दामोदर नदी को जैविक मरुस्थल क्यों कहते हैं - daamodar nadee ko jaivik marusthal kyon kahate hain

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UPSC Civil Service Prelims General Studies Mock Test

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Last updated on Sep 21, 2022

Uttar Pradesh Public Service Commission (UPPSC) has released the final results for the UPPSC PCS 2021 cycle. The interview was conducted between 21st July to 5th August 2022. Total 627 candidates have been selcetdThe Mains exam is scheduled to be conducted from 27th September to 1st October. The exam will be conducted in the morning shift and evening shifts. The morning shift will be held from 9:30 AM to 12:30 PM and the evening shift will be scheduled from 2:00 PM to 5:00 PM. Candidates can refer to UPPCS previous years' papers to improve their preparation for the exam.

नदीसूत्र / मंजीत ठाकुर

यह नदी कभी बंगाल का शोक कही जाती थी. अथाह जलराशि, और उससे भी अधिक रौद्र रूप. बरसात में यह नदी अपने कूल-किनारे तोड़कर बंगाल के मैदानों में फैलकर तबाही ले आती थी. जी, यह दामोदर नदी है. पर दामोदर का सौभाग्य कहिए या दुर्भाग्य, उसकी बाढ़ पर अंकुश लगाने के लिए आजादी के बाद दामोदर घाटी परियोजना (डीवीसी) शुरू हुई. बाढ़ पर तो खैर अंकुश लगा, पर असली नजर थी इसके बेसिन में मौजूद लोहे और कोयले पर. अनगिनत उद्योग लगे और आज की तारीख में दंतकथाओं में मौजूद दामोदर नदी देश की अधिक प्रदूषित नदियों की फेहरिस्त में शामिल है. 

दामोदर नदी के किनारे 10 ताप बिजलीघर हैं जो सालाना कोई 24 लाख मीट्रिक टन राख पैदा करते हैं. इन बिजलीघरों में 65.7 लाख मीट्रिक टन कोयले की सालाना खपत होती है और इससे 8,768 मेगवॉट बिजली पैदा होती है. 

दामोदर नदी को प्रदूषित करने का खेल रांची जिले के कोल बेल्ट खेलारी में शुरू होता है. फिर रामगढ़ जिले में घुसते ही पतरातू थर्मल पावर स्टेशन और सेन्ट्रल कोलफील्ड लिमिटेड की कोल वाशरी इस नदी को और भी प्रदूषित करते हैं. कोल वॉशरी से निकले मलबे की मात्रा 30 लाख टन सालाना होती है. बोकारो जिले में घुसते ही ये तीन बिजलीघर दामोदर में कोयले की राख सीधे बहा दिया करते थे.

धनबाद में इस नदी की स्थिति इतनी खराब हो गई कि उद्योग जगत के तमाम दवाबों के बावजूद पर्यावरण मंत्रालय ने धनबाद में नए उद्योगों को मंजूरी देने से मना कर दिया था.

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) की वेबसाइट में दामोदर में अपशिष्ट गिराने वाले 94 उद्योगों के नाम दर्ज हैं जिनमें अधिकतर तापबिजली घर और कोल वॉशरी ही हैं.

सन् 2004 में दामोदर बचाओ आंदोलन की शुरुआत करने वाले नेता और झारखंड सरकार में मंत्री सरयू राय का मानना है कि यह हालत तो तब है जब दामोदर के प्रदूषण स्तर में काफी सुधार हुआ है. लेकिन राज्य सरकार की एक इकाई तेनुघाट थर्मल पावर प्लांट आज भी चोरी-छुपे कोयले की राख को सीधे नदी के किनारे डाल देता है क्योंकि इसका ऐश पॉन्ड अब किसी काम का नहीं. पिछले साल दिसंबर (2017) में सीपीसीबी ने तेनुघाट संयंत्र को बंद करने का निर्देश दिया था क्योंकि यह दामोदर नदी को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा था.

फिर भी स्थिति यह हो गई है कि बोकारो के आसपास के लोग दामोदर में छठ भी नहीं मनाने जाते. दामोदर का पत्थरों से अठखेलियां करता पानी काले और गंदले सड़न भरे बहाव में तब्दील हो गया है.

हालांकि जेएसपीसीबी के सदस्य सचिव राजीव लोचन बख्शी का दावा है कि पहले के मुकाबले प्रदूषण नियंत्रण के कानूनों को काफी कड़ाई के साथ लागू करवाया जाता है और इन उत्पादक इकाइयों की सतत मॉनीटरिंग चलती रहती है. पर इसका असर नदी की सेहत पर पड़ता दिखा नहीं है.

सन् 2011 में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने दामोदर नदी की सूरतेहाल पर एक सर्वे करवाया था जिसमें ताप बिजलीघरों की वजह से इस नदी के खराब हालात का ब्योरा मौजूद है. दामोदर घाटी के बिजलीघरों से हवा में गैस के रूप में जा रही गंधक बारिश के साथ तेजाब बन जाती है और नदी में मिल जाती है. सीएसएमई की करीब दो दशक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक, इस गंधक की मात्रा करीब 65,000 टन सालाना से ज्यादा होती है.

दामोदर नदी घाटी के दायरे में आने वाले झारखण्ड के नौ जिले हैं और इसके किनारे कई शहर बसे हुए हैं. कई पर्यावरणविद तो दामोदर को जैविक रेगिस्तान और काला रेगिस्तान भी कहते हैं. कभी भारत सरकार ने बहुद्देश्यीय दामोदर परियोजना के ऐलान के साथ लोगों को विकास का सब्जबाग दिखाया था. फिलहाल स्थिति यह है कि दामोदर का पानी पीने लायक नहीं बचा है. पानी छोड़िए, यह इतना अधिक प्रदूषित है कि लोग नहाने से भी कतराते हैं. 

हजारीबाग, बोकारो एवं धनबाद जिलों में इस नदी के दोनों किनारों पर बड़े कोल वाशरी हैं, जो रोजाना हजारों घनलीटर कोयले का धोवन नदी में बहाते हैं. इन कोलवाशरियों में गिद्दी, टंडवा, स्वांग, कथारा, दुगदा, बरोरा, मुनिडीह, लोदना, जामाडोबा, पाथरडीह, सुदामडीह और चासनाला शामिल हैं. इसके साथ ही इस इलाके में कोयला पकाने वाले बड़े-बड़े कोलभट्ठी हैं जो नदी को लगातार प्रदूषित करते रहते हैं.

चंद्रपुरा ताप बिजलीघर में रोजाना 12 हजार मीट्रिक टन कोयले की खपत होती है और उससे हर रोज निकलने वाला राख दामोदर में बहाया जाता है. नतीजतन, दामोदर नदी के पानी में ठोस पदार्थों का मान औसत से काफी अधिक है.

दामोदर नदी के पानी में भारी धातु, लोहा, मैगनीज, तांबा, लेड, निकल वगैरह मौजूद हैं, पहले यहां के लोगों में मान्यता थी कि दामोदर नदी में नहाने से त्वचा रोग दूर हो जाते हैं. पर आज स्थिति यह है कि आपने हिम्मत करके दामोदर में डुबकी लगाई तो त्वचा रोग होना तय है. 

दामोदर नदी में प्रदूषण का असर यहां के लोगों की आजीविका पर भी पड़ा है. कुछ दशक पहले तक इस नदी में बहुत सारी नस्लों की मछलियां होती थीं. पर अब जहरीले पानी में मछली छोड़िए किसी भी किस्म का जलीय जीवन नामुमकिन है. दामोदर नदी के किनारे से सटे खेतों की मिट्टी जहरीली हो गई है और जानकार बताते हैं कि इस इलाके में खेतों में उपज पचास फीसदी कम हो गई है. 

दामोदर नदी के दम पर इस नदीघाटी में मौजूद ताप बिजलीघर ही नहीं, कई सारे स्टील प्लांट भी चलते हैं. कई उद्योगों के इस्तेमाल का और शहरों के पीने का पानी दामोदर से मिलता है. जब दामोदर नदी ही मर जाएगी तो क्या इसके नाम पर चलने वाले बहुद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का उद्देश्य आखिरकार सध जाएगा या फिर वह निरुद्देश्य रह जाएगा? 

सवाल दुश्वार जरूर है पर जवाब जानना भी उतना ही जरूरी है. आखिर भविष्य से जो जुड़ा है.

(मंजीत ठाकुर इंडिया टुडे में विशेष संवाददाता हैं)

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दामोदर को जैविक मरुस्थल क्यों कहते हैं?

सीएसएमई की करीब दो दशक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक, इस गंधक की मात्रा करीब 65,000 टन सालाना से ज्यादा होती है. दामोदर नदी घाटी के दायरे में आने वाले झारखण्ड के नौ जिले हैं और इसके किनारे कई शहर बसे हुए हैं. कई पर्यावरणविद तो दामोदर को जैविक रेगिस्तान और काला रेगिस्तान भी कहते हैं.

कौन सी नदी को जैविक मरुस्थल कहते हैं?

सही उत्तर दामोदर है। यह भारतीय राज्यों झारखंड और पश्चिम बंगाल में बहने वाली एक नदी है। यह छोटा नागपुर के पलामू पहाड़ियों में लगभग 609.75 मीटर की ऊंचाई पर उगती है। इसके प्रदूषकों के कारण इसे जैविक मरुस्थल के रूप में जाना जाता है।

दामोदर नदी को दुख नदी क्यों कहा जाता है?

दामोदर नदी को बंगाल का शोक कहा जाता है तथा कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता हैं। कोसी नदी अपने मार्ग परिवर्तन के कारण जानी जाती है जो बिहार में बाढ़ का प्रमुख कारण है |

दामोदर नदी का दूसरा नाम क्या है?

दामोदर नदी का दूसरा नाम बंगाल का शोक (Sorrow Of Bangal) हैं। इसे झारखंड में देवनद के नाम से भी जाना जाता हैं।