स्थाई बंदोबस्त से क्या समझते हैं बताइए? - sthaee bandobast se kya samajhate hain bataie?

भू-राजस्व की समस्या के समाधान के लिए लार्ड कार्नवालिस ने स्थायी बन्दोबस्त की व्यवस्था की। इस व्यवस्था के द्वारा सन् 1790-91 मे किये गये राजस्व संग्रह अर्थात् 26,80,000 रुपयों को आधार मानकर  लगान निश्चित कर दिया गया था। जमींदारों तथा उनके वारिसों को अब यही लगान सदैव के लिए देना था। संग्रहीत लगान का 8/9 भाग कंपनी को देय था 1/9 भाग जमींदार अपने पास रखता था।

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शुरू मे यह व्यवस्था सिर्फ 10 वर्ष के लिए की गयी थी, लेकिन संचालक मण्डल की स्वीकृति प्राप्त हो जाने के बाद 22 मार्च, 1793 ई. को इसे स्थायी बन्दोबस्त मे परिवर्तित कर दिया गया। 

इसके अनुसार--

1. जमींदारों को भूमि का स्वामी बनाकर यह निश्चित हुआ कि जब तक वे सरकार को निश्चित भू राजस्व देते रहेंगे, उस समय तक उन्हें भूमि से बेदखल नही किया जा सकता। इस तरह भूमि पर उनका पैतृक अधिकार हो गया।

2. भू राजस्व हमेशा के लिए निश्चित कर दिया गया। भूमि पर से कृषकों का अधिकार खत्म हो गया और उन्हें जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया।

स्थायी बन्दोबस्त के लाभ या गुण (sthai bandobast ke labha)

1. कंपनी को लगान की निश्चित राशि मिलने का आश्वासन मिला।

2. लगान न देने पर भूमि बेचकर लगान वसूल किया जा सकता था।

3. लगान की राशि निर्धारित हो जाने से जमींदार वर्ग कृषि की ओर विशेष ध्यान देकर धनवान हो गए।

4. इससे जमींदार ब्रिटिश सरकार के आज्ञाकारी और समर्थक हो गये।

5. ब्रिटिश सरकार को भारत मे दृढ़ता और स्थायित्व के साथ-साथ अधिक आय प्राप्त हुई।

6. अनेक कर्मचारियों की नियुक्ति तथा उन पर होने वाले व्यय से कंपनी बच गई तथा जो कंपनी की सेवा मे थे उन्हें अन्य विभागों मे लगा दिया गया।

7. अस्थायी व्यवस्था के दोषों, जैसे खाद का प्रयोग न करना, आर्थिक गड़बड़, धन और अन्न छिपाना आदि से बचना सम्भव हो गया।

8. लगान 10 बर्ष तक नही बढ़ाई जा सकती थे परन्तु सम्पन्नता की स्थिति मे कंपनी द्वारा अन्य कर लगाये जा सकते थे।

9. सस्ती, समान और निश्चित प्रणाली थी।

10. इससे सरकार तथा जमींदार आपसी संपर्क मे आए और विद्रोह के समय जमींदारों ने सरकार की सहायता की।

स्थायी बन्दोबस्त की हानियाँ या दोष (sthai bandobast ke dosh)

1. स्थायी बन्दोबस्त से सरकार को विशेष हानि हुई, क्योंकि इस व्यवस्था मे सरकार को लगान मे वृद्धि का अधिकार न रहा। इसलिए उपच मे वृद्धि होने पर भी वह लगान मे वृद्धि नही कर सकती थी। ऐसे मे सरकार की आय रूक गयी। 

2. शुरू मे जमींदार वर्ग भी इस व्यवस्था से प्रभावित हुए, क्योंकि ऊंची बोली लगाकर वे भूमि तो ले लेते थे, पर सरकार को निश्चित राशि नही दे पाते थे। इस पर उन्हे भूमि से बेदखल करके पुनः नीलामी द्वारा दूसरों को दे दिया जाता था।

3. इस व्यवस्था से जमींदार वर्ग विलासिता का जीवन व्यतीत करने लगे।

4. कृषक वर्ग को इस व्यवस्था से व्यापक हानि हुई। भूमि पर से उनका अधिकार खत्म हो गया व उन्हे जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया। जमींदार उन पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे।

5. स्थायी प्रबंध से राष्ट्रीय भावना की प्रगति को भी ठेस पहुंची क्योंकि जमींदारो ने स्वाधीनता संग्राम मे सरकार का साथ दिया।

स्थाई बंदोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था लार्ड कार्नवालिस द्वारा मुख्यतः बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के बनारस डिवीजन तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई थी! इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत का लगभग 19% भू-भाग शामिल था! इन क्षेत्र में लागू की गई व्यवस्था के अंतर्गत चूंकि जमीदार के साथ स्थाई रूप से अनुबंध किया गया था, अतः इस व्यवस्था को स्थाई जमीदारी बंदोबस्त कहा गया! 

1793 में लार्ड कार्नवालिस ने 10 वर्षीय व्यवस्था को बदल कर स्थाई कर दिया क्योंकि उसका आकलन था कि भू राजस्व संबंधी प्रयोगों के लिए 10 वर्ष का समय अल्प है!

स्थाई बंदोबस्त के उद्देश्य क्या थे ( sthayi bandobast ke uddeshy kya the) – 

स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था को अपनाने के पीछे निम्नलिखित कारण एवं उद्देश्य थे –

(1) प्रशासनिक झंझटों से बचना, ताकि अधिकारीयों का प्रयोग मुख्यतः ब्रिटिश साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण हेतु किया जा सके! 

(2) ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा हेतु जमीदार के रूप में मित्रों का एक वर्ग तैयार करना, ताकि उसका प्रयोग द्वितीय सुरक्षा पंक्ति के रूप में किया जा सके! 

(3) स्थाई एवं अधिकतम भू राजस्व राशि प्राप्त करना, ताकि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रसार हेतु निश्चित योजना बनाई जा सके! 

(4) स्थाई बंदोबस्त में जमीदार वर्ग को प्राथमिकता देने के पीछे एक उद्देश्य गांवों में समृद्धशाली वर्ग का निर्माण करना था, ताकि ब्रिटिश वस्तुओं को ग्रामीण क्षेत्रों में भी बाजार प्राप्त हो सके तथा नगरीय क्षेत्रों से मुद्रा का प्रवाह ग्रामीण क्षेत्रों की ओर भी हो सके! 

(5) कृषि योग्य भूमि एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा सके! वस्तुत:  कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु महत्वपूर्ण भूमिका अंग्रेज या जमीदार या कृषकों के द्वारा निभाई जा सकती थी! चूंकि अभी कंपनी के अधिकारी कृषि क्षेत्र में निवेश नहीं करना चाहते थे और न ही कृषकों की आर्थिक स्थिति इस योग्य थी कि वे इस क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके! इसलिए इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु जमींदारों के साथ बंदोबस्त किया गया!  

स्थाई बंदोबस्त की विशेषताएं (sthayi bandobast ki visheshta) –

(1) इस व्यवस्था में जमीदारों को भूमि का मालिक माना गया तथा उन्हें जमीन की खरीदी बिक्री का अधिकार भी दिया गया! 

(2) यह अनुबंध स्थाई रूप से जमीदारों के द्वारा किया गया था, अर्थात – उत्पादन में चाहे वृद्धि हो या कमी कंपनी को एक निश्चित राशि ही प्राप्त होती थी! 

(3) भूमि पर जमीदारों का अधिकार तब तक होता था, जब तक वह निश्चित तिथि को नियत राशि सरकार को देते रहते थे! किंतु 1794 के सूर्यास्त कानून के अनुसार अगर निश्चित तिथि की शाम तक जमीदार भू-राजस्व नहीं चुका पाता तो, संबंधित जमीदार की जमीदारी नीलाम कर दी जाती थी!  

(4) भू राजस्व में से 1/11 हिस्से पर जमीदार का, जबकि 10/11 इ हिस्से पर सरकार का अधिकार होता था! 

(5) स्थाई बंदोबस्त से जमींदारों को तो फायदा हुआ, परंतु किसानों को नुकसान हुआ! 

स्थाई बंदोबस्त के गुण या सकारात्मक प्रभाव (sthayi bandobast ke gun ya sakaratmak prabhav) –

(1) इस अवस्था में ब्रिटिश अधिकारियों की कम भागीदारी थी जिससे इनका उपयोग इन क्षेत्रों में ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूती प्रदान करने हेतु किया जा सका! 

(2) ब्रिटिश सरकार को स्थाई रूप से एक बड़ी राशि प्राप्त होने लगी, जिसकी सहायता से अंग्रेजों ने एक मजबूत सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया तथा ब्रिटिश प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकारियों को बेहतर वेतन-भत्ते प्रदान किए!    

(3) कृषि के वाणिज्यकरण को प्रोत्साहन मिला, जिससे भारत की स्वावलंबी अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़ाव हुआ! 

(4) भारतीय जमीदारों को भी इस व्यवस्था से लाभ हुआ तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत हुई! इस धन का उपयोग बहुत से जमीदारों ने शैक्षणिक, कलात्मक, औद्योगिक एवं व्यवसायिक विकास के लिए भी किया! 

(5) ब्रिटिश सरकार को जमींदारों के रूप में द्वितीय सुरक्षा पंक्ति प्राप्त हो सके, उदाहरण के लिए – 1857 के विद्रोह में बहुत से जमीदार ने विद्रोहियों का साथ नहीं दिया, बल्कि विद्रोह को कुचने में अंग्रेजों की सहायता की! 

स्थाई बंदोबस्त के दोष या नकारात्मक प्रभाव (sthayi bandobast ke dosh ya nakaratmak prabhav) —

(1) इस व्यवस्था से यद्यापि अंग्रेजों को बड़ी राशि अवश्य प्राप्त होने लगी, परंतु कृषि योग्य भूमि एवं उत्पादन वृद्धि होने के साथ-साथ सरकार की आय में वृद्धि नहीं हो सकी! 

(2) ग्रामीण क्षेत्र में परंपरागत जमीदारों को भी इस व्यवस्था का अधिक लाभ प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि भू-राजस्व की राशि भूमि की उत्पादकता को अधिक मानते हुए अधिक निश्चित की गई थी! इससे ये जमीदार निश्चित तिथि पर राजस्व जमा नहीं कर पाते थे, परिणामस्वरुप उनकी जमीदारी नीलाम कर दी जाती थी!

(3) सूर्यास्त कानून के अंतर्गत जमीदारी को नीलाम किए जाने से भी अनेक समस्या ने जन्म लिया!
प्रथम ब्रिटिश सरकार के प्रशासनिक झंझटे कम होने के बजाय बढ़ गई! द्वितीय इस व्यवस्था से दूरस्थ जमीदारी का निर्माण हुआ! ऐसे जमीदारों के द्वारा कृषकों का अधिकाधिक शोषण किया गया, जिससे कृषक उपद्रव और विद्रोह प्रारंभ हो गए, परिणामस्वरुप ब्रिटिश शासन का आधार पर भी कमजोर हो गया! 

तृतीय, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषकों के विद्रोह होने पर ये दूरस्थ जमीदार ब्रिटिश सरकार के लिए कुछ खास मदद नहीं कर सके! चतुर्थ दूरस्थ जमीदारी के कारण न तो ग्रामीण क्षेत्र में समृद्धिशाली वर्ग का निर्माण हुआ और न ही शहरी क्षेत्र में मुद्रा प्रवाह ग्रामीण क्षेत्रों की ओर हो सका! इसके विपरीत ग्रामीण मुद्रा का प्रवाह शहरों की ओर होने लगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी, भुखमरी जैसी आर्थिक समस्याओं ने जन्म लिया!

प्रश्न :- स्थाई बंदोबस्त किसने और कब लागू किया था

उत्तर :- स्थाई बंदोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था लार्ड कार्नवालिस द्वारा मुख्यतः बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के बनारस डिवीजन तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई थी! इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत का लगभग 19% भू-भाग शामिल था! इन क्षेत्र में लागू की गई व्यवस्था के अंतर्गत चूंकि जमीदार के साथ स्थाई रूप से अनुबंध किया गया था, अतः इस व्यवस्था को स्थाई जमीदारी बंदोबस्त कहा गया! 

प्रश्न :- अंग्रेजों द्वारा लागू की गई स्थाई बंदोबस्त नीति किससे संबंधित थी

उत्तर :- अंग्रेजों द्वारा लागू की गई स्थाई बंदोबस्त नीति भू-राजस्व से संबंधित थी जिसे लार्ड कार्नवालिस द्वारा मुख्यतः बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के बनारस डिवीजन तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई थी

स्थाई बंदोबस्त से क्या समझते है?

स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक स्थाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया।

स्थाई बंदोबस्त की विशेषता क्या है?

स्थाई बंदोबस्त की विशेषताएँ जमींदारों को लगान वसूली के साथ-साथ भ-ू स्वामी के अधिकार भी प्राप्त हुये। सरकार को दिये जाने वाले लगान की राशि को निश्चित कर दिया गया, जिसे अब बढ़ाया नहीं जा सकता था। जमींदारों द्वारा किसानों से एकत्र किये हुये भूमि कर का 10/11 भाग सरकारी को देना पड़ता था। शेष 1/11 अपने पास रख सकते थे।

स्थायी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं इसके गुण और दोषों की जांच करें?

स्थायी बन्दोबस्त की हानियाँ या दोष (sthai bandobast ke dosh) इसलिए उपच मे वृद्धि होने पर भी वह लगान मे वृद्धि नही कर सकती थी। ऐसे मे सरकार की आय रूक गयी। 2. शुरू मे जमींदार वर्ग भी इस व्यवस्था से प्रभावित हुए, क्योंकि ऊंची बोली लगाकर वे भूमि तो ले लेते थे, पर सरकार को निश्चित राशि नही दे पाते थे।

स्थाई बंदोबस्त का दूसरा नाम क्या है?

स्थाई बन्दोबस्त को 1790 में जान शोर की व्यवस्था के नाम से शुरू किया गया था। जिसेे बाद में स्थाई बन्दोबस्त या इस्तमरारी बन्दोबस्त के नाम से जाना जाने लगा।