महादेवी वर्मा के द्वारा लिखित पाठ नीलकंठ गद्य की कौन सी विधा है? - mahaadevee varma ke dvaara likhit paath neelakanth gady kee kaun see vidha hai?

राधा ने सहायता देने की आवश्यकता नहीं समझी परंतु अपनी मंद केका से किसी असामान्य घटना की सूचना सब ओर प्रसारित कर दी। माली पहुँचा, फिर हम सब पहुँचे। नीलकंठ जब साँप के दो खंड कर चुका, तब उस शिशु खरगोश के पास गया और रात भर उसे पंखों के नीचे रखे उष्णता देता रहा।

कार्तिकेय ने अपने युद्ध-वाहन के लिए मयूर को क्यों चुना होगा, यह उस पक्षी का रूप और स्वभाव देखकर समझ में आ जाता है।

मयूर कलाप्रिय वीर पक्षी है, हिंसक-मात्र नहीं। इसी से उसे बाज, चील आदि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जिनका जीवन ही क्रूर कर्म है।

नीलकंठ में उसकी जातिगत विशेषताएँ तो थी ही, उनका मानवीकरण भी हो गया था। मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता था, तब उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था। आगे-पीछे, दाहिने-बाएँ क्रम से घूमकर वह किसी अलक्ष्य सम पर ठहर-ठहर जाता था।

         

राधा नीलकंठ के समान नहीं नाच सकती थी, परंतु उसकी गति में भी एक छंद रहता था। वह नृत्यमग्न नीलकंठ की दाहिनी ओर के पंख को छूती हुई बाईं ओर निकल आती थी और बाएँ पंख को स्पर्श कर दाहिनी ओर। इस प्रकार उसकी परिक्रमा में भी एक पूरक ताल-परिचय मिलता था। नीलकंठ ने कैसे समझ लिया कि उसका नृत्य मुझे बहुत भाता है, यह तो नहीं बताया जा सकता; परंतु अचानक एक दिन वह मेरे जाली घर के पास पहुँचते ही, अपने झूले से उतरकर नीचे आ गया और पंखों का सतरंगी मंडलाकार छाता तानकर नृत्य की भंगिमा में खड़ा हो गया। तब से यह नृत्य भंगिमा नित्य का क्रम बन गई। प्राय: मेरे साथ कोई-न-कोई देशी-विदेशी अतिथि भी पहुँच जाता था और नीलकंठ की मुद्रा को अपने प्रति सम्मानपूर्वक समझकर विस्मयाभिभूत हो उठता था। कई विदेशी महिलाओं ने उसे 'परफैक्ट जेंटिलमैन' की उपाधि दे डाली। जिस नुकीली पैनी चोंच से वह भयंकर विषधर को खंड-खंड कर सकता था, उसी से मेरी हथेली पर रखे हुए भुने             चने ऐसी कोमलता से हौले-हौले उठाकर खाता था कि हँसी भी आती थी और विस्मय भी होता था। फलों के वृक्षों से अधिक उसे पुष्पित और पल्लवित वृक्ष भाते थे।

वसंत में जब आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लद जाते थे, अशोक नए लाल पल्लवों से ढंक जाता था, तब जालीघर में वह इतना अस्थिर हो उठता कि उसे बाहर छोड़ देना पड़ता।

नीलकंठ और राधा की सबसे प्रिय ऋतु तो वर्षा ही थी। मेघों के उमड़ आने से पहले ही वे हवा में उसकी सजल आहट पा लेते थे और तब उनकी मंद केका की गूंज-अनुगूंज तीव्र से तीव्रतर होती हुई मानो बूंदों के उतरने के लिए सोपान-पंक्ति बनने लगती थी। मेघ के गर्जन के ताल पर ही उसके तन्मय नृत्य का आरंभ होता। और फिर मेघ जितना अधिक गरजता, बिजली जितनी अधिक चमकती, बूंदों की रिम-झिमाहट जितनी तीव्र होती जाती, नीलकंठ के नृत्य का वेग उतना ही अधिक बढ़ता जाता और उसकी केका का स्वर उतना ही मंद्र से मंद्रतर होता जाता । वर्षा के थम जाने पर वह दाहिने पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाता। कभी-कभी वे दोनों एक-दूसरे के पंखों से टपकनेवाली बूंदों को चोंच से पी-पी कर पंखों का गीलापन दूर करते रहते।

इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा, यह भी एक करुण कथा है।

एक दिन मुझे किसी कार्य से नखासकोने से निकलना पड़ा और बड़े मियाँ ने पहले के समान कार को रोक लिया। इस बार किसी पिंजड़े की ओर नहीं देखुंगी, यह संकल्प करके मैंने बड़े मियाँ की विरल दाढ़ी और सफेद डोरे से कान में बँधी ऐनक को ही अपने ध्यान का केंद्र बनाया। पर बड़े मियाँ के पैरों के पास जो मोरनी पड़ी थी उसे अनदेखा करना कठिन था। मोरनी राधा के समान ही थी। उसके पूँज से बँधे दोनों पंजों की उँगलियाँ टूटकर इस प्रकार एकत्र हो गई थीं कि वह खड़ी ही नहीं हो सकती थी।

           

बड़े मियाँ की भाषण-मेल फिर दौड़ने लगी-“देखिए गुरुजी, कमबख्त चिड़ीमार ने बेचारी का क्या हाल किया है। ऐसे कभी चिड़िया पकड़ी जाती है! आप न आई होती तो मैं उसी के सिर इसे पटक देता। पर आपसे भी यह अधमरी मोरनी ले जाने को कैसे कहूँ!'

सारांश यह कि सात रुपए देकर मैं उसे अगली सीट पर रखवाकर घर ले आई और एक बार फिर मेरे पढ़ने-लिखने का कमरा अस्पताल बना और पंजों की मरहमपट्टी और देखभाल करने पर वह महीने भर में अच्छी हो गई। उँगलियाँ वैसी ही टेढ़ी-मेढ़ी रहीं, परंतु वह दूंठ जैसे पंजों पर डगमगाती हुई चलने लगी। तब उसे जालीघर में पहुँचाया गया और नाम रखा गया कुब्जा। नाम के अनुरूप वह स्वभाव से भी कुब्जा ही प्रमाणित हुई। अब तक नीलकंठ और राधा साथ रहते थे। अब कुब्जा उन्हें साथ देखते ही मारने दौड़ती। चोंच से मार-मारकर उसने राधा की कलगी नोच डाली, पंख नोच डाले। कठिनाई यह थी कि नीलकंठ उससे दूर भागता था और वह उसके साथ रहना चाहती थी। न किसी जीव-जंतु से उसकी मित्रता थी, न वह किसी को नीलकंठ के समीप आने देना चाहती थी। उसी बीच राधा ने दो अंडे दिए, जिनको वह पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। पता चलते ही कुब्जा ने चोंच मार-मार कर राधा को ढकेल दिया और फिर अंडे फोड़कर दूंठ जैसे पैरों से सब ओर छितरा दिए।

           

मेरे दाना देने जाने वह सदा की भाँति पंखों को मंडलाकार बनाकर खड़ा हो जाता था, पर उसकी चाल में थकावट और आँखों में एक शून्यता रहती थी। अपनी अनुभवहीनता के कारण ही मैं आशा करती रही कि थोड़े दिन बाद सब में मेल हो जाएगा। अंत में तीन-चार मास के उपरांत एक दिन सवेरे जाकर देखा कि नीलकंठ पूँछ-पंख फैलाए धरती पर उसी प्रकार बैठा

हुआ है, जैसे खरगोश के बच्चों को पंखों में छिपाकर बैठता था। मेरे पुकारने पर भी उसके न उठने पर संदेह हुआ।

वास्तव में नीलकंठ मर गया था। क्यों' का उत्तर तो अब तक नहीं मिल सका है। न उसे कोई बीमारी हुई, न उसके रंग-बिरंगे फूलों के स्तबक जैसे शरीर पर किसी चोट का चिह्न मिला। मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया, तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित-प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा। नीलकंठ के न रहने पर राधा तो निश्चेष्टसी कई दिन कोने में बैठी रही। वह कई बार भागकर लौट आया था, अतः वह प्रतीक्षा के भाव से द्वार पर दृष्टि लगाए रहती थी। पर कुब्जा ने कोलाहल के साथ खोज-ढूँढ़ आरंभ की। खोज के क्रम में वह प्रायः जाली का दरवाजा खुलते ही बाहर निकल आती थी और आम, अशोक, कचनार आदि की शाखाओं में नीलकंठ को ढूँढती रहती थी। एक दिन वह आम से उतरी ही थी कि कजली (अल्सेशियन कुत्ती) सामने पड़ गई। स्वभाव के अनुसार उसने कजली पर भी चोंच से प्रहार किया। परिणामत: कजली के दो दाँत उसकी गरदन पर लग गए। इस बार उसका कलह-कोलाहल और द्वेष-प्रेम भरा जीवन बचाया न जा सका। परंतु इन तीन पक्षियों ने मुझे पक्षीप्रकृति की विभिन्नता का जो परिचय दिया है, वह मेरे लिए विशेष महत्व रखता है।

राधा अब प्रतीक्षा में ही दुकेली है। आषाढ़ में जब आकाश मेघाच्छन्न हो जाता है तब वह कभी ऊँचे झूले पर और कभी अशोक की डाल पर अपनी केका को तीव्रतर करके नीलकंठ को बुलाती रहती है। 

(अभ्यासमाला)

* बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन करो:

(क) नीलकंठ पाठ में महादेवी वर्मा की कौन-सी विशेषता परिलक्षित हुई है?

(अ) जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम

(आ) मनुष्यों के प्रति सहानुभूति

(इ) पक्षियों के प्रति प्रेम

(ई) राष्ट्रीय पशुओं के प्रति प्रेम

उत्तर : (अ) जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम

(ख) महादेवी जी ने मोर-मोरनी के जोड़े के लिए कितनी कीमत चुकाई ?

(अ) पाँच रुपए

(आ) सात रुपए

(इ) तीस रुपए

(ई) पैंतीस रुपए

उत्तर : (ई) पैंतीस रुपए

(ग) विदेशी महिलाओं ने नीलकंठ को क्या उपाधि दी थी?

(अ) परफैक्ट जेंटिलमैन
 (आ) किंग ऑफ द जंगल

(इ) ब्यूटीफूल बर्ड
 (ई) स्वीट एंड हैंडसम परसन

उत्तर : (अ) परफैक्ट जेंटिलमैन

(घ) महादेवी वर्मा ने अपनी पालतू बिल्ली का नाम क्या रखा था?
(अ) चित्रा 

(आ) राधा

(इ) कुब्जा

(ई) कजली

उत्तर : (अ) चित्रा

(ङ) नीलकंठ और राधा की सबसे प्रिय ऋतु थी
(अ) ग्रीष्म ऋतु

(आ) वर्षा ऋतु

(इ) शीत ऋतु

(ई) वसंत ऋतु

उत्तर : (आ) वर्षा ऋतु

2. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):

(क) मोर-मोरनी के जोड़े को लेकर घर पहुँचने पर सब लोग महादेवी जी से क्या कहने लगे ?

उत्तर : मोर-मोरनी के जोड़े को लेकर घर पहुँचने पर सब लोग महादेवी जी से करने लगे, “तीरत हैं, मोर कहकर ठग लिया है।"

(ख) महादेवी जी के अनुसार नीलकंठ को कैसा वृक्ष अधिक भाता था?

उत्तर : महादेवी के अनुसार नीलकंठ को फलों के वृक्षों से अधिक पुष्पित और पल्लवीत वृक्ष भाते थे।

(ग) नीलकंठ को राधा और कुब्जा में किसे अधिक प्यार था और क्यों?

उत्तर : नीलकंठ को राधा और कुब्जा में राधा से अधिक प्यार था। क्योंकि नीलकंठ ओर राधा शौशव से ही साथ रहते थे।

(घ) मृत्यु के बाद नीलकंठ का संस्कार महादेवी जी ने कैसे किया?

उत्तर : मृत्यु के बाद नीलकंठ का संस्कार महादेवी जी ने अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई और गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया।

3. संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में):

(क) बड़े मियाँ ने मोर के बच्चे दूसरों को न देकर महादेवी जी को ही क्यों देना चाहता था?

उत्तर : बड़े मियाँ ने मोर के बच्चे दुसरों को न देकर महादेवी वर्मा जी को ही देना चाहता था। क्योंकि पिछली बार आने पर महादेवी जी ने मोर के बच्चे के लिए पूछा था। इसलिए बड़े मियाँ ने शंकरगढ़ के चिड़ीमार से मोर के दोनों बच्चे को रख लिये।

(ख) महादेवी जी ने मोर और मोरनी के क्या नाम रखे और क्यों?

उत्तर : महादेवी जी ने मोर और मोरनी के नाम नीलकंठ और राधा रखे।  नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर का नाम रखा गया नीलकंठ और उसकी छाया के समान रहने के कारण मोरनी का नामकरण हुआ राधा।

(ग) लेखिका के अनुसार कार्तिकेय ने मयूर को अपना वाहन क्यों चुना होगा? मयूर की विशेषताओं के आधार पर उत्तर दो।

उत्तर : लेखिका के अनुसार कार्तिकेय ने अपने युद्ध वाहन के लिए मयूर को इसलिए चुना होगा यह पक्षी का रुप और स्वभाव देखकर समझ में आ जाता है। मयूर की विशेषता यह है कि -- मयूर कलाप्रिय वीर पक्षी है, हिंसक मात्र नहीं। इसी से उसे बाज, चील आदि की श्रेणी में नही रखा जा सकता।

(घ) नीलकंठ के रूप-रंग का वर्णन अपने शब्दों में करो। इस दृष्टि से राधा कहाँ तक भिन्न थी?

उत्तर : नीलकंठ के सिर की कलगी सघन, ऊँची तथा चमकीली हो गई। चोंच  अधिक बंकिम और पैनी हो गई, गोल आँखों में इंद्रनील को नीलाभ घुटि झलकने लगी। लंबी नीला हरित गोवा की हर भंगिमा में धुपछाही तरंगे उठने-गिरने लगो। पूँछ लंबी हुई और उसके पंखों पर चन्द्रिकाओं के इंद्र धनुषी रंग उद्दीप्त हो उठे। राधा का विकास नीलकंठ के समान चमत्कारिक तो नहीं हुआ, परन्तु अपनी लंबी धुपछाँही गरदन, हवा में चंचल कलगी, पंखों की श्यामखेत पत्रलेखा,  मंथर गति आदि से वह भी नील कंठ की उपयक्ट सहचरिणी होने का प्रमाण देने लगी। लेकिन उसकी पूँछ नीलकंठ का भाँति लंवी न हुई।


(ङ) बारिश में भीगकर नृत्य करने के बाद नीलकंठ और राधा पंखों को कैसे सूखाते?

उत्तर : बारिश में भीगंकर नृत्य करने के बाद नीलकंठ और राधा अपने अपने दाहिने पंजे पर दाहिना पंख ओरवाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाता। कभीकभी वे दोनों एक दुसरे के पंखों से टपकने वालो बुंदो को चोंच से पी पी कर पंखो नीनाज का गीलापन दूर करते रहते।


(च) नीलकंठ और राधा के नृत्य का वर्णन अपने शब्दों में करो।

उत्तर : नीलकंठ में उसकी जातिगत विशेषताएँ हैं। मेघों की साँवली छाया मेंअपने इंन्द्र धनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब नाचता था, तब उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता थछा।आगे-पीछे, दाहिने-बाएँ क्रम से घुमकर वह किसी अलक्ष्य सम पर ठहर ठहर जाता था। राधा नीलकंठ के समान नही नाच सकती थी, परन्तु उसकी गति में भी एक छंद रहता था। वह नृत्यमग्न नीलकंठ की दाहिनी और के पंख को घूती हुई बाई ओर निकल जाती थी और बाएँ पंख को स्पर्श कर दाहिनी ओ। इस प्रकार उसकी परिक्रमा में भी एक पुरक ताल-परिचय मिलता था।


(छ) वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय हो जाता था, क्यों?

उत्तर : वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय हो जाता था। क्योंकि उस समय आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लट जाते थे, अशोक नए लाल पल्लवों से ढक जाता था, उठता है, आखिर उसे बाहर छोड़ देना पड़ता।

(ज) जाली के बड़े घर में रहनेवाले वाले जीव-जंतुओं के आचरण का वर्णन करो।

उत्तर :  जाली के बड़ेघर में दोनों नवागंतुकों ने पहले से रहनेवालों में वैसाही कुतूहल जगाया जैसे नववधुके आगमन परपरिवार में स्वाभाविक है। लक्का कबूतरनाचना छोड़कर दौड़ पड़े और उनके चारों ओर घुम धुमकर रागिनी अलापने लगे। बड़े खरगोश सभ्य सभासदों के समान क्रम से हैठकर गंभीर भाव से उनका निरीक्षण करने लगे। छोटे  खरगोश उनके चारों ओर उछल-कुद मचाने लगे। तोते मानो भली भाँति देखने के लिए एक आँख बंद करके उनका निरीक्षण करने लगे।

(झ) नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप के चंगुल से किस तरह बचाया?

उत्तर : एक शिशु खरगोश साँप को पकड़ में आ गया। निगलने के प्रयास में साँप ने उसका आधा पिछला शरीर मुँह में दवा रखा था। उस समय नीलकंठ दुर ऊपर झुले में सो रहा था। खरगोश की व्यभा की स्वर उसके कानों मैं पड़ी। वह नीचे उतर आया ओर साँप को फन के पास पंलो से दवाया और फिर चोंच से इतने प्रहार किए कि वह अधमरा हो गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुंह से निकल तो आया, परन्तु अचेत वही पड़ा रहा। इस तरह नीलकंठ ने शिशु खरगीश को सौंप के चंगुल से बचाया।


(ब) लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्ठाएँ बहुत भाती थीं ?

उत्तर : लेखिका को नीलकंठ द्वारा की गयी चिड़ियाघर संरक्षण की चेष्टा बहुत भांती थी। नीलकंठ चिड़िया घर के सभी जीव जंतुओ का सेनापति और सुरक्षक बना। दाना खाते समय वह घुम-घुमकर सबकी रखवाली करता रहता। उन जीव जंतुओ के प्रति उसका प्रेम भी असाधारण था। जब जाली घर में साँपने शिशु खरगोश को निगलने लगा, तब वह पंजी दबाकर तथा अपनी पैनो चोंच प्रहर कर शिशु खरगोश को बचाने की चेष्टाएँ लेखिका भाती थी।

4. सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):

(क) नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में वर्ण करो।

उत्तर : नीलकंठ की जातिगत विशेषताये हैं कि वह मेघों की साँवली छाया में अपने इन्द्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचना था। उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था। बसंत में जब आम के वृक्ष सुनहली मंजारियों से लद जाते थे, अशोक नए लाल पल्लवों से ढ़क जाता था, तब वह जालीघर में आस्थि हो उठता था। फलों के वृक्षों से अधिक उसे पुष्टित और पल्लवित बृक्ष भाते थे। नीलकंठ की सबसे प्रिय ऋतु वर्षी ही थी। मेघों के उमड़ आने से पहले ही वे हवा में उसकी सजल आहत पा लेते थे और तब उनकी मंद केका की गुंज अनु[ज तीब्र से तीब्रतर होती हुई मानो बूंदो के उतरने लिए सोपान पक्टि बनने लगते थी। मेघ के गर्जन के ताल पर ही उसके तन्मय नृत्य का आरंभ होता।

(ख) कुब्जा और राधा के चरण में क्या अंतर परिलक्षित होते हैं? क्यों?

उत्तर : कुब्जा और राधा के आचरण में हमें यह अंतर देखते हैं कि कुब्जा नामक अनुरुप वह स्वभाव से भी कुब्जा ही प्रमाणित हुई। क्योंकि वह नीलकंठ के साथ किसीको देखना नहीं चाहती। दुसरी राधा स्वभाब से गंभीर थी। उस में किसी पर वैर भाव नहीं थी। वह पत्नी सुलभ हमेशा नीलकंठ का अनुसरण में था। नीलकंठ और राधा साथ रहते थे। कुब्जा उन्हें साथ देखते ही मारने दौड़ती। कठिनाई यह थी कि नीलकंठ उससे दूर भागता था। वह नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी। न किसी जीव-जंतु से उसकी मित्रता थी, न वह किसी को नीलकंठ के समीप आने देना चाहती थी।

(ग) मयूर कलाप्रिय वीर पक्षी है, हिंसक मात्र नहीं-इस कथन का आशय समझाकर लिखो।

उत्तर : इसका आशय यह है कि प्रकृति में जितने जीव जन्तु हैं उनमें से मयूर का हिसाव दुसरा है। इसका चाल-चलन, हाव-भाव अन्य प्राणी से अलग हैं। उसे बाज-चील आदि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जिनका जीवन कुर कर्म है। बरसात में मेघों के उमड़ आने से पहले ही मयूर हवा में उसकी सजल आहत पा लेते है, तब उसकी मंद केका तीब्र हो उठती है। मेघ के गर्जन के ताल पर ही उसके तन्मय नृत्य आरंभ होता है। मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गच्छे पंखो को मंडलाकार बनाकर नाचता है। इस नृत्य में एकसहलजात लय-ताल है। मयूर का चाल-चलन दुसरे प्राणी से अलग होने के कारण लेखिका कलाप्रिय बीर पक्षी कहा है।

♦ भाषा एवं व्याकरण ज्ञान :

1.निम्नलिखित शब्दों के संधि-विच्छेद करो:

नवांगतुक, मंडलाकार, निश्चेष्ट, आनंदोत्सव, विस्मयाभिभूत, आविर्भूत, मेघाच्छन्न, उद्दीप्त

उत्तर :   नव + आगतुक

मंडल + आकार

निः+चेष्ट

आनंद + उत्सव

विस्मय + अभिभूत

आविर+भूत

मेघ + आच्छन्न

उत्त + दीप्त


2.निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह करते हुए समास का नाम भी बताओ :

पक्षी-शावक, करुण-कथा, लय-ताल, धूप-छाँह, श्याम-श्वेत, चंचु-प्रहार, नीलकंठ, आर्तक्रंदन, युद्धवाहन

उत्तर : पक्षी-शावक -  पक्षी के बच्चे -  संमंध तसुरुष

करुंण -कथा  -  दुःख भरी कथा - करण तत्पुरुष

लय-ताल -  लय और ताल - द्वन्द्र समास 

धूप-छांह -  धूप और छाया - द्वन्द्र समास 

श्याम-श्वेत - सावला और सफेद - द्वन्द्र समास
चंचु-प्रहार - चोच द्वारा आक्रमण - करुण  तत्पुरुष

नीलकंठ - नील है कंठ जिसका - बहुब्रीहि समास

आर्तक्रंदन - दर्द भरी आवाज में रोना - करुण  तत्पुरुष
युद्धवाहन - युद्ध का वाहन -  संबंध तत्पुरुष


3. निम्नलिखित शब्दों से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करो:

स्वाभाविक, दुर्बलता, रिमझिमाहट, पुष्पित, चमत्कारिक, क्रोधित, मानवीकरण, विदेशी, सुनहला, परिणामतः

उत्तर : स्वाभाविक =  स्वभाव = इक
दुर्बलता =  दुर्बल = ता
रिमझिमाहट = रिमझिम = आहत
 पुष्पित = पुष्प = इत
चमत्कारिक = चमत्कार  = इक
 क्रोधित =  क्रोध = इत
 मानवीकरण = मानव  = करण
 विदेशी = विदेश = ई
सुनहला = सुनइला = आ
परिणामतः = परिणाम = आत:

4. निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ो :

(क) पूँछ लंबी हुई और उसके पँखों पर चंद्रिकाओं के इंद्रधनुषी रंग

उद्दीप्त हो उठे।

(ख) केवल एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया।

(ग) कई विदेशी महिलाओं ने उसे 'परफैक्ट जेंटिलमैन' की उपाधि

दे डाली।

(घ) बड़े मियाँ ने पहले के समान कार को रोक दिया।

उपर्युक्त चारों वाक्यों में रेखांकित क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ है। इनमें 'हो,

आ, दे रोक' ये मुख्य क्रियाएँ हैं और उठे, गया, डाली, लिया ये रंजक

क्रियाएँ हैं। ये रंजक क्रियाएँ क्रमश: आकस्मिकता, पूर्णता और अनायसता

का अर्थ देती हैं

उठना, जाना, डालना, लेना क्रियाओं से बनने वाली संयुक्त क्रियाओं से

चार वाक्य बनाओ।

उत्तर : उठना : लाचित ने बोल उठा देश से मामा बडा नही।

जाना : अपना काम करते जाओ।

डालना : लड़के ने साँप को मार डाला।

लेना : दादी जी की बात सुन लेना।

5. निम्नलिखित वाक्यों में उदाहरणों के अनुसार यथास्थान उपयुक्त विराम

चिह्न लगाओ:

उदाहरण:

1. उन्होंने कहना आरंभ किया सलाम गुरुजी

= उन्होंने कहना आरंभ किया, "सलाम गुरुजी!"

2.आम अशोक कचनार आदि की शाखाओं में नीलकंठ को ढूँढ़ती

रहती थी।

= आम, अशोक, कचनार आदि की शाखाओं में नीलकंठ को ढूँढ़ती

रहती थी।

(क) उन्हें रोककर पूछा मोर के बच्चे हैं कहाँ

उत्तर : उन्हें रोककर पूछा , ''  मोर के बच्चे हैं कहाँ '' ?

(ख) सब जीव जंतु भागकर इधर उधर छिप गए

उत्तर :  सब जीव-जंतु भागकर इधर-उधर छिप गए।

(ग) चोंच से मार मारकर उसने राधा की कलगी नोच डाली पंख नोच डाले

उत्तर : चोंच से मार-मारकर उसने राधा की कलगी नोच डाली , पंख नोच डाले।

(घ) न उसे कोई बीमारी हुई न उसके शरीर पर किसी चोट का चिह्न मिला

उत्तर : न उसे कोई बीमारी हुई ,  न उसके शरीर पर किसी चोट का चिह्न मिला।

(ङ) मयूर को बाज़ चील आदि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जिनका जीवन ही क्रूर कर्म है

उत्तर :  मयूर को बाज़ , चील आदि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता ,  जिनका जीवन ही क्रूर कर्म है।

नीलकंठ पाठ की विधा क्या है?

उत्तर- नीलकंठ की साहित्यिक विधा रेखाचित्र है।

महादेवी वर्मा द्वारा लिखित गद्य नीलकंठ क्या है?

नीलकण्ठ में उसकी जातिगत विशेषताएं तो थीं ही, उनका मानवीकरण भी हो गया था. मेघों की सांवली छाया में अपने इन्द्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मण्डलाकार बनाकर जब वह नाचता था, तब उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था. आगे-पीछे, दाहिने-बाएं क्रम से घूमकर वह किसी अलक्ष्य सम पर ठहर-ठहर जाता था.

नीलकंठ पाठ में महादेवी वर्मा की कौन सी विशेषता?

(क) नीलकंठ पाठ में महादेवी वर्मा की कौन सी विशेषता परिलक्षित होती है ? उत्तर: जीव जंतुओं के प्रति प्रेम महादेवी वर्मा की विशेषता परिलक्षित होती है।

महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य क्या है?

महादेवी का शुद्ध विचारपरक गद्य भी मात्रा की दृष्टि से कम नहीं है। 'चाँद' के नारी-जागरण से सम्बद्ध सम्पादकीय, काव्य-संकलनों का पक्ष प्रस्तुत करने वाली भूमिकाएँ, 'काव्य-कला', 'छायावाद', 'रहस्यवाद', 'गीतकाव्य', जैसे साहित्यिक विषयों पर लिखे गये निबन्ध उनके गद्य लेखन का महत्वपूर्ण अंग हैं।