12 बच्चन जी को संसार क्यों प्रिय नहीं है 13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं? - 12 bachchan jee ko sansaar kyon priy nahin hai 13 sansaar kee vishamataon ke beech kavi kaise jee rahe hain?

प्रश्न 1. जग-जीवन का भार लिए फिरन से कवि का क्या आशय है? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है?
उत्तर:
‘जग-जीवन का भार’ लिए फिरता है से तात्पर्य है सांसारिक समस्याओें से निरन्तर जूझता रहता हूँ फिर भी मेरा जीवन स्नेह  (प्रमे) से परिपूर्ण है| समस्याएं झेलतेे हुए भी  मै प्यार से विमुख नहीं हुआ हूँ।

प्रश्न 2. ‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
स्नेह-सुरा का तात्पर्य है प्रेम की मदिरा जो मुझे उन्मत्त बनाए रखती है और मैं प्रेम की मस्ती में झूमता रहता हूँ।

प्रश्न 3. आशय स्पष्ट कीजिए ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।’  
उत्तर:
इस पंक्ति का आशय है कि संसार में उन्हीं लोगों की पूछ है, जिन्हें संसार के गीत गाने में आनन्द आता है। दूसरी ओर मैं मनमौजी हूँ, संसार के इशारों पर नहीं चलता, यही मेरी मस्ती का कारण है।

प्रश्न 4. ‘साँसो के तार’ से कवि का क्या तात्पर्य है? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा।
उत्तर:
साँसो के तार का तात्पर्य है, हृदयरूपी वीणा के तार जिन्हे कवि की प्रेयसी ने झंकृत कर दिया होगा। 

प्रश्न 5. शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ। इस कथन से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कोमल, शीतल वाणी में प्रेम की तीव्र लालसा, ऊर्जा एवं ऊष्मा है, लेकिन मन संसार के प्रति प्रबल विद्रोह से युक्त है। 

प्रश्न 6. आत्म परिचय कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।  
उत्तर.
स्वार्थी संसार में कवि दुनियादारी सेअलग आकंठ प्रेम में डूबा एक नवीन स्वप्निल संसार की रचना में रत है। 

(ii) निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुःख दोनों में मग्न रहा करता हूँ
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ!

प्रश्न 1. ‘निज उर के उदगार’ से कवि का क्या तात्पर्य है?  
उत्तर:
‘निज उर के उदगार’ से कवि का तात्पर्य अपने हृदय के भावों से है। 

प्रश्न 2. कवि को संसार क्यों प्रिय नहीं है?
उत्तर:
कवि को यह संसार इसलिए प्रिय नहीं है क्योंकि यह अपूर्ण और अधूरा है जबकि कवि सपनों की दुनिया में खोया रहता है जहाँ कोई अभाव नहीं है। 

प्रश्न 3 . संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है?
उत्तर:
संसार की विषमताओं के बीच कवि मस्ती भरा जीवन जी रहा है और सुख-दुःख दोनों में प्रसन्न रह रहा है।

प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए: ‘‘मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।’’  
उत्तर:
इस पंक्ति का आशय यह है कि संसार के अन्य लोग तो संसार-सागर से पार जाने को नाव रूपी साधन खोजते हैं, किन्तु मै जीवन सागर में उठने वाली विपत्ति रूपी लहरो पर मस्ती के साथ विचरण करता रहता हूँ अर्थात ये विपतियाँ मुझे विचलित नहीं कर पातीं। 

(iii) मैं जग-जीवन.......................... फिरता हूँ।
प्रश्न 1. ये पंक्तियाँ किस कविता से ली र्गइ है और इसके कवि कौन हैं?
उत्तर:
कवि- हरिवंशराय बच्चन।
कविता- आत्मपरिचय।

प्रश्न 2 . कवि ने स्नेह को सुरा क्यों कहा है? संसार के प्रति उसके नकारात्मक दृष्टिकोण का क्या कारण है? 
अथवा 
कवि स्नेह-सुरा का पान कैसे करता है ?
उत्तर:
जिस प्रकार एक मनुष्य सुरा ;शराबद्ध के नशे में मस्त होकर पागल हो जाता है उसी प्रकार प्रेम का नशा होता है। मनुष्य जब प्रेम के जाल में फँस जाता है तो उसे कुछ भी सुहावना नहीं लगता, उसी प्रकार कवि प्रेम की मादकता, उसके पागलपन को हर पल महसूस करता रहता है। मानो किसी ने उसके जीवन को प्रेम स्पर्श देकर, मन को झंकृत कर दिया हो, परन्तु संसार के प्रति उसका नकारात्मक दृष्टिकोण होता है, क्योंकि संसार से उसे आदर-सम्मान की उपेक्षा महसूस होती है तथा मान सम्मान गिरने का भय सताता है। अतः वह छिप-छिप कर प्रेम करता है। 

प्रश्न 3. संसार किसको महत्त्व देता है? कवि को वह महत्त्व क्यो नहीं दिया जाता?
उत्तर:
संसार स्वार्थी है, यह केवल उसको पूछता है, जो उसका बखान करते हैं और उसको अनुकूल कार्य करते हैं। अपने प्रतिकूल कार्य करने वालो को संसार महत्त्व नही देता। कवि अपनी मस्ती में डूबा रहता है, अपने ही मन की भावनाओ और संवेदनाओं को सुनाता रहता है इसलिए संसार कवि को महत्त्व नहीं देता। 

प्रश्न 4. ‘उदगार’ और ‘उपहार’ कवि को क्यों प्रिय हैं? 
अथवा 
‘निज उर के उदगार व उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य  है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि को अपने हृदय के भाव और विचार तथा उपहार प्रिय हैं, क्योंकि कवि नेअपने हृदय कोअनेक भाव उपहार स्वरूप संजो रखे हैं। कवि अपने स्वप्निल संसार में ही डूबा रहना चाहता है। 

प्रश्न 5. आशय स्पष्ट कीजिए 
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता 
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
उत्तर:
आशय- कवि केअनुसार संसार अपूर्ण है कवि को संसार की अपूर्णता अच्छी लगती हैं कवि संसार की उपेक्षा करके अपने ही सपनों का संसार लेकर जी रहा है। अतः कवि अपने ही स्वनिल संसार में डूबा रहना चाहता है। 

प्रश्न 6. संसार के संबंध में कवि क्या कहता है? 
अथवा 
कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
उत्तर: 
कवि के अनुसार संसार अपूर्ण है अधूरा है अतः वह संसार के साथ घुलमिल नहीं पाता। उसे संसार बहुत ही झूठा व बनावटी लगता है इसलिए कवि इस भौतिकवादी संसार को मिटाने का प्रयास करता है।

प्रश्न 7 . कवि के वैभव संबंधी विचार क्या हैं ?
उत्तर:
यह संसार तो धरती पर धन-सम्पति जोड़ता रहता है, परन्तु कवि धन-सम्पत्ति को ठोकर मारता है। 

प्रश्न 8 . ‘स्नेह’ का महत्त्व दर्शाते हुए कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
स्नेह का महत्त्व दर्शाते हुए कवि दुःख में भी सभी के लिए प्रेम व अपनेपन की भावना को लिए फिरता है। इसलिए उसके रोदन में भी राग है। 

प्रश्न 9 . कवि के जीवन के विषय में बताइए।
उत्तर:
कवि अपना दुःख किसी को नहीं बताता। उसके रोने में भी जीवन की आशा का राग है। उसकी शीतल वाणी में भी आग है। वह उस खंडहर का हिस्सा है। जिस पर अनेक राजाओं के महल न्योछावर हो चुके हैं। वह उस खंडहर को लिए फिरता है। 

प्रश्न 10. कवि स्वय को किस रूप में मानने के लिए आग्रह करता है?
उत्तर:
कवि का मन रोता है, परन्तु संसार उसे गाना मानता है। कवि का दुःख शब्दों से फूट पड़ा तो लोग उसे छंद समझते हैं। कवि कहता है कि लोग उसे कवि नहीं, बल्कि इस संसार का नया दीवाना समझकर अपनाएँ जो हर दशा में मस्त रहता है। 

प्रश्न 11. ‘जग जीवन का भार और फिर भी जीवन मे प्यार’ यहाँ कवि ने जीवन के संदर्भ में यह विरोधी बात क्यों कही है?
उत्तर:
यहाँ कवि ने जीवन के सन्दर्भ में यह विरोधी बात इसलिए कही है क्योंकि दोनों (कवि और संसार) अलग-अलग प्रवृत्तियों के हैं। कवि को संसार अपूर्ण लगता है और वह उसके अवसाद, दुःख-दर्द में भी खुशी तलाश लेता है। 

प्रश्न 12. संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर:
संसार में कष्टों को सहते हएु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि रोकर सहे या हँसकर कष्ट तो सहने ही है फिर क्यों न हँसते हुए जीवन बिताएँ।

बच्चन जी को संसार क्यों प्रिय नहीं है 13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं?

उत्तर: कवि को यह संसार इसलिए प्रिय नहीं है क्योंकि यह अपूर्ण और अधूरा है जबकि कवि सपनों की दुनिया में खोया रहता है जहाँ कोई अभाव नहीं है। प्रश्न 3 . संसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है? उत्तर: संसार की विषमताओं के बीच कवि मस्ती भरा जीवन जी रहा है और सुख-दुःख दोनों में प्रसन्न रह रहा है।

13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं ?`?

का ध्यान नहीं करते 5. संसार कवि के .

संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रही है?

भव-सागर — संसार रूपी सागर । मौजो - लहरों । K मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ; जग भव-सागर तरने को नाव बनाए मैं भव- मौजों पर मस्त बहा करता हूँ ! प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'आत्मपरिचय' से अवतरित है।

12 बच्चन जी को संसार क्यों प्रिय नहीं है ?`?

बच्चन जी को संसार इसलिए नहीं प्रिय है, क्योंकि यह संसार आधा अधूरा है, जबकि अपने कल्पना के संसार को श्रेष्ठ मानता है और उसी को श्रेष्ठ मानता है। 'आत्मपरिचय' कविता में कवि हरिवंशराय बच्चन संसार के सांसारिक बंधनों को नहीं मानते हैं। वह इस संसार की शुष्कता और नीरसता को पसंद नहीं करते। वह इस संसार को आधा-अधूरा मानते हैं।