कहानी के अंत में हालदार साहब भावुक क्यों हो गए? - kahaanee ke ant mein haaladaar saahab bhaavuk kyon ho gae?

इसे सुनेंरोकें(ख) हम अपने इलाके के चौराहे पर महात्मा गाँधी की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे। क्योंकि उन्होंने हमारे देश को आज़ाद करवाने में मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने हिंसा को त्याग कर अहिंसा के पथ को प्रधानता दी। (ग) मूर्ति के प्रति हमारे तथा समाज के अन्य लोगों के कुछ उत्तरदायित्व हैं।

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फोटो वोटो छपवा दो उसका कहीं यह कथन किसका है?

इसे सुनेंरोकेंफोटो-वोटो छपवा दो उसका कहीं। प्रश्न (क)-हालदार साहब को कौन सी बात बड़ी विचित्र लग रही थी? उत्तरः हालदार साहब को कैप्टन द्वारा मूर्तिकार की कमी को दूर करने का प्रयास करना बड़ा विचित्र लग रहा था।

पान वाले ने कैप्टन चश्मे वाले का मजाक कैसे उड़ाया?

इसे सुनेंरोकें➲ पान वाले ने कैप्टन चश्मे वाले का लंगड़ा और पागल कह कर मजाक उड़ाया। जब हालदार साहब ने कैप्टन चश्मे वाले के विषय में पान वाले से पूछा, तो पान वाले ने कैप्टन को लंगड़ा तथा पागल कहा और हालदार साहब से हंसते हुए कहा कि वह लंगड़ा-पागल फौज में क्या जाएगा।

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चौराहे पर मूर्ति लगाने का क्या उद्देश्य है *?

इसे सुनेंरोकेंकस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी-न-किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने के पीछे यह उद्देश्य रहता है कि लोग उस व्यक्ति के व्यक्तिव से शिक्षा लें। लोगों में देश के प्रति उत्तरदायित्व की भावना जागृत हो। कैप्टन के कस्वे में चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगी हुई थी।

मूर्ति बनाकर पटक देने का क्या भाव है?

इसे सुनेंरोकेंमूर्ति बनाकर पटक देने से अर्थ है, किसी युक्ति से, किसी भी प्रकार एक महीने में नेताजी की मूर्ति बनाकर सौंप देना है । मूर्ति बनाकर पटक देने से यह भी अर्थ है कि मूर्ति बनाने में कोई भाव नहीं है केवल कार्य पूरा करने के लिए मूर्ति को जैसे तैसे बना दिया जाए ।

हालदार साहब को क्या आदत पड़ गई थी?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : हालदार साहब को चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखने की आदत पड़ गई थी। हालदार साहब को कस्बे से गुजरते समय हालदार साहब को उस कस्बे के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखने की आदत पड़ गई थी। हालदार साहब अत्यंत भावुक, संवेदनशील तथा देशभक्त व्यक्ति थे ।

नगर पालिका को मूर्ति बनाने में देरी क्यों हो रही थी?’ नेताजी का चश्मा पाठ के आधार पर बताइए?

इसे सुनेंरोकेंविलुप्त होती देशभक्ति की भावना। नगर पालिका को मूर्ति बनवाने में देरी क्यों हो रही थी? Answer: (b) उनको अच्छे मूर्तिकार की जानकारी नहीं थी।

मूर्तिकार ने मूर्ति को कितने समय में पूरा किया?

इसे सुनेंरोकेंमूर्ति बनाने में कुल कितना समय लगा था? दस दिन

सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा क्यों लगाई गयी होगी?

इसे सुनेंरोकेंपीएम मोदी ने किया था होलोग्राम मूर्ति का अनावरण ग्रेनाइट से निर्मित एक प्रतिमा तैयार होने पर वह होलोग्राम प्रतिमा की जगह लेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व में कहा था कि यह प्रतिमा स्वतंत्रता संग्राम में बोस के अतुलनीय योगदान के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी।

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मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: (क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के मन में बहुत उत्साह आया होगा। खुशी के मारे उसके पाँव धरती पर न पड़े होंगे। उसे लगा होगा कि अब पूरे कस्बे के लोग उसकी कला को देखेंगे, सराहेंगे।

नेता जी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब भावुक क्यों हो उठे?

इसे सुनेंरोकेंउतर : हवलदार साहब मूर्ति पर सरकंडे के चश्मे को देखकर पहले मायूस हो गए थे। उन्हें लगा होगा कि लोगों में अपने नायकों के लिए जरा सी भी इज्जत नहीं बची है। लेकिन उसके बाद वह यह सोच कर भाव हो गए, हवलदार साहब उस व्यक्ति के बारे में सोचकर भावुक हो उठे होंगे जिसने नेताजी को चश्मा लगाया होगा।

कैप्टन कौन था?

इसे सुनेंरोकेंकैप्टन फेरी लगाकर चश्मे बेचने वाला एक मरियल और लँगड़ा-सा व्यक्ति था, जो हाथ में संदूकची और एक बाँस में चश्मे के फ्रेम टाँगे घूमा करता था। कैप्टन नाम से लगता था कि वह फ़ौजी या किसी सिपाही जैसा शारीरिक रूप से मजबूत रोबीले चेहरे वाला बलिष्ठ व्यक्ति होगा, पर ऐसा कुछ भी न था।।

नगरपालिका ने नेताजी की मूर्ति चौराहे पर लगवाने की हड़बड़ाहट क्यों दिखाई?

इसे सुनेंरोकेंमित्र पाठ में नेताजी की मूर्ति को बनाने और चौराहे पर लगाने की हड़बड़ाहट नगर पालिका ने दिखाई थी क्योंकि शायद नगरपालिका को अच्छे मूर्तिकारों के बारे में जानकारी नहीं थी और मूर्ति का बजट अधिक था।

नेताजी का चश्मा पाठ में स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने का क्या कारण रहा होगा?

इसे सुनेंरोकेंनगरपालिका चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापित करना चाहती थी। नगरपालिका का मूर्ति बनाने का बजट सीमित था इसलिए उन लोगों ने मूर्ति बनाने का कार्य स्थानीय स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को दे दिया।

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आपके विचार में चश्मेवाला नेताजी की मूर्ति पर चश्मा क्यों लगाता होगा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर- कैप्टन का नेताजी की मूर्ति पर बार-बार चश्मा लगाना , उसके दिल में नेताजी व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान की भावना को प्रकट करता है। और उसका अपने देश के प्रति प्रेम को भी दर्शाता हैं।

मूर्ति के पास से गुजरते हुए अंत में हालदार साहब क्यों भावुक हो उठे थे?

इसे सुनेंरोकें(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे? उत्तर: (क) कैप्टन एक देश प्रेमी था, नेताजी जैसे देशभक्त के लिए उसके मन में सम्मान की भावना थी। उसके मर जाने के बाद हालदार साहब को लगा कि अब समाज में किसी के भी मन में नेताजी या देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना नहीं है।

नेताजी का चश्मा में कैप्टन कौन था?

इसे सुनेंरोकें’स्वयं प्रकाश’ द्वारा लिखित “नेताजी की चश्मा” कहानी में कैप्टन नाम का व्यक्ति कोई सेना का वास्तविक कैप्टन नही था। बल्कि उसकी देशभक्ति से संबंधित हरकतों के लिये लोग उसे कैप्टन कहते थे। कैप्टन एक बूढ़ा, लंगड़ा, कमजोर सा गरीब आदमी था, जो चश्मा बेचने का काम करता था।

3 कैप्टन क्या कार्य करता है?

इसे सुनेंरोकेंकैप्टन क्या कार्य करता था? (क) पान बेचता था (ख) पढ़ाता था (ग) मूर्ति बनाता था (घ) फेरी लगाकर चश्मा बेचता था 19. कस्बे की हृदयस्थली में क्या था? (ग) कैप्टन की दुकान (घ) सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा 20.

हालदार साहब भावुक क्यों?

उत्तर - हालदार साहब इतनी सी बात पर भावुक हो उठे क्योंकि नेताजी की मूर्ति को छोटे बच्चों के द्वारा पहनाया जाना इस बात का सबूत है कि हमारे देश के बड़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी महापुरुषों व शहीदों का सम्मान करते हैं । घर गृहस्थी जवान - जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती हैं और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढ़ती है ।

हालदार साहब क्या ठीक सोच रहे थे?

हालदार साहब शहर से गुजरते हुए क्या और क्यों सोच रहे थे? हालदार साहब शहर से गुजरते समय यह सोच रहे थे कि वे अब शहर के चौराहे पर रुककर न तो पान खाएंगे और न ही नेता जी की मूर्ति को देखेंगे क्योंकि अब नेता जी की मूर्ति का चश्मा नहीं होता। जब से कैप्टन की मृत्यु हुई है उन्हें नेता जी की मूर्ति पर चश्मा नहीं दिखाई दिया।

हालदार साहब उस कस्बे से कब और क्यों गुजरना पड़ता था?

हालदार साहब कब और कहाँ-से क्यों गुजरते थे? उत्तर: हालदार साहब हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में एक कस्बे से गुजरते थे। जहाँ बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति लगी थी।

हालदार साहब की आँखें कब भर आई?

वे जीप से उतरे और मूर्ति के सामने जाकर खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। यह देखकर हालदार साहब की आँखें भर आईं | ― ।