Show अष्टम भाव में गुरू का प्रभाव कुंडली का अष्टम भाव से व्याधि, आयु, मृत्यु के कारण समुद्र यात्रा इन सब बातों की जानकारी महें प्राप्त होती है। अष्टम भाव में गुरू स्थित होने से जातक दिर्घायु, सुखी होता है। अष्टम भाव को गुप्त वस्तुओं के बारे में जानने का होता है। गुरू के प्रभाव से जातक के भी गुप्त विद्याओ को जानने की व सीखने की संभावना होती है। अष्टम भाव
मृत्यु व मृत्यु किस कारण होगी यह जानने की व सीखने की संभावना होती है। अष्टम भाव मृत्यु व मृत्यु किस कारण होगी यह जानने का होता है। अष्टम भाव से आयु के बारे में भी जाना जाता है। अष्टम भाव में गुरू स्थित होने से जातक की आयु लंबी होती है। गुरू के प्रभाव से जातक दीर्घआयु का होता है। जातक की मृत्यु के बारे में अष्टम भाव से जाना जाता है। अष्टम भाव में गुरू स्थित होने से जातक की मृत्यु अच्छी हालत में ही है। ऐसे जातक की मृत्यु किसी तीर्थस्थान में होने की संभावना होती है। गुरू, शुभ ग्रह होने से व देवगुरू
होने से जातक की मृत्यु शांत अवस्था में होती है। अष्टम भाव के गुरू के प्रभाव से जातक में अच्छे व शुभ कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। अष्टम भाव में गुरू शुभ प्रभाव में हेने से जातक को बीमा कंपनियों में काम करने से लाभ होने की एवं किसी मृत शक्ति की वसीयत द्वारा धन लाभ होने की संभावना होती है। अष्टम भाव समुद्र यात्राओं का भी होता है। पुराने समय में लंबी यात्राये वाहन सुविध न होने से समुद्र द्वारा होती थी। इस कारण अष्टम भाव का संबंध समुद्री यात्राओं से जोडा गया है। इसलिये अष्टम भाव के गुरू धर्म का
कारक ग्रह कारक ग्रह होने से जातक द्वारा धर्मिक या लंबी तीर्थयात्राएँ करने की संभावना होती है। अष्टम भाव में गुरू स्थित होने से ऐसा जातक निरोग होता है। (उसे कोई रोग नहीं होते) तथा वह पंडित एवं वेदशास्त्रों को जानने वाला होता है। अष्टम भाव में गुरू अशुभ प्रभाव में होने से जातक को असपलता व अष्टम भाव संबंधी अशुभ फल प्राप्त होते हैं। अष्टम भाव सप्तम पत्नी भाव से द्वितीय होने से जातक को विवाह के बाद धन मिलने की संभावना होती है। पंचम दृष्टि नवम दृष्टि अष्टम भाव में गुरू का मित्रराशि में प्रभाव अष्टम भाव में गुरू का शत्रुराशि में प्रभाव अष्टम भाव में गुरू का स्वराशि, उच्च राशि व नीच राशि में प्रभाव अष्टम भाव में गुरू स्वराशि धनु मीन में स्थित होने से जातक की आयु दीर्घायु होती है। जातक को वसीयत से धन प्राप्त होने की संभावना होती है। अष्टम भाव में गुरू अपनी उच्च राशि कर्क में स्थित होने से जातक की आयु दीर्घायु होती है। जातक को वसीयत से धन प्राप्त होने की संभावना होती है। अष्टम भाव में गुरू अपनी उच्च राशि कर्क में स्थित होने से जातक को कोई रोग नहीं होता वह वेदशास्त्र को जानने वाला होता है। वह दीर्घायु होता है। अष्टम भाव में गुरू अपनी नीच राशि मकर में स्थित होने से जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होने की संभावना होती है। जातक अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पाता। उसके प्रसिद्ध के मार्ग में रूकावटे उत्पन्न होती है। जातक को गुप्तरोग होने की संभावना होती है। अष्टम (मारक भाव)- इस भाव के गुरु के अशुभ फल ही अधिक प्राप्त होते हैं। ऐसा जातक आयु के मामले में ही भाग्यशाली होता है अन्यथा अन्य क्षेत्र में तो उसे अशुभ फल ही प्रापत होते हैं। वह यह सोचने लगता है कि ऐसी आयु भी किस काम की कि जीवन में इतने कष्ट हैं। इस गुरु के प्रभाव से जातक को गुप्त व गुदा रोग होते हैं। गुप्त रोग का कारण दुष्कर्म में ज्यादा संलग्न रहना होता है। शारीरिक सम्बन्ध बनाने से पहले यह नहीं सोचता कि वह किससे सम्बन्ध बना रहा है। जातक गुप्त कर्म की ओर अधिक आकर्षित होता है। उसके साथी भी ऐसे ही होते हैं। यहाँ पर मैंने गुरु के योग में शोध किया है कि जातक गुप्त कार्य अवश्य करता है परन्तु गुरु पर अन्य दृष्टि अथवा युति करने वाले ग्रह के आधार पर भी फल मिलते हैं जैसे यदि गुरु पर किसी पापी ग्रह का प्रभाव है तो जातक चोरी, डकैती अथवा अन्य चोरी-छुपे करने वाले कार्य करता है और यदि गुरु पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव हो अथवा गुरु की अन्य किसी राशि में कोई शुभ ग्रह बैइा हो तो जातक गुप्त विद्या की ओरह अग्रसर होता है। तंत्र सिद्धि जैसे कार्य करता है तथा सफल भी होता है। यहाँ मैंने यह अवश्य देखा है कि भले ही गुप्त रोग न हों लेकिन गुदा रोग अवश्य होते हैं। अब आप उसका कारण तंत्र सिद्धि की मेहनत, बैठक अथवा कब्ज कह लें अथवा कोई और बात। यहाँ का गुरु संतान पक्ष की ओर से भी चिन्तित करता है। ऐसे जातक के मित्र ही उसका धन उड़ाते हैं तथा अन्त में उसे धोखा भी देते हैं। गुरु के शुभ योग में जातक कुलदीपक होता है परन्तु अशुभ प्रभाव में कुलनाशक होता है। ऐसा जातक ज्योतिष में भी बहुत विश्वास करता है। इस भाव में गुरु अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) में हो तो जातक को वसीयत के माध्यम से बहुत सम्पत्ति मिलती है। यहाँ पर मैंने अपने अनुभव में मिथुन, तुला व धनु राशि वालों को भी वसीयत प्रप्त होते देखा है जिसमें मिथुन व धनु राशि वाले गुरु के लोगों को विधवा की वसीयत प्रापत होती है। इस भाव में गुरु यदि वृश्चिक अथवा कुंभ राशि में हो तो जातक अधिक कष्ट उठाता है जिसमें व्यापार में हानि होने पर वह पुनः पैतृक सम्पत्ति से व्यवसाय जमाता है लेकिन असफल होता है। इस प्रकार धीरे-धीरे व कंगाली की ओर अग्रसर होता है। इस भाव के गुरु के किसी भी राशि में होने से जातक का अन्तिम समय बहुत ही खराब निकलता है। उसकी मृत्यु भी कष्टकारक होती है। Click here to read in english You might also like
अष्टम भाव में गुरु क्या फल देता है?अष्टम भाव में गुरू स्थित होने से जातक की मृत्यु अच्छी हालत में ही है। ऐसे जातक की मृत्यु किसी तीर्थस्थान में होने की संभावना होती है। गुरू, शुभ ग्रह होने से व देवगुरू होने से जातक की मृत्यु शांत अवस्था में होती है। अष्टम भाव के गुरू के प्रभाव से जातक में अच्छे व शुभ कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
आठवें घर में दे गुरु क्या परिणाम?गुरु फल विचार
आठवें भाव में बृहस्पति की स्थिति आपको दीर्घायु प्रदान कर आपको चिरंजीवी बनाता है। आपकी शारीरिक संरचना कुछ इस प्रकार होती है कि लोग बरवश आपकी ओर आकृष्ट हो जाते हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि आप अपने पिता के घर में बहुत दिनो तक नहीं रहेंगे।
कुंडली में अष्टम भाव का स्वामी कौन होता है?बृहस्पति यहां पंचम और अष्टम भाव का स्वामी है. पंचम भाव में बृहस्पति के होने से रावण किसी पूर्व जन्म के कारण पैदा होता है. जबकि कुंडली के अष्टम भाव में गुरु की उपस्थिति इंसान को गुप्त विद्याओं का मालिक बनाती है. कुंडली के इसी भाव में सूर्य और गुरु के साथ शुक्र भी है.
अष्टम भाव में राहु का क्या फल होता है?अष्टम भाव में राहु का होना जातक की मानसिक अवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे जातक देखने में तो स्वस्थ लगते हैं, लेकिन कई बार उन्हें कुछ गुप्त रोग या फिर पेट के रोग घेरे रहते हैं। कई बार परिवार के लोग भी इनकी उपेक्षा कर देते हैं। ऐसे जातकों अक्सर किसी के मर जाने के बाद उत्तराधिकार में धन प्राप्त होता है।
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