शारीरिक रूप से विकलांग की प्रकृति - shaareerik roop se vikalaang kee prakrti

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शारीरिक विकलांगता - Physical Disability in Hindi

शारीरिक रूप से विकलांग की प्रकृति - shaareerik roop se vikalaang kee prakrti

शारीरिक रूप से विकलांग की प्रकृति - shaareerik roop se vikalaang kee prakrti

शारीरिक विकलांगता क्या होती है ?

शारीरिक विकलांगता एक ऐसी समस्या है जिससे जीवन की एक या एक से अधिक महत्वपूर्ण गतिविधियां प्रभावित होती हैं। शारीरिक विकलांगता के प्रकार, उनके कारण और जीवन पर उनके प्रभाव के तरीके असीमित हैं। शारीरिक विकलांगता को परिभाषित इस आधार पर किया जाता है कि वह किस तरह से व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर रही है।

शारीरिक विकलांगताएं जन्मजात, एक्सीडेंट या किसी बीमारी के कारण हो सकती हैं। यह प्रेगनेंसी या व्यक्ति के बचपन के समय हुई बिमारियों के कारण भी हो सकती है। एक्सीडेंट, चोट, संक्रमण या अन्य बिमारियों की वजह से भी शारीरिक विकलांगता हो सकती है तथा यह अनुवांशिक भी हो सकती है।

शारीरिक विकलांगता का परीक्षण डॉक्टर द्वारा किया जाता है और इसका इलाज इसके प्रकार व प्रभाव करने की तीव्रता पर निर्भर करता है, इसमें फिजिकल थेरेपी का उपयोग किया जाता है।

(और पढ़ें - मानसिक मंदता क्या है)

शारीरिक विकलांगता के प्रकार - Types of Physical Disability in Hindi

शारीरिक विकलांगता के प्रकार कितने होते हैं ?

शारीरिक विकलांगता की दो मुख्य वर्ग निम्नलिखित हैं -

  • जन्मजात विकलांगता (Congenital disability)
    जन्मजात विकलांगता का अर्थ है कि व्यक्ति को विकलांगता जन्म से पहले (गर्भावस्था में) या जन्म के समय हुई है। (और पढ़ें - गर्भावस्था में क्या खाना चाहिए)
     
  • अर्जित विकलांगता (Acquired disability)
    अर्जित विकलांगता का अर्थ है कि व्यक्ति को विकलांगता उसके जीवन के दौरान किसी बहरी कारण की वजह से हुई है, जैसे चोट लगना या कोई बीमारी। (और पढ़ें - मानसिक रोग)

एक ही तरह की विकलांगता होने के बावजूद भी यह हर व्यक्ति को अलग तरह से प्रभावित कर सकती है। कुछ विकलांगताएं ऐसी भी होती हैं जो बाहर दिखाई नहीं देती, जिन्हें अदृश्य विकलांगता (Invisible disability) कहा जाता है।

विकलांगता के कई प्रकार होते हैं जो व्यक्ति को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित करते हैं -

  • गतिविधि करने की क्षमता
  • मानसिक स्वास्थ्य
  • सोचने की क्षमता 
  • सीखने की क्षमता (और पढ़ें - ओसीडी)
  • याद रखने की क्षमता (और पढ़ें - दिमाग तेज करने के घरेलू उपाय)
  • संवाद करने की क्षमता 
  • सामाजिक रिश्ते (और पढ़ें - रिश्तों को बेहतर और मजबूत कैसे बनाये)
  • देखने की क्षमता (और पढ़ें - भेंगापन)
  • सुनने की क्षमता (और पढ़ें - बहरापन)

शारीरिक विकलांगता के लक्षण - Physical Disability Symptoms in Hindi

शारीरिक विकलांगता के लक्षण क्या होते हैं ?

शारीरिक विकलांगता का मुख्य लक्षण होता है शरीर के चलने-फिरने या गतिविधि करने की क्षमता में कमी। शारीरिक विकलांगता, चोट, बीमारी व विकारों के कारण हो सकती है जो चलने-फिरने की क्षमता में कमी के अलावा अन्य लक्षण भी करते हैं, जैसे: 

  • मल्टीपल स्केलेरोसिस से थकान,
  • बोलने और देखने में समस्याएं हो सकती हैं
  • सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral palsy) से ग्रस्त व्यक्ति को बोलने व खाने के लिए अपने मुंह को नियंत्रित करने में समस्या होती है।

शारीरिक विकलांगता के लक्षण इसके कारण की तीव्रता पर निर्भर करते हैं। गतिविधि अवरुद्ध करने वाली अन्य प्रकार की समस्याओं के लक्षण धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं, जैसे हाथ की हड्डी टूटना।

चलने-फिरने या गतिविधि करने की क्षमता में कमी एक गंभीर और जीवन को बदलने वाली समस्या हो सकती है। अगर आप शारीरिक विकलांगता के कोई भी लक्षण अनुभव कर रहे हैं, तो अपने डॉक्टर से इसके बारे में बात करें।

कुछ समस्याओं का निदान सामान्य शारीरिक परीक्षण से हो जाता है।

चलने-फिरने या गतिविधि करने की क्षमता में कमी के कारण पर आधारित इसका जल्दी इलाज करने से लक्षणों को ठीक भी किया जा सकता है और उन्हें बढ़ने से रोका भी जा सकता है।

शारीरिक विकलांगता के कारण - Physical Disability Causes in Hindi

शारीरिक विकलांगता के कारण क्या होते हैं ?

शारीरिक विकलांगता के कई कारण हो सकते हैं, जैसे -

  • रीढ़ की हड्डी में चोट
  • मस्तिष्क की चोट
  • मस्तिष्क, तंत्रिकाओं या मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली गंभीर बीमारियां, जैसे दिमागी बुखार (मेनिन्जाइटिस)
  • अनुवांशिक विकार, जैसे मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी (Muscular dystrophy: समय के साथ मासपेशियां कमजोर होने की समस्या)
  • जन्मजात समस्याएं, जैसे स्पाइना बिफिडा (Spina bifida: शिशु की रीढ़ की हड्डी का ठीक से विकास न हो पाना)

शारीरिक विकलांगता का कारण बनने वाली मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं -

  • गठिया और अन्य मांसपेशियों व हड्डियों से सम्बंधित समस्याएं - यह समस्याएं शारीरिक विकलांगताओं का मुख्य कारण होती हैं। यह शारीरिक विकलांगताओं के सारे मामलों की तीसरी सबसे बड़ी वजह हैं। सम्भवतः गठिया इसका सबसे बड़ा कारण है।
  • अन्य मांसपेशियों और हड्डियों की समस्याएं - पीठ की समस्याएं, हड्डियों का ठीक न होना और कूल्हे की समस्याएं भी शारीरिक विकलांगताओं हैं। (और पढ़ें - पीठ दर्द)
  • शुगर - शुगर के कारण होने वाली विकलांगताओं के मामले बढ़ रहे हैं। शुगर मोटापे सहित अन्य गंभीर स्वास्थ समस्याओं का कारण बनती है।
  • ह्रदय राग और स्ट्रोक - लोगों को कई सालों या दशकों तक हृदय रोग रह सकता है जो उनकी शारीरिक क्षमता को प्रभावित करता है। स्ट्रोक से भी शारीरिक विकलांगता हो सकती है।
  • मानसिक स्वास्थ समस्याएं - मानसिक स्वास्थ समस्याओं से काम करना मुश्किल या नामुमकिन हो सकता है। डिप्रेशन, बाइपोलर डिसआर्डर और अन्य मानसिक समस्याएं शारीरिक समस्याओं की तरह ही विकलांगता कर सकती हैं।
  • तंत्रिका तंत्र के विकार - इसमें मस्तिष्क और तंत्रिकाओं को प्रभावित करने वाली कई समस्याएं शामिल हैं, जैसे -
    • मिर्गी
    • मल्टीपल स्केलेरोसिस
    • पार्किंसन रोग
    • अल्जाइमर रोग
  • एक्सीडेंट - दुर्घटनाएं भी शारीरिक विकलांगता का एक सामान्य कारण हैं।
  • कैंसर - कैंसर से विकलांगता हो सकती है लेकिन इसके उपचार जैसे - सर्जरी, रेडिएशन (Radiation) और कीमोथेरेपी (Chemotherapy) से भी काम करने में समस्याएं हो सकती हैं।

शारीरिक विकलांगता के जोखिम कारक क्या होते हैं ?

शारीरिक विकलांगता के जोखिम कारक निम्नलिखित हैं -

  • गर्भावस्था के दौरान बीमारी या संक्रमण
  • माता-पिता की बुद्धिमत्ता (I.Q.) कम होना 
  • माता-पिता का शराब या ड्रग्स लेना (और पढ़ें - नशे की लत)
  • जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी
  • मस्तिष्क की चोट
  • कुपोषण

शारीरिक विकलांगता के बचाव के उपाय - Prevention of Physical Disability in Hindi

शारीरिक विकलांगता होने से कैसे बचा जा सकता है?

शारीरिक विकलांगता होने से बचने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें -

प्रेगनेंसी से पहले देखभाल

  • कम उम्र (18 साल से पहले) और ज्यादा उम्र (35 साल के बाद) प्रेगनेंट होने से बचें। (और पढ़ें - प्रेग्नेंट होने का सही समय)
  • खून का रिश्ता रखने वाले रिश्तेदारों जैसे चाचा, भतीजी और चचेरे या ममेरे भाई बहनों में शादी न करें जिससे अनुवांशिक समस्याओं से बचा जा सके।

गर्भावस्था के दौरान देखभाल

  • सारी प्रेगनेंट महिलाओं को टेटनस का टीका लगाना चाहिए।
  • भारी सामान उठाने जैसे कठोर शारीरिक काम न करें।
  • अनावश्यक दवाओं और ड्रग्स का सेवन न करें।
  • धूम्रपान, तम्बाकू, शराब और नशीले पदार्थों का सेवन न करें।
  • एक्स-रे और किसी भी अन्य प्रकार के रेडिएशन से बचें।
  • संतुलित आहार खाएं। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी डाइट चार्ट)
  • बच्चे पैदा करने की उम्र की सारी महिलाओं को रोज़ाना 0.4 मिलीग्राम विटामिन बी9 (फोलिक एसिड) की आवश्यकता होती है। (और पढ़ें - गर्भावस्था में फोलिक एसिड का महत्व)
  • खसरा या गलसुआ (Mumps) अदि बिमारियों से बचें, खासकर गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में।
  • यौन संचारित रोग से ग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन संपर्क से बचें। (और पढ़ें - एचआईवी)
  • पैरों में सूजन, लगातार सिरदर्द, बुखार, पेशाब में दर्द या मुश्किल, योनि से रक्तस्त्राव और पीलिया होने पर अपने डॉक्टर के पास जाएं। (और पढ़ें - स्पॉटिंग)

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी में क्या करना चाहिए)

डिलीवरी के दौरान देखभाल

  • डिलीवरी प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा अस्पताल में होनी चाहिए जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हों। (और पढ़ें - डिलीवरी के बाद की समस्याएं और उनके उपाय)
  • समय से पहले हुए बच्चों और कम वज़न वाले बच्चों (ढाई किलो से कम) को अधिक देखभाल की आवश्यकता हो सकती है। (और पढ़ें - जन्म के समय बच्चे का वजन)
  • बच्चे को संक्रमण से बचाने के लिए जन्म के तुरंत बाद स्तनपान शुरू कर देना चाहिए। (और पढ़ें - ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए क्या खाएं)

बचपन में देखभाल

  • अगर बच्चे को दौरा पड़ता है, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
  • हर बच्चे का संक्रामक बिमारियों के प्रति टीकाकरण होना चाहिए। (और पढ़ें - टीकाकरण चार्ट)
  • बच्चे को ज़्यादा पेंट, स्याही या लीड के संपर्क में न आने दें।
  • बच्चे को कान की मैल निकालने के लिए बालों में लगाने वाली सुई, माचिस की तीली या पेन्सिल का उपयोग न करने दें। (और पढ़ें - कान का मैल साफ़ करने के घरेलु उपाय)
  • अगर बच्चा शोर वाले इलाके में है, तो उसके कान को ढकने के लिए इयरप्लग का प्रयोग करें।
  • बच्चे को चेहरे पर न मारें क्योंकि इससे उसके कान के परदे को नुक्सान हो सकता है जिससे उसकी सुनने की क्षमता जा सकती है।
  • अपने बच्चे के शरीर का तापपमान किसी भी वजह से 101 डिग्री से ज़्यादा न होने दें। इससे बुखार सम्बन्धी दौरे हो सकते हैं। (और पढ़ें - बच्चे को बुखार)
  • सिर की चोट और अन्य एक्सीडेंट से बच्चे को बचाएं।
  • बच्चे को संतुलित आहार और साफ पानी दें। (और पढ़ें - ताम्बे के बर्तन में पानी पीने के फायदे)
  • चार से पांच महीने के बीच की उम्र के दौरान बच्चे को पर्याप्त मात्रा में अच्छा भोजन दें।
  • विटामिन ए की कमी से होने वाले रोग, जैसे रतौंधी, से बचने के लिए विटामिन ए पूरक (सप्लीमेंट) दें। 
  • साफ़ सुथरे और कम भीड़ भाड़ वाले वातावरण में बच्चे को रखें ताकि वह मेनिन्जाइटिस और इंसेफेलाइटिस (Encephalitis) से बच सके।
  • गोइटर (Goiter) और क्रेनटिनिस्म (Cretinism: एक ऐसी समस्या जिसमें थायराइड हार्मोन का उत्पादन कम होता है) से बच्चे को बचाने के लिए उसे आयोडीन वाला नमक दें।

शारीरिक विकलांगता का निदान - Diagnosis of Physical Disability in Hindi

शारीरिक विकलांगता का परीक्षण कैसे होता है ?

शारीरिक विकलांगता के परीक्षण के लिए डॉक्टर निम्नलिखित चीज़ें देखेंगे -

  • इलाज, दवाएं और प्रयोग किए जा रहे यंत्र व सुविधाओं की जानकारी और उनके प्रभाव।
  • समय के साथ विकलांगता का अपेक्षित रुकना और बढ़ना।
  • व्यक्ति की शारीरिक, व्यावहारिक और ज्ञान-संबंधी कार्य करने की क्षमता।
  • विकलांगता से व्यक्ति के जीवन की मुख्य गतिविधियों में हो रही रुकावट, जैसे चलने, सांस लेने, देखने, सुनने, काम करने, अपना ख्याल रखने और सीखने में।
  • लक्षणों के प्रकार और तीव्रता व शारीरिक विकलांगता का कार्य-संबंधी प्रभाव।

शारीरिक विकलांगता का उपचार - Physical Disability Treatment in Hindi

शारीरिक विकलांगता का इलाज कैसे होता है ?

शारीरिक विकलांगता के लिए निम्नलिखित थेरेपी का उपयोग किया जाता है -

  • व्यवहारिक थेरेपी (Behavioral Therapy) -
    यह एक प्रकार की मनोचिकित्सा होती है जो व्यक्ति के व्यवहार की समस्याओं को कम करती है। व्यवहारिक थेरेपी मनोवैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग करके व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और संवाद करने के कौशल को सुधारती है। (और पढ़ें - आटिज्‍म)
     
  • संज्ञानात्मक थेरेपी (Cognitive Therapy)
    संज्ञानात्मक थेरेपी, व्यवहारिक थेरेपी के विपरीत होती है। यह व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने वाली सोच व भावनाओं पर केंद्रित रहती है और व्यवहारिक थेरेपी उस सोच व भावना को खत्म करने पर केंद्रित रहती है।
     
  • शारीरिक थेरेपी (Physical Therapy)
    शारीरिक थेरेपी या फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) शरीर की गतिविधि करने की क्षमता, संतुलन व ताल-मेल और ताक़त व सहनशीलता को सुधारने पर केंद्रित रहती है। (और पढ़ें - ताकत बढ़ाने घरेलू उपाय)
     
  • ऑक्यूपेशनल थेरेपी (Occupational Therapy) - 
    ऑक्यूपेशनल थेरेपी एक ऐसा उपचार है जो लोगों को जीवन के सारे भागों में मदद करता है। अगर आपके बच्चे को शारीरिक विकलांगता, विकास की समस्याएं, ताल-मेल की समस्याएं या सोचने की समस्याएं हैं, तो ऑक्यूपेशनल थेरेपी उसकी मदद कर सकती है।
     
  • स्पीच थेरेपी (Speech Therapy) - 
    स्पीच थेरेपी बोली, भाषा और मुंह से बोलने के तरीके को सुधारती है। जो बच्चे ठीक से बोल नहीं पाते, उनकी बोली को साफ़ बनाने, भाषा को सीखने और सुनने के कौशल को सुधारने के लिए स्पीच थेरेपी का उपयोग किया जाता है।

शारीरिक विकलांगता के डॉक्टर

शारीरिक विकलांगता की ओटीसी दवा - OTC Medicines for Physical Disability in Hindi

शारीरिक विकलांगता के लिए बहुत दवाइयां उपलब्ध हैं। नीचे यह सारी दवाइयां दी गयी हैं। लेकिन ध्यान रहे कि डॉक्टर से सलाह किये बिना आप कृपया कोई भी दवाई न लें। बिना डॉक्टर की सलाह से दवाई लेने से आपकी सेहत को गंभीर नुक्सान हो सकता है।

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