Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 12 राम का राज्याभिषेकThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 12 राम का राज्याभिषेक are prepared by our highly skilled subject experts. Show
Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 12 Question Answers Summary राम का राज्याभिषेकBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 12 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. विभीषण की क्या इच्छा थी? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. राम के राज्याभिषेक का वर्णन कीजिए। Bal Ram Katha Class 6 Chapter 12 Summary लंका विजय के बाद विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन लंका में आराम करें। इससे उन्हें राम का सान्निध्य भी मिल जाएगा और रीति-नीति सीखने का मौका भी। वनवास के अब चौदह वर्ष पूरे हो गए थे। उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। वे तत्काल अयोध्या लौट जाना चाहते थे। उन्होंने कहा भरत मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। अगर जाने में देर हो गई तो वे प्राण त्याग देंगे। वे प्रतिज्ञा से बँधे हैं। अब विभीषण ने प्रस्ताव किया कि वे राज्याभिषेक में शामिल होना चाहते हैं। राम ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। राम ने सुग्रीव को भी आमंत्रित किया। विभीषण का पुष्पक विमान उन्हें ले जाने को तैयार था। विमान लंका से अयोध्या नगरी की ओर चला। राम-सीता को मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थान बताते जा रहे थे। सीता के आग्रह पर विमान किष्किधा में उतरा, सुग्रीव की रानियों तारा और रूपा को लाने के लिए। उसके आगे ऋष्यमूक पर्वत पड़ा। इस पर्वत पर पर्णकुटी अब भी बनी हुई थी। जहाँ वे रहते थे। आगे गंगा-यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज के आश्रम पर विमान उतरा। सबने रात वहीं बिताई। यहीं से राम ने अपने जाने की सूचना देने के लिए हनुमान को अयोध्या भेजा। वे हनुमान द्वारा अयोध्या का समाचार जानना चाहते थे। उनका सोचना था कि यदि उनके अयोध्या लौटने पर भरत को प्रसन्नता नहीं होगी तो वे अयोध्या नहीं जाएँगे। यदि भरत मेरे अयोध्या जाने से खुश होंगे तभी मैं अयोध्या जाऊँगा। हनुमान वायु-वेग से उड़ चले। हनुमान से राम के आगमन की सूचना पाकर भरत की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। वे यह शुभ समाचार देने के लिए बार-बार उनका धन्यवाद दे रहे थे। हनुमान उनसे विदा लेकर आश्रम में राम के पास लौट आए। अगली सुबह विमान प्रयाग से शृंगवेरपुर होते हुए सरयू नदी के ऊपर पहुँच गया। उधर अयोध्या में राम के आगमन में पूरी तैयारियाँ होने लगीं। शत्रुघ्न राज्याभिषेक की व्यवस्था में जुट गए। महल से तीनों रानियाँ नंदीग्राम के लिए चल पड़ीं। राम का नंदीग्राम में भव्य स्वागत हुआ। राम ने विमान से उतरकर भरत को गले लगाया और माताओं को प्रणाम किया। भरत ने राम की खड़ाऊँ लाकर अपने हाथों से उन्हें पहनाईं। राम-लक्ष्मण ने नंदीग्राम में तपस्वी बाना उतार दिया। दोनों को राजसी वस्त्र पहनाए गए। जन-समूह उनकी जयजयकार करते हुए अयोध्या की ओर चल दिया। पुष्पक विमान कुबेर का था जिसे रावण ने उनसे बलात् छीन लिया था। अब उस विमान को कुबेर के पास भेज दिया गया। अयोध्या में सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण था। सजी-धजी अयोध्या नगरी राम दर्शन के लिए बेचैन थी। माताएँ एवं मुनिगण खुश थे। पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी। अगले दिन मुनि वशिष्ट ने राम का राजतिलक किया। राम-सीता सोने के सिंहासन पर बैठे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठे। माताओं ने आरती उतारी। शुभ-गीत गाए गए। सीता ने अपने गले का हार उतारकर हनुमान को उपहार में दिया। कुछ दिनों बाद विभीषण लंका लौट गए। सुग्रीव किष्किंधा चले गए। ऋषि-मुनि अपने-अपने आश्रम लौट गए। हनुमान राम के दरबार में ही रह गए। राम ने लंबे समय तक अयोध्या पर शासन किया। राम न्यायप्रिय थे। उनका राज्य रामराज्य था। शब्दार्थ: पृष्ठ
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84 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 11 लंका विजयThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 11 लंका विजय are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 11 Question Answers Summary लंका विजयBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 11 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न
8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. हनुमान ने सीता को कैसे विश्वास दिलाया कि वह राम का सेवक है? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन करें। Bal Ram Katha Class 6 Chapter 11 Summary सुग्रीव ने युद्ध की तैयारियाँ तुरंत आरंभ करने का निर्देश दिया। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना पर विचार-विमर्श किया। योग्यता और उपयोगिता के आधार पर भूमिकाएँ निश्चित कर दी गईं। समुद्र को पार करने के तरीके पर भी विचार हुआ। लंका कूच करने की तैयारियाँ रातभर चलती रहीं। सेना किष्किंधा से दहाड़ती, किलकारियाँ भरती रवाना हुई। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया। युद्ध के नियम और अपनी रक्षा के तरीके भी बताए गए। सुग्रीव के सेनापति नल सेना का नेतृत्व कर रहे थे। जामवंत और हनुमान सबसे पीछे थे। दिन रात चलकर सेना ने महेंद्र पर्वत पर अपना डेरा डाला। उधर लंका में खलबली मची हुई थी। समुद्र निकट ही था। पर्वत पर सेना का ध्वज लहरा रहे थे। उधर राक्षसों को यह डर सता रहा था कि जिसका दूत लंका में आग लगा सकता है वह स्वयं कितना शक्तिशाली होगा लेकिन रावण इससे अनभिज्ञ था। विभीषण सेना की हताशा से परिचित हो गए थे। वे रावण को वस्तु स्थिति बताने के लिए गए। उन्होंने सीता को लौटा देने की सलाह दिया। विभीषण की बात अनसुनी कर दी। उन्हें अपने कक्ष से निकाल दिया। फिर भी विभीषण रावण को समझाने लगे। रावण क्रुद्ध हो उठा बोला निकल जाओ, तुम मेरे भाई नहीं, शत्रु के शुभचिंतक हो। विभीषण उसी रात अपने चार सहायकों के साथ लंका से निकल गए। दोनों के रास्ते अलग हो गए। विभीषण उसी रात राम के पास जाना चाहते थे। विभीषण को देखकर वानर चिल्लाकर सबको सावधान कर रहे थे। वानर उन्हें सुग्रीव के सामने लाए। विभीषण बोले “मैं लंका के राजा रावण का छोटा भाई हूँ। मैं राम की शरण में आया हूँ, मुझे उनके पास पहुँचा दें।” सुग्रीव राम के पास गए। उनकी बात सुनकर राम ने कहा-“हमें विभीषण को स्वीकार करना चाहिए। विभीषण को आदर सहित अंदर लाइए।” जल्दी ही विभीषण राम के विश्वासपात्र बन गए। विभीषण ने उन्हें रावण की शक्ति से परिचित कराया। राम ने विभीषण को आश्वस्त करते हुए कहा-“विभीषण तुम चिंता मत करो। राक्षस मारे जाएंगे। लंका की गद्दी तुम्हारी होगी।” विभीषण ने लंका की बहुत-सी जानकारी राम को दी। रावण और उसके योद्धाओं की शक्ति के बारे में बताया। अब समस्या थी कि समुद्र को पार कैसे किया जाए। राम ने समुद्र से विनती की कि समुद्र रास्ते दे दे। वह नहीं माना। राम को क्रोध आ गया। राम का क्रोध देखते हुए समुद्र ने राम को सलाह दी कि आपकी सेना में नल पुल बना सकता है। अगले दिन नल ने समुद्र पर पुल बनाने का काम प्रारंभ कर दिया। पाँच दिन में पुल तैयार हो गया। पुल बनने की बात सुनकर रावण क्रोध से चीख उठा। राम की सेना समुद्र पार गई थी। अब दोनों सेनाएँ समुद्र के एक ओर थीं। राम अपनी सेना को चार भागों में बाँट रखा था। राम ने स्वयं पर्वत पर चढ़कर लंका का निरीक्षण किया। राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि सूर्योदय होते ही लंका को घेर लिया जाए। वानर सेना जय-जयकार करती चल पड़ी। इसी बीच राम ने अंगद को अपना दूत बनाकर लंका भेजा। राम ने कहा कि सुलह का अंतिम प्रयास कर लो ताकि रावण सीता लौटा दे और युद्ध टल जाए। रावण उनका संदेश सुनकर क्रोधित हो उठा। अंगद ने सारी स्थिति से राम को परिचित करा दिया। अब युद्ध छिड़ गया। भयानक युद्ध हुआ। शाम होते समय मेघनाद ने रावण सेना को पीछे हटते देखा। मेघनाद की नज़र राम-लक्ष्मण पर थी। वह मायावी राक्षस था। उसके बाण राम-लक्ष्मण को लग गए। दोनों मूच्छित होकर गिर पड़े। मेघनाद दोनों भाइयों को मृत समझकर रावण को सूचना देने के लिए राजमहल की ओर दौड़ा। इधर सभी वानर राम-लक्ष्मण के पास एकत्र हो गए। विभीषण ने दोनों का उपचार किया। उनकी मूर्छा टूटी तो सभी वानर युद्ध के लिए तैयार हो गए और वानरों में खुशी की लहर दौड़ गई। अगले दिन फिर युद्ध की शुरुआत हुई। रावण की सेना के महाबली एक-एक करके मारे जाने लगे। युद्ध में धूम्राक्ष, वज्रद्रष्ट, अकंपन, प्रहस्त मारे गए। रावण को सारी सूचनाएँ मिल रही थीं। अब उसने स्वयं युद्ध का. नेतृत्व संभाला। पहली मुठभेड़ में वह लक्ष्मण पर भारी पड़ा, परंतु राम के बाणों ने उसका मुकुट ज़मीन पर गिरा दिया। रावण लज्जित हो गया। उसने अपने भाई कुंभकर्ण को जगाया जो छह महीना सोता और छह महीना जागता था। कुंभकर्ण ने अंगद और हनुमान को घायल कर दिया। फिर राम-लक्ष्मण ने यह देखकर बाणों की वर्षा करके उसे मार दिया। रावण निराश हो गया। कुंभकर्ण के मरने से लंका अनाथ हो गई। मेघनाद ने रावण को सहारा दिया। मेघनाद ने रावण से कहा आप मुझे आज्ञा दें मैं दोनों भाइयों को मारकर आपके चरणों में ला दूंगा। मेघनाद और लक्ष्मण में भीषण युद्ध हुआ। अचानक लक्ष्मण का एक बाण उसे लगा। मेघनाद घायल होकर महल की ओर भागा। लक्ष्मण उसका पीछा करना चाहते थे पर महल की संरचना उन्हें पता नहीं थी। तभी विभीषण ने लक्ष्मण को महल का गुप्त मार्ग बताया। मेघनाद महल में मारा गया। अब रावण विलाप करने लगा। वह मूच्छित हो गया। लक्ष्मण की वानर सेना भी महल में प्रवेश कर गई थी। वानरों ने लंका को तहस-नहस कर दिया। लक्ष्मण ने अतिकाय का सिर काट डाला। वानरों ने लंका में आग लगा दी। चारों ओर मारकाट मच गई। अकंपन, प्रजंध, युपाक्ष, कुंभ मारे गए। राक्षस सेना भाग खड़ी हुई। अब रावण अकेला बच गया था। विभीषण को राम की सेना में देखकर रावण उबल पड़ा। पहले उसने अपने छोटे भाई को शत्रु मानकर बाण चलाया पर लक्ष्मण ने उस बाण को बीच में ही काट दिया। दूसरी बार बाण लक्ष्मण को लगा। लक्ष्मण अचेत होकर धरती पर गिर पड़े। राम ने रावण को चुनौती देते हुए कहा-तेरा अंत निश्चित है। हनुमान लक्ष्मण को रक्षाक्षेत्र से दूर ले गए। वैद्य सुषेण को बुलाया गया। हनुमान संजीवनी बूटी लाए। धीरे-धीरे रक्त रिसाव बंद हो गया। लक्ष्मण स्वस्थ हो गए। अब राम-रावण का युद्ध भयानक हो गया। रावण का एक बाण राम को लगा। उनके रथ की ध्वजा कटकर गिर पड़ी। राम ने प्रहार किया। बाण रावण के मस्तक पर लगा। रक्त की धारा बह निकली। वह अपने महल में चला गया। युद्ध फिर शुरू हुआ। राम के बाणों ने रावण के रथ का मुँह तोड़ दिया। यह पराजय का संकेत था। रावण हिम्मत हारने लगा। राम का एक बाण रावण के पार निकल गया। रावण के हाथ से धनुष छूट गया और वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। लंका विजय अभियान पूरा हुआ। राम की जयकार होने लगी। बची हुई सेना इधर-उधर जान बचाकर भागने लगी। इधर विभीषण अपने भाई की मौत पर विलाप कर रहे थे। राम ने उनको ढाढस बँधाया। उन्हें समझाया कि रावण महान योद्धा था। मृत्यु सत्य है इसे स्वीकार करो। राम ने सुग्रीव को गले लगा लिया। राम ने एक-एक वानर का आभार माना। राम ने लक्ष्मण से विभीषण के राज्याभिषेक की तैयारी करने को कहा। हनुमान को अशोक वाटिका में जाकर सीता को लंका-विजय का समाचार सुनाने को कहा गया। रावण के अंत्येष्टि के बाद विभीषण का राज्याभिषेक शुरू हो गया। लक्ष्मण विभीषण को राजसिंहासन तक लाए। समुद्र-जल से उनका अभिषेक किया गया। हनुमान सीता को लेकर वहाँ आ गए। सभी वानरों ने पहली वार सीता माँ को देखा। सुग्रीव नल-नील ने भी उनके दर्शन किए। सीता एक वर्ष बाद राम से मिलीं। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 69 पृष्ठ संख्या 70 पृष्ठ संख्या 71 पृष्ठ संख्या 73 पृष्ठ संख्या 75 पृष्ठ संख्या 77 पृष्ठ संख्या 78 पृष्ठ संख्या 79 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 10 लंका में हनुमानThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 10 लंका में हनुमान are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 10 Question Answers Summary लंका में हनुमानBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 10 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न
10. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. समुद्र को पार किसने किया? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. सीता-हनुमान की क्या बात हुई? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 10 Summary मार्ग में समुद्र देखकर वानर दल असमंजस में पड़ गए। इस दल में सबसे बुद्धिमान जामवंत थे। वे जानते थे कि समुद्र पार करना हनुमान के बस की बात है और यह काम हनुमान ही कर सकते हैं। जामवंत ने हनुमान से कहा कि यह काम आप कर सकते हैं। तब हनुमान उठे और धरती को प्रणाम कर एक ही छलांग में महेंद्र पर्वत पर पहुँच गए। वहाँ से उन्होंने विराट समुद्र की ओर देखा। हनुमान ने वहाँ पूर्व दिशा की ओर देखकर अपने पिता को प्रणाम किया। हनुमान ने पर्वत पर झुककर उसे हाथ-पैर से कसकर दबाया और छलाँग लगा दी। अगले पल वे आकाश में थे। हनुमान के छलाँग से पर्वत दरक गया, वृक्ष काँपने लगे, पशु-पक्षी चीत्कार करने लगे चट्टान आग के गोला की तरह दहक उठे। हनुमान इन सब बातों से बेखबर-वायु गति से आगे बढ़ते गए। उनकी परछाई समुद्र में नाव की तरह दिखाई देती थी। समुद्र के अंदर एक पर्वत ‘मैनाक’ था। वह जलराशि को चीरकर ऊपर उठा। मैनाक चाहता था कि हनुमान यहाँ रुककर कुछ देर विश्राम कर लें लेकिन हनुमान राम के कार्यों में लीन थे। उनको रास्ते में कई बाधाएँ आईं। सुरसा राक्षसी उन्हें खा जाना चाहती थी। उस राक्षसी का शरीर विशाल था। हनुमान उसके मुँह में घुसकर निकल आए। आगे सिंहिका राक्षसी मिली। सिंहिका राक्षसी ने हनुमान की छाया पकड़ ली। क्रोधित होकर हनुमान ने उसे भी मार दिया। अब लंका दूर नहीं थी। वह दूर क्षितिज पर दिखाई पड़ने लगी थी। लंका नगरी देखने के लिए हनुमान एक पहाड़ी पर चढ़ गए। सोने की लंका दूर से ही जगमगा रही थी। उन्होंने ऐसा नगर पहले कभी नहीं देखा था। हनुमान समुद्र के किनारे उतर गए। वह अब लंका को और निकट से देख पा रहे थे। इतनी लंबी यात्रा करने के बाद भी हनुमान बिलकुल भी नहीं थके थे। वे राक्षस नगरी की सुंदरता को देखकर चकित हो गए। अब हनुमान के सामने सीता को ढूँढ़ने की समस्या थी। दिन के समय लंका में प्रवेश करना हनुमान को उपयुक्त नहीं लगा। शाम ढलने पर उन्होंने नगरी में प्रवेश किया। वे चारों ओर सीता की खोज करने लगे। सीता महल में कहीं नज़र नहीं आई तब हनुमान महल से बाहर निकल आए। अंत:पुर के बाहर हनुमान ने रावण का रथ देखा। वह रत्नों से सजा था। वे इस रथ को देखकर चकित रह गए। तभी उनका ध्यान अशोक वाटिका की तरफ गया। वे दीवार लाँघकर वहाँ पहुँचे। वहाँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ लगे हुए थे। वहाँ भी उन्हें सीता दिखाई नहीं दीं। उनमें निराशा घर करती जा रही थी। वह एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गए। वे उसके पत्तों में छिप गए। वे वहाँ से सब कुछ देख सकते थे और उन्हें कोई नहीं देख सकता था। रात हो गई। अचानक वाटिका के एक कोने से अट्टहास सुनाई पड़ा। राक्षसियों का झुंड किसी बात पर अट्टहास कर रहा था। इसके बाद हनुमान पेड़ से चिपककर नीचे की डाली पर आए। उन्होंने राक्षसियों के बीच एक शोकग्रस्त, दुर्बल, दयनीय नारी को देखा। हनुमान ने अनुमान लगाया कि यही सीता माँ हैं। तभी उन्होंने राजसी ठाट-बाट के साथ रावण को आते देखा। रावण ने सीता को बहलाया-फु सलाया, लालच दिया। सीता नहीं डिगीं। वह बोलीं दुष्ट। राम के सामने तुम्हारा अस्तित्व ही क्या है? मुझे राम के पास पहुँचा दो। वे तुम्हें क्षमा कर देंगे। रावण क्रोध में पैर पटकता हुआ चला गया। उसके बाद सीता को राक्षसियों ने घेर लिया और वे सब रावण का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने के लिए सीता पर दबाव देने लगीं। उन राक्षसियों में एक त्रिजटा नाम की राक्षसी भी थी। उसकी सहानुभूति सीता के साथ थी। देर रात तक एक-एक कर राक्षसियाँ चली गईं। अब सीता वाटिका में अकेली थीं। हनुमान ने पेड़ पर-बैठे-बैठे राम कथा शुरू कर दी। राम का गुनगान सुनकर सीता चौंक उठीं। उन्होंने ऊपर देखकर पूछा, “तुम कौन हो?” हनुमान नीचे उतर आए। सीता को प्रणाम कर राम की अंगूठी उन्हें दी। उन्होंने स्वयं को श्रीराम का दास बताया। श्रीराम ने मुझे यहाँ भेजा है। सीता ने राम का कुशल-क्षेम पूछा। हनुमान को लेकर सीता के मन में अभी भी शंका थी। हनुमान ने पर्वत पर फेंके आभूषणों की याद दिलाकर उनकी शंका दूर कर दी। हनुमान सीता को कंधे पर बिठाकर राम के पास ले जाना चाहते थे किंतु सीता ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा ऐसा करना उचित नहीं होगा। हनुमान ने सीता से विदा ली। वे पूरी सूचना लेकर तत्काल राम तक पहुँचना चाहते थे। उन्होंने विश्वास दिया कि-निराश न हो, माते! श्रीराम यहाँ दो माह में अवश्य पहुँच जाएँगे। हनुमान ने जाने से पहले रावण का उपवन तहस-नहस कर दिया। अशोक वाटिका उजाड़ दी। विरोध करने वाले सभी राक्षसों को मार डाला। रावण का पुत्र अक्षय कुमार भी मारा गया। चलते समय सीता ने अपना एक आभूषण चूड़ामणि हनुमान को दिया। राक्षसों ने इसकी सूचना रावण को दी। रावण के क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने मेघनाद को भेजा। मेघनाद ने हनुमान से भीषण युद्ध किया। वह इंद्रजीत था। अंततः उसने हनुमान को बाँध लिया। राक्षस उन्हें खींचते हुए रावण के दरबार में ले आए। रावण के प्रश्नों का उत्तर निर्भीकतापूर्वक देते हुए हनुमान ने कहा-मैं श्रीराम का दास हूँ। मैं सीता की खोज में आया था। उनसे मैं मिल चुका हूँ। आपके दर्शन करने के लिए मुझे इतना उत्पात करना पड़ा। क्रोध में रावण हनुमान को मारने उठा किंतु विभीषण ने यह कहकर रोक दिया कि दूत का वध निषेध है। आप इसे कोई दूसरा दंड दें। हनुमान ने पुनः रावण से निवेदन किया कि आप सीता को सम्मान के साथ लौटा दें। रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगा देने की आज्ञा दी। राक्षसों ने उनके पूँछ में आग लगा दी। हनुमान ने एक से दूसरी अटारी पर कूदते हुए सारे भवन को जला दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया। सीता सकुशल पेड़ के नीचे बैठी हुई थीं। उन्होंने देखा सीता पेड़ के नीचे सकुशल बैठी थीं। हनुमान ने सकुशल देखा और प्रणाम करके राम के पास चल पड़े। दूसरे तट पर अंगद, जामवंत आदि उनकी प्रीतक्षा कर रहे थे। हनुमान ने संक्षेप में लंका का हाल सुनाया। सभी वानर खुश हो गए। वे सभी किष्किंधा पहुँच गए। हनुमान ने राम को सीता द्वारा दिया गया चूड़ामणि उतारकर दे दिया। राम की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने हनुमान को गले लगा लिया। समय कम था। लंका पर आक्रमण करना था। वानर-सेना इसके लिए तैयार थी। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना पर विचार किया। योग्यता और उपयोगिता के आधार पर भूमिकाएँ निश्चित कर दी गईं। समुद्र को पार करने के तरीके पर भी विचार हुआ। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 61 पृष्ठ संख्या 63 पृष्ठ संख्या 64 पृष्ठ संख्या 65 पृष्ठ संख्या 67 पृष्ठ संख्या 68 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 9 राम और सुग्रीवThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 9 राम और सुग्रीव are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 9 Question Answers Summary राम और सुग्रीवBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 9 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. सुग्रीव कहाँ के रहने वाले थे? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. कुटिया में सीता को न पाकर राम की क्या दशा हुई? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 9 Summary सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर रहते थे। वह किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। पिता के नहीं रहने पर उसका बड़ा भाई बाली वहाँ का राजा बना। पहले दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम था। बाद में उन दोनों भाइयों में मतभेद हो गया। मनमुटाव इतना बढ़ गया कि बाली सुग्रीव के नाम का दुश्मन बन गया। उसे जान से मार देना चाहता था। बाली के डर से सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर चला गया। राम और लक्ष्मण कबंध और शबरी के कहने पर ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे। वहाँ सुग्रीव से मिले। सुग्रीव वहाँ निर्वासन में अपना जीवन बिता रहे थे। रास्ते में हनुमान से भेंट हुई। हनुमान उन दोनों भाइयों से बोले कि मैं सुग्रीव का सेवक हूँ। लक्ष्मण ने अपना परिचय देकर वन में आने का कारण बताया तथा कबंध और शबरी की सलाह का उल्लेख भी किया। हनुमान के चेहरे पर हल्की-सी मुसकान आ गई। वे सोचने लगे कि कोई उससे सहायता माँगने आया है, जिसे स्वयं मदद चाहिए। हनुमान समझ गए कि राम और सुग्रीव की स्थिति एक जैसी है। दोनों मित्र हो सकते हैं। राम अयोध्या से निर्वासित हैं तथा सुग्रीव किष्किंधा से। एक की पत्नी रावण उठा ले गया है तथा दूसरे की पत्नी को भाई ने छीन लिया है। दोनों के पिता नहीं हैं। तब हनुमान ने राम और लक्ष्मण को कंधे पर बिठाकर तत्काल ऋष्यमूक के शिखर पर पहुंचा दिया। उन्होंने दोनों को सुग्रीव से मिला दिया। दोनों पक्षों ने अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता का वचन दिया। राम-सीता-हरण की बात सुग्रीव को बताई। सुग्रीव को कुछ बात याद आई। उन्होंने बताया कि रावण का रथ इसी पर्वत के ऊपर से होकर गया था। सीता स्वयं को रावण के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। वानरों को देखकर उन्होंने कुछ आभूषण नीचे फेंक दिए थे। उन्होंने गहनों की एक पोटली को राम के सामने रखते हुए कहा कि क्या ये गहने सीता के हैं ? राम ने आभूषण तुरंत पहचान लिए। गहने देखकर वे शोक में डूब गए। सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा-सीता आपको अवश्य मिल जाएँगी। मैं हर प्रकार से आपकी सहायता करूँगा। रावण का सर्वनाश निश्चित है। राम के बाद सुग्रीव ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई। बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया। उसने मेरे राज्य और स्त्री को छीन लिया है। वह मुझे जान से मारने का प्रयास कर रहा है। उसने राम से सहायता माँगी। राम बोले, “मित्र चिंता मत करो। तुम्हें राज्य भी मिलेगा और पत्नी भी।” राम काफ़ी सुकुमार थे। उन्हें देखकर सुग्रीव को भरोसा नहीं हुआ। बाली महाबलशाली है उसे हराना आसान नहीं है। बाली शाल के सात वृक्षों को एक साथ झकझोर सकता है। राम सुग्रीव की बात को समझ गए। राम ने शाल के सात विशाल वृक्षों को एक ही बाण से काटकर गिरा दिया। इस शक्ति प्रदर्शन को देखकर सुग्रीव ने राम के सामने हाथ जोड़ लिए। राम ने सुग्रीव से बाली को ललकारने के लिए कहा। योजना बनाकर सब किष्किंधा पहुँच गए। सुग्रीव ने बाली को ललकारा। बाली के क्रोध की सीमा न थी। भीषण मल्ल युद्ध हुआ। राम पेड़ के पीछे खड़े थे। उन्होंने तीर नहीं चलाया। सुग्रीव किसी तरह वहाँ से जान बचाकर ऋष्यमूक पर्वत आ गया। सुग्रीव राम से काफ़ी कुपित था। उसे लगता था कि राम ने उसके साथ धोखा किया है। सुग्रीव का कहना था कि राम ने समय पर बाण नहीं चलाया। राम की परेशानी थी कि दोनों भाई एक जैसे ही दिखते थे। बाली और सुग्रीव दोनों भाइयों का चेहरा मिलता-जुलता था। उनमें अंतर करना कठिन था, अत: उन्होंने तीर नहीं चलाया। राम-लक्ष्मण के समझाने बुझाने पर वह पुनः युद्ध के लिए किष्किंधा गया। बाली रानी तारा के पास था। उसने बाली को रोकने का प्रयास किया, पर बाली गुस्से से पागल हो गया था। वह सुग्रीव की छाती में घुसा मारने वाला ही था कि राम के एक ही बाण ने उसे धाराशायी कर दिया। बाली के गिरते ही राम, लक्ष्मण और हनुमान पेड़ों की ओट से बाहर निकल आए। आनन-फानन में सुग्रीव के राज्याभिषेक की तैयारी कर दी गई। सुग्रीव को राजगद्दी मिली। राम की सलाह पर बाली के पुत्र अंगद को युवराज का पद दिया गया। राम किष्किंधा से लौट आए लेकिन सुग्रीव चाहते थे कि राम कुछ दिन वहीं रहें पर राम ने मना कर दिया। राम-सुग्रीव की वानर-सेना की प्रतीक्षा कर रहे थे। पर सुग्रीव राग-रंग में उलझकर अपना वचन भूल गए। हनुमान को सुग्रीव का वचन याद था। उन्होंने सुग्रीव को याद दिलाया। राम सुग्रीव के व्यवहार से क्षुब्ध थे। लक्ष्मण सुग्रीव को समझाने के लिए किष्किंधा गए। उन्होंने वहाँ पहुँचकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। डोरी खींचकर छोड़ी तो उनकी टंकार से सुग्रीव काँप गया। उसे राम को दिया गया वचन याद आ गया। तारा की सलाह पर सुग्रीव ने राम के पास जाकर क्षमा याचना की। राम ने उसे गले लगा लिया। पीछेपीछे वानर सेना आ पहुँची। लक्ष्मण के पीछे चल पड़े। हनुमान के साथ लाखों वानर थे। जामवंत के पीछे भालुओं की सेना भी थी। इसके बाद सीता खोज की योजना बनी। वानरों को चार टोलियों में बाँटा गया। राम और सुग्रीव की जय-जयकार करते हुए वानर अपनी निर्धारित दिशाओं की ओर चल पड़े। दक्षिण जाने वाले दल को राम ने रोक लिया। उन्होंने हनुमान को पास बुलाकर अपनी अंगूठी उन्हें दे दी। इस पर राम का चिह्न था। उन्होंने कहा-“जब सीता से भेंट हो तो यह अंगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी। समझ जाएँगी कि तुम्हें मैंने भेजा है। तुम मेरे दूत हो।” इसके बाद अंगद और हनुमान दक्षिण की ओर चल पड़े। रास्ते में विशाल समुद्र था जिसे पार करना कठिन था। तभी रास्ते में जटायु का भाई संपाती मिला और बताया कि सीता को रावण ले गया है। सीता तक पहुँचने के लिए सागर पार करना होगा। सीता तक पहुँचने का यही रास्ता है। सीता की सूचना मिलने से वानर दल को भरोसा हो गया कि सीता इसी मार्ग से दक्षिण की ओर गई हैं। सीता तक पहुँचने का यही रास्ता है। पर समुद्र को पार करना संभव नहीं था। वानर अब असमंजस में थे। इसी बीच जामवंत की दृष्टि हनुमान पर पड़ी। जामवंत जानते थे कि हनुमान पवन पुत्र हैं। वे यह काम कर सकते हैं, पर उन्हें इसका अनुमान नहीं। सीता तक पहुँचने के लिए सागर पार करना होगा। इस दल में सबसे बुद्धिमान जामवंत थे किंतु इस कठिन कार्य का उनके पास भी उत्तर नहीं था। जामवंत ने हनुमान से कहा कि यह कार्य आप ही कर सकते हैं। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 54 पृष्ठ संख्या 55 पृष्ठ संख्या 57 पृष्ठ संख्या 58 पृष्ठ संख्या 59 पृष्ठ संख्या 60 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 8 सीता की खोजThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 8 सीता की खोज are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 8 Question Answers Summary सीता की खोजBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 8 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न
1. पराक्रमी, साहसी, निडर, पितृभक्त, वीर, शांत, दूरदर्शी, त्यागी, लालची, अज्ञानी, दुश्चरित्र, दीनबंधु, गंभीर, स्वार्थी, उदार, धैर्यवान, अड़ियल, कपटी, भक्त, न्यायप्रियता और ज्ञानी। राम ____________, सीता ____________ अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. कुटिया की ओर भागे चले आ रहे राम के मन में कौन-सी आशंकाएँ थीं? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. टूटे हुए रथ और टूटी पुष्पमाला को
देख राम और लक्ष्मण ने क्या अनुमान लगाया? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 8 Summary राम के मन में कई तरह की शंकाएँ थीं, कई तरह के प्रश्न थे। राम को अनिष्ट की आशंकाएँ थीं। उन्होंने सोचा कि सीता अकेली रहीं तो राक्षस उन्हें मार डालेंगे। मन में अनेक भय लिए वे आगे बढ़ रहे थे तभी उनकी नज़र लक्ष्मण पर पड़ी। लक्ष्मण को देखते ही राम की शंका और बढ़ गई। लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि देवी सीता के कटु वचनों ने मुझे यहाँ आने के लिए बाध्य किया। राम ने लक्ष्मण से कहा कि “तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके अच्छा नहीं किया। मेरा मन काफ़ी चिंतित है पता नहीं सीता किस हाल में होगी।” कुटिया अभी दूर थी। राम ने वहीं से पुकारा-‘सीते तुम कहाँ हो?’ पर कोई जवाब नहीं आया। राम सीता को पुकारते रहे पर आवाज़ पेड़ों से टकराकर हवा में विलीन हो जाती थी। राम भागते हुए आश्रम पहुँचे। कुटिया में जाकर देखा। सीता का कहीं पता नहीं था। वे अपना सुध-बुध भुला बैठे। राम रोने लगे। सीता से बिछुड़ना उनके लिए असहनीय था। राम की स्थिति विक्षिप्त जैसे हो गई थी। विरह में राम गोदावरी नदी के पास गए। उन्होंने नदी, पेड़-पौधे, हाथी, शेर, फूल, चट्टान पत्थरों से भी सीता के बारे में पूछा। वे अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। राम का दुख लक्ष्मण से देखा नहीं जा रहा था। विलाप करते हुए राम ने लक्ष्मण से कहा- “मैं सीता के बिना नहीं रह सकता।” राम कह रहे थे-“लक्ष्मण तुम अयोध्या लौट जाओ। मैं वहाँ नहीं जाऊँगा। यहीं प्राण दे दूंगा।” लक्ष्मण ने राम को समझाते हुए कहा कि “आप आदर्श पुरुष हैं। आपको धैर्य रखना चाहिए। हम लोग मिलकर सीता की खोज करेंगे।” राम शांत हो गए। इसी बीच आश्रम के आस-पास भटकने वाला हिरणों का झुंड राम-लक्ष्मण के निकट आ गया। राम ने हिरणों से सीता के बारे में पूछा। हिरणों ने सिर उठाकर आसमान की ओर देखा और दक्षिण की ओर भाग गए। राम ने संकेत समझ लिया। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-हमें सीता की खोज दक्षिण दिशा में करनी चाहिए। उन्होंने वन में भटकते हुए टूटे रथ के टुकड़े देखे। इसके अलावा मरा सारथी और मृत घोड़े भी देखे। लक्ष्मण समझ गए कि यहाँ थोड़ी देर पहले ही संघर्ष हुआ है। सीता की वेणी में गुंथी पुष्पमाला को वहाँ पड़े देखा। वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर राम ने पक्षीराज जटायु को देखा। जटायु के पंख कटे हुए थे। वह अंतिम साँस गिन रहा था। उसी ने राम को बताया, “रावण सीता को उठा ले गया है। मेरे पंख उसी ने काटे हैं। मैंने रावण से युद्ध किया और लड़ते-लड़ते उसका रथ तोड़ डाला था। मैं सीता को बचा नहीं सका। रावण सीता को लेकर दक्षिण की ओर गया है। इतना कहकर जटायु ने प्राण त्याग दिए।” वहीं राम और लक्ष्मण ने उसका अंतिम संस्कार किया। राम-लक्ष्मण सीता की तलाश में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बढ़ने लगे। मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए दोनों भाई आगे बढ़ते गए। आगे का मार्ग काफ़ी कठिन था। उन्हें बार-बार राक्षसों के आक्रमण का सामना करना पड़ता था। एक दिन रास्ते में कबंध नामक राक्षस ने उन लोगों पर आक्रमण किया। वह बहुत ही खतरनाक था। उसने दोनों भाइयों को उठाकर हवा में उड़ा लिया। राम-लक्ष्मण ने तलवार निकाल कर एक झटके में ही उसके हाथ काट डाले। कबंध उनकी शक्ति देखकर हैरान रह गया। उसने उनका परिचय पूछा। राम के बारे में उसने सुन रखा था। अब उन्हें सामने देखकर प्रसन्न हो गया। वह बोला-मैं सीता के संबंध में तो कुछ नहीं जानता लेकिन तुम लोगों की सहायता का उपाय ज़रूर बता सकता हूँ लेकिन मेरा एक निवेदन है कि मेरा अंतिम संस्कार राम करें। राम ने उसका निवेदन स्वीकार कर लिया। तब कबंध ने उन्हें बताया कि-पंपा सरोवर के समीप ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव रहते हैं। आप उन्हीं के पास जाएँ। वे अपने वानरी सेना के साथ सीता को अवश्य खोज निकालेंगे। ‘इतना कहते हुए उसने राम-लक्ष्मण को अपने समीप बुलाया और कहा पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है। वहीं उनकी शिष्या शबरी रहती है। आप शबरी से भी अवश्य मिलना। कबंध की बातों से राम में सीता तक पहुँचने की आशा बलबती हो गई। इतना कहने के बाद कबंध के प्राण निकल गए। राम उसका अंतिम संस्कार कर सरोवर की ओर चल पड़े। वहाँ से वे लोग शबरी की कुटिया में गए। उसकी आयु बहुत थी। वह हर पलं राम की प्रतीक्षा में अपनी आँखें खुली रखती थी। राम को आश्रम में देखकर शबरी बहुत खुश हुई। उसने राम का स्वागत किया। उसने भी सुग्रीव से मित्रता करने को कहा। खाने को मीठे फल व रहने को जगह दी। शबरी ने राम को विश्वास दिलाया कि सुग्रीव सीता की खोज में उनकी अवश्य मदद करेंगे। वे सीता को अवश्य ढूँढ निकालेंगे। उनके पास विलक्षण शक्ति वाले वानर हैं। अगले दिन वे ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से मिलने गए। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 48 पृष्ठ संख्या 49 पृष्ठ संख्या 50 पृष्ठ संख्या 51 पृष्ठ संख्या 52 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 7 सोने का हिरणThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 7 सोने का हिरण are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 7 Question Answers Summary सोने का हिरणBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 7 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. मारीच रावण का कौन था? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. सीता ने राम के पराक्रम के बारे में क्या कहा? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 7 Summary राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलांचे भरने लगा। उसने राम को बहुत छकाया। राम को वह बहुत दूर ले गया। हिरण को पकड़ने के राम के सारे प्रयास विफल हुए। राम ने उसे जीवित पकड़ने का प्रयास छोड़ दिया। उन्होंने उस पर बाण चलाए। हिरण बाण लगते ही धरती पर गिर पड़ा। जमीन पर गिरते ही मारीच असली रूप में आ गया। उसने अपना रूप बदला और आवाज़ भी बदल ली। वह राम की सी आवाज़ में जोर से चिल्लाया-‘हा सीते! हा लक्ष्मण!’ ध्वनि ऐसी थी मानो राम सहायता के लिए पुकार रहे हों। मारीच के प्राण पखेरू उड़ गए। मारीच की आवाज़ सुनकर राम को समझने में देर नहीं लगी वे तुरंत तेज़ कदमों से कुटिया की ओर बढ़े। मारीच की पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी। लक्ष्मण रहस्य समझ गए और चौकसी बढ़ा दिए। इधर रावण एक विशाल पेड़ के नीचे खड़ा था। उसका प्रपंच सफल होने पर था। रावण को अकंपन की बात स्मरण हो गई कि सीता का अपहरण होने पर राम के प्राण निकल जाएँगे। उधर सीता वह आवाज़ सुनकर विचलित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-“तुम जल्दी जाओ। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में फँस गए हैं। जाओ, लक्ष्मण जल्दी।” लक्ष्मण ने सीता को समझाया कि राम संकट में नहीं हैं। उनका कोई कुछ नुकसान नहीं कर सकता। वह आवाज़ मायावी राक्षसों की चाल है। इस पर सीता का क्रोध और बढ़ गया। क्रोध में आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होंने लक्ष्मण को भला-बुरा कहा तथा उन पर भरत के गुप्तचर होने का भी आरोप लगा दिया। सीता की बातों से लक्ष्मण काफ़ी आहत हो गए। लक्ष्मण चुप-चाप सिर झुकाकर खड़े थे। वे बार-बार सीता को समझाने का प्रयास करते रहे कि यह राक्षसों की चाल है, लेकिन सीता ने एक भी नहीं मानी और कहने लगीं कि-“मैं राम के बिना नहीं रह सकती। अपनी जान दे दूंगी। लक्ष्मण तुम जाओ और राम को जल्दी ले आओ।” इसके बाद लक्ष्मण ने सीता को प्रणाम किया और राम की खोज में निकल पड़े। लक्ष्मण के जाते ही रावण आ पहुँचा। रावण गेरुआ वस्त्र पहने कुटिया के पास आया। सीता ने साधु समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने सीता की खूब प्रशंसा की और लंका में जाकर रहने को कहा। उसने कहा-तुम सोने की लंका में मेरी रानी बनकर रहोगी। सीता क्रोधित हो उठीं। वे बोलीं-मैं प्राण त्याग दूंगी पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँ गी। रावण ने सीता की बात अनसुनी कर दी। उसने सीता को खींचकर रथ में बिठा लिया। सीता उसके चंगुल से बचने का प्रयास करती रही लेकिन सब व्यर्थ हुआ। वे राम और लक्ष्मण को पुकारती रहीं। वह विलाप करती रहीं-हा राम! हा लक्ष्मण! रावण का रथ लंका की ओर उड़ चला। मार्ग में वे पशुओं, पक्षियों, पर्वतों से कहती जा रही थीं कि कोई राम को बता दे कि रावण ने उसका हरण कर लिया है। गिद्ध राज जटायु ने सीता का विलाप सुना और तुरंत रावण के रथ पर हमला किया। क्रोध में रावण ने उसके पंख काट दिए। अतः वह धरती पर आ गिरा। रावण का रथ टूट गया था। अतः वह उड़ान नहीं भर सकता था। उसने तत्काल सीता को अपनी बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता किसी तरह राम के पास सूचना पहुँचाना चाहती थीं। उन्होंने अपने आभूषण उतार कर नीचे फेंकने शुरू कर दिए ताकि राम को उसका पता चल जाए। रावण ने सीता को आभूषण फेंकने से नहीं रोका। उसे लगा कि सीता दुखी होकर ऐसा कर रही हैं। कुछ समय में रावण लंका पहुँच गया। वह सीधा अंत:पुर गया। वह अपने धन वैभव से सीता को प्रभावित करना चाहता था। उसने सीता से कहा-मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी? ‘सीता बार-बार रावण को धिक्कारती रही और राम का गुणगान करती रही। उसने रावण को चेतावनी भरे स्वर में कहा। ‘राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता स्वीकार करते हैं। मैं उस राम की पत्नी हूँ, जिसके तेज के आगे कोई ठहर नहीं सकता। तेरा सारा वैभव मेरे लिए बेकार है। राम के हाथों तेरा संहार निश्चित है। सीता बार-बार धिक्कारती रहीं और राम का गुणगान करती रहीं। राम का गुणगान सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने आठ राक्षसों को बुलाकर पंचवटी भेज दिया ताकि वे राम-लक्ष्मण पर निगरानी रख सकें। इधर रावण ने सीता को अंत:पुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। उसने अनेक प्रयत्न किए पर सीता का मन नहीं बदला। वह रो-रोकर दिन काट रही थीं। रावण ने राक्षस-राक्षसियों को आदेश दिया कि सीता को कोई शारीरिक प्रताड़ना मत देना उसके मन को ठेस पहुँचाओ, अपमानित करो। रावण ने सब किया पर सीता बार-बार राम का नाम लेती रहीं। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 41 पृष्ठ संख्या 43 पृष्ठ संख्या 45 पृष्ठ संख्या 46 पृष्ठ संख्या 47 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 6 दंडक वन में दस वर्षThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 6 दंडक वन में दस वर्ष are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 6 Question Answers Summary दंडक वन में दस वर्षBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 6 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न
6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न
15. प्रश्न 16. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. चित्रकूट अयोध्या से कितनी दूरी पर था? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. अकंपन कौन था? उसने रावण से क्या कहा? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 6 Summary भरत अपनी प्रजा तथा सेना के साथ अयोध्या लौट चुके थे। राम पर्णकुटी के बाहर एक शिलाखंड पर बैठे थे। वे किसी सोच-विचार में मग्न थे। चित्रकूट अयोध्या से केवल चार दिन की दूरी पर था। लोगों का आना-जाना लगा रहता था। अयोध्या से लोग वहाँ आते रहते थे। कई कार्यों की राय माँगते थे और कई तरह के प्रश्न करते थे। इसलिए राम चित्रकूट से दूर जाना चाहते थे। तीनों वनवासी मुनि अत्रि से विदा लेकर दंडक वन की ओर चल पड़े। यह वन घना था। इसमें अनेक तपस्वियों के आश्रम थे। राक्षस भी वहाँ बहत थे। राम को देखकर मुनिगण बहुत प्रसन्न हुए। मुनियों ने राम से कहा कि “आप मायावी राक्षसों से हमारी रक्षा कीजिए। वे राक्षस हमारे आश्रम को अपवित्र करते हैं तथा हमारी तपस्या भंग करते हैं।” सीता राक्षसों का अकारण वध करना नहीं चाहती थी। राम लक्ष्मण और सीता दंडकारण्य में दस वर्षों तक रहे। वे स्थान और आश्रम बदलते रहे। वे क्षरभंग मुनि के आश्रम में पहुँचे। मुनि ने राम को राक्षसों के अत्याचार की कहानी बताई और आश्रमवासियों ने राम को हड्डियों का ढेर दिखाया। ये ऋषियों के कंकाल थे जिन्हें राक्षसों ने मार डाला था। मुनि ने राम को अगस्त्य ऋषि से भेंट करने की सलाह दी। मुनि ने राम को गोदावरी नदी के तट पर जाने को कहा। उस स्थान का नाम पंचवटी था। वनवास का शेष समय दो राजकुमारों और सीता ने वहीं बिताया। पंचवटी के मार्ग में राम को जटायु मिला जिसे देखकर सीता डर गई। जटायु ने कहा कि-डरो मत, मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। ‘राम जटायु को प्रणामकर आगे बढ़ गए। पंचवटी में लक्ष्मण ने एक सुंदर कुटिया बनाई। कुटिया ने उस पंचवटी को और सुंदर बना दिया। इस बीच जो भी राक्षस आश्रम पर आक्रमण करते राम उसका संहार कर देते। वन से सभी राक्षसों का अंत हो गया। अब तपस्वी शांति से तप करने लगे। एक दिन लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा वहाँ आई। वह राम को देखकर उन पर मोहित हो गई। वह राम के पास जाकर बोली ‘मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। राम ने कहा कि “मैं विवाहित हूँ, ये मेरी पत्नी है।” अब वह लक्ष्मण के पास आई। लक्ष्मण ने उसे पुनः राम के पास भेज दिया। वह कभी राम के पास जाती तो कभी लक्ष्मण के पास। क्रोध में आकर झपट्टा मारा। लक्ष्मण ने तत्काल उठाकर तलवार खींच ली और उसकी नाक काट डाली। खून से लथ-पथ शूर्पणखा रोती हुई अपने भाई खर-दूषण के पास पहुँची। शूर्पणखा की दशा देखकर खर-दूषण ने क्रोध में चौदह राक्षसों को भेजा। राम जानते थे कि राक्षस इस अपमान का बदला लेने ज़रूर आएँगे। अतः उन्होंने सीता को लक्ष्मण के साथ सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। राक्षस राम के सामने टिक नहीं सके। वे सभी मारे गए। इसके बाद खर-दूषण राक्षसों की पूरी सेना लेकर आए। घमासान युद्ध में राम की विजय हुई। खर और दूषण मारे गए तथा शेष राक्षस भाग गए। यह खबर अकंपन नामक राक्षस ने रावण को जाकर दी। उसने बताया कि राम कुशल योद्धा हैं उन्हें कोई नहीं मार सकता। उनको हराने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। रावण सीता के हरण के लिए तैयार हो गया। पर मारीच ने रावण को सीता का हरण न करने के लिए कहा। उसने रावण से कहा-सीता का हरण करना विनाश को आमंत्रण देना है। रावण मारीच की बात मानकर लौट आया। थोड़ी देर में शूर्पणखा रोती बिलखती रावण के पास गई और सारी घटना बताई। वह रावण को धिक्कारते हुए बोली ‘आप महाबली हैं। आपके रहते हुए यह दुर्गति।’ उसने रावण को राम-लक्ष्मण के अत्यंत बलशाली होने तथा सीता को अति सुंदरी बताया। रावण फिर मारीच के पास गया। इस बार भी उसने सीता का हरण करने से मना किया किंतु इस बार रावण नहीं माना। उसने डाँटकर मारीच को आज्ञा दी कि तुम मेरी मदद करो। विवश होकर उसे रावण की आज्ञा माननी पड़ी। रथ पर बैठकर रावण और मारीच पंचवटी पहुँचे। कुटी के निकट आकर मायावी मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया और कुटी के आस पास घूमने लगा। इधर रावण तपस्वी का वेश धारण कर पेड़ की छाया में छिपा था। सीता इस संदर हिरण को देखकर मोहित हो गई और राम से हिरण पकड़ने के लिए कहा। राम को हिरण पर संदेह था। वे सोचने लगे कि वन में सोने का हिरण कहाँ से आएगा पर सीता के आग्रह पर राम उसके पीछे चले गए। कुटी से निकलते समय राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया। राम की आज्ञा मानकर लक्ष्मण कुटी के बाहर खड़े हो गए। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 33 पृष्ठ संख्या 35 पृष्ठ संख्या 36 पृष्ठ
संख्या 37 पृष्ठ संख्या 39 पृष्ठ संख्या 40 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरतThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 5 Question Answers Summary चित्रकूट में भरतBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना देखा? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए। माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा। इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया। मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया। भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 26 पृष्ठ संख्या 27 पृष्ठ संख्या 28 पृष्ठ संख्या 29 पृष्ठ संख्या 31 पृष्ठ संख्या 32 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमनThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 4 Question Answers Summary राम का वन-गमनBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 4 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. लक्ष्मण ने राजसिंहासन के बारे में राम से क्या कहा? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. राम के वन-गमन का समाचार प्रसारित होने के बाद नगर तथा राजभवन की घटनाओं का वर्णन करें। Bal Ram Katha Class 6 Chapter 4 Summary कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। सारी रात राजा दशरथ कैकेयी को समझाते रहे, पर वह अपनी ज़िद पर अडी रही। राजा दशरथ उसे समझाते रहे। पूरे नगर में राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी। हर व्यक्ति शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में था। महामंत्री सुमंत कुछ परेशान लग रहे थे। वे महर्षि के पास गए। उन्होंने बताया कि पिछली शाम से किसी ने महाराज दशरथ को नहीं देखा। महर्षि ने सुमंत को राजभवन भेजा। वहाँ उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। कैकेयी ने कहा “मंत्रीवर महाराज बाहर निकलने से पहले राम से बात करना चाहते हैं। आप उन्हें बुला लाइए।” दशरथ ने बहुत ही क्षीणस्वर में राम को बुलाने की आज्ञा दी। सुमंत के मन में कई तरह की आशंकाएँ थीं। राजमहल के बाहर काफ़ी भीड़ थी। भवन को खूब सजाया गया था। सुमंत राम के पास जाकर बोले-“राजकुमार, महाराज ने आपको बुलाया है। आप मेरे साथ चलें।” कुछ ही पल में राम-लक्ष्मण वहाँ पहुँच गए। राम समझ नहीं पा रहे थे कि महाराज ने उन्हें अचानक क्यों बुलाया है। सभी लोग समझ रहे थे कि राम राज्याभिषेक के लिए जा रहे हैं इसलिए लोग जय जयकार करने लगे। महल में पहुँचकर राम-लक्ष्मण ने माता-पिता को प्रणाम किया। राम को आया देखकर दशरथ बेसुध हो गए। उनके मुँह से हल्कीसी आवाज आई-‘राम’। आगे वे कुछ न बोल सके। राम ने कैकेयी से पूछा तो उसने बताया कि मैंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए हैं-‘मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।’ उन्होंने दृढ़ता से कहा ‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा, भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा। राम की बातें सुनकर रानी का चेहरा खिल उठा। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने अपनी माता को कैकेयी भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय भी बता दिया। यह सुनकर माता कौशल्या सुध-बुध खो बैठीं। लक्ष्मण क्रोध से भर गए, पर राम ने उन्हें शांत किया। राम ने लक्ष्मण से वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या की इच्छा थी कि राम राजगद्दी भले ही छोड़ दें, पर अयोध्या में रहें। राम ने अपनी माता से बताया कि यह राजाज्ञा नहीं यह एक पिता की आज्ञा है। मैं उनकी आज्ञा का पालन करूँगा। आप मुझे आशीर्वाद दें। लक्ष्मण राम की बात से सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि राम अपने शक्तिबल से अयोध्या का राजसिंहासन छीन लें और गद्दी पर बैठ जाएँ। इससे असहमति प्रकट करते हुए राम ने कहा कि अधर्म का सिंहासन मुझे नहीं चाहिए। मेरे लिए तो जैसा राजसिंहासन है वैसा ही वनवास। कौशल्या भी राम के साथ वन जाना चाहती थी, किंतु राम ने उन्हें मना कर दिया और समझाया कि इस समय पिता को सहारे की आवश्यकता है। अंततः कौशल्या ने राम को गले लगाया और आशीर्वाद देते हुए कहा-‘जाओ पुत्र, दसो दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक इंतजार करूंगी।’ कौशल्या भवन से निकलकर राम सीता के पास गए। सारा हाल बताकर विदा माँगी। पर सीता ने कहा-‘मेरे पिता का आदेश है कि छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।’ राम को सीता की बात माननी पड़ी। लक्ष्मण वहाँ आ गए। वह भी साथ चलने को तैयार थे। राम के वन जाने का समाचार पूरे शहर में तेजी से फैल गया। नगरवासी राजा दशरथ और कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ देर पहले तक वहाँ उत्सव की तैयारियाँ चल रही थीं अब उदासी ने घेर लिया। लोगों के आँखों में आँसू थे। सभी अयोध्यावासी रामसीता को वन जाने से रोकना चाहते थे। पर वे बेबस थे। वन जाने की तैयारी होने लगी। राम-सीता और लक्ष्मण वन जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राजा दशरथ बेसुध दर्द से कराह रहे थे। राम के प्रवेश करने पर दशरथ में जीवन का संचार हुआ। वे उठकर बैठ गए। वे बोले- “पुत्र, मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए मैं विवश हूँ। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो। यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा है। पिता के वचनों ने राम को झकझोर दिया। वे बोले मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। इसी बीच कैकेयी ने राम-लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। तीनों ने तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और राजसी वस्त्र उतार कर रख दिए। सीता को तपस्वनी वस्त्र में देखकर वशिष्ठ मुनि को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि-‘अगर सीता वन जाएगी तो अयोध्यावासी उनके साथ जाएँगे।’ राम सबका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़े। आगे-आगे राम पीछे-पीछे सीता और उनके पीछे लक्ष्मण। महल के बाहर सुमंत रथ लेकर खड़े थे। नगरवासी रथ के पीछे-पीछे नंगे पाँव दौड़ रहे थे। रथ तेजगति से चला जा रहा था। राजा दशरथ उसी दिशा में नज़रें गड़ाए रहे। माता कौशल्या भी उनके पीछे गईं। बड़े-बूढ़े, बच्चे सबके आँखों में आँस थे। राम का यह दृश्य देखकर विचलित हो गए। तमसा नदी के तट पर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई। अगली सुबह दक्षिण दिशा की ओर चले। गोमती नदी पारकर राम-सीता और लक्ष्मण सई नदी के तट पर पहुंचे। यहीं अयोध्या राज्य की सीमा समाप्त होती थी। राम ने मुड़कर जन्मभूमि को प्रणाम किया। शाम होते-होते गंगा के किनारे पहुँच गए। शृंगवेरपुर गाँव में निषादराज गुह ने उनका स्वागत किया। राम ने वहीं रात्रि विश्राम किया। अगली सुबह राम ने महामंत्री सुमंत को वापस भेज दिया। सुमंत का खाली रथ देखकर नगरवासियों ने उन्हें घेर लिया। सुमंत बिना कुछ बोले राजभवन चले गए। उन्होंने राजा दशरथ को सारी स्थिति से अवगत करा दिया। दशरथ को उनकी बातों से संतोष नहीं हुआ। राजा दशरथ ने राम के वन-गमन के छठे दिन प्राण त्याग दिए। महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद से चर्चा की और भरत को तत्काल अयोध्या बुलाने का निर्णय किया गया। अयोध्या की घटनाओं के बारे में मौन रहने का निर्देश दिया गया। भरत को अयोध्या की घटनाओं को बताए बिना तत्काल अयोध्या बुलाया गया। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 20 पृष्ठ संख्या 21 पृष्ठ संख्या 22 पृष्ठ संख्या 23 पृष्ठ संख्या 25 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 3 दो वरदानThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 3 दो वरदान are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 3 Question Answers Summary दो वरदानBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 3 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभ्यास प्रश्न अति लघु उत्तरीय प्रश्न 1. राम के राज्याभिषेक के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का निर्णय क्यों और किस प्रकार लिया? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 3 Summary राजा दशरथ बूढे हो चले थे। उनके दिल में राम के राज्याभिषेक की इच्छा बची हई थी। दशरथ के लिए राम प्राणों से भी प्यारे थे। राम की विद्वता, विनम्रता और पराक्रम से सभी प्रभावित थे। सारी प्रजा राम को चाहती थी। राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से विचार-विमर्श किया और राज-काज राम को सौंपने का निश्चय हुआ। उसके बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई। समस्त सभा ने राजा दशरथ के प्रस्ताव का स्वागत किया। चारों ओर राम की जय-जयकार होने लगी। राजा जनक ने कहा- “शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए। मेरी इच्छा है कि राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कल सुबह कर दी जाएँ।” राजा दशरथ को यह जानकर काफ़ी संतोष हुआ कि प्रजा राम को राजा बनाये जाने से काफी खुश है। यह खबर पूरे नगर में फैल गई और राम के राज याभिषेक की तैयारियाँ होने लगीं। उस समय भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में नहीं थे। वे अपने ननिहाल केकयराज के यहाँ गए हए थे। भरत को अयोध्या की घटनाओं की सूचना नहीं थी। उन्हें राज्याभिषेक की भी सूचना नहीं थी। राजा दशरथ ने इस संबंध में राम से चर्चा की। उन्होंने कहा कि”भरत यहाँ नहीं हैं पर मैं चाहता हूँ कि राज्याभिषेक का कार्यक्रम न रोका जाए। प्रजा ने तुम्हें अपना राजा चुना है। तुम राजधर्म का पालन करना।” राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कैकेयी की दासी मंथरा भी देख रही थी। मंथरा कैकेयी की मुँहलगी दासी थी। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। यह सब देखकर वह जलभुन गई। उसने राजमहल में जाकर कैकेयी को भड़काया कि तेरे ऊपर भयानक विपदा आने वाली है। यह सोने का समय नहीं है। महाराज दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया है। अब राम युवराज होंगे। यह एक षड्यंत्र है। भरत को जान-बूझकर ननिहाल भेज दिया गया है। समारोह के लिए बुलाया तक नहीं है। कैकेयी ने पहले मंथरा को इस प्रकार के विचारों के लिए डाँटा-फटकारा। जब उसने और भड़काया तो कैकेयी पर मंथरा की बातों का असर होने लगा। उसका सिर चकरा गया। आँखों में आँसू आ गए। उसे प्रसन्नता की जगह क्रोध आने लगा। वह घबड़ाकर मंथरा से बोली तम्हीं बताओ कि मैं क्या करूँ। ‘कैकेयी ने इससे बचाव का उपाय पूछा तो मंथरा ने रानी को याद दिलाया-महाराज दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिए थे। उसने बताया कि ‘एक वरदान के लिए भरत को राज गद्दी तथा दूसरे वरदान के लिए राम को चौदह वर्ष का वनवास माँग लो।’ अब कैकेयी को मंथरा की बात अच्छी लगने लगी। कैकेयी इसके लिए तैयार हो गई। कैकेयी कोप भवन में चली गई। राजा दशरथ वहाँ पहुँचे। वहाँ का दृश्य देखकर वे हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। महाराज दशरथ ने कैकेयी से पूछा कि “तुम्हें क्या दुख है। तुम अस्वस्थ हो राज वैद्य को बुलाया जाए।” पर कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी रोती रही। दशरथ कैकेयी से बोले कि “तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ।” किंतु कुछ भी उत्तर न मिला। अब राजा दशरथ भूमि पर बैठ गए। विनती करते रहे। कैकेयी ने कहा कि ‘हाँ, मैं बीमार हूँ। मैं अपनी बीमारी के बारे में आपको बताऊँ गी लेकिन पहले आप मुझे एक वचन दें कि जो माँगू उसे पूरा करेंगे।’ राजा दशरथ ने राम की सौगंध खाकर वरदान देने का संकल्प दोहराया। कैकेयी ने मौका देखकर कह दिया कि कल सुबह राम के स्थान पर भरत का राज्याभिषेक होना चाहिए और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। यह सुनकर राजा दशरथ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। वे अवाक रह गए उनका सिर चकराने लगा और मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर में राजा को होश आया। वे बड़े कातर भाव से कैकेयी से बोले-‘यह तुम क्यों कह रही हो। मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने सही सुना है।’ कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी रही। कैकेयी ने स्मरण दिलाया कि अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष खाकर आत्महत्या कर लूंगी। यह कलंक आपके माथे होगा।’ राजा दशरथ यह सुन नहीं सके । वे बेहोश होकर गिर पड़े। बीच-बीच में होश आता रहा। वे रात भर कैकेयी के सामने गिड़गिड़ाते रहे, डराते रहे, धमकाते रहे पर कैकेयी टस-से-मस नहीं हुई। सारी रात इसी प्रकार बीत गई। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 14 पृष्ठ संख्या 15 पृष्ठ संख्या 16 पृष्ठ संख्या 17 पृष्ठ संख्या 19 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 2 जंगल और जनकपुरThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 2 जंगल और जनकपुर are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 2 Question Answers Summary जंगल और जनकपुरBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 2 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न
8. प्रश्न 9. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न
6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न
11. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. ताड़का कौन थी? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. विश्वामित्र राम को मिथिला क्यों ले गए? मिथिला की घटनाओं का वर्णन करें? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 2 Summary राजमहल से निकलकर महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों के साथ सरयू नदी के कनारे की ओर बढ़े। वे सधे कदमों से दूर तक सरयू के किनारे-किनारे चलते रहे। देखते ही देखते अयोध्या नगरी पीछे छूट गई। सब कुछ दृष्टि से ओझल हो गया। शाम हो गई। राजकुमारों के चेहरों पर थकान का कोई चिह्न नहीं था। दिनभर पैदल चलने के बाद भी वे थके नहीं थे। वे उत्साहित कदमों से आगे बढ़ते ही जा रहे थे। दिनभर पैदल चलने के बाद उन्होंने आसमान पर दृष्टि डाली। आसमान मटमैला हो गया था। पशु-पक्षी अपने घरों को लौट रहे थे। तभी महर्षि ने कहा-“हम आज रात नदी तट पर ही विश्राम करेंगे।” उन्होंने राम से कहा कि मैं तुम दोनों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इस विद्या को सीखने के बाद कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा। दोनों भाई राम और लक्ष्मण नदी में हाथ मुँह धोकर विश्वामित्र के नजदीक आकर बैठे। उन्होंने दोनों भाइयों को “बला, अतिबला” नाम की दो विद्याएँ सिखाईं। रात में वे वहीं तिनकों और पत्तों का बिस्तर बनाकर सोए। सुबह होते ही उन्होंने पुनः यात्रा शुरू कर दी। वे सरयू के किनारे चलते-चलते ऐसे स्थान पर जा पहुँचे जहाँ दो नदियाँ आपस में मिलती थीं। उस संगम की दूसरी नदी गंगा थी। अगली सुबह वे लोग नाव से गंगा पार करके आगे बढ़े। नदी के पार घना जंगल था। वहाँ डरावना वातावरण देखकर महर्षि ने राम-लक्ष्मण को समझाया-‘ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है। असली खतरा राक्षसी ताड़का से है, वह यहीं रहती है। तुम्हें यह खतरा हमेशा के लिए मिटा देना है। ‘उस सुंदर वन का नाम ही ‘ताड़कावन’ पड़ गया था। महर्षि की आज्ञा सुनकर राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। टंकार सुनते ही ताड़का गरजते हुए राम की ओर दौड़ी। ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए राम ने उस पर वाण चलाए। लक्ष्मण ने निशाना साधा। ताड़का राम का एक तीर लगते ही गिर पड़ी और फिर नहीं उठी। यह देखकर विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उन्हें सौ तरह के अस्त्र-शस्त्र दिए और उनके प्रयोग की विधि बताई। तीनों ने रात वहीं बिताई। ताड़का के वन में न होने के कारण वह स्थान अब पूरी तरह से भयमुक्त था। अब चारों तरफ शांति थी। अगले दिन अंतिम पड़ाव था सिद्धाश्रम। वहाँ पहुँचकर महर्षि यज्ञ की तैयारियों में लग गए। आश्रम की सुरक्षा की जिम्मेदारी रामलक्ष्मण पर थी। पाँच दिन तक सब कुछ ढीक-ठाक चलता रहा। राम-लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक रात-दिन जगकर आश्रम को देखभाल की। अनुष्ठान के अंतिम दिन अचानक आवाजों से आसमान गूंज उठा। सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। मारीच इस बात से भी क्रोधित था कि राम-लक्ष्मण ने उसकी माँ को मारा था। वे दोनों राक्षस ताड़का के पुत्र थे। राम ने राक्षसों को देखते ही मारीच पर बाण चलाया। वह बाण लगते ही मूर्छित हो गया। वह बहुत दूर जाकर गिरा, पर मरा नहीं। होश आने तक वह दक्षिण दिशा को भागा। सुबाहु बाण लगते ही मर गया। सुबाहु के मरते ही राक्षस सेना में भगदड़ मच गई। महर्षि विश्वामित्र का अनुष्ठान संपन्न हो गया। इसके बाद जब राम ने अपने लिए आज्ञा पूछी तब विश्वामित्र ने कहा कि हम यहाँ से मिथिला जाएँगे। दूसरे दिन विश्वामित्र राम-लक्ष्मण के साथ महाराज जनक के यहाँ पहुँचे। राजा जनक ने महल से बाहर आकर विश्वामित्र का स्वागत किया। राजकुमारों को देख विदेहराज चकित रह गए। महर्षि ने उन्हें बताया कि ये राजकुमार महाराज दशरथ के पुत्र हैं। अगले दिन ऋषि-मुनि और राजकुमार यज्ञशाला में उपस्थित हुए। शिव धनुष को विदेहराज की आज्ञा से यज्ञशाला में लाया गया। शिव धनुष विशाल था। वह लोहे की पेटी में रखा हुआ था। पेरी में आठ पहिए लगे थे। धनुष को खींचकर यज्ञशाला में लाया गया। राजा जनक ने बताया कि मैंने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो यह धनुष उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर छोड़ देगा। उसी के साथ पुत्री सीता का विवाह होगा। शिव के इस धनुष को अनेक राजकुमारों ने तोड़ने की कोशिश की, किंतु विफल रहे। ‘यह देखकर राजा जनक पलभर के लिए उदास हो गए। अंत में विश्वामित्र ने राम को संकेत किया। राम ने सिर झुकाकर गुरु की आज्ञा स्वीकार की और विशाल धनुष को सहज ही उठा लिया। विदेहराज यह देख चकित हो गए। राम ने आसानी से धनुष झुकाया और प्रत्यंचा खींची। बच्चों के खिलौने की तरह उन्होंने शिव के धनुष को तोड़ डाला। महाराज जनक की खुशी का ठिकाना न था। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हई और सीता के लिए योग्य वर मिल गया। महर्षि विश्वामित्र से अनुमति लेकर राजा जनक ने महाराज दशरथ के पास बारात लेकर आने का निमंत्रण भेजा। नगर में इस खबर से काफ़ी धूम मच गई। महाराज जनक का संदेश मिलते ही अयोध्या में खुशियाँ छा गईं। पाँच दिनों में बारात मिथिला पहुँची। जनकपुरी जगमग कर रही थी। चारों तरफ नगरी को दुल्हन की तरह सजाया गया था। नगर में फूलों की चादर बिछी हुई थी। विवाह से ठीक पहले राजा जनक ने दशरथ से कहा- ‘राजन। राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी करके बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं मांडवी और श्रुतकीर्ति। कृपया उन्हें भरत और शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें। ‘महाराज दशरथ ने राजा जनक के इस प्रस्ताव को अविलंब स्वीकार कर लिया। विवाह संपन्न हुआ। बारात बहुओं को लेकर अयोध्या लौट आई। रानियों ने पुत्र बधुओं की आरती उतारी। यह आनंद उत्सव कई दिनों तक चलता रहा। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 7 पृष्ठ संख्या 9 पृष्ठ संख्या 10 पृष्ठ संख्या 11 पृष्ठ संख्या 13 Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 1 अवधपुरी में रामThese NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 1 अवधपुरी में राम are prepared by our highly skilled subject experts. Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 1 Question Answers Summary अवधपुरी में रामBal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 1 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. विश्वामित्र ने दशरथ से कहा कि मैं केवल कुछ दिनों के लिए राम को अपने साथ ले जाना चाहता हूँ। यज्ञ दस दिन में पूरा हो जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मैं स्वयं राक्षसों को मार सकता हूँ पर मैंने संन्यास ले लिया है। यदि आप राम को नहीं देंगे तो मैं खाली हाथ लौट जाऊँगा। प्रश्न 3. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1. अयोध्या किस राज्य की राजधानी थी? लघुउत्तरीय प्रश्न 1.
अयोध्या नगरी की विशेषताओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 1 Summary यह कथा अवध की है। प्राचीन काल की बात है अवध में सरयू नदी के किनारे बसा बहुत ही सुंदर अयोध्या नगर था। वहाँ का राजमहल तो भव्य था ही, अन्य इमारतें भी आलीशान थीं। सड़कें चौड़ी थीं। बाग-बगीचे अत्यंत हरे-भरे थे। चारों तरफ खेतों में हरियाली नज़र आती थी। पानी से भरे सरोवर, हवा में हिलती फसलें देखने में मनमोहक लगती थीं। पूरा नगर संपन्न एवं विलक्षण था। अयोध्या कोसल राज्य की राजधानी थी। वहाँ राजा दशरथ राज करते थे। वे कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे। लोग मर्यादाओं का पालन करते थे। उनके राज्य में सभी खुश थे किंतु राजा के मन में एक दुख था। उनकी तीन-तीन रानियों के होते हुए भी उनके यहाँ कोई संतान न थी। इस कारण राजा दशरथ चिंतित रहते थे। राजा दशरथ की चिंता बढ़ती जा रही थी। राजा दशरथ ने अपनी चिंता से वशिष्ठ मुनि को अवगत कराया। महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को सलाह दी-“आप पुत्रेष्ठि यज्ञ करें, महाराज। आपकी इच्छा पूरी होगी।” ऋष्यशृंग की देख-रेख में पूरी तैयारी के साथ सरयू नदी के किनारे यज्ञशाला बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया। इस यज्ञ में अनेक राजा आमंत्रित थे। अनेक ऋषि-मुनि भी पधारे। सभी ने एक-एक आहुति डाली। अंतिम आहुति राजा की थी। यज्ञ पूरा हुआ अग्निदेव ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद तीनों रानियाँ पुत्रवती हुईं। चैत्र मास की नवमी के दिन महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। रानी सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को तथा कैकेयी ने भरत को जन्म दिया। राजमहल में खुशियाँ छा गईं। नगर में एक बड़े समारोह का आयोजन किया गया। चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। वे बड़े सुंदर थे। बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा-दीक्षा के लिए गुरु के पास भेजा गया। चारों राजकुमार कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने शस्त्र विद्या तथा अन्य सभी प्रकार की विद्याओं में कुशलता प्राप्त की। चारों भाइयों में राम सर्वोपरि थे। उनमें विवेक, शालीनता एवं न्यायप्रियता के गुण थे। राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े होने लगे। वे विवाह के योग्य हो गए। राजा दशरथ उनके लिए सुयोग्य बधुएँ चाहते थे। राजा दशरथ सोच ही रहे थे कि एक दिन अयोध्या के राजमहल में विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र कभी स्वयं राजा थे किंतु अपना राजपाट छोड़कर संन्यास ग्रहण कर जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे। उनके आश्रम का नाम था-सिद्धाश्रम। महल में उनका सत्कार किया गया। विश्वामित्र को दरबार में ऊँचा स्थान प्रदान किया गया। राजा दशरथ ने उनसे पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? महर्षि विश्वामित्र ने कहा-“मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। दो राक्षस उसमें विघ्न डाल रहे हैं। आपके बड़े पुत्र राम ही उन राक्षसों को मार सकते हैं। आप उसे मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो सके।” यह सुनकर राजा दशरथ चिंता में पड़ गए और बेहोश होकर गिर पड़े। विश्वामित्र राजा के मन की बात जानकर काफ़ी नाराज़ हो गए। राजा दशरथ ने कहा कि आप चाहें तो मेरी सारी सेना ले जाएँ। मैं खुद आपके साथ चलकर राक्षसों से युद्ध करूँगा। विश्वामित्र ने राजा दशरथ की दुविधा को समझ कर कहा कि मैं राम को केवल कुछ दिनों के लिए ही माँग रहा हूँ। यज्ञ दस दिनों में पूरा हो जाएगा। इस पर भी राजा दशरथ पुत्र वियोग की आशंका से काँप उठे, पर महर्षि वशिष्ठ शांत थे। महर्षि विश्वामित्र का क्रोध बढ़ता चला जा रहा था। वे बोले-‘आप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं राजन। वचन देकर पीछे हट रहे हैं। यह वर्ताव कुल के विनाश का सूचक है।’ अगर आप राम को मेरे साथ नहीं जाने देंगे तो मैं खाली हाथ लौट जाऊँगा। राजा दशरथ यही कहते रहे कि मैं राम के बिना नहीं रह सकता। बात बिगड़ती देखकर मुनि वशिष्ठ आगे आए। उन्होंने राजा दशरथ को समझाया। महर्षि विश्वामित्र के साथ रहने पर राजकुमार राम को होने वाले लाभ के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आप राम को विश्वामित्र के साथ जाने दें। महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। उन्हें अनेक गुप्त विद्याओं की जानकारी है। राम उनसे अनेक नई विद्याएँ सीख सकेंगे। अंत में राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ की बात को दुखी मन से स्वीकार कर लिया, लेकिन वे राम को अकेले. नहीं भेजना चाहते थे। अत: लक्ष्मण को भी राम के साथ भेज दिया। राम-लक्ष्मण को दरबार में बुलाया गया। इसके अलावा वन जाने की सूचना माता कौशल्या को भी दी गई। दोनों भाइयों ने खुशी-खुशी निर्णय स्वीकार किया। शंखध्वनि हुई और नगाड़े बजे। महाराज दशरथ ने भावुक होकर दोनों पुत्रों का मस्तक सूंघकर उन्हें महर्षि को सौंप दिया। दोनों राजकुमार अपने पीठ पर तुणीर बाँधे कमर में तलवार लटकाए महर्षि के साथ चल पड़े। विश्वामित्र आगे-आगे चल रहे थे। राम-लक्ष्मण उनके पीछे। लक्ष्मण, राम से दो कदम पीछे चल रहे थे। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 3 पृष्ठ संख्या 4 पृष्ठ संख्या 5 पृष्ठ संख्या 6 Law of Mass ActionFind free online Chemistry Topics covering a broad range of concepts from research institutes around the world. Law of Mass ActionIn 1864 two Norwegian chemists namely Maximilian Guldberg and Peter Waage formulated the law of mass action, based on the experimental studies of many reversible reactions. The law states that, “At any instant, the rate of a chemical reaction at a given temperature is directly proportional to the product of the active masses of the reactants at that instant”. Rate α [Reactant]x where, x is the stoichiometric coefficient of the reactant and the square bracket represents the active mass (concentration) of the reactants. Active mass = ((frac{n}{V})) mol dm-3(or) mol L-1 where n is the number of moles and V is the volume of the container (dm3 or L) Equilibrium constants (Kp and Kc): Let us consider a reversible reaction, xA + yB ⇄ lC + mD where, A and B are the reactants, C and D are the products and x, y, l and m are the stoichiometric coeffients of A, B, C and D, respectively. Applying the law of mass action, the rate of the forward reaction, rfα[A]x[B]y (or) rf = kf[A]x[B]y Similarly, the rate of the backward reaction, rbα[C]l[D]m where kf and kb are proportionality constants At equilibrium, Rate of forward reaction (rf) where, Kc is the equilibrium constant in terms of concentration (active mass). At a given temperature, the ratio of the product of active masses of reaction products raised to the respective stoichiometric coefficients in the balanced chemical equation to that of the reactants is a constant, known as equilibrium constant. Later when we study chemical kinetics we will learn that this is only approximately true. If the reactants and products of the above reaction are in gas phase, then the equilibrium constant can be written in terms of partial pressures as indicated below, Where, pA, pB, pC, and pD are the partial pressures of the gas A, B, C and D, respectively. Relation Between Kp and Kc Let us consider the general reaction in which all reactants and products are ideal gases. xA + yB ⇄ lC + mD The equilibrium constant, Kc is and Kp is, The ideal gas equation is PV = nRT Since Active mass = molar concentration = n/V Based on the above expression the partial pressure of the reactants and products can be expressed as, PxA = [A]x(RT)x On substitution in Eqn.2, By comparing equation (1) and (4), we get Kp = kc(RT)∆ng ………… (5) where, Δng is the difference between the sum of number of moles of products and the sum of number of moles of reactants in the gas phase. The following relations become immediately obvious. When
Δng = 0 Examples: 1. H2(g) + I2(g) ⇄ 2HI(g) When Δng = +ve Examples: 1. 2NH3(g) ⇄ N2(g) + 3H2(g) When Δng = – ve Examples: 1. 2H2(g) + O2(g) ⇄ 2H2O(g) Relation Between Equilibrium Constants for Some Reversible Reactions Equilibrium Constants for Heterogeneous Equilibrium Consider the following heterogeneous equilibrium. CaCO3(s) ⇄ CaO(s) + CO2(g) The equilibrium constant for the above reaction can be written as A pure solid always has the same concentration at a given temperature, as it does not expand to fill its container. i.e. it has same number of moles L-1 of its volume. Therefore, the concentration of a pure solid is a constant. The above expression can be modified as follows. KC = [CO2] The equilibrium constant for the above reaction depends only the concentration of carbon dioxide and not the calcium carbonate or calcium oxide. Similarly, the active mass (concentration) of the pure liquid does not change at a given temperature. Consequently, the concentration terms of pure liquids can also be excluded from the expression of the equilibrium constant. For example, CO2(g) + H2O(l) ⇄ H+(aq) +
HCO–3(aq) Example Write the KP and Kc for the following reactions 1. 2SO2(g) + O2(g) ⇄ 2SO3(g) NCERT Solutions for Class 10 Science Free PDF Download | Chapter Wise NCERT Science Solutions for Grade 10NCERT Solutions for Class 10 Science are the part of NCERT Solutions for Class 10. Here we have given CBSE Class 10 Science NCERT Solutions. All Chapters NCERT Solutions for Class 10 Science are available over here in PDF format for free of cost. Students who are searching for the best study material to get complete knowledge about the science subject can grab this chance. In this NCERT Solutions class 10 science, candidates can get all chapters important questions and answers in a detailed explanation for a better understanding of the subject. Once you revise this whole NCERT Science Solutions Pdf, then you can answer any type of science questions confidently at the time of final exams. So, download NCERT Grade 10 Science Solutions for all chapters in PDF format & prepare thoroughly for the examinations. Free PDF Download Class 10 Science NCERT Solutions for all ChaptersPreparing with Chapterwise NCERT Solutions for Class 10 Science is the smartest way to score maximum marks in the examinations. It can help you identify your weak areas and level of preparation. So that you can plan your preparation accordingly and give your best performance in the exams. From here, you can download NCERT Class 10 Science Solutions in PDF Format through the available direct links. You can refer to the class 10 science NCERT Solutions offline and make use of these answers to clarify all your queries. Access the below PDF links of Chapterwise NCERT Solutions Class 10 Science & kickstart your preparation. Chapter 1 Chemical Reactions and Equations
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Practical Based Questions for Class 10 Science Chemistry Chapter 6 Life Processes
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Chapter 8 How do Organisms Reproduce
Chapter 9 Heredity and Evolution
Chapter 10 Light Reflection and Refraction
Chapter 11 Human Eye and Colourful World
Chapter 12 Electricity
Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current
Chapter 14 Sources of Energy
Chapter 15 Our Environment
Chapter 16 Management of Natural Resources
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हनुमान को पहले अयोध्या क्यों भेजा गया?आपके शहर से (अयोध्या)
राम ने हनुमान को अपने पहुँचने से पहले अयोध्या क्यों भेजा नंदीग्राम पहुँचने से पहले राम ने क्या किया?उत्तर: राम ने हनुमान को सबसे पहले अयोध्या भेजा ताकि वे सबसे पहले ये जान सके कि भरत को उनके आने की ख़ुशी है या नहीं। इसीलिए वे सीधा अयोध्या नहीं जाना चाहते थे। उनके मन में यह भी संदेह था कि कहीं भरत को सत्ता का मोह तो नहीं आ गया है।
अयोध्या के नगरवासी क्यों प्रसन्न थे?प्रश्न-5 अयोध्या के नगरवासी क्यों प्रसन्न थे? उत्तर - अयोध्या के नगरवासी प्रसन्न थे क्योंकि उन्हें उनके राम वापस मिल गए थे। प्रश्न-6 राम का राजतिलक किसने किया?
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