दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं, कई बार ऐसा होता है कि हिम्मत होने के बावजूद आदमी दुविधा में पड़ जाता है और उसे सही रास्ता नहीं दिखता। कई बार आपका शरीर तो स्वस्थ रहता है लेकिन मन के अंदर हजारों दुख भरे होते हैं। कई लोग छोटी या बड़ी बातों पर दुखी हो जाते हैं। जैसे कि सर्दियों की रात में चाँद नहीं दिखने पर। यह उसी तरह है जैसे कि पास तो हो गए लेकिन 90% मार्क नहीं आए। कई बार लोग उचित समय पर कुछ प्राप्त न कर पाने की वजह से दुखी रहते हैं। लेकिन जो न मिले उसे भूल जाना ही बेहतर होता है। भूतकाल को छोड़कर हमें अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए और एक सुनहरे भविष्य के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए। Solution : प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा इसलिए, कहा गया क्योंकि कवि का मानना है कि उच्च पद पर प्रतिष्ठित होने से कोई मानसिक सुख नहीं मिलता। यह एक मन का छलावा है। यह सच्चाई है अह्र सुख से दुख जुड़ा ही रहता है। जैसे पूर्णिमा के बाद अमावस आती ही है। हर मृगतृष्णा छलावे की दौड़ उसके अंत का कारण बनती है। अपने बड़प्पन का सुख मन का भ्रम है, इससे भ्रमित होकर व्यक्ति दुख ही पाता है। हाल में हुई एक घटना पर टिप्पणी करने का मन हो रहा है। इस घटना के पात्र हैं सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन और आज के लोकप्रिय कवि डॉ. कुमार विश्वास । घटना के बारे में चर्चा करने से पहले, इन दोनों पात्रों के बारे में कुछ बात कर लेते हैं। श्री अमिताभ बच्चन जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आज वे पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन कर रहे हैं। एक बात और उनके बारे में मानी जाती है कि जब कोई उनसे बात करता है तो ऐसा लगता है कि अमिताभ बच्चन आप नहीं बल्कि दूसरा व्यक्ति है। इतनी अधिक विनम्रता और दूसरे को सम्मान देने का भाव, यह माना जा सकता है कि आपको, आपके पिताश्री डॉ. हरिवंश राय बच्चन से मिला है, जो हिंदी के एक विख्यात कवि थे, श्रेष्ठतम कवियों में उनकी गिनती होती थी और अपनी रचना – ‘मधुशाला’ के माध्यम से वे आम जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे, क्योंकि सामान्य श्रोता समुदाय गंभीर साहित्यिक रचनाओं से अधिक नहीं जुड़ पाता यह भी सच्चाई है, गंभीर रचनाओं को सुनने-पढ़ने वाले अपेक्षाकृत बहुत कम होते हैं। हाँ तो इस घटना के दूसरे पात्र हैं- डॉ. कुमार विश्वास, जो आज के एक अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। डॉ. कुमार विश्वास से मेरी कई बार मुलाकात हुई है, मैंने उनको एनटीपीसी के कुछ आयोजनों में भी आमंत्रित किया और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उनके कारण हमारे ये आयोजन अत्यंत सफल रहे थे। बाद में जब वे राजनीति से जुड़ गए, उसके बाद उनका फोन उनके स्थान पर उनका पी.ए. उठाने लगा और हमारा संपर्क टूट गया। यह एक सच्चाई है कि डॉ. कुमार विश्वास भी आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं और देश के सबसे महंगे गीत कवि हैं। साहित्यिक श्रेष्ठता की बहस अपनी जगह है लेकिन शायद हाल के वर्षों में किसी गीत कवि के प्रति श्रोताओं में इतनी दीवानगी नहीं देखी गई है। एक बात और याद आ रही है जो मैंने उन दिनों पढ़ी थी जब बड़े बच्चन जी, मतलब डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी जीवित थे। घटना जैसी मैंने पढ़ी थी, इस प्रकार थी कि श्री अमिताभ बच्चन शुरू की कुछ फिल्में कर चुके तब उनके पिता- डॉ. बच्चन अपनी जीवन भर की कमाई से कुछ राशि उनके भाई अजिताभ को व्यवसाय में लगाने के लिए देने लगे, तब अमिताभ जी ने कहा कि आप रख लीजिए, इनसे कुछ नहीं होगा और उससे काफी बड़ी राशि का चेक काटकर अपने भाई को दे दिया। इस घटना से जैसा बताया गया कि डॉ. बच्चन को काफी सदमा लगा था कि मेरी जीवन भर की कमाई किसी काम की नहीं है। उस रिपोर्ट में ऐसा बताया गया था कि डॉ. बच्चन ने उसके बाद अपनी कुछ रचनाएं भी जला दी थीं। यह एक स्टोरी थी जो कहीं पढ़ी थी, मेरा कोई दावा नहीं है कि यह सही होगी, लेकिन इसमें साहित्य और फिल्मों की कमाई, विशेष रूप से सुपर स्टार की कमाई की जो तुलना दर्शाई गई है, वह तो सही है। एक बात यह भी मैं कहना चाहता हूँ कि श्री अमिताभ बच्चन जी, डॉ. बच्चन के जैविक पुत्र तो हैं ही और इस नाते उनकी रचनाओं पर व्यवसाय करने का अधिकार तो उनको ही है, लेकिन डॉ. बच्चन के मानस पुत्र, उनकी परंपरा के वाहक तो हमारे कवि बंधु ही हैं, और उनमें डॉ. कुमार विश्वास भी शामिल हैं। अब घटना जैसा आप सभी जानते होंगे यह थी कि डॉ. कुमार विश्वास ने बच्चन जी की एक कविता – ‘निशा निमंत्रण’ कहीं, उनका स्मरण करते हुए, अपनी आवाज़ में गाई थी और इस पर अमिताभ जी ने लाखों का दावा कर दिया था। सचमुच मुझे अमिताभ जी की यह कार्रवाई उनके विनम्र स्वभाव के अनुकूल नहीं लगी, और मुझे यह भी लगा कि कविता के कॉपीराइट को शायद उन्होंने फिल्म जैसा समझ लिया। सच्चाई यह है कि सामान्य श्रोता समुदाय में अधिकांश लोग ऐसे होंगे जिन्होंने इस गीत को डॉ. कुमार विश्वास ने गाया, इसलिए सुन लिया हो, वरना गंभीर रचनाओं का कोई श्रोता समुदाय नहीं है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन सच्चाई है। आज डॉ. गिरिजाकुमार माथुर जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ- छाया मत छूना मन जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ
सुहावनी भूली-सी एक छुअन यश है न वैभव है, मान है न सरमाया; जो है यथार्थ कठिन दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं जो
न मिला भूल उसे ****************** |