लोंग की खेती कौन से राज्य में होती है? - long kee khetee kaun se raajy mein hotee hai?

  • लौंग की खेती (Clove Farming) से सम्बंधित जानकारी
    • लौंग की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान (Clove Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
    • लौंग के खेत की तैयारी (Clove Field Preparation)
    • लौंग के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Clove Plants Correct time and method of Transplanting )
    • लौंग के पौधों की सिंचाई (Clove Plants Irrigation)
    • लौंग के पौधों में उर्वरक की सही मात्रा (Fertilizer Right Amount)
    • लौंग के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Clove Plants Weed Control)
    • लौंग के खेत से अतिरिक्त कमाई (Clove Farm Extra Earnings)
    • लौंग के पौधे में लगने वाले रोग एवं रोकथाम (Clove Plant Diseases and Prevention)
    • लौंग के फलो की तुड़ाई पैदावार और लाभ (Clove Harvesting Yield and Benefits)

लौंग को एक मसाला फसलकी खेती के रूप में उगाया जाता है | लौंग को खासकर खाने के मसाले के लिए उपयोग में लाया जाता है | इसके अतिरिक्त इसे आयुर्वेदिक दवाइयों में भी इस्तेमाल करते है | लौंग की तासीर अधिक गर्म होती है, जिस वजह से सर्दियों के मौसम में सर्दी जुकाम हो जाने पर लौंग का काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिल जाता है |

लोंग की खेती कौन से राज्य में होती है? - long kee khetee kaun se raajy mein hotee hai?

लोंग की खेती कौन से राज्य में होती है? - long kee khetee kaun se raajy mein hotee hai?

हिन्दू धर्म में लौंग को हवन और पूजा में भी इस्तेमाल करते है | लौंग एक सदाबहार पौधा होता है, जिसका पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षो तक पैदावार देता है, तथा इसका पौधा 150 वर्षो तक जीवित रहता है | किसानभाई लौंग की खेती कर अधिक समय तक पैदावार प्राप्त कर सकते है | इस लेख में आपको लौंग की खेती कैसे होती है (Clove Farming in Hindi) और लौंग का क्या रेट है, इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |

लोंग की खेती कौन से राज्य में होती है? - long kee khetee kaun se raajy mein hotee hai?

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लौंग की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान (Clove Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)

लौंग की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी तथा नम कटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है | इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए| जलभराव की स्थिति में इसके पौधों के ख़राब होने की स्थिति बढ़ जाती है | लौंग के पौधों को सामान्य वर्षा की आवश्यकता होती है, तथा अधिक तेज धूप और सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए हानिकारक होता है | पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए छायादार जगह और 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | इसकी खेती के लिए भूमि का P.H. मान सामान्य होना चाहिए |

लौंग के खेत की तैयारी (Clove Field Preparation)

लौंग का एक पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाने पर तक़रीबन 150 वर्षो तक पैदावार देता है, किन्तु लौंग की उत्कृष्ट पैदावार 26 वर्ष तक ही होती है | इसलिए लौंग की फसल करने से पहले इसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | सबसे पहले खेत की तिरछी गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जायेंगे | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगा कर दो से तीन जुताई करवा दे, इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी, तत्पश्चात एक बार फिर खेत में पाटा लगा कर जुतवा दे जिससे खेत पूरी तरह से समतल हो जायेगा, और जलभराव नहीं होगा |

इसके बाद खेत में 15 से 20 फ़ीट की दूरी रखते हुए एक मीटर व्यास चौड़े और डेढ़ से दो फ़ीट गहरे गड्ढो को तैयार कर लेना चाहिए | इन गड्डो को तैयार करते वक़्त उन्हें प्राकृतिक और रासायनिक उवर्रक की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्ढो में भर देना चाहिए | गड्ढो में मिट्टी को भरने के पश्चात उनकी गहरी सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे पानी अच्छी तरह से अंदर तक पहुंच जाये |

लौंग के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Clove Plants Correct time and method of Transplanting )

लौंग के पौधों की रोपाई से पहले उसके बीजो से पौधों को तैयार किया जाता है | बीजो से पौधों को तैयार करने से पहले बीजो को उपचारित कर लेना चाहिए | चूँकि लौंग के बीजो से पौधों को तैयार होने में 2 वर्ष का समय लग जाता है, इसलिए यदि आप चाहे तो इसके पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद सकते है, इससे आपका समय बचेगा और पैदावार भी जल्द प्राप्त होगी | इसके तैयार पौधों को बारिश के मौसम में लगाना काफी उपयुक्त माना जाता है |

इस दौरान सिंचाई की कम जरूरत होती है, तथा मौसम में आद्रता बनी रहती है, जो पौधों के अंकुरण के लिए अधिक फायदेमंद होता है | लौंग के पौधों को खेत में तैयार किये गड्ढो में लगाया जाता है, इससे पहले इन गड्डो में एक छोटा सा गड्डा बना लिया जाता है | फिर इन छोटे गड्ढो में पौधों को लगा कर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है | लौंग की खेती मिश्रित खेती की तरह की जाती है | इसलिए इसके पौधों को अखरोट या नारियल के बगीचों में भी लगाया जा सकता है | जिससे पौधों को छायादार वातावरण मिल जाता है, और पौधा अच्छे से विकास करता है |

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लौंग के पौधों की सिंचाई (Clove Plants Irrigation)

इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है| प्रथम सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए | यदि पौधों को बारिश के मौसम में लगाया गया है, तो आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए | इसके अतिरिक्त जिन पौधों की रोपाई गर्मियों के मौसम में की गई है, उन्हें सप्ताह में एक बार पानी जरूर दे | वही सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए |

लौंग के पौधों में उर्वरक की सही मात्रा (Fertilizer Right Amount)

लौंग के अच्छे उत्पादन के लिए इसके पौधों को सही मात्रा में उवर्रक देना जरूरी होता है| खेत में गड्डो को तैयार करने के दौरान 15 से 20 किलो पुरानी गोबर की खाद के साथ 100 GM N.P.K.की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर गड्ढो में भर देना चाहिए | इस गड्ढो को पौध रोपाई से एक महीने पहले तैयार कर लेना चाहिए | इसके पौधों में उवर्रक की मात्रा को पौध वृद्धि के साथ बढ़ा देना चाहिए, तथा पौधों को खाद देने के पश्चात् सिंचाई कर देनी चाहिए |

लौंग के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Clove Plants Weed Control)

लौंग के पौधों को भी खरपतवार नियंत्रण की जरूरत होती है | इसके लिए पौधों की रोपाई के तक़रीबन 20 दिन बाद खेत में खरपतवार दिखने पर उनकी प्राकृतिक तरीके से निराई – गुड़ाई कर हटा देना चाहिए | इसके बाद समय-समय पर जब आपको खेत में खरपतवारदिखाई दे तो उसकी गुड़ाई कर दे |

लौंग के खेत से अतिरिक्त कमाई (Clove Farm Extra Earnings)

पौधा रोपाई के बाद लौंग के पौधों को पूर्ण रूप से तैयार होने में 4 से 5 वर्ष का समय लग जाता है | इस दौरान यदि किसान भाई चाहे तो पौधों के बीच में खाली जमीन पर कंदवर्गीय औषधीय, मसाला फसलों और सब्जियों को ऊगा कर अतिरिक्त कमाई कर सकते है, इससे उन्हें आर्थिक परेशानिया नहीं उठानी पड़ेगी और वह लौंग के तैयार होने तक अच्छी पैदावार भी प्राप्त कर सकेंगे |

लौंग के पौधे में लगने वाले रोग एवं रोकथाम (Clove Plant Diseases and Prevention)

इसके पौधों में बहुत ही कम रोग लगते है,लेकिन कुछ कीट रोग ऐसे होते है, जो पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें हानि पहुंचाते है | इसमें लगने वाले रोग इस प्रकार है, सुंडी, सफ़ेद मक्खी | इसके अतिरिक्त खेत में जलभराव होने पर भी पौधों में जड़ सड़न रोग देखने को मिल जाते है,जिसके बचाव के लिए खेत में जलभराव की स्थिति न पैदा होने दे |

लौंग के फलो की तुड़ाई पैदावार और लाभ (Clove Harvesting Yield and Benefits)

लौंग के पौधे रोपाई के तक़रीबन 4 से 5 वर्ष जैसे लम्बे समय बाद पैदावार देना आरम्भ करते है | लौंग केफलपौधों में गुच्छे के भांति लगते है, जो देखने में गुलाबी रंग के होते है | इसके फूलो को खिलने से पहले तोड़ लेना चाहिए | ताज़ी कलियाँ लालिमा लिए हुए हरी होती है | इसका फल अधिकतम 2 CM लम्बा होता है, जो सूखने के बाद लौंग का रूप ले लेता है |

लौंग की शुरुआती पैदावार काफी कम होती है, किन्तु एक बार जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है, तो इसके एक पौधे में तक़रीबन 2 से 3 KG लौंग प्राप्त हो जाती है | लौंग का बाज़ारी भाव 800 से 1000 रूपए के मध्य होता है, तथा एक एकड़ के खेत में 100 से अधिक पौधे तैयार हो जाते है | इस हिसाब से किसान भाई लौंग की खेती कर ढाई से तीन लाख रूपए तक की कमाई आसानी से कर सकते है |

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लौंग का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

इस शब्द से कील या काँटे का बोध होता है, जिससे लौंग की आकृति का सादृश्य है। दूसरी तरफ लौंग का लैटिन नाम 'पिपर' (Piper) संस्कृत/मलयालम/तमिल के 'पिप्पलि' सेआया हुआ लगता है। लौंग एक प्रकार का मसाला है। इस मसाले का उपयोग भारतीय पकवानो में बहुतायत में किया जाता है।

भारत में लौंग की खेती कहाँ होती है?

इसकी खेती गर्म प्रदेशों में ही करना ज्यादा उपयुक्त है. लौंग के पौधों के विकास के लिए 10 डिग्री सेंटीग्रड से ज्यादा का तापमान होना चाहिए. वहीं उसके पेड़ के वृद्धि में 30 से 35 डिग्री तक तापमान की आवश्यकता होती है. ठंडे स्थानों पर इसकी खेती करने से बचना चाहिए वरना किसानों को भारी नुकसान हो जा सकता है.

लौंग का पेड़ कितना बड़ा होता है?

इसका उपयोग मुह और दांतों में कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है।