प्रश्न 1. जग-जीवन का भार लिए फिरन से कवि का क्या आशय है? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है? Show प्रश्न 2. ‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय है? प्रश्न 3. आशय स्पष्ट कीजिए ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।’ प्रश्न 4. ‘साँसो के तार’ से कवि का क्या तात्पर्य है? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा। प्रश्न 5. शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ। इस कथन से कवि का क्या आशय है? प्रश्न 6. आत्म परिचय कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। (ii) निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए प्रश्न 1. ‘निज उर के उदगार’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
प्रश्न 2. कवि को संसार क्यों प्रिय नहीं है? प्रश्न 3 . संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है? प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए: ‘‘मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।’’ (iii) मैं जग-जीवन.......................... फिरता हूँ। प्रश्न 2 . कवि ने स्नेह को सुरा क्यों कहा है? संसार के प्रति उसके नकारात्मक दृष्टिकोण का क्या कारण है? प्रश्न 3. संसार किसको महत्त्व देता है? कवि को वह महत्त्व क्यो नहीं दिया जाता? प्रश्न 4. ‘उदगार’ और ‘उपहार’ कवि को क्यों प्रिय हैं? प्रश्न 5. आशय स्पष्ट कीजिए प्रश्न 6. संसार के संबंध में कवि क्या कहता है? प्रश्न 7 . कवि के वैभव संबंधी विचार क्या हैं ? प्रश्न 8 . ‘स्नेह’ का महत्त्व दर्शाते हुए कवि क्या कहना चाहता है? प्रश्न 9 . कवि के जीवन के विषय में बताइए। प्रश्न 10. कवि स्वय को किस रूप में मानने के लिए आग्रह करता है? प्रश्न 11. ‘जग जीवन का भार और फिर भी जीवन मे प्यार’ यहाँ कवि ने जीवन के
संदर्भ में यह विरोधी बात क्यों कही है? प्रश्न 12. संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता है ? बच्चन जी को संसार क्यों प्रिय नहीं है 13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं?उत्तर: कवि को यह संसार इसलिए प्रिय नहीं है क्योंकि यह अपूर्ण और अधूरा है जबकि कवि सपनों की दुनिया में खोया रहता है जहाँ कोई अभाव नहीं है। प्रश्न 3 . संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है? उत्तर: संसार की विषमताओं के बीच कवि मस्ती भरा जीवन जी रहा है और सुख-दुःख दोनों में प्रसन्न रह रहा है।
13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं ?`?का ध्यान नहीं करते 5. संसार कवि के .
संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रही है?भव-सागर — संसार रूपी सागर । मौजो - लहरों । K मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ; जग भव-सागर तरने को नाव बनाए मैं भव- मौजों पर मस्त बहा करता हूँ ! प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'आत्मपरिचय' से अवतरित है।
12 बच्चन जी को संसार क्यों प्रिय नहीं है ?`?बच्चन जी को संसार इसलिए नहीं प्रिय है, क्योंकि यह संसार आधा अधूरा है, जबकि अपने कल्पना के संसार को श्रेष्ठ मानता है और उसी को श्रेष्ठ मानता है। 'आत्मपरिचय' कविता में कवि हरिवंशराय बच्चन संसार के सांसारिक बंधनों को नहीं मानते हैं। वह इस संसार की शुष्कता और नीरसता को पसंद नहीं करते। वह इस संसार को आधा-अधूरा मानते हैं।
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