NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3 बस की यात्रा Show
These NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3 बस की यात्रा Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts. बस की यात्रा NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3Class 8 Hindi Chapter 3 बस की यात्रा Textbook Questions and Answersकारण बताएँ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. पाठ से आगे प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मन-बहलाना प्रश्न 1. भाषा की बात प्रश्न 1. वश – सलिल को सुधारना मेरे वश में नहीं। बस – बहुत हो चुका मेरे भाई! अब बस करो। प्रश्न 2. दो वाक्यों को एक साथ जोड़ने के लिए ‘कि’ का प्रयोग (क)
‘या’, ‘अथवा’ के लिए भी ‘कि’ का प्रयोग किया जाता है। उस स्थिति में भी दो वाक्य जुड़ते हैं। जैसे-
प्रश्न 3.
उपर्युक्त वाक्यों में ‘चलना’ के विभिन्न अर्थ वाले रूप दिए गए हैं। प्रश्न 4. प्रश्न 5.
गुणवाचक विशेषण-
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. बोध-प्रश्न निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (क) बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है! प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) एकाएक बस रुक गई। मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकालकर उसे बगल में रखा और नली डालकर इंजन में भेजने लगा। अब मैं उम्मीद कर रहा था कि थोड़ी देर बाद बस-कंपनी के हिस्सेदार इंजन को निकालकर गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोल पिलाएँगे, जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ग) बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (घ) क्षीण चाँदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता, जैसे कोई वृद्धा थककर बैठ गई हो। हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. बस की यात्रा Summaryपाठ का सार लेखक को सतना से जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी। उसके लिए पन्ना से चार बजे सतना जाने वाली बस पकड़नी थी। पाँच मित्रों में से दो को सुबह दफ्तर जाना था। लोगों ने इस बस से सफर करने की मनाही की। बस बहुत पुरानी थी। इतनी पुरानी कि उस पर सवार कैसे हुआ जाए, यह सोचना पड़ रहा था। बस कम्पनी के एक हिस्सेदार भी इसी बस से जा रहे थे। पता चला कि यह बस चलती भी है। डॉक्टर मित्र ने कहा कि यह बस हमें बेटों की तरह गोद में लेकर जाएगी। जो बिदा करने के लिए आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैसे अंतिम विदाई देने आए हों। उन्हें पन्ना तक पहुँचने में संदेह था। इंजन स्टार्ट हुआ तो पूरी बस हिलने लगी। खिड़कियों के काँच नदारद थे। बस सचमुच चल पड़ी। कभी लगता कि सीट बॉडी छोड़कर आगे निकल गई। पेट्रोल की टंकी में छेद होने पर बस रुक गई। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकाल बगल में रख लिया और एक नली से इंजन में भेजना शुरू किया। कुछ भी हो सकता था। ब्रेक फेल हो सकता था, स्टीयरिंग टूट सकता था। कभी लगता कि बस किसी भी पेड़ से टकरा जाएगी या झील में गोता लगा लेगी। अगर इसकी मृत्यु हो गई तो जंगल में ही इसका अंतिम संस्कार करना पड़ेगा। हिस्सेदार ने इंजन सुधारा तो बस कुछ आगे बढ़ी। बस की रोशनी भी जाती रही। पुलिया पर पहुँची तो टायर फिस्स हो गया। बस नाले में गिर जाती तो सब लोग देवताओं की बाहों में होते। दूसरा घिसा टायर लगा तो बस आगे बढ़ी। हमने पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। शब्दार्थ : हाजिर-उपस्थित, मौजूद; डाकिन-चुडैल, डाइन; वयोवृद्ध-उम्र में बड़ी; वृद्धावस्था- बुढ़ापा; विश्वसनीय-विश्वास के योग्य; कूच करना-प्रस्थान करना, मरना; निमित्त-कारण; सविनय-आज्ञा न मानना; तरकीबें-उपाय; इत्तफाक- अचानक होने वाली घटना; दयनीय-दया के योग्य; ग्लानि-दुख, खेद; प्राणांत-मृत्यु; बियाबान-जंगल; अन्त्येष्टि-अंतिम संस्कार; उत्सर्ग- बलिदान; प्रयाण-प्रस्थान; बेताबी-बेचैनी; इत्मीनान-संतोष; ज्योति-रोशनी। लेखक के मन में बस के हिस्सेदार के लिए श्रद्धा के भाव क्यों आए?लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई? उत्तर:- लेखक के मन में बस कंपनी के हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा इसलिए जाग गई कि वह टायर की स्थिति से परिचित होने के बावजूद भी बस को चलाने का साहस जुटा रहा था। कंपनी का हिस्सेदार अपनी पुरानी बस की खूब तारीफ़ कर रहा था।
लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं?उत्तर : लेखक के मन में हिस्सेदार के लिए श्रद्धा इसलिए जग गयी, क्योंकि बस के टायर घिस कर बिल्कुल खराब हो रहे थे। परिणामस्वरूप पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर हो गया था जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछल कर नाले में गिर जाती।
लेखक को बस के इंजन में बैठे होने का अनुभव क्यों हो रहा था?लेखक कहता है बस के स्टार्ट होते हुए वो इतना शोर कर रहा था मानो कि उन्हें ऐसा लगा जैसे इंजन आगे नहीं अपितु पूरी बस में लगा हो, क्योंकि उसका इंजन दयनीय स्थिति में था। इससे पूरी बस हिल रही थी, इसलिए उन्हें लगा की सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।
बस को देखकर लेखक के मन में कौन सा भाव उमड़ पड़ा?Answer: उत्तर:- बस की जर्जर अवस्था से लेखक को ऐसा महसूस हो रहा था कि बस की स्टीयरिंग कहीं भी टूट सकती है तथा ब्रेक फेल हो सकता है। ऐसे में लेखक को डर लग रहा था कि कहीं उसकी बस किसी पेड़ से टकरा न जाए।
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