स्थानीय शासन का अर्थ एवं परिभाषाएं Show
स्थानीय स्वशासन का अर्थ
स्थानीय स्वशासन की परिभाषाऐं Definitions of local self-governmentएनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, “पूर्ण राज्य की अपेक्षा एक अन्दरूनी प्रतिबंधित एवं छोटे क्षेत्र में निर्णय लेने तथा उनको क्रियान्वित करने वाली सत्ता ही स्थानीय शासन है।" एल. गोल्डिंग के कथनानुसार
हरमन फाइनर कहते हैं कि ‘‘जिस श्रेणी संघवाद तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्व आदि की युक्तियां आती हैं, उसी में स्थानीय स्वायत्त शासन की गिनती है। ये सब व्यवस्थाएं समूह के अत्याचारों समतलन मानकीकरण व्यक्तियों एवं व्यक्ति समूहों के प्रति परम्परागत घृणा से बचाव का साधन है।” डब्ल्यू0 ए0 राब्सन के शब्दों में,
वी- वी राव के अनुसार,“स्थानीय शासन सरकार का वह भाग है जो स्थानीय विषयों का प्रबन्ध करता है, जो सत्ताधारी राज्य सरकार के अधीन प्रशासन चलाते हैं परन्तु उनका निर्वाचन राज्य सरकार के स्वतंत्र एवं सक्षम निवासियों द्वारा किया जाता है। " इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में स्थानीय स्वशासन की विकास यात्रा और वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं। संदर्भआमतौर पर सभी संघीय ढाँचों में द्विस्तरीय शासन प्रणाली शामिल होती है, पहले स्तर पर केंद्र या संघ सरकार एवं दूसरे स्तर पर राज्य या प्रांतीय सरकार। परंतु इस नज़रिये से भारतीय संघात्मक ढाँचे को कुछ अलग माना जाता है, क्योंकि भारतीय संविधान में त्रिस्तरीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है:
स्थानीय सरकार की प्रणाली को अपनाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य यही है कि इसके माध्यम से देश के सभी नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को प्राप्त कर सकते हैं। विदित है कि लोकतंत्र की सफलता सत्ता के विकेंद्रीकरण पर निर्भर करती है और स्थानीय स्वशासन के माध्यम से ही शक्तियों का सही विकेंद्रीकरण संभव हो पाता है। स्थानीय सरकार की अवधारणा
सही मायनों में स्थानीय सरकार का अर्थ है, स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन। यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि स्थानीय समस्याओं और ज़रूरतों की समझ केंद्रीय या राज्य सरकारों की अपेक्षा स्थानीय लोगों को अधिक होती है। स्थानीय सरकार की अवधारणा का विकास
73वाँ संवैधानिक संशोधन
73वें संवैधानिक संशोधन से हुए मुख्य बदलाव
इस संशोधन के पश्चात् सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय हो गया, जिसमे सबसे नीचे यानी पहले स्थान पर ग्राम पंचायतें आती हैं, बीच में मंडल आते हैं जिन्हें खंड या तालुका भी कहते हैं और अंत में सबसे ऊपर ज़िला पंचायतों का स्थान आता है।
संशोधन से पूर्व कई स्थानों पर चुनावों की कोई भी प्रत्यक्ष एवं औपचारिक प्रणाली नहीं थी, परंतु इस 73वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से यह व्यवस्था की गई कि अभी स्तरों पर चुनाव सीधे जनता करेगी और प्रत्येक पंचायती निकाय की अवधि 5 वर्षों की होगी।
सभी पंचायती संस्थानों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित की गईं और साथ ही सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये भी आरक्षण की व्यवस्था की गई।
राज्यों के लिये यह अनिवार्य किया गया कि वे राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करें, इन आयुक्तों को राज्य में सभी स्तरों पर पंचायती संस्थानों के चुनाव करने की ज़िम्मेदारी दी गई। 74वाँ संवैधानिक संशोधन
क्यों आवश्यक है स्थानीय स्वशासन?
भारत में स्थानीय सरकार की समस्याएँ
कितनी सफल है स्थानीय सरकार की अवधारणा?स्थानीय सरकार की व्यवस्था ने 25 से भी अधिक वर्ष पूरे कर लिये हैं और इस अवधि को इस बात की जाँच करने के लिये सही समय माना जा सकता है कि यह व्यवस्था अब तक कितनी सफल रही है और कितनी असफल। विश्लेषक मानते हैं कि एक ओर यह व्यवस्था सफल भी रही है और दूसरी ओर असफल भी। इसकी सफलता और असफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम इसे किन उद्देश्यों के आधार पर जाँच रहे हैं। यदि इस व्यवस्था का उद्देश्य ज़मीनी स्तर पर सरकार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की एक और प्रणाली का विकास करना था तो स्थानीय सरकार की अवधारणा इस उद्देश्य की प्राप्ति में पूर्णतः सफल रही है, परंतु इसके विपरीत यदि हमारा लक्ष्य एक बेहतर शासन प्रदान करना था तो हम इसमें पूर्णतः विफल रहे हैं। कई जानकार मानते हैं कि आज स्थानीय सरकारें अशक्त और अप्रभावी हो गई हैं और उन्हें ऊपरी स्तर की सरकारों के पक्ष समर्थक एजेंट होने तक ही सीमित कर दिया गया है। सुधार हेतु कुछ उपाय
प्रश्न: क्या स्थानीय स्वशासन प्रणाली की अभिकल्पना में ही कोई दोष है जिसके कारण यह 25 वर्षों बाद भी अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में विफल रही है? स्पष्ट कीजिये। स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?यह प्रावधान स्थानीय शासन की शक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है। बाद में, सन् 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन को संसद ने पारित किया। संविधान का 73वाँ संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है।
स्थानीय स्वशासन का क्या मतलब होता है?स्थानीय स्वशासन लोगों की अपनी स्वयं की शासन व्यवस्था का नाम है। अर्थात् स्थानीय लोगों द्वारा मिलजुलकर स्थानीय समस्याओं के निदान एवं विकास हेतु बनाई गई ऐसी व्यवस्था जो संविधान और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गये नियमों एवं कानून के अनुरूप हो। दूसरे शब्दों में 'स्वशासन' गांव के समुचित प्रबन्धन में समुदाय की भागीदारी है।
प्र 11 स्थानीय शासन की आवश्यकता क्यों होती है?स्थानीय शासन को संवैधानिक दर्जा : स्थानीय शासन की संस्थाओं को सन् 1993 में संवैधनिक दर्जा प्रदान किया गया। स्थानीय शासन का लाभ: (i) सरकार का कार्यभार कम होता है उनके समय व शक्ति की बचत होती है। (ii) स्थानीय शासन मे लोगो को स्वय अपने कार्यो के प्रबध्ं न का अवसर मिलता है और उनमे जिम्मेदारी की भावना आती है।
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