राजस्व संहिता धारा 210 क्या है - raajasv sanhita dhaara 210 kya hai

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (चतुर्थ संशोधन) नियमावली, 2021 के संबंध में | दिनांक (20.12.2021)–RajswSanhitaFourthAmendment20SDEC2021

राजस्व संहिता की धारा- 30(1) एवं राजस्व संहिता नियमावली 2016 के नियम-25 के अनुसार क्षेत्रिक पंजी (भू-लेख खसरा प्रपत्र को संशोधित कर आर सी प्रपत्र- 4क को कम्प्यूटरीकरण किये जाने की प्रक्रिया के निर्धारण के सम्बन्ध में। दिनांक (12.02.2021 )–Khasara_12Feb2021

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता ( तृतीय संसोधन ) नियमावली – 2020 एव राजस्व परिषद का पत्र दिनांक 31-12-2020—->RevenueCodeBillThirdAmendment-2020

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (संसोधन) अधिनियम ,2020—Ordinance31-08-2020

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (संसोधन) अधिनियम 2019—Ordinance05-08-2019

ग्राम पंचायत / स्थानीय प्राधिकरणों के प्रबन्धन में निहित भूमियो के श्रेणी परिवर्तन , पुनग्रहण एव विनिमय हेतु सामान्य सिद्धआंतो का निर्धारण शासन का पत्र दिनांक 06-07-2020–Go Power Deligation06-07-2020

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (संसोधन ) अध्यादेश -2019
Date 10 march 2019 ( हिन्दी )–Revenue code amedment-hindi

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THE UTTAR PRADESH REVENUE CODE ( AMENDMENT) ORDINANCE -2019 DATE- 10-03-2019–>Ordinance(2019)

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता ,2006 की धारा 108के सम्बन्ध में पत्र दिनांक 18-04-2017—RajswSanhit-18-04-2017

झाँसी : कमजोर पैरवी अथवा साक्ष्यों के अभाव में मण्डलायुक्त न्यायालय से हार कर फाइलों में दम तोड़ने वाले सरकारी वाद अब न्याय के लिए उच्च न्यायालय व राजस्व परिषद की चौखट पर दस्तक दे सकेंगे। सरकारी अधिवक्ताओं को अपने निर्णय के खिलाफ अपील करने की यह आ़जादी स्वयं मण्डलायुक्त ने ही प्रदान की है। इससे गलती से होने वाले गलत फैसलों से सरकारी सम्पत्ति का नु़कसान नहीं होगा तो राजस्व मामलों को भी न्याय मिल सकेगा।

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सरकारी सम्पत्ति पर अवैध रूप से ़कब़्जा करने के साथ ही स्टैम्प चोरी व अन्य राजस्व के मामले तहसील न्यायालय से निर्णीत होते-होते कई बार मण्डलायुक्त न्यायालय में पहुँच जाते हैं। यहाँ प्रकृति के अनुरूप डीजीसी (क्रिमिनल) या डीजीसी (राजस्व) द्वारा मु़कदमों की पैरवी कर सरकार का पक्ष रखा जाता है। लम्बी न्यायिक प्रक्रिया के बाद कई बार सरकारी पक्ष कमजोर पड़ जाता है और निर्णय प्रतिवादी के पक्ष में चला जाता है। अनेक बार साक्ष्यों के अभाव में भी ऐसा होता है, जिससे अवैध होने के बावजूद सरकारी सम्पत्ति पर प्रतिवादी को आधिपत्य मिल जाता है। ऐसा ही राजस्व मामलों में भी होता है। चूँकि मामला आयुक्त न्यायालय से निर्णीत होता है, इसलिए शासकीय अधिवक्ता इसके खिलाफ उच्च न्यायालय अथवा राजस्व परिषद में अपील नहीं करते हैं। इससे कई बार सरकारी वादों को उचित न्याय नहीं मिल पाता है। अब ऐसा नहीं होगा। मण्डलायुक्त डॉ. अजय शंकर पाण्डेय ने इस दिशा में ऐतिहासिक पहल की है। उन्होंने शासकीय अधिवक्ताओं को अपनी न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय व राजस्व परिषद में अपील करने की आ़जादी दी है। मण्डलायुक्त की न्यायालय से यदि किसी सरकारी सम्पत्ति या राजस्व के मामले में थोड़ी-सी भी गुंजाइश होगी तो इसकी अपील उच्च न्यायालय व राजस्व परिषद में की जा सकेगी।

पलटी जाएंगी 5 साल पुराने मामलों की फाइल

मण्डलायुक्त डॉ. अजय शंकर पाण्डेय ने स्वयं की अदालत से निर्णीत ऐसे मामलों की फाइल फिर से पलटने के निर्देाश दिए हैं, जिनमें सरकारी पक्ष कमजोर पड़ा हो और प्रतिवादी ने मु़कदमे जीते हैं। 5 साल तक की फाइलों को पलटते हुए सरकार द्वारा हार चुके मामलों की अपील अब हाइकोर्ट व राजस्व परिषद में की जाएगी।

़िजलाधिकारियों को भी दिए दिशा-निर्देश

मण्डलायुक्त ने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा की शुरूआत अपनी न्यायालय से करने के साथ ही तीनों जनपद (झाँसी, ललितपुर व जालौन) के ़िजलाधिकारियों को भी दिशा-निर्देश दिए हैं। उन्होंने डीएम को पत्र लिखकर स्वयं के निर्णय की समीक्षा कर आगे अपील कराने को कहा है।

प्रतिवादी हारने पर करते हैं अपील

आयुक्त न्यायालय में सरकारी पक्ष हारने पर भले ही पत्रावली को बन्द कर दिया जाता है, लेकिन अवैध होने के बावजूद यदि प्रतिवादी के खिलाफ निर्णय आता है तो वह हाइकोर्ट या राजस्व परिषद में अपील अवश्य करता है। इससे अधिकांश बार प्रतिवादी की ही जीत होती है, लेकिन मण्डलायुक्त द्वारा दी गई आजादी के बाद अब सरकार का पक्ष भी मजबूती से रखा जा सकेगा।

यह बोले अधिवक्ता

़िजला शासकीय अधिवक्ता (राजस्व) प्रदीप कुमार सक्सेना व ़िजला शासकीय अधिवक्ता (क्रिमिनल) राहुल शर्मा ने कहा कि वह दो दशक से वकालत कर रहे हैं, लेकिन किसी मण्डलायुक्त द्वारा स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करने के आदेश नहीं दिए हैं। उन्होंने इस निर्णय की प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे न्याय प्रक्रिया को बल मिलेगा और शासकीय वादों को उचित न्याय मिल सकेगा।

भारतीय दंड संहिता की धारा 210 के अनुसार, जो कोई किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी राशि के लिए, जो शोध्य न हो, या जो शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका वह हकदार न हो, डिक्री या आदेश कपटपूर्वक अभिप्राप्त कर लेगा या किसी डिक्री या आदेश को, उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या अपने नाम में कपटपूर्वक ऐसा कोई कार्य किया जाना सहन करेगा या किए जाने की अनुज्ञा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

राजस्व संहिता 2006 की धारा 134 क्या है?

[ 1 ] धारा 134 : आदेश के तामील या अधिसूचना (1) आदेश की तामील उस व्यक्ति पर, जिसके विरूद्ध वह किया गया है, यदि साध्य हो तो उस रीति से की जाएगी जो समन की तामील के लिए इसमें उपबन्धित है ।

राजस्व विभाग की धारा 25 में क्या है?

राजस्व संहिता की धारा 25 में ये प्रावधान है कि यदि किसी के खेत या जमीन से होकर गांव के लोग रास्ता तय कर रहे हैं तो सार्वजनिक हित में संबंधित स्थान पर सड़क बनाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए अनुमति हासिल करनी पड़ेगी। एसडीएम ने कहा कि जिला पंचायत को सड़क बनाने के लिए कह दिया गया है।

132 की भूमि क्या होती है?

वर्ग तीन की जमीन धारा 132 के अंतर्गत आने वाली चकमार्ग, गूल, खलिहान, कब्रिस्तान, चारागाह से मुक्त ऐसी जमीनें जो सिर्फ वैध पट्टाधारकों के कब्जे में है।

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 धारा 210 क्या है?

1- यह निगरानी धारा-210, उ0प्र0 राजस्व संहिता,2006 के अंतर्गत संस्थित है। निगरानी में अवक्षेपित आदेश, जिलाधिकारी, बाराबंकी द्वारा वाद संख्या-02757/2019 (कम्प्युटरीकृत वाद संख्या-डी0201940120002757 वन विभाग बनाम कन्धई आदि) में धारा-128 उ0प्र0 राजस्व संहिता, 2006 के अंतर्गत पारित आदेश दिनांक 20.11.2020 है।