विषयसूची भूमध्य रेखा पर किसी वस्तु का भार ध्रुवों की तुलना में कम क्यों होता है?इसे सुनेंरोकेंचूंकि भूमध्यरेखा पृथ्वी के केन्द्र से धुव की अपेक्षा दूर है। अतः भूमध्यरेखा के मुकाबले धुव पर वस्तु का भार अधिक होता है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी के दैनिक घूर्णन के कारण भूमध्यरेखा पर G का मान ध्रुवों की अपेक्षा कम होने से भी भार कम होता है। किसी वस्तु का भार निर्वात में अधिकतम क्यों होता है? इसे सुनेंरोकेंनिर्वात एक ऐसी स्थिति को कहा जाता है जहां वायुमंडल की अनुपस्थिति रहता है। जिसके कारण पृथ्वी पर निर्वात होने के कारण और गुरुत्वाकर्षण रहने के वजह से किसी भी वस्तु का भार निर्वात में अधिक माना जाता है। भूमध्य रेखा की कुल लंबाई कितनी है? इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी की भूमध्य रेखा की लम्बाई लगभग ४०,०७५ कि. मी. (२४,९०१.५ मील) (शुद्ध लम्बाई ४०,०७५,०१६.६८५६ मीटर) है। पृथ्वी के घूर्णन की धुरी और सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा की कक्षा से प्राप्त सतह के बीच के संबंध स्थापित करें, तो पृथ्वी की सतह पर अक्षांश के पांच घेरे मिलते हैं। भूमध्य रेखा से ध्रुव की तरफ जाने पर जी का मान क्या होता है?इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी के केन्द्र से दूरी के अनुसार g के मान में परिवर्तन इसलिए समुद्रतल पर इसका मान अधिक तथा पहाड़ों पर कम होता है। इसी प्रकार भूमध्य रेखा पर इसका मान ध्रुवों की अपेक्षा कम होता है, क्योंकि पृथ्वी ध्रुवों पर कुछ चिपटी है जिसके कारण पृथ्वी के केंद्र से ध्रुवों की दूरी भूमध्यरेखा की अपेक्षा कम है। पृथ्वी के अंदर जाने पर किसी वस्तु के भार पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसे सुनेंरोकेंद्रव्यमान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। विषुवत रेखा पर कितने देश है? इसे सुनेंरोकेंभूमध्य रेखा प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर से होकर गुजरती है। भूमध्य रेखा 13 देशों ( इक्वाडोर, कोलंबिया, ब्राजील, साओ टोम और प्रिंसिपी, गैबॉन, कांगो गणराज्य, कांगो का लोकतांत्रिक गणराज्य, युगांडा, केन्या, सोमालिया, मालदीव, इंडोनेशिया और किरिबाती ) को छोड़कर अन्य किसी भी देश से नहीं गुजरती है । विषुवत रेखा और भूमध्य रेखा में क्या अंतर है?इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी का आकार लगभग गोल है यह साडे 23 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है पृथ्वी को दो समान भागों में बांटा गया है इसको विषुवत वृत्त जीरो डिग्री अक्षांश रेखा विभाजित करती है। इस जीरो डिग्री अक्षांश रेखा को विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा भी कहा जाता है । भूमध्य रेखा इसलिए क्योंकि यह पृथ्वी को दो बराबर भागों में बांटती है। भूमध्य रेखा कितने देशों से गुजरती है? इसे सुनेंरोकेंभूमध्य रेखा 3 महाद्वीपों द. अमेरिका, अफ्रिका, और एशिया के 13 देशों से गुजरती है। ध्रुव पर गुरुत्वाकर्षण बल अधिक क्यों होता है? भूमध्य रेखा कितने डिग्री मध्याह्न पर स्थित है?इसे सुनेंरोकेंअन्य ग्रहों की विषुवत रेखा को भी सामान रूप से परिभाषित किया गया है। इस रेखा के उत्तरी ओर २३½° में कर्क रेखा है व दक्षिणी ओर २३½° में मकर रेखा है। . विषुवतीय प्रदेश क्या है? इसे सुनेंरोकेंस्थिति एवं विस्तार- भूमध्य रेखा के उत्तर तथा दक्षिण में 5°अक्षांश से 10° अक्षांश तक विस्तृत जलवायु प्रदेश को विषुवत रेखीय भूमध्य रेखीय जलवायु प्रदेश कहते हैं। इसका विस्तार कभी कभी 15° से 20° अक्षांश तक भी पाया जाता है। वायुदाब पेटी में खिसकाव के कारण इसका प्रसार या संकुचन होता रहता है। भूमध्य रेखा कितने राज्यों से होकर गुजरती है? इसे सुनेंरोकेंकिसी भी राज्य से नही गुजरती है। भूमध्य रेखा भारत में कहाँ से गुजरती है?इसे सुनेंरोकें८२.५॰ पूर्वी देशांतर रेखा जो नैनी प्रयागराज से होकर गुजरती है। नासा (NASA) के ग्रेस (GRACE) मिशन द्वारा मापा गया धरती का गुरुत्व पृथ्वी के सतह के निकट किसी पिण्ड के इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का गुरुत्व कहलाता है। इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। इसका मान लगभग 9.81 m/s2होता है। (ध्यान रहे कि G एक अलग है; यह गुरूत्वीय नियतांक है।) g का मान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। g को त्वरण की भातिं भी समझा जा सकता है। यदि कोई पिंड पृथ्वी से ऊपर ले जाकर छोड़ा जाय और उस पर किसी प्रकार का अन्य बल कार्य न करे तो वह सीधा पृथ्वी की ओर गिरता है और उसका वेग एक नियत क्रम से बढ़ता जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण किसी पिंड में उत्पन्न होने वाली वेगवृद्धि या त्वरण को गुरूत्वजनित त्वरण कहते हैं। इसे अंग्रेजी अक्षर g द्वारा व्यक्त किया जाता है। ऊपर कहा जा चुका है कि इसे किसी स्थान पर गुरूत्व की तीव्रता भी कहते हैं। पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के अनुसार g के मान में परिवर्तन[संपादित करें]गुरूत्वजनित त्वरण अर्थात g का मान पृथ्वी के केंद्र से दूरी के अनुसार घटता बढ़ता है, अर्थात इस दूरी के बढ़ने पर यह घटता है और दूरी घटने पर बढ़ता है। इसलिए समुद्रतल पर इसका मान अधिक तथा पहाड़ों पर कम होता है। इसी प्रकार भूमध्य रेखा पर इसका मान ध्रुवों की अपेक्षा कम होता है, क्योंकि पृथ्वी ध्रुवों पर कुछ चिपटी है जिसके कारण पृथ्वी के केंद्र से ध्रुवों की दूरी भूमध्यरेखा की अपेक्षा कम है। समुद्रतल पर g0 का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है: g0 = 978.049 (1 + 0.0052884 Sin2 f - 0.0000059 Sin22f) सें.मी. प्रति सें. प्रति सें.; जहाँ f उस स्थान का अक्षांश (latitude) है। यदि कोई स्थान समुद्रतल से h ऊँचाई पर हो तो वहां g का मान अर्थात g h. निकटतम मान तक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है: gh = (g0 - .0003086 h) cm. sec. sec.सामान्यतया पृथ्वीतल पर g का मान अक्षांशों के अनुसार ९७८ और ९८३.२ सेंमी./से. से. अथवा ३२.०९ और ३२.२६ फुट/से. से. के बीच मे रहता है। ये मान समुद्रतलों पर होते हैं। g का मात्रक सेमी/सेकण्ड2 होता हैं |पृथ्वी तल से ऊंचाई पर जाने पर g का मान घटता है विश्व के विभिन्न शहरों में गुरुत्व जनित त्वरण का मान[संपादित करें]
g का मान ज्ञात करने की विधियाँ[संपादित करें]g का मान ज्ञात करने की विधियों को दो कोटियों में विभक्त कर सकते हैं: (अ) प्रत्यक्ष विधि और (ब) दोलक विधि। प्रत्यक्ष विधि[संपादित करें]इस विधि में किसी पिंड को निश्चित ऊँचाई से गिराया जाता है और समान अवधि में उसके द्वारा पार की हुई दूरियाँ नाप ली जाती हैं। इससे g के मान की गणना की जाती है। इस विधि का प्रयोग ऐटवुड की मशीन (Atwood’s Machine) में किया जाता है। इसमें दो संहतियाँ m1 और m2 जिनमें परस्पर अत्यंत सूक्ष्म अंतर होता है, एक तागे द्वारा जुड़ी होती हैं जो एक घिरनी (Pulley) पर से होकर गुजरती है। यदि m2 अपेक्षाकृत भारी हो तो यह नीचे उतरने लगेगी और m1 ऊपर चढने लगेगी। यदि s दूरी पर कर चुकने पर उसका वेग v हो जाए और त्वरण f हो तो न्यूटन के गतिनियम के अनुसार v^2 = 2 f s त्वरण f का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है: f = m1 + m2 g r^2 / (I + (m1 + m2) r^2) यहाँ I केंद्र के चारो ओर घिरनी का अवस्थितत्व घूर्ण है तथा r घिरनी का अर्धव्यास है। अत: इस विधि में घिरनी के घर्षण तथा वायु के प्रतिरोध इत्यादि का कोई विचार नहीं किया जाता, इसलिये इसके द्वारा प्राप्त g के मान में पर्याप्त त्रुटि रहती है। इन कारणों से इस विधि का अनुसरण सामान्यत: नहीं किया जाता है। लोलक की विधि (Method of Pendulums)[संपादित करें]इस विधि में एक लोलक को उसकी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन कराकर आवर्तकाल T ज्ञात किया जाता है। यदि निलंबन बिंदु (point of suspension) से लेकर लोलक के गुरुत्वकेंद्र तक की दूरी ल (I) हो और यह मान लिया जाय कि लोलक का संपूर्ण भार उसके गुरूत्वकेंद्र पर ही संघनित हो तो दोलनकाल (आवर्तकाल) T और गुरूत्व की त्व्रीाता g पर परस्पर निम्नलिखित सूत्र द्वारा संबंधित होते हैं: T = 2 p ÖI/g या, g = 4p 2 I/T2 इस विधि में यह ध्यान रखा जाता है कि लोलक का दोलन विस्तार या आयाम (amplitude) ४० से अधिक न हो, अन्यथा सूत्र में निम्नलिखित संशोधन करना पड़ेगा : T = 2 (1+ 1/4 Sin2 q/2 + 9/64 Sin4 q/2 + ¼) Ö1 / g यहाँ q आयाम हैं। g का अधिक सटीक मान ज्ञात करने के लिये एक दृढ़ पिंड को लोलक के रूप में लिया जाता है जो क्षैतिज़ क्षुरधार (knife edge) पर दोलन करता है। यदि गुरुत्वकेंद्र से क्षुरधार की दूरी I हो और k उसके गुरुत्वकेंद्र से होकर जानेवाली तथा क्षुरधार के समांतर अक्ष के चारों ओर विघूर्णन त्रिज्या (radius of gyration) हो तो सूत्र g = 4 p 2 (k^2 + I^2) / IT^2 द्वारा g का मान अधिक ठीक ठीक ज्ञात किया जा सकता है। ऐसे लोलक को यौगिक लोलक (compound pendulum) कहा जाता है। यदि यौगिक लोलक में I के भिन्न-भिन्न मानों के लिए आवर्तकाल T के पाठ लिए जायँ तथा I और T के बीच एक लेखाचित्र प्राप्त किया जाय तो लोलक के सिरे से नापने पर लंबाई का मान ज्यों ज्यों बढ़ता है, दोलनकाल घटता जाता है, किंतु न्यूनतम मान न तक पहुँचने के उपरांत पुन: बढ़ने लगता है (देखें चित्र ५)। लोलक के मध्यबिंदु के निकट पहँुचने पर दोलनकाल बड़ी द्रुत गति से अनंत मान की ओर अग्रसर होता है। केटर (Capt. Henry Kater, सन् १८१८) ने g का अधिक सटीक मान ज्ञात करने के लिये ऐसा लोलक लिया जो छड़ के रूप में था और जिसके मध्यबिंदु के दोनों ओर एक क्षुरधार था। दोनों क्षुरधारों से लटकाए जाने पर लालक का आवर्तकाल एक ही आता था। इसी छड़ में असमान संहतिवाले दो धातुखंड भी लगे थे। एक की संहति दूसरे से काफी अधिक थी। भारी संहति को समंजित करके दोनों क्षुरधारों पर लोलक के आवर्तकाल लगभग समान किए जा सकते थे और हलकी संहति को समंजित करके दोनों आवर्तकालों के बीच के अंतर को और भी कम किया जा सकता था। यदि T1और T2 क्रमश: दोनों क्षुरधारों से दोलन कराने पर आवर्तकाल हों और I1 तथा I2 उन क्षुरधारों की छड़ के गुरुत्वकेंद्र से दूरियाँ हों तो बेसेल (Bessel) के अनुसार 4 p 2/g = T12+T22/I1+I2 + T12-T22/I1-I2 इसमें I1 + I2 को ठीक ठीक नापा जा सकता है और अंतिम पद अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण त्याज्य है। अत: यह सूत्र g का ठीक ठीक मान दे सकता है। प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए : (१) आयाम या दोलनविस्तार कम हो, (२) वायु के प्रतिरोध तथा वायु के घर्षण से लोलक की गति को यथासंभव कम से कम प्रभावित रखने की चेष्टा करनी चाहिए, (३) लोलक का आलंब (support) ऐसा चुनना चाहिए कि वह लोलक के भार के कारण लचक न जाए तथा (४) प्रयोग की अवधि भर कमरे का ताप अधिक न बदले, अन्यथा लोलक के प्रसार के कारण लंबाई I में अंतर आ जायगा। धरती के गुरुत्व की अन्य आकाशीय पिण्डों के गुरुत्व से तुलना[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
ध्रुवों पर किसी वस्तु का भार भूमध्य रेखा से अधिक होता है क्यों?विषुवत रेखा की तुलना में ध्रुवों पर वस्तु का भार अधिक इसलिये होता हैं क्योंकि पृथ्वी द्वारा किसी वस्तु को अपनी ओर खींचे जाने वाले गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ऐसा होता है। विषुवत रेखा पर पृथ्वी का आकर्षण बल ध्रुवों की अपेक्षा अधिक होता है, इस कारण विषुवत रेखा की तुलना में वस्तु का भार ध्रुवों पर अधिक होता है।
ध्रुव पर किसी पिंड का भर भूमध्य रेखा पर भर से अधिक क्यों होता है?उष्ण कटिबंध की अपेक्षा विषुवत् वृत्त पर कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। सामान्यतः एक ही अक्षांश पर स्थित महाद्वीपीय भाग पर अधिक और महासागरीय भाग में अपेक्षतया कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। शीत ऋतु में मध्य एवं उच्च अक्षांशों पर ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा कम मात्रा में विकिरण प्राप्त होता है।
जब हम ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर बढ़ते हैं तो समानांतर की लंबाई बढ़ जाती है क्यों?यदि पृथ्वी बिल्कुल गोल होती तो 1° अक्षांश (याम्योत्तर का 1° चाप) एक स्थिरांक होता, अर्थात् पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर इसका मान 111 किलोमीटर होता। यह लंबाई विषुवत वृत्त पर सभी देशांतर रेखाओं के एक डिग्री के लगभग समान है। लेकिन विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर अक्षांशों की लंबाई में कुछ परिवर्तन आता है।
भूमध्य रेखा से ध्रुव की तरफ जाने पर जी का मान क्या होता है?Solution : ध्रुवों पर पृथ्वी की त्रिज्या भूमध्य रेखा से कम होती है इसलिए जैसे ही हम भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हैं, g का मान बढ़ता है। जब हम भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक जाते हैं, तब घूर्णन का प्रभाव कम हो जाता है और ध्रुव पर शून्य हो जाता है, इसलिए g का मान बढ़ जाता है।
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