उदास तुम कविता के कवि कौन है? - udaas tum kavita ke kavi kaun hai?

उदास तुम

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!

ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में, सूने खंडहर के आस-पास

मदभरी चाँदनी जगती हो!

मुँह पर ढक लेती हो आँचल,

ज्यों डूब रहे रवि पर बादल।

या दिन भर उड़ कर थकी किरन,

सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन;

दो भूले-भटके सांध्य विहग

पुतली में कर लेते निवास।

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!

खारे आँसू से धुले गाल,

रूखे हल्के अधखुले बाल,

बालों में अजब सुनहरापन,

झरती ज्यों रेशम की किरने संझा की बदरी से छन-छन,

मिसरी के होंठों पर सूखी,

किन अरमानों की विकल प्यास!

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!

भँवरों की पाँते उतर-उतर

कानों में झुक कर गुन-गुन कर,

हैं पूछ रही क्या बात सखी?

उन्मन पलकों की कोरों में क्यों दबी-ढुकी बरसात सखी?

चंपई वक्ष को छू कर क्यों

उड़ जाती केसर की उसाँस!

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास!

स्रोत :

  • पुस्तक : दूसरा सप्तक (पृष्ठ 168)
  • संपादक : अज्ञेय
  • रचनाकार : धर्मवीर भारती
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
  • संस्करण : 2012

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उदास तुम कविता के कवि कौन?

स्रोत : पुस्तक : दूसरा सप्तक (पृष्ठ 168) संपादक : अज्ञेय रचनाकार : धर्मवीर भारती

उदास तुम किसकी रचना है?

उदास तुम / धर्मवीर भारती

उदास तुम कविता में कौन सी भावना प्रमुख है?

घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये 'आनंदघन' नाम स भी प्रसिद्ध हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं.

उदास तुम कविता में कवि ने बालों का वर्णन कैसे किया?

उत्तरः- कवि ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहता बल्कि 'गरजने' के लिए कहा है; क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। 'गरजना' विद्रोह का प्रतीक है। कवि बादलों से पौरुष दिखाने की कामना करता है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।