शिवरात्रि का व्रत कैसे किया जाता है - shivaraatri ka vrat kaise kiya jaata hai

सनातन धर्म में सभी व्रत त्‍योहार प्रमुख तौर पर किसी न किसी भगवान को समर्पित होते हैं और उन्‍हीं की इस दिन पूजा की जाती है। इसी प्रकार से महाशिवरात्रि का व्रत भी शिवजी और माता पार्वती को समर्पित होता है और इस दिन उन्‍हीं की पूजा भी की जाती है। मान्‍यता है कि भगवान शिव और पार्वती विवाह संपन्‍न हुआ था। यह त्‍योहार उनकी वैवाहिक वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। देवी पार्वती और शिवजी के मिलन के इस उत्‍सव को पूरे भारत में विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग व्रत करके शिवजी की आराधना करते हैं। हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे किया जाता है शिवरात्रि का व्रत और पूजा…

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ऐसे करें व्रत की शुरुआत
माना जाता है कि महाशिवरात्रि के व्रत की शुरुआत त्रयोदशी से ही हो जाती है और इसी दिन से लोगों को शुद्ध सात्विक आहार लेना शुरू कर देना चाहिए। कुछ लोग तो इसी दिन से व्रत का आरंभ कर देते हैं। इसके बाद चतुर्दशी तिथि को पूजा करके व्रत करने का संकल्‍प लेते हैं। इस दिन शिवजी को भांग, धतूरा, गन्‍ना, बेर और चंदन अर्पित किया जाता है। वहीं माता पार्वती को सुहागिन महिलाएं सुहाग की प्रतीक चूड़ियां, बिंदी और सिंदूर अर्पित किया जाता है। यदि आप उपवास करते हैं तो पूरे दिन फलाहार ग्रहण करें और नमक का सेवन न करें। यदि किसी वजह से नमक का सेवन करते हैं तो सेंधा नमक का सेवन करें।

महाशिवरात्रि व्रतविधि
महाशिवरात्रि व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में ऊं नम: शिवाय का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हो, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है। चारों पहर में किए जाने वाले इन मंत्रों के जप से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत के लाभ
महाशिवरात्रि का व्रत बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। खासकर कि उन महिलाओं के लिए जो अविवाहित हैं। माना जाता है कि जो कन्‍याएं शिवरात्रि का व्रत करती हैं उन्‍हें जल्‍द ही व्रत का फल मिलता है और उनके विवाह के शीघ्र ही संयोग बन जाते हैं। वहीं विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत करती हैं तो उन्‍हें चिर सौभाग्‍य की प्राप्ति होती हैं और उनके परिवार में खुशहाली रहती है।

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  • व्रत के नियममहाशिवरात्रि के व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है। यदि फिर भी कोई बीमार है या फिर गर्भवती महिला हैं या बुजुर्ग हैं तो वह व्रत में फलाहारी नमक का प्रयोग कर सकते हैं।
  • व्रत करने वाले व्‍यक्ति को दिन में निद्रा नहीं लेनी चाहिए और रात्रि में भी शिवजी का भजन करके जागरण करना चाहिए। इस दिन पति और पत्‍नी को साथ मिलकर शिवजी के भजन करने चाहिए। ऐसा करने से उनके संबंधों में मधुरता बनी रहती है।
  • माना जाता है कि शिवजी को खट्टे फलों का भोग नहीं लगाना चाहिए और सफेद मिष्‍ठान का प्रयोग करना चाहिए।

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शिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को होता है। कुछ लोग चतुर्दशी के दिन भी इस व्रत को करते हैं। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया है।

तीनों भुवनों की अपार सुन्दरी तथा शीलवती गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकारी ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री सम्पत्ति प्रदान करते हैं।

काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्व, शूद्र, नर-नारी, बालक-वृद्ध हर कोई कर सकता है।

1. इस दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखना चाहिए।

2. पत्र-पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ गौरी-शंकर और नंदी की मूर्ति रखनी चाहिए।

3. यदि इस मूर्ति का नियोजन न हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए।

4. कलश को जल से भरकर रोली, मौली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेलपत्र, कमौआ आदि का प्रसाद शिवजी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। पूजन विधि विस्तृत में पृथक से दी गई है, उसे पूजन से पूर्व एक बार अवश्य पढ़ लें।

5. रात को जागरण करके शिव की स्तुति का पाठ करना चाहिए। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ मंगलकारी है। शिव आराधना स्तोत्रों का वाचन भी लाभकारी होता है।

6. इस जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान जरूरी है।

7. शिवरात्रि की कथा कहें या सुनें...

8. दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल-खीर तथा बेलपत्रों का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करना चाहिए। इस विधि तथा स्वच्छ भाव से जो भी यह व्रत रखता है, भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अपार सुख-सम्पदा प्रदान करते हैं।

9. भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेध को खा लेता है, वह नरक के दुःखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम हों तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं होता।

शिवरात्रि के व्रत में खाना कब खाते हैं?

सुबह के समय फलाहार करना चाहिए। फलाहार में संतरा, खीरा, पपीता, सेब आदि फल ले सकते हैं। महाशिवरात्रि के व्रत में भी सात्विक भोजन खाना चाहिए। अगर स्वास्थ्य संबंधी समस्या न हो तो बिना नमक के भी यह व्रत किया जा सकता है।

महा शिवरात्रि का व्रत कैसे रखा जाता है?

ऐसे करें व्रत की शुरुआत माना जाता है कि महाशिवरात्रि के व्रत की शुरुआत त्रयोदशी से ही हो जाती है और इसी दिन से लोगों को शुद्ध सात्विक आहार लेना शुरू कर देना चाहिए। कुछ लोग तो इसी दिन से व्रत का आरंभ कर देते हैं। इसके बाद चतुर्दशी तिथि को पूजा करके व्रत करने का संकल्‍प लेते हैं

महाशिवरात्रि का व्रत कब खोलते हैं?

मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव का व्रत रखने वालों सौभाग्य, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। चतुर्दशी तिथि समाप्त - मार्च 02, 2022 को 01:00 ए एम बजे। रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:39 ए एम से 06:45 ए एम, मार्च 02। भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि व्रत 2 मार्च को, सुबह 06:45 बजे के बाद पारण किया जा सकेगा।

महाशिवरात्रि को क्या क्या चढ़ाया जाता है?

सावन‍ शिवरात्रि पर दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक करते समय ऊं नम: शिवाय या महामृत्‍युंजय मंत्र का जप जरूर करें। उसके बाद भांग, धतूरा और बेलपत्र शिवजी को अर्पित करें। फिर शिवलिंग पर फल, फूल और अक्षत चढ़ाएं व भगवान को इत्र अर्पित करें।