Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप. Important Questions
for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams. प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट, शब्दार्थ : किसबी-मजदूर। कुल-परिवार, वंश, समाज। चपल-चंचल। अहन-दिन। बड़वागि–समुद्र की आग। बनिक-बनिया। गिरि-पर्वत। अगि पेटकी-पेट की आग अर्थात पेट की भूख। प्रसंग :
प्रस्तुत कवित्त हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के उत्तरकांड से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने समय के समाज का यथार्थ अंकन किया है। जहाँ संसार के अच्छे-बुरे सभी प्राणियों का आधार पेट की आग का गहन यथार्थ है जिसको कवि राम रूपी घनस्याम के कृपा-जल से समाधान करने की प्रार्थना करते हैं। व्याख्या : इस संसार में मजदूर, कृषक, व्यवसायी, वैश्य, भिक्षुक, भाट, नौकर-चाकर, चंचल नट, चोर, दूत, जादूगर सभी लोग अपना पेट भरने के लिए तरह-तरह के कार्यों को करते हैं। वे अनेक करिश्मों को
करते हैं-यहाँ तक कि पर्वतों पर चढ़ते हैं। वे बड़े-बड़े कठिन कार्यों को करते हैं, घने जंगलों में पर्वतों पर चढ़ जाते हैं। शिकारी के रूप में सारा दिन भटकते रहते हैं। पेट ऐसी ही बला है जिसके लिए लोग दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं। उचितानुचित कार्य करने में भी वे नहीं हिचकिचाते हैं। धर्म-अधर्म की भावना लोगों में नहीं रह गई है। यहाँ तक कि अपने इस पेट को भरने के लिए अपने पुत्र-पुत्रियों को भी बेच डालते हैं। यह पेट की अग्नि समुद्र की आग से भी कहीं बढ़कर सिद्ध हो रही है। अब ऐसी भीषण अग्नि की शांति मेघ रूपी श्रीराम से ही हो सकती है अर्थात प्रभु राम की कृपा हो जावे तो यह भूख, जिसको शांत करने के लिए लोग भटक रहे हैं, शांत हो सकती है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
2. खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, शब्दार्थ : बनिक-बनिया। चाकर-नौकर, काम करने वाला। सीद्यमान-दुखी। एक-एकन सो-एक-दूसरे को, आपस में। बेदहूँ-वेद।सांकरे-संकटकाल में। दारिद-दसानन-दरिद्रता रूपी रावण। दीनबंधु-दीन-दुखियों या गरीबों के भाई । हहा करी-प्रार्थना करना। बनिज-व्यापार । चाकरी-नौकरी, काम। सोच बस-शोक वश।का करी-क्या करें। पुरान-पुराण । रावरें-सलोने। दुनी-दुनियाँ। दुरित-दहन-पापों को भस्म करने वाला। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित कवितावली के ‘उत्तरकांड’ से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रकृति और शासन की विषम से अपनी गरीबी और बेकारी की पीड़ा का यथार्थपरक चित्रण किया है तथा प्रभु राम से इसे दूर करने की प्रार्थना की है। व्याख्या : तुलसी जी समकालीन समाज में व्याप्त गरीबी और बेकारी का यथार्थ चित्रण करते हुए प्रभु राम को संबोधन करके कहते हैं कि हे दीनबंधु! समाज में हर तरफ़ गरीबी और बेकारी का बोलबाला है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति दुखी है। किसान के पास खेती करने के लिए उचित साधन नहीं हैं जिससे वह खेती पैदा नहीं कर सकता। भिखारी को भीख नहीं मिलती। कोई संपन्न व्यक्ति नहीं जो भीख दे सके। व्यापारी के पास कोई व्यापार नहीं है जिससे उसकी आजीविका चल सके। नौकरों तथा कार्य करनेवाले लोगों को नौकरी या काम नहीं मिल पाता। समाज में किसी के पास भी आजीविका चलाने का कोई साधन नहीं है। वे सब बेकारी के कारण शोक वश दुखी हैं। समाज का प्रत्येक वर्ग दीनहीन एवं दुखी है। दुखी होकर वे आपस में एक-दूसरे को यही कहते हैं कि अब कहाँ जाएँ और क्या करें जिससे जीवन-यापन हो सके। कवि कहते हैं कि हे राम! वेदों और पुराणों में कहा गया है और संसार में भी ऐसा देखा गया है कि भीषण संकट की स्थिति में साँवले प्रभु राम ही कृपा करते हैं। अतः हे प्रभु! आप सभी पर अपनी कृपा करें। आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति पीड़ित है। हे दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाले दीनबंधु ! इस समय संपूर्ण समाज को गरीबी रूपी रावण ने दबा रखा है अर्थात दुनिया में हर कहीं गरीबी रूपी रावण का साम्राज्य है। चारों तरफ़ गरीबी फैली हुई है। तुलसी जी प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे दरिद्रता को जला देनेवाले प्रभु! आप तो कष्टों का नाश करनेवाले है। अतः आप ही हमें इस गरीबी से निकालिए। आप ही दुनिया से गरीबी को दूर करें। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
3. धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कही, जोलहा कही को। शब्दार्थ : धूत-त्यागा हुआ। रजपूत-राजपूत। कोऊ-कोई। रुचै-अच्छा लगना। सोइबो-सोना। अवधूत-संन्यासी, विरक्त। जोलहा-जुलाहा। काहूको-किसी की। मसीत-मसजिद । लैबो एकु न दैवको दोउ-लेना एक न देना दो (लोकोक्ति)। प्रसंग : प्रस्तुत सवैया ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के उत्तरकांड से लिया गया है। इसमें भक्त हृदय के आत्मविश्वास का चित्रण है तथा कवि ने समाज में व्याप्त जातिवाद और धर्म का खंडन किया है। व्याख्या : भक्त तुलसीदास जी आत्मविश्वास को प्रकट करते हुए कहते हैं कि समाज में मुझे चाहे कोई त्यागा हुआ कहे या संन्यासी, कोई जाति का राजपूत कहे या जुलाहा, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर मुझे किसी की बेटी से बेटे की शादी नहीं करनी जिससे किसी की जाति बिगड़ जाएगी। तुलसी जी जाति-धर्म का खंडन करते हुए कहते हैं कि मैं तो केवल प्रभु राम का दास हूँ फिर जिसे जो अच्छा लगे वह कहता रहे। मुझे किसी की जाति-धर्म से कोई सरोकार नहीं है। तुलसी जी कहते हैं कि मुझे किसी से कोई लेना-देना नहीं है। मैं तो भीख माँगकर पेट भरता हूँ और मसजिद में सोता हूँ। मैं तो पूर्ण रूप से प्रभु राम की शरण में समर्पित हो गया हूँ। मुझे संसार से कोई मतलब नहीं है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
4. तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत। शब्दार्थ : तव-तुम्हारा। उर-हृदय। जैहउँ-जाऊँगा। अस-ऐसा, इस तरह। पद-चरण, पैर, पाँव। बाहुबल-भुजाओं की शक्ति। गुन-गुण। प्रीति-प्यार। महुँ-में। पुनि-पुनि-बार-बार, फिर-फिर। प्रताप-बल। राखि-रखकर। तुरंत-इसी समय, अभी। आयसु-आज्ञा। बंदि-बंदना। सील-शील, स्वभाव। अपार-असीम, अनंत। सराहत-सराहना कर रहे है, बड़ाई कर रहे हैं। पवनकुमार-पवनपुत्र अर्थात हनुमान। प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के
लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ नामक प्रसंग से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने लक्ष्मण-मूर्छा प्रसंग का करुण चित्रण प्रस्तुत किया है। हनुमान जी युद्ध-भूमि में मूर्च्छित पड़े लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेकर जा रहे थे तो भरत जी ने उन्हें राक्षस समझकर तीर मारा। हनुमान जी राम नाम लेते हुए मूर्च्छित हो गए। तब भरत ने उन्हें राम का दूत समझकर उन्हें स्वस्थ किया और उनसे सब स्थिति जानकर पछताने लगे। समय व्यतीत होता व्याख्या : हनुमान जी भरत जी से कहते हैं कि हे प्रभु! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर शीघ्र ही अपने स्वामी अर्थात श्रीराम के पास चला जाऊँगा। ऐसा कहकर और आज्ञा पाकर तथा भरत जी के चरणों की वंदना करके हनुमान जी ने वहाँ से प्रस्थान किया। भरत जी के बाहुबल, शील, गुणों और प्रभु राम के चरणों के प्रति उनके अपार प्रेम की मन-ही-मन बार-बार सराहना करते हुए पवनपुत्र हनुमान जी चले जा रहे हैं। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
5.
उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥ शब्दार्थ : उहाँ-वहाँ। निहारी-देखा। अर्थ-आधी। कपि-वानर अर्थात हनुमान। अनुज-छोटा भाई लक्ष्मण। लायक-लगाया। दुखित-दुखी। बंधु-भाई। मृदुल-कोमल। मम-मेरा। सहेहु-सहन किया। आतप-गरमी। लच्छिमनहि-लक्ष्मण को। मनुज-अनुसारी-मनुष्य के अनुसार। राति-रात। आबउ-आए। उर-हदय। सकहु-सके। मोहि-मुझे। तव-तुम्हारा। सुभाऊ-स्वभाव। हित-भला। तजेह-छोड़ दिया। हिम-वरफ़, सरदी। वाता-वायु, आँधी। प्रसंग : यह काव्यांश तुलसीदास रचित ‘लक्ष्मण-मूछा और राम का विलाप’ कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने लक्ष्मण-मू के समय श्रीरामचंद्र की करुण दशा का मार्मिक चित्रण किया है। व्याख्या : प्रभु राम की करुणावस्था का चित्रांकन करते हुए कवि जी कहते हैं कि युद्ध-क्षेत्र में मूर्छित हुए लक्ष्मण को देखकर एक साधारण मनुष्य की तरह कहने लगे अर्थात कवि का आशय यह है कि लक्ष्मण के मूर्छित होने पर श्रीराम का हृदय इतना व्याकुल हो उठा कि वे एक साधारण मानव की तरह विलाप करने लगे। वे लक्ष्मण को देखकर करुण दशा में बोल पड़े कि आधी रात व्यतीत हो गई है लेकिन अभी तक हनुमान जी औषधि लेकर नहीं आए। यह कहकर राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। कहने का भाव है कि हनुमान के न आने पर श्रीराम जी बहुत ज्यादा व्याकुल हो गए और उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया। श्री रामचंद्र लक्ष्मण को याद करते हुए व्याकुल होकर कहते हैं कि हे भाई! तुम्हारा स्वभाव सदा से ही बहुत कोमल है इसलिए तुम मुझे कभी भी दुखी नहीं देख सके अर्थात सदैव तुमने दुखों में मेरी सहायता की है। श्रीराम विलाप करते हुए कहते हैं कि हे भाई ! मैं तुम्हारी महानता का कहाँ तक बखान करूँ। तुमने तो मेरी भलाई के लिए अपने माता-पिता को भी छोड़ दिया तथा अयोध्या के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को छोड़कर तुम मेरे साथ जंगलों में चले आए। यहाँ तुमने जंगलों की भयानक सरदी, गरमी, आँधी और तूफानों को सहन किया। हे भाई! तुमने मेरे खातिर अपने सुखों को त्यागकर सदैव मेरा हित किया। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
6. सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥ शब्दार्थ : सो-वह। उठहु-उठो। बच-वचन। जौं-यदि। बंधु-भाई अर्थात लक्ष्मण। मनतेऊँ-मानता। सुत-बेटा, पुत्र। नारि-स्त्री,पत्नी। परिवारा-परिवार, कुल। बारहिं-बार। विचारि-सोचकर। ताता-भाई। अनुराग-प्रेम, प्रीति, लगाव। समु-मेरा, मेरे। बिकलाई-व्याकुल। जनतेउँ-जानता। बिछोहू-बिछोह, विरह। ओहू-आऊँ। बित-धन, संपत्ति। भवन-घर, महल। जग-संसार। अस-ऐसा, इस तरह। जियं-हदय। सहोदर-एक ही माँ के पेट से जन्मा भाई। प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास विरचित ‘आरोह भाग-2’ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग : से अवतरित हैं। इसमें कवि तुलसीदास जी ने लक्ष्मण-मूर्छा के समय श्रीरामचंद्र जी के हृदय की व्याकुल अवस्था का मार्मिक चित्रण किया है। व्याख्या : श्री रामचंद्र जी दुखी हृदय से अपने अनुज लक्ष्मण को संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे भाई लक्ष्मण ! वह पहलेवाला प्यार, लगाव अब कहाँ है अर्थात जब तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते थे। मेरे कारण आपने माता-पिता को छोड़ दिया तथा वन में चले आए। अब मेरे प्रति आपका वह प्रेम कहाँ लुप्त हो गया है ? तुम पहले की तरह मुझसे प्रेम क्यों नहीं करते। श्रीराम जी अत्यंत विलाप करते हुए कहते हैं कि हे भाई। उठो, तुम मेरे वचनों की व्याकुलता को सुनो। मेरे व्याकुल वचनों को सुनकर तुम उठकर बैठ जाओ और पहले की तरह मुझसे प्यार करो। राम अत्यंत दुखी हृदय से पश्चात्ताप करते हुए कहते हैं कि यदि मैं यह जानता कि वन में भाई का बिछोह होगा तो मैं पिता जी के वचनों को ही नहीं मानता और न यहाँ कभी वन में आता। यदि मुझे आभास होता कि वन में जाने के बाद मुझसे आपका बिछोह होगा तो मैं कदापि पिता के वचन न मानता। श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को संबोधन करते हुए दुखी मन से कह रहे हैं कि हे भाई ! इस नश्वर संसार में पुत्र, धन संपत्ति, पत्नी, महल और परिवार बार-बार मिल जाते हैं और बार-बार नष्ट होते हैं लेकिन अपार यत्न करने पर भी संसार में एक माँ के पेट से जन्म लेनेवाला सगा भाई नहीं मिलता। इसीलिए हे तात ! तुम हृदय में ऐसा विचार करके जागृत हो जाओ। कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार में पुत्र-पत्नी, धन-संपत्ति, भवन और परिवार तो बार-बार मिल जाते हैं लेकिन लक्ष्मण जैसा आदर्श भाई कभी दोबारा नहीं मिल सकता। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
7. जथा पंख बिनु खग अति दीना। शब्दार्थ : जथा-जिस प्रकार, जैसे। खग-पक्षी। दीना-दीन-हीन। फनि-साँप। कर-सूंड। मम-मेरा। बंधु-भाई। जैहउँ-जाऊँगा। कवन-कौन। लाई-लेकर। गंवाई-गवा दिया। अपजस-अपयश, कलंक। जग-संसार। बिसेष- विशेष। बिनु-के बिना। अति-बहुत अधिक। मनि-मणि। करिबर-हाथी श्रेष्ठ। अस-ऐसा, इस प्रकार, ऐसे। जिवन-जीवन। तोही-तुम्हारे। अवध अयोध्या। मुहु-मुँह । हेतु-के लिए। बरु-चाहे, ओर। सहतेउँ-सहन करना पड़ेगा। माहीं-में। छति-हानि, क्षति। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने लक्ष्मण की अचेत अवस्था के पश्चात श्री रामचंद्र जी के मन की व्यथा का सजीव अंकन किया है। व्याख्या : तुलसीदास जी का कहना है कि श्रीरामचंद्र जी अपने अनुज को संबोधन करके कहते हैं कि हे भाई लक्ष्मण, जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी अत्यंत दीन है। मणि के बिना साँप तथा सैंड के बिना श्रेष्ठ हाथी बिलकुल हीन एवं तुच्छ है। उसी प्रकार हे भाई, आपके बिना मेरा जीवन भी व्यर्थ है। फिर शायद भाग्य केवल मुझे निर्जीव की भाँति जीवित रखना चाहता है। श्रीराम जी मानते हैं कि जैसे पंख के बिना पक्षी उड़ नहीं सकते, मणि के बिना जैसे साँप का जीवन असंभव है तथा सूंड के बिना श्रेष्ठ हाथी का जीवन व्यर्थ है वैसे ही तुम्हारे बिना मुझ राम का जीवन भी व्यर्थ है। कवि का कथन है कि राम मानसिक रूप से अत्यंत दुखी हैं। वे मन-ही-मन में मंथन कर रहे हैं कि अब मैं लक्ष्मण के बिना अयोध्या क्या मुँह लेकर जाऊँगा। जब माता-पिता और अयोध्यावासी उनके बारे में पूछेगे तो मैं क्या जवाब दूंगा। वे सब तो यही समझेंगे कि राम ने अपनी पत्नी के लिए अपने प्रिय भाई लक्ष्मण को न्योछावर कर दिया। इस प्रकार अयोध्यावासी अनेक आरोप लगाएँगे और संसार में यह कलंक सहना पड़ेगा कि श्रीरामचंद्र जी ने अपनी पत्नी सीता के लिए प्रिय भाई को गँवा दिया। कवि कहते हैं कि राम अपने मन ही मन यह सोचते हैं कि इस संसार में नारी की हानि कोई महत्त्वपूर्ण क्षति नहीं है। मैंने सीता को गँवा दिया था। यह मेरे लिए कोई विशेष हानि नहीं थी लेकिन प्रिय भाई की क्षति मेरे लिए अपयश सहने के समान है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
5. यह श्रीराम का प्रलाप हैं। यह
इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उनके प्रिय अनुज लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं। कविता भी उड़ान भरती है और चिड़िया भी उड़ान भरती हैं। 8.अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥ शब्दार्थ : अपलोकु-इस संसार में। तोरा-तुम्हारा। निठुर-निष्ठुर निर्दय, कठोर। उर-हृदय। निज-अपनी। तात-भाई। तुम्ह-तुम्ही। सौंपेसि-सौंपा था। तुम्हहि-तुम्हारा। पानी-हाथ। सुखद-सुखी। जानी-जानकर। काह-क्या। तेहि-उनको। मोहि-मुझे। सुत-बेटा। सहिहि-सहन कर लेगा। कठोर-निर्दय, दयाहीन। मोरा-मेरा। जननी-माँ (सुमित्रा)। तासु-उनके। अधारा-आधार। मोहि-मुझे। गहि-पकड़कर। सब बिधि-सब प्रकार से। हित-हितैषी। उतरु-उत्तर। देहऊँ-दूंगा। जाइ-जाकर। सिखावहु-सिखाओ। प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि तुलसीदास जी हैं जो राम काव्यधारा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं। इस चौपाई में कवि ने श्री रामचंद्र की मनोव्यथा का सजीव चित्रण किया है। व्याख्या : श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को संबोधन करते कह रहे हैं कि हे तात! आपकी इस क्षति को तो मेरा निष्ठुर और निर्दयी हृदय सहन कर लेगा अर्थात तुम्हारी मृत्यु से मुझे जो दुख-वेदना हुई उसे तो मेरा कठोर हृदय किसी भी तरह सह लेगा किंतु मैं अयोध्या में जाकर माँ सुमित्रा को कैसे कहूँगा कि अब तुम्हारा पुत्र लखन इस संसार में नहीं रहा। कवि कहता है कि श्रीराम इसी चिंता से ग्रस्त हैं कि लक्ष्मण की मृत्यु का समाचार व उनकी माँ को किस प्रकार देंगे? श्रीराम कहते हैं कि हे भाई! अपनी माँ सुमित्रा के तुम इकलौते पुत्र थे और तुम्हीं उनके प्राणों के आधार थे। राम इसी चिंता में हैं कि अब माँ सुमित्रा लक्ष्मण के बिना कैसे जी सकेंगी। राम कहते हैं कि हे भाई! अयोध्या से वन-प्रस्थान करते समय सुमित्रा माता जी ने मुझे सब प्रकार से सुखद और परम हितैषी जानकर तुम्हारा हाथ पकड़कर मुझे सौंपा था। अर्थात माता सुमित्रा ने तुम्हारा हाथ मुझे इसलिए सुपुर्द किया था कि मैं प्रतिपल आपको सुख प्रदान करूंगा तथा प्रतिपल आपकी रक्षा करूँगा। राम अत्यंत उदास होकर कहते हैं कि हे भाई लक्ष्मण, अब मैं अयोध्या जाकर माता सुमित्रा जी को क्या उत्तर दूंगा। तुम्हीं स्वयं उठकर मुझे कुछ सिखाओ। तुम्हीं बताओ कि तुम्हारी माता जी के प्रश्नों का क्या उत्तर दूंगा जब वे पूछेगी कि मेरा पुत्र! लक्ष्मण कहाँ है जिसको मैंने तुम्हारे हाथों सौंपा था। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
9. बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन। स्रवत सलिल राजिव दल
लोचन॥ शब्दार्थ : बहु-अनेक। सोचत-सोचकर । स्रवत-बहना। राजिव-दल। उमा-शांति, क्रांति, पार्वती। रघुराई-रघुवंश के पुत्र अर्थात श्रीराम। कृपाल-कृपा करके। बिधि-प्रकार, तरह । सोच बिमोचन-शोक दूर करनेवाला। सलिल-जल, पानी।लोचन-नेत्र। अखंड-जो खंडित न हो। नर गति-सामान्य मनुष्य जैसी दशा। देखाई-दिखाई। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा’ और ‘राम का विलाप’ प्रसंग से अवतरित हैं। इसमें कवि ने लक्ष्मण-मूर्छा से व्यथित राम की मानसिक वेदना का करुण चित्रण उपस्थित किया है व्याख्या : तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम जी ने इस असहाय दुख पर अनेक प्रकार से चिंतन तथा सोच-विचार करके अपनी अपार पीड़ा को शांत कर लिया। तभी उनकी कमल-सी पंखुड़ियों रूपी दोनों आँखों से आँसू प्रवाहित होने लगे। उमापति श्रीराम जो अजर-अमर एवं शाश्वत हैं। वे सामान्य मानव की भाँति दुख से पीड़ित होकर मानव रूप में नश्वर संसार में अपने भक्तों पर अपनी कृपा दिखा रहे हैं। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
10.प्रभु प्रलाप सुनि कान विकल भए वानर निकर। शब्दार्थ : प्रलाप-विलाप, दुखभरा रोदन । वानर-बंदर। जियि-जैसे। विकल-परेशान, व्याकुल। निकर-समूह, झुंड। मह-में। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामचरितमानस के ‘लंकाकांड’ के ‘लक्ष्मण-मूछा और राम विलाप’ प्रसंग से अवतरित हैं जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के बाद राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल गया था। राम का ईश्वरीय रूप सामान्य मानव की पीड़ा में बदल गया था। हनुमान को संजीवनी बूटी लाने में समय लग रहा था व्याख्या : लक्ष्मण की मूछों के कारण दुखी राम का प्रलाप सुनकर वानर सेना अत्यंत व्याकुल हो उठी। अर्थात वानर-समूह परेशान हो गया था पर उसी समय हनुमान आ गए। इस संतप्त एवं पीड़ित वातावरण में हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आना ऐसा प्रतीत होता है जैसे करुण रस में वीर रस प्रकट हो गया हो। भाव है कि पलभर पहले परेशान वानर सेना उत्साह से भर गई। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
5. सोरठा छंद है। अवधी भाषा है। करुण रस है। 11. हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम
सुजाना॥ शब्दार्थ : हरषि-खुश होकर, हर्षित होकर। अति-बहुत अधिक। तुरत-तुरंत, उसी समय, शीघ्र ही। उपाई-उपाय। हरषाई-हर्षित होकर, खुश होकर। भेंटेउ-मिले। सकल-समस्त । भ्राता-भाई। ताहि-जहाँ से। भेंटेउ-भेंट की, मिले। कृतग्य-किए हुए उपकार को माननेवाला कृतज्ञ। बैद-वैद्य ।
कीन्हि-किया। लछिमन-लक्ष्मण। हृदय-हृदय। हरषे-खुश हुए। कपि-वानर । लइ आवा-लेकर प्रसंग : यह काव्यांश ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने लक्ष्मण की सचेतावस्था का चित्रण किया है जिसे देखकर राम सहित समस्त राम सेना हर्षित हो उठी है। कवि का कथन है कि संजीवनी औषधि लेकर आए हनुमान से श्रीराम जी की भेंट हुईं। हनुमान से मिलकर परम सुजान श्रीराम ने उनके प्रति अपार कृतज्ञता प्रकट की। वैद्य ने उपचार किया। वैद्य के उपचार से शीघ्र ही लक्ष्मण जी हँसते हुए उठ गए। व्याख्या : लक्ष्मण जी को सचेत अवस्था में देखकर प्रभु राम अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को अपने हृदय से लगा लिया। राम को हँसता हुआ देखकर राम सेना के समस्त भालू, हनुमान और वानर भाई अत्यंत प्रसन्न हो गए अर्थात लक्ष्मण को जीवित और राम को हँसता देखकर राम की सेना में प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ी। तत्पश्चात हनुमान जी ने फिर वैद्य को वहाँ पहुँचा दिया जहाँ और जिस विधि से उसको लेकर आए थे। हनुमान जी ने वैद्य को सकुशल उनके निवास स्थान पर पहुँचा दिया। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
12.यह वृतांत दसानन सुनेऊ। शब्दार्थ : वृतांत-समाचार, किसी घटित घटना का पूर्ण विवरण, वृत्तांत। सुनेऊ-सुना। विषाद-दुख। सिर धुनेऊ-सिर धुनने लगा। विविध-अनेक। निसिचर-राक्षस अर्थात कुंभकरण। कालु-काल, यमराज। तव-तुम्हारा। दसानन-दश मुख हैं जिसके अर्थात रावण। अति-बहुत। पुनि-पुनि-फिर-फिर, बार-बार। पहि-पास। जतन-प्रयास। मानहुँ-मानो। देह धरि-शरीर धारण करना। प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास’ द्वारा रचित रामचरितमानस के लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने लक्ष्मण के जीवित होने पर रावण की व्याकुलता का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि तुलसीदास जी कहते हैं कि संजीवनी के उपचार से जब लक्ष्मण सचेत हो गए तो राम-सेना अत्यंत प्रसन्न हो गई। यह बात चारों ओर फैल गई। यह बात लंकापति, रावण ने भी सुनी। इस.समाचार को पाकर रावण अत्यंत दुखी हुआ और बार-बार अपना सिर धुनने लगा; पछताने लगा। वह बहुत्त अधिक व्याकुल होकर कुंभकरण के पास सहायता माँगने के लिए आया। रावण ने अनेक प्रयास करके कुंभकरण को नींद से जगाया। कुंभकरण अनेक प्रयास करने पर ही नींद से जागा। कवि कहता है कि रावण के अनेक प्रयास करने पर कुंभकरण नींद से जागृत हुआ। वह नींद से जागता हुआ ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसने यमराज के शरीर को धारण कर लिया हो। रावण को देखकर कुंभकरण ने पूछा कि हे भाई कहो, कैसे आए हो और तुम्हारे मुख पर व्याकुलता कैसी है? अर्थात तुम इतने दुःखी क्यों दिखाई दे रहे हो? अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
13.कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥ शब्दार्थ : कथा-कहानी, वार्ता । जेहि-जिस। आनी-लाए। कपिन-हनुमान आदि वानर । संघारे-संहार किया। सुररिपु-देवताओं का शत्रु। भट-योदया। महोदर-महान पेटवाला। बीरा-वीर। महि-भूमि। तेहि-उस। हरि-हरण किया। तात-भाई। जोधा-योद्धा। दुर्मुख-कड़वी जुबान बोलनेवाला। मनुज अहारी-मनुष्य को नष्ट करनेवाला। अतिकाय-विशाल शरीर (एक दैत्य का नाम)। आदिक-आदि। समर-युद्ध। रनधीरा-रणधीर। प्रसंग : ये पंक्तियाँ राम काव्यधारा के प्रमुख कवि तुलसी द्वारा रचित हैं जो उनके रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ नामक प्रसंग से अवतरित की गई हैं। इसमें कवि ने बताया है कि रावण अपने भाई को जगाने पर उसे सारी बात बताता है। व्याख्या : कवि का कथन है कि जिस प्रकार वह सीता का हरण करके ले आया था उस अभिमानी रावण ने यह समस्त कथा अपने भाई से कही। रावण अपने भाई को संबोधन करके कहता है कि हे तात, वानरों ने हमारे सभी राक्षसों को मार गिराया है तथा हमारे बड़े-बड़े योद्धाओं का रामसेना ने संहार कर दिया है। रावण कुंभकरण को बताता है कि दुर्मुख, देवशत्रु, मनुष्य भक्षक, भारी योद्धा, अतिकाय, अकंपन, बड़े-बड़े पेटवाले आदि अन्य सभी रणवीर और रणधीर युद्धभूमि में मारे गए। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
14.सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान। शब्दार्थ : दसकंधर-दस मुखवाला, रावण । जगदंबा-जगत जननी माँ। आनि-अन्य। कल्यान-कल्याण भलाई, मंगल। बिलखान-बिलखने लगा। हरि-प्रभुब्रह्मा । सठ-दुष्ट, नीच। प्रसंग : यह दोहा तुलसी द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के लक्ष्मण-मूर्छा तथा राम का विलाप’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने रावणके वचनों से व्याकुल कुंभकरण की व्याकुलता का वर्णन किया है। व्याख्या : कवि का कथन है कि कुंभकरण रावण के वचनों को सुनकर अत्यंत व्याकुल हो उठा और चिंतन करने लगा कि यह दुष्ट पापी रावण तो साक्षात जगत जननी माँ का हरण करके लाया है तब भी यह मुझसे अपना कल्याण चाहता है। अर्थात अब इस दुष्ट का संसार में कोई भी कल्याण नहीं कर सकता। इसकी मृत्यु निश्चित है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है तथा क्यों?तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है क्योंकि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाती है वह उतनी ही बढ़ती जाती है। पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है?
तुलसी के हृदय में किसका डर है?तुलसी के हृदय में किसका डर है ? उत्तर ⇒ तुलसी की दयनीय अवस्था में उनके सगे-संबंधियों आदि किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की। उनके हृदय में इसका संताप था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्हें संतों की शरण में जाना पड़ा और उन्हें वहाँ इसका आश्वासन भी मिला कि श्रीराम की शरण में जाने से बस संकट दूर हो जाते हैं।
तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं?तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते है ? तुलसीदास का तात्पर्य यह है कि सीता जी सशक्त ढंग से (जोर देकर) उनकी बातों को भगवान श्रीराम के समक्ष रख सकेंगी। अतः तुलसीदास माता सीता द्वारा अपनी बातें श्री राम के समक्ष रखना ही उचित समझते हैं।
तुलसी सीता से कैसे सहायता चाहते थे?Solution : तुलसी माता सीता से निवेदन करते हैं कि माता अवसर पाकर मुझे गरीब, अंगहीन, निस्तेज की करूणा कथा सुने तथा प्रभु श्री राम को मेरी दयनीय स्थिति के बारे में बताये ताकि प्रभु की कृपया दृष्टि मुझ पर हो और मैं प्रभु का गुण-गान करता हुआ तर जाऊॅं।
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