पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असंभव है? - prthvee ke aantarik bhaag mein adhik gaharaee mein jaana kyon asambhav hai?

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना

सामान्य परिचय

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पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में पूर्ण ज्ञान नहीं है, क्योंकि पृथ्वी की त्रिज्या लगभग 6,378 किमी. है, और अब तक सबसे गहरी खुदाई आर्कटिक महासागर के कोला क्षेत्र में 12 किमी. की गहराई तक की गई है।

पृथ्वी की भीतरी परत की गहराई को देखते हुए हमारे द्वारा भेदी गई गहराई विशेष महत्व नहीं रखती है। जब तक प्रत्यक्ष अवलोकन संभव नहीं होता तब तक भूवैज्ञानिक अध्ययन हेतु विभिन्न अप्रत्यक्ष प्रमाणों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

आन्तरिक संरचना संबंधी स्रोत/प्रमाण

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी के लिए निम्न स्रोतों/साधनों को आधार बनाया है-

 प्राकृतिक स्रोत

  • ज्वालामुखी आधारित स्रोत
  • उल्का पिंडों से प्राप्त साक्ष्य
  • भूकंपीय तरंगों

अप्राकृतिक स्रोत

घनत्व आधारित स्रोत

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  • घनत्व पर आधारित अध्ययन करते समय पृथ्वी के औसत घनत्व और क्रस्ट के औसत घनत्व के आकलन के द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि पृथ्वी की आंतरिक परतों का घनत्व, ऊपरी परतों से अधिक होता है।
  • पृथ्वी की ऊपरी परत का घनत्व 2.67 से 3.3 ग्राम प्रति घन सेमी. के बीच माना जाता है जबकि केन्द्र का घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी. अनुमान लगाया गया है। सम्पूर्ण पृथ्वी का औसत घनत्व  5.5 माना जाता है। इससे पता चलता है कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक घनत्व वाले पदार्थ पाए जाते हैं। सतह से अंदर की परतों में जाने पर घनत्व में होने वाली वृद्धि के संदर्भ में दो मत दिये गए हैं-

प्रथम मत के अनुसार, ‘‘पृथ्वी की रासायनिक संरचना और संघटन समान होता है, लेकिन दाब में वृद्धि के कारण घनत्व में वृद्धि होती है।’’ इस मत की आलोचना करते हुए यह विचार व्यक्त किया गया कि प्रत्येक पदार्थ की अपनी एक ‘प्रत्यास्थता सीमा’ होती है, जिसके कारण दाब को बढ़ाकर एक सीमा तक ही घनत्व में वृद्धि की जा सकती है अर्थात घनत्व में वृद्धि केवल दाबजनिक नहीं हो सकती।

द्वितीय मत के अनुसार, ‘‘पृथ्वी की आन्तरिक परतों की रासायनिक संचरना और संघटन एक समान नहीं होते हैं, इसलिये सतह से अंदर की परतों में जाने पर पदार्थ/तत्वों के भार में वृद्धि के कारण घनत्व में वृद्धि होती है।’’

घनत्व में होने वाली इस वृद्धि के संदर्भ में समर्थकों ने निम्न तर्क दिये हैं-

      •  
  • पृथ्वी के केन्द्र में चुम्बकीय गुण रखने वाला लोहे जैसा पदार्थ हैं, जिससे कोर इस्पात की तरह सुदृढ़ है।
  • पृथ्वी की तुलना अन्य उल्कापिंडों से करने पर असमान संघटन एंव संरचना प्राप्त होती है।
  • इस प्रकार, घनत्व पर आधारित अध्ययन के आधार पर कहा जाता है कि ‘‘पृथ्वी की सतह से अन्दर की परतों में जाने पर विभिन्न रासायनिक संरचना और संघटन वाली परतों के घनत्व में वृद्धि होती है।’’
  • इस अध्ययन के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भागों को क्रमशः ऊपर से केन्द्र की ओर सियाल, सीमा एवं निफे परत के रूप में भी सीमांकित किया गया है।
  • पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असंभव है? - prthvee ke aantarik bhaag mein adhik gaharaee mein jaana kyon asambhav hai?

    रासायनिक संघटन के आधार पर (एडवर्ड स्वेस)

    सियाल 

      • यह परत महाद्वीपीय अवसादी शैलों के नीचे स्थित होती है तथा इसके मुख्य संघटक सिलिका (Si) एवं एल्युमीनियम (Al) हैं।
      • इसका औसत घनत्व 2.9 है तथा परत की मोटाई लगभग 50 से 300 किमी. के मध्य होती है।

    सीमा (SiMa)

      • इसके मुख्य संघटक सिलिका (Si) और मैग्नीशियम (Mg) होते हैं।
      • यह सियाल के ठीक नीचे पाई जाती है तथा भारी बेसाल्टी आग्नेय चट्टानों से बनी होती है।
      • इस परत का औसत घनत्व 2.9 से 4.7 के बीच होता है तथा इसकी मोटाई, 1,000 से 2,000 किमी. तक है।

    निफे (NiFe)

      • यह परत निकेल (Ni) तथा आयरन (Fe) से मिलकर बनी होती है।
      • यह सीमा के नीचे स्थित परत है। इसका औसत घनत्व लगभग 11 है।

    दाब आधारित स्रोत

    •  
    • पृथ्वी की सतह से आंतरिक परतों की ओर जाने पर दाब में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप घनत्व में भी वृद्धि होती है। दाब में यह वृद्धि बाहरी परतों के कारण मानी जाती है। इसी कारण पृथ्वी के केन्द्र में घनत्व लगभग 11 या 12 ग्राम प्रति घन सेमी. पाया जाता है।
    • वैज्ञानिकों का विचार है कि पृथ्वी के भीतरी भाग में स्थित पदार्थ ही भारी है, जिससे केन्द्र पर दाब अधिक होता है। अधिक दाब के कारण ही ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं तथा आंतरिक शक्तियां काम करती हैं।

    ताप आधारित स्रोत

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    • तापमान पर आधारित अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी की सतह से अंदर की परतों में जाने पर रेडियोएक्टिव तत्वों के विघटन के कारण सामान्यतः 32 मीटर की गहराई पर 10C तापमान बढ़ जाता है।
    • यदि इसे आधार मानें तो 10 किमी. की गहराई में तापमान धरातल की अपेक्षा 3000C से अधिक तथा 40 किमी. की गहराई पर इसे लगभग 12000C होना चाहिए, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। पृथ्वी के आन्तरिक भागों में अत्यधिक ताप भिन्नता देखने को मिलती है।
    • अतः ताप एवं दाब दोनों के अध्ययन द्वारा यह स्पष्ट नहीं हो सका कि आन्तरिक परतें किस अवस्था में है।

    पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी स्रोत

      • ‘ग्रहाणु परिकल्पना’ के अनुसार पृथ्वी का केन्द्र ठोस अवस्था में है, जबकि ‘ज्वारीय परिकल्पना’ के अनुसार पृथ्वी का केन्द्र तरल अवस्था में है। अतः उपरोक्त विचारों से इतना तो स्पष्ट है कि पृथ्वी का केन्द्र या तो ठोस होगा या तरल होगा।

    प्राकृतिक स्रोत

    ज्वालामुखी स्रोत

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    • ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाले लावा, गैस व तरल मैग्मा के आधार पर भी यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की आन्तरिक परतों में कहीं-न-कहीं ऐसी परत अवश्य है, जो तरल अवस्था में है।
    • लेकिन, यदि पृथ्वी का केन्द्र द्रव अवस्था में होता तो सूर्य और चंद्रमा के गुरूत्वाकर्षण से प्रभावित अवश्य होता। परन्तु, वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि कोर में अत्यधिक दबाव चट्टानों को पिघली हुई अवस्था में नहीं रहने देगा।

    उल्का पिंडों से प्राप्त साक्ष्य

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    • उल्का पिंड वे ठोस संरचनाएं हैं जो स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष में तैर रही हैं। कभी-कभी पृथ्वी के गुरूत्वीय प्रभाव क्षेत्र में आने पर ये पिंड पृथ्वी से टकरा जाते हैं।
    • पृथ्वी पर गिरने के दौरान अत्यधिक घर्षण की वजह से उल्का पिंडों की बाहरी परत नष्ट हो जाती है और आन्तरिक भाग अनावृत्त हो जाता है। उनके केन्द्रीय भाग में पाए जाने वाले भारी पदार्थों  के संघटन के आधार पर पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अनुमान लगाया गया है।
    • इसका कारण यह है कि ये उल्काएं वैसे ही ठोस पदार्थ की बनी हुई हैं, जिनसे पृथ्वी की रचना हुई है अर्थात दोनों का सुदूर भूतकाल में समान नक्षत्र प्रणाली से निर्मित होना माना जाता है।

    भूकम्पीय तरंगों पर आधारित स्रोत

    • वहीं भूकम्पीय तरंगों के वक्राकार मार्ग के कारण यह भी प्रमाणित हो गया कि पृथ्वी की आन्तरिक परतों की रासायनिक संरचना एक समान नहीं है।
    • सतह से लगभग 2900 किमी. की गहराई में ‘गुटेनबर्ग असांतत्य’ तक P और S तरंगों का प्रभाव होने के कारण जहां यह प्रमाणित हुआ कि ‘क्रस्ट’ और ‘मैंटल’ के पदार्थ ठोस अवस्था में रहते हैं, वहीं गुटेनबर्ग असांतत्य के बाद S-तरंग के विलुप्त हो जाने के कारण यह प्रमाणित हुआ कि ‘बाह्य क्रोड’ के पदार्थ तरल अवस्था में हैं।
    • इन तरंगों की गति एवं दिशा के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग की संरचना का पता चलता है।
    • भूकंपीय तरंग
    • भूकंपीय तरंग P, S तथा L प्रकार की होती है, जिनमें P तरंग ठोस, तरल एवं गैस तीनों माध्यम में गमन करती है, वहीं S तरंग केवल ठोस पदार्थों के माध्यम में ही गमन कर सकती है। S तरंगों की इसी विशेषता ने वैज्ञानिकों को भूगर्भीय संरचना समझने में मदद की। L तरंगे, P और S तरंगों एवं धरातलीय चट्टानों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण उत्पन्न होती है। L तरंगों को धरातलीय तरंगे कहा जाता है। क्योंकि ये तरंगे धरातल के साथ-साथ चलती है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने के लिये Pऔर S तरंगों से विशेष रूप से सहायता मिलती है।

    ‘Pg’ तथा ‘Sg’ तरंगें

  •       सन् 1909 में ‘क्रोएशिया’ की ‘कुपा (कुल्पा) घाटी’ में आए भूकम्प के निरीक्षण से P तथा S तरंगों से मिलती-जुलती तरंगों का पता लगाया गया, जिन्हें ‘Pg’ तथा ‘Sg’ तरंगें कहा गया। व्यवहार में ‘Pg’ तथा ‘Sg’ तरंगें, क्रमशः P तथा S तरंगों के समान ही होती हैं लेकिन इनकी गति P तथा S तरंगों की अपेक्षा कम होती है। ये तरंगे मुख्यतः पृथ्वी की ऊपरी परत से होकर भ्रमण करती हैं।

    पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असंभव है? - prthvee ke aantarik bhaag mein adhik gaharaee mein jaana kyon asambhav hai?

    पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असंभव है? - prthvee ke aantarik bhaag mein adhik gaharaee mein jaana kyon asambhav hai?

    P* तथा S* तरंगें

                  P* तरंग की खोज सन 1923 में टार्न में आए भूकम्प के आधार पर ‘कोनराड महोदय’ ने की। इसकी गति P एवं Pg के बीच की होती है। जबकि S* तरंग की खोज सन 1925 में हरफोर्ड में आए भूकम्प के आधार पर ‘जैफ्रीज’ ने की। इसकी गति S तथा Sg के बीच की होती है।

    भूकम्पीय तरंग आधारित वर्गीकरण

      • P, S, Pg, Sg, P* तथा S* कम्पीय तरंगों के व्यवहार के आधार पर पृथ्वी में तीन आन्तरिक परतों का अनुमान लगाया जाता है-
        • क्रस्ट या भूपर्पटी
        • मैंटल
        • केन्द्रीय भाग (क्रोड)

    भूपर्पटी

      • यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी एवं पतली परत है, जिसकी औसत मोटाई 33 किमी. है किन्तु महासागरीय क्रस्ट की मोटाई (औसत 5 किमी.) महाद्वीपीय क्रस्ट की मोटाई से कम है। भूकम्पीय लहरों (तरंगों) के आधार पर क्रस्ट को दो भागों में विभाजित किया जाता है-
        • ऊपरी परत, जहाँ मुख्यतः ग्रेनाइट चट्टानें पाई जाती हैं, जिसके द्वारा महाद्वीपों का निर्माण हुआ है। इस परत में सिलिका एवं एल्युमीनियम जैसे तत्वों की प्रधानता है अतः इसे ‘सियाल’ भी कहा जाता है। यहां पर 'P' लहरों की गति 6.1 किमी. प्रति सेकंड होती है।
        • निम्न परत में बेसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं, जिसके द्वारा महासागरीय सतह का निर्माण हुआ है। इसे सीसा (सिलिका तथा मैग्नीशियम की प्रधानता के कारण) भी कहा जाता है। यहाँ पर ‘P’ लहरों की गति 6.9 किमी. प्रति सेकंड होती है।

    असंबद्धता

      • पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असंभव है? - prthvee ke aantarik bhaag mein adhik gaharaee mein jaana kyon asambhav hai?
        • पृथ्वी की परतों के मध्य पाया जाने वाला एक ऐसा संक्रमण क्षेत्र, जहां पर दो परतों की विशेषताएं एक साथ पाई जाती हैं।
        • पृथ्वी के आन्तरिक भाग में दो मुख्य असंबद्धताएं पाई जाती हैं। पहली असंबद्धता क्रस्ट तथा मैंटल को एक-दूसरे से अलग करती है। इस सीमा को ‘मोहो असंबद्धता’ कहते हैं।
        • दूसरी असंबद्धता मैंटल तथा कोर को अलग करती है। इसे ‘गुटेनबर्ग असंबद्धता’ कहते हैं। यह असंबद्धता पृथ्वी में 2900 किमी. की गहराई पर है।
        • क्रस्ट तथा ऊपरी मैंटल की ऊपरी परत ‘स्थलमण्डल’ के अन्तर्गत आती है, जिसकी मोटाई महाद्वीपों व महासागरों में अलग-अलग होती है। भूकम्प भी इसी मण्डल में आते हैं। ऊपरी तथा निचले क्रस्ट के बीच घनत्व संबंधित भिन्नता ‘कोनराड असंबद्धता’ कहलाती है।

    भूपर्पटी की रचना के सामान्य तत्व

    तत्व

    भार (प्रतिशत)

    आक्सीजन (O)

    46.60

    सिलिकान (Si)

    27.72

    एल्युमीनियम (Al)      

    8.13

    लोहा (Fe)

    5.00

    कैल्शियम (Ca) 

    3.63

    सोडियम (Na)

    2.83

    पोटेशियम (K)   

    2.59

    मैग्नीशियम (Mg)

    2.09

    मैंटल

    •  
    • इसका विस्तार मोहो असंबद्धता से 2900 किमी. की गहराई तक है। निचले क्रस्ट तथा ऊपरी मैंटल को ‘मोहो असंबद्धता’ अलग करती है।
    • पृथ्वी की समस्त आयतन का सर्वाधिक 83 प्रतिशत एवं द्रव्यमान का लगभग 68 प्रतिशत भाग मैंटल में विद्यमान है। इसका औसत घनत्व 3.5 से 5.5 है। निचले क्रस्ट से ऊपरी मैंटल में ‘P’ तरंगों की गति 6.9 से बढ़कर 7.9 किमी. तथा 7.9 किमी. से बढ़कर 8.1 किमी. प्रति सेकंड हो जाती है।
    • मैंटल की सबसे ऊपरी परत अधिक घनत्व वली दृढ़ चट्टानों से निर्मित है एवं इसमें मैग्नीशियम तथा लोहे जैसे भारी खनिजों की प्रधानता है।
    • ऊपरी मैंटल के ऊपरी भाग को ‘दुर्बलतामण्डल’ कहा जाता है। दुर्बलतामण्डल ही ज्वालामुखी क्रिया से उद्गारित होने वाले लावा का प्रमुख स्रोत होता है।
    • मैंटल की निचली परत को ‘मध्यमण्डल’ कहा जाता है।
    • मैंटल के ऊपरी परत को निचली परत से अलग करने वाली संरचना को ‘रेपेटी असंबद्धता’ कहते हैं।
    • भूकम्पीय लहरों की गति के आधार पर मैंटल को तीन भागों में बांटा जाता है-
      • मोहो असंबद्धता से 200 किमी. तक
      • 200 से 700 किमी. तक
      • 700 से 2900 किमी. तक
    • पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक गहराई में जाना क्यों असंभव है? - prthvee ke aantarik bhaag mein adhik gaharaee mein jaana kyon asambhav hai?

    क्रोड

      • निचले मैंटल तथा ऊपरी कोर में तरंगों की गति के आधार पर एक असंबद्धता पाई जाती है जिसे ‘गुटेनबर्ग असंबद्धता’ कहते हैं। यह मैंटल तथा कोर को अलग करती है।
      • यह पृथ्वी की सबसे आन्तरिक परत है, जिसे ‘केन्द्रमण्डल’ कहा जाता है। यह मुख्यतः निकेल एवं लोहा द्वारा निर्मित है, अतः इसे ‘निफे’ (NiFe) के नमा से भी जाना जाता है।
      • कोर का विस्तार 2900 किमी. से पृथ्वी के केन्द्र (त्रिज्या 6378 किमी.) तक है। इसका तापमान लगभग 27000C है। कोर का बाहरी भाग तरल तथा आंतरिक भाग ठोस अवस्था में है।
      • P तरंगों की गति के आधार पर कोर को दो उपभागों में बांटा जाता है-बाह्य कोर तथा आन्तरिक क्रोड।
      • बाह्य कोर तथा आन्तरिक क्रोड के घनत्व में भिन्नता के कारण इसको ‘लेहमन असंबद्धता’ अलग करती है।
      • बाह्य कोर का विस्तार 2900 किमी. से 5100 किमी. तक है, यहां पर ‘S’ लहरें प्रविष्ट नहीं हो पाती है; अतः यह तरल अवस्था में विद्यमान है।
      • आंतरिक कोर का विस्तार 5100 किमी. से 6378 किमी. तक है जो ठोस अथवा प्लास्टिक अवस्था में है। इसका घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी. है। कोर में ‘P’ लहरों की गति बढ़कर लगभग 11.23 किमी. प्रति सेकंड हो जाती है।

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पृथ्वी की आंतरिक गहराई कितनी है?

यह पृथ्वी का लगभग 16% भाग घेरे हुए है। इसको दो भागो में बाटा गया है, बाह्य क्रोड तथा आंतरिक क्रोड। बाह्य क्रोड सतह के नीचे लगभग 2900 से 5150 किमी0 तक फैला हुआ है तथा आंतरिक क्रोड लगभग 5150 से 6371 किमी0 पृथ्वी के केंद्र तक फैला हुआ है।

पृथ्वी के आंतरिक भाग को क्या कहते हैं?

(1) पृथ्वी के अन्दर के हिस्से को तीन भागों में बांटा गया है. (2) पृथ्वी के अन्दर के तीन हिस्से हैं ऊपरी सतह या भू पर्पटी( Crust), आवरण(Mantle) और केंद्रीय भाग(Core). (3) भू पर्पटी- पृथ्वी के ऊपरी भाग को भू-पर्पटी कहते है. (4) यह अन्दर की तरफ 34 किमी तक का क्षेत्र है.

पृथ्वी के आंतरिक भाग में जाना क्यों आवश्यक है?

भूकंपी तरंगों की संचरण गति में पृथ्वी की विभिन्न पर्तों के अनुसार परिवर्तन होता है। इस प्रकार पृथ्वी की विभिन्न पर्तों से गुजरने वाली भूकंपी तरंगों का गति का मापन, वैज्ञानिकों को पृथ्वी के आंतरिक भाग का अध्ययन करने में सहायक होता है।

पृथ्वी की आंतरिक क्रिया कौन कौन सी हैं?

पृथ्वी की आंतरिक संरचना कई स्तरों में विभाजित है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना के तीन प्रधान अंग हैं- ऊपरी सतह भूपर्पटी (Crust), मध्य स्तर मैंटल (mantle) और आंतरिक स्तर धात्विक क्रोड (Core)। पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5' भाग भूपर्पटी का है जबकि 83' भाग में मैंटल विस्तृत है। शेष 16' भाग क्रोड है।