स्थिर व्यामोही प्रतिक्रियाओं के प्रमुख लक्षण है - sthir vyaamohee pratikriyaon ke pramukh lakshan hai

व्यक्तित्व विकृति के विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व विकृति से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का व्यवहार इतना अधिक विचलित हो जाता है कि उसके बारे में किसी प्रकार का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और न ही दूसरे लोग उनके व्यवहार का कोई ठीक-ठीक अर्थ निकाल पाते हैं। परिणामस्वरूप ऐसा व्यवहार लोगों को मान्य नहीं होता है। पाठकों, आपकी जानकारी के लिये बता दें कि व्यक्तित्व विकृति में व्यक्ति सामान्यत: किसी प्रकार की चिन्ता या अवसाद से ग्रस्त नहीं रहता है। किसी विकृति को व्यक्तित्व विकृति की श्रेणी में रखने के लिये यह आवश्यक है कि विकृत शीलगुण का स्वरूप चिरकालिक हो। व्यक्तित्व विकार के सभी लक्षण प्राय: किशोरावस्था तक स्पष्ट रूप से दिखायी देने लगते हैं और वयस्कावस्था में भी बने रहते हैं, किन्तु मध्यावस्था अथवा प्रौढ़ावस्था के आते-आते लगभग समाप्त हो जाते है। कारसन एवं बुचर ने व्यक्तित्व विकृति को चारित्रिक विकृति का नाम दिया है।

व्यक्तित्व विकृति के लक्षण या व्यक्तित्व विकृति का नैदानिक स्वरूप-

जैसा कि आप जानते है मनोवैज्ञानिकों एवं मनश्चिकित्सकों द्वारा व्यक्तित्व विकृति के अनेक प्रकार बताये गये है और प्रत्येक प्रकार की अपनी कुछ अलग विशेषतायें हैं, किन्तु फिर भी कुछ विशेषतायें ऐसी है, जो सभी प्रकार की व्यक्तित्व विकृतियों में पायी जाती है। 1) विघटित व्यक्तिगत संबंध 2) चिरकालिक दु:खदायी व्यवहार 3) नकारात्मक नतीजा 4) एक ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना 5) व्यवहार परिवर्तन के विरोधी

  1. विघटित व्यक्तिगत संबंध- व्यक्तित्व विकृति की पहली सामान्य विशेषता है-विघटित व्यक्तिगत संबंध। व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों के व्यक्तिगत संबंध संतोषजनक नहीं होते हैं। इनके व्यक्तिगत संबंध इतने खराब रहते हैं कि दूसरे लोग प्राय: इनसे नाराज रहते हैं और साथ ही साथ इनसे घबराये भी रहते है।
  2. चिरकालिक दु:खदायी व्यवहार- व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों का व्यवहार दूसरों के लिये अत्यन्त कष्टदायी होता है। इस प्रकार के व्यवहार का स्वरूप चिरकालिक होता है।
  3. नकारात्मक नतीजा- व्यक्तित्व विकृति वाले लोगों को अपनी जिन्दगी की घटनाओं के प्राय: नकारात्मक परिणामों का ही सामना करना पड़ता है। जैसे- व्यसन संबंधी विकृतियाँ, विवाह-विच्छेद, विभिन्न प्रकार की आपराधिक गतिविधियाँ इत्यादि। प्रसिद्ध विद्वान् खानृजिनय तथा ट्रोस ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि व्यक्तित्व विकृति के सभी प्रकारों में व्यक्ति में नारकोटिक के प्रति एक प्रकार की मजबूत निर्भरता पायी जाती है।
  4. एक ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना- एक ही कुसमायोजी व्यवहार को दोहराना व्यक्तित्व विकृति की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके अन्तर्गत व्यक्तित्व विकार से ग्रस्त व्यक्ति अपने कुसमायोजी या दोषपूर्ण व्यवहार से कुछ सीखे बिना लगातार उसे दोहराता रहता है। इस प्रकार व्यक्तित्व विकृति में जो भी विशेष शीलगुण पैटर्न विकसित होता है, जैसे-द्वेष करना, शक करना आदि, वह प्रत्येक परिस्थिति में व्यक्ति के द्वारा दिखलाया जाता है।
  5. व्यवहार परिवर्तन के विरोधी- व्यक्तित्व विकृति वाले लोग व्यवहार परिवर्तन के नितान्त विरोधी होते हैं। ये समय परिस्थिति के अनुसार अपने व्यवहार में किसी भी प्रकार का विवेकपूर्ण परिवर्तन करना नहीं चाहते। इसके साथ ही दूसरे लोगों को भी इस बात का अवसर नहीं देते हैं कि वे उसके व्यवहार में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की माँग कर सके।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति की कुछ ऐसी सामान्य विशेषतायें हैं, जिनसे इनके स्वरूप को समझने में सहायता मिलती हैं। नीचे व्यक्तित्व विकृति का एक उदाहरण दिया जा रहा है जिससे इन विशेषताओं को और ज्यादा ढंग से समझा जा सकता है। ‘‘ मार्क नाम के एक 22 साल के युवक को मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में लाया गया, जिस पर चोरी एवं डकैती का मुकदमा चलने वाला था। उस युवक की केस स्टडी से पता लगा कि वह 9 वर्ष की आयु से ही अनेक बार सामाजिक रूप से घिनौने कार्य करने के कारण जेल जा चुका था। इसके साथ-साथ वह कर्त्तव्यत्यागिता और अपने विध्वंसात्मक व्यवहार के कारण विद्यालय से भी निकाल दिया गया था। अनेक बार वह कई दिनों एवं सप्ताहों के लिये घर से भाग गया था। आज तक वह लम्बे समय तक टिककर कोई भी नौकरी नहीं कर पाया। उसके मित्र भी न के बराबर थें। इसलिये उसे अकेला ही कहा जा सकता है। शुरूआत में तो वह किसी भी व्यक्ति से अत्यन्त आकर्षक ढंग से मिलता था किन्तु तत्काल ही वह अपने आक्रामक एवं आत्म-उन्मुखी व्यवहार के कारण उनसे झगड़ लेता था।’’ पाठकों, उपर्युक्त केस उदाहरण में व्यक्तित्व विकार के प्राय: सभी लक्षण स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहे हैं।

व्यक्तित्व विकृति के कारण

व्यक्तित्व विकृति के मूल रूप से क्या-क्या कारण है, इस पर मनोवैज्ञानिकों एवं मनश्चिकित्सकों द्वारा ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया है। व्यक्तित्व विकृति के कारणों के संबंध में पर्याप्त अध्ययन एवं जानकारी न होने के प्रमुख कारण हैं- 1. इसका प्रथम कारण तो यह है कि व्यक्तित्व विकार की औपचारिक रूप से स्वतंत्र पहचान 1952 के पहले नहीं हो पायी थी। अत: इस क्षेत्र में आवश्यक शोध अध्ययन की कमी है। 2. दूसरा प्रमुख कारण यह है कि व्यक्तित्व विकृतियों का स्पष्ट रूप से निदान करने में लोगों को अभी भी अनेक प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और इस विकृति से ग्रसित लोग अभी भी उपचार हेतु मनोवैज्ञानिक उपचारगृह में नहीं जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति के कारणों को लेकर अनेक कठिनाइयाँ मौजूद है, किन्तु इसके बावजूद अन्य मनोविकारों के समान ही व्यक्तित्व विकृति के भी तीन प्रमुख कारण बताये गये हैं।

  1. जैविक कारक
  2. मनोवैज्ञानिक कारक
  3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक

जैविक कारक –

मनोवैज्ञानिकों एवं मनोचिकित्सक ने व्यक्तित्व विकृति के कारणों में जैविक कारकों की भूमिका को प्रधान रूप से स्वीकार किया है। विभिन्न प्रयोगात्मक अध्ययनों के अनुसार बच्चों में विशेष तरह की शरीर संगठनात्मक प्रतिक्रिया प्रवृत्ति जैसे-अति संवेदनशीलता उच्च अथवा  जीवन शक्ति आदि कारणों से एक विशेष प्रकार की व्यक्तित्व विकृति के उत्पन्न होने की संभावना रहती है। केन्टलर एवं गु्रयनवर्ग के अनुसार स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में जैविक या शारीरिक कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। लोरैन्गर एवं उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन के आधार पर ज्ञात किया कि सीमान्त रेखीय व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में शारीरिक कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते है। इसके साथ ही समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति की उत्पत्ति में भी जैविक कारकों को महत्त्वपूर्ण माना गया है।

मनोवैज्ञानिक कारक-

व्यक्तित्व विकृति में जैविक कारकों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक कारकों की भूमिका को भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। इन मनोवैज्ञानिक कारकों में प्रारंभिक सीखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस मत के अनुसार बच्चे बचपन में ही अपने आसपास के वातावरण से कुछ-कुछ अनुक्रियाओं को कुछ खास ढंग से करना सीख जाते हैं, जो आगे चलकर व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करती है। वैसे तो सभी प्रकार की व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करने में मनोवैज्ञानिक कारक महत्त्वपूर्ण है, किन्तु इनमें भी समाज-विरोधी व्यक्तित्व विकार के कारणों में इनकी विशिष्ट भूमिका को स्वीकार किया गया है।

सामाजिक -सांस्कृतिक कारक-

जैविक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों की तरह सामाजिक-सांस्कृतिक कारक किस प्रकार व्यक्तित्व विकृतियों को उत्पन्न करते हैं यह बात अभी अधिक स्पष्ट नहीं हो पायी है। इस संबंध में और अधिक शोध अध्ययन की आवश्यकता है। मनोवैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि आधुनिक आरामतलब जिन्दगी, तुरंत संतुष्टि, समस्याओं का तुरंत समाधान होना आदि के कारण व्यक्ति में उत्तरदायित्वहीनता एवं आत्मकेन्द्रितता जैसे लक्षण विकसित होने लगते है, जो धीरे-धीरे व्यक्तित्व विकृति को उत्पन्न करती हैं। फिर भी इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहने के लिये पर्याप्त शोध की आवश्यकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व विकृति के कारणों में जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका महत्वपूर्ण है, किन्तु इस क्षेत्र में पर्याप्त शोध अध्ययन की आवश्यकता आज भी निरन्तर अनुभव की जा रही है।

व्यक्तित्व विकृति के निदान में सम्मिलित समस्यायें-

व्यक्तित्व विकृतियों का ठीक-ठीक निदान करने में अनेक तरह की समस्यायें है।

  1. व्यक्तित्व विकृतियों के निदान में पहली समस्या तो पर्याप्त शोध अध्ययनों का अभाव है, जिसके कारण नैदानिक मनोवैज्ञानिक एवं मनश्चिकित्सक इनके निदान हेतु वस्तुनिष्ठ कसौटी नहीं बना पाये हैं। इसके अतिरिक्त विद्वानों ने व्यक्तित्व विकृति को स्पष्ट रूप से परिभाषित भी नहीं किया है, जिसके कारण इनके निदान में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  2. विडगर तथा फ्रान्सेस का मत है कि व्यक्तित्व विकारों की ठीक-ठीक पहचान करना इसलिये भी कठिन हो जाता है, क्योंकि व्यक्तित्व विकृति के विभिन्न प्रकार परस्पर अनन्य नहीं है। कहने का आशय यह है कि एक ही व्यक्ति में व्यक्तित्व विकार के एक से अधिक लक्षण देखने को मिलते है। इस कारण यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कि व्यक्तित्व विकारों में से कौन सा प्रकार है।
  3. फ्रान्सेस के शब्दों में ‘‘ व्यक्तित्व विकृतियों में पाये जाने वाले व्यक्तित्व शीलगुण का स्वरूप विमीय होने के कारण वे सामान्य अभिव्यक्ति से लेकर रोगात्मक अभिव्यक्ति दोनों में पाये जाते हैं।’’ कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसे शीलगुण कुछ मात्रा में सामान्य व्यक्तियों में भी देखने को मिलते हैं, जिसके कारण वास्तविक व्यक्तित्व विकृति का निदान करना अत्यन्त कठिन हो जाता है।
  4. व्यक्तित्व विकृतियों के निदान में एक और कठिनाई यह है कि इन विकृतियों को वस्तुनिष्ठ व्यवहारों के आधार पर परिभाषित नहीं किया जाता है बल्कि अनुमानित शीलगुणों के आधार पर परिभाषित किया जाता है। इस कारण भी इनके निदान में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

इस प्रकार आप समझ गये होंगे कि व्यक्तित्व विकृति के निदान या पहचान में नैदानिक मनोवैज्ञानिकों एवं मनश्चिकित्सकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे निदान की विश्वसनीयता बुरी तरह प्रभावित होती है। इन समस्याओं को दूर करने के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्तित्व विकृति के निदान हेतु वस्तुनिष्ठ कसौटी तैयार की जाये।

व्यक्तित्व विकृति के प्रकार

  1. स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति (Pararoid personality disorder)
  2. स्किजोआयड व्यक्तित्व विकृति (Schizaid personality disorder)
  3. स्किजोटाइपल व्यक्तित्व विकृति (Schizotypal personality disorder)
  4. हिस्ट्रओनिक व्यक्तित्व विकृति (Histrionic Personality disorder)
  5. आत्ममोही व्यक्तित्व विकृति (Narcissistic personality disorder)
  6. समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति (Antisocial personality disorder)
  7. सीमान्तरेखीय व्यक्तित्व विकृति (Boarderline personality disorder)
  8. परिवर्जित व्यक्तित्व विकृति (Avoidant personality disorder)
  9. अवलम्बित व्यक्तित्व विकृति (Dependent personality disorder)
  10. मनोग्रस्ति-बाध्यता व्यक्तित्व विकृति (Obsessive-compulsive personality disorder)

इन 10 तरह की व्यक्तित्व विकृतियों को समूह अ, समूह ब एवं समूह स में बाँटा गया है,

समूह अ –

समूह अ में तीन व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-

  1. स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति
  2. स्किजोआयड व्यक्तित्व विकृति
  3. स्किजोटाइपल व्यक्तित्व विकृति

इन तीनों प्रकार के व्यक्तित्व विकृतियों के व्यवहार में प्राय: समानता देखने को मिलती है। इस प्रकार की व्यक्तित्व विकृतियों में व्यक्ति का व्यवहार विचित्र, असामाजिक एवं अनियमित होता है।

समूह ब –

इस समूह में चार व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-

  1. हिस्ट्रीओनिक व्यक्तित्व विकृति
  2. आत्ममोही व्यक्तित्व विकृति
  3. समाजविरोधी व्यक्तित्व विकृति
  4. एवं सीमान्तरेखीय व्यक्तित्व विकृति

इन चारों विकृतियों को एक ही समूह में इसलिये रखा गया है, क्योंकि इन चारों ही व्यक्तित्व विकारों में रोगी का व्यवहार सांवेगिक, नाटकीय एवं सनकी जैसा होता है।

समूह स – 

समूह स में तीन व्यक्तित्व विकृतियों को रखा गया है-

  1. परिवर्जित व्यक्तित्व विकृति
  2. अवलम्बित व्यक्तित्व विकृति
  3. मनोग्रस्ति बाध्यता व्यक्तित्व विकृति

चिन्ता या डर लक्षण के आधार पर इन तीनों विकारों को एक श्रेणी में रखा गया है। यद्यपि मनोग्रस्तिबाध्यता विकृति में रोगी ज्यादा चिन्तित या भयग्रस्त नहीं रहता है।

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