कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता है? - kavi ko sansaar achchha kyon nahin lagata hai?

प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं आधुनिक युग के प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने जीवन को जीने की शैली का परिचय देता है। समाज में रहकर व्यक्ति को सभी प्रकार के अनुभव होते हैं। कभी ये अनुभव मीठे होते हैं तो कभी खट्टे। इस दुनिया से कवि का सबंध प्रीति- कलह का है। कवि इस कविता में दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक सबंधी को उजागर करता है।

व्याख्या: कवि कहता है कि मैं इस संसारिक जीवन का भार अपने ऊपर लिए हुए फिरता रहता हूँ। इसके बावजूद मेरे अपने जीवन में प्यार का भी समावेश है। यह एक द्वंद्वात्मक स्थिति है। किसी प्रिय ने उसके हृदय की भावनाओं को स्पर्श करके उसकी हृदय रूपी वीणा के तारो को झनझना दिया अर्थात् उसके हृदय में प्रेम की लहर उत्पन्न कर दी। वह तो साँसों के केवल दो तार ही हुए जी रहा है।

कवि कहता है कि वह प्रेम रूपी मदिरा को पीकर मस्त रहता है। वह इस प्रेम रूपी मदिरा को पीकर इसकी मस्ती में डूबा रहता है। वह इस मस्ती में कभी भी संसार की बातों का ध्यान नहीं करता। संसार के लोग क्या कहते हैं, उसे इसकी परवाह नहीं है। यह संसार उनकी पूछ-ताछ करता है जो उसके कहने पर चलते हैं। इसके विपरीत कवि तो अपने मन के अनुसार गाता है अर्थात कवि संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता वह तो अपने मन का बात सुनता है और वही करता है। वह (कवि) तो अपने लिए अपने मन के अनुसार गीत गाता रहता है।

कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

Answer:

प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि की जग के साथ रहकर चलने की और जग से अलग रहने की स्थिति का वर्णन करता है। कवि जानता है कि मनुष्य संसार से अलग नहीं हो सकता। वह जानता है कि वह इस संसार का एक हिस्सा है। अतः वह कितना भी चाहे परन्तु इससे कटकर रहना संभव नहीं है। वह कहीं भी जाएगा, जग उसके साथ ही होगा। उसे इस जग से चाहे कष्ट ही क्यों न मिले लेकिन इससे अलग होना उसके बस की बात नहीं है।

इस स्थिति से निकलने के लिए उसने एक नया तरीका निकाला है। वह इस जग में रहते हुए भी इसकी उपेक्षा करता है। उसे संसार के लोगों द्वारा कितना भला-बुरा कहा जाता है लेकिन वह उन बातों पर ध्यान ही नहीं देता। उसने अपने अलग व्यक्तित्व तथा जीवन का निर्माण किया हुआ है। वह यहाँ निर्भीकता पूर्वक रहता है। अतः आज वह संसार के साथ रहकर भी उससे अलग हो गया है।

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Question 2:

जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

Answer:

कवि ने ऐसा संसार की स्थिति को दर्शाने के लिए कहा होगा। उसके अनुसार यह संसार उसे हैरान परेशान कर देता है। क्योंकि यहाँ पर दो विरोधी प्रवृत्ति के लोग एक साथ रहते हैं। कवि कहता है कि इस संसार में जहाँ चतुर लोग हैं, वही यहाँ पर सीधे तथा मूर्ख लोगों का अस्तित्व भी है। मूर्ख लोगों को ही उल्लू बनाकर यहाँ चतुर लोग अपना काम निकालते हैं। अर्थात यदि मूर्ख न हों, तो चतुर लोगों का अस्तित्व संभव नहीं है। अतः इस संसार में हर प्रकार के लोग साथ रहते हैं। इनमें कुछ अच्छे तथा कुछ बुरे हैं। आपस में विरोधी स्वभाव होने के बाद भी ये साथ ही रहते हैं।

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Question 3:

मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।

Answer:

प्रस्तुत पंक्ति में 'और' शब्द ने तीन बार आकर कवि के भाव को बहुत ही सुंदर रूप से व्यक्त किया है। इस तरह पंक्ति में चमत्कार उत्पन्न हो गया है, जोकि बहुत सुंदर प्रतीत होता है। उदाहरण के लिए यहाँ पर 'मैं और' का अभिप्राय कवि के स्वयं के अस्तित्व से है। इससे पता चलता है कि उसका व्यक्तित्व दूसरों से अलग है। दूसरे 'जग और' कहकर कवि संसार की विशेषता बताता है कि संसार उससे भिन्न है। अर्थात संसार उसकी भांति नहीं सोचता बल्कि भिन्न प्रकार से सोचता है। तीसरा 'और' शब्द कवि तथा संसार के मध्य के अंतर को दर्शाता है। यहाँ पर आया 'और' योजक है। इसके साथ ही यह कवि के उस विचार को दर्शा रहा है, जिसमें कवि स्वयं को तथा संसार को अलग-अलग मानता है। इससे पता चलता है कि कवि तथा संसार के मध्य संबंध मैत्रीपूर्ण नहीं है। दोनों साथ रहते हुए भी अलग-अलग हैं।


अतः 'और' शब्द कवि तथ संसार की स्थिति तथा दोनों के संबंधों को बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त करता है।

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Question 4:

शीतल वाणी में आग- के होने का क्या अभिप्राय है?

Answer:

इस पंक्ति का अभिप्राय है कि यदि उसकी वाणी शीतल है, तो यह मान लेना कि उसमें विनय, विनम्रता के भाव ही होंगे गलत है। उसकी वाणी में शीतलता के गुण के अतिरिक्त ओजस्वी गुण भी विद्यमान है। उसकी वाणी शीतल रहती है क्योंकि वह धीरज नहीं खोता। वह संसार का विद्रोह करता है लेकिन अपनी वाणी को शीतल बनाए रखना चाहता है। वह अपने हृदय की आग को वाणी में समाहित तो करता है लेकिन शीतलता के गुण को बनाए रखते हुए। भाव यह है कि वह अपने दिल में विद्यमान दुख को वाणी के माध्यम से व्यक्त करता है लेकिन यह ध्यान रखता है कि वाणी में कोमलता बनी रहे। इस तरह से वह अपने मन की भड़ास भी निकाल देता है और स्वयं का आपा नहीं खोता।

यह पंक्ति विरोधाभास को दर्शाती है क्योंकि शीतलता के साथ आग का मेल नहीं बैठता। जहाँ आग है, वहाँ शीतलता नहीं मिल सकती। आग का गुण है तपन देना। अतः तपन में शीतलता यानी ठंडापन नहीं मिल सकता। लेकिन यह पंक्ति कवि के विद्रोह को व्यक्त करने के लिए बड़ी उत्तम जान पड़ती है।

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Question 5:

बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

Answer:

बच्चों को लगता है शाम ढल आयी है। उनके माता-पिता अब उनके लिए भोजन लेकर आते ही होगें। अतः वे अपने माता-पिता को देखने के लिए नीड़ों से झाँक रहे हैं। माता-पिता से उनका मिलन हो जाएगा तथा उनके पेट की आग भी शांत हो जाएगी। इस तरह नीड़ों से झाँकना उनकी प्रतीक्षा को दर्शाता है।

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Question 6:

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है- की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

Answer:

यह पंक्ति पूरी कविता में चार बार प्रयुक्त की गई है। यह इस कविता की मुख्य पंक्ति है। यह पंक्ति कविता को लय प्रदान करती है। इसके कारण ही कविता में गेयता के गुण का समावेश होता है।

यह पंक्ति हमें सूचित करती है कि जीवन की घड़ियाँ भी इसी पंक्ति के समान है। हमें चाहिए कि समय का सदुपयोग करें और अपने उद्देश्य को समय के बीतने से पहले पा लें। समय निरंतर गति से चलता रहता है। यह किसी के लिए नहीं ठहरता है। अतः हमें समय रहते अपने काम कर लेने चाहिए।

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Question 1:

संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?

Answer:

यह सत्य सभी जानते हैं कि संसार में सुख-दुख समान रूप से आते-जाते रहते हैं। सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख का आना तय है। अतः हमें दुख का इतना मातम नहीं मानना चाहिए और सुख पर इतना अधिक प्रसन्न नहीं होना चाहिए। दोनों स्थितियों में समान भाव से रहना चाहिए। अतः जो मनुष्य इस सत्य को जान गया है, उसके लिए कष्ट इतने कष्टदायी नहीं रह जाते हैं। वह जानता है कि दुख की बदली अवश्य हटेगी और सुख रूपी प्रकाश अवश्य होगा। इस स्थिति में वह प्रसन्न रह पाएगा। जो व्यक्ति दुख से उभरेगा ही नहीं और कष्ट और कष्टदायी हो जाएँगे। यदि हम कष्ट को भूलकर प्रसन्न रहते हैं तथा विश्वास करते हैं कि सुख भी अवश्य आएँगे, तो हम खुशी और मस्ती का माहौल पैदा कर सकते हैं।

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Question 1:

❖ जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें।

आत्मकथ्य
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन की उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मोरी मौन व्यथा।
                                                 -जयशंकर प्रसाद

Answer:

दोनों कविताओं के मध्य आत्मनिष्ठता का भाव दिखाई देता है। बस यही सामनता दिखाई देती है। इसके अतिरिक्त दोनों कविताओं में कोई समानता नहीं है। आत्मपरिचय कविता में कवि को दुनिया की बातें परेशान तो करती हैं लेकिन दूसरे ही पल वह स्वयं को संभाल लेता है। स्वयं को उससे अलग कर लेता है। इसके विपरीत आत्मकथ्य का कवि जानता है कि दुनिया उसके जीवन में दुख के क्षणों को जानकर आनंद उठाना चाहती है। वह उन्हें बताना नहीं चाहता है लेकिन कुछ कर नहीं पाता। वह स्वयं को बेबस पाता है। दुनिया और उसका दुख उसे आक्रांत कर देते हैं।

कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?

उत्तर: कवि को यह संसार इसलिए प्रिय नहीं है क्योंकि यह अपूर्ण और अधूरा है जबकि कवि सपनों की दुनिया में खोया रहता है जहाँ कोई अभाव नहीं है।

कवि ने संसार को अपूर्ण क्यों कहा है?

कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है? कवि को संसार इसलिए अपूर्ण लगता है, क्योंकि यह समस्त संसार स्वार्थी है। यहाँ हर कोई अपनी स्वार्थ पूर्ति में डूबा हुआ है। संसार केवल उन्हीं को पूछता है तो उसकी जय-जयकार करते हैं।

कवि ने संसार को मूर्ख क्यों कहा है?

1 Answer. संसार के लोग निरंतर सत्य को जानने का दावा किया करते हैं किन्तु अहंकार के कारण वे सत्य को नहीं जान पाते। फिर भी वे सत्य की खोज में लगे हैं। इसी कारण कवि ने उन्हें 'मूढ़' (मूर्ख) कहा है।

कवि और संसार में क्या भिन्नता है?

कवि और संसार में यह विरोधी स्थिति है कि संसार के लोग तो धन-संपत्ति का संग्रह करते रहते हैं जबकि वह इन्हें ठुकराता है। वह तो इस जग को मिटाने का प्रयास करता रहता है। कौन व्यक्ति मूर्ख है और क्यों? कवि के अनुसार वह व्यक्ति मूर्ख है जो संसार की बातों में आ जाता है।