ट्रेन के इंजन में कौन सी मोटर होती है? - tren ke injan mein kaun see motar hotee hai?

विभेदक यौगिक मोटर: इसमें प्रारंभिक बलाघूर्ण कम होता है और इसकी गति स्थिर होती है, लेकिन शून्य भार के संचालन पर यह खतरनाक उच्च गति प्राप्त कर लेता है, ऐसी परिस्थितियों में इसका उपयोग बहुत ही कम किया जाता है।

भारतीय रेलवे ने मै. बॉम्बार्डियर ट्रांसपोर्टेशन, स्विटज़रलैंड (जिसे पहले ओबीबी कहा जाता था) से उच्च अश्वशक्ति वाले अधुनातन माइक्रोप्रोसेसर नियंत्रित तीन फेज़ ड्राइव वाले 30 (10 पैसेंजर और 20 मालगाड़ी के) विद्युत इंजन प्राप्त करने के साथ-साथ उन इंजनों को अपने देश में चित्तरंजन रेल इंजन कारखाने में निर्मित करने के लिए तकनीक भी हस्तांरित की है। यह करार जुलाई, 1993 में हुआ था। ये इंजन अक्तू.-95 से अक्तू.-98 के बीच प्राप्त हुए हैं और उन्हें सेवा में लगाया जा चुका है।

(ग) भारतीय रेलवे द्वारा देश में निर्माण कार्य:
मै. बॉम्बार्डियर ट्रांसपोर्टेशन, स्विटज़रलैंड से तकनीक के हस्तांरण के करार के माध्यम से 5 प्रमुख विद्युत उपस्कर अर्थात् पावर कन्वर्टर, आग्जिलरी कन्वर्टर, कंट्रोल इलेक्ट्रानिक्स, ट्रांसफार्मर और कर्षण मोटर की तकनीक भारतीय उद्योग को दी गई है और तीन अन्य मदें यथा बोगी, शेल और कर्षण मोटर की तकनीक चित्तरंजन रेल इंजन कारखाने को दी गई है, जिससे देश में ही  पहला तीन फेज़ वाला विद्युत इंजन 14 नवंबर, 1998 को निर्मित हुआ। इन इंजनों की लागत मूल आयात लागत 22 करोड़ रु. (सीमा शुल्क सहित) से देळ में किए जा रहे अभिनव प्रयासों से धीरे-धीरे कम हो रही है। चित्तरंजन रेल इंजन कारखाने ने प्रमुख मदों पर देशी तकनीक से अब तक 40 रेल इंजनों का निर्माण किया है और प्रति इंजन लागत में 12.5 करोड़ रु. कमी की है।

(घ) प्रमुख आंकड़े और सेक्शन, जिन पर ये इंजन काम कर रहे हैं:

ट्रेन के इंजन में कौन सी मोटर होती है? - tren ke injan mein kaun see motar hotee hai?

          ये इंजन राजधानी और शताब्दी सहित निम्नलिखित प्रतिष्ठित गाड़ियों में लगाए जाते हैं

नई दिल्ली-हवड़ा राजधानी एक्स.

नई दिल्ली-भुवनेश्वर राजधानी एक्स.

नई दिल्ली-मुंबई राजधानी एक्स.

ह.निजामुद्दीन-चेन्नई राजधानी एक्स.

नई दिल्ली-इलाहाबाद प्रयागराज एक्स.

नई दिल्ली-लखनऊ शताब्दी एक्स.

नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी एक्स.

नई दिल्ली-चंडीगढ़ शताब्दी एक्स.

4700 टन वाली मालगाड़ियां पूर्व के कोयला क्षेत्रों से उत्तर भारत के विभिन्न गंतव्यों तक चलती हैं।


ट्रेन के इंजन में कौन सी मोटर होती है? - tren ke injan mein kaun see motar hotee hai?

  • रिजेनरेटिव ब्रेकिंग से क्षमता बढ़ी है और ऊर्जा का संरक्षण हुआ है।
  • इलेक्ट्रानिक कंट्रोल और 3 फेज वाली एसी कर्षण मोटरों के उपयोग से कम देखभाल करनी पड़ती है।
  • यूनिटी पी.एफ. (वर्तमान पी.एफ.0.85 है)  के कारण बिजली का मांग में कमी हुई है।
  • हायर एडहेशन से भारी गाड़ियां खींचने की क्षमता बढ़ी है।
  • लो अनस्प्रंग मासेस के कारण पटरियों का लो-वियर और रेलपथ ज्यामितीय ठीक हुआ है।
  • Rविशेष हारमोनिक फिल्टर सर्किट के कारण हारमोनिक्स में कमी आई है।
  • मशीन रूम के भीत तेल के धुएं और तेल के बिखराव के बिना कम्प्रेशरों का अंडरस्लंग अरेंजमेंट।
  • अनुरक्षण की सुविधा के लिए माइक्रो प्रोसेसर आधारित फाल्ट डायगनॉस सिस्टम।
  • आपरेशन और ट्रबल शूटिंग दोनों के लिए क्रू अनुकूल।
  • वैगन/कोचों पर ब्रेक ब्लॉक की कम खपत।
  • पहियों की बढ़ी लाइफ के कारण इंजन के व्हील डिस्क की खपत में कमी।
  • व्यस्त मार्गों पर उच्च चाल और बैलेंसिंग स्पीड के कारण अतिरिक्त लाइन क्षमता की उपलब्धता।
  • बेहतर ट्रांजिट टाइम और हायर प्रोडक्टिविटी के कारण प्रतिदिन इंजन कि.मी. में सुधार।
  • कम होती टर्न अराउंड अवधि के कारण चल स्टॉक की मांग में कमी।

मौजूदा समय में ट्रेन के इंजन में 16 सिलेंडर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें से एक सिलेंडर की क्षमता 10,941 सीसी की होती है.

ट्रेन में लोकोमोटिव बहुत भारी मशीनरी होती है. इसका काम बहुत बड़ा होता है क्योंकि इसे ट्रेन की कई बोगी खींचनी होती है. कुछ लोग लोकोमोटिव को इंजन कहते हैं, लेकिन इंजन इसका एक हिस्सा है. सामान्य तौर पर एक डीजल लोकोमोटिव में 16 सिलेंडर होते हैं. एक सिलेंडर में 150 लीटर के आसपास डीजल इस्तेमाल होता है. इसकी तुलना कार से करें तो कार के इंजन में सामान्यतः 4 सिलेंडर होते हैं और एक सिलेंडर में 1 या 2 लीटर तेल इस्तेमाल होता है. ट्रेन में कुछ सिलेंडर बहुत बड़े होते हैं. ट्रेन के डीजल फ्यूल टैंक में 50 हजार लीटर तक तेल आ सकता है.

भारतीय रेल में मुख्य यांत्रिक इंजीनियर अनिमेष कुमार सिन्हा के मुताबिक, मौजूदा समय में ट्रेन के इंजन में 16 सिलेंडर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें से एक सिलेंडर की क्षमता 10,941 सीसी की होती है. अगर 16 का गुणा 10,941 से करें तो ट्रेन के इंजन की कुल क्षमता करीब 1.75 लाख सीसी होती है. यानी अगर होंडा सिटी के इंजन को आधार बनाया जाए तो करीब 116 कारों के बराबर अकेले एक इंजन की ताकत होती है. होंडा सिटी का इंजन 1498 CC का होता है.

हालांकि, अनिमेष कुमार सिन्हा ने कोरा पर जो जानकारी दी है, उसमें कहा गया है कि ट्रेन के बड़े इंजन की क्षमता को CC नहीं बल्कि लीटर में व्यक्त करते हैं. यहां 1 लीटर का मतलब है 1000CC. इसलिए, डीजल लोको के इंजन के एक सिलेंडर की क्षमता 10,941 CC यानी कि 10.94 लीटर यानी 16 सिलेंडर के पूरे इंजन की क्षमता 175 लीटर होगी. साथ ही अलग-अलग इंजन की क्षमता भी अलग-अलग हो सकती है.

इंजन में सुपरचार्जर भी होते हैं जिनका वजन कई टन तक हो सकता है. इन सबका वजन जोड़ें तो यह 20 टन के आसपास हो सकता है और इसकी कीमत 10 करोड़ रुपये तक हो सकती है. ट्रेन का इंजन खुद को खींचने के साथ पूरी ट्रेन को खींचने का काम करता है. इंजन कई तरह के होते हैं लेकिन उनका ऑपरेशन डीजल या बिजली से ही होता है. यहां जानना जरूरी है कि लोकोमोटिव और इंजन दो अलग-अलग मशीनें हैं.

इंजन- लोकोमोटिव को लोग इंजन भी कहते हैं, हालांकि इंजन लोकोमोटिव (डीजल) का एक हिस्सा भर है. इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में कोई इंजन नहीं होता. डीजल लोकोमोटिव में इंजन सबसे अहम हिस्सा है जो पहियों को पावर सप्लाई करता है. इंजन को ‘प्राइम मूवर’ भी कहते हैं क्योंकि यह पूरी ट्रेन को खींचने का काम करता है. ये इंजन बहुत बड़े होते हैं, जिनमें 16 सिलेंडर्स, 32 वाल्व और 1 लाख से लेकर डेढ़ लाख सीसी तक का डिसप्लेसमेंट होता है.

बोगी- आम भाषा में लोग रेलवे कोच को बोगी बोलते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है. लोग जिस डिब्बे में सफर करते हैं उसे कोच, कंपार्टमेंट, कैरिज या कार बोलते हैं. कोच या लोकोमोटिव के एक यूनिट को बोगी कहा जाता है जिसमें व्हिल और ससपेंशन आदि आते हैं. एक कोच में दो बोगी होती है और एक लोकोमोटिव में दो या तीन बोगी हो सकती है. एक बोगी में 4 से 6 पहिये होते हैं.

ड्राइविंग कैब- लोकोमोटिव में कॉकपिट होता है जहां लोको पायलट (ड्राइवर) और असिस्टेंट बैठते हैं. ट्रेन का पूरा कंट्रोल यही से होता है. जिस सिस्टम से पूरी ट्रेन को कंट्रोल किया जाता है उसे कंट्रोल स्टैंड कहते हैं. पहियों को इलेक्ट्रिक मोटर्स चलाते हैं, इसी से ट्रेन भी चलती है. ये मोटर लोकोमोटिव के एक्सेल से जुड़े होते हैं. एक एक्सेल से एक मोटर जुड़ा होता है. डीजल इंजन या इलेक्ट्रिक लोको में ट्रांसफॉर्मर से पहिये तक बिजली पहुंचाई जाती है. इससे लोकोमोटिव आगे की तरफ बढ़ता है.

ट्रेन में कौन सा मोटर होता है?

वह विद्युत मोटर जो किसी गाड़ी (जैसे रेलगाड़ी या विद्युत से सड़क पर चलने वाली कोई गाड़ी) को चलाने (propulsion) के लिए उपयोग की जाती है, उसे कर्षण मोटर (traction motor) कहते हैं।

रेलवे इंजन में कौन सी मोटर का उपयोग किया जाता है?

डीसी मोटर का उपयोग ट्रेनों में उनके उच्च टॉर्क और अच्छे गति नियंत्रण के कारण किया जाता है। एसी मोटर्स की तुलना में, डीसी मोटर्स उद्योग अनुप्रयोगों को मजबूत प्रारंभिक टोक़ और निर्बाध लेकिन सटीक प्रदर्शन के लिए नियंत्रणीय गति के अच्छे संतुलन के साथ प्रदान कर सकते हैं।

ट्रेन के इंजन में कितने इलेक्ट्रिक मोटर होते हैं?

ट्रेन के इंजन में गियर की संख्या कितनी होती है एक लोकोमोटिव में सामान्यतः छः एक्सल होते हैं, सभी पर एक-एक ट्रैक्शन मोटर लगाई जाती है। छः ट्रैक्शन मोटरों के छः पिनियन गियर और फिर छः बुल गियर, इस तरह ट्रैक्शन संबंधित कार्य के लिए एक लोकोमोटिव में बारह गियर होते हैं, कहा जा सकता है

ट्रेन कौन से करंट से चलती है?

ट्रेन को चलाने के लिए डीसी वोल्टेज करंट का ही उपयोग क्यों किया जाता है ? सिर्फ डीसी नहीं , इस आधुनिक युग में एसी वोल्टेज का भी उपयोग किया जाता है । परंतु एसी वोल्टेज की अनुपलब्धता एवं डीसी वोल्टेज के उपयोग कर डीसी मोटर से होने वाले विशेष लाभ के कारण ट्रेन को चलाने के लिए डीसी का उपयोग किया जाता है ।