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आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ है
कि लाखों वर्ष पूर्व इस पृथ्वी पर मानव का जन्म हुआ था। पहले मनुष्य चार पैरों पर चलता था और जंगलों में रहता था। वह पेड़ों की जड़े ,पत्तियाँ, फल-फूल इत्यादि खाता था। कुछ छोटे जानवरों को मारकर उनका कच्चा मांस खाता था। वस्त्र नहीं पहनता था व घूमता रहता था। इस तरह मनुष्य में धीरे-धीरे शारीरिक परिवर्तन होते गए। जैसे जब वह पैरों पर खड़ा होने लगा तो अधिक दूर तक देखने लगा होगा वह आसपास की चीजों को देखने के लिए पूरे शरीर को घुमाने के बजाय सिर्फ गर्दन का उपयोग करने लगा। हाथों का उपयोग पेड़ों की टहनियाँ पकड़़कर फल तोड़ने, खाना लाने, खाना खाने के लिए करने लगा। इसी समय वह पीठ के बल सोने लगा होगा। इस प्रकार शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ मानव के सोचने की शक्ति का भी तेजी से विकास होने लगा। उसके स्पष्ट रूप से रोने व हँसने की आवाज में भी अधिक स्पष्टता आती गई होगी। निरंतर आते परिवर्तनों के द्वारा अब मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, आवास व सुरक्षा के बारे में भी सोचने लगा होगा। भोजन की तलाश में घूमते रहने के साथ-साथ वह भोजन इकट्ठा भी करने लगा और जंगल में जानवरों से बचाव करने के लिए लकड़ी, जानवरों की हड्डियों, सींगों, धारदार नुकीले
पत्थरों का उपयोग करने लगा। ऊपर दिए चित्र को ध्यान से देखों और नीचे बनी तालिका को भरो- आदिमानव पत्थरों का उपयोग जानवरों के शिकार करने, मांस काटने, लकड़ी काटने, कंदमूल खोदने, आदि के लिए करता था। पत्थर को पाषाण भी कहते हैं, इसीलिए वह पाषाण युग कहा गया है। अध्याय- 1👇 बारे में भी जानें। आइए पाषाण युग के बारे में जाने - पाषाण काल - पाषाण काल लाखों वर्षों तक चला पत्थरों के औजारों के स्वरूपों के आधार पर इस युग को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं- 1. पुरा पाषाण काल में औजार, तो पत्थरों को तोड़कर बनाए जाते थे। ये आकार में विशाल होते थे। धीरे-धीरे मानव ने इस कला में दक्षता प्राप्त कर ली। सैकड़ों वर्षों के अनुभव व भौगोलिक परिवर्तन के कारण औजारों में बदलाव आया। 2. मध्य पाषाण काल- मध्य पाषाण काल में औजार आज के पत्थरों से अधिक छोटे व पैने बनाये जाने लगे। इनमें कठोर एवं मजबूत पत्थर का प्रयोग किया जाने लगा। इन पत्थरों की खास बात यह थी कि इनके फलक (चिप्पड़) आसानी से निकाले जा सकते थे और इन्हें मनचाहा आकार दिया जा सकता था। प्रारंभ में हाथ से आसानी से पकड़े जाने वाले पत्थरों के औजार बनाए जाते थे। धीरे-धीरे हथियारों के हत्थे लगाकर प्रयोग करने की कला मानव ने सीखी। इन औजारों को लकड़ी के हत्थे में बाँधकर इनकी की शक्ति को बढ़ाया गया। 3. नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल- इस काल में छोटे पैनै तथा अधिक संहारक का हथियार कड़े पत्थरों से बनाए जाने लगे। इन्हें बाण के अग्रभाग में तथा कुल्हाड़ी के पैने भाग के स्थान में लगाया जाता था। इस काल में पत्थर की चिकनी कुल्हाड़ियाँ, हाथ के बनाए बर्तन, झोपड़ियों के निर्माण स्थल तथा लघु पाषाण उपकरण प्राप्त होते हैं। इनका काल लगभग 2500 ई.पू. माना जाता है। इस काल से सिंधु सभ्यता के विकास का आरंभ होता है। आग की खोज - पहले मनुष्य आग के बारे में नहीं जानता था। जब उसने पहली बार जंगल में सूखी लकड़ियों को आपस में तेज रगड़ खाकर आग लगते हुए एवं पत्थरों के औजारों के निर्माण के
दौरान दो पत्थरों के आपस में टकराने वह चिंगारियों को निकलते हुए देखा होगा तब पहली बार मानव ने दो पत्थरों के आपस में टकरा कर आग उत्पन्न की होगी। यह मनुष्य की पहली सबसे बड़ी उपलब्धि थी। आग जलने जलने से आदिमानव को बहुत लाभ हुआ जैसे- आदि मानव भोजन की तलाश में घूमता रहता था। थक जाने पर पेडों तथा पहाड़ों की गुफाओं में निवास करता था। पहाड़ों की चट्टान को शैल भी कहते हैं। शैल में निर्मित इन आश्रय स्थलों के कारण इन्हें शैलाश्रय भी कहते हैं। ये शैलाश्रय कहीं-कहीं इतने बड़े हैं कि इनमें 500 व्यक्ति तक बैठे आश्रय प्राप्त कर सकते हैं। इन्हीं गुफाओं में बैठकर आदिमानव ने अपने दैनिक जीवन की क्रियाओं को चित्रित किया है। क्योंकि यह चित्र गुफाओं की चट्टानों पर बने हैं अतः इन्हें शैलचित्र कहते हैं। भारत में सैकड़ों स्थानों पर ऐसे चित्रित शैलाश्रय मिलते हैं। मध्यप्रदेश में भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर, सागर, गुना आदि जिलों में कई चित्रित शैलाश्रय से मिलते हैं। आदि मानव के पास हमारे जैसे वस्त्र नहीं थे। वे ठंड-बरसात आदि से बचने के लिए वृक्षों की छाल, पत्तों तथा जानवरों की खाल से अपना शरीर ढँकते थे। इनके के साथ-साथ लकड़ी, सीप, पत्थर, सींग, हाथी दाँत, और हड्डी से बने आभूषण का भी प्रयोग करते थे। ये पक्षियों के पंखों से भी आभूषण बनाते थे। हमारे प्रदेश में आज भी कई जनजातियाँ ऐसे ही श्रृंगार करती हैं और पंख, सीप, हड्डी, लकड़ी, रंगीन पत्थर, जानवरों के सींग तथा दांतों से अपने आभूषण बनाते हैं। पशुपालन एवं कृषि- नव पाषाण काल तक आदि मानव ने पशुपालन और खेती करने के प्रारंभिक तरीकों की खोज कर ली थी। अब वह जान गया था कि शिकार के साथ-साथ पशुपालन उसके लिए महत्वपूर्ण है। पशुओं से वह कई तरह के काम कर लेता था- शिकार करने में कुत्ता, खेती करने में बैल, दूध प्राप्त करने में गाय, भैंस, बकरी मांस प्राप्त करने में, भेड़, भैंसा सवारी हेतु बैल, भैंस, घोड़ा आदि। पुरातत्वविदों के अनुसार भारत में कृषि की शुरुआत आज से लगभग 10,000 साल पहले हो चुकी थी। इस प्रकार आदिमानव का भोजन की तलाश में घूमना - फिरना कम हो गया। अब वह जान गया था कि मानव और पशु-पक्षियों द्वारा खा कर फेंके हुए फलों के बीजों से नए पौधे उग आते है। खेती करने की कला एक महत्वपूर्ण खोज थी जिसके कारण मानव को भोजन की तलाश में भटकने की जरूरत नहीं रही और अब उसने एक जगह बसना सीख लिया। लेकिन मानव को जब खाद्य सामग्री की कमी पड़ने लगी तब उसने जमीन (खेत) की खुदाई पत्थर, लकड़ी, हड्डियों से बने यंत्रों से करके जमीन में बीज बोना शुरू किया। धीरे-धीरे मिट्टी की निंदाई गुड़ाई व पौधों के लिए पोषक तत्वों का महत्व जाना। वह पानी के स्रोत के निकट वाली जमीन में सामान्यतः खेती करने लगा। समयानुसार धीरे-धीरे कृषि का विकास हुआ। वर्तमान में अपनी आवश्यकता के साथ-साथ मनुष्य विकसित कृषि यंत्रों का विकास किया, जिससे कम समय में अधिक फसलें ली जा रही हैं। इस प्रकार आदि काल से लेकर आज तक मानाव कि कृषि पर निर्भरता लगातार बढ़ती गई और कृषि के विकास के साथ-साथ सभ्यता का विकास हुआ। पहिए की खोज- आदिमानव की प्रगति में
पहिए की खोज का महत्वपूर्ण स्थान है और यह खोज उसके जीवनयापन के लिए वरदान साबित हुई। इस खोज से मानव ने बड़ी तेजी से प्रगति की। इस खोज से मानव को कई लाभ हुई है। जैसे- अभ्यास प्रश्न प्रश्न-1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए- (ब) आदिमानव पत्थर के औजार किस-किस काम में लाते थे? (स) मध्यप्रदेश के किन-किन जिलों में शैलचित्र मिलते हैं? (द)आदिमानव जानवरों से अपनी रक्षा किस तरह करता था? (य) आग की खोज कैसे हुई? इससे आदि मानव को क्या-क्या लाभ हुए? प्रश्न-2 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए– (ब) मानव खेती करना और पशुपालन करना कैसे सीखा? विस्तार से लिखिए। प्रश्न-3 टिप्पणी लिखिए- (अ) आग की खोज– (ब) पहिए की खोज एवं उपयोग– इन 👇एतिहासिक महत्वपूर्ण प्रकरणों को भी पढ़ें। आशा है, इस अध्याय की जानकारी महत्वपूर्ण एवं उपयोगी होगी। I hope the above information will be useful and important. Watch related information below आदिमानव ने आग का आविष्कार कैसे किया?आग का आविष्कार आदिमानव काल में ही हो गया था क्योंकि जंगलों में रहने वाले आदिमानव जंगली जानवरों से बचने के लिए आग का उपयोग करते थे और कहा जाता है कि आदिमानव ने आग की खोज पत्थर को रगड़ के की थी जब वो पत्थर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा रहे तो गलती से पत्थर एक दूसरे के ऊपर गिरे और आदिमानव ने पत्थरों के टकराने से ...
मानव ने आग जलाना कैसे सीखा?(ख) मानव ने आग जलाना कैसे सीखा? उत्तर : प्राचीन मानव औजार बनाने के लिए एक पत्थर पर दूसरे पत्थर से चोट मारते थे। इस प्रक्रिया में पत्थरों के आपस में टकराने पर चिनगारी निकली होगी और इस प्रकार मानव ने आग जलाना सीख लिया होगा।
आग की खोज किसने की और कब की?आदिमानव ने आग की खोज कब की होगी? पुरा पाषाण काल में पत्थरों को रगड़ने से आग की उत्पत्ति हुयी। ये काल आधुनिक काल से 25-20 लाख साल पूर्व से लेकर 12,000 साल पूर्व तक माना जाता है।
आग की खोज कैसे हुई इससे आदिमानव को क्या लाभ है?इस प्रकार आग की खोज संयोग से हुई। आदिमानव ने जब चकमक पत्थर की सहायता से आग जलाना सीख लिया तो वह रात के समय गुफा में आग जलाकर जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करने लगा। उसने उजाला करना सीख लिया।
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