आज हम इस पोस्ट में समझेंगे कि बिजली कैसे बनती है और कोयले से बिजली कैसे बनती है और कैसे ट्रेन से कोयला लाकर कोल यार्ड से बॉयलर तक कोयला पहुंचा कर कैसे भाप बनाते हैं, और टरबाइन के द्वारा अल्टरनेटर को घुमा कर बिजली बना कर भेज देते हैं साथ ही यह भी समझेंगे कि वाटर साइकिल क्या होता है? और यह कैसे चलता है? Show
बिजली कैसे बनती है?बिजली कैसे बनती है आपको हम बता दें कि जो हमारा इलेक्ट्रिक पावर प्लांट होता है यह बहुत बड़ा एरिया में फैला हुआ होता है। इसमें कई खंड होते हैं सबसे पहले हम यह समझेंगे कि स्टीम कैसे बनता है क्योंकि हमें स्टीम हिट द्वारा ही मिल सकता है और हिट उत्पन्न करने के लिए हमें कोयले को बहुत मात्रा में जलाना पड़ता है। अगर हिट उत्पन्न नहीं हो पाती है अधिक मात्रा में तो पावर प्लांट बंद हो जाएगा और बिजली का उत्पादन भी बंद हो जाएगा। और पढ़ें: जानिए Apple iphone कंपनी का मालिक कौन है और यह किस देश की कम्पनी है कोयले की आवश्यकताबिजली कैसे बनती है जानने से पहले यह जानना चाहिए की कोयले की कितनी आवश्यकता होती है। बिजली के उत्पादन के लिए कोयले की मात्रा 1.5 मिलियन टन 40 दिन के लिए रखा जाता है क्योंकि अगर कोयला घट जाएगा तो बिजली प्लांट बंद हो जाएगा और सारे घरों में बिजली कट हो जाएगी। इस कोयले को हम कोल यार्ड में रखते हैं। और उसको कोल हैंडलिंग डिपार्टमेंट को सौंप दिया जाता है और ट्रेन आकर यहां पर कोयला डंप करके चली जाती है। और पढ़ें: Oppo कम्पनी किस देश की कंपनी है और मालिक कौन है? कोल यार्ड क्या होता हैकोल यार्ड में कोयले को लाकर ट्रेन से नीचे गिरा दिया जाता है और नीचे स्टोरेज के लिए जगह होती है और वहां पर कोयला स्टोरेज हो जाता है। कोयला को खाली करने की कई विधियां होती हैं। कोल यार्ड में जब माल गाड़ी आती है उसका डिब्बा ऊपर से खुला रहता है और उसको मशीन द्वारा पकड़कर उलट दिया जाता है और कोयला बहुत ही आसानी से स्टोरेज के लिए स्टोरेज कक्ष में चला जाता है। इस मशीन द्वारा ट्रेन के हर एक डिब्बे को इसी तरीके से खाली किया जाता है और इसमें समय भी कम लगता है और ट्रेन वहां से चली जाती है। अब ट्रेन द्वारा गिराए गए कोयले को एक मशीन द्वारा उठा लिया जाता है और इसे बेल्ट कन्वेयर पर डाल दिया जाता है जिससे कि बहुत ही आसानी से कोयले को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है। बेल्ट कन्वेयर में एक बेल्ट लगी होती है और दोनों तरफ पुली लगी रहती है और यह पुली लगातार घूमती रहती है और उसी के सहारे ऊपर से नीचे लपेटते हुए एक बेल्ट लगा होता है। और उसी बेल्ट पर इस मशीन द्वारा कोयले को रखा जाता है और उसे वहां से ले जाया जाता है। इस बेल्ट कन्वेयर द्वारा कोयले को बहुत ही दूर तक ले जाया जा सकता है जहां तक इसकी आवश्यकता हो। क्रशर मशीन क्या होता हैकोयले की कोई आकार नहीं होती है यह अनेकों आकार में होता है इसलिए इस कोयले को क्रशर मशीन में डाला जाता है। और क्रशर मशीन में कोयले को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है जिससे कि इसको पीसने में आसानी हो। और पढ़ें: जानिए ATM से पैसे निकालने का सिंपल तरीका पोलराइजर क्या होता हैपोलराइजर में कोयले को बहुत ही बारिक पीसा जाता है यह कोयला पीसने के बाद इतना बारिक हो जाता है जो हम अपने गालों पर पाउडर इस्तेमाल करते हैं उतना बारिक हो जाता है। किसी भी पावर प्लांट का 50% एरिया कोल यार्ड ही ले लेता है। पावर प्लांट का आधा भाग तो केवल कोल यार्ड हैंडलिंग डिपार्टमेंट ही लेकर चला जाता है। और पढ़ें: ISRO भारत की शान क्या है, इसरो क्या क्या करता है और ISRO KA फुल फॉर्म क्या है? बॉयलर मशीन क्या होती हैइसके बाद पिसे हुए कोयले को बॉयलर मशीन में ले जाया जाता है। आपको हम यह बता दें कि जब पिसे कोयले को बॉयलर में डाला जाता है तो कोयले का जो मोटा कण होता है वह बॉयलर की नीचे जाकर बैठ जाता है और कोयले की गंदगी नीचे चली जाती है और जो महीन कण होते हैं वह फ्लाई ऐश की तरह ऊपर उड़ कर निकल जाता है। जिसे हम धुआं कहते हैं। और इस बॉयलर में प्री हीटेड एयर भेजी जाती है जिससे की कोयले की नमी खत्म हो जाती है और कोयला अच्छे से जल जाता है। और पढ़ें: NASA क्या है? NASA का फुल फॉर्म क्या होता है जानिए और बॉयलर में पाइप के रास्ते पानी आता है। इस पानी के जरिए जो बॉटम ऐश होते हैं वह नीचे बैठ जाते हैं और जो फ्लाई ऐश होते हैं वह ऊपर उड़ जाते हैं। और ये ऊपर जाकर ऊपर ट्यूब लगा होता है उसको गर्म कर देता है।इस ट्यूब में पानी भरा होता है। जिससे भाप बनती है। ऊपर जो पानी की ट्यूब होती है वह बहुत ही ज्यादा हीट हो जाती है और बहुत ही अधिक मात्रा में स्टीम उत्पन्न हो जाती है। और जो राख नीचे जाती है उसको एक कंपन करती हुई जाली द्वारा चाल लिया जाता है और यह राख स्टोर कर ली जाती है इस फ्लाई ऐश को सीमेंट कंपनियों को दे दिया जाता है और इससे सीमेंट का उत्पादन होता है। जिसे फ्लाई ऐश सीमेंट के नाम से जाना जाता है। और जो फ्लाई ऐश ऊपर उड़ जाती है (यह फ्लाई ऐश तो राख होती है अगर हम इसको ऐसे ही हवा में छोड़ दें तो पर्यावरण को प्रदूषित करेगा और लोगो के फेंफड़ों को भी नुकसान पहुंचाएगा) इस राख को बाहर निकालने से पहले ही जहां से फ्लाई ऐश बाहर निकलती है वहां पर इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर लगा होता है और यह इलेक्ट्रो स्टैटिक प्रेसिपीटेटर नेगेटिव होता है और यह राख में जो कण होते हैं वह प्रेसिपीटेटर में ही चिपक जाते हैं और यह हवा चिमनी के द्वारा बाहर चली जाती है जो नुकसान नहीं पहुंचा पाती है। बॉयलर में जो कोयले के द्वारा जो आग जलती है उसे हम फ्लू गैसेस कहते हैं। ये फ्लू गैसेस बॉयलर में लगे ऊपर टैंक को गर्म कर देती हैं जिसमें पानी भरा हुआ होता है और यह वास्तव में टंकी नहीं होती है बल्कि इसमें पाइप लगे होते हैं जिसमें पानी भरा होता है और यह पानी सुपरहीटेड हो जाते हैं। और यह जो बॉयलर के ऊपर छोटे-छोटे पाइप लगे होते हैं यह एक दूसरे से बिल्कुल भी टच में नहीं होते हैं और इनके चारों तरफ आग जाने से यह बहुत जल्दी हिट हो जाते हैं। और यह जो पानी पाइपों में भरा होता है इसको बॉयलर से सटाकर पाइप के माध्यम से बॉयलर के ऊपर ले जाया जाता है कि यह पहले ही गर्म हो जाए। इस पानी को बॉयलर में ले जाने से पहले बॉयलर से सटाकर इसलिए ले जाया जाता है की यह अगर पहले से ही गर्म हो जाएगा तो हमें इकोनॉमिकली कुछ फायदा हो जाएगा। और भट्टी के नजदीक से जो पाइप गुजारा जाता है वहां पर इकोनोमाइजर लगा होता है और यही पानी को गर्म कर देता है इकोनोमाइजर को अलग से हिट देने की आवश्यकता नहीं होती है यह भट्टी से ही हिट ले लेता है और पानी को गर्म कर देता है। अब हमारा स्टीम तैयार है और इसको ले जाकर टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पन्न हो जाती है। Instagram account कैसे डिलीट करें जानिए सिंपल स्टेप में टरबाइन क्या होता है?टरबाइन एक प्रकार का बहुत पंखों का समूह होता है। और टरबाइन भी कई प्रकार के होते हैं।
टरबाइन पर बॉयलर से निकली हुई हाई प्रेशर भाप को जब डाला जाता है तो वह बहुत गर्म होता है और इतनी प्रेशर के साथ डाला जाता है कि यह टरबाइन को नचाने लगता है। जब हाई प्रेशर भाप टरबाइन पर डाला जाता है तो शुरुआत में जो टरबाइन का हिस्सा पड़ता है उसको हाई प्रेशर टरबाइन कहते हैं और जब यह भाप ठंडी होकर और आगे पहुंचती है तो इसे इंटरमीडिएट प्रेशर टरबाइन कहते हैं और जब यह भाप और ज्यादा ठंडी होकर आगे पहुंचती है तो इसे लो प्रेशर टरबाइन करते हैं। और यही टरबाइन पावर प्लांट का हर्ट हृदय होता है। और आपको हम याद दिला देंगे अभी तक जो हम बॉयलर में कोयला जला रहे थे भाप बना रहे थे यह इसी टरबाइन को नचाने के लिए कर रहे थे। यह टरबाइन चारों तरफ से ढकी हुई होती है। और जब इसमें हाई प्रेशर भाप प्रवेश करती है तो यह टरबाइन को बहुत ही ज्यादा तेजी से नचाती है और जब टरबाइन नाचती है तो टरबाइन से जुड़ा होता है जनरेटर चलने लगता है और बिजली उत्पन्न हो जाती है। किसी भी पावर प्लांट में मेन काम होता है टरबाइन को नचाना क्योंकि टरबाइन से ही जनरेटर का सॉफ्ट जुड़ा होता है और जब यह सॉफ्ट घूमता है बिजली उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए ले लीजिए जैसे हम लोग घर पर जनरेटर चलाकर बिजली प्राप्त कर लेते हैं तो यही प्रोसेस होता है लेकिन जो जनरेटर पावर प्लांट में होता है वह हमारे घरों इतना बड़ा होता है और इतने बड़े जनरेटर को चलाने के लिए हम कोयले का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि इतना बड़ा जनरेटर चलाने में हमें ज्यादा एनर्जी की आवश्यकता पड़ती है। और पढ़ें: WHO क्या होता है? WHO KA फुल फॉर्म क्या होता है जानिए करेंट कैसे उत्पन्न होता है?आरेक्टेड नामक एक वैज्ञानिक थे उन्होंने कहा था कि जब हाई वोल्टेज का करेंट जाता है तो या अपने चारों ओर एक मैग्नेटिक फील्ड उत्पन्न करता है तो यह आपको दूर से ही अपनी ओर खींच सकता है। तो फैराडे नामक वैज्ञानिक ने दिमाग लगाया की ससुरा जब करेंट से चुंबक उत्पन्न हो सकता है तो चुंबक से करेंट क्यों नहीं? और फैरेड ने इसी सिद्धान्त को घुमा कर उपयोग किया। तो इन्होंने क्या किया की जब तार ले जा रहे हैं तो चुंबक उत्पन्न हो रहा है तो इन्होंने एक तार को बीच में रख दिए और इसकी साइड से चुंबक ले जा रहे थे तो करेंट उत्पन्न हुआ ही नहीं। तो उन्होंने दिमाग लगाया और चारों तरफ चुंबक रख कर तार को घूमना शुरू किए तो एमिटर से इन्होंने नापा तो करेंट उत्पन्न हो गया। जब किसी तार के चारों तरफ चुंबक रखकर तार को बहुत तेजी से घुमाया जाता है तो चुमकीय बल रेखाएं काटने लगती हैं और उस तार में करेंट उत्पन्न हो जाता है। और टरबाइन के सॉफ्ट को इसी से जोड़ दिया जाता है और जब टरबाइन घूमता है तो यह तार या सॉफ्ट घूमेगा और बिजली उत्पन्न हो जायेगी। फिर वायर के जरिए हम बिजली को भेज सकते हैं। और पढ़ें: GNM FULL FORM IN HINDI, GNM KYA है जो भाप टरबाइन को नचाने के लिए भेजी जाती है उस भाप का प्रेशर टरबाइन के एक पत्ती पर 250 किलोग्राम का भार लगाती है और टरबाइन बहुत ही तेज घूमता है। टरबाइन से जुड़ा होता है अल्टरनेटर जो की जनरेटर के अंदर के भाग को कहते हैं। और ये अल्टरनेटर 3000rpm से घूमता है, जिससे की चुंबकीय फ्लक्स काटने लगते हैं और बिजली बनने लगती है। और इस उत्पन्न हुई बिजली को हाई पावर ट्रांसफॉर्मर को दिया जाता है. और पढ़ें: बिजली हमारे घरों तक कैसे पहुंचती है जानिए यह ट्रांसफार्मर ज्यादा दूर तक भेजने के लिए इसको बढ़कर 220000 वोल्ट यानी 220 kv से भी ज्यादे कर देते हैं इस ट्रांसफॉर्मर पर डिपेंड करता है कि यह कितना करता है। और यह बिजली को ट्रांसमिशन लाइन द्वारा आगे भेज दिया जाता है। और पढ़ें: पासपोर्ट कैसे बनवाए apply to verification तक जानिए स्टेप बाई स्टेप जहां पर बिजली बनती है वहां बिजली क्यों नहीं दी जाती है?जिस गांव या शहर में बिजली बनती है उस गांव या शहर में इसलिए नहीं दी जाती है क्योंकि अगर उस ट्रांसफर वालों से 220kv की बिजली किसी घर को दी जाएगी तो वह घर जल जाएगा। स्टीम (भाप) का क्या होता है?टरबाइन में जो भाप जाती है टरबाइन के नीचे एक बड़ा सा कंडेंशन ट्यूब बना दिया जाता है और उसी में जाकर यह सारी भाप एकत्रित होती रहती है। अगर इस भाप को चिमनी के जरिए हवा में उड़ा दिया जाता है तो यह खत्म हो जाएगी लेकिन पानी की बचत करने के लिए इसको ठंडा किया जाता है और फिर जब यह पानी बन जाता है तो यही सारी प्रक्रियाएं फिर से दोहराई जाती हैं। इस भाप को पानी में बदलने के लिए कूलिंग टावर का इस्तेमाल किया जाता है। कूलिंग टावर मैं नीचे से छेद होती है फ्रेश ताजी हवा जाने के लिए। इस कूलिंग टावर के 2 हिस्से होते हैं और यह जो भाप निकल कर आ रही है इसको पाइप के माध्यम से कूलिंग टावर के ऊपर वाले हिस्से में ले जाया जाता है यह भाप इतनी दूर आते-आते ठंडी हो जाती है और इस भाप को पाइप के माध्यम से नीचे को स्प्रे किया जाता है और कूलिंग टावर के नीचे से फ्रेश ताजी हवा आती रहती है और फिर यह दोनों मिलकर पानी बन जाते हैं। पानी नीचे एकत्रित हो जाता है जिसका उपयोग हम फिर से कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को हम वाटर साइकिल कहते हैं। लेकिन भाप 100% पानी नहीं बन पाती है और जो पानी नहीं बन पाती है वहीं हवा में उड़ जाती है। और पढ़ें: आधार कार्ड से पैसा निकालने का सिंपल तरीका जानिए वाटर साइकिल क्या होता हैकहीं पर भी बिजली उत्पन्न करने के लिए पावर प्लांट लगाने के लिए हमें पानी की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि कोयले को तो हम स्टोर कर सकते हैं ट्रेन से मंगा कर मगर पानी को स्टोर नहीं कर सकते इसीलिए पावर प्लांट को किसी नदी या डैम के नजदीक ही लगाया जाता है। और नदी का पानी तो उतना साफ रहता नहीं है और उसका लेबल हमेशा घटता और बढ़ता रहता है इसीलिए पावर प्लांट के यहां एक तालाब बना लिया जाता है और नदी से पानी खींच कर उस तालाब में भर लिया जाता है। नदी के पानी में तरह-तरह के मिनिरल्स रहते हैं कैल्शियम रहता है और वगैरह वगैरह रहते हैं। अगर कैल्शियम आयरन की मात्रा रहेगी तो पानी जल्दी भाप नहीं बनेगा तो हम उस पानी को डेमिनलाइजेशन करते हैं और उस पानी का डेमिनलाइज करके उसमे सिर्फ H2O छोड़ते हैं। और इस पानी को कूलिंग टावर के बेसिन में भेज दिया जाता है। कूलिंग टावर के इस बेसिन में दो प्रकार का पानी होता है एक पानी जो भाप से पानी बना है और एक जो डेमिनलाइजेशन प्लांट से गया है। और यह जो पानी कूलिंग टावर के बेसिन में एकत्रित है इस पानी को भेजना है बॉयलर तक और इस पाइप को टरबाइन के नीचे कंडेनसर से होते हुए गुजारा गया। यहां पर इंजीनियर्स ने बहुत अच्छा दिमाग लगाया कंडेंसर से तो भाप पानी बनने के लिए कूलिंग टावर में जाती है और उसका पाइप गर्म होता है और यह जो हमारा कूलिंग टावर के बेसिन से निकला हुआ पानी बॉयलर में ले जाया जा रहा है इसको टरबाइन के नीचे लगे कंडेनसर से गुजारा जाता है और यह भाप वाले पाइप के संपर्क में आने से थोड़ा गर्म हो जाता है। साथ ही साथ भाप भी यही से पानी बनाना शुरू कर देता है। और इस पानी को बॉयलर में भेज दिया जाता है। फिर यह पानी गर्म होता है फिर भाप बनती है और फिर टरबाइन में जाता है फिर उसके बाद कंडेनसर में होते हुए कूलिंग टावर में आ जाता है यही प्रोसेस चलती रहती है। अगर आप देखें तो यहां पर तीन साइकिल चल रही है।
करेंट साइकिलकरेंट साइकिल सबसे छोटा है। इसमें सबसे पहले तो बॉयलर से भाप बना और वह टरबाइन में चला गया और उसने अल्टरनेटर को नचाया फिर उसके बाद करेंट उत्पन्न हो गया। कोल साइकिलइस साइकिल में कोयला ट्रेन से कोल यार्ड में आया फिर उसके बाद क्रशर मशीन में गया फिर उसके बाद उसे पोलराइज में पिसा गया फिर उसके बाद वह बॉयलर में गया और फिर वहां पर जला। फिर जो नीचे बैठ गया उसे बॉटम ऐश और जो ऊपर चला गया उसे फ्लाई ऐश, बॉटम ऐश को सीमेंट के लिए दे दिया गया और फ्लाई ऐश को पेसिपिटेटर द्वारा छानकर रख लिया गया। ये थर्मल पॉवर प्लांट था। इसमें हमने जाना बिजली कैसे बनाई जाती है। और पढ़ें: दुबले पतले शरीर का वजन बढ़ाएं सिर्फ 7 दिन में निष्कर्षआज हमने जाना की कोयले से बिजली कैसे बनती है और बिजली बनने का क्या सिद्धांत होता है। बिजली कैसे बनती है के बारे में हमने आपको संपूर्ण प्रक्रिया को समझाया है। फिर भी अगर आपके दिमाग में किसी तरह का क्वेश्चन आया था आप अवश्य पूछे हम उसका जवाब अवश्य देंगे। अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी इनफॉर्मेटिव लगी हो तो अपने दोस्तों से साझा करें। अगर आप जानना चाहते हैं Iron Dome system kya hai और Iron Dome system in hindi और Tamir missile,spyder and Arrow missile defense और इससे भी एडवांस लेवल की और खतरनाक स्पाइडर और एरो कैटेगरी की मिसाइलें कैसे काम करते हैं। तो यहां क्लिक करें – How Iron Dome Work in hindi धन्यवाद! इसे भी पढ़ें: दुनिया की सबसे ऊंची सड़क कौन सी है? जानिए WhatsApp से पैसे कैसे कमाए 2022 आसान तरीके जानिए फ्लिपकार्ट से पैसे कैसे कमाएं जानिए Iron dome कैसे वर्क करता है यह मिसाइल अटैक से कैसे बचाता है जानिए Sony कंपनी किस देश की है और मालिक कौन है जानिए जनरेटर से बिजली कैसे बनती है?जब रोटर घूमता है तो wire coil के प्रत्येक section में इलेक्ट्रिक करंट फ्लो करता है, जो कि एक अलग electric conductor बन जाता है. इस प्रकार प्रत्येक section को एक साथ जोड़कर बड़ी मात्रा में करंट पैदा किया जाता है और फिर यह करंट बिजली के रूप में generator से power lines द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुंचती है.
चुंबक से बिजली कैसे बनाई जाती है?दोस्तों चुंबक से विधुत पैदा करने का सबसे सरल तरीका है कि दो चुम्बक के धुव्रो को एक घूमने वाले कंडक्टर के बीच मे रखें और उस कंडेक्टर को किसी भी तरीके से घूमाएंगे तो आगे लगा बल्ब जलने लग जाएगा । वैसे यह बहुत ही आम प्रयोग है और इसको कई विज्ञान के छात्र करते हैं।
टरबाइन कैसे काम करता है?टर्बाइन एक घूर्णी (rotary) इंजन है जो किसी तरल की गतिज या/तथा स्थितिज उर्जा को ग्रहण करके स्वयं घूमती है और अपने शॉफ्ट पर लगे अन्य यन्त्रों (जैसे विद्युत जनित्र) को घुमाती है। पवन चक्की (विंड मिल्) और जल चक्की (वाटर ह्वील) आदि टर्बाइन के प्रारम्भिक रूप हैं। विद्युत शक्ति के उत्पादन में टर्बाइनों का अत्यधिक महत्व है।
मोटर से बिजली कैसे बनाई जा सकती है?विद्युत मोटर (electric motor) एक विद्युतयांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है; अर्थात इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है जिससे इससे जुड़ी मशीन या यन्त्र भी घूमने लगती है। अर्थात यह विद्युत जनित्र का उल्टा काम करती है जो यांत्रिक ऊर्जा लेकर विद्युत उर्जा पैदा करता है।
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