सतलुज क्षेत्र में सिंचाई की क्यों आवश्यकता है? - sataluj kshetr mein sinchaee kee kyon aavashyakata hai?

पूर्वीं यमुना नहर‚ यमुना नदी के बॉये तट से ताजेवाला के निकट से निकलती है। इस नहर प्रणाली द्वारा हिन्‍डन यमुना दोआब के सहारनपुर‚ मुज्‍जफरनगर‚ मेरठ व गाजियाबाद जनपदों को सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध करायी जाती है। पुनरोद्वार के पश्‍चात यह नहर प्रथम बार 1830 में चलायी गयी उस समय इस नहर का परिकल्पित डिस्‍चार्ज 800 क्‍यूसेक था। कालान्‍तर में इसे बढाकर 4000 क्‍यूसेक किया गया।


इस नहर प्रणाली के मुख्‍य विशिष्टियां निम्‍नवत है

1

वर्तमान जल प्रवाह क्षमता

4000 क्‍यूसेक

2

मुख्‍य नहर की लम्‍बाई

197 कि.मी.

3

रजबाहों एवं अल्पिकाओं की लम्‍बाई

11380 कि.मी.

4

कृषि योग्‍य क्षेत्रफल

2.21 लाख हेक्‍टेयर

5

प्रस्‍तावित सींच

खरीफ

52 प्रतिशत

रबी

38.5 प्रतिशत

कुल

90.5 प्रतिशत

इस नहर प्रणाली में जुलाई से पानी की कमी होने लगती है एवं अक्‍टूबर आने तक तो इस नहर में कभी-कभी जल आपूर्ति शून्‍य भी हो जाती है। इस समस्‍या के समाधान हेतु ताजे वाला से लगभग 3 कि.मी. उपर हथिनीकुण्‍ड बैराज का निर्माण कराया गया है।

ब- ऊपरी गंगा नहर:

ऊपरी गंगा नहर का निर्माण वर्ष 1842 तक की अवधि में कराया गया। इस परियोजना के जनक कर्नल सर पी.टी. काटले थे। इस नहर में प्रथम बार 8 अप्रैल 1854 को पानी चलाया गया। यह नहर हरिद्वार के भीमगाैडा नामक स्‍थान स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। प्रारम्‍भ में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी मे एक अस्‍थायी बॉंध बनाकर की जाती थी। वर्षाकाल प्रारम्‍भ होते ही अस्‍थायी बॉंध टूट जाया करता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी ही सिंचाई हो पाती थी।

वर्ष 1917-1922 की अवधि में अस्‍थायी बॉंध निर्माण स्‍थल के डाउनस्‍ट्रीम में भीमगाैडावियर का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली के खरीफ की फसल में भी पानी दिया जाने लगा। वियर के फाटकों का संचालन काफी जटिल एवं जोखिम भरा होता है‚ साथ ही वियर के अपस्‍ट्रीम में सिल्‍ट जमा होते रहने के कारण नदी की तली का स्‍तर भी धीरे-धीरे ऊपर उठने लगता है। इन्‍हीं समस्‍याओं के समाधान हेतु पूर्व निर्मित भीमगाैडा वियर के डाउनस्‍ट्रीम में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगाैडाबैराज का निर्माण कराया गया। इस नहर प्रणाली द्वारा हरिद्वार‚सहारनपुर‚ मुज्‍जफरनगर‚ मेरठ‚ गाजियाबाद‚ बुलन्‍दशहर‚ अलीगढ‚ एटा‚ मथुरा‚ फिरोजाबाद‚ मैनपुरी‚ आगरा जनपदों में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराई जा रही है।

ऊपरी गंगा नहर से निम्‍न तीन मुख्‍य शाखाएं निकलती है:

  • देवबन्‍द शाखा
  • अनूपशहर शाखा
  • माठ शाखा

प्रारम्‍भ में इस नहर प्रणाली का उपयोग नौ परिवहन हेतु भी किया जाता था जो अब समाप्‍त हो गया है। सिंचाई के अतिरिक्‍त इस नहर प्रणाली से 200 क्‍यूसेक पानी दिल्‍ली को पीने हेतु तथा 100 क्‍यूसेक हरदुवागंज तापीय विद्युतगृह को दिया जाता है। मुख्‍य गंगा नहर पर निर्मित फाल्‍स (Falls) से जल विद्युत उत्‍पादन भी किया जा रहा है।


इस नहर प्रणाली के मुख्‍य विशिष्टियां निम्‍नवत है।

1

मुख्‍य ऊपरी गंगा की लम्‍बाई

298 कि.मी.

2

नहर प्रणाली की कुल लम्‍बाई

6496 कि.मी.

3

कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र

8.85 लाख हेक्‍टेयर

4

नहर के शीर्ष परपरिकल्पित नि्स्‍सारण

10500 क्‍यूसेक (297.5क्‍यूमेक)

5

प्रस्‍तावित सींच

खरीफ

47.0 प्रतिशत

रबी

43.9 प्रतिशत

कुल

90.8 प्रतिशत

गंगा नहर के कि0 मी0 6 से 36 तक निर्मित निम्‍न संरचनाएं अभियान्त्रिकी कौशल की मिसाल है:-

(1) रानीपुर सुपर पैसेज (2) पथरी सुपर पैसेज (3) धनौरी लेविलक्रासिंग जल स्रोत (4) सोलानी जल सेतु

ऊपरी गंगा नहर अब तक की सफलतम सिंचाई योजनाओं में से एक है।

स- आगरा नहर प्रणाली:

हरियाणा के जनपद फरीदाबाद एवं गुड़गॉव, उत्तर प्रदेश के मथुरा एवं आगरा जनपदों तथा राजस्‍थान के भरतपुर जिले में सुरक्षात्‍मक सिंचाई पदान करने हेतु यमुना नदी पर ओखला (दिल्‍ली) के पास एक वियर का निर्माण कर इसके दाहिने तट से आगरा नहर प्रणाली का निर्माण वर्ष 1878 में किया गया था। आगरा नहर का पुनरोद्वार वर्ष 1955-57 के बीच किया गया तथा इका शीर्ष निस्‍सार 3237 क्‍यूसेक कर दिसा गया, लेकिन आगरा नहर की शुरू की लगभग 19 कि.मी. टुकड़ी में कार्य न पूरा हो पाने के कारण यह नहर 2100 क्‍यूसेक से अधिक पानी लेने में सक्षम नहीं हो सकी।

इन स्थितियों में आगरा नहर के आधुनिकीकरण की योजना बनायी गयी ताकि यह नहर ओखला बैराज से प्रत्‍यावर्तित 4000 क्‍यूसेक पानी लेने में सक्षम हो सके।

इस नहर प्रणाली के मुख्‍य विशिष्टियां निम्‍नवत है।

1

आगरा मुख्‍य नगर की लम्‍बाई

160 कि.मी.

2

इससे निकलने वाली फतेहपुरसीकरी जल शाखा की लम्‍बाई

93 कि.मी.

3

प्रणाली की नहरों की कुल लम्‍बाई

1874 कि.मी.

4

कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र

3.27 लाख हे0

5

आगरा नहर के शीर्ष का परिकल्पित निस्‍सरण

4000 क्‍यूसेक

6

आगरा नहर की वर्तमान जल प्रवाह क्षमता

2100 क्‍यूसेक

7

प्रस्‍तावित सींच

50 प्रतिशत

8

आधुनिकीकरण के पश्‍चात प्रस्‍तावित खरीफ

खरीफ

30 प्रतिशत

रबी

40 प्रतिशत

कुल

70 प्रतिशत

द-निचली गंगा नहर:

गंगा यमुना दोआब के निचले भाग में ऊपरी गंगा नहर प्रणाली की बेवर एवं कानपुर जल शाखाओं से सिंचाई सुविधाएँ उपलब्‍ध करायी जाती थी। कृषि के विकास के साथ-साथ ऊपरी गंगा नहर प्रणाली के निचले भाग मे पानी की निरंतर कमी रहने लगी अत: पानी की कमी को दूर करने हेतु नरौरा के पास गंगा नदी पर एक वियर बनाकर जिसें बाद में बैराज में परिवर्तित किया गया , गंगा नदी के दाहिने तट से निचली गंगा नहर की अभिकल्‍पना 1869 में की गयी। भारत सरकार द्धारा इस योजना की स्‍वीकृति 9 नवम्‍बर 1871 को दी गयी। परियोजना के निर्माण कार्य पूर्ण कर निचली गंगा नहर को वर्ष 1878 में प्रथम बार चलाया गया । इस प्रणाली की मुख्‍य शाखायें निम्‍नवत है।

  • फर्रुखाबाद जल शाखा
  • बेवर जल शाखा
  • कानपुर जल शाखा
  • इटावा जल शाखा
  • भोगनीपुर जल शाखा

वर्ष 1898 में उ. प्र. के जनपद फतेहपुर व प्रयागराज में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराने हेतु कानपुर जल शाखा से फतेहपुर जल शाखा का निर्माण कराया गया । उक्‍त के अतिरिक्‍त इटावा जल शाखा के अंतिम छोर से भी घटमपुर राजबहा निकालकर जनपद फतेहपुर तक सिंचाई सुविधाएं बढाई गयी।

कालान्‍तर में रामगंगा बाध के निर्माण के फलस्‍वरूप वर्ष 1974 में निचली गंगा नहर प्रणाली की जलापूर्ति में वृद्वि की गयी तत्पश्‍चात समानान्‍तर निचली गंगा नहर का निर्माण कराकर वर्ष 1984 में खरीफ की सिंचाई हेतु अतिरिक्‍त जल उपलब्‍ध कराया एवं जनपद कानपुर एवं प्रयागराज के बाकी क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराने हेतु वर्ष 1974 में पश्विमी प्रयागराज जल शाखा का निर्माण कराया गया। इस नहर प्रणाली द्वारा अलीगढ‚ एटा‚ फिरोजाबाद‚ मैनपुरी‚ फरूक्‍ख्‍खाबाद‚ इटावा‚ क

इस नहर प्रणाली की अन्‍य विशिष्टिया निम्‍नवत है

1

कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र

11.64लाख हेक्‍टेयर

2

प्रस्‍तावित क्षेत्र खरीफ

41.5 प्रतिशत

3

प्रस्‍तावित सींच रबी

36.0 प्रतिशत

4

निचली गंगा नहर की लम्‍बाई

98.8 कि.मी.

5

समानान्‍तर निचली गंगा नहर की लम्‍बाई

89 कि.मी.

6

निचली गंगा नहर के शीर्ष का परिकल्पित निस्‍सरण

8500 क्‍यूसेक

7

समानान्‍तर निचली गंगा के शीर्ष पर परिकल्पित निस्‍सरण

4200 क्‍यूसे़क

8

प्रणाली की कुल लम्‍बाई

8278 कि.मी.

य-शारदा नहर प्रणाली

उत्‍तर प्रदेश के शारदा/घाघरा-गंगा दोआब में अवस्थित जनपद नैनीताल‚ पीलीभीत‚ बरेली‚ लखीमपुर खीरी‚ शाहजहापुर‚ हरदोई‚ उन्‍नाव‚ लखनऊ‚ बाराबंकी‚ रायबरेली‚ प्रतापगढ‚ अयोध्या‚ सुल्‍तानपुर‚ जौनपुर‚ आजमगढ‚ गाजीपुर एवं प्रयागराज जनपदो में सुरक्षात्‍मक सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराने हेतु जनपद नैनीताल की खटीमा तहसील में बनबसा के पास शारदा नदी पर एक बैराज का निर्माण कर इसके दाहिने तट से शारदा मुख्‍य नहर निकाली गयी। इस परियोजना पर वर्ष 1918 में कार्य प्रारम्‍भ हुआ एवं वर्ष 1928 में परियोजना पूर्ण कर समादेश क्षेत्र में जल आपूर्ति की जानी प्रारम्‍भ की गयी। एक अन्‍तराष्‍ट्रीय करार के अर्न्‍तगत बनबसा बैराज के बाये तट पर भी एक रेग्‍यूलेटर का निर्माण कराया गया, जो कि नेपाल रेग्‍यूलटर के नाम से जाना है। इस रेग्‍यूलेटर से नेपाल को रबी में 180 क्‍यूसेक तथा खरीफ में 250 क्‍यूसेक पानी दिया जाता है।

शारदा मुख्‍य नहर की लम्‍बाई 44.3 कि.मी. है तथा शीर्ष पर इसका परिकल्पित निस्‍सार 11500 क्‍यूसेक है। मुख्‍य नहर के कि0मी0 26.5 दाये तट से बीसलपुर शाखा एवं कि0मी0 38.5 दाये से निगोही जल शाखा निकलती है। इन जल शाखाओं का परिकल्पित निस्‍सार क्रमश: 350 एवं 500 क्‍यूसेक है। टेल से शारदा नहर‚ हरदोई जल शाखा एवं खीरी जल शाखाओं के विभक्‍त हो जाती है। हरदोई जल शाखा का परिकल्पित निस्‍सार 5400 क्‍यूसेक है तथा यह गंगा गोमती दोआब में अव-‍स्थित क्षेत्र को पोशित करती है। खीरी जल शाखा का निस्‍सार 2800 क्‍यूसेक है, इससे गोमती घाघरा दोआब में अवस्थित भू-भाग सिंचित होता है।

इस प्रणाली की मुख्‍य विशिष्टियॉं निम्‍नवत है

1

मुख्‍य नहर की लम्‍बाई

44.3 कि.मी.

2

जल शाखाओं की लम्‍बाई

1634 कि.मी.

3

राजबाहों एवं अल्पिकाओं की लम्‍बाई

8283 कि.मी.

4

कुल

9961.3 कि.मी.

5

कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र

16.12 लाख

6

प्रस्‍तावित सींच खरीफ

25 प्रतिशत

7

प्रस्‍तावित सींच रबी

24 प्रतिशत

यह उल्‍लेखनीय है कि शारदा सहायक परियोजना के पूर्व इस नहर प्रणाली का कुल कृषि योग्‍य क्षेत्र 25.4 लाख हेक्‍टेयर था तथा खरीफ एवं रबी में प्रस्‍तावित सींच क्रमश: 15.3 प्रतिशत एवं 17.4 प्रतिशत थी। स्‍वतंत्रता के पश्‍चात कृषि क्षेत्र में व्‍यापक विकास हुआ, उन्‍नतशील किस्‍मों के बीजों तथा उर्वरकों का उपयोग प्रचुरता से किया जाने लगा। फलत: इस नहर प्रणाली के अंतिम छोर पर स्थित जनपदों में वास्‍तविक सींच मात्र 19 प्रतिशत तक ही सीमित रह गयी।

र- बुन्‍देलखण्‍ड की सिंचाई परियोजनाएँ

(i)बेतवा नहर प्रणाली-

समय-समय पर पडने वाले सूखे से निपटने के लिए बेतवा नदी पर परीच्‍छा डैम का निर्माण कर वर्ष 1985 में बेतवा नहर निकाली गयी। इस नहर को सिंचाई के लिए प्रथमबार 1986 में चलाया गया। बेतवा नहर में जलापूर्ति बढाने हेतु वर्ष 1910 में बेतवा नदी पर ढुकवा बाँध का निर्माण करवाया गया। सिंचाई हेतु पानी की निरन्‍तर बढती हुई मांग की पूर्ति हेतु एवं जल विद्युत के विकास हेतु ढुकवा बाँध के 16 किमी. अपस्‍ट़ीम में माताटीला बाँध बनाने का निर्णय लिया गया।

माताटीला बाँध का निर्माण वर्ष 1952 से 1964 की अवधि में कराया गया बाँध के निर्माण के पश्‍चात बेतवा नहर प्रणाली का कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र 2.95 लाख हेक्‍टेयर से बढकर 4.04 लाख हेक्‍टेयर हो गया। बेतवानहर प्रणाली से उ. प्र. के झांसी हमीरपुर एवं जालौन तथा मध्‍य प्रदेश के दतिया ग्‍वालियर एवं टीकमगढ जनपद लाभान्वित होते है।

(ii) धसान नहर प्रणाली:

घसान नहर प्रणाली को पोषित करने हेतु धसान नदी, जो बेतवा नदी की सहायक नदी है, पर लहचुरा एवं पहाडी बांधों का निर्माण वर्ष 1906 से 1910 की अवधि में कराया गया था। प्रारम्‍भ में लहचुरा डैम की उपयोगी क्षमता 954.1 लाख धनमीटर तथा पहाडी बाँध की उपयोगी क्षमता 1153.5 लाख धनमीटर थी, जो कि सिल्टिंग के घट गयी। वर्तमान लहचुरा बाँध बहुत पुराना हो गया था अत: इसके एक कि. मी. नीचे नवीन लहचुरा डैम का प्रस्‍ताव किया गया|

लाभान्वित जनपद: हमीरपुर उत्‍तर प्रदेश

(iii) केन नहर प्रणाली

केन नहर‚ मध्‍य प्रदेश जनपद पन्‍ना के पास केन नदी के दाहिने तट से, बरियारपुर वीयर का निर्माण कर निकाली गयी। यह कैनाल प्रथम बार वर्ष 1907 में 28.32 क्‍यूमेक डिस्‍चार्ज से चलायी गयी। पानी की बढ़ती हुई मांग को देखते हुये बरियारपुर वीयर पर और अधिक पानी उपलब्‍ध कराने की दृष्टि से बरियारपुर वीयर के अपस्‍ट्रीम पर गंगऊ बांध का निर्माण वर्ष 1915 में कराया गया। इसके निर्माण के पश्‍चात भी उस क्षेत्र में निरन्‍तर पानी की कमी का अनुभव किया जाता रहा। अत: अतिरिक्‍त जल संचय करने की दृष्टि से बन्‍ने नदी‚ जो केन नदी की सहायक नदी है‚ पर रंगवा बांध का निर्माण वर्ष 1957 में कराया गया। इस जलाशय में 1546.7 लाखघनमीटर अतिरिक्‍त जल का संचय कर केन नहर प्रणाली को अतिरिक्‍त जल आपूर्ति सम्‍भव करायी गयी|

बरियारपुर वियर‚ गंगऊ वियर एवं रंगवा बांध की क्षमता निम्‍नवत है:

क्र. सं.

संरचना का नाम

संरचना की परिकल्पित क्षमता
(लाख घनमीटर में)

संरचना की वर्तमान क्षमता
(लाख घनमीटर में)

1

बरियारपुर वियर

141.9

126.0

2

गंगऊ वियर

998.3

504.2

3

रंगवा बांध

1637.3

1637.3

-

कुल

2777.5

2267.5

रंगवा बांध का डेड स्‍टोरेज 90.6 लाख घनमीटर है अत: कुल पानी जिसका उपयोग वर्तमान में किया जा सकता है 2176.9 लाख घनमीटर है। इस परियोजना से मध्‍य प्रदेश के जनपद पन्‍ना एवं छतरपुर तथा उत्‍तर प्रदेश के बांदा जनपद लाभान्वित होता है। रंगवा बांध के पानी में उत्तर प्रदेश एवं मध्‍य प्रदेश का प्रतिभाग 36:15 है।

परियोजना की विशिष्‍टयां निम्‍नवत है:

क्र. सं.

स्रोत

केन नहर

1

शीर्ष की स्थिति

जनपद पन्‍ना मध्‍य प्रदेश

2

मुख्‍य नगर का शीर्ष निस्‍सरण

447.3 क्‍यूमेक (15800 क्‍यूसेक)

3

वितरण प्रणाली की कुल लंबाई

1115 किमी.

4

कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र

3.16 लाख हेक्‍टेयर

6

प्रस्‍तावित सींच

(i)खरीफ

0.66 लाख हेक्‍टेयर

(ii)रबी

0.32 लाख हेक्‍टेयर

स्‍वतंत्रता पश्‍चात की योजनाये

अ- पश्चिमी गण्‍डक नहर प्रणाली :

बिहार नेपाल सीमा पर अवस्थित वाल्‍मीकि नगर के पास गण्‍डक नदी पर एक बैराज बनाकर इसके दाहिने तट से मुख्‍य पश्चिमी गण्‍डक नहर निकाली गयी। मुख्‍य नहर के शीर्ष से किमी. 18.90 तक का भाग नेपाल में तथा किमी. 18.9 किमी. 131.40 तक का भाग उत्‍तर प्रदेश में पडता है। इस बिन्‍दु के नीचे का भाग बिहार में पडता है, जहां इसे सारन नहर के नाम से जाना जाता है इस नहर द्वारा रोहिन राप्‍ती एवं गण्‍डक दोआब के अधिकांश भाग में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध होती है। मुख्‍य पश्चिमी गण्‍डक नहर के शीर्ष का निस्‍सरण 15,800 क्‍यूसेक है। इसमें से उ.प्र. का प्रतिभाग 7,300 क्‍यूसेक है तथा शेष 8,500 क्‍यूसेक का उपयोग बिहार द्वारा किया जाना प्रस्‍तावित है।

पुनरीक्षित परियोजना के अनुसार परियोजना की विशिष्‍टयां निम्‍नवत है:

क्र. सं.

स्रोत

गण्‍डक नदी

1

शीर्ष की स्थिति

वाल्‍मीकि नगर नेपाल

2

बैराज की लम्‍बाई

743 मीटर

3

मुख्‍य नगर का शीर्ष निस्‍सार

447.3 क्‍यूमेक (15800 क्‍यूसेक)

4

जलशाखाओं की संख्‍या

06

5

वितरण प्रणाली की कुल लंबाई

3256 किमी.

6

लाभान्वित जनपद

गोरखपुर‚ देवरिया‚ महराजगंज‚ एवं पडरौना

7

कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र

3.95 लाख हेक्‍टेयर

8

प्रस्‍तावित सींच

धान

1.78 लाख हेक्‍टेयर

गन्‍ना

0.65 लाख हेक्‍टेयर

रबी की फसलें

0.89 लाख हेक्‍टेयर

(ब) शारदा सहायक परियोजना

शारदा नहर प्रणाली के निचले भाग में अवस्थित जनपद लखनऊ‚रायबरेली‚ बाराबंकी‚ अयोध्या‚ अम्‍बेडकर नगर‚ सुलतानपुर‚ प्रतापगढ‚ प्रयागराज‚ भदोही‚ वाराणसी‚ जौनपुर‚ आजमगढ‚ मऊ‚गाजीपुर‚एवं बलिया में पानी की कमी की पूर्ति तथा इन जनपदों के बाकी क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराये जाने हेतु घाघरा नदी के जल का उपयोग करते हुए 1968-69 में शारदा सहायक परियोजना प्रारम्‍भ की गयी। इस परियोजना से प्रथम बार वर्ष 1974 में पानी देना प्रारम्‍भ किया गया। इस परियोजना का कृषि योग्‍य समादेश क्षेत्र 20 लाख हेक्‍टेयर है तथा खरीफ एवं रबी में प्रस्‍तावित सिंचाई सघनता कमश: 67 प्रतिशत एवं 48 प्रतिशत है।

परियोजना से संबंधित विवरण निम्‍नवत है1बैराज

गिरिजा बैराज

घाघरा नदी के करतनियाघाट से 9 किमी. डाउनस्टªhम में

(क) स्थिति

-

(ख) लम्‍बाई

716 मी0

(ग) शीर्ष डिस्‍चार्ज

480 घनमीटर प्रति सेंकेंड

(घ) मुख्‍य नहर की लंबाई

28.70 किमी.

शारदा बैराज

(क) स्थिति

शारदा नदी पर बनबसा बैराज के180 किमी. डाउनस्टीम में

(ख) लम्‍बाई

408 मी.

(ग) शीर्ष डिस्‍चार्ज

650 घनमीटर प्रति सेंकेंड

(घ) मुख्‍य नहर की लंबाई

258.80 किमी.

2

वितरण प्रणाली

(क) नहर शाखा की लंबाई

1978 किमी.

(ख) वितरण प्रणाली की लंबाई

14684 किमी.

(ग) कृषि योग्‍य क्षेत्र

16.55 लाख हेक्‍यर

(स) मध्‍य गंगा परियोजना (प्रथम चरण)

बिजनौर से 10 किमी. प्रवाहोत्‍तर गंगा नदी पर एक बैराज निर्मित कर नदी के दोनो ओर नहरों का निर्माण प्रस्‍तावित है प्रथम चरण की परियोजना में नदी के दाये तट से 115.45 किमी. लम्‍बी 8280 क्‍यूसेक क्षमता की एक मुख्‍य नहर निकाली गयी है, जो ऊपरी गंगा नहर के किमी. 190.80 पर मिलती है । बीच में किमी. 77.085 पर यह ऊपरी गंगा नहर की अनूप शहर शाखा को काटती है जिसे यह 900 क्‍यूसेक्‍स पानी देगी। मध्‍य गंगा नहर के किमी. 82.428 से 2225 क्‍यूसेक क्षमता की लखावटी शाखा का निर्माण कराया गया है, इसकी वितरण प्रणाली की लंबाई 963.2 शाखा किमी. है। ऊपरी गंगा नहर के किमी. 178.6 से 239.20 तक 4500 क्‍यूसेक जल का उपयोग प्रस्‍तावित है।

ऊपरी गंगा नहर के किमी. 239.20 से 2750 क्‍यूसेक्‍स शीर्ष क्षमता की 47.70 किमी. लम्‍बी मांट पोषक नहर का निर्माण पूर्ण हो गया है। जो ऊपरी गंगा नहर की मांट शाखा में उकसी हाथरस शाखा के शीर्ष से तुरन्‍त ऊपरी मिलेगी। मांट पोषक नहर से 306 किमी. लम्‍बी नहर का निर्माण किया गया है।

परियोजना से संबंधित विवरण निम्‍नवत है

1

बैराज

(क) स्थिति

बिजनौर शहर से 10 किमी. पश्चिम की ओर गंगा नदी पर रावली घाट से 9 किमी. प्रवाहोत्‍तर

(ख) परिकल्पित का डिस्‍चार्ज

17000 घनमीटर प्रति सेकेंड

(ग) जलमग्‍न क्षेत्र

5766 हेक्‍टेयर

2

मुख्‍य नहरें

(क) शीर्ष डिस्‍चार्ज

234 घनमीटर प्रति सेंकेंड

(ख) लम्‍बाई

115.45 किमी.

3वितरण प्रणाली

लखावटी नहर

-

(क) शीर्ष डिस्‍चार्ज

63 घनमीटर

(ख) मुख्‍य नहर की लंबाई

62.4 किमी.

(ग) वितरण शाखा की लंबाई

600.38 किमी.

(घ) कृषि योग्‍य क्षेत्र

30192 हेक्‍टेयर

मध्‍य गंगा नहर की सम्‍पूर्ण परियोजन हेतु

-

(क) योजना की प्रस्‍तावित लागत

रू0 44819.00

(ख) कुल प्रस्‍तावित सिंचन क्षेत्र

-

ऊपरी गंगा नहर प्रणाली के कमांड का अतिरिक्‍त क्षेत्र

114 हजार हेक्‍टेयर

नई नहर द्वारा

64 हजार हेक्‍टेयर

(द) मध्य गंगा नहर परियोजना-(द्वितीय चरण)

मध्यगंगा नहर परियोजना-द्वितीय चरण के अन्तर्गत वर्षाकाल में गंगा नदी के अतिरिक्त पानी का खरीफ फसली में सिचनं सुविधा उपलब्ध कराने में उपयोग कराना प्रस्तावित है । इसके लिये बिजनौर स्थित मध्यगंगा बैराज के बॉये पार्श्व पर पूर्व में निर्मित हैड रिगुलेटर से मुख्य नहर का निमार्ण कर गंगा नदी के पानी को इसमें डाइवर्ट कर इस नहर द्वारा पानी का उपयोग किया जायेगा। इस परियोजना के अन्तगर्त 121.80 क्यूमेक ¼ 4306 क्यूसेक) क्षमता की 66.20 किमी. लम्बी मुख्य लाईन्ड नहर ए वे इससे 50.00 किमी. लम्बाई की बहजोई शाखा जिसका शीर्ष डिस्चार्ज 60.00 क्यूमेक ¼ 2118 क्यूसेक ½ तथा 60.00 किमी. लम्बाई की चन्दौसी शाखा जिसका शीर्ष डिस्चार्ज 60.00 क्यूमेक ¼ 1503 क्यूसेक ½ का निमार्ण प्रस्तावित है। इस परियोजना के अन्तगर्त 1653 किमी. वितरण प्रणाली (राजवाहे एवं अल्पिकायें) का निर्माण प्रस्तावित है। परियोजना का कुल सी0सी0ए0 2, 25, 433 हेक्टेयर है। जो जनपद अमरोहा, मुरादाबाद एवं सम्भल में पडता है। 2, 25, 433 हेक्टेयर के विरूद्व 1, 46, 532 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचन क्षमता उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है। जिससे 78, 802 हेक्टेयर धान एवं 67, 630 हेक्टेयर अन्य खरीफ फसल सम्मिलित है। परियोजना हेतु कुल 5053.02 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता थी, जिसके सापेक्ष 1053.74 हेक्टेयर 03/2013 तक, वित्तीय वर्ष 2014 में 62.358 हेक्टेयर कृषक भूमि कृषको से आपसी सहमति से क्रय की जा सकी है, तथा 2.125 हेक्टेयर वन भूमि का अधिग्रहण किया गया है।

परियोजना से संबंधित विवरण निम्‍नवत है

1

बैराज

(क) स्थिति

बिजनौर शहर से 10 किमी. पश्चिम की ओर गंगा नदी पर रावली घाट से 9 किमी. प्रवाहोत्‍तर

(ख) परिकल्पित का डिस्‍चार्ज

17000 घनमीटर प्रति सेकेंड

(ग) जलमग्‍न क्षेत्र

5766 हेक्‍टेयर

2

मुख्‍य नहरें

(क) शीर्ष डिस्‍चार्ज

121.81 घनमीटर प्रति सेंकेंड

(ख) लम्‍बाई

66.20 किमी.

3

वितरण प्रणाली

(क) बहजा॓ई शाखा

-

शीर्ष डिस्‍चार्ज

60.00 घनमीटर

मुख्‍य नहर की लंबाई

50.00 किमी.

(ख) चन्दौसी शाखा

-

शीर्ष डिस्‍चार्ज

42.60 घनमीटर

मुख्‍य नहर की लंबाई

60.00 किमी.

(ग) वितरण शाखा की लंबाई

1653.00 किमी.

(घ) कृषि योग्‍य क्षेत्र

225433 हेक्‍टेयर

4

प्रस्‍तावित सींचधान

78802 हेक्‍टेयर

अन्य खरीफ

67630 हेक्‍टेयर

य- पूर्वी गंगा नहर परियोजना

बिजनौर एवं मुरादाबाद जनपद के 233 हजार हेक्‍टेयर क्षेत्र में से 105 हजार हेक्‍टेयर क्षेत्र में धान, की सिंचाई हेतु पूर्वी गंगा नहर परियोजना प्रस्‍तावित की गयी। इसके अन्‍तर्गत हरिद्वार के समीप नव – निर्मित भामगाैडा बैराज के बांये किनारे से 4650 क्‍यूसेक (137.40 क्‍यूमेक्‍स) क्षमता की 48.55 किमी. लंबी मुख्‍य नहर प्रस्‍तावित की गयी हैं। इसकी पांच शाखायें क्रमश: चन्‍क, नजीबाबाद, नगीना, नहटोर एवं अलावलपुर जिनकी कुल लंबाई 155.17 किमी. तथा इसके निकलने वाली वितरण प्रणालियों की कुल लंबाई 1489 किमी. का निर्माण कार्य प्रस्‍तावित है|

परियोजना से संबंधित विवरण निम्‍नवत है

1

स्रोत

गंगा नदी

2

शीर्ष की स्थिति

हरिद्वार में नवनिर्मित भीमगाैडा बैराज के बांये तट पर

3

नहर का कमांड

जनपद बिजनौर एवं मुरादाबाद में गंगा नदी रामगंगा पोषक नहर एवं खो नदी के बीच का क्षेत्र

4

मुख्य‍नहर का जल निकास

137.40 घनमीटर प्रति सेकेण्‍ड (4850घनफुट/सेकेंड)

5

मुख्‍य नहर की लंबाई

48.55 किमी.

6

सिंचन प्रणाली

(क) शाखायें

155.17 किमी.

(ख) राजबाहे एवं अल्पिकायें

1489.00 किमी.

अ- नाले

400.00 किमी.

ब- गूलें

4450.00 किमी.

(ग) गूल कमाण्‍ड

301.00 हजार हेक्‍टेयर

(घ) कृषि योग्‍य भूमि

233.00 हजार हेक्‍टेयर

7

प्रस्‍तावित धान की सिंचाई का क्षेत्र

105.00 हजार हेक्‍टेयर

स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात प्रारम्‍भ की गयी चालू परियोजनायें :

अ- राजघाट नहर परियोजना :

बुन्‍देलखण्ड क्षेत्र के समुचित विकास में सिंचाई योजनाओं की महत्‍वपूर्ण भूमिका के अन्‍तर्गत बेतवा नदी में उपलब्‍ध अतिरिक्‍त जल के उपयोग हेतु राजघाट बांध योजना प्रस्‍तावित की इस परियोजना से उत्‍तर प्रदेश एवं मध्‍य प्रदेश दोनो लाभान्वित होंगें। परियोजना से उपलब्‍ध लाभ व इस पर होने वाले व्‍यय का बराबर-बराबर बंटवारा दोनों राज्‍यों में किया गया है। बांध का निर्माण भारत सरकार द्वारा गठित बेतवा नदी परिषद द्वारा सम्‍पादित हो रहा है। नहर प्रणालियों का निर्माण सम्‍बन्धित राज्‍यों द्वारा किया जा रहा है। यह योजना जल आयोग भारत सरकार द्वारा अनुमोदित है।

परियोजना से संबंधित विवरण निम्‍नवत है1स्रोतललितपुर जनपद में बेतवा नदी पर राजघाट जलाशय।2स्थितिराजघाट ग्राम के पास जिला ललितपुर में ।3शीर्षपारीच्‍छा बांधबेतवा मुख्‍य नहर (का किमी. 30.9)बेतवा मुख्‍य नहर (के किमी. 30)-4प्रणालीबेतवा मुख्य्‍ा नहर गुरसरांय एवं बडागांव शाखाहमीरपुर शाखाकुठोंद शाखायोग5मुख्‍य नहर की लम्‍बाई30.9 किमी.132.40 किमी.105 किमी.-6परिकल्पित डिस्‍चार्ज165.89 क्‍यूमेक्‍स57.97 क्‍यूमेक्‍स51 क्‍यूमेक्‍स-7वितरण प्रणाली की लंबाई116.30 किमी.258.90 किमी.225.62 किमी.-8कुल पानी का उपयोग3.48 टीएमसी3.22 टीएमसी3.072 टीएमसी9.722 टीएमसी9कृषि योग्‍य क्षेत्र60207 हे.55696 हे.53020हे.168923 हे.10प्रस्‍तावित सींच24298 हे.21595 हे.20571 हे.66464 हे.11अ: रबी23702 हे.21595 हे.20571 हे.65868 हे.12ब: खरीफ596 हे.--596 हे.

ब- सरयू नहर परियोजना (बांया तटीय घाघरा नहर)

बहराइच‚ गोंडा‚ बलरामपुर‚ श्रावस्‍ती‚ सिद्वार्थनगर‚ संतकबीरनगर‚ बस्‍ती एवं गोरखपुर जनपदों के क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध कराने हेतु सरयू नहर परियोजना निर्माणाधीन है। इसके अन्‍तर्गत घाघरा नदी के बांय तट से 360 घ0मी0 प्रति सेकेंड क्षमता की 47.135 किमी. लम्‍बी एक योजक नहर निकाली गयी है, जो घाघरा नदी के पानी को सरयू नदी में लायेगी। सरयू तथा राप्‍ती नदियों पर एक एक बैराज बनाया गया है। वहां से निकाली नई नहरें उक्‍त जनपदों में सिंचन सुविधा उपलब्‍ध्‍ा करायेगी। इन परियोजना के अन्‍तर्गत अयोध्‍या पम्‍प नहर गोला पम्‍प नहर, उतरौली पम्‍प नहर, डुमरिया गंज पम्‍प नहर 3600 नये नलकूपों व 9250 किमी. नालों का निर्माण वृक्ष लगाने का प्राविधान है।

इस परियोजना पर कुल 12.00 लाख हेक्‍टेयर भूमि कृषि योग्‍य है। 117 प्रतिशत सिंचाई सघनता पर लगभग 9.00 लाख हेक्‍टेयर भूमि की सिंचाई खरीफ में तथा 4.8 हेक्‍टेयर भूमि की सिंचाई रबी में प्रस्‍तावित है। इसके अतिरक्ति 24000 हेक्‍टेयर भूमि में गन्‍ना उत्‍पादन को भी प्रश्रय मिलेगा।

परियोजना की मुख्‍य विशिष्‍टयां निम्‍नवत हैं :

क्र. सं.

स्रोत

घाघरा‚ सरयू एवं राप्‍ती नदी

1जलाशय क्षेत्र

क - घाघरा नदी

455550 वर्ग किमी.

ख - सरयू नदी

4500 वर्ग किमी.

ग - राप्‍ती नदी

6000 वर्ग किमी.

2बैराज विवरण

क - सरयू बैराज

-

1. लंबाई

243.50 मीटर

2. अधिकतम बाढ डिस्‍चार्ज

4600.00 क्‍यूमेक

3. फाटक

1.8 मीटर के 1.2.दर

ख - राप्‍ती बैराज

-

1. लंबाई

294.5 मीटर

2. अधिकतम बाढ डिस्‍चार्ज

61.1.7 क्‍यूमेक

3. फाटक

1.8 मीटर के 1.4 दर

3नहरों की लंबाई

1. पोषक मुख्‍य नहर

257.285 किमी.

2. शाखायें

680.00 किमी.

3. राजबाहे एवं अल्पिकायें

8266.00 किमी.

4प्रस्‍तावित वार्षिक सिंचाई

1. कृषि योग्‍य क्षेत्र

1.2.00 लाख हेक्‍टेयर

2. सिंचन क्षमता

-

खरीफ 75%

9.00 लाख हेक्‍टेयर

रबी 40%

4.80 लाख हेक्‍टेयर

ईंख 2%

0.24 लाख हेक्‍टेयर

कुल 1.1.7%

1.4.04 लाख हेक्‍टेयर

स- बाण सागर परियोजना, उत्‍तर प्रदेश :

सितम्‍बर 1973 को मध्‍य प्रदेश उत्‍तर प्रदेश एवं बिहार राज्‍यों के बीच सोन नदी के पानी के बटवारे का अनुबंध हुआ था। इसके अन्‍तर्गत सोन नदी के कुल 14.25 मि0 ए0 फीट पानी में से उत्‍तर प्रदेश का भाग 1.25 मि0ए0 फीट निर्धारित किया गया। इस मात्रा में 1.00 मि.ए. फीट पानी सोन नदी से तथा 0.25 मि0ए0 फीट नहर नदी से प्राप्‍त होगा। सोन नदी के 1.00 मि0ए0 फीट में 0.22 मि0ए0 फीट सोन पम्‍प नहर द्वारा सोन नदी से उठाकर उपयोग करने का प्राविधान है। एवं 0.78 मि0ए0 फीट पानी बाण सागर बांध से जो कि तीन राज्‍यो के सहयोग से सोन नदी पर शहडोल (मध्‍य प्रदेश) में बनाया जा रहा है, लेने का प्राविधान है। बाण सागर बांध के जलाशय से पानी 22 किमी. लम्‍बी तथा 185 क्‍यूमेक्‍स क्षमता की संयुक्‍त जल वाहिनी के माध्‍यम से जिसका निर्माण व्‍यय उत्‍तर प्रदेश तथा मध्‍य प्रदेश दोनों राज्‍य वहन कर रहे है, लाया जा रहा है। संयुक्‍त जल वाहिनी से 73 क्‍यूमेक्‍स क्षमता की कामन वाटर फीडर मध्‍य प्रदेश द्वारा बनायी जा रही है जिसके 15.24 किमी. (टेल) से उत्‍तर प्रदेश को पानी देने के लिये 46.5 क्‍यूमेक्‍स क्षमता तथा 73.1 किमी. लंबाई बाण सागर फीडर नहर का निर्माण उत्तर प्रदेश द्वारा किया जा रहा है। संयुक्‍त जल वाहिनी की तरह कामन वाटर फीडर का भी निर्माण व्‍यय मध्‍य प्रदेश तथा उत्‍तर प्रदेश दोनो राज्‍य वहन कर रहे है। बाण सागर फीडर नहर की पूरी लम्‍बाई मध्‍य प्रदेश में पडती है तथा इसका निर्माण उत्‍तर प्रदेश द्वारा किया जा रहा है। इस नहर के अंतिम भाग में 2.10 किमी. लम्‍बी सुरंग होगी जिससे होकर पानी कैमूर पहाडी के उत्‍तर आदि नाला में गिरेगी। नहर का पानी आद नाला से होकर अदवा नदी में जायेगा। अदवा नदी पर बैराज बनाकर अथवा मेजा लिंक नहर‚ जिसकी लंबाई लगभग 25.3 किमी. होगी, के माध्‍यम से पानी मेजा जलाशय में लाया जायेगा जहां से प्रयागराज तथा मिर्जापुर जनपदों में इसका उपयोग होगा। बेलन नदी पर बने मेजा बांध से तथा मेजा बाध एवं बरोधा वियर के मध्‍य कैचमेंट से प्राप्‍त पानी के उपयोग का प्राविधान परियोजना में है‚ जिसके लिये वर्तमान बरौधा बैराज म॓ बदला जायेगा। इस परियोजना से उत्‍तर प्रदेश में 150132 हे0 अतिरिक्‍त सींच प्रस्‍तावित हैं। यह अतिरिक्‍त सींच प्रयागराज में 74823 हे0 एवं जनपद मिर्जापुर में 75400 हे0 होगी।

परियोजना से संबंधित विवरण निम्‍नवत है1.स्थिति

(क) ग्राम

देवलाद (मध्‍य प्रदेश)

(ख) तहसील

शहडोल (मध्‍य प्रदेश)

(ग) जनपद

शहडोल (मध्‍य प्रदेश)

2

नदी का नाम

सोन नदी

3

डूब क्षेत्र (बाणसागर बाध)

56428 हे0

4

औसत वर्षा

1000 मि.मी.

5

एफ0आर0एल0पर बांध की कुल क्षमता

5.17 मि0ए0फीट

6नहरों की लम्‍बाई

(क) बाण सागर पोषक नहर

73.10 किमी.

(ख) अदवा- मेजा सम्‍पर्क नहर

25.30 किमी.

(ग) मेजा - जिरगों सम्‍पर्क नहर

75.15 किमी.

(घ) जिरगों – हुसैनपुर सम्‍पर्क नहर

13.20 किमी.

(ड) बेलन नहर का पुनरूद्वार

14.00 किमी.

(द) कनहर परियोजना मिर्जापुर

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की दुद्धी तहसील अनवरत सूखाग्रस्त रहती है यहाँ की जनसंख्या आदिवासी बाहुल्य है तथा सिंचाई का कोई साधन नहीं हैं। इस तहसील में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु कनहर नदी पर 39.90 मीटर ऊँचा तथा 3.24 किमी. लम्बा बांध बनाकर 0.15 मिलियन एकड़ फीट जल उपयोग करने हेतु कनहर सिंचाई परियोजना प्रस्तावित है। इस परियोजना में 121.10 किमी. मुख्य नहरें एवं शाखायें तथा 150-00 किमी. लम्बी राजवाहों एवं अल्पिकाओं के माध्यम से 26075 हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र में दोनों फसलों को मिलाकर कुल 27898 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित करने का प्रस्ताव है। इस परियोजना के क्रियान्वयन से दुद्धी एवं चोपन विकास खण्डों के लगभग 108 ग्रामों के परिवारों की जनसंख्या लाभान्वित होगी तथा सिंचाई विभाग द्वारा पूर्व में निर्मित 12 बन्धियों को भी अतिरिक्त जल उपलब्ध कराया जाना सम्भव हो सकेगा। कनहर सिंचाई परियोजना की मूल लागत वर्ष 1976 में रू0 27.75 करोड़ आंकलित थी।

सिंचाई की आवश्यकता क्यों होती है?

सिंचाई मिट्टी या जमीन के लिए पानी का एक बेहतरीन अनुप्रयोग है. यह कृषि फसलों, मरुस्थलीय क्षेत्रों में अच्छी तरह से नमी को कायम रखने में मृदा और वनस्पति की मदद करता है. इसके अलावा सिंचाई कृषि के उत्पादन में भी मदद करता है और शीतकाल में पाला के खिलाफ पौधों की रक्षा भी करता है.

भारत में सिंचाई क्यों आवश्यक है कोई दो कारण लिखिए?

Solution : भारत में निम्नलिखित कारणों से सिंचाई की आवश्यकता है(i) जल का असमान वितरण । (ii) मानसून का अनियमित, अपर्याप्त तथा कमजोर होना । भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन(i) नहरें (ii) कुएँ (iii) नलकूप (iv) तालाब ।

सिंचाई क्या है सतही सिंचाई की प्रणालियों को लिखिए?

1. सतही सिंचाई विधि : सिंचाई जल को भूमि के तल पर फैलाना तथा जल के अन्तःसरण का अवसर प्रदान करना सतही सिंचाई कहलाता है। 2. बौछारी सिंचाई विधि : सिंचाई जल का वायुमण्डल में छिड़काव करना तथा वर्षा की बूंदों की तरह भूमि और पौधों पर गिरने देना बौछारी सिंचाई कहलाता है ।

सिंचाई से क्या लाभ है?

सिंचाई (sichai) करने से फसलों की वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है तथा कृषि उत्पादन बढ़ जाता है जो किसी भी क्षेत्र की सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता है । पौधों को वृद्धि एवं विकास के लिए वर्षा जल के अतिरिक्त भी जल की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति के लिए कृत्रिम रूप से सिंचाई (Irrigation in hindi) की जाती है ।