मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर मुकदमा क्यों चलाया गया? - mugal baadashaah bahaadur shaah zaphar par mukadama kyon chalaaya gaya?

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On This Day: 20 सितंबर को ही अंग्रेजों ने दिल्ली पर फिर से अपना कब्जा स्थापित किया था और बहादुर शाह जफर के तीन बेटों को भी इसी दिन उन्हीं के आंखों के सामने गोली मार दी गई थी. जबकि 21 सितंबर को अंग्रेजों ने जफर को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया था.

मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का जिक्र आते ही उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत की भी बात होती है. कहने को तो वह 1837 में बादशाह बनाए गए, लेकिन तब तक देश के काफी बड़े इलाके पर अंग्रेजों का कब्जा हो चुका था. सल्तनत के नाम पर उनके पास कुछ ही इलाके बचे थे. 1857 में क्रांति (Revolution of 1857) की चिंगारी भड़की तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिंदुस्तान का सम्राट माना और उन्होंने भी अंग्रेजों को खदेड़ने का आह्वान किया, लेकिन 82 बरस के बूढ़े बहादुर शाह जफर की अगुवाई में लड़ी गई यह लड़ाई कुछ ही दिन चल सकी.

20 सितंबर 1857 को अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर (Badshah Bahadur Shah Zafar) को आत्मसमर्पण करना पड़ा था और उन्हें ब्रिटिश मेजर होसॉन ने पकड़ लिया था. दरअसल, मई 1857 में आजादी की पहली लड़ाई शुरू हुई थी जिसके बाद अंग्रेजों ने मौजूदा पुरानी दिल्ली जिसे वॉल्ड सिटी भी कहते हैं, उसकी तीन महीने तक घेराबंदी की थी. 14 सितंबर को ब्रिटिश फौजों की जीत हुई थी तथा शहर पर उनका कब्जा हो गया था और 17 सितंबर को बहादुर शाह जफर को लाल किला छोड़ना पड़ा था. जबकि 20 सितंबर को उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था.

21 सितंबर को हुई थी बहादुर शाह जफर की गिरफ्तारी

20 सितंबर को ही अंग्रेजों ने दिल्ली पर फिर से अपना कब्जा स्थापित किया था और बहादुर शाह जफर के तीन बेटों को भी इसी दिन उन्हीं के आंखों के सामने गोली मार दी गई थी. जबकि 21 सितंबर को अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया था. इसके बाद उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. ब्रिटिश शासन (British Rule) के खिलाफ मंगल पांडे ने ही 1857 की क्रांति (1857 Revolt) का आगाज किया था.

मंगल पांडे ने उठाई थी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज

मंगल पांडे (Mangal Pandey) वो पहले शख्स थे, जिसने न केवल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि अंग्रेजों की साख तक को हिलाकर रख दिया था. वैसे तो मंगल पांडे सैनिक के तौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) में भर्ती हुए थे, मगर जब उन्होंने देखा कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीयों को खूब प्रताड़ित करती है, तो उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उनके अंदर ब्रिटिश राज के खिलाफ इतना गुस्सा था कि उन्होंने विद्रोह कर दिया. कहा जाता है 1857 के विद्रोह के पीछे वो अफवाह भी थी, जिसमें कहा गया था कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक हिंदुस्तानी सैनिकों को मारने आ रहे हैं.

इतिहास में 20 सितंबर की तारीख में दर्ज कई ऐसी ही घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा:

1388: दिल्ली के सुल्तान फिरोज तुगलक तृतीय का निधन.

1831: भाप से चलने वाली पहली बस बनाई गयी.

1856: भारत के महान संत और समाज सुधारक श्री नारायण गुरु का जन्म.

1857: अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने आत्मसमर्पण किया. कैदी बनाकर लाल किले लाए गए.

1878: मद्रास के अखबार द हिंदू के साप्ताहिक संस्करण का प्रकाशन शुरू हुआ था.

1933: सामाजिक कार्यकर्ता और भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्य करने वाली अंग्रेज महिला एनी बेसेंट का निधन.

1942: भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी कनकलता बरुआ का निधन.

1999: तमिल सिनेमा की स्वप्न सुंदरी के नाम से प्रसिद्ध अभिनेत्री राजकुमारी का निधन. उनकी फिल्म हरिदास 114 सप्ताह तक चेन्नई के सिनेमाघर में चली थी.

2001: अमेरिका ने 150 लड़ाकू विमान खाड़ी में उतारे.

2006: ब्रिटेन के रॉयल बॉटैनिक गार्डन्स के वैज्ञानिकों को 200 साल पुराने बीज उगाने में कामयाबी मिली.

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मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर मुकदमा क्यों चलाया गया? - mugal baadashaah bahaadur shaah zaphar par mukadama kyon chalaaya gaya?

बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जानेे-माने शायर थे। उन्होंने 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई ।

जब मेजर हडसन मुगल सम्राट को गिरफ्तार करने के लिए हुमायूं के मकबरे में पहुँचा, जहाँ पर बहादुर शाह ज़फर अपने दो बेटों के साथ छुपे हुए थे, तो उसने (मेजर हडसन) की स्वयं उर्दू का थोड़ा ज्ञान रखता था ,कहा -

"दमदमे में दम नहीं है ख़ैर माँगो जान की.. ऐ ज़फर ठंडी हुई अब तेग हिंदुस्तान की.."

इस पर ज़फ़र ने उत्तर दिया-

"ग़ाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की.. तख़्त ए लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की."

जीवन परिचय[संपादित करें]

इनका का जन्म 24 अक्तूबर, 1775 में हुआ था। उनके पिता अकबर शाह द्वितीय और माँ लालबाई थीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद जफर को 28 सितंबर, 1837 में मुगल बादशाह बनाया गया। यह दीगर बात थी कि उस समय तक दिल्ली की सल्तनत बेहद कमजोर हो गई थी और मुगल बादशाह नाममात्र का सम्राट रह गया था।

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जफर को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। उनके पुत्रों और प्रपौत्रों को ब्रिटिश अधिकारियों ने सरेआम गोलियों से भून डाला। यही नहीं, उन्हें बंदी बनाकर रंगून ले जाया गया, जहां उन्होंने सात नवंबर, 1862 में एक बंदी के रूप में दम तोड़ा। उन्हें रंगून में श्वेडागोन पैगोडा के नजदीक दफनाया गया। उनके दफन स्थल को अब बहादुर शाह जफर दरगाह के नाम से जाना जाता है। आज भी कोई देशप्रेमी व्यक्ति जब तत्कालीन बर्मा (म्यंमार) की यात्रा करता है तो वह जफर की मजार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देना नहीं भूलता। लोगों के दिल में उनके लिए कितना सम्मान था उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिंदुस्तान में जहां कई जगह सड़कों का नाम उनके नाम पर रखा गया है, वहीं पाकिस्तान के लाहौर शहर में भी उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखा गया है। बांग्लादेश के ओल्ड ढाका शहर स्थित विक्टोरिया पार्क का नाम बदलकर बहादुर शाह जफर पार्क कर दिया गया है।

1857 में जब हिंदुस्तान की आजादी की चिंगारी भड़की तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिंदुस्तान का सम्राट माना और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी। अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों की बगावत को देख बहादुर शाह जफर का भी गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने अंग्रेजों को हिंदुस्तान से खदेड़ने का आह्वान कर डाला। भारतीयों ने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों को कड़ी शिकस्त दी।

शुरुआती परिणाम हिंदुस्तानी योद्धाओं के पक्ष में रहे, लेकिन बाद में अंग्रेजों के छल-कपट के चलते प्रथम स्वाधीनता संग्राम का रुख बदल गया और अंग्रेज बगावत को दबाने में कामयाब हो गए। बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली, लेकिन मेजर हडसन ने उन्हें उनके बेटे मिर्जा मुगल और खिजर सुल्तान व पोते अबू बकर के साथ पकड़ लिया।

अंग्रेजों ने जुल्म की सभी हदें पार कर दीं। जब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए। उन्होंने अंग्रेजों को जवाब दिया कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं। आजादी के लिए हुई बगावत को पूरी तरह खत्म करने के मकसद से अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह को देश से निर्वासित कर रंगून भेज दिया।

उर्दू के कवि[संपादित करें]

मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर मुकदमा क्यों चलाया गया? - mugal baadashaah bahaadur shaah zaphar par mukadama kyon chalaaya gaya?

फारसी में कविता, जो बहादुरशाह ने लिखा।.

बहादुर शाह जफर सिर्फ एक देशभक्त मुगल बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मशहूर कवि भी थे। उन्होंने बहुत सी मशहूर उर्दू कविताएँ लिखीं, जिनमें से काफी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के समय मची उथल-पुथल के दौरान खो गई या नष्ट हो गई। उनके द्वारा उर्दू में लिखी गई पंक्तियां भी काफी मशहूर हैं-

देश से बाहर रंगून में भी उनकी उर्दू कविताओं का जलवा जारी रहा। वहां उन्हें हर वक्त हिंदुस्तान की फिक्र रही। उनकी अंतिम इच्छा थी कि वह अपने जीवन की अंतिम सांस हिंदुस्तान में ही लें और वहीं उन्हें दफनाया जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में,
किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में।

बुलबुल को बागबां से न सैयाद से गिला,
किस्मत में कैद लिखी थी फसल-ए-बहार में।

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में।

एक शाख गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमान,
कांटे बिछा दिए हैं दिल-ए-लाल-ए-ज़ार में।

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन,
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तेज़ार में।

दिन ज़िन्दगी खत्म हुए शाम हो गई,
फैला के पांव सोएंगे कुंज-ए-मज़ार में।

कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में॥


बहादुर शाह जफर जैसे कम ही शासक होते हैं जो अपने देश को महबूबा की तरह मोहब्बत करते हैं और कू-ए-यार (प्यार की गली) में जगह न मिल पाने की कसक के साथ परदेस में दम तोड़ देते हैं। यही बुनियादी फ़र्क़ था मूलभूत हिंदुस्तानी विचारधारा के साथ जो अपने देश को अपनी माँ मानते है।

बादशाह जफर ने जब रंगून में कारावास के दौरान अपनी आखिरी सांस ली तो शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर गजल का यह शेर जरूर रहा होगा- "कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।"

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर उर्दू के एक बड़े शायर के रूप में भी विख्यात हैं। उनकी शायरी भावुक कवि की बजाय देशभक्ति के जोश से भरी रहती थी और यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेज शासकों को तख्ते-लंदन तक हिन्दुस्तान की शमशीर (तलवार) चलने की चेतावनी दी थी।

जनश्रुतियों के अनुसार प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब बादशाह जफर को गिरफ्तार किया गया तो उर्दू जानने वाले एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने उन पर कटाक्ष करते हुए यह शेर कहा- "दम में दम नहीं, अब खैर मांगो जान की ए जफर अब म्यान हो चुकी है, शमशीर (तलवार) हिन्दुस्तान की..!!" इस पर जफर ने करारा जवाब देते हुए कहा था-"ग़ज़ियों में बू रहेगी जब तलक इमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग (तलवार) हिन्दुस्तान की..!!"

भारत में मुगलकाल के अंतिम बादशाह कहे जाने वाले जफर को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिल्ली का बादशाह बनाया गया था। बादशाह बनते ही उन्होंने जो चंद आदेश दिए, उनमें से एक था गोहत्या पर रोक लगाना। इस आदेश से पता चलता है कि वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के कितने बड़े पक्षधर थे।

गोरखपुर विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्राध्यापक डॉ॰ शैलनाथ चतुर्वेदी के अनुसार 1857 के समय बहादुर शाह जफर एक ऐसी बड़ी हस्ती थे, जिनका बादशाह के तौर पर ही नहीं एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के रूप में भी सभी सम्मान करते थे। इसीलिए बेहद स्वाभाविक था कि मेरठ से विद्रोह कर जो सैनिक दिल्ली पहुंचे उन्होंने सबसे पहले बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह बनाया।

चतुर्वेदी ने बातचीत में कहा कि जफर को बादशाह बनाना सांकेतिक रूप से ब्रिटिश शासकों को एक संदेश था। इसके तहत भारतीय सैनिक यह संदेश देना चाहते थे कि भारत के केन्द्र दिल्ली में विदेशी नहीं बल्कि भारतीय शासक की सत्ता चलेगी। बादशाह बनने के बाद बहादुर शाह जफर ने गोहत्या पर पाबंदी का जो आदेश दिया था वह कोई नया आदेश नहीं था। बल्कि अकबर ने अपने शासनकाल में इसी तरह का आदेश दे रखा था। जफर ने महज इस आदेश का पालन फिर से करवाना शुरू कर दिया था।

देशप्रेम के साथ-साथ जफर के व्यक्तित्व का एक अन्य पहलू शायरी थी। उन्होंने न केवल गालिब, दाग, मोमिन और जौक जैसे उर्दू के बड़े शायरों को तमाम तरह से प्रोत्साहन दिया, बल्कि वह स्वयं एक अच्छे शायर थे। साहित्यिक समीक्षकों के अनुसार जफर के समय में जहां मुगलकालीन सत्ता चरमरा रही थी वहीं उर्दू साहित्य खासकर उर्दू शायरी अपनी बुलंदियों पर थी। जफर की मौत के बाद उनकी शायरी "कुल्लियात ए जफर" के नाम से संकलित की गयी।

मुग़ल सम्राटों का कालक्रम[संपादित करें]

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    बहादुर शाह द्वितीय का राज्यारोहण

  • मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर मुकदमा क्यों चलाया गया? - mugal baadashaah bahaadur shaah zaphar par mukadama kyon chalaaya gaya?

    कैप्टन हॉड्सन द्वारा बन्दी बनाये गये बहादुर शाह द्वितीय

भारतीय स्वतन्त्रता का प्रथम संग्राम

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • जफर: देश को महबूबा मानने वाला अंतिम मुगल सम्राट
  • ज़फ़र की रचनाएँ, कविता कोश में

मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा क्यों चलाया गया?

1856 में गवर्नर-जनरल कैनिंग ने फ़ैसला किया कि बहादुर शाह ज़फ़र आखिरी मुग़ल बादशाह होंगे। उनकी मृत्यु के बाद उनके किसी भी वंशज को बादशाह नहीं माना जाएगा। उन्हें केवल राजकुमारों के रूप में मान्यता दी जाएगी। किसान और सिपाही गाँवों में किसान और ज़मींदार भारी-भरकम लगान और कर वसूली के सख्त तौर-तरीकों से परेशान थे।

विद्रोहियों ने बहादुर शाह जफर से क्या मांगा था?

हाइलाइट्स स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर याद किए जाते हैं बहादुर शाह जफर। सन् 1857 क्रांति का नेतृत्व करने पर अंग्रेजों ने कैद कर भेज दिया था बर्मा। 132 साल बाद सन् 1992 में मिला थी कब्र।

1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को कहाँ भेजा था?

अंग्रेज़ों ने बहादुर शाह ज़फ़र को न मारने के अपने वादे को पूरा किया. उन्हें दिल्ली से बहुत दूर बर्मा भेज दिया गया जहाँ 7 नवंबर, 1862 की सुबह 5 बजे उन्होंने अंतिम साँस ली.

भारत का अंतिम शक्तिशाली मुगल बादशाह कौन था?

18 वीं शताब्दी के दौरान मुगल शक्ति तेजी से घटती गई और अंतिम सम्राट, बहादुर शाह द्वितीय को 1857 में ब्रिटिश राज की स्थापना के साथ हटा दिया गया।