मन में डर क्यों लगता है? - man mein dar kyon lagata hai?

एक बार मुझे एक मीटिंग में प्रेजेंटेशन देना था, जिसके लिए मैं तैयार नहीं थी। मेरे मन के एक हिस्से में अत्यधिक भय व्याप्त था, मेरी हथेलियां पसीने से तर थीं और मेरी ह्रदय-गति भी बढ़ गयी थी। मैं ध्यान लगा कर कुछ पढ़ भी नहीं पा रही थी। मुझे पता था कि मैं भयभीत हूँ - इतने सारे लोगों के सामने बोलने का भय मुझे काट रहा था।    

इस हालत में मैं एकदम एक कोने में जाकर छुप गयी और मैंने कुछ देर तक ध्यान किया। उन चंद मिनटों के गहरे मौन के बाद मानों कि कोई जादू हो गया हो। मैं अंदर से एकदम शांत हो गयी और मुझे एक नया आत्म-विश्वास प्राप्त हुआ।  

उस समय मुझे लग रहा था कि मैं अब लुप्त होने वाली हूँ, कि मेरा अस्तित्व मिट जायेगा। मैं मानती हूँ कि यह भय हमें प्रकृति से एक वरदान के रूप में मिला है। मैं जितना अधिक ध्यान-साधना करती हूँ  मुझे उतना ही स्पष्ट होता जाता है कि डर से जीतने के लिए मुझे स्वयं को मूल्यांकन करने के अपने दृष्टिकोण को और विशाल करना होगा। मेरी वास्तविक पहचान मेरे अंदर निवास करने वाली मेरी चेतना से है न कि मेरे शरीर से। इस भय पर विजय पाने का दूसरा मार्ग है हमारा विश्वास, हमारी आस्था!  यह आस्था कि हमारे साथ जो भी होगा, अच्छा ही होगा। अपने भय से लड़ने में इन दो मुख्य विचारों से मुझे बहुत अधिक शक्ति मिलती है ।        

दूसरों पर भरोसा न होने के कारण भी भय की उत्पत्ति होती है। एक दूसरे के बीच की दूरी किसी भी परिवार या समाज में अविश्वास और भय को जन्म देती है एवं प्रगति के लिए हानिकारक होती है। एक देश के निवासी जब एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते तो उनके बीच भय का वातावरण पैदा होता है। आपको कानून से डरना चाहिए, परन्तु आप समाज में निरंतर डर के साथ काम नहीं कर सकते। चाहे वो फिर किसी भी प्रकार का भय हो - अधिकारियों का डर, अपने से वरिष्ठ लोगों का डर, अपने किसी प्रिय व्यक्ति को खो देने का डर, नौकरी खो देने का डर या फिर उत्पीड़न का भय। सत्य तो यही है कि हम भयभीत होकर कुछ भी नहीं कर सकते। जीवन में थोड़ा भय आवश्यक है, पर उतना ही जितना कि खाने में नमक। इस लेख में आगे आप उन 3 रहस्यों को जानेंगें जो हमें कभी बताये नहीं गए और जिनको जानने से हम एक भय-मुक्त जीवन जी सकते हैं।

#१ : पुरानी बातों को भुला दें, भय मुक्त हो जाएँ

जो बीत गया सो बीत गया। अक्सर होता यह है कि बीती हुई बातों की चिंता हमको वर्तमान में भी सताती है। उदाहरण के तौर पर, यदि आप कुत्तों से डरते हैं तो संभवतः

इसका कारण पूर्व काल में हुआ कोई बुरा अनुभव हो। वही अनुभव फिर से न हो, इसलिए आप अब भी कुत्तों के पास जाने से डरते हैं।    

आमतौर पर बच्चों को किसी चीज़ से डर नहीं लगता और इसका कारण है कि उन्हें कोई पूर्व अनुभव नहीं होता। किंतु, जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हमारे पास अच्छे और बुरे अनुभवों का ढेर इकठ्ठा होता जाता है। इनमें से ही कुछ अनुभव डर का रूप धारण कर लेते हैं। ध्यान-साधना द्वारा हम इन अनुभवों के पार जा सकते हैं और हम अंदर से स्वतंत्र हो सकते हैं।  

रूपल  राणा जी ने हमें बताया "मुझे अँधेरे में चलने से डर लगता था। एक मित्र की सलाह पर मैंने नियमित रूप से ध्यान साधना करना प्रारम्भ किया। लगभग दो वर्षों से मैं अपनी ध्यान साधना का नियमित अभ्यास कर रही हूँ और अब मुझे अँधेरे से डर नहीं लगता।  

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#2: चिंता का सामना करें

चिंता हमारे दैनिक जीवन का अंग है। जब हम चिंता करते हैं तब हमारा मन विचारों के एक अनियंत्रित चक्रवात में फँस जाता है। "अब क्या होगा?" जैसा विचार निरंतर हमारे अंदर उठता रहता है। विचारों का यह अनियंत्रित झंझावात ही डर को जन्म देता है।  

#3: 'मैं' को छोड़ दें  

हम दिन-रात लोगों से मिलते हैं, व्यवहार करते हैं। हम अक्सर इस दौड़ में व्यस्त रहते हैं कि हम जिनको मिल रहे हैं क्या हम उन्हें प्रभावित कर पा रहे हैं या नहीं। लोग हमारे विषय में किस प्रकार आंकलन करेंगे? इस भय से ग्रस्त न होने के लिए हमें अत्यधिक प्रयास करना पड़ता है। इस भय का मुख्य कारण है हमारा अहंकार।    

इसके विपरीत जब आप अपने मित्रों के साथ होते हैं, आप सहज और प्राकृतिक रूप से व्यवहार करते हैं। सहज रहना ही अहंकार-रुपी विष को काट सकता है।निरंतर ध्यान-साधना के अभ्यास से हम पुनः आत्म-स्थित हो जाते हैं, और अधिक सहज हो जाते है।  प्रेम को यदि उलट दिया जाए तो वही भय का रूप ले लेता है।आमतौर पर हम उन्हीं चीज़ों से डरते हैं जिन्हे या तो हम जानते नहीं है या हम नापसंद करते हैं। ध्यान-साधना से हम इस भय को पुनः प्रेम में परिवर्तित कर सकता है। 20 मिनट का दैनिक ध्यान-अभ्यास हमारे अंदर भय के बीज को समूल नाश करने की सामर्थ्य रखता है।        

कामना अरोरा जी ने हमें बताया कि वे अपने सामाजिक परिवेश में अकेली शाकाहारी व्यक्ति थीं और वे अपने मित्रों को यह बताने में संकोच करती थीं कि कहीं वे लोग उन्हें अस्वीकार न कर दें। अपने मित्रों को प्रभावित करने के लिए वे अपने खान-पान के विषय में झूठ बोलती थीं। नियमित ध्यान-साधना से उन्हें यह मानसिक बल प्राप्त हुआ कि  वे अपने मित्रों को सच बता सकें और अब उन्हें अपने शाकाहारी होने पर गर्व है।

ध्यान-साधना हमारे मन को शांत करते हैं और किसी भी परिस्तिथि का सामना करने का आंतरिक बल प्रदान करते हैं।  यह हमारे अंदर एक विश्वास को स्थापित करते हैं कि जो भी होगा अच्छा ही होगा, चाहे फिर वह "जो भी" कितना भी अनिश्चित क्यों न हो।        

अनिश्चित भाविष्य की चिंता को भुलाने में ध्यान-साधना बहुत सहायक होती है और यह हमारे मन को वर्तमान क्षण में लाती है। वर्तमान क्षण में जीने का एक रहस्य है।  हमारे सभी कर्म वर्तमान क्षण में ही होते हैं। कोई भी कर्म वर्तमान क्षण में ही संभव है क्योंकि हम भविष्य में जाकर कोई भी कर्म नहीं कर सकते। एक शांत मन द्वारा ही आप भय को जीत कर किसी भी निर्दिष्ट कार्य को कर सकते हैं।  

एम.बी.ए. के एक छात्र साहिब सिंह ने हमें बताया :- " एम.बी.ए की परीक्षा के समय ध्यान-साधना मेरे लिए जीवन-रक्षक की तरह साबित हुई। हर परीक्षा से पहले, मैं डरता था कि मैंने जो पढ़ा है मैं सब भूल जाऊँगा। पर जबसे मैंने ध्यान करना प्रारम्भ किया, मेरी परीक्षा सुगमता से पूर्ण हो जाती हैं और असफलता का भय अब लुप्त हो गया है।"  

चिंता का एक और मुख्य कारण है- हमारे अंदर प्राण-शक्ति का कम होना। ध्यान से हमारे अंदर की प्राण शक्ति बढ़ती है, जिसके फलस्वरूप हम सहज ही चिंता-मुक्त हो जाते हैं। 

भय-मुक्त जीवन जीने के लिए 6 ध्यान-सूत्र

  • जब आपको बेचैनी, आशंका या भय का अनुभव हो, तब मन को शांत करने के लिए कुछ मिनटों का ध्यान बहुत सहायक सिद्ध होता है।  
  • ह्म्मम्म्म्म प्रक्रिया - भय से तत्काल बाहर निकलने का सबसे अच्छा उपाय है।
  • स्वयं को लगातार स्मरण कराते रहें कि सब कुछ अच्छे के लिए ही होता है।
  • ध्यान साधना का नियमित अभ्यास करें। प्रतिदिन 20 मिनट का ध्यान अंततः आपको भय और चिंताओं से मुक्त कराएगा।
  • यद्यपि ध्यान-साधना के लिए प्रातःकाल का समय सबसे उपयुक्त होता है, फिर भी दिन में किसी भी समय, जब आपका पेट खाली हो, आप ध्यान कर सकते हैं। गहन ध्यान का अनुभव करने के लिए एक शांत स्थान का चयन करें।
  • भय-रूपी सिक्के का दूसरा पहलू

यदि आप को थोड़ा भय होना एक सहज बात है। जिस प्रकार भोजन में थोड़े नमक की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार आदर्शपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए जीवन में थोड़ा भय होना आवश्यक है। कल्पना करें कि यदि किसी भी व्यक्ति को किसी भी बात का भय न हो, तो क्या होगा? यदि असफलता का भय न हो तो विद्यार्थी पढ़ना छोड़ देंगे। यदि आपको बीमार होने का डर न हो, तो आप अपने स्वास्थ्य की देखभाल नहीं करेंगे। इसलिए, जीवन में थोड़े डर के होने की उपयोगिता को पहचाने।

ध्यान-साधना का नियमित अभ्यास आपको तनाव सम्बन्धी सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाता है, आपके मन को शांत करता है और आपको तरोताज़ा कर देता है। आर्ट ऑफ़ लिविंग के सहज समाधि ध्यान कार्यक्रम में आप अपने अंदर गहराई में डूबकर अपनी असीमित संभावनाओं को प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

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मानसिक डर का इलाज क्या है?

कार्ड‍ियो का मतलब है द‍िल से संबंध‍ित और फोब‍िया का मतलब है डर लगना। फोबिया एक तरह का एंग्जाइटी डिसऑर्डर है। यह आपके दैनिक जीवन में बाधा बन सकता है। आइए जानते हैं कार्ड‍ियोफोब‍िया के लक्षण और इलाज के तरीके।

मन में हमेशा डर क्यों रहता है?

यह फोबिया अक्सर उन मूर्ख लोगों में रहता है जो किसी ज्योतिष या कथित बाबाओं के चक्कर में रहते हैं। यह फोबिया उन लोगों के मन में भी रहता है, जिनके साथ कभी घटना-दुर्घटना घट चुकी है। कहते हैं कि आदमी के जीवन में अनहोनी होने का कारण है उसका डर। यह डर ही होनी-अनहोनी को आकर्षित करता है।

मन के डर को कैसे निकालें?

अपने डर को एक नाम दें। कभी-कभी डर को तुरंत और स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है, लेकिन कभी-कभी अपने मन के अंदर चल रही चिंता की भावना को नाम देना हमारे लिए कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाता है। अपने डर को पूरा सामने आने दें और इसे एक नाम दें।

डर लगना कौन सी बीमारी है?

दुर्भीति या फोबिया (Phobia) एक प्रकार का मनोविकार है जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है जबकि वे चीजें उस वक्त खतरनाक नहीं होती है। यह एक प्रकार की चिन्ता की बीमारी है।