सब्सक्राइब करे youtube चैनल (natural resources in hindi) प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं | प्रकार या वर्गीकरण | प्राकृतिक संसाधन की परिभाषा क्या है , कौन कौन से है नाम की लिस्ट , प्रबंधन , उपयोग और आवश्यकता ? प्रस्तावना : अन्य जीवधारियों की तरह मानव भी प्राकृतिक तंत्र का एक साधारण सदस्य है तथा जीवनयापन के लिए
विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहता है। लेकिन बुद्धि के विकास ने मानव को प्राकृतिक संसाधनों का मालिक बना दिया। फलस्वरूप मानव ने इस संसाधनों का मनमाना अंधाधुंध दोहन प्रारंभ कर दिया। इस अविवेकपूर्ण उपयोग से भौतिक सुखो में बढ़ोतरी के साथ साथ प्राकृतिक संसाधन तथा जीवधारियों का आपसी संतुलन गडबडाने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है। वास्तव में मानव ने प्राकृतिक संसाधनों की घोर उपेक्षा की है , जिसके दुष्परिणाम अब स्वयं मानव जाति के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर रहे है। अत: मानव जाति को विनाश से बचाने
के लिए विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणपूर्ण सदुपयोग आज भी प्रमुख समस्या है। 1980 से प्राकृतिक संसाधनों के सम्बंधित बोध के निम्नलिखित 5 कालों का निर्धारण किया गया है –
परिणामस्वरूप लोगो का – सहकारी पर्यावरणीय नीतियों , प्रादेशिक आर्थिक सुधार , युक्तियुक्त और विवेकपूर्ण संसाधन नियोजन , पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय समस्यायों के प्रति जनचेतना और जनजागरण और पर्यावरण को बचाने के लिए स्वयंसेवी संगठनो की स्थापना और जनआन्दोलन (जैसे चिपको आन्दोलन) के क्रियान्वयन के प्रति अधिकाधिक ध्यान आकर्षण हुआ।
प्राकृतिक संसाधन : “संसाधन” केवल किसी विशिष्ट उद्देश्य के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त होता है। गिलहरियों तथा रोबिन पक्षियों के लिए प्रकटत: वे ही पदार्थ साधन होंगे जिनकी इन्हें आहार , आश्रय , विस्तार इत्यादि के लिए आवश्यकता होती है लेकिन इस शब्द को हम सामान्यतया इस अर्थ में प्रयोग नहीं करते है। संसाधन साधनों के वे स्रोत होते है जो हमारे जीवित रहने तथा फलने फूलने के लिए आवश्यक होते है। मानव के लिए संसाधन का अर्थ अनेक प्रकार की वस्तुओं से है। उत्तरी अमेरिका के महाद्वीप के संसाधन कोलम्बस के पूर्व के इन्डियनों के लिए तथा बाद में आने वाले यूरोपियनों के लिए सर्वथा भिन्न थे। यूरोप के निवासियों के लिए अट्ठारहवी शताब्दी तथा बीसवीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप के साधन अलग अलग थे। इसका एक बहुत ही स्पष्ट उदाहरण युरेपियन है जो हमारे देखते ही देखते एक साधन बन गया है। जब हम संसाधनों पर विचार करना शुरू करते है तो हम पारिस्थितिकी से अर्थशास्त्र पर आ जाते है। तथापि आज भी मानव जीव मण्डल का अंग बना हुआ है तथा उसके संसाधन पर्यावरण के अंग है इसलिए यह आवश्यक है कि पारिस्थितिकी और अर्थशास्त्र पर विवेचन करते हुए उन दोनों में एक सम्मिश्र बनाये रखा जाए। संसाधन का अर्थ : संसाधन एक गतिशील नामावली है क्योंकि ज्ञान , समाज , विज्ञान और प्रोद्योगिकी में प्रगति और विकास के साथ इसके अर्थ में भी परिवर्तन होता रहता है। कोई भी वस्तु , जो मनुष्य के लिए उपयोगी होती है , संसाधन है। दुसरे शब्दों में संसाधन वह वस्तु अथवा तत्व होता है जिसका उपयोग करके मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और महत्वाकांक्षाओं की तुष्टि करता है। वास्तव में संसाधनों के तात्पर्य और संकल्पनाओं में सांस्कृतिक और प्रोद्योगिकीय परिवर्तनों के साथ परिवर्तन होता रहता है। उदाहरण के लिए , वर्तमान समय में विचार , चिंतन , सौन्दर्य , ज्ञान , बुद्धि आदि भी संसाधन हो गए है। उल्लेखनीय है कि हम लोगो का यहाँ पर मात्र प्राकृतिक संसाधनों और खासकर परिस्थितिकीय संसाधनों से ही सम्बन्ध है। अत: यहाँ पर केवल परिस्थितिकीय संसाधनों पर ही विचार किया जायेगा। आर. ऍफ़ डैस्मेन (1968) के अनुसार प्रारंभ में वे पदार्थ प्राकृतिक संसाधन थे जो मनुष्य की किसी खास संस्कृति के लिए उपयोगी और मूल्यवान थे। आज पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु मनुष्य के लिए उपयोगी और मूल्यवान है इसलिए वह प्राकृतिक संसाधन है। नॉर्टन गिन्सबर्ग 1957 के अनुसार “मनुष्य के कार्य क्षेत्र में प्रकृति द्वारा मुक्त रूप से प्रदान किये जाने वाले भौतिक पदार्थ और मानव के परिवेश में अतिरिक्त अभौतिक गुणवत्ता प्राकृतिक संसाधन है। “ जिमरमैन (e w zimmermann) के अनुसार संसाधन का तात्पर्य किसी वस्तु अथवा तत्व से नहीं होता है बल्कि उसके कार्य से होता है। प्राकृतिक संसाधन अपने आप में संसाधन नहीं होते है क्योंकि वे असक्रिय होते है। वे संसाधन तब होते है जब उनका उपयोग किया जाए। इससे स्पष्ट होता है कि संसाधनों का मनुष्य के क्रियाकलापों और प्राकृतिक पर्यावरण अथवा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के मध्य कार्यात्मक सम्बन्ध होता है। यही कारण है कि संसाधन स्थिर नहीं होते है जबकि गतिशील होते है और उनकी सार्थकता ज्ञान में वृद्धि , प्रोद्योगिकी में विस्तार और सामाजिक आवश्यकताओं और उद्देश्यों के अनुरूप होती है। उनका (ससाधनों का) विकास उनके सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है तथा संसाधनों के सामाजिक मूल्य लोगो के संसाधनों के प्रति बोध दृष्टिकोण , आवश्यकताओं , प्रोधोगिकी प्रगति , वित्तीय और संस्थागत सामर्थ्य से निर्धारित होते है। (सविन्द्र सिंह 1983) संसाधनों के वर्गीकरणसंसाधनों को सामान्यतया दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है –
ओवेन (O. S. owen , 1971) ने संसाधनों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया है जो निम्नलिखित है –
ओवन ने इन्हें पुनः द्वितीय और तृतीय श्रेणियों में विभाजित किया है। ओवन का संसाधनों का वर्गीकरण उनकी गुणवत्ता , परिवर्तनशीलता और पुनः उपयोगिता के आधार पर आधारित है। ओवन ने विभिन्न संसाधनों के परिरक्षण और संरक्षण के लिए नियमों और विधियों का भी सुझाव दिया है। सारणी : संसाधनों का वर्गीकरण या प्रकार :-
सारणी : विभिन्न संसाधनों के प्रकार और उनकी सोदाहरण विशेषताएँ
प्राकृतिक संसाधन क्या है दो उदाहरण दीजिए?Solution : ये प्राकृतिक साधन जिनका उपयोग मनुष्य अपने भोजन और विकास के लिए करता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। वायु, जल, मिट्टी, खनिज, ऊजो, इंधन के स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम इत्यादि हमारे प्राकृतिक संसाधन हैं।
प्राकृतिक संसाधन क्या हैं समझाइए?प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जो प्रकृति से लिए गए हैं और कुछ संशोधनों के साथ उपयोग किए जाते हैं। इसमें वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग, सौंदर्य मूल्य, वैज्ञानिक रुचि और सांस्कृतिक मूल्य जैसी मूल्यवान विशेषताओं के स्रोत शामिल हैं।
प्राकृतिक संसाधन के दो प्रकार कौन से हैं प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए?Solution : प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के होते हैं <br> (i) क्षय योग्य (समाप्त होने वाले) प्राकृतिक संसाधन-(Exhaustible Natural Resources) उदाहरण-कोयला, पेट्रोलियम, खनिज, वन्य जीव आदि। <br> (ii) अक्षय (समाप्त न होने वाले) प्राकृतिक संसाधन-(Inexhaustible Natural resources)। उदाहरण-वायु (पवन), जल, सौर ऊर्जा आदि।
प्राकृतिक संसाधन के दो प्रकार कौन से हैं?प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के होते हैं :. नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन. अनवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन. |