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अध्याय 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय1945 के वसंत में हेलमुट नामक 11 वर्षीय जर्मन लड़का बिस्तर में लेटे कुछ सोच रहा था। तभी उसे अपने माता-पिता की दबी-दबी सी आवाज़ें सुनाई दीं। हेलमुट कान लगा कर उनकी बातचीत सुनने की कोशिश करने लगा। वे गंभीर स्वर में किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे। हेलमुट के पिता एक जाने-माने चिकित्सक थे। उस वक्त वे अपनी पत्नी से इस बारे में बात कर रहे थे कि क्या उन्हें पूरे परिवार को खत्म कर देना चाहिए या अकेले आत्महत्या कर लेनी चाहिए। उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित दिखाई नहीं दे रहा था। वे घबराहट भरे स्वर में कह रहे थे, "अब मित्र राष्ट्र भी हमारे साथ वैसा ही बर्ताव करेंगे जैसा हमने अपाहिजों और यहूदियों के साथ किया था।" अगले दिन वे हेलमुट को लेकर बाग में घूमने गए। यह आखिरी मौका था जब हेलमुट अपने पिता के साथ बाग में गया। दोनों ने बच्चों के पुराने गीत गाए और खूब सारा वक्त खेलते-कूदते बिताया। कुछ समय बाद हेलमुट के पिता ने अपने द ़फ्तर में खुद को गोली मार ली। हेलमुट की यादों में वह क्षण अभी भी ज़िंदा है जब उसके पिता की खून में सनी वर्दी को घर के अलाव में ही जला दिया गया था। हेलमुट ने जो कुछ सुना था और जो कुछ हुआ, उससे उसके दिलोदिमाग पर इतना गहरा सदमा पहुँचा कि अगले नौ साल तक वह घर में एक कौर भी नहीं खा पाया। उसे यही डर सताता रहा कि कहीं उसकी माँ उसे भी ज़हर न दे दे।
चित्र 1 - हिटलर (मध्य) और ग्योबल्स (बाएँ) सरकारी बैठक के बाद बाहर निकलते हुए, 1932.हेलमुट को शायद समझ में न आया हो लेकिन हकीकत यह है कि उसके पिता ‘नात्सी’ थे। वे एडॉल्फ़ हिटलर के कट्टर समर्थक थे। आप में से कई बच्चे नात्सियों और उनके नेता हिटलर के बारे में जानते होंगे। आपको शायद पता होगा कि हिटलर जर्मनी को दुनिया का सबसे ताकतवर देश बनाने को कटिबद्ध था। वह पूरे यूरोप को जीत लेना चाहता था। आपने यह भी सुना होगा कि उसने यहूदियों को मरवाया था। लेकिन नात्सीवाद सिर्फ़ इन इक्का-दुक्का घटनाओं का नाम नहीं है। यह दुनिया और राजनीति के बारे में एक संपूर्ण व्यवस्था, विचारों की एक पूरी संरचना का नाम है। आइए, समझने की कोशिश करें कि नात्सीवाद का मतलब क्या था। इस सिलसिले में सबसे पहले हम यह देखेंगे कि हेलमुट के पिता ने आत्महत्या क्यों की थी; वे किस चीज़ से डरे हुए थे। नए शब्द मित्र राष्ट्र ः मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व शुरू में ब्रिटेन और फ़्रांस के हाथों में था। 1941 में सोवियत संघ और अमेरिका भी इस गठबंधन में शामिल हो गए। उन्होंने धुरी शक्तियों यानी जर्मनी, इटली और जापान का मिल कर सामना किया। मई 1945 में जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के सामने समर्पण कर दिया। हिटलर को अंदाज़ा हो चुका था कि अब उसकी लड़ाई का क्या हश्र होने वाला है। इसलिए, हिटलर और उसके प्रचार मंत्री ग्योबल्स ने बर्लिन के एक बंकर में पूरे परिवार के साथ अप्रैल में ही आत्महत्या कर ली थी। युद्ध खत्म होने के बाद न्यूरेम्बर्ग में एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अदालत स्थापित की गई। इस अदालत को शांति के विरुद्ध किए गए अपराधों, मानवता के खिलाफ़ किए गए अपराधों और युद्ध अपराधों के लिए नात्सी युद्धबंदियों पर मुकदमा चलाने का ज़िम्मा सौंपा गया था। युद्ध के दौरान जर्मनी के व्यवहार, खासतौर से इंसानियत के खिलाफ़ किए गए उसके अपराधों की वजह से कई गंभीर नैतिक सवाल खड़े हुए और उसके कृत्यों की दुनिया भर में निंदा की गई। ये कृत्य क्या थे? नात्सी शब्द जर्मन भाषा के शब्द ‘नात्सियोणाल’ के प्रारंभिक अक्षरों को लेकर बनाया गया है। ‘नात्सियोणाल’ शब्द हिटलर की पार्टी के नाम का पहला शब्द था इसलिए इस पार्टी के लोगों को नात्सी कहा जाता था। दूसरे विश्वयुद्ध के साए में जर्मनी ने जनसंहार शुरू कर दिया जिसके तहत यूरोप में रहने वाले कुछ खास नस्ल के लोगों को सामूहिक रूप से मारा जाने लगा। इस युद्ध में मारे गए लोगों में 60 लाख यहूदी, 2 लाख जिप्सी और 10 लाख पोलैंड के नागरिक थे। साथ ही मानसिक व शारीरिक रूप से अपंग घोषित किए गए 70,000 जर्मन नागरिक भी मार डाले गए। इनके अलावा न जाने कितने ही राजनीतिक विरोधियों को भी मौत की नींद सुला दिया गया। इतनी बड़ी तादाद में लोगों को मारने के लिए औषवित्स जैसे कत्लखाने बनाए गए जहाँ ज़हरीली गैस से हज़ारों लोगों को एक साथ मौत के घाट उतार दिया जाता था। न्यूरेम्बर्ग अदालत ने केवल 11 मुख्य नात्सियों को ही मौत की सज़ा दी। बाकी आरोपियों में से बहुतों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई। सज़ा तो मिली लेकिन नात्सियों को जो सज़ा दी गई वह उनकी बर्बरता और उनके ज़ुल्मों के मुकाबले बहुत छोटी थी। असल में, मित्र राष्ट्र पराजित जर्मनी पर इस बार वैसा कठोर दंड नहीं थोपना चाहते थे जिस तरह का दंड पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर थोपा गया था। बहुत सारे लोगों का मानना था कि पहले विश्वयुद्ध के आखिर में जर्मनी के लोग जिस तरह के अनुभव से गुज़रे उसने भी नात्सी जर्मनी के उदय में योगदान दिया था। यह अनुभव क्या था? 1 वाइमर गणराज्य का जन्मबीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जर्मनी एक ताकतवर साम्राज्य था। उसने अॉस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ मिलकर मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, प्ऱηांस और रूस) के खिलाफ़ पहला विश्वयुद्ध (1914-1918) लड़ा था। दुनिया की सभी बड़ी शक्तियाँ यह सोच कर इस युद्ध में कूद पड़ी थीं कि उन्हें जल्दी ही विजय मिल जाएगी। सभी को किसी-न-किसी फ़ायदे की उम्मीद थी। उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि यह युद्ध इतना लंबा खिंच जाएगा और पूरे यूरोप को आर्थिक दृष्टि से निचोड़ कर रख देगा। प्ऱηांस और बेल्जियम पर क़ब्ज़ा करके जर्मनी ने शुरुआत में सफलताएँ हासिल कीं लेकिन 1917 में जब अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों में शामिल हो गया तो इस ख़ेमे को काफ़ी ताकत मिली और आखिरकार, नवंबर 1918 में उन्होंने केंद्रीय शक्तियों को हराने के बाद जर्मनी को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय और सम्राट के पदत्याग ने वहाँ की संसदीय पार्टियों को जर्मन राजनीतिक व्यवस्था को एक नए साँचे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया। इसी सिलसिले में वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई और संघीय आधार पर एक लोकतांत्रिक संविधान पारित किया गया। नई व्यवस्था में जर्मन संसद यानी राइख़स्टाग के लिए जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा। प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए औरतों सहित सभी वयस्क नागरिकों को समान और सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान किया गया। लेकिन यह नया गणराज्य खुद जर्मनी के ही बहुत सारे लोगों को रास नहीं आ रहा था। इसकी एक वजह तो यही थी कि पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद विजयी देशों ने उस पर बहुत कठोर शर्तें थोप दी थीं। मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय (Versailles) में हुई शांति-संधि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी। इस संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश, तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी, 13 प्रतिशत भूभाग, 75 प्रतिशत लौह भंडार और 26 प्रतिशत कोयला भंडार प्ऱηांस, पोलैंड, डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े। जर्मनी की रही-सही ताकत खत्म करने के लिए मित्र राष्ट्रों ने उसकी सेना भी भंग कर दी। युद्ध अपराधबोध अनुच्छेद (War Guilt Clause) के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को ज़िम्मेदार ठहराया गया। इसके एवज़ में उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया। खनिज संसाधनों वाले राईनलैंड पर भी बीस के दशक में ज़्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही क़ब्ज़ा रहा। बहुत सारे जर्मनों ने न केवल इस हार के लिए बल्कि वर्साय में हुए इस अपमान के लिए भी वाइमर गणराज्य को ही ज़िम्मेदार ठहराया। चित्र 2 - वर्साय की संधि के बाद जर्मनी. इस नक्शे में आप उन इलाकों को देख सकते हैं जो संधि के बाद जर्मनी के हाथ से निकल |