पर व्यक्तिगत हमलों के रूप में कर सकते हैं (वर्नस्टीन और यूडा, 2007) | यह उनके पारस्परिक सम्बन्धों को बहुत कठिन और ...
क्या सिज़ोफ्रेनिक लोगों को चिंता है?सिज़ोफ्रेनिया के रोगियों में अक्सर चिंता देखी जाती है । चिंता सिज़ोफ्रेनिया (विशेष रूप से एक तीव्र मानसिक प्रकरण के दौरान) के एक घटक के रूप में मौजूद हो सकती है, एक अंतर्निहित जैविक स्थिति, एक दवा के दुष्प्रभाव या सह-होने वाली चिंता विकार के लक्षण के परिणामस्वरूप।
सिजोफ्रेनिया का सकारात्मक लक्षण क्या है?सिजोफ्रेनिया का रोगी बिना किसी वजह के हर बात व व्यक्ति पर शक करता और अपनी दुनिया में खोया रहता है। उसे ऐसी आवाजें सुनाई देती हैं, जो वास्तव में होती ही नहीं हैं। इसके अलावा उसे हमेशा यही लगता है कि कोई उसके खिलाफ साजिश कर रहा है या उसे गलत तरीके से किसी मामले में फंसाया जा रहा है।
सिजोफ्रेनिया कितने दिन में ठीक होता है?सिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों को 8 से 10 महीने के इलाज में पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
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