हिंदी साहित्य में आधुनिक संवेदना का सूत्रपात ‘तारसप्तक’ के प्रकाशन से माना जाता है। सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के सम्पादन में 4 सप्तक प्रकाशित हुए। प्रथम सप्तक- ‘तारसप्तक’ का प्रकाशन 1943 ई. में हुआ। जिसमें 7 कवियों की कविताएँ संकलित हैं। महत्वपूर्ण बात यह है की ‘तारसप्तक’ की परिकल्पना अज्ञेय की नहीं थी अपितु ‘प्रभाकर माचवे और नेमिचंद्र जैन की थी। ‘तारसप्तक’ के प्रकाशन से ही ‘प्रयोगवाद’ का प्रारंभ माना जाता है। इसीलिए ‘प्रयोगवाद’ के प्रवर्तन का श्रेय ‘अज्ञेय’ को दिया जाता है। लेकिन ‘प्रयोगवाद’ का जन्म कुछ आलोचक 1947 ‘प्रतीक’ के प्रकाशन से मानना उचित समझते हैं। ‘प्रयोगवाद’ शब्द का प्रथम प्रयोग नंददुलारे वाजपेयी नें ‘प्रयोगवादी रचनाएँ’ नामक अपने निबंध में किया। इसी निबंध में उन्होंने ‘प्रयोगवाद’ को ‘बैठे ठाले का धंधा’ कहा है।
सप्तक के कवि और प्रकाशन वर्ष
सप्तक का प्रकाशन वर्ष
चारों सप्तक का प्रकाशन वर्ष निम्नलिखित है-
1.तारसप्तक1943 ई.2.दूसरा सप्तक1951 ई.3.तीसरा सप्तक1959 ई.4.चौथा सप्तक1979 ई.तारसप्तक का प्रकाशन वर्षचारों सप्तक के कवियों (saptak ke kaviyon) की सूची क्रमवार नीचे दी जा रही है, साथ में याद करने का ट्रिक भी दिया जा रहा।
(A) ‘तारसप्तक’ के कवि
तारसप्तक के संपादक अज्ञेय हैं। इसका प्रकाशन वर्ष 1943 ई. है। ध्यान रहे कि इसका नाम ‘तारसप्तक’ है, कई लोग इसे ‘पहला सप्तक’ कह देते हैं जो की गलत है। तारसप्तक के कवि निम्नलिखित हैं-
- गजानन माधव मुक्तिबोध
- नेमिचंद्र जैन
- भारत भूषण अग्रवाल
- प्रभाकर माचवे
- गिरिजाकुमार माथुर
- रामविलास शर्मा
- अज्ञेय
‘तारसप्तक’ के कवियों को याद करने का सूत्र–
trick- प्रभा रागि मुनेअ
tarsaptak ke kavi
(B) ‘दूसरा सप्तक’ के कवि
दूसरा तार सप्तक के संपादक अज्ञेय हैं। इसका प्रकाशन वर्ष 1951 ई. है। ध्यान रहे कि इसका नाम ‘दूसरा सप्तक’ है, कई लोग इसे ‘दूसरा तार सप्तक’ कह देते हैं जो की गलत है। दूसरा तार सप्तक के कवि निम्नलिखित हैं-
- भवानी प्रसाद मिश्र
- शकुन्त माथुर
- हरिनारायण व्यास
- शमशेर बहादुर सिंह
- नरेश मेहता
- रघुवीर सहाय
- धर्मवीर भारती
‘दूसरा सप्तक’ के कवियों को याद करने का सूत्र–
trick- हरन धश भश
dusre tarsaptak ke kavi
(C) ‘तीसरा सप्तक’ के कवि
तीसरा सप्तक के संपादक अज्ञेय हैं। इसका प्रकाशन वर्ष 1959 ई. है। ध्यान रहे कि इसका नाम ‘तीसरा सप्तक’ है, कई लोग इसे ‘तीसरा तार सप्तक’ कह देते हैं जो की गलत है। तीसरा सप्तक के कवि निम्नलिखित हैं-
- कुँवर नारायण
- कीर्ति चौधरी
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
- मदन वात्स्यायन
- प्रयाग नारायण त्रिपाठी
- केदार नाथ सिंह
- विजयदेव नारायण साही
‘तीसरा सप्तक’ के कवियों को याद करने का सूत्र–
trick- कीकुँके सम विप्र
teesra saptak ke kavi
(D) ‘चौथा सप्तक’ के कवि
चौथा सप्तक के संपादक अज्ञेय हैं। इसका प्रकाशन वर्ष 1979 ई. है। ध्यान रहे कि इसका नाम ‘चौथा सप्तक’ है, कई लोग इसे ‘चौथा तार सप्तक’ कह देते हैं जो की गलत है। चौथा सप्तक के कवि निम्नलिखित हैं-
इसे सुनेंरोकें. तीव्र मध्यम में स्वर के नीचे रेखा लगती है। 2. मध्य सप्तक के लिए स्वरों में कोई चिन्ह नहीं लगता है।
मंद सप्तक के स्वर कौन से हैं?
इसे सुनेंरोकेंये सात स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
1 सप्तक में तीव्र स्वर कितने हैं?
इसे सुनेंरोकेंसंगीत में तीव्र स्वर कितने होते हैं? संगीत में तीव्र स्वर में म तीव्र विकृत होता है। इस प्रकार एक सप्तक में ७ शुद्ध, ४ कोमल और तीव्र स्वर होता है। कुल मिलाकर बारह स्वर होते हैं।
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थाट किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंथाट की परिभाषा हम इस प्रकार दे सकते हैं. 12 स्वरों में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं जिससे रागो की उत्त्पत्ति होती हैं. हम कह सकते है। हिंदुस्तानी भारतीय संगीत में कुल 10 थाट माने गये हैं.
मध्य सप्तक से नीचे वाले स्तर सप्तक को क्या कहते हैं?
इसे सुनेंरोकेंसात स्वरों को ‘सप्तक’ कहा गया है, लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और नीचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गये। साधारण ध्वनि को ‘मध्य’, मध्य से ऊपर की ध्वनि को ‘तार’ और मध्य से नीचे की ध्वनि को ‘मन्द्र’ सप्तक कहा जाता है।
मध्य सप्तक से नीचे वाले स्तर सप्तक को क्या कहते हैं *?
इसे सुनेंरोकेंमध्य सप्तक के पहले का सप्तक मंद्र और मध्य सप्तक के बाद आने वाला सप्तक तार सप्तक कहलाता है।
तारसप्तक का प्रकाशन वर्ष क्या है?
इसे सुनेंरोकेंतार सप्तक का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सन् 1943 ई० में किया गया है।
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मंद्र सप्तक में कौन सा चिन्ह का प्रयोग किया जाता है?
इसे सुनेंरोकेंपं. शांर्ङ्गदेव ने मन्द्र व तार सप्तक को दर्शाने के लिए क्रमशः स्वर के ऊपर बिन्दु (गं) व खड़ी रेखा (ग) का प्रयोग किया है।
मंदिर सप्तक के स्वरों की क्या पहचान है?
इसे सुनेंरोकेंउदाहरणार्थ, अगर मध्य सप्तक के प की आन्दोलन संख्या 360 है तो मन्द्र सप्तक के प की 360 की आधी 180 होगी, इसी प्रकार यदि मध्य सप्तक के म की आन्दोलन संख्या 320 है तो मन्द्र सप्तक के म की आन्दोलन संख्या 320 की आधी 160 होगी। मन्द्र सप्तक में भी 7 शुद्ध और 5 विकृत कुल 12 स्वर होते हैं।
सप्तक में स्वरों को पहचानने का तरीका क्या है?
- मध्य सप्तक: सा रे ग म प ध नि कोमल स्वर: रे ग ध नि तीव्र स्वर: म’ या ‘म
- मन्द्र सप्तक: .नि .ध .प .म .ग .रे .सा कोमल स्वर: .रे .ग .ध .नि तीव्र स्वर: .म’
- तार सप्तक: सां रें गं मं पं धं निं
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ग तारसप्तक के सम्पादक कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंवात्स्यायन ‘ अज्ञेय ‘ जी है । प्रयोगवाद का आरंभ इसी काव्य संग्रह ( तार सप्तक ) से किया । तार सप्तक का संपादन 1943 में हुआ था । अज्ञेय ‘ आधुनिक काल ‘ के रचनाकार थे ।
तीसरा सप्तक का प्रकाशन कब हुआ था?
इसे सुनेंरोकेंतीसरा सप्तक अज्ञेय द्वारा संपादित नई कविता के सात कवियों की कविताओं का संग्रह है। इसमें कुँवर नारायण, कीर्ति चौधरी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, मदन वात्स्यायन, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह और विजयदेवनरायण साही की रचनाएँ संकलित हैं। इसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन से 1959 ई० में हुआ।