भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? - bhagavaan parashuraam kee pooja kyon nahin hotee?

आज 7 मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है. लोग इस तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से भी जानते हैं. लेकिन यह तिथि एक और मायने में बेहद खास है. इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का भी जन्म हुआ था. भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे. परशुराम को न्याय का देवता माना जाता है. वह अपने माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे. बावजूद इसके उन्होंने अपनी माता की गर्दन काट दी थी. आइए जानते हैं आखिर क्यों परशुराम जी को अपनी मां की गर्दन काटनी पड़ी और फिर क्या हुआ उनके साथ.

ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. शस्त्र विद्या और शस्त्रों के ज्ञाता भगवान परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दे. भगवान परशुराम बेहद आज्ञाकारी पुत्र थे. उन्होंने अपने पिता का आदेश पाते ही तुरंत अपने परशु से अपनी मां का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया.

अपनी आज्ञा का पालन होते देख भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बेहद प्रसन्न हुए. पिता को प्रसन्न्  देख परशुराम ने अपने पिता से मां रेणुका को पुनः जीवित करने का आग्रह किया.

ज्योतिषाचार्य पंडित अरुणेश कुमार शर्मा ने बताया कि परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार माने जाते हैं. उन्होंने परशुराम द्वारा माता रेणुका वध की कथा को विस्तार से बताते हुए कहा कि एकबार ऋषि पत्नी सरोवर में स्नान के लिए गई हुई थी. संयोग से वहां राजा चित्ररथ नौकाविहार कर रहे थे. राजा को देख ऋषिपत्नी के हृदय में विकार उत्पन्न हो गया और वह वहां से उसी मनोदशा में आश्रम लौट आईं.

आश्रम में ऋषि जमदग्नि ने जब पत्नी की यह विकारग्रस्त दशा देखी तो उन्हें सब ज्ञात हो गया. जिसकी वजह से ऋषि बेहद क्रोधित हो गए. उन्होंने पहले परशुराम के अग्रजों को माता के वध का आदेश दिया. लेकिन मां से मोहवश उनके किसी भी पुत्र ने उनकी इस आज्ञा का पालन नहीं किया. लेकिन जब पिता ने मां का वध करने के लिए परशुराम से कहा तो उन्होंने पिता की आज्ञा का अक्षरशः पालन किया.

इस पर ऋषि ने आज्ञा न मानने वाले पुत्रों को विवेक विचार खो देने का श्राप दिया. परशुराम से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे मनचाहा वर मांगने के लिए कहा. इस पर परशुराम ने अपने पिता से माता को पुनःजीवित करने का वरदान मांगकर अपनी मां को नवजीवन प्रदान किया. अपने पुत्र की तीव्र बुद्धि देखकर अतिप्रसन्न ऋषिपिता ने परशुराम को दिक्दिगन्त तक ख्याति अर्जित करने और समस्त शास्त्र और शस्त्र का ज्ञाता होने का आशीर्वाद दिया.

लेकिन परशुराम जी ने पिता के कहने पर अपनी मां का वध किया था. जिसकी वजह से उन्हें मातृ हत्या का पाप भी लगा. उन्हें अपने इस पाप से मुक्ति भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद मिली. भगवान शिव ने परशुराम को  मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, यही वजह थी कि वो बाद में परशुराम कहलाए.

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भगवान परशुराम की आराधना करने से अगले जन्म में बनेंगे राजा

भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? - bhagavaan parashuraam kee pooja kyon nahin hotee?

भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। तो आइए परशुराम जयंती के बारे में रोचक बातें बताते हैं।

भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। तो आइए परशुराम जयंती के बारे में रोचक बातें बताते हैं।

जन्म से जुड़ी कथाएं

परशुराम का जन्म वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसे परशुराम द्वादशी भी कहा जाता है। परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। यह अपने माता-पिता की पांचवीं संतान थे। इनके पिता जमदग्नि सप्तऋषियों में से एक थे।  

विष्णु के अवतार हैं परशुराम

भगवान परशुराम के जन्म के विषय में एक अन्य मान्यता प्रचलित है कि परशुराम के जन्म से पहले जमदग्नि और रेणुका ने भगवान शिव की आराधना की। इससे प्रसन्न हो कर शिव ने आशीर्वाद दिया और भगवान विष्णु ने स्वयं रेणुका के गर्भ से परशुराम के रूप में अवतार लिया।

धरती के पापों के नाश हेतु लिया अवतार

जब परशुराम का धरती पर जन्म हुआ तब उस समय दुष्ट प्रवृत्ति के राजाओं का बोलबाला था। उन्हीं में से एक राजा ने उनके पिता जमदग्नि को मार दिया था। इससे परशुराम बहुत कुपित हुए और उन्होंने उस दुष्ट राजा का वध किया। यही नहीं उस समय समाज में कुछ राक्षसी प्रवृत्ति के राजाओं का वर्चस्व था। उन राजाओं का वध कर परशुराम ने उन्हें समाज को भयमुक्त किया।   

फरसे से बनाया मंदिर 

ऐसी मान्यता है कि राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है जिसे परशुराम ने अपने फरसे के वार से बनाया है। यह मंदिर अरावली की पहाड़ियों में स्थित है। इस मंदिर में एक गुफा है जिसमें शिवलिंग है। इसी मंदिर में परशुराम ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें धनुष, फरसा और अक्षय तरकश दिया था। अक्षय तरकश के तीर कभी भी खत्म नहीं होते थे। 

परशुराम जयंती की महत्ता

हिन्दू पंचांग में परशुराम जयंती की बहुत महत्ता है। इस दिन प्रातः स्नान कर सूर्योदय तक मौन व्रत धारण करें। साथ ही भगवान परशुराम की मूर्ति के सामने ध्यान लगाएं। ऐसा करने से मनुष्य के पाप खत्म होते हैं और वह पुण्य का भागी बनता है। इस दिन हिन्दूओं द्वारा बड़े-बड़े जुलूस निकाले जाते हैं। साथ ही भगवान परशुराम के मंदिरों में हवन-पूजन भी किया जाता है। इसके अलावा भक्तगण इस दिन भंडारे का भी आयोजन करते हैं। वराह पुराण के अनुसार परशुराम जयंती के दिन उपवास रखने और परशुराम की मूर्ति की पूजा करने से अगले जन्म में राजा बनने की सम्भावना होती है। 

परशुराम से जुड़ी रोचक बातें

भगवान शिव के द्वारा दिए परशु अर्थात फरसे को धारण करने का कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। ऐसा माना जाता है परशुराम का एक दूसरा अवतार धरती पर कल्कि अवतार के रूप में होगा। इसके बाद कलियुग की समाप्ति हो जाएगी। परशुराम अपने माता-पिता के बहुत बड़े भक्त थे। साथ ही उन्हें वीरता का अद्भुत उदाहरण माना जाता है। परशुराम अस्त्र-शस्त्र के परम ज्ञाता थे। वह केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायटुट के संस्थापक आचार्य माने जाते हैं। भगवान परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर कई देवी-देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिए थे। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोण, कौरव और पांडव प्रमुख थे। 

-प्रज्ञा पाण्डेय

परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था। यही कारण है कि परशुराम जयंती समारोह तब किया जाता है जब प्रदोष काल के दौरान तृतीया होती है। यह भी माना जाता है कि अन्य सभी अवतारों के विपरीत परशुराम अभी भी पृथ्वी पर रहते हैं, इसलिए उनकी पूजा नहीं की जाती है।

परशुराम का वध कैसे हुआ?

भगवान परशुराम मृत्यु से मुक्त हैं। वह उन 7 चिरंजीवी में से हैं, जिन्हें हमेशा के लिए अमर माना जाता है। भगवान परशुराम को दशावतार से संबंधित भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है। परशुराम उस युग के सबसे क्रोधी ब्राह्मण या साधु कह सकतें हैं, माने जाते थे।

भगवान परशुराम के वंशज कौन हैं?

भगवान परशुराम के यदि वंशज को देखा जाए तो महाराज गाधि के एक मात्र पुत्री सत्यवती व पुत्र ऋषि विश्वामित्र थे।

भगवान परशुराम कौन से ब्राह्मण थे?

जन्म से ब्रह्मण, कर्म से क्षत्रिय महर्षि भृगु के प्रपौत्र, वैदिक ॠषि ॠचीक के पौत्र, जमदग्नि के पुत्र, महाभारतकाल के वीर योद्धाओं भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले गुरु, शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ॠषि परशुराम एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे जरूर थे, लेकिन कर्म से वे एक क्षत्रिय थे