मातृभाषा में शिक्षा क्यों जरूरी है? - maatrbhaasha mein shiksha kyon jarooree hai?

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शिक्षा की भाषा मातृभाषा हो

डॉ. शशिभूषण महतो ‘काड़वार’

मातृभाषाकिसी भी इंसान के लिए संवाद का जरिया भर नहीं, बल्कि वह माध्यम भी है जिसके साथ उनकी समृद्ध विरासत जुड़ी होती है। इसीलिए इसका संरक्षण भी जरूरी है। विश्व में विलुप्त होती भाषाओं के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।

शिक्षा की भाषा मातृभाषा हो

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। यूनेस्को द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आंदोलन दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। लेकिन अफसोस है कि आज दुनिया की लगभग 96 प्रतिशत भाषाओं पर अस्तित्व का संकट है। गौरतलब है कि दुनिया की आबादी तो रोज बढ़ रही है, लेकिन उसको अभिव्यक्त करने वाली भाषाएं रोज घट रही हैं।

21 फरवरी 1952 को बांग्लादेश में पहली बार मनाया गया

मातृभाषा दिवस

गर्व है

मातृभाषा पर

मुझे अपनी

जिन देशों में मातृभाषा का पूर्णतया प्रचार है, जिसमें शिक्षा के समस्त कार्य मातृभाषा के ही द्वारा होते हैं, वहां के निवासी मातृभाषा के द्वारा उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं। जिन्हें समस्त विभागों में मातृभाषा के व्यवहार की स्वतंत्रता प्राप्त है, वहां के जनसमुदाय का चरित्र सर्वथा उच्च और पवित्र रखता है। केवल ब्रह्मा और राजनैतिक स्वतंत्रता के ही एक सच्चे राष्ट्र का निर्माण नहीं होता। जिसने राष्ट्रीय जीवन के मर्मरूपी बीनमंत्र मातृभाषा को भूला दिया, उसके सुरक्षित रखने का विचार परित्याग कर दिया, जिसने इस तत्वरूपी वस्तु को नष्ट होने दिया, जिसने मातृभाषा का तिरस्कार कर अपने मानसिक और ऐतिहासिक ज्ञान को भुला दिया, उसने अपने जातीय गौरव का नष्ट-भ्रष्ट किया और संसार में मानो अपना अस्तित्व खो दिया। मातृभाषा को तिरस्कृत करना अपने प्राचीन इतिहास को भूल जाना, परंपरा का ज्ञान खो देना मानो अपने पुरखों की कमाई को मिट‌्टी में मिला देना और अपने आप को नपुंसक बना देना है।

राष्ट्रीय-सामाजिक जागृति मातृभाषा से

राष्ट्रीय एवं सामाजिक जागृित मातृभाषा प्रचार के बिना नहीं हो सकती। मातृभाषा के द्वारा जातीय कला कौशल और साहित्य का पुनर्जीवित करना देश समाज के शुभचिंतकों का प्रथम कर्तव्य है। कुछ लोग अपनी मातृभाषा में बातचीत करने में अपनी मानहानि समझते हैं। जिस मातृभाषा ने उन्हें पाला-पोसा है, जिसने उन्हें खाने-पीने, सोने-रहने और बैठने के शब्द सिखाए हैं, जिसने उन्हें बचपन में मां से भात-रोटी मांगने के वाक्य सिखाए हैं, उसकी अवहेलना करने में उन्हें तनिक भी लाज नहीं आती है। यह हमारे लिए शर्म की बात है।

हृदय में छिपे हुए भावों, विचारों को शब्दों में ढालता है

मनुष्यका मनोविकास अथवा मनोवृत्तियों का प्रसार मातृभाषा के द्वारा ही हो सकता है। वह शक्ति केवल मातृभाषा में है जो भारतीय हृदय में छिपे हुए भावों, विचारों उद‌्वेगों और रहस्यों को ठीक-ठाक रूप देकर शब्दों में ढाल सकता है। वह हृदय कौन है जिसमें मातृभाषा बनी है और मातृभाषा कौन है जिसमें हृदय के भाव निकालकर साहित्य के रूप में जगत के सम्मुख रखे जाएंगे? उत्तर है- भारतीय हृदय और मातृभाषा। भाषा और साहित्य की जागृित, जातीय उन्नति के मार्ग की पहली मंजिल है। यह जागृित मानसिक उन्नति से घनिष्ट संबंध रखती है। जातीय उन्नति के मार्ग में यह अन्य समस्त प्रकार की त्रुटियों और बाधाओं को दूर करती है। समाज सुधार के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि समाज अपना मातृभाषा का ज्ञान संपादन करे, जिसके द्वारा अपने जातीय इतिहास और परंपरा का ज्ञान हो।

मातृभाषा से उन्नति संभव

सामाजिकएवं राष्ट्रीयता के भाव रखनेवालों के कदाचित ही कोई ऐसे हों जिन्हें मातृभाषा से प्रगाढ़ ममता हो। मातृभाषा के गर्भ में जातीय बुिद्ध को पूर्ण और उच्च प्रकृित बनाने की शक्ति होती है। मातृभाषा के प्रचार से सदाचार को किसी विचित्र तथा विलक्षण मानसिक प्रभाव के कारण अत्यंत लाभ होता है। मातृभाषा के द्वारा हम जो सीखते हैं, वह संसार के अन्य किसी भाषा के द्वारा नहीं सीख सकते। आज विदेशी भाषा के द्वारा इतिहास, भूगोल रट-रटकर बेचारे नवयुवक अस्वास्थ्य और दुर्बलता के शिकार हो रहे हैं। किसी भाषा का साहित्य कितना ही धनी क्यों हो, वह मातृभाषा के साहित्य से अिधक आवश्यक और आदरणीय नहीं हो सकता। सर्वसाधारण की उन्नति मातृभाषा के सरल साहित्य के द्वारा हो सकता है।

इतिहास, विचार और प्राचीन भंडार की कुंजी

मातृभाषासजीव शब्दों का कोष है, सुहावने चिह्नों का भंडार है। जाित के जीवन की साक्षात मूिर्त है, जातीय शक्ति की प्रतिमा है, जो जाित के विचारों और उसके हृदयस्थित भावों को सुरक्षित रखकर उन्हें दूसरों पर प्रकट करती है। मातृभाषा इतिहास, विचार और प्राचीन भंडार की कुंजी है। हमारा भावी साहित्यिक और मानसिक गौरव उसी मातृभाषा के भविष्य पर निर्भर है। संतान के लिए मस्तिष्क की स्फूिर्त को बढ़ाने का उपाय मातृभाषा से बढ़कर दूसरा नहीं है। मातृभाषा हृदय को उत्तेजित करती है, मन की भावना को मजबूत करती है, आत्मा को शुद्ध रखती है। मन और आत्मा में शक्ति का संचार हाोता है। गिरी हुई जाित के हृदय में जातित्व के भावों को उपजाती है तथा सांसारिक क्षेत्र में उन्नति का पथ परिष्कृत करती है।

मातृभाषा का स्वरूप

मातृभाषासीखने के लिए किसी पाठशाला की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि यह उसे स्वत: ही अपने परिजनों द्वारा उपहार स्वरूप मिलती है। जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है, उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। यह किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। इसको बचाकर रखना बेहद आवश्यक है। अगर हम भारत की बात करें तो हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा जरूर है, लेकिन उसके साथ ही हर क्षेत्र की अपनी कुछ भाषा भी है, जिसे बचाकर रखना बेहद जरूरी है, फिर चाहे वह हिंदी हो या बांग्ला, कुड़माली, खोरठा, संथाली, मुंडारी, खड़िया कुडुख, नागपुरी, हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए।

मातृभाषा सबकी जैसे हमजोली

बिखरे अक्षरों को चुन-चुन

बना ली अपनी-अपनी बोली

इसकी बोली उसकी बोली

मेरी बातें उसने सुन ली

मैंने उसकी बातें गुन ली

बातें कुछ तो इधर-उधर की

बातें कुछ हैं हंसी-ठिठोली

रूठना-मनाना, झगड़ना-लड़ना

सबकी बातें अद््भुत रंग-रंगीली

मां के आंचल में छिप-छिप कर

उसने आंखें धीरे-धीरे खोलीं

तुतलाती प्यारी सरगम-सी

कहलाई वह मां की बोली

जगह-जगह की मिट्टी बदली

वेश भी बदला क्षेत्र भी बदला

भाषा बदली, बदली बोली

श्याम अब्दुल बलविंदर विक्टर

सबकी बोली मीठी बोली

दादू की बातों को सुन-सुन

मुनिया के गीतों में गुन-गुन

क्या तेरी और क्या वो मेरी

करते क्यों तुम खींचा तानी

भाषा सबकी अलग-अलग सी

लेकिन सबकी प्यारी बोली

जैसे उपवन में खिले कुमुद हांे

भाषा सुंदर सौम्य सजीली

मां का आंचल अपना-सा घर

‘मातृभाषा’ सबकी जैसे हमजोली।

(संपर्क: संडे मार्केट रोड, रातू, रांची)

मां के समान है मातृभाषाकामहत्व

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष

शिक्षा में मातृभाषा का क्या महत्व है?

मातृभाषा के गर्भ में जातीय बुिद्ध को पूर्ण और उच्च प्रकृित बनाने की शक्ति होती है। मातृभाषा के प्रचार से सदाचार को किसी विचित्र तथा विलक्षण मानसिक प्रभाव के कारण अत्यंत लाभ होता है। मातृभाषा के द्वारा हम जो सीखते हैं, वह संसार के अन्य किसी भाषा के द्वारा नहीं सीख सकते।

मातृभाषा शिक्षा से आप क्या समझते हैं?

-मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ है माँ से सीखी हुई भाषा ! बालक यदि माता-पिता के अनुकरण से किसी विभाषा को सीखता है तो वह विभाषा ही उसकी मातृभाषा कही जाती है ! रघुनाथ सफाला के शब्दों में मातृभाषा 'किसी वर्ग समुदाय' समाज या प्रांत की बोली जाने वाली भाषा उसके सदस्यों की मातृभाषा है !

प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा की आवश्यकता क्यों होती है?

अनेक अनुसंधान व शोधों से स्पष्ट है कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने पर उनका सही बौद्धिक विकास होता है । उनके विचार करने व चिंतन करने की क्षमता में बढोत्तरी होती है । कोई भी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हो या फिर कोई भी ऐसा व्यक्ति जिन्होंने कोई मौलिक कार्य किया हो, सभी ने मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त की है ।

क्या शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए?

शिक्षा का जो माध्यम हमारी सोच, हमारे समाज के आदर्श और हमारी जरूरतों के अनुरूप हो उसे ही अपनाना चाहिए। इस आधार पर विदेशी भाषा के मुकाबले अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करना अधिक लाभदायक और उचित है। शिक्षा का एक अहम् उद्देश्य है मानव में नैतिक मूल्य का बीजारोपण करना।