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साहित्य के मूल में परिवर्तित सामूहिक
चित्तवृत्तियों को आधार बनाकर साहित्य की परंपरा का व्यवस्थित अनुशीलन ही साहित्य का इतिहास कहलाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है- आदिकाल- आदिकाल को वीरगाथाकाल के नाम से जाना जाता है। आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- आदिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं- भक्तिकाल- भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। भक्ति काल को दो भागों में बाँटा जा सकता
है- सगुण धारा- भक्तिकाल की इस काव्य धारा के कवियों ने ईश्वर के साकार रूप की लीलाओं का वर्णन किया है। इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- निर्गुण धारा- जिन कवियों ने ईश्वर को निराकार रूप में अपने काव्य में स्थान दिया, उन्हें निर्गुण धारा के कवि के रूप में जाना
जाता है। इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- रीतिकाल- रीतिकालीन काव्य को तीन धाराओं में विभाजित किया जा सकता है- रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- इस काल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- आधुनिक काल- आधुनिक हिंदी कविता का प्रारंभ संवत् 1900 से माना जाता है। यह काल अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस काल में हिंदी साहित्य का चहुँमुखी विकास हुआ। यह काल हिंदी साहित्य की अनेक प्रवृतियों एवं परिवर्तनों को लेकर उपस्थित हुआ। इस काल में धर्म, दर्शन, कला एवं साहित्य सभी के प्रति नए दृष्टिकोण का आविर्भाव हुआ। हिंदी साहित्य के विकासक्रम को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है- भारतेंदु युग- भारतेंदु युग को आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस युग के कवियों में नवीन के प्रति मोह, साथ ही प्राचीन के प्रति आग्रह भी था। भारतेंदु युग नव जागरण का युग है। इसमें नई सामाजिक चेतना उभरकर आई। भारतेंदु युग में देशभक्ति और राजभक्ति तत्कालीन राजनीति का अभिन्न अंग थी, जिसका स्पष्ट प्रभाव इस युग के कवियों में देखा जा सकता है। भारतेंदु युगीन काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- भारतेंदु युगीन प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
निम्नलिखित हैं- द्विवेदी युग- यह युग कविता में खड़ी बोली के प्रतिष्ठित होने का युग है। इस युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। इन्होंने 'सरस्वती पत्रिका' का संपादन किया। इस काल में प्रबंध काव्य भी पर्याप्त संख्या में लिखे गए। अनेक कवियों ने ब्रजभाषा छोड़कर खड़ी बोली को अपनाया। इस काल में खड़ी बोली को ब्रजभाषा के समक्ष काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया, साथ ही विकसित चेतना के कारण कविता नई भूमि पर प्रतिष्ठित हुई। द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- द्विवेदी युगीन प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- छायावाद- हिंदी साहित्य के आधुनिक चरण में द्विवेदी युग के पश्चात् हिंदी काव्य की जो धारा विषय वस्तु की दृष्टि से स्वछंद प्रेमभावना, प्रकृति में मानवीय क्रिया-कलापों तथा भाव-व्यापारों के आरोपण और कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान नवीन अभिव्यंजना पद्धति को लेकर चली, उसे
'छायावाद' कहा गया। छायावादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- टीप- 1. 'जयशंकर प्रसाद' छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं। छायावाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- रहस्यवाद- हिंदी कविता में रहस्यवाद का काल निर्धारण करना कठिन है क्योंकि रहस्यवाद सृष्टि के आरंभ से ही कवियों को प्रिय रहा है। वेदों में ऊषा, मेघ, सरिता आदि के वर्णन में अव्यक्त परमात्मा के स्वरूप को लक्षित किया गया
है। यह प्रकृति और जगत ही रहस्यमय है। कण-कण में परमात्मा के होने का आभास ही रहस्यवाद है। रहस्यवादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- प्रमुख छायावादी कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- छायावाद एवं रहस्यवाद में अंतर निम्नलिखित है- प्रगतिवाद- प्रगतिवाद भौतिक जीवन से उदासीन, आत्मनिर्भर, सूक्ष्म, अंतर्मुखी प्रवृत्ति के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में, लोक के विरुद्ध स्थूल जगत की तार्किक प्रतिक्रिया है। यह काव्यधारा कला की अपेक्षा 'जीवन' को, व्यक्ति की अपेक्षा समाज को और स्वाद उन्नति के अपेक्षा सर्वानुभूति को प्रधानता देती है। प्रगतिवादी काव्य की
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- प्रयोगवाद- अज्ञेय ने लिखा है- "ये कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।" स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अज्ञेय के संपादन में 'प्रतीक' मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। उसमें प्रयोगवाद का स्वरूप स्पष्ट हुआ। सबसे पहले प्रथम तार सप्तक का संपादन हुआ। सन् 1951 में दूसरा तार सप्तक प्रकाशित हुआ और तत्पश्चात् तीसरा तार सप्तक। प्रयोगवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- प्रमुख प्रयोगवादी कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद में अंतर निम्नलिखित है- 1. प्रगतिवाद में मध्यवर्गीय हताशा, कुंठा तथा मनःस्थिति की ऊहापोह का अंकन है,
जबकि प्रयोगवाद में शोषितों, दलितों तथा गरीबों की दशा का वास्तविक चित्रण है। नई कविता-
प्रयोगवादी कविता का ही आगे का दौर नई कविता के रूप में उभरा है। वस्तुतः नई कविता की विषय वस्तु मात्र चमत्कार न होकर एक भोगा हुआ जीवन यथार्थ है। नई कविता परिस्थितियों की उपज है। नई कविता स्वतंत्रता के बाद लिखी गई वह कविता है जिसमें नवीन भावबोध, नए मूल्य तथा नया शिल्प विधान है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पहली बार मनुष्य की विवशता, असहायता तथा निरूपायता सामने आई और उसने अस्तित्व का संकट अनुभव किया। नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- नई कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- नवगीत- नई कविता ने जब गेयता को नकारना प्रारंभ किया तब नवगीत का जन्म हुआ। नवगीतों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- प्रमुख नवगीतकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- लोकगीतों
की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- आशा है, हिन्दी साहित्य के इतिहास का यह आंश महत्वपूर्ण और परीक्षापयोगी होगा। I hope the above information will be useful and important. Watch related information below आधुनिक काव्य से क्या तात्पर्य है?भाव, शैली, छंद, अलंकार सब दृष्टियों से इसमें नयापन था। भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद लोकप्रिय हुई इस कविता को आलोचकों ने छायावादी युग का नाम दिया। छायावादी कवियों की उस समय भारी कटु आलोचना हुई परंतु आज यह निर्विवाद तथ्य है कि आधुनिक हिंदी कविता की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि इसी समय के कवियों द्वारा हुई।
आधुनिक काव्य के लेखक कौन है?भगवान दीन, रामनरेश त्रिपाठी, जयशंकर प्रसाद, गोपाल शरण सिंह, माखन लाल चतुर्वेदी, अनूप शर्मा, रामकुमार वर्मा, श्याम नारायण पांडेय, दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
आधुनिक काल की क्या विशेषता है?अंग्रेजों ने यहां अपने शासन कार्य को सुचारु रूप से चलाने एवं अपने धर्म-प्रचार के लिए जन-साधारण की भाषा को अपनाया। इस कार्य के लिए गद्य ही अधिक उपयुक्त होती है। इस कारण आधुनिक युग की मुख्य विशेषता गद्य की प्रधानता रही। इस काल में होने वाले के आविष्कार ने भाषा-विकास में महान योगदान दिया।
आधुनिक युग की काव्य प्रवृत्तियां क्या है?इस प्रकार आधुनिक हिन्दी साहित्य में छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद चार ही प्रवृत्तियाँ निश्चित रूप से इतिहास-सम्मत हैं जिन्हें 'वाद' के रूप में प्रचलन की मात्रा प्राप्त है।
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