कवि निराला की आंख फागुन के सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है - kavi niraala kee aankh phaagun ke sundarata se kyon nahin hat rahee hai

Att Nahi Rahi hai Questions and Answers Class 10

प्रश्न 1. छायावाद की एक खास विशेषता है अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।

उत्तर: कविता के निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है कि प्रस्तुत कविता में अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाया गया है:

आभा फागुन की तन,

सट नहीं रही है।

और

कहीं सांस लेते हो,

घर-घर भर देते हो,

 उड़ने को नभ में तुम, 

पर पर कर देते हो, 

आँख हटाता हूँ तो,

हट नहीं रही है।

प्रश्न 2. कवि की आंख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?

उत्तर: कवि की आंख फागुन की सुंदरता से इसलिए हट नहीं रही है क्योंकि फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। इस महीने में प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत मनमोहक होता है। चारों ओर फैली हरियाली और खिले रंग-बिरंगे फूल अपनी सुगंध से सब को मुग्ध कर देते हैं। इसलिए कवि की आंखें फागुन की सुंदरता से मंत्रमुग्ध है, जो चाह कर भी वहां से नहीं हटती।

प्रश्न 3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?

उत्तर: प्रस्तुत कविता में कवि जीने फागुन की सर्वव्यापी सौंदर्य और मादक रूप के प्रभाव को दर्शाया है। पेड़ पौधे में पत्ते पाकर खेल रहे हैं फूलों की खुशबू वातावरण को सुगंधित कर रही है बाग बगीचों में चारों ओर हरियाली छा गई है डालिया कहीं हरी तो कहीं लाल पंक्तियों से भरी हुई हैं।

प्रश्न 4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?

उत्तर: फागुन बाकी ऋतुओं से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है:

१. इस समय प्रकृति की शोभा अपने चरम पर होती है।

२. पेड़-पौधे नए पत्तों, फल और फूलों से लद जाते हैं।

३. हवा सुगंधित हो उठती है।

४. आकाश स्वच्छ होता है।

५. बाग-बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं।

प्रश्न 5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएं बताएं।

उत्तर: महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ जी छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनके काव्य-शिल्प की निम्नलिखित विशेषताएं हैं:

१. कविताओं में तत्सम शब्दों का प्रयोग उचित मात्रा में किया गया है।

२. कविताओं में अनुप्रास रूपक, यमक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग अच्छे तरीके से किया गया है।

३. कविताओं की भाषा सरल, सहज, सुबोध और प्रवाहमयी है।

अभ्यास

प्रश्न 1: छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।

उत्तर: कविता की कई पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है। उदाहरण के लिए; जब कवि कहता है, ‘आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।‘ एक अन्य उदाहरण उस पंक्ति से लिया जा सकता जिसमें कवि कहता है कि उसकी आँखें हट नहीं रही है चाहे वह उन्हें लाख हटाना चाहता है।

प्रश्न 2: कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों हट नहीं रही है?

उत्तर: फागुन की सुंदरता इतनी गजब की है कि कवि के न चाहते हुए भी उसकी आँखें उसपर से हट नहीं रही है। ऐसा अक्सर होता है जब हम किसी अत्यंत खूबसूरत चीज या व्यक्ति को देखते हैं तो हमारी आँखें उसपर जैसे अनंत काल के लिए टिक जाती हैं।

प्रश्न 3: फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?

उत्तर: हर ऋतु की अपनी विशेषता होती है। लेकिन फागुन शायद अन्य सब ऋतुओं से अलग है। फागुन में दृश्यपटल पर तरह तरह के रंग बिखरे हुए मिलते हैं। यह वह ऋतु होती है जब पेड़ों में नए पत्ते निकलते हैं और नाना प्रकार के फूल खिलते हैं। हवा में फूलों की मादक सुगंध भरी हुई होती है।

प्रश्न 4: इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर: निराला प्रकृति के बारे में लिखने वाले कवि थे। उनकी कविताओं में खड़ी हिंदी का प्रयोग हुआ है। वे विभिन्न प्रकार के उपमाओं और अलंकारों के संयोजन से प्रकृति की सुंदरता का बयान करते हैं।


Solution : फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। उसका रूप-सौन्दर्य रंग-बिरंगे फूलों, पत्तों और हवाओं में प्रकट हो रहा है। फागुन के कारण मौसम इतना सुहाना हो गया है कि उस पर से आँख हटाने का मन नहीं करता ।


निराला विद्रोही कवि थे इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी। उनकी कविताओं के शिल्प में विद्यमान प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

(i) भाषागत कोमलता- उनकी भाषा में एकरसता की कमी है। उन्होंने सरल, व्यावहारिक, सुबोध, सौष्ठव प्रधान और अलंकृत भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा पर संस्कृत का विशेष प्रभाव है-

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो।

(ii) कोमलता- निराला की कविताओं में कोमलता है। उन्होंने विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से कोमलता को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है-
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्‌युत्-छवि उर में, कवि नवजीवन वाले।

(iii) शब्दों की मधुर योजना- निराला जी ने अन्य छायावादी कवियों की तरह भाषा को भाषानुसारिणी बनाने के लिए शब्दों की मधुर योजना की है यथा-
शिशु पाते हैं माताओं के
वक्ष-स्थल पर भूला गान
माताएँ भी पातीं शिशु के
अधरों पर अपनी मुस्कान।

(iv) लाक्षणिक प्रयोग-निराला की भाषा में लाक्षणिक प्रयोग भरे पड़े हैं। उन्होंने परंपरा के प्रति अपने विरोध- भाव को प्रकट करते समय भी लाक्षणिकता का प्रयोग ही किया था-
कठिन शृंखला बज-बजा कर
गाता हूँ अतीत के गान
मुझ भूले पर उस अतीत का
क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

(v) संगीतात्मकता- छायावादी कवियों की तरह निराला ने भी तुक के संगीत का प्रयोग प्राय: नहीं किया था और उसके स्थान पर लय-संगीत को अपनाया था। उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। उनकी यह विशेषता कविता में स्थान- स्थान पर दिखाई देती है-
कहीं पड़ी है उर में
मंद-मंद पुष्प-माला
पाट-पाटा शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

(vi) चित्रात्मकता- निराला जी ने शब्दों के बल पर भाव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बादलों का शब्द चित्र ऐसा खींचा है कि वे काले घुंघराले बालों के समान आँखों के सामने झूमते-गरजते-चमकते से प्रतीत होने लगते हैं।

(vii) लोकगीतों जैसी भाषा- निराला ने अनेक गीतों की भाषा लोकगीतों के समान प्रयुक्त की हैं। कहीं-कहीं उन्होंने कजली और गजल भी लिखी हैं। इसमें कवि ने देशज शब्दों का खुल कर प्रयोग किया है-

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

(viii) मुक्त छंद- निराला ने मुख्य रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त छंद में प्रकट किया है। उन्होंने छंद से मुक्त रह कर अपने काव्य की रचना की है। इनके मुक्त छंद को अनेक लोगों ने खंड छंद, केंचुआ छंद, रबड़ छंद, कंगारू छंद आदि नाम दिए हैं।

(ix) अलंकार योजना- कवि ने समान रूप से शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग किया है। इससे इनके काव्य में सुंदरता की वृद्धि हुई है।

(i) पुनरुक्ति प्रकाश-
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले।

(ii) उपमा-बाल कल्पना के-से पाले।

(iii) वीप्सा-विकल विकल, उन्मन थे उन्मन

(iv) प्रश्न-क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

(v) अनुप्रास- कहीं हरी, कहीं लाल

(vi) यमक-पर-पर कर देते हो।

वास्तव में निराला ने मौलिक शिल्प योजना को महत्व दिया है जिस कारण साहित्य में उनकी अपनी ही पहचान है।