भारत और चीन के संबंध कैसे हैं? - bhaarat aur cheen ke sambandh kaise hain?

  • सौतिक बिस्वास
  • बीबीसी संवाददाता

15 दिसंबर 2022

भारत और चीन के संबंध कैसे हैं? - bhaarat aur cheen ke sambandh kaise hain?

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अरुणाचल प्रदेश में तवांग के पास भारतीय सैनिक

60 साल पहले पतझड़ के मौसम की सुबह थी जब युद्ध शुरू हुआ था. 23 अक्टूबर 1962 को चीन और भूटान की सीमा नॉर्थ ईस्ट फ़्रंटियर एजेंसी (नेफ़ा) में चीन के सैनिकों ने भयंकर गोलाबारी शुरू कर दी.

यह इलाक़ा आज अरुणाचल प्रदेश है जिस पर चीन अपना हक़ होने का दावा करता है. दोनों पक्षों के बीच साल भर में तनाव की ये ताज़ा घटना यहीं की है.

'चाइनाज़ इंडिया वॉरः कोलिज़न कोर्स ऑन द रूफ़ ऑफ़ द वर्ल्ड' के लेखक और स्वीडिश पत्रकार बर्टिल लिंटनर को भारतीय सेना के अधिकारी ने बताया, "गोलाबारी से आसमान में उजाला हो जाता था और विस्फोट की आवाज़ पहाड़ों में गूंजती थी."

चीनी सैनिकों ने एक भारतीय पोस्ट को क़ब़्जा कर लिया, 17 भारतीय सैनिक मारे गए और 13 को पकड़ लिया गया.

औचक हमले और भारतीय सैनिकों की कमज़ोर तैयारी का फ़ायदा उठाते हुए वे आगे बढ़े. अगले दिन उन्होंने तवांग पर क़ब्ज़ा कर लिया जो कि पास की घाटी में बसा हुआ बौद्ध मठों का शहर है.

इसके बाद चीनी सैनिक दक्षिण की ओर बढ़े. मध्य नवंबर तक वे बोमडिला तक पहुंच गए जो कि मठों वाला एक अन्य क़स्बा है. यहां से असम 250 किलोमीटर दूर है जहां भारत के चाय बागान, तेल के कुएं हैं और बड़े पैमाने पर जूट का उत्पादन होता है.

21 नवंबर को चीन ने संघर्ष विराम की घोषणा की और उत्तर में 20 किलोमीटर पीछे की ओर हट गया जहां दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ़ ऐक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) है और ब्रिटिश भारत के नक्शे में जहां सीमा रेखा बनी है.

लिंटर ने लिखा है, "युद्ध ख़त्म हो गया था. कुछ ही हफ़्तों में पीएलए के सैनिक पहाड़ के चीन नियंत्रित क्षेत्र में लौट गए थे."

इस लड़ाई में भारत के 1,383 सैनिक मारे गए और क़रीब 1,700 ग़ायब हुए. चीन के रिकॉर्ड के अनुसार, भारत के 4,900 सैनिक मारे गए और 3,968 सैनिक ज़िंदा पकड़े गए.

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नवंबर 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध में भारत को भारी नुक़सान उठाना पड़ा था

भारत और चीन के दावे

'अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर' के लेखक और भारतीय रक्षा विश्लेषक मनोज जोशी कहते हैं कि 'ये पता नहीं चला कि चीन क्यों पीछे हटा?'

उन्होंने कहा, "क्या उनकी सप्लाई लाइन बहुत लंबी हो गई थी, इसलिए पीछे हटे? क्या वे अमेरिकी हस्तक्षेप के डर से हटे? या इसलिए कि वे अपनी पूर्वी सीमा के दावों को लेकर वे बहुत गंभीर नहीं थे?"

चीन और भारत के बीच की सीमा को तीन भागों में बांटा गया है: लद्दाख की तरफ़ वेस्टर्न सेक्टर, तिब्बत से जुड़ा हुआ हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा मिडिल सेक्टर है और ईस्टर्न सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश से जुड़ी सीमा आती है.

विशेषज्ञों का कहना है कि ये असल में एक 'काल्पनिक रेखा' है- भारतीय कहते हैं कि यह 3,488 किलोमीटर लंबी है, चीन की तरफ़ से कहा जाता है कि यह 2,000 किलोमीटर लंबी है.

सीमा के पश्चिमी हिस्से में स्विट्ज़रलैंड के आकार के चीन के क़ब्ज़े वाले अक्साई चिन इलाक़े पर भारत दावा करता है, जबकि चीन अरुणाचल प्रदेश पर दावा ठोंकता है.

भारत के अनुसार, 1,126 किलोमीटर लंबा ईस्टर्न बॉर्डर मैकमोहन लाइन है, जबकि चीन ने अरुणाचल प्रदेश को कभी भी मान्यता नहीं दी. इस रेखा का नाम ब्रिटेन के हेनरी मैकमोहन के नाम पर है जो कि 1914 में भारत के विदेश सचिव हुआ करते थे.

परमाणु हथियार रखने वाले दोनों पड़ोसी और एशिया के दो सबसे बड़े देशों ने इन झड़पों को बंद करने के लिए समझौते किए. इसे दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाला सीमा विवाद भी कहा जाता है.

दोनों पक्षों ने आम तौर पर शांति बनाए रखा, लेकिन आक्रामकता और घुसपैठ को लेकर दोनों नियमित तौर पर एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे.

लेकिन चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को छोड़ा नहीं और अभी इसके अधिकांश इलाक़े को 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है.

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अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर तैनात भारतीय सैनिक

चीन ने सीमा विवाद को क्यों ज़िंदा रखा है?

पिछले साल नागरिक मामलों के चीन के मंत्रालय ने विवादित इलाके के कई जगहों के नाम परिवर्तित कर दिए. सरकारी मीडिया के अनुसार, चीन का इलाक़ाई दावा 'ऐतिहासिक और प्रशासनिक आधार' पर है.

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग भविष्य में भारत के साथ किसी सीमा समझौते की स्थिति में अक्साई चिन पर अपने दावे को बनाए रखने के लिए अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा ज़िंदा रखना चाहता है.

अक्साई चिन रणनीतिक रूप से खनिज प्रधान इलाक़ा है जिसे 1950 के दशक में क़ब्ज़ा किया गया था. इसके बदले बीजिंग अरुणाचल प्रदेश पर भारत की दावेदारी को मान जाएगा.

लेकिन ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम के डॉक्टर सेरिंग टोपग्याल जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि मामला कुछ और है.

टोपग्याल ने बताया, "तिब्बत पर चीन के नियंत्रण और अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन के बीच अदला-बदली को लेकर चीन के आत्मविश्वास में एक संबंध हो सकता है. मैं समझता हूं कि चीन सिर्फ़ इलाक़ाई हानि-लाभ के नज़रिए से ही सीमा विवाद को नहीं बढ़ा रहा है, बल्कि उसके दिमाग़ में व्यापक राष्ट्रीय और विदेशी नीति हावी है."

पहले अरुणाचल प्रदेश सीधे दिल्ली से प्रशासित था, 1987 में इसे अलग राज्य बनाया गया जो कि चीन की खीझ का एक कारण है.

बीते सालों में भारत ने सीमा के पास सुरक्षा बढ़ाने, आधारभूत ढांचे को मज़बूत करने और गांव बसाने के क़दम उठाए हैं.

भारत पर लगाम लगाने की मंशा?

भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश के दौरे ने बीजिंग को और चिढ़ा दिया है. जब 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दौरा किया था और कई प्रोजेक्ट की घोषणा की थी तो चीन ने औपचारिक विरोध दर्ज कराया था.

राज्य को एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से लोन दिए जाने का भी बीजिंग ने विरोध किया था और इलाक़े में तैनात भारतीय सैन्य अधिकारियों को वीज़ा देने से इनकार किया था.

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश के दूर दराज़ के इलाक़ों के विकास और 2000 किलोमीटर लंबी नई सड़कें बनाने की योजना की घोषणा की थी.

उस समय इसी राज्य से आने वाले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने ब्लूमबर्ग से कहा था, "हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जिससे संबंध ख़राब हो. ये चीन को चुनौती देने या उससे प्रतिद्वंद्विता करने के लिए नहीं है, बल्कि अपने इलाक़े को सुरक्षित करने के लिए है."

डॉक्टर सेरिंग के अनुसार, चीन के नज़रिए से, अरुणाचल प्रदेश पर दावे समेत भारत के साथ सीमा विवाद को ज़िंदा रखने का चीन के लिए एक रणनीतिक महत्व है. भारत की महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाने और उसके रवैये को नियंत्रित करने का ये तरीक़ा भी है क्योंकि अमेरिका के साथ उसकी क़रीबी बढ़ रही है.

वो कहते हैं, "ऐसा क्यों है कि चीन के उसके पड़ोसियों के साथ जितने भी सीमा विवाद हैं, उसमें भारत-चीन विवाद अभी भी जारी है."

विशेषज्ञों के अनुसार, ताज़ा झड़प यांग्त्से में हुई है जहां आबादी बहुत कम है, चीन की तरफ़ के गांव से महज़ पांच किलोमीटर दूर. ये जगह विवादित सीमा पर उन दर्जन भर जगहों में से ये एक है जहां दोनों पक्ष अपना दावा करते हैं.

जोशी कहते हैं, "लगता है कि ईस्टर्न बॉर्डर का माहौल फिर से गरमा रहा है और इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है."

क्या चीन भारत के दुश्मन है?

चीन का भारत के साथ तनाव जगजाहिर है. दोनों देशों के बीच जारी तनाव 1962 के युद्ध से ही है. वहीं, अभी जून 2020 में LAC में भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई. हाल ही में तवांग क्षेत्र में भी भारत और चीन के सैनिक आपस में भिड़ गए.

भारत और चीन में कौन ज्यादा शक्तिशाली है?

एयरक्राफ्ट के मामले में भारत काफी मजबूत है. पाकिस्‍तान की बात करें तो पाक सेना में 6.51 लाख सैनिक हैं. 6000 से ज्‍यादा लड़ाकू वाहन और 7000 से ज्‍यादा तोप और एंटी टैंक सिस्‍टम है. चीन की सेना में 20.35 लाख सैनिक हैं.

भारत चीन से क्यों डरता है?

चीन भारत से बिल्कुल नहीं डरता है बल्कि वह भारत को डराने की कोशिश करता रहता है । लेकिन एक बात सत्य है , चीन शायद आज की तारीख में तो युद्ध करने को तैयार नहीं है, क्योंकि युद्ध होने से उसके आर्थिक प्रगति और देश में संकट आने की पूरी संभावना है।

भारत में चीन के आर्थिक संबंध कैसे हैं?

2018-19 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 88 अरब डॉलर रहा। यह बात महत्वपूर्ण है कि पहली बार भारत, चीन के साथ व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर तक कम करने में सफल रहा। चीन वर्तमान में भारतीय उत्पादों का तीसरी बड़ा निर्यात बाजार है। वहीं चीन से भारत सबसे ज्यादा आयात करता है और भारत, चीन के लिए उभरता हुआ बाज़ार है।