स्वतंत्रता के लिए प्रतिबंध क्यों आवश्यक है? - svatantrata ke lie pratibandh kyon aavashyak hai?

विकास को लोगों की वास्तविक स्वतंत्रता के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। मानवीय स्वतंत्रता को  विकास के संकीर्ण नजरिये के आधार पर आंका जाता है। जैसे, सकल राष्ट्रीय उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि से विकास की पहचान करना, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से, या औद्योगीकरण से, या प्रौद्योगिकी की प्रगति से, या फिर सामाजिक आधुनिकीकरण से इसकी पुष्टि करना। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि या व्यक्तिगत आय में इजाफा स्वतंत्रता के विस्तार के अर्थ में निश्चित रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं और इससे समाज के लोग खुशहाल भी होते हैं। लेकिन आजादी अन्य महत्वपूर्ण निर्धारक-तत्वों पर भी निर्भर करती है, जैसे सामाजिक व आर्थिक व्यवस्थाओं (शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा की सुविधाएं) के साथ-साथ राजनीतिक और नागरिक अधिकारों (सार्वजनिक बहस में हिस्सेदारी की आजादी) आदि। इसी तरह, औद्योगीकरण या प्रौद्योगिक-प्रगति या फिर समाज का आधुनिकीकरण भी काफी हद तक मानवीय स्वतंत्रता में अपना योगदान दे सकता है। दरअसल, विस्तार लेती वास्तविक आजादी के संदर्भ में विकास को देखना उस निष्कर्ष की ओर संकेत करना है, जो विकास को महत्वपूर्ण बनाता है, न कि उन मायनों और अन्य तथ्यों को, जो कि तरक्की में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

साफ है, विकास के लिए परतंत्रता के कारणों के खिलाफ लड़ने की जरूरत है। ये कारण हैं: गरीबी के साथ-साथ अन्याय व अत्याचार, आर्थिक अवसरों की कमी व सामाजिक भेदभाव, जन-सुविधाओं की कमी और दमनकारी व्यवस्था की अति सक्रियता। तभी तो धन-संपदा में अपूर्व बढ़ोतरी के बाद भी आज की दुनिया में काफी लोग बुनियादी स्वतंत्रता से वंचित हैं। वैसे, कई बार असली आजादी में कमी को सीधे आर्थिक गरीबी से जोड़ा जाता है। गरीबी लोगों से पेट भरने की आजादी या पर्याप्त पोषण पाने का हक छीन लेती है। या फिर वह बीमारी के इलाज, या वस्त्र व आवास के अधिकार, या साफ पानी और साफ-सफाई की सुविधाओं से उन्हें वंचित करती है। इसी तरह, अन्य मामलों में गुलामी को सार्वजनिक सुविधाओं और सामाजिक देखभाल की कमी से काफी हद तक जोड़ा जाता है, जैसे महामारी से बचने के चिकित्सा-कार्यक्रमों का न होना अथवा शैक्षणिक सुविधा या स्वास्थ्य सेवा के लिए सुनियोजित व्यवस्थाओं का अभाव होना। इसके अलावा, स्थान विशेष में शांति व व्यवस्था बहाल रखने के लिए प्रभावी तंत्र के न होने को भी परतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है। निरंकुश सरकारों द्वारा राजनीतिक व नागरिक स्वाधीनता न उपलब्ध कराने से भी मानव स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जिंदगी में किसी समुदाय की हिस्सेदारी की आजादी के विरुद्ध प्रतिबंध थोपकर भी इसका उल्लंघन किया जाता है।

बहरहाल, विकास की प्रक्रिया के केंद्र में स्वतंत्रता दो स्पष्ट कारणों से है। पहला कारण विकास का मूल्यांकन है। इसका मूल्यांकन मुख्यत: इस संदर्भ में होता है कि लोगों की आजादी में बढ़ोतरी हुई है या नहीं। और दूसरा कारण है, विकास के प्रभाव का। साफ है, विकास की उपलब्धि जनता रूपी स्वतंत्र संस्था पर अच्छी तरह से निर्भर करती है। पहले कारण के बारे में मैं ऊपर काफी कुछ कह चुका हूं। दूसरा, यानी विकास के प्रभाव के बारे में समझने के लिए हमें प्रासंगिक अनुभवजन्य तथ्यों व उनके बीच के रिश्तों को देखना होगा, खास तौर पर विभिन्न तरह की स्वतंत्रताओं के बीच के मजबूत संबंधों को। इसी पारस्परिक जुड़ाव के कारण जनता रूपी स्वतंत्र व मजबूत संस्था विकास के प्रमुख इंजन के तौर पर उभरी है। वह न केवल मुक्त संस्था है, बल्कि विकास में महत्वपूर्ण घटक भी है। साथ ही, यह अन्य मुक्त संस्थाओं की मजबूती में विशेष साङोदार है। यह अनुभवजन्य संबंध ‘डेवलपमेंट ऐज फ्रीडम’ के विचार के दो पहलुओं को जोड़ता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक विकास की उपलब्धि के बीच का यह संबंध ‘विकास में महत्वपूर्ण घटक’ से काफी आगे की बात करता है। दरअसल, जनता जो भी सकारात्मक रूप से अजिर्त करती है, वह आर्थिक अवसरों, राजनीतिक स्वाधीनता, सामाजिक शक्तियों से प्रभावित होती है। साथ ही, बेहतर स्वास्थ्य और बुनियादी शिक्षा मुहैया कराने की स्थिति का भी इस पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, बेहतर प्रस्तावों या योजनाओं के निर्माण और उन्हें प्रोत्साहित करने का भी असर देखा गया है। यही नहीं, इन अवसरों को मुहैया कराने वाली जो संस्थागत व्यवस्थाएं होती हैं, वे भी लोगों को दी गई स्वतंत्रता के इस्तेमाल से प्रभावित होती हैं। सामाजिक चुनावों में शिरकत करने की आजादी और सार्वजनिक निर्णयों के निर्माण में भागीदारी के जरिये लोग अपनी इस स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते हैं। जाहिर है, इनसे अवसर बढ़ते भी हैं।

स्वतंत्रता न सिर्फ विकास का मूलभूत नतीजा है, बल्कि यह विकास का महत्वपूर्ण अर्थ भी है। बुनियादी रूप से स्वतंत्रता के महत्व का मूल्यांकन करने के अतिरिक्त हमें अलग-अलग तरह की आजादी के बीच के उल्लेखनीय अनुभवजन्य संबंधों को भी समझना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी और चुनाव के रूप में राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक सुरक्षा को बढ़ाने में मददगार होती है। कारोबार और उत्पादन में हिस्सेदारी के अवसर के रूप में आर्थिक सुविधाएं निजी संपदा के साथ-साथ सार्वजनिक संसाधनों में बढ़ोतरी कर सकती हैं। गौरतलब है कि यही सार्वजनिक संसाधन सामाजिक सहूलियतों को बढ़ाने के काम आते हैं। जाहिर है, अलग-अलग तरह की आजादी एक-दूसरे को मजबूत बना सकती है।

इसके अलावा, इनके बीच के संबंध हमारी प्राथमिकताओं के मूल्यांकन और निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पर्याप्त सामाजिक अवसरों के साथ व्यक्ति अपनी तकदीर खुद लिख सकता है और एक-दूसरे की मदद भी कर सकता है। इसलिए उसे विकासवादी कार्यक्रमों से होने वाले  लाभ का महज निष्क्रिय प्राप्तकर्ता के तौर पर देखने की जरूरत नहीं है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की आवश्यकता क्यों है?

स्वतंत्रता के लिए प्रतिबंधों की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि स्वतंत्रता असीमित होने पर अनियंत्रित हो जाती है। आवश्यकता से अधिक मात्रा में बिना किसी प्रतिबंध के स्वतंत्रता मिलने पर लोग उसका दुरुपयोग करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में स्वतंत्रता के नकारात्मक परिणाम आने लगते हैं।

क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है?

ये नियंत्रण कानून ,रीति-रिवाज ,धर्म तथा न्यायिक निर्णयों के आधार पर लागू किए जाते हैं, ताकि समाज में शांति एवं सौहार्द बना रहा है सके। परंतु यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि सभी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रा के लिए आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिए स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रतिबंध नहीं होने चाहिए।

स्वतंत्रता के लिए क्या आवश्यक है उत्तर?

उत्तर- [2] अधिकार व्याख्या : स्वतंत्रता व्यक्तियों के पास एजेंसी (अपने स्वयं के कार्यों पर नियंत्रण) का मूल्य है। स्वतंत्रता की अवधारणा में आम तौर पर बाहरी मजबूरी या जबरदस्ती से व्यक्तियों की स्वतंत्रता शामिल होती है। इसलिए स्वतंत्रता के लिए आवश्यक स्वतंत्रता और अधिकारों का सक्रिय प्रयोग।

स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होगा?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। उसे लिखने, कार्य करने, चित्रकारी करने, बोलने की आजादी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित नहीं होनी चाहिए।