अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 12 राम का राज्याभिषेक

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 12 Question Answers Summary राम का राज्याभिषेक

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 12

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विभीषण की क्या इच्छा थी?
उत्तर:
विभीषण की इच्छा थी कि राम कुछ दिन लंका में रुक जाते।

प्रश्न 2.
राम को अयोध्या वापस लौटने की जल्दी क्यों थी?
उत्तर:
क्योंकि भरत ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि चौदह वर्ष पूरे होते ही यदि राम नहीं लौटे तो वे प्राण दे देंगे। यही कारण था कि राम को वापस लौटने की जल्दी थी।

प्रश्न 3.
विभीषण ने राम से क्या प्रार्थना की?
उत्तर:
विभीषण ने राम से प्रार्थना की कि उन्हें अपने साथ ले जाएँ ताकि वे उनका राज्याभिषेक देख सकें।

प्रश्न 4.
ऋषि भारद्वाज ने राम से क्या अनुरोध किया?
उत्तर:
ऋषि भारद्वाज ने राम से अनुरोध किया कि वे आश्रम में ही रात बिता लें।

प्रश्न 5.
लंका से अयोध्या तक सभी कैसे पहुँचे?
उत्तर:
लंका से अयोध्या तक सभी विभीषण के पुष्पक विमान से पहुँचे।

प्रश्न 6.
सीता के आग्रह पर बीच में विमान कहाँ उतरा?
उत्तर:
सीता के आग्रह पर विमान किष्किंधा में उतरा।

प्रश्न 7.
राम ने हनुमान को अपने पहुंचने से पहले अयोध्या क्यों भेजा?
उत्तर:
राम ने हनुमान को अपने पहुँचने से पहले अयोध्या इसलिए भेजा ताकि उन्हें भरत की नीयत का पता चल जाए कि राम के आने से वे प्रसन्न हैं या नहीं।

प्रश्न 8.
गंगा-यमुना के संगम पर किसका आश्रम था?
उत्तर:
गंगा-यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज का आश्रम था।

प्रश्न 9.
राम के आगमन के समाचार पर भरत ने क्या प्रतिक्रिया प्रकट की?
उत्तर:
राम के आगमन के समाचार से भरत की खुशी का ठिकाना न रहा। वे बार-बार हनुमान को धन्यवाद देने लगे।

प्रश्न 10.
नंदीग्राम पहुँचने से पहले राम ने क्या किया?
उत्तर:
नंदीग्राम पहुँचने से पहले राम ने पुष्पक विमान को कुबेर के पास भिजवा दिया क्योंकि यह विमान कुबेर का ही था। जिसे रावण ने बलपूर्वक छीन लिया था।

प्रश्न 11.
राम का राज्याभिषेक किसने किया?
उत्तर:
राम का राज्याभिषेक मुनि वशिष्ठ ने किया।

प्रश्न 12.
राज्याभिषेक के अवसर पर राम ने सीता को क्या उपहार दिया?
उत्तर:
राम ने सीता को एक बहुमूल्य हार दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विभीषण राम को लंका में रुकने का आग्रह क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिनों के लिए लंका में रुक जाएँ, और थोड़ा विश्राम कर लें। उनकी थकान भी उतर जाएगी और वह नगर का भ्रमण भी कर लेंगे। इसके अलावा विभीषण की यह भी इच्छा थी कि राम के सान्निध्य से उन्हें उनसे रीति-नीति सीखने का मौका मिलेगा।

प्रश्न 2.
विभीषण ने कहाँ जाने का आग्रह राम से किया?
उत्तर:
विभीषण राम के सान्निध्य में रहना चाहते थे। उन्होंने राम से यह अनुरोध किया कि वे उनके राज्याभिषेक में शामिल होना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने राम के साथ अयोध्या चलने की अनुमति माँगी। राम ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया। इसके लिए यात्रा व्यवस्था विभीषण पर छोड़ी गई। विभीषण का पुष्पक विमान राम-लक्ष्मण और सीता के साथ सुग्रीव, हनुमान तथा विभीषण को अयोध्या ले जाने के लिए तैयार था।

प्रश्न 3.
राम ने लंका में रुकने के लिए विभीषण का आग्रह स्वीकार क्यों नहीं किया?
उत्तर:
विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिनों के लिए लंका में रुक जाएँ, पर राम ने इसे स्वीकार करने में असमर्थता प्रकट की। राम के वनवास के चौदह वर्ष पूरे हो चुके थे। भरत द्वारा प्रतीक्षा किए जाने के कारण वे तुरंत लौट जाना चाहते थे। चौदह वर्ष की अवधि से अधिक देर होने पर भरत अपने प्राण दे सकते थे। इसलिए राम ने लंका में रुकने का आग्रह अस्वीकार कर दिया।

प्रश्न 4.
नंदीग्राम में राम का स्वागत कैसे हुआ?
उत्तर:
नंदीग्राम में राम का भव्य स्वागत हुआ। आकाश राम की जयघोष से गूंज उठा। राम ने विमान से उतर कर भरत को गले लगाया और माताओं को प्रणाम किया। भरत आश्रम के अंदर से राम की खड़ाऊँ ले आए तथा उन्होंने खड़ाऊँ को स्वयं राम के पैरों में पहनाया। चारों तरफ खुशी का वातावरण था तथा सभी के आँखों में खुशी के आँसू थे।

प्रश्न 5.
हनुमान और भरत के भेंट का वर्णन करें।
उत्तर:
हनुमान वायु वेग से उड़कर नंदीग्राम पहुँचे। वहाँ उन्होंने भरत को बताया कि राम का वनवास पूरा हो गया है। वे प्रयाग पहुँच चुके हैं। वे उन्हीं की आज्ञा से यहाँ आपके पास पहुंचे हैं। यह सुनकर भरत की खुशी का ठिकाना न रहा। उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे। इस शुभ सूचना के लिए वह हनुमान को धन्यवाद दे रहे थे। उनके चेहरे पर केवल प्रसन्नता का भाव था। हनुमान उनसे विदा लेकर राम के पास लौट आए।

प्रश्न 6.
राम के राज्याभिषेक का वर्णन करें।
उत्तर:
राम के राज्याभिषेक पर पूरी अयोध्या नगरी दीपमालाओं से जगमगा रही थी। पूरा नगर सजाया गया था। फूलों की सुगंध चारों तरफ फैल रही थी। वाद्ययंत्रों की झंकार सुनाई दे रही थी। राम का राजतिलक मुनि वशिष्ठ ने किया। माताओं ने आरती उतारी, मंगलाचरण गाया गया। लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठे थे। इस प्रकार चारों ओर खुशी का वातावरण था। राम ने सीता को एक बहुमूल्य हार दिया। सीता ने अपने गले का हार उतारकर सेवक हनुमान को भेंट कर दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लंका से अयोध्या जाते हुए राम ने मार्ग में सीता को कौन-कौन से स्थानों का परिचय कराया?
उत्तर:
लंका से अयोध्या जाते समय मार्ग में पहले युद्धभूमि पड़ती थी। राम, सीता, लक्ष्मण, सुग्रीव हनुमान तथा विभीषण को लेकर विमान लंका से चला। पहले रणभूमि दिखी, फिर नल और नील द्वारा बनाया गया सेतुबंध। फिर पुष्पक विमान किष्किंधा में उतरा। उसके आगे राम ने सीता को ऋष्यमूक पर्वत और फिर पंपा सरोवर से परिचय कराया। सीता को गोदावरी नदी भी दिखाई। राम ने बताया कि इसी नदी के तट पर पंचवटी थी जहाँ उनकी पर्णकुटी थी। वह पर्णकुटी अभी भी बनी हुई थी। इसके बाद राम ने सीता को गंगा-यमुना के संगम पर बने ऋषि भारद्वाज के आश्रम का परिचय कराया, जहाँ पुष्पक विमान उतरा। यहाँ सबने रात बिताई। अगले सुबह प्रयाग से श्रृंगवेरपुर होते हुए राम का विमान अयोध्या पहुँच गया।

प्रश्न 2.
राम के आगमन के बाद अयोध्या की घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
सजी-धजी अयोध्या नगरी राम के आगमन के लिए बेचैन थी। माताएँ एवं मुनिगण खुश थे। पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी। नगरवासी राम को वापस देखकर प्रसन्न थे। भरत अयोध्या का राज्य राम को नंदीग्राम में ही लौटा चुके थे। राजमहल में मुनि वशिष्ट ने कहा कि अगले दिन राज्याभिषेक किया जाएगा। इसकी तैयारी शत्रुघ्न पहले ही कर चुके थे। अगले दिन राम का राज तिलक हुआ। राम और सीता रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे। राजतिलक मुनि वशिष्ट ने किया। माताओं ने आरती उतारी, मंगला चरण गाया गया। राम ने सीता को एक बहुमूल्य हार दिया। सीता ने हनुमान की भक्ति तथा पराक्रम के लिए यह हार उन्हें भेंट कर दिया। राम राज्य का कार्यकाल लंबे समय के लिए हुआ। इनके काल में प्रजा काफ़ी खुश थी।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
युद्ध से बचने के लिए रावण को किन-किन लोगों ने क्या-क्या समझाया? अगर रावण किसी की सलाह मान लेता तो क्या होता?
उत्तर:
युद्ध से बचने के लिए रावण को हनुमान, विभीषण तथा अंगद ने सलाह दी। उन्होंने समझाया कि सीता को सम्मानपूर्वक वापस कर दो। इसी में सभी का कल्याण है। नहीं तो सभी का विनाश निश्चित हो जाएगा लेकिन रावण ने किसी की बात नहीं मानी। रावण यदि इन तीनों में से किसी एक की बात मान लेता युद्ध न होता।

प्रश्न 2.
अपने शहर या नगर के किसी समारोह का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. विभीषण की क्या इच्छा थी?
2. विभीषण राम को कुछ दिन लंका में क्यों रोकना चाहते थे?
3. राम तत्काल अयोध्या क्यों जाना चाहते थे?
4. विभीषण ने राम से क्या प्रार्थना की?
5. गंगा-यमुना के संगम पर किसका आश्रम था?
6. भरत आश्रम से क्या उठा लाए?
7. हनुमान और भरत की भेंट का वर्णन करें।
8. नंदीग्राम में राम का स्वागत किस प्रकार हुआ?
9. हनुमान को अयोध्या भेजते हुए राम ने उनसे क्या कहा?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. राम के राज्याभिषेक का वर्णन कीजिए।
2. लंका से अयोध्या जाते हुए राम ने सीता को कौन-कौन से स्थानों से परिचित कराया?
3. राम के आगमन के बाद अयोध्या की घटनाओं का वर्णन करें।

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 12 Summary

लंका विजय के बाद विभीषण चाहते थे कि राम कुछ दिन लंका में आराम करें। इससे उन्हें राम का सान्निध्य भी मिल जाएगा और रीति-नीति सीखने का मौका भी। वनवास के अब चौदह वर्ष पूरे हो गए थे। उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। वे तत्काल अयोध्या लौट जाना चाहते थे। उन्होंने कहा भरत मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। अगर जाने में देर हो गई तो वे प्राण त्याग देंगे। वे प्रतिज्ञा से बँधे हैं। अब विभीषण ने प्रस्ताव किया कि वे राज्याभिषेक में शामिल होना चाहते हैं। राम ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। राम ने सुग्रीव को भी आमंत्रित किया। विभीषण का पुष्पक विमान उन्हें ले जाने को तैयार था। विमान लंका से अयोध्या नगरी की ओर चला। राम-सीता को मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थान बताते जा रहे थे। सीता के आग्रह पर विमान किष्किधा में उतरा, सुग्रीव की रानियों तारा और रूपा को लाने के लिए। उसके आगे ऋष्यमूक पर्वत पड़ा। इस पर्वत पर पर्णकुटी अब भी बनी हुई थी। जहाँ वे रहते थे। आगे गंगा-यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज के आश्रम पर विमान उतरा। सबने रात वहीं बिताई। यहीं से राम ने अपने जाने की सूचना देने के लिए हनुमान को अयोध्या भेजा। वे हनुमान द्वारा अयोध्या का समाचार जानना चाहते थे। उनका सोचना था कि यदि उनके अयोध्या लौटने पर भरत को प्रसन्नता नहीं होगी तो वे अयोध्या नहीं जाएँगे। यदि भरत मेरे अयोध्या जाने से खुश होंगे तभी मैं अयोध्या जाऊँगा।

हनुमान वायु-वेग से उड़ चले। हनुमान से राम के आगमन की सूचना पाकर भरत की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। वे यह शुभ समाचार देने के लिए बार-बार उनका धन्यवाद दे रहे थे। हनुमान उनसे विदा लेकर आश्रम में राम के पास लौट आए। अगली सुबह विमान प्रयाग से शृंगवेरपुर होते हुए सरयू नदी के ऊपर पहुँच गया। उधर अयोध्या में राम के आगमन में पूरी तैयारियाँ होने लगीं। शत्रुघ्न राज्याभिषेक की व्यवस्था में जुट गए। महल से तीनों रानियाँ नंदीग्राम के लिए चल पड़ीं। राम का नंदीग्राम में भव्य स्वागत हुआ। राम ने विमान से उतरकर भरत को गले लगाया और माताओं को प्रणाम किया। भरत ने राम की खड़ाऊँ लाकर अपने हाथों से उन्हें पहनाईं। राम-लक्ष्मण ने नंदीग्राम में तपस्वी बाना उतार दिया। दोनों को राजसी वस्त्र पहनाए गए। जन-समूह उनकी जयजयकार करते हुए अयोध्या की ओर चल दिया। पुष्पक विमान कुबेर का था जिसे रावण ने उनसे बलात् छीन लिया था। अब उस विमान को कुबेर के पास भेज दिया गया।

अयोध्या में सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण था। सजी-धजी अयोध्या नगरी राम दर्शन के लिए बेचैन थी। माताएँ एवं मुनिगण खुश थे। पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी। अगले दिन मुनि वशिष्ट ने राम का राजतिलक किया। राम-सीता सोने के सिंहासन पर बैठे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न उनके पास खड़े थे। हनुमान नीचे बैठे। माताओं ने आरती उतारी। शुभ-गीत गाए गए। सीता ने अपने गले का हार उतारकर हनुमान को उपहार में दिया।

कुछ दिनों बाद विभीषण लंका लौट गए। सुग्रीव किष्किंधा चले गए। ऋषि-मुनि अपने-अपने आश्रम लौट गए। हनुमान राम के दरबार में ही रह गए। राम ने लंबे समय तक अयोध्या पर शासन किया। राम न्यायप्रिय थे। उनका राज्य रामराज्य था।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 80
विश्राम – आराम। सान्निध्य – निकटता। तत्काल – तुरंत। प्रतीक्षा – इंतजार। विलंब – देरी। आग्रह – अनुरोध, प्रार्थना। कोषागार – खजाना। अस्वीकार – इनकार।

पृष्ठ संख्या 81
पर्वत – पहाड़। अद्भुत – विचित्र। आगमन – आने की खबर। पूर्व – पहले। संशय – संदेह। अवधि – समय। सत्ता – गद्दी। आपत्ति – विरोध। वेग – गति। मार्ग – रास्ता।

पृष्ठ संख्या 83
भव्य स्वागत – शानदार स्वागत। जयघोष – नारा। व्यवस्था – इंतजाम। बलात – ज़बरदस्ती, बलपूर्वक। विरत – अलग। उपहार – भेंट।

पृष्ठ संख्या 84
अतिथि – मेहमान। प्रयाण – प्रस्थान, जाना। भेदभाव – अंतर। स्मृति – याद। पराक्रम – ताकत।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 11 लंका विजय

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 11 Question Answers Summary लंका विजय

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 11

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम की सेना कहाँ से रवाना हुई ?
उत्तर:
राम की सेना किष्किंधा से रवाना हुई।

प्रश्न 2.
राम ने अंगद को लंका क्यों भेजा?
उत्तर:
राम ने अंगद को रावण से सुलह समझौता करने के लिए संदेश लेकर भेजा।

प्रश्न 3.
सुग्रीव ने वानरों से क्या कहा?
उत्तर:
सुग्रीव ने वानरों से कहा कि युद्ध भयानक होगा, इसलिए केवल वही सैनिक युद्ध में जाएँगे जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हों।

प्रश्न 4.
विभीषण ने लक्ष्मण की दुविधा को कैसे सुलझाया?
उत्तर:
विभीषण ने लक्ष्मण की दुविधा को मेघनाद के महल का गुप्त दरवाज़ा दिखाकर सुलझाया।

प्रश्न 5.
विभीषण ने रावण को क्या समझाया?
उत्तर:
विभीषण ने रावण को समझाया कि कृपया आप सीता को लौटा दें। इसी में सबकी भलाई है।

प्रश्न 6.
समुद्र ने राम को क्या सलाह दी?
उत्तर:
समुद्र ने राम को सलाह दी कि उनकी सेना में एक नल नाम का वानर है जो पुल बना सकता है। पुल बनाकर आप एवं आपकी सेना लंका में प्रवेश कर सकते हैं।

प्रश्न 7.
राम ने अंगद को लंका क्यों भेजा?
उत्तर:
राम ने रावण से सुलह की अंतिम कोशिश करने के लिए अंगद को लंका भेजा।

प्रश्न 8.
रावण ने विभीषण के साथ क्या व्यवहार किया?
उत्तर:
रावण ने विभीषण की बात अनसुनी कर दी तथा उसे कक्ष से निकाल दिया।

प्रश्न 9.
राम ने विभीषण के साथ कैसे व्यवहार किया?
उत्तर:
राम ने विभीषण के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया।

प्रश्न 10.
मेघनाद को इंद्रजीत क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
मेघनाद को इंद्रजीत कहा जाता है क्योंकि उसने एकबार इंद्र को पराजित किया था, इसलिए उसे इंद्रजीत कहा जाता है।

प्रश्न 11.
लक्ष्मण का उपचार किसने किया? संजीवनी बूटी कौन लाए?
उत्तर:
लक्ष्मण का उपचार वैद्य सुषेण ने किया तथा हनुमान जी संजीवनी बूटी लाए।

प्रश्न 12.
रावण की सेना के चार महाबलियों के नाम लिखो।
उत्तर:
(i) धूम्राक्ष (ii) वज्रद्रष्ट (iii) अकंपन (iv) प्रहस्त

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रावण को क्या समझाने का प्रयत्न किया और क्यों? रावण पर इसका क्या असर हुआ?
उत्तर:
विभीषण ने रावण को यह समझाने का प्रयास किया कि आप सीता को वापस लौटा दें। राम से युद्ध न करना ही ठीक हैं। इसी में सबकी भलाई है। सीता के मिल जाने पर राम लंका पर आक्रमण नहीं करेंगे और लंका विनाश से बच जाएगी। ये महाविनाश के संकेत हैं। विभीषण की बात सुन रावण क्रोध से भड़क उठा। उसने विभीषण से कहा, “तुम भाई नहीं शत्रु हो। मुझे तुम्हारी सहायता की आवश्यकता नहीं है।” यह कहकर रावण ने उसे वहाँ से चले जाने का निर्देश दिया।

प्रश्न 2.
विभीषण लंका से निकलकर कहाँ पहुँचे और वहाँ किससे मिले?
उत्तर:
रावण ने क्रोधित होकर विभीषण को लंका से चले जाने के लिए कहा। विभीषण चार सहायकों के साथ लंका से निकलकर राम के शिविर में जा पहुँचे। वह सुग्रीव के माध्यम से राम से मिले। राम ने विभीषण को अपना शरणागत एवं मित्र मानकर उनका स्वागत किया।

प्रश्न 3.
राम की सेना के सामने कौन-सी एक बड़ी चुनौती थी? उस चुनौती का कैसे सामना किया?
उत्तर:
राम की सेना को लंका पर आक्रमण करने के लिए समुद्र को पार करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। राम तीन दिन तक समुद्र से विनती करते रहे कि वह रास्ता दे दे, लेकिन वह नहीं माना। इस कारण राम क्रोधित हो गए। उनके क्रोध को शांत करने के लिए समुद्र ने उन्हें एक उपाय बताया कि उन्हीं की सेना का नल नामक एक वानर पुल बना सकता है। नल ने अगले दिन पुल बनाना आरंभ कर दिया। पाँच दिन में पुल बनकर तैयार हो गया। सबसे पहले विभीषण और उनके पीछे वानर सेना उस पुल से समुद्र पार कर गए।

प्रश्न 4.
कुंभकर्ण कौन था? उसने युद्धभूमि में क्या किया? उसका अंत किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
कुंभकर्ण रावण का भाई था। युद्धभूमि में कुंभकर्ण को देखते ही वानर सेना में भगदड़ मच गई। वानरी सेना उसका मुकाबला नहीं कर पाई। उसने हनुमान और अंगद को भी घायल कर दिया। यह देख राम और लक्ष्मण ने बाणों की वर्षा कर कुंभकर्ण को मार गिराया। कुंभकर्ण सदा के लिए धरती पर सो गया।

प्रश्न 5.
रावण ने कुंभकर्ण को क्यों जगाया?
उत्तर:
रावण को जब अपनी सेना के अनेक महाबलियों के मारे जाने की सूचना मिली तो उसने स्वयं सेना की कमान संभाल ली। राम के बाणों से उसका मुकुट धरती पर जा गिरा। इससे वह लज्जित होकर लौट गया। उसे अब तक राम की शक्ति का भी पता चल गया। इसलिए उसने कुंभकर्ण को जगाया।

प्रश्न 6.
लक्ष्मण का उपचार किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
घायल लक्ष्मण को उठाकर हनुमान रणक्षेत्र से दूर ले गए। वैद्य सुषेण को बुलाया गया। हनुमान को संजीवनी बूटी लाने के लिए भेजा गया। बूटी आने पर इलाज शुरू हुआ। धीरे-धीरे रक्त का रिसाव बंद हो गया। घाव भर गया। संजीवनी का प्रभाव चमत्कारी था।

प्रश्न 7.
युद्धभूमि में लक्ष्मण कैसे अचेत हुए तथा उनका इलाज कैसे किया गया?
उत्तर:
लक्ष्मण और रावण का भीषण युद्ध हो रहा था। तभी राम और विभीषण भी वहाँ आ गए। अपने शत्रु राम की सेना के साथ विभीषण को देखकर रावण आग बबूला हो गया। रावण उसे देशद्रोही मानता था। उसने विभीषण के ऊपर निशाना साधा, किंतु लक्ष्मण ने उसका बाण बीच से काट दिया। रावण के दूसरे घातक बाण के सामने लक्ष्मण आ गए और विभीषण को बाण लगने से बचा लिया। बाण लगते ही लक्ष्मण बेहोश हो गए। हनुमान उन्हें रणक्षेत्र से दूर ले गए। हनुमान संजीवनी बूटी लाए। वैद्य सुषेण के सलाह से लक्ष्मण शीघ्र ही ठीक हो गए।

प्रश्न 8.
ऐसी कौन सी घटना घटी जिसे सुनकर रावण असंभव कहते हुए चीख उठा?
उत्तर:
नल के द्वारा पुल बनाने का काम पाँच दिनों में तैयार होने के बाद उस पुल से राम की सेना समुद्र पार कर लंका पहँची। पुल बनने की बात पर रावण काफ़ी आश्चर्यचकित हुआ। समुद्र पर पुल कैसे बन सकता है, इसी बात पर वह असंभव कहते हुए चीख पड़ा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर:
मेघनाद और लक्ष्मण के बीच भीषण युद्ध हुआ। दोनों का निशाना अचूक था। उनके बाण हवा में टकराकर बर्बाद हो जाते। अचानक लक्ष्मण का एक बाण मेघनाद को लगा। वह घायल होकर झुक गया। लक्ष्मण ने उसके ऊपर बाणों की बौछार कर दी। मेघनाद के लिए आगे बढ़ना कठिन हो गया। वह पीछे भागकर महल में चला गया। लक्ष्मण ने कुछ दूर तक उसका पीछा किया, फिर रुक गए। लक्ष्मण को महल के अंदर जाने का रास्ता पता नहीं था। विभीषण उनकी परेशानी को समझ गए। उन्होंने लक्ष्मण को गुप्त रास्ता दिखाया। उसके बाद लक्ष्मण ने महल में प्रवेश कर मेघनाद को मारा।

प्रश्न 2.
राम और रावण के बीच युद्ध का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
राम और रावण के बीच युद्ध भयानक था। शस्त्रों की गति बहुत तेज़ थी। उनसे बहुत तेज़ चिंगारी आ रही थी। हवा थम गई थी और सूरज बादलों के पीछे छिप गया था। दोनों वीर योद्धा बहादुरी के साथ लड़ रहे थे। उनका युद्ध देख अगल-बगल के छोटे-छोटे युद्ध थम गए थे। कोई योद्धा एकसूत भर पीछे हटने को राजी नहीं था। इस बीच रावण के एक बाण से राम के रथ की ध्वजा कटकर गिर पड़ी। राम ने जोर से प्रहार किया। बाण रावण के मस्तक पर लगा। रक्त की धारा बहने लगी। रावण भागकर अपने महल में चला गया। थोड़ी देर बाद राम और रावण में फिर युद्ध शुरू हो गया। राम के बाणों ने रावण के रथ का मुँह मोड़ दिया। यह पराजय का संकेत था। वह हिम्मत हार गया। जब तक वह रथ घुमाता, राम का एक बाण उसके पार निकल गया। उसके हाथों से धनुष छूट गया वह पृथ्वी पर गिर पड़ा और राम के हाथों मारा गया।

प्रश्न 3.
राम की सेना के सामने क्या चुनौती थी? उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
राम की सेना के सामने समुद्र को पार करने की चुनौती थी। समुद्र विशाल था। पहले राम ने हाथ जोड़कर समुद्र से प्रार्थना की कि उसे रास्ता दे दे। तीन दिनों तक वे बैठे रहे। वे समुद्र से रास्ता देने की प्रार्थना करते रहे। पर जब वह नहीं माना, तब राम क्रोध में आ गए। राम के क्रोध को देखकर समुद्र ने उन्हें सलाह दी-“आपकी की सेना में नल वानर है वह पुल बना सकता है। उससे वानर सेना पार कर जाएगी।” नल ने अगले दिन काम की शुरुआत कर दी। पुल बनने लगा। वानर कंकड़, पत्थर, शिलाएँ लाते रहे। नल पुल बनाते रहें। पाँच दिन में पुल तैयार हो गया-समुद्र को दो भागों में बाँटता हुआ। पहले विभीषण पुल के उस पार गए पीछे-पीछे वानर सेना, सेना का अगला शिविर लंका में बना। पुल बनने का समाचार सुनकर रावण आश्चर्यचकित हो गया।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
यह राम कथा वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। तुलसीदास रचित रामचरित मानस के बारे में जानकारी इकट्ठी करो और चार्टपेपर या डिस्प्ले बोर्ड पर लिखकर कक्षा में लगाओ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. हनुमान ने सीता को कैसे विश्वास दिलाया कि वह राम का सेवक है?
2. सीता से विदा लेकर हनुमान ने क्या किया?
3. रावण ने हनुमान को क्या सजा दी?
4. विभीषण लंका से निकलकर कहाँ गए?
5. लक्ष्मण का उपचार किस प्रकार हुआ?
6. मेघनाद को इंद्रजीत क्यों कहा जाता था?
7. विभीषण के समझाने का रावण पर क्या असर हुआ?
8. राम की सेना ने समुद्र कैसे पार किया?
9. युद्ध के मैदान में लक्ष्मण कैसे अचेत हुए?
10. कुंभकर्ण कौन था? उसकी मृत्यु किस प्रकार हुई ?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन करें।
2. राम और रावण के बीच युद्ध का वर्णन करें।
3. राम की सेना के सामने क्या चुनौती थी। उसका समाधान कैसे निकला?
4. राम और रावण की सेना के बीच हुए युद्ध का वर्णन संक्षेप में अपने शब्दों में करें।

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 11 Summary

सुग्रीव ने युद्ध की तैयारियाँ तुरंत आरंभ करने का निर्देश दिया। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना पर विचार-विमर्श किया। योग्यता और उपयोगिता के आधार पर भूमिकाएँ निश्चित कर दी गईं। समुद्र को पार करने के तरीके पर भी विचार हुआ। लंका कूच करने की तैयारियाँ रातभर चलती रहीं। सेना किष्किंधा से दहाड़ती, किलकारियाँ भरती रवाना हुई। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया। युद्ध के नियम और अपनी रक्षा के तरीके भी बताए गए।

सुग्रीव के सेनापति नल सेना का नेतृत्व कर रहे थे। जामवंत और हनुमान सबसे पीछे थे। दिन रात चलकर सेना ने महेंद्र पर्वत पर अपना डेरा डाला। उधर लंका में खलबली मची हुई थी। समुद्र निकट ही था। पर्वत पर सेना का ध्वज लहरा रहे थे। उधर राक्षसों को यह डर सता रहा था कि जिसका दूत लंका में आग लगा सकता है वह स्वयं कितना शक्तिशाली होगा लेकिन रावण इससे अनभिज्ञ था। विभीषण सेना की हताशा से परिचित हो गए थे। वे रावण को वस्तु स्थिति बताने के लिए गए। उन्होंने सीता को लौटा देने की सलाह दिया। विभीषण की बात अनसुनी कर दी। उन्हें अपने कक्ष से निकाल दिया। फिर भी विभीषण रावण को समझाने लगे। रावण क्रुद्ध हो उठा बोला निकल जाओ, तुम मेरे भाई नहीं, शत्रु के शुभचिंतक हो। विभीषण उसी रात अपने चार सहायकों के साथ लंका से निकल गए। दोनों के रास्ते अलग हो गए। विभीषण उसी रात राम के पास जाना चाहते थे। विभीषण को देखकर वानर चिल्लाकर सबको सावधान कर रहे थे। वानर उन्हें सुग्रीव के सामने लाए। विभीषण बोले “मैं लंका के राजा रावण का छोटा भाई हूँ। मैं राम की शरण में आया हूँ, मुझे उनके पास पहुँचा दें।” सुग्रीव राम के पास गए। उनकी बात सुनकर राम ने कहा-“हमें विभीषण को स्वीकार करना चाहिए। विभीषण को आदर सहित अंदर लाइए।” जल्दी ही विभीषण राम के विश्वासपात्र बन गए। विभीषण ने उन्हें रावण की शक्ति से परिचित कराया। राम ने विभीषण को आश्वस्त करते हुए कहा-“विभीषण तुम चिंता मत करो। राक्षस मारे जाएंगे। लंका की गद्दी तुम्हारी होगी।” विभीषण ने लंका की बहुत-सी जानकारी राम को दी। रावण और उसके योद्धाओं की शक्ति के बारे में बताया। अब समस्या थी कि समुद्र को पार कैसे किया जाए। राम ने समुद्र से विनती की कि समुद्र रास्ते दे दे। वह नहीं माना। राम को क्रोध आ गया। राम का क्रोध देखते हुए समुद्र ने राम को सलाह दी कि आपकी सेना में नल पुल बना सकता है। अगले दिन नल ने समुद्र पर पुल बनाने का काम प्रारंभ कर दिया। पाँच दिन में पुल तैयार हो गया। पुल बनने की बात सुनकर रावण क्रोध से चीख उठा। राम की सेना समुद्र पार गई थी। अब दोनों सेनाएँ समुद्र के एक ओर थीं। राम अपनी सेना को चार भागों में बाँट रखा था। राम ने स्वयं पर्वत पर चढ़कर लंका का निरीक्षण किया। राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि सूर्योदय होते ही लंका को घेर लिया जाए। वानर सेना जय-जयकार करती चल पड़ी। इसी बीच राम ने अंगद को अपना दूत बनाकर लंका भेजा। राम ने कहा कि सुलह का अंतिम प्रयास कर लो ताकि रावण सीता लौटा दे और युद्ध टल जाए। रावण उनका संदेश सुनकर क्रोधित हो उठा। अंगद ने सारी स्थिति से राम को परिचित करा दिया। अब युद्ध छिड़ गया। भयानक युद्ध हुआ। शाम होते समय मेघनाद ने रावण सेना को पीछे हटते देखा। मेघनाद की नज़र राम-लक्ष्मण पर थी। वह मायावी राक्षस था। उसके बाण राम-लक्ष्मण को लग गए। दोनों मूच्छित होकर गिर पड़े। मेघनाद दोनों भाइयों को मृत समझकर रावण को सूचना देने के लिए राजमहल की ओर दौड़ा। इधर सभी वानर राम-लक्ष्मण के पास एकत्र हो गए। विभीषण ने दोनों का उपचार किया। उनकी मूर्छा टूटी तो सभी वानर युद्ध के लिए तैयार हो गए और वानरों में खुशी की लहर दौड़ गई।

अगले दिन फिर युद्ध की शुरुआत हुई। रावण की सेना के महाबली एक-एक करके मारे जाने लगे। युद्ध में धूम्राक्ष, वज्रद्रष्ट, अकंपन, प्रहस्त मारे गए। रावण को सारी सूचनाएँ मिल रही थीं। अब उसने स्वयं युद्ध का. नेतृत्व संभाला। पहली मुठभेड़ में वह लक्ष्मण पर भारी पड़ा, परंतु राम के बाणों ने उसका मुकुट ज़मीन पर गिरा दिया। रावण लज्जित हो गया। उसने अपने भाई कुंभकर्ण को जगाया जो छह महीना सोता और छह महीना जागता था। कुंभकर्ण ने अंगद और हनुमान को घायल कर दिया। फिर राम-लक्ष्मण ने यह देखकर बाणों की वर्षा करके उसे मार दिया। रावण निराश हो गया। कुंभकर्ण के मरने से लंका अनाथ हो गई। मेघनाद ने रावण को सहारा दिया। मेघनाद ने रावण से कहा आप मुझे आज्ञा दें मैं दोनों भाइयों को मारकर आपके चरणों में ला दूंगा। मेघनाद और लक्ष्मण में भीषण युद्ध हुआ। अचानक लक्ष्मण का एक बाण उसे लगा। मेघनाद घायल होकर महल की ओर भागा। लक्ष्मण उसका पीछा करना चाहते थे पर महल की संरचना उन्हें पता नहीं थी। तभी विभीषण ने लक्ष्मण को महल का गुप्त मार्ग बताया। मेघनाद महल में मारा गया। अब रावण विलाप करने लगा। वह मूच्छित हो गया। लक्ष्मण की वानर सेना भी महल में प्रवेश कर गई थी। वानरों ने लंका को तहस-नहस कर दिया। लक्ष्मण ने अतिकाय का सिर काट डाला। वानरों ने लंका में आग लगा दी। चारों ओर मारकाट मच गई। अकंपन, प्रजंध, युपाक्ष, कुंभ मारे गए। राक्षस सेना भाग खड़ी हुई। अब रावण अकेला बच गया था। विभीषण को राम की सेना में देखकर रावण उबल पड़ा। पहले उसने अपने छोटे भाई को शत्रु मानकर बाण चलाया पर लक्ष्मण ने उस बाण को बीच में ही काट दिया। दूसरी बार बाण लक्ष्मण को लगा। लक्ष्मण अचेत होकर धरती पर गिर पड़े। राम ने रावण को चुनौती देते हुए कहा-तेरा अंत निश्चित है। हनुमान लक्ष्मण को रक्षाक्षेत्र से दूर ले गए। वैद्य सुषेण को बुलाया गया। हनुमान संजीवनी बूटी लाए। धीरे-धीरे रक्त रिसाव बंद हो गया। लक्ष्मण स्वस्थ हो गए। अब राम-रावण का युद्ध भयानक हो गया। रावण का एक बाण राम को लगा। उनके रथ की ध्वजा कटकर गिर पड़ी। राम ने प्रहार किया। बाण रावण के मस्तक पर लगा। रक्त की धारा बह निकली। वह अपने महल में चला गया। युद्ध फिर शुरू हुआ। राम के बाणों ने रावण के रथ का मुँह तोड़ दिया। यह पराजय का संकेत था। रावण हिम्मत हारने लगा। राम का एक बाण रावण के पार निकल गया। रावण के हाथ से धनुष छूट गया और वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। लंका विजय अभियान पूरा हुआ। राम की जयकार होने लगी। बची हुई सेना इधर-उधर जान बचाकर भागने लगी।

इधर विभीषण अपने भाई की मौत पर विलाप कर रहे थे। राम ने उनको ढाढस बँधाया। उन्हें समझाया कि रावण महान योद्धा था। मृत्यु सत्य है इसे स्वीकार करो। राम ने सुग्रीव को गले लगा लिया। राम ने एक-एक वानर का आभार माना। राम ने लक्ष्मण से विभीषण के राज्याभिषेक की तैयारी करने को कहा। हनुमान को अशोक वाटिका में जाकर सीता को लंका-विजय का समाचार सुनाने को कहा गया।

रावण के अंत्येष्टि के बाद विभीषण का राज्याभिषेक शुरू हो गया। लक्ष्मण विभीषण को राजसिंहासन तक लाए। समुद्र-जल से उनका अभिषेक किया गया। हनुमान सीता को लेकर वहाँ आ गए। सभी वानरों ने पहली वार सीता माँ को देखा। सुग्रीव नल-नील ने भी उनके दर्शन किए। सीता एक वर्ष बाद राम से मिलीं।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 69
कूच – प्रस्थान। तत्पर – तैयार। भयानक – डरावना। कोलाहल – शोरगुल। रणनीति – युद्ध करने का ढंग। तंबू – शामियाना। शक्तिशाली – बलवान। हताश – निराश। स्थिति – दशा।

पृष्ठ संख्या 70
पताका – झंडा। शुभचिंतक – भला सोचने वाला। शक्ति – ताकत, बल। विश्वास – भरोसा। अहंकार – घमंड। विश्वासपात्र – जिस पर विश्वास किया जाय। सभागार – सभा भवन। अपमानित – लज्जित। सत्कार – आदर-सम्मान।

पृष्ठ संख्या 71
विस्मय – हैरान, आश्चर्य। विभक्त – बँटा हुआ। प्रयास – कोशिश। शिखर – चोटी। निरीक्षण – जाँच। सुलह – समझौता। पश्चाताप – पछतावा। प्रतीक्षा – इंतजार।

पृष्ठ संख्या 73
उतावला – बेचैन। चीत्कार – चिल्लाना। ढेर होना – मर जाना। क्षत-विक्षत – छिन्न-भिन्न करना, घायल करना। मूर्छित – बेहोश। मृत – मरा हुआ। उपचार – इलाज। ध्वस्त – नष्ट। अक्षम – अयोग्य।

पृष्ठ संख्या 75
रणभूमि – युद्ध का मैदान। अनुमति – आज्ञा। अंक – गोद । पराक्रमी – ताकतवर। चकित – हैरान। संरचना – बनावट। ज्येष्ठ – बड़ा। शस्त्रागार – हथियारों का भंडार।

पृष्ठ संख्या 77
विश्वासघात – धोखा देना। अचेत – बेहोश। निगरानी में – देखरेख में। चिकित्सा – इलाज। सूचना – खबर। समाप्तखत्म। महासंग्राम – महायुद्ध।

पृष्ठ संख्या 78
हिम्मत – साहस। कोलाहल – शोर। अंत्येष्टि – अंतिम संस्कार। विलंब – देरी। स्वर्ण कलश – सोने का कलश।

पृष्ठ संख्या 79
अधीर – बेचैन। व्यवस्था – इंतजाम। सौम्य – शांत।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 10 लंका में हनुमान

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 10 Question Answers Summary लंका में हनुमान

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 10

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाली किसके द्वारा मारा गया?
उत्तर:
बाली राम के द्वारा मारा गया।

प्रश्न 2.
लंकारोहण के लिए वानरों के कितने दल बनाए गए?
उत्तर:
लंकारोहण के लिए चार वानरों के दल बनाए गए।

प्रश्न 3.
जामवंत किस बात में सफल हुए?
उत्तर:
जामवंत रावण तक पहुँचने में सफल हुए।

प्रश्न 4.
हनुमान एक ही छलाँग में कहाँ जा खड़े हुए?
उत्तर:
हनुमान एक ही छलाँग में महेंद्र पर्वत पर जा खड़े हुए।

प्रश्न 5.
हनुमान के रास्ते में कौन-कौन सी राक्षसियाँ आईं?
उत्तर:
हनुमान के रास्ते में सुरसा तथा सिंहिका राक्षसियाँ आईं।

प्रश्न 6.
समुद्र के अंदर कौन-सा पर्वत था?
उत्तर:
समुद्र के अंदर मैनाक पर्वत था। वह चमकता हुआ सुनहारा पर्वत था।

प्रश्न 7.
सिंहिका नामक राक्षसी ने क्या किया?
उत्तर:
वह छाया राक्षसी थी। उसने जल में हनुमान की परछाई पकड़ ली हनुमान ने उसे मार डाला।

प्रश्न 8.
हनुमान ने लंका में कब प्रवेश किया?
उत्तर:
हनुमान ने शाम ढलते लंका नगरी में प्रवेश किया?

प्रश्न 9.
हनुमान को सीता कहाँ मिली?
उत्तर:
हनुमान को सीता अशोक वाटिका में मिलीं।

प्रश्न 10.
हनुमान ने सीता को क्या-क्या दिया?
उत्तर:
हनुमान ने सीता को राम की अंगूठी दी तथा उनका संदेश दिया।

प्रश्न 11.
हनुमान से लड़ते हुए कौन मारा गया?
उत्तर:
हनुमान से लड़ते हुए रावण का पुत्र अक्षय कुमार मारा गया।

प्रश्न 12.
वानर सेना के सामने क्या चुनौती थी?
उत्तर:
वानर सेना के सामने सागर को पार करने की चुनौती थी।

प्रश्न 13.
रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश क्यों दिया?
उत्तर:
रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगाने का आदेश इसलिए दिया क्योंकि उसने लंका में बहुत उत्पात मचाया।

प्रश्न 14.
हनुमान ने लंका में आग कैसे लगायी?
उत्तर:
हनुमान ने लंका में रावण द्वारा हनुमान की पूछ में आग लगाने पर उसने सारी लंका जला डाली।

प्रश्न 15.
हनुमान ने अशोक वाटिका में क्या उत्पात किया?
उत्तर:
हनुमान ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर उजाड़ दिया। वृक्ष उखाड़ दिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लंका जाते हुए मार्ग में हनुमान को किन-किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
लंका जाते हुए हनुमान को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ा। रास्ते में राक्षसी सुरसा आई। उसका शरीर विराट था। वह हनुमान को खा जाना चाहती थी। पवन पुत्र हनुमान उसे चकमा देकर आगे बढ़ गए। वे उसके मुँह में घुसे और तत्काल ही निकलकर आगे बढ़ गए। आगे उन्हें सिंहिका नाम की राक्षसी का सामना करना पड़ा। उसने हनुमान की परछाई पकड़ ली। इससे वे अचानक आसमान में ठहर गए। हनुमान को उस पर क्रोध आया। उन्होंने सिंहिका को मार डाला और आगे बढ़े।

प्रश्न 2.
हनुमान के छलाँग लगाने पर महेंद्र पर्वत पर आए परिवर्तन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जब जामवंत ने हनुमान से कहा कि सीता की खोज सिर्फ आप ही कर सकते हैं। तब हनुमान उठे और धरती को प्रणाम कर एक ही छलाँग में महेंद्र पर्वत पर पहुँच गए। हनुमान के छलाँग से पर्वत दरक गया, वृक्ष काँपने लगे, पशु-पक्षी चीत्कार करने लगे, चट्टानें आग के गोलों की तरह दहक उठीं। हनुमान इन सब बातों से बेखबर-वायु गति से आगे बढ़ते गए। कई स्थानों पर जल के झरने फूट पड़े। कहीं धुआँ उठने लगा।

प्रश्न 3.
हनुमान ने लंका में सीता की खोज किस प्रकार की?
उत्तर:
लंका पहुँचकर हनुमान ने शाम ढलने पर नगरी में प्रवेश किया। हनुमान ने रात के अंधेरे में रावण के महल का कोना-कोना छान मारा, परंतु सीता जैसी कोई स्त्री वहाँ नहीं मिली। फिर उन्होंने सभी राक्षसों के घर छान लिए। पशुशालाएँ भी देख लीं। अंत में उन्हें वाटिका दिखाई दी, जिसमें अशोक के बड़े-बड़े वृक्ष लगे थे। वह दीवार लाँघकर वाटिका में पहुँचे। वे एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गए। उन्हें एक वृक्ष के नीचे राक्षसियों का झुंड दिखाई दिया। उन्हें राक्षसियों के बीच बैठी एक स्त्री दिखाई दी। उनका चेहरा मुरझाया हुआ और दयनीय था। वे देखते ही पहचान गए कि यह सीता हैं। इस तरह हनुमान सीता को खोजने में सफल हो गए।

प्रश्न 4.
रावण ने सीता को अपने वश में करने के लिए क्या-क्या प्रयास किया?
उत्तर:
रावण ने अपने वश में करने के लिए सीता को हर तरह से डराया, लालच दिया। सीता काँप रही थीं। उन्होंने रावण का तिरस्कार किया। रावण ने सीता से कहा-‘सुमुखी’। मैं तुम्हें स्पर्श नहीं करूँगा, जब तक स्वयं ऐसा नहीं चाहोगी मैं तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूँ। मेरी बात मान लो तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूँ। मेरी बात मान लो और सुख भोग का आनंद लो।

प्रश्न 5.
हनुमान लंका को देखकर चकित हो गए?
उत्तर:
लंका नगरी देखने के लिए हनुमान एक पहाड़ी पर चढ़ गए। वहाँ से चारों ओर नज़र दौड़ाई। लंका सोने की सुंदर नगरी थी। उन्होंने ऐसा नगर कभी नहीं देखा था। चारों ओर मटकते बगीचे, हरे-भरे पेड़ तथा भव्य भवन थे। राक्षस नगरी में इतनी सुंदरता को देखकर ही हनुमान चकित थे।

प्रश्न 6.
हनुमान ने सीता को देखकर कैसे पहचाना?
उत्तर:
अचानक वाटिका के एक कोने से राक्षसियों की हँसी सुनाई पड़ी। हनुमान पेड़ से चिपककर नीचे की डाली पर आए। उन्होंने राक्षसियों के बीच एक शोकाग्रस्त, दुर्बल, दयनीय स्त्री को देखा। उनका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह उदास और दयनीय लग रही थीं। वह अत्यंत दुर्बल भी हो गई थीं। उनका शोकाग्रस्त चेहरा देखते ही हनुमान ने अनुमान लगा लिया कि यही सीता माँ हैं।

प्रश्न 7.
हनुमान ने पेड़ से नीचे उतरकर सीता को अपना परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर:
हनुमान पेड़ से नीचे उतरे। सीता को प्रणामकर राम की अंगूठी उन्हें दी और बोले, ‘हे माता मैं राम का दास हूँ। उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है। सीता के मन की शंका को दूर करने के लिए उन्होंने सीता द्वारा पर्वत पर फेंके गए आभूषणों की याद दिलाई। तब जाकर सीता के मन का संदेह दूर हुआ।

प्रश्न 8.
लंका छोड़ने से पहले हनुमान ने लंका में उत्पात क्यों मचाया?
उत्तर:
हनुमान को सीता का पता लगने के बाद इसकी सूचना राम को अतिशीघ्र देना चाह रहे थे, पर लंका छोड़ने से पहले वे रावण से मिलना चाहते थे। अतः रावण से मिलने का अब एक ही तरकीब था कि लंका में उत्पात मचाया जाए। अतः अब उन्होंने लंका में उत्पात मचाया और अनेक राक्षसों को मार डाला तो राक्षस भागे-भागे राजमहल गए और इसकी सूचना रावण को दी। अंततः मेघनाद ने हनुमान को बाँधा और रावण के पास ले गया।

प्रश्न 9.
हनुमान ने लंका से किष्किंधा लौटकर राम से क्या कहा?
उत्तर:
हनुमान ने लंका से किष्किंधा लौटकर राम को सीता के द्वारा दिया गया अपना एक आभूषण चूड़ामणि दिया। हनुमान ने सीता से अपनी भेंट का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि वे बहुत व्याकुल हैं। वे बहुत चिंतित हैं। वे सदा राक्षसराक्षसियों से घिरी रहती हैं। वे आपकी प्रतीक्षा में हैं। उन्होंने कहा है-यदि श्रीराम दो माह में यहाँ नहीं आँऐगे तो पापी रावण मुझे मार डालेगा।

प्रश्न 10.
हनुमान से सीता का समाचार जानकर वानरों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
दूसरे किनारे सागर तट पर प्रतीक्षा कर रहे वानर हनुमान से सीता का समाचार जानकर किलकारियाँ भरने लगे। खुशी में उनका जंगल में उत्पात बढ़ गया। उन्होंने रास्ते में कई वन उजाड़े। फल खाए और फें के। सभी वानर खुशी में कूदते हुए किष्किंधा पहुँच गए और राम को सीता की सूचना दी। वहाँ पहुँचकर हनुमान ने राम को सीता द्वारा दिया गया आभूषण चूड़ामणि दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हनुमान की लंका-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
हनुमान ने लंका जाते हुए झुककर धरती को छुआ और एक ही छलाँग में महेंद्र पर्वत पर जा खड़े हुए। वहाँ से उन्होंने विराट समुद्र को देखा। फिर पूर्व की दिशा को मुँह करके पिता को प्रणाम किया। अगले पल हाथ ऊपर उठा करके छलांग लगा दी। अगले पल ही वे आकाश में थे। हनुमान के छलाँग लगाने तक पर्वत शांत था। छलाँग के दबाव से पर्वत दरक गया। हनुमान वायु की गति से आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में उन्होंने दिशा बदली। समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं। समुद्र में एक पर्वत था-मैनाक। उसके अनुरोध पर भी वहाँ नहीं रुके। हनुमान के रास्ते में कई बाधाएँ आईं। रास्ते में विराट शरीर वाली राक्षसी सुरसा मिली। वह हनुमान को खाना चाहती थी। हनुमान मुँह में घुसकर बाहर निकल आए। आगे जाने पर सिंहिका नामक छाया राक्षसी ने जल में हनुमान की परछाई पकड़ ली। हनुमान अचानक आसमान में ठहर गए। क्रोधित होकर उन्होंने सिंहिका को मार डाला। अब उन्हें चमकती सोने की लंका दिखाई पड़ने लगी। दूसरे दिन शाम ढलने पर वे लंका में प्रवेश कर गए।

प्रश्न 2.
हनुमान-सीता भेंट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हनुमान को अंततः सीता अशोक वाटिका में मिल गईं। पहले पेड़ पर उन्होंने बैठे-बैठे राम कथा शुरू कर दी। राम का गुनगान सुनकर सीता ने पूछा, ‘तुम कौन हो?’ फिर हनुमान पेड़ से नीचे उतरे और सीता को बताया मैं श्रीराम का दास हूँ। उन्होंने मुझे यहाँ आपका समाचार लेने के लिए भेजा है। सीता ने राम का कुशल-क्षेम पूछा। हनुमान सीता को अपने कंधे पर बिठाकर राम तक ले जाना चाहते थे। पर सीता ने इस प्रकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। यह कार्य उन्हें अनुचित लगा। फिर हनुमान ने सीता से विदा ली चलते समय सीता ने अपना एक आभूषण चूड़ामणि हनुमान को दिया। हनुमान ने सीता को विश्वास दिलाया-‘निराश न हो, माते! श्रीराम दो माह में यहाँ अवश्य पहुँच जाएँगे।’ इसके बाद चलते समय हनुमान ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर डाला।

प्रश्न 3.
त्रिजटा कौन थी? उसने रात में क्या सपना देखा?
उत्तर:
त्रिजटा लंका की एक राक्षसी थी। वह अन्य राक्षसियों से बिलकुल अलग थी। वह सीता को डराती-धमकाती नहीं थी। वह सीता से अपनत्व जताते हुए बात करती थी। एक दिन उसने सीता से कहा कि उसने एक सपना देखा है। पूरी लंका समुद्र में डूब गई है। सब कुछ बर्बाद हो गया है। यह सपना अच्छा नहीं है। वह सोच में पड़ गई कि कहीं यह सपना सीता के दुख से जुड़ा तो नहीं है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
राम कथा में कई नदियों और स्थानों के नाम आए हैं। इसकी सूची बनाओ और एटलस में देखो कि कौन-कौन सी नदियाँ और जगहें अभी भी मौजूद हैं। यह काम आप चार-चार ग्रुप बनाकर पता करके लिखो।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. समुद्र को पार किसने किया?
2. किस-किस राक्षसी ने हनुमान के मार्ग को रोका?
3. रावण ने सीता को कहाँ ठहराया हुआ था?
4. हनुमान ने सीता को कैसे विश्वास दिलाया कि वे राम के सेवक हैं ?
5. हनुमान ने सीता को क्या-क्या दिया?
6. हनुमान से लड़ते हुए कौन मारा गया?
7. विभीषण ने रावण को हनुमान को मारने से क्यों रोका?
8. वानर सेना के सामने क्या चुनौती थी?
9. हनुमान ने लंका में सीता की खोज किस प्रकार की?
10. हनुमान से सीता का समाचार जानकर वानरों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
11. हनुमान लंका को देखकर चकित क्यों हो गए?
12. हनुमान को लंका कैसी दिखाई दी?
13. त्रिजटा कौन थी? उसने रात में क्या स्वप्न देखा था?
14. हनुमान ने पकड़े जाने पर रावण से क्या कहा?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. सीता-हनुमान की क्या बात हुई?
2. हनुमान सीता को देखकर कैसे पहचान गए?
3. महेंद्र पर्वत के सौंदर्य का संक्षिप्त वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
4. लंका तक हनुमान की यात्रा का वर्णन कीजिए।
5. लंका में हनुमान ने क्या उत्पात मचाया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 10 Summary

मार्ग में समुद्र देखकर वानर दल असमंजस में पड़ गए। इस दल में सबसे बुद्धिमान जामवंत थे। वे जानते थे कि समुद्र पार करना हनुमान के बस की बात है और यह काम हनुमान ही कर सकते हैं। जामवंत ने हनुमान से कहा कि यह काम आप कर सकते हैं। तब हनुमान उठे और धरती को प्रणाम कर एक ही छलांग में महेंद्र पर्वत पर पहुँच गए। वहाँ से उन्होंने विराट समुद्र की ओर देखा। हनुमान ने वहाँ पूर्व दिशा की ओर देखकर अपने पिता को प्रणाम किया। हनुमान ने पर्वत पर झुककर उसे हाथ-पैर से कसकर दबाया और छलाँग लगा दी। अगले पल वे आकाश में थे। हनुमान के छलाँग से पर्वत दरक गया, वृक्ष काँपने लगे, पशु-पक्षी चीत्कार करने लगे चट्टान आग के गोला की तरह दहक उठे। हनुमान इन सब बातों से बेखबर-वायु गति से आगे बढ़ते गए। उनकी परछाई समुद्र में नाव की तरह दिखाई देती थी। समुद्र के अंदर एक पर्वत ‘मैनाक’ था। वह जलराशि को चीरकर ऊपर उठा। मैनाक चाहता था कि हनुमान यहाँ रुककर कुछ देर विश्राम कर लें लेकिन हनुमान राम के कार्यों में लीन थे। उनको रास्ते में कई बाधाएँ आईं। सुरसा राक्षसी उन्हें खा जाना चाहती थी। उस राक्षसी का शरीर विशाल था। हनुमान उसके मुँह में घुसकर निकल आए। आगे सिंहिका राक्षसी मिली। सिंहिका राक्षसी ने हनुमान की छाया पकड़ ली। क्रोधित होकर हनुमान ने उसे भी मार दिया।

अब लंका दूर नहीं थी। वह दूर क्षितिज पर दिखाई पड़ने लगी थी। लंका नगरी देखने के लिए हनुमान एक पहाड़ी पर चढ़ गए। सोने की लंका दूर से ही जगमगा रही थी। उन्होंने ऐसा नगर पहले कभी नहीं देखा था। हनुमान समुद्र के किनारे उतर गए। वह अब लंका को और निकट से देख पा रहे थे। इतनी लंबी यात्रा करने के बाद भी हनुमान बिलकुल भी नहीं थके थे। वे राक्षस नगरी की सुंदरता को देखकर चकित हो गए। अब हनुमान के सामने सीता को ढूँढ़ने की समस्या थी। दिन के समय लंका में प्रवेश करना हनुमान को उपयुक्त नहीं लगा। शाम ढलने पर उन्होंने नगरी में प्रवेश किया। वे चारों ओर सीता की खोज करने लगे। सीता महल में कहीं नज़र नहीं आई तब हनुमान महल से बाहर निकल आए।

अंत:पुर के बाहर हनुमान ने रावण का रथ देखा। वह रत्नों से सजा था। वे इस रथ को देखकर चकित रह गए। तभी उनका ध्यान अशोक वाटिका की तरफ गया। वे दीवार लाँघकर वहाँ पहुँचे। वहाँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ लगे हुए थे। वहाँ भी उन्हें सीता दिखाई नहीं दीं। उनमें निराशा घर करती जा रही थी। वह एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गए। वे उसके पत्तों में छिप गए। वे वहाँ से सब कुछ देख सकते थे और उन्हें कोई नहीं देख सकता था। रात हो गई। अचानक वाटिका के एक कोने से अट्टहास सुनाई पड़ा। राक्षसियों का झुंड किसी बात पर अट्टहास कर रहा था। इसके बाद हनुमान पेड़ से चिपककर नीचे की डाली पर आए। उन्होंने राक्षसियों के बीच एक शोकग्रस्त, दुर्बल, दयनीय नारी को देखा। हनुमान ने अनुमान लगाया कि यही सीता माँ हैं। तभी उन्होंने राजसी ठाट-बाट के साथ रावण को आते देखा। रावण ने सीता को बहलाया-फु सलाया, लालच दिया। सीता नहीं डिगीं। वह बोलीं दुष्ट। राम के सामने तुम्हारा अस्तित्व ही क्या है? मुझे राम के पास पहुँचा दो। वे तुम्हें क्षमा कर देंगे। रावण क्रोध में पैर पटकता हुआ चला गया। उसके बाद सीता को राक्षसियों ने घेर लिया और वे सब रावण का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने के लिए सीता पर दबाव देने लगीं। उन राक्षसियों में एक त्रिजटा नाम की राक्षसी भी थी। उसकी सहानुभूति सीता के साथ थी। देर रात तक एक-एक कर राक्षसियाँ चली गईं। अब सीता वाटिका में अकेली थीं। हनुमान ने पेड़ पर-बैठे-बैठे राम कथा शुरू कर दी। राम का गुनगान सुनकर सीता चौंक उठीं। उन्होंने ऊपर देखकर पूछा, “तुम कौन हो?” हनुमान नीचे उतर आए। सीता को प्रणाम कर राम की अंगूठी उन्हें दी। उन्होंने स्वयं को श्रीराम का दास बताया। श्रीराम ने मुझे यहाँ भेजा है। सीता ने राम का कुशल-क्षेम पूछा।

हनुमान को लेकर सीता के मन में अभी भी शंका थी। हनुमान ने पर्वत पर फेंके आभूषणों की याद दिलाकर उनकी शंका दूर कर दी। हनुमान सीता को कंधे पर बिठाकर राम के पास ले जाना चाहते थे किंतु सीता ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा ऐसा करना उचित नहीं होगा। हनुमान ने सीता से विदा ली। वे पूरी सूचना लेकर तत्काल राम तक पहुँचना चाहते थे। उन्होंने विश्वास दिया कि-निराश न हो, माते! श्रीराम यहाँ दो माह में अवश्य पहुँच जाएँगे। हनुमान ने जाने से पहले रावण का उपवन तहस-नहस कर दिया। अशोक वाटिका उजाड़ दी। विरोध करने वाले सभी राक्षसों को मार डाला। रावण का पुत्र अक्षय कुमार भी मारा गया। चलते समय सीता ने अपना एक आभूषण चूड़ामणि हनुमान को दिया।

राक्षसों ने इसकी सूचना रावण को दी। रावण के क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने मेघनाद को भेजा। मेघनाद ने हनुमान से भीषण युद्ध किया। वह इंद्रजीत था। अंततः उसने हनुमान को बाँध लिया। राक्षस उन्हें खींचते हुए रावण के दरबार में ले आए। रावण के प्रश्नों का उत्तर निर्भीकतापूर्वक देते हुए हनुमान ने कहा-मैं श्रीराम का दास हूँ। मैं सीता की खोज में आया था। उनसे मैं मिल चुका हूँ। आपके दर्शन करने के लिए मुझे इतना उत्पात करना पड़ा। क्रोध में रावण हनुमान को मारने उठा किंतु विभीषण ने यह कहकर रोक दिया कि दूत का वध निषेध है। आप इसे कोई दूसरा दंड दें। हनुमान ने पुनः रावण से निवेदन किया कि आप सीता को सम्मान के साथ लौटा दें। रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगा देने की आज्ञा दी। राक्षसों ने उनके पूँछ में आग लगा दी। हनुमान ने एक से दूसरी अटारी पर कूदते हुए सारे भवन को जला दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया। सीता सकुशल पेड़ के नीचे बैठी हुई थीं। उन्होंने देखा सीता पेड़ के नीचे सकुशल बैठी थीं। हनुमान ने सकुशल देखा और प्रणाम करके राम के पास चल पड़े।

दूसरे तट पर अंगद, जामवंत आदि उनकी प्रीतक्षा कर रहे थे। हनुमान ने संक्षेप में लंका का हाल सुनाया। सभी वानर खुश हो गए। वे सभी किष्किंधा पहुँच गए। हनुमान ने राम को सीता द्वारा दिया गया चूड़ामणि उतारकर दे दिया। राम की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने हनुमान को गले लगा लिया। समय कम था। लंका पर आक्रमण करना था। वानर-सेना इसके लिए तैयार थी। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना पर विचार किया। योग्यता और उपयोगिता के आधार पर भूमिकाएँ निश्चित कर दी गईं। समुद्र को पार करने के तरीके पर भी विचार हुआ। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 61
समर्पण – सौंपना। गरिमा – गौरव, सम्मान। परिजन – संबंधी, रिश्तेदार। गति – चाल। अंगड़ाई – जम्हाई लेना। शिखर – चोटी। विराट – विशाल। चुनौती – ललकारना। समर्पण – त्याग। परिजन – रिश्तेदार। निश्चल – शांत। चीत्कार – चीखना। बेखबर – निश्चित। परछाईं – छाया।

पृष्ठ संख्या 63
पवन – पुत्र-हनुमान। चकमा देना – धोखा देना। विवरण – वर्णन। कक्ष – कमरा । वैभवपूर्ण – ऐश्वर्यशाली, शानदार। अधिकतर – ज्यादातर।

पृष्ठ संख्या 64
स्वर्ण – सोने। चकित – हैरान। वाटिका – बगीचा। शोकग्रस्त – दुखी। अट्टहास – तेज हँसी। आतुर – बेचैन। राजसी – राजाओं का सा। ठाट-बाट – शान-शौकत। लालच – लोभ।

पृष्ठ संख्या 65
तिरस्कार – अपमान। स्पर्श – छूना। अस्तित्व – होना। अवसर – मौका। कुशल-क्षेम – कुशल-मंगल।

पृष्ठ संख्या 67
महाबली – बलवान। तिलमिलाना – व्याकुल होना। जघन्य – घोर। उत्पात – परेशान करना। ठिठोली – मज़ाक।

पृष्ठ संख्या 68
अचानक – एकाएक। संक्षेप – सारांश। निर्धारित करना – तय करना।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 9 राम और सुग्रीव

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 9 Question Answers Summary राम और सुग्रीव

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 9

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाली कहाँ का राजा था?
उत्तर:
बाली किष्किंधा का राजा था।

प्रश्न 2.
सुग्रीव कौन था?
उत्तर:
सुग्रीव किष्किंधा के वानर राज बाली का छोटा भाई था।

प्रश्न 3.
राम और सुग्रीव की मित्रता किसने कराई?
उत्तर:
राम और सुग्रीव की मित्रता हनुमान ने कराई।

प्रश्न 4.
ऋष्यमूक पर्वत पर कौन रहते थे?
उत्तर:
ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव रहते थे। वहाँ वे निर्वासन का समय बिता रहे थे।

प्रश्न 5.
हनुमान कौन थे?
उत्तर:
हनुमान सुग्रीव के मित्र थे।

प्रश्न 6.
सुग्रीव ने हनुमान को कहाँ भेजा?
उत्तर:
सुग्रीव ने हनुमान को राम-लक्ष्मण के बारे में जानने के लिए भेजा।

प्रश्न 7.
राम ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कैसे किया?
उत्तर:
सुग्रीव को अपनी शक्ति का विश्वास कराने के लिए शाल के सातों वृक्षों को एक ही बाण से काट कर गिरा दिया। इस शक्ति प्रदर्शन पर सुग्रीव ने हाथ जोड़ लिए।

प्रश्न 8.
राम पहली बार बाली पर बाण क्यों नहीं चला पाए? उनकी दुविधा क्या थी?
उत्तर:
राम पहली बार बाली पर बाण नहीं चला सके क्योंकि बाली और सुग्रीव देखने में एक जैसे लगते थे। राम बाली को पहचान नहीं सके, वे दुविधा में पड़ गए। इसलिए वे पहली बार बाण नहीं चला सके।

प्रश्न 9.
जामवंत, हनुमान के बारे में क्या जानते थे?
उत्तर:
जामवंत, हनुमान के बारे में जानते थे कि हनुमान पवन पुत्र हैं, उनकी शक्ति अपार है।

प्रश्न 10.
राम ने हनुमान को दक्षिण दिशा की ओर भेजते समय क्या वस्तु दी और उनसे क्या कहा?
उत्तर:
राम ने हनुमान को दक्षिण दिशा की ओर भेजते समय अपनी अंगूठी दी। उन्होंने कहा जब सीता से भेंट हो, तो उन्हें अंगूठी दिखाना। वह समझ जाएँगी कि तुम मेरे दूत हो।

प्रश्न 11.
जटायु के भाई का क्या नाम था?
उत्तर:
जटायु के भाई का नाम संपाती था।

प्रश्न 12.
किष्किंधा की राजगद्दी किसे मिली और युवराज किसे बनाया गया?
उत्तर:
किष्किंधा की राजगद्दी सुग्रीव को दी गई और बाली के पुत्र अंगद को युवराज बनाया गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर क्यों रह रहे थे?
उत्तर:
सुग्रीव किष्किंधा के वानरराज बाली के छोटे भाई थे। पिता की मृत्यु के बाद उनके बड़े भाई बाली राजा बने थे। शुरुआत में दोनों भइयों के बीच काफ़ी प्रेम था लेकिन बाद में किसी बात को लेकर मतभेद इतना बढ़ गया कि बाली ने सुग्रीव को जान से मार डालना चाहा और उसकी पत्नी पर भी अपना अधिकार कर लिया। अपनी जान बचाने के लिए सुग्रीव को ऋष्यमूक पर्वत पर जाना पड़ा।

प्रश्न 2.
सुग्रीव ने हनुमान को कहाँ और किसलिए भेजा?
उत्तर:
सग्रीव को हनुमान पर भरोसा था। अतः सग्रीव ने हनुमान को उन दोनों युवकों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा जो उसकी ओर चले आ रहे थे। सुग्रीव ने उन्हें बाली के गुप्तचर समझा।

प्रश्न 3.
राम-लक्ष्मण से ऋष्यमूक आने का प्रयोजन जानकर हनुमान मुसकराने क्यों लगे?
उत्तर:
राम-लक्ष्मण से उनके ऋष्यमूक आने का उद्देश्य जानने के बाद हनुमान मुसकराने लगे। वह समझ गए थे कि राम और सुग्रीव दोनों की स्थिति एक जैसी है। दोनों को एक-दूसरे की मदद चाहिए। इससे वे मित्र हो सकते हैं। राम अयोध्या से निकाले गए हैं और सुग्रीव किष्किंधा से। राम की पत्नी को रावण उठा ले गया है और सुग्रीव की पत्नी उसके भाई ने छीन ली है। दोनों के पिता नहीं है।

प्रश्न 4.
राम सुग्रीव से क्यों क्षुब्ध हो गए?
उत्तर:
राम की सहायता से किष्किंधा का राजा बनने के बाद सुग्रीव अपने राग-रंग में वचन भूल गए। उधर राम सुग्रीव और वानरी सेना की प्रतीक्षा किष्किंधा में कर रहे थे। सुग्रीव ने राम को वचन दिया था कि लंकारोहण तथा सीता की खोज में वह उनकी सहायता करेंगे। वर्षा ऋतु बीत जाने के बाद भी उन्होंने अपने वचन को नहीं निभाया। इसलिए राम क्षुब्ध हो गए।

प्रश्न 5.
लंकारोहण से पहले राम ने क्या किया?
उत्तर:
लंकारोहण से पहले राम ने वानरी सेना को चार टोलियों में बाँटा। इसके अलावा राम चाहते थे कि वानरों की सेना भेजने से पहले होशियार और चतुर दूत को लंका भेजा जाए। उनमें अंगद दक्षिण जाने वाले अग्रिम दल के नेता बने। इसी दल में हनुमान, नल और नील भी थे। उन्होंने हनुमान को बुलाकर अपनी अंगूठी दी और कहा कि “सीता से भेंट होने पर उन्हें यह दिखाना। वह समझ जाएँगी कि तुम्हें मैंने भेजा है।”

प्रश्न 6.
बाली का वध किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
किष्किंधा पहुँचकर सुग्रीव ने बाली को चुनौती दी। उस समय बाली अंत:पुर में रानी तारा के पास था। पत्नी के समझाने के बावजूद वह पैर पटकता बाहर आया और हाथ को हवा में लहराया। वह घूसे से सुग्रीव को मारना चाहता था। पर तभी राम का बाण उसकी छाती में लगा और वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। उसके मरते ही राम, लक्ष्मण और हनुमान पेड़ की ओट से बाहर निकल आए।

प्रश्न 7.
सीता की खोज में वानरी सेना उधेड़बुन में क्यों पड़ गई?
उत्तर:
लंकारोहण से पहले राम ने वानरी सेना को चार टोलियों में विभक्त किया। दक्षिण की ओर जाने वाली टोली किष्किंधा से चली। विशाल समुद्र को देखकर वहाँ सभी हिम्मत हार गए। तभी वहाँ उन्हें जटायु का भाई संपाती मिला। उसने उन्हें बताया कि रावण सीता को लंका ले गया है। समुद्र को पार करना उन सब के लिए असंभव था और वे सीता की खोज का काम पूरा किए बिना किष्किंधा वापस नहीं जाना चाहते थे। इस कारण वानरी सेना उधेड़बुन में पड़ गई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण दिशा में जाने वाले वानरी दल की यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
दक्षिण दिशा में जाने वाली वानरी सेना की अगुवाई अंगद और हनुमान कर रहे थे। मार्ग में चलते-चलते वे एक ऐसे स्थान पर पहुँचे, जिसके आगे, विशाल समुद्र शुरू होता था। समुद्र को देखकर सभी की हिम्मत जवाब दे रही थी। उसी समय वहाँ पहाड़ी के पीछे से एक विशाल गिद्ध आया। वह जटायु का भाई संपाती था। उसने बताया कि सीता लंका में है। वहाँ तक पहुँचने के लिए समुद्र पार करना ही होगा। सीता की सूचना पाकर प्रसन्न वानर-दल विशाल समुद्र को देखकर फिर उदास हो गया। लक्ष्य सामने था लेकिन कठिन था। सभी अंत में विचार करने लगे कि समुद्र कैसे पार किया जाए। तभी उनकी नज़र हनुमान पर पड़ी। जामवंत जानते थे कि हनुमान यह काम कर सकते हैं। उनकी शक्ति आपार है। बस उन्हें यह विश्वास दिलाना होगा कि वह यह काम कर सकते हैं। जामवंत ने हनुमान से कहा कि यह कार्य उन्हें ही करना होगा। सभी उनकी ओर आशाभरी दृष्टि से देखने लगे।

प्रश्न 2.
सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर रहने को क्यों मज़बूर थे? राम ने उनकी किस प्रकार मदद की?
उत्तर:
सुग्रीव बाली के छोटे भाई थे। बाली किष्किंधा के राजा थे। पिता की मृत्यु के बाद बड़े पुत्र होने के नाते वह किष्किंधा का राजा बना था लेकिन बाद में बड़े भाई बाली ने उसे राज्य से निकाल दिया था। उसकी पत्नी छीन ली तथा उसकी हत्या करने का प्रयास कर रहा था। सुग्रीव अपने सहयोगी मित्रों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे। राम ने सुग्रीव की सहायता का वचन देकर उसे बाली से युद्ध के लिए ललकारने को कहा। योजना बनाकर सभी किष्किंधा पहुँचे। बाली और सुग्रीव में भीषण मल्ल युद्ध हुआ। दोनों भाइयों का चेहरा एक जैसा होने के कारण राम बाली को पहचानने में असमर्थ रहे। इसके फलस्वरूप राम के द्वारा कोई मदद न मिलने के कारण सुग्रीव जान बचाकर भागे। वह राम पर क्रोधित हुए। राम ने उन्हें अपनी परेशानी से अवगत कराया। फिर दुबारा सुग्रीव को बाली से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा इस बार बाली की मृत्यु निश्चित है। दोनों भाइयों का युद्ध आरंभ हुआ और राम ने पेड़ की ओट से बाली पर तीर चलाया। वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। आनन-फानन में राज्याभिषेक की तैयारियाँ की गईं और सुग्रीव को राजगद्दी मिली।

प्रश्न 3.
राम-सुग्रीव भेंट का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
हनुमान राम-लक्ष्मण को अपने कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास ले गए। दोनों ने एक-दूसरे को मित्रता का वचन दिया। राम ने सीता-हरण की बात सुग्रीव को बताई। सुग्रीव को कुछ बात याद आई। उन्होंने बताया कि रावण का रथ इसी पर्वत के ऊपर से होकर गया था। सीता स्वयं को रावण के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने गहनों की एक पोटली को राम के सामने रखते हुए कहा क्या ये गहने सीता के हैं ? राम-लक्ष्मण ने उन्हें पहचान लिया। इसके बाद सुग्रीव ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई कि मेरे बड़े भाई बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया है तथा मेरी पत्नी को भी छीन लिया है। राम ने उसे सहायता का अश्वासन दिया। इस तरह यह मुलाकात उनकी मित्रता में बदल गई।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
आपने अपने आसपास के बड़ों से रामायण की कहानी सुनी होगी। रामलीला भी देखी होगी। क्या आपको अपनी पुस्तक रामकथा की कहानी और बड़ों से सुनी रामायण की कहानी में कोई अंतर नज़र आया? यदि हाँ तो उसके बारे में कक्षा में बताओ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. सुग्रीव कहाँ के रहने वाले थे?
2. दो युवकों को ऋष्यमूक पर्वत की ओर आता देख सुग्रीव क्यों घबरा गए?
3. सुग्रीव ने हनुमान को कहाँ भेजा?
4. सुग्रीव को राम की शक्ति पर भरोसा क्यों नहीं था?
5. जामवंत हनुमान के बारे में क्या जानते थे?
6. जटायु के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
7. कुटिया से लौटते हुए राम क्या सोच रहे थे?
8. पंचवटी में ऐसी कौन-सी घटना घटी कि लक्ष्मण को अपने अग्रज राम को सांत्वना देना एवं धैर्य बँधाना पड़ा?
9. टूटे हुए रथ और टूटी पुष्पमाला को देखकर राम-लक्ष्मण ने क्या अनुमान लगाया?
10. राम को जटायु किस हाल में मिला? उसने उन्हें क्या बताया?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. कुटिया में सीता को न पाकर राम की क्या दशा हुई?
2. राम ने सीता की खोज में दक्षिण दिशा की ओर जाने का निश्चय क्यों किया?
3. बाली बध की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
4. दक्षिण दिशा की ओर राजकुमारों की यात्रा तथा कबंध राक्षस से उनकी भेंट का वर्णन करें।
5. राम और शबरी की भेंट का वर्णन करें।
6. दक्षिण दिशा की ओर राजकुमारों की यात्रा तथा कबंध राक्षस से उनकी भेंट का वर्णन करें।

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 9 Summary

सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर रहते थे। वह किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। पिता के नहीं रहने पर उसका बड़ा भाई बाली वहाँ का राजा बना। पहले दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम था। बाद में उन दोनों भाइयों में मतभेद हो गया। मनमुटाव इतना बढ़ गया कि बाली सुग्रीव के नाम का दुश्मन बन गया। उसे जान से मार देना चाहता था। बाली के डर से सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर चला गया। राम और लक्ष्मण कबंध और शबरी के कहने पर ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे। वहाँ सुग्रीव से मिले। सुग्रीव वहाँ निर्वासन में अपना जीवन बिता रहे थे। रास्ते में हनुमान से भेंट हुई। हनुमान उन दोनों भाइयों से बोले कि मैं सुग्रीव का सेवक हूँ। लक्ष्मण ने अपना परिचय देकर वन में आने का कारण बताया तथा कबंध और शबरी की सलाह का उल्लेख भी किया। हनुमान के चेहरे पर हल्की-सी मुसकान आ गई। वे सोचने लगे कि कोई उससे सहायता माँगने आया है, जिसे स्वयं मदद चाहिए।

हनुमान समझ गए कि राम और सुग्रीव की स्थिति एक जैसी है। दोनों मित्र हो सकते हैं। राम अयोध्या से निर्वासित हैं तथा सुग्रीव किष्किंधा से। एक की पत्नी रावण उठा ले गया है तथा दूसरे की पत्नी को भाई ने छीन लिया है। दोनों के पिता नहीं हैं। तब हनुमान ने राम और लक्ष्मण को कंधे पर बिठाकर तत्काल ऋष्यमूक के शिखर पर पहुंचा दिया। उन्होंने दोनों को सुग्रीव से मिला दिया। दोनों पक्षों ने अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता का वचन दिया। राम-सीता-हरण की बात सुग्रीव को बताई। सुग्रीव को कुछ बात याद आई। उन्होंने बताया कि रावण का रथ इसी पर्वत के ऊपर से होकर गया था। सीता स्वयं को रावण के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। वानरों को देखकर उन्होंने कुछ आभूषण नीचे फेंक दिए थे। उन्होंने गहनों की एक पोटली को राम के सामने रखते हुए कहा कि क्या ये गहने सीता के हैं ?

राम ने आभूषण तुरंत पहचान लिए। गहने देखकर वे शोक में डूब गए। सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा-सीता आपको अवश्य मिल जाएँगी। मैं हर प्रकार से आपकी सहायता करूँगा। रावण का सर्वनाश निश्चित है।

राम के बाद सुग्रीव ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई। बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया। उसने मेरे राज्य और स्त्री को छीन लिया है। वह मुझे जान से मारने का प्रयास कर रहा है। उसने राम से सहायता माँगी। राम बोले, “मित्र चिंता मत करो। तुम्हें राज्य भी मिलेगा और पत्नी भी।” राम काफ़ी सुकुमार थे। उन्हें देखकर सुग्रीव को भरोसा नहीं हुआ। बाली महाबलशाली है उसे हराना आसान नहीं है। बाली शाल के सात वृक्षों को एक साथ झकझोर सकता है। राम सुग्रीव की बात को समझ गए। राम ने शाल के सात विशाल वृक्षों को एक ही बाण से काटकर गिरा दिया। इस शक्ति प्रदर्शन को देखकर सुग्रीव ने राम के सामने हाथ जोड़ लिए। राम ने सुग्रीव से बाली को ललकारने के लिए कहा। योजना बनाकर सब किष्किंधा पहुँच गए। सुग्रीव ने बाली को ललकारा। बाली के क्रोध की सीमा न थी। भीषण मल्ल युद्ध हुआ। राम पेड़ के पीछे खड़े थे। उन्होंने तीर नहीं चलाया। सुग्रीव किसी तरह वहाँ से जान बचाकर ऋष्यमूक पर्वत आ गया। सुग्रीव राम से काफ़ी कुपित था। उसे लगता था कि राम ने उसके साथ धोखा किया है। सुग्रीव का कहना था कि राम ने समय पर बाण नहीं चलाया। राम की परेशानी थी कि दोनों भाई एक जैसे ही दिखते थे। बाली और सुग्रीव दोनों भाइयों का चेहरा मिलता-जुलता था। उनमें अंतर करना कठिन था, अत: उन्होंने तीर नहीं चलाया। राम-लक्ष्मण के समझाने बुझाने पर वह पुनः युद्ध के लिए किष्किंधा गया। बाली रानी तारा के पास था। उसने बाली को रोकने का प्रयास किया, पर बाली गुस्से से पागल हो गया था। वह सुग्रीव की छाती में घुसा मारने वाला ही था कि राम के एक ही बाण ने उसे धाराशायी कर दिया। बाली के गिरते ही राम, लक्ष्मण और हनुमान पेड़ों की ओट से बाहर निकल आए।

आनन-फानन में सुग्रीव के राज्याभिषेक की तैयारी कर दी गई। सुग्रीव को राजगद्दी मिली। राम की सलाह पर बाली के पुत्र अंगद को युवराज का पद दिया गया। राम किष्किंधा से लौट आए लेकिन सुग्रीव चाहते थे कि राम कुछ दिन वहीं रहें पर राम ने मना कर दिया। राम-सुग्रीव की वानर-सेना की प्रतीक्षा कर रहे थे। पर सुग्रीव राग-रंग में उलझकर अपना वचन भूल गए। हनुमान को सुग्रीव का वचन याद था। उन्होंने सुग्रीव को याद दिलाया। राम सुग्रीव के व्यवहार से क्षुब्ध थे। लक्ष्मण सुग्रीव को समझाने के लिए किष्किंधा गए। उन्होंने वहाँ पहुँचकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। डोरी खींचकर छोड़ी तो उनकी टंकार से सुग्रीव काँप गया। उसे राम को दिया गया वचन याद आ गया। तारा की सलाह पर सुग्रीव ने राम के पास जाकर क्षमा याचना की। राम ने उसे गले लगा लिया। पीछेपीछे वानर सेना आ पहुँची। लक्ष्मण के पीछे चल पड़े। हनुमान के साथ लाखों वानर थे। जामवंत के पीछे भालुओं की सेना भी थी। इसके बाद सीता खोज की योजना बनी। वानरों को चार टोलियों में बाँटा गया। राम और सुग्रीव की जय-जयकार करते हुए वानर अपनी निर्धारित दिशाओं की ओर चल पड़े। दक्षिण जाने वाले दल को राम ने रोक लिया। उन्होंने हनुमान को पास बुलाकर अपनी अंगूठी उन्हें दे दी। इस पर राम का चिह्न था। उन्होंने कहा-“जब सीता से भेंट हो तो यह अंगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी। समझ जाएँगी कि तुम्हें मैंने भेजा है। तुम मेरे दूत हो।”

इसके बाद अंगद और हनुमान दक्षिण की ओर चल पड़े। रास्ते में विशाल समुद्र था जिसे पार करना कठिन था। तभी रास्ते में जटायु का भाई संपाती मिला और बताया कि सीता को रावण ले गया है। सीता तक पहुँचने के लिए सागर पार करना होगा। सीता तक पहुँचने का यही रास्ता है। सीता की सूचना मिलने से वानर दल को भरोसा हो गया कि सीता इसी मार्ग से दक्षिण की ओर गई हैं। सीता तक पहुँचने का यही रास्ता है। पर समुद्र को पार करना संभव नहीं था। वानर अब असमंजस में थे। इसी बीच जामवंत की दृष्टि हनुमान पर पड़ी। जामवंत जानते थे कि हनुमान पवन पुत्र हैं। वे यह काम कर सकते हैं, पर उन्हें इसका अनुमान नहीं। सीता तक पहुँचने के लिए सागर पार करना होगा।

इस दल में सबसे बुद्धिमान जामवंत थे किंतु इस कठिन कार्य का उनके पास भी उत्तर नहीं था। जामवंत ने हनुमान से कहा कि यह कार्य आप ही कर सकते हैं।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 54
पड़ाव – ठहरने का स्थान। शीघ्रता – जल्दी। निर्वासन – देश निकाला। ज्येष्ठ – बड़ा। चौकस – सावधान। निरंतर – लगातार। गुप्तचर – जासूस। तत्काल – तुरंत। सुरक्षित – बिना खतरे के। भरोसा – विश्वास। सहमत होना – एक मत होना।

पृष्ठ संख्या 55
भटकना – इधर-उधर घूमना। साक्षी – गवाह। तुरंत – तत्काल। आभूषण – जेवर। संकट – मुसीबत।

पृष्ठ संख्या 57
सांत्वना – भरोसा। सर्वनाश – पूर्ण विनाश। व्यथा – कथा भरी कहानी। सुकुमार – सुंदर, कोमल। प्रदर्शन – दिखावा। ललकार – चुनौती हो। मल्ल युद्ध – दो व्यक्तियों की लड़ाई। भारी पड़ना – अधिक बलशाली होना। कुपित – क्रुद्ध। मृत्यु – मौत।

पृष्ठ संख्या 58
दुविधा – असमंजस। चूक – गलती। साहस – हिम्मत।

पृष्ठ संख्या 59
क्षुब्ध – व्याकुल। विनाश – अंत। चिह्न – निशान।

पृष्ठ संख्या 60
अथाह – बहुत गहरा। साहस जवाब देना – हिम्मत हारना। विकराल, विकट – दुर्गम, भयानक। अपार – बहुत अधिक।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 8 सीता की खोज

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 8 Question Answers Summary सीता की खोज

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 8

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुटिया की ओर भागे चले आ रहे राम के मन में कौन-सी आशंकाएँ थीं?
उत्तर:
राम के मन में मारीच की माया और सीता की सुरक्षा को लेकर अनेक आशंकाएँ थीं।

प्रश्न 2.
लक्ष्मण को कुटी छोड़कर अपने तरफ आते देख राम क्रोधित क्यों हुए?
उत्तर:
लक्ष्मण को कुटी छोड़कर आते देख राम इसलिए क्रोधित हुए योंकि सीता कुटिया में अकेली थीं।

प्रश्न 3.
सीता की खोज में वन में भटकते राम और लक्ष्मण ने क्या देखा?
उत्तर:
सीता की खोज में भटकते राम-लक्ष्मण ने वन में एक टूटे रथ के टुकड़े, मरा हुआ सारथी तथा मृत घोड़े देखे। पास ही पुष्पमाला बिखरी पड़ी थी।

प्रश्न 4.
कबंध कौन था?
उत्तर:
कबंध एक विशालकाय, डरावना राक्षस था। उसकी एक आँख थी। गर्दन नहीं थी। उसका शरीर मोटे माँस पिंड जैसा था। उसके दाँत बाहर निकले थे तथा जीभ साँप की तरह थी।

प्रश्न 5.
कबंध ने राम से क्या अनुरोध किया?
उत्तर:
कबंध ने राम से अनुरोध किया कि उसका अंतिम संस्कार राम ही करें।

प्रश्न 6.
शबरी कौन थी?
उत्तर:
शबरी मतंग ऋषि की शिष्या थी।

प्रश्न 7.
शबरी ने राम को किसके पास जाने की सलाह दी?
उत्तर:
शबरी ने राम को सुग्रीव के पास जाने की सलाह दी।

प्रश्न 8.
राम को सीता के वियोग में विलाप करते देख लक्ष्मण ने उनसे क्या कहा?
उत्तर:
राम को सीता के वियोग में विलाप करते हुए देखकर लक्ष्मण ने राम से कहा कि आप धैर्य रखिए हम सीता को ढूँढ़ निकालेंगे।

प्रश्न 9.
हिरणों के झुंड ने सिर उठाकर क्या इशारा किया?
उत्तर:
हिरण आसमान की ओर सिर उठाकर दक्षिण दिशा की ओर भाग गए।

प्रश्न 10.
सीता को ढूँढ़ने के दौरान लक्ष्मण को क्या मिला?
उत्तर:
सीता को ढूँढ़ने के दौरान लक्ष्मण को पुष्पमाला मिली जिसे सीता ने अपनी वेणी में गूंथ रखा था।

प्रश्न 11.
कबंध ने राम से किसकी सहायता लेने को कहा?
उत्तर:
कबंध ने राम से सुग्रीव की सहायता लेने को कहा। उनके पास बहुत बड़ी वानरी सेना थी।

प्रश्न 12.
पक्षीराज जटायु ने मरने से पहले क्या बताया?
उत्तर:
पक्षीराज जटायु ने बताया कि सीता को रावण उठा ले गया है और वह दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर गया है।

प्रश्न 13.
शबरी ने राम-लक्ष्मण को क्या खिलाया?
उत्तर:
शबरी ने राम लक्ष्मण को मीठे बेर खिलाये।

प्रश्न 14.
कबंध ने राम को पहले किससे मिलने को कहा?
उत्तर:
कबंध ने राम को पहले मतंग ऋषि की शिष्या शबरी से मिलने को कहा।

प्रश्न 15.
शबरी ने राम को किससे मिलने की सलाह दी?
उत्तर:
शबरी ने राम को सुग्रीव से मित्रता करने की सलाह दी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सीता को कुटी में न देखकर राम की क्या दशा हुई?
उत्तर:
मायावी मारीच को मार गिराने के बाद राम कुटी की ओर दौड़कर भागे। वहाँ जब उन्होंने सीता को नहीं देखा तो, कुटी के आस-पास उनकी बहुत तलाश की। जब वे कहीं नहीं मिली तो वे शोक से व्याकुल हो गए। राम सीता को पुकारते रहे पर आवाज़ पेड़ों से टकराकर हवा में विलीन हो जाती थी। यहाँ तक कि पशु-पक्षियों की चहक भी लुप्त हो गई थी। उन्होंने नदी, पेड़-पौधे, हाथी, शेर, फूल, चट्टान, पत्थरों से भी सीता के बारे में पूछा। वे अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। शोक में वे यह भी भूल गए कि पौधे तथा चट्टान नहीं बोलते। विलाप करते हुए राम ने लक्ष्मण से कहा मैं सीता के बिना नहीं रह सकता। उनकी मानसिक स्थिति विक्षिप्त जैसी हो गई थी।

प्रश्न 2.
लक्ष्मण को आता देखकर राम की क्या दशा हुई?
उत्तर:
लक्ष्मण को कुटी छोड़कर अपनी तरफ आता देखकर राम के मन में अनिष्ट की आशंकाएँ और भी बढ़ गईं। वे सोचने लगे कि अकेली सीता को तो राक्षस उठा ले गए होंगे। वे लक्ष्मण से क्रुद्ध थे। उन्होंने लक्ष्मण का बाँया हाथ जोर से पकड़ लिया था। दोनों भाई आशंकित थे।

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने किस प्रकार राम को ढाढस बंधाया?
उत्तर:
लक्ष्मण ने राम से कहा-आप आदर्श पुरुष हैं। आपको धैर्य रखना चाहिए हम मिलकर देवी सीता की खोज करेंगे वे जहाँ भी होंगी हम उन्हें ढूंढ़ निकालेंगे। सीता हमारी प्रतीक्षा कर रही होंगी।

प्रश्न 4.
सीता की खोज में मार्ग में भटकते हुए लक्ष्मण ने क्या-क्या देखा?
उत्तर:
सीता की खोज में मार्ग में भटकते-भटकते राम-लक्ष्मण ने रथ के टुकड़े, मरा हुआ सारथी और मरे हुए घोड़े देखे। वहीं उन्हें सीता के बालों के साथ गुँथी पुष्पमाला भी पड़ी मिली। थोडी दूरी पर उन्होंने पक्षीराज जटायु को देखा। उसके पंख कटे हुए थे। वह खून से लथपथ था। जटायु ने उन्हें सीता के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी।

प्रश्न 5.
राम ने सीता की खोज में दक्षिण दिशा की ओर जाने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
सीता के वियोग में जब राम विलाप कर रहे थे, उसी समय आश्रम के आस-पास घूमने वाले हिरणों का एक झुंड उनके समीप आया। राम को लगा वे हिरण संभवतः सीता के बारे में कुछ जानते हैं और उन्हें बताना चाहते हैं। राम ने उनसे सीता के विषय में पूछा। हिरणों ने सिर उठाकर आसमान की ओर देखा और दक्षिण दिशा की ओर भाग गए। राम ने संकेत समझ लिया और सीता की खोज में दक्षिण दिशा में ही जाने का निश्चय किया।

प्रश्न 6.
राम को जटायु किस हाल में मिला? उसने उन्हें क्या बताया?
उत्तर:
राम को जटायु लहूलुहान अवस्था में मिला। उसके पंख कटे हुए थे तथा वह अंतिम साँसें गिन रहा था। उसने राम को बताया कि सीता को रावण उठा ले गया है। सीता का विलाप सुनकर उसने रावण को चुनौती दी थी। उसने रावण का रथ तोड़ दिया था उसके सारथी और घोड़े को मार दिया था, परंतु सीता को हरण करने से न बचा सका। रावण ने उसके पंख काट डाले और सीता को लेकर दक्षिण-पश्चिम दिशा में उड़ गया। जटायु ने राम को पूरी बात बता दी। सूचना देने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए।

प्रश्न 7.
राक्षस कबंध ने राम-लक्ष्मण की क्या सहायता की?
उत्तर:
राक्षस कबंध ने दोनों भाइयों राम और लक्ष्मण को पंपा सरोवर के पास ऋष्यमूक पर्वत पर जाने के लिए कहा। वह वानर राज सुग्रीव का क्षेत्र था। वे निर्वासित जीवन बिता रहे थे। उन्होंने कहा कि सुग्रीव की वानरी सेना सीता की खोज में आपकी

प्रश्न 8.
शबरी कौन थी तथा कहाँ रहती थी?
उत्तर:
शबरी मतंग ऋषि की शिष्या थी। वह पंपा सरोवर के पास बने मतंग ऋषि के आश्रम में रहती थी। उसकी आयु बहुत हो गई थी। शरीर जर्जर हो गया था, लेकिन आँखें ठीक थीं। वह हर पल राम की प्रतीक्षा करती थी। राम को आश्रम में आया देखकर शबरी बहुत खुश हुई। उसने उनका बहुत स्वागत किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण दिशा की ओर राजकुमारों की यात्रा तथा कबंध राक्षस से उनकी भेंट का वर्णन करें।
उत्तर:
सीता की खोज में राम और लक्ष्मण दोनों भाई दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते जा रहे थे। मार्ग काफ़ी कठिन था। एक दिन यात्रा से पहले ही कबंध नामक एक विशालकाय और भयानक राक्षस ने उन पर हमला कर दिया। उसने अपने एक -एक हाथ से दोनों भाइयों को उठा लिया। राम-लक्ष्मण ने अपनी तलवार से एक झटके में उसके हाथ काट दिए। उनकी शक्ति और बुद्धि पर आश्चर्यचकित कबंध ने उनका परिचय पूछा। राम का परिचय जानकर वह बहुत खुश हुआ। उसने राम से कहा कि वह सीता के विषय में विशेष कुछ जानता है। यदि राम मेरा अंतिम संस्कार करना स्वीकार करें तो मैं सहायता का उपाय बता सकता हूँ। राम ने उसकी शर्त को स्वीकार किया और वचन दिया कि वह उसका अंतिम संस्कार करेंगे। राम की सहमति के बाद कबंध ने कहा कि ऋष्यमूक पर्वत पर निर्वासित जीवन जी रहे वानर राज सुग्रीव सीता को ढूँढ़ने में आपकी सहायता कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
राम और शबरी के बीच वार्तालाप का वर्णन अपने शब्दों में करो।
उत्तर:
शबरी मंतग ऋषि की शिष्या थी। वह पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि के आश्रम में रहती थी। उसकी आयु बहुत हो गई थी। उसका शरीर जर्जर था, लेकिन आँखें ठीक थीं। वह हर पल राम की ही प्रतीक्षा करती रहती थी। एक दिन अचानक आश्रम में राम को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई। उसने राम-लक्ष्मण का बहुत स्वागत किया। उसने उन्हें स्वयं चख-चखकर मीठे बेर खिलाए और रहने के लिए जगह दी। उसने कहा कि आप सुग्रीव से मित्रता कीजिए। सीता को खोजने में वह आपकी मदद करेगा। उसके पास विशाल वानरी सेना है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे कुछ प्रमुख पात्रों के चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन दिया गया है। तालिका में रामायण के कुछ पात्रों के नाम हैं। प्रत्येक नाम के सामने अपयुक्त विशेषताओं को छाँटकर लिखिए।

पराक्रमी, साहसी, निडर, पितृभक्त, वीर, शांत, दूरदर्शी, त्यागी, लालची, अज्ञानी, दुश्चरित्र, दीनबंधु, गंभीर, स्वार्थी, उदार, धैर्यवान, अड़ियल, कपटी, भक्त, न्यायप्रियता और ज्ञानी।

राम ____________, सीता ____________
लक्ष्मण _________, कैकेयी ____________
रावण ___________, हनुमान ____________
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. कुटिया की ओर भागे चले आ रहे राम के मन में कौन-सी आशंकाएँ थीं?
2. लक्ष्मण को कुटी छोड़कर आते देख राम क्रोधित क्यों हुए?
3. राम को सीता के वियोग में विलाप करते देख लक्ष्मण ने उनसे क्या कहा?
4. हिरणों के झुंड ने क्या इशारा किया?
5. पक्षीराज जटायु ने सीता के बारे में क्या बताया?
6. अंत निकट होने पर कबंध ने राम-लक्ष्मण से क्या आग्रह किया?
7. शबरी ने राम-लक्ष्मण को क्या सलाह दी?
8. कबंध कौन था? उसने राम से पहले किससे मिलने को कहा?
9. कुटिया में सीता को न पाकर राम की क्या दशा हुई?
10. राम को सीता के जाने की दिशा का संकेत किससे मिला?
11. कबंध कौन था? उसने राम-लक्ष्मण में क्या देखा?
12. शबरी कौन थी? शबरी ने राम को क्या बताया?
13. राम ने सीता की खोज में दक्षिण दिशा की ओर जाने का निश्चय क्यों किया?
14. राम को जटायु किस हाल में मिला? उसने उन्हें क्या बताया?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. टूटे हुए रथ और टूटी पुष्पमाला को देख राम और लक्ष्मण ने क्या अनुमान लगाया?
2. पंचवटी में ऐसी कौन-सी घटना घटी कि लक्ष्मण को अपने अग्रज राम को सांत्वना देना एवं धैर्य बँधाना पड़ा?
3. राम और शबरी की वार्तालाप का वर्णन करें?
4. राम-जटायु भेंट का वर्णन अपने शब्दों में करें।

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 8 Summary

राम के मन में कई तरह की शंकाएँ थीं, कई तरह के प्रश्न थे। राम को अनिष्ट की आशंकाएँ थीं। उन्होंने सोचा कि सीता अकेली रहीं तो राक्षस उन्हें मार डालेंगे। मन में अनेक भय लिए वे आगे बढ़ रहे थे तभी उनकी नज़र लक्ष्मण पर पड़ी। लक्ष्मण को देखते ही राम की शंका और बढ़ गई। लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि देवी सीता के कटु वचनों ने मुझे यहाँ आने के लिए बाध्य किया। राम ने लक्ष्मण से कहा कि “तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके अच्छा नहीं किया। मेरा मन काफ़ी चिंतित है पता नहीं सीता किस हाल में होगी।” कुटिया अभी दूर थी। राम ने वहीं से पुकारा-‘सीते तुम कहाँ हो?’ पर कोई जवाब नहीं आया। राम सीता को पुकारते रहे पर आवाज़ पेड़ों से टकराकर हवा में विलीन हो जाती थी। राम भागते हुए आश्रम पहुँचे। कुटिया में जाकर देखा। सीता का कहीं पता नहीं था। वे अपना सुध-बुध भुला बैठे। राम रोने लगे। सीता से बिछुड़ना उनके लिए असहनीय था। राम की स्थिति विक्षिप्त जैसे हो गई थी।

विरह में राम गोदावरी नदी के पास गए। उन्होंने नदी, पेड़-पौधे, हाथी, शेर, फूल, चट्टान पत्थरों से भी सीता के बारे में पूछा। वे अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। राम का दुख लक्ष्मण से देखा नहीं जा रहा था। विलाप करते हुए राम ने लक्ष्मण से कहा- “मैं सीता के बिना नहीं रह सकता।” राम कह रहे थे-“लक्ष्मण तुम अयोध्या लौट जाओ। मैं वहाँ नहीं जाऊँगा। यहीं प्राण दे दूंगा।”

लक्ष्मण ने राम को समझाते हुए कहा कि “आप आदर्श पुरुष हैं। आपको धैर्य रखना चाहिए। हम लोग मिलकर सीता की खोज करेंगे।” राम शांत हो गए। इसी बीच आश्रम के आस-पास भटकने वाला हिरणों का झुंड राम-लक्ष्मण के निकट आ गया। राम ने हिरणों से सीता के बारे में पूछा। हिरणों ने सिर उठाकर आसमान की ओर देखा और दक्षिण की ओर भाग गए। राम ने संकेत समझ लिया। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-हमें सीता की खोज दक्षिण दिशा में करनी चाहिए। उन्होंने वन में भटकते हुए टूटे रथ के टुकड़े देखे। इसके अलावा मरा सारथी और मृत घोड़े भी देखे। लक्ष्मण समझ गए कि यहाँ थोड़ी देर पहले ही संघर्ष हुआ है। सीता की वेणी में गुंथी पुष्पमाला को वहाँ पड़े देखा। वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर राम ने पक्षीराज जटायु को देखा। जटायु के पंख कटे हुए थे। वह अंतिम साँस गिन रहा था। उसी ने राम को बताया, “रावण सीता को उठा ले गया है। मेरे पंख उसी ने काटे हैं। मैंने रावण से युद्ध किया और लड़ते-लड़ते उसका रथ तोड़ डाला था। मैं सीता को बचा नहीं सका। रावण सीता को लेकर दक्षिण की ओर गया है। इतना कहकर जटायु ने प्राण त्याग दिए।” वहीं राम और लक्ष्मण ने उसका अंतिम संस्कार किया।

राम-लक्ष्मण सीता की तलाश में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बढ़ने लगे। मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए दोनों भाई आगे बढ़ते गए। आगे का मार्ग काफ़ी कठिन था। उन्हें बार-बार राक्षसों के आक्रमण का सामना करना पड़ता था। एक दिन रास्ते में कबंध नामक राक्षस ने उन लोगों पर आक्रमण किया। वह बहुत ही खतरनाक था। उसने दोनों भाइयों को उठाकर हवा में उड़ा लिया। राम-लक्ष्मण ने तलवार निकाल कर एक झटके में ही उसके हाथ काट डाले। कबंध उनकी शक्ति देखकर हैरान रह गया। उसने उनका परिचय पूछा। राम के बारे में उसने सुन रखा था। अब उन्हें सामने देखकर प्रसन्न हो गया। वह बोला-मैं सीता के संबंध में तो कुछ नहीं जानता लेकिन तुम लोगों की सहायता का उपाय ज़रूर बता सकता हूँ लेकिन मेरा एक निवेदन है कि मेरा अंतिम संस्कार राम करें। राम ने उसका निवेदन स्वीकार कर लिया। तब कबंध ने उन्हें बताया कि-पंपा सरोवर के समीप ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव रहते हैं। आप उन्हीं के पास जाएँ। वे अपने वानरी सेना के साथ सीता को अवश्य खोज निकालेंगे। ‘इतना कहते हुए उसने राम-लक्ष्मण को अपने समीप बुलाया और कहा पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है। वहीं उनकी शिष्या शबरी रहती है। आप शबरी से भी अवश्य मिलना। कबंध की बातों से राम में सीता तक पहुँचने की आशा बलबती हो गई। इतना कहने के बाद कबंध के प्राण निकल गए। राम उसका अंतिम संस्कार कर सरोवर की ओर चल पड़े।

वहाँ से वे लोग शबरी की कुटिया में गए। उसकी आयु बहुत थी। वह हर पलं राम की प्रतीक्षा में अपनी आँखें खुली रखती थी। राम को आश्रम में देखकर शबरी बहुत खुश हुई। उसने राम का स्वागत किया। उसने भी सुग्रीव से मित्रता करने को कहा। खाने को मीठे फल व रहने को जगह दी। शबरी ने राम को विश्वास दिलाया कि सुग्रीव सीता की खोज में उनकी अवश्य मदद करेंगे। वे सीता को अवश्य ढूँढ निकालेंगे। उनके पास विलक्षण शक्ति वाले वानर हैं। अगले दिन वे ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से मिलने गए।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 48
आशंकाएँ – भय, डर। पगडंडी – कच्चे स्थानों या घास पर पैदल चलने से बना रास्ता। कटुवचन – कड़वी बातें। कटाक्ष – व्यंग्य, ताना। उलाहना – शिकायत। उल्लंघन – आदेश न मानना। ठिकाना – स्थान। संदेह – शक।

पृष्ठ संख्या 49
उपस्थित – हाज़िर होना। अनुपस्थित – गैरहाजिर। विलीन – खो जाना। असहनीय – जो सहा न जा सके। शोकसंतप्त – दुख में डूबा हुआ। आघात – धक्का। विरह – बिछुड़ना। मौन – चुप। विक्षप्त – पागलों जैसी। परिहास – मजाक। निकट – पास। धैर्य – हिम्मत। प्रतीक्षा – इंतज़ार।

पृष्ठ संख्या 50
ढाढ़स – हिम्मत। मृग – हिरण। संकेत – इशारा। मृत – मरे। प्रयोजन – मतलब। असमंजस – दुविधा। संघर्ष – टक्कर। पुष्पमाला – फूलों की माला। बेणी – चोटी। त्यागना – छोड़ना। लहूलुहान – खून से लथपथ। अंतिम साँसें गिनना – मरने की हालत में होना। विधान – नियम, रीति।

पृष्ठ संख्या 51
तत्परता – चुस्ती। आक्रमण – हमला। स्पष्ट – साफ। आग्रह – हठ । सहमति – रजामंदी। मदद – सहायता। पर्वत – पहाड़।

पृष्ठ संख्या 52
जर्जर – कमज़ोर। काया – शरीर। तृप्त – संतुष्ट। विलक्षण – अद्भुत।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 7 सोने का हिरण

These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 7 सोने का हिरण are prepared by our highly skilled subject experts.

Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 7 Question Answers Summary सोने का हिरण

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 7

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मारीच किस रूप में पंचवटी गया?
उत्तर:
मारीच हिरण के रूप में पंचवटी गया।

प्रश्न 2.
राम ने मायावी मृग पर निशाना क्यों साधा?
उत्तर:
जब राम मायावी हिरण को जिंदा नहीं पकड़ पाए तो अंत में परेशान होकर उस पर निशाना साधा।

प्रश्न 3.
बाण लगने पर मायावी हिरण ने क्या किया?
उत्तर:
बाण लगने पर मायावी हिरण ने हा सीते! हा लक्ष्मण! पुकारा।

प्रश्न 4.
रावण क्यों प्रसन्न था?
उत्तर:
रावण प्रसन्न था क्योंकि उसकी चाल सफल हो रही थी। मारीच ने अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाई थी।

प्रश्न 5.
सीता क्यों विचलित हो गई?
उत्तर:
मारीच की मायावी पुकार सुनकर सीता ने समझा कि राम किसी परेशानी में हैं, इसलिए वे विचलित हो गईं।

प्रश्न 6.
रावण किस वेश में सीता के सामने आया?
उत्तर:
रावण तपस्वी के वेश में सीता के सामने आया।

प्रश्न 7.
रावण को अकंपन की क्या बात याद हो आई?
उत्तर:
रावण को अकंपन की यह बात याद हो आई कि सीता का हरण होने पर राम के प्राण निकल जाएँगे।

प्रश्न 8.
सीता ने लक्ष्मण को क्या धमकी दी?
उत्तर:
सीता ने धमकी देते हुए कहा-राम से अलग होकर मैं नहीं रह सकती। मैं जान दे दूंगी। हे लक्ष्मण, तुम राम के पास जाओ। वे किसी मुसीबत में हैं। तुम उन्हें लेकर आओ।

प्रश्न 9.
सीता के आभूषण किसने उठाए?
उत्तर:
सीता के आभूषण वानरों ने उठाए।

प्रश्न 10.
जटायु ने रावण के साथ क्या जबरदस्ती की?
उत्तर:
गिद्धराज जटायु ने रावण का रथ छत-विछत कर दिया तथा रावण को घायल कर दिया।

प्रश्न 11.
रावण ने सीता को पहले जाकर कहाँ रखा?
उत्तर:
रावण ने सीता को ले जाकर पहले अंत:पुर में और बाद में अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा।

प्रश्न 12.
रावण चिंतित क्यों हो गया? उसने क्या किया?
उत्तर:
सीता ने राम के बल पौरुष की खूब प्रंशसा की और कहा, राम तुम्हारा संहार कर देंगे। यह सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने अपने आठ शक्तिशाली राक्षसों को बुलाकर पंचवटी भेजा और राम-लक्ष्मण पर निगरानी रखने को कहा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रावण ने सीता हरण के लिए क्या किया?
उत्तर:
रावण सीता-हरण के लिए मायावी मारीच को अपने साथ लाया था। मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया और राम की कुटिया के आस-पास घूमने लगा। सीता उसे देखकर मुग्ध हो गई और उसे पकड़ने के लिए उन्होंने राम से अनुरोध किया। राम को कुटी से निकलते देख मायावी हिरण जोर-जोर से दौड़ने लगा और वह उन्हें दूर तक ले गया। राम जब उसे पकड़ने में असफल रहे तब उन्होंने उस पर बाण छोड़ दिया जिससे वह ज़मीन पर गिर पड़ा। उसने अपने असली रूप में वापस आकर कहा हा सीते! हा लक्ष्मण! की ऐसी आवाज़ निकाली जैसे वह आवाज़ राम की हो। जिसे सुन सीता ने लक्ष्मण को राम की सहायता के लिए जाने पर मजबूर किया। लक्ष्मण के वहाँ से जाते ही रावण सीता का हरण करने में सफल हो गया।

प्रश्न 2.
मारीच की मायावी पुकार सुनकर लक्ष्मण और सीता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मायावी मारीच की पुकार सुनकर लक्ष्मण ने अपनी चौकसी बढ़ा दी। वह राक्षसों की अगली चाल की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन सीता वह आवाज़ सुनकर विचलित हो गईं। वह घबरा गईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा तुम जल्दी से उस दिशा में जाओ जिधर से आवाज़ आई है। तुम्हारे भाई बड़े परेशानी में फंस गए हैं। उन्होंने सहायता के लिए पुकारा है। जब लक्ष्मण ने इसे मायाबी चाल बताया तो सीता बुरा-भला कहने लगी तथा क्रोधित हो गईं। वे लक्ष्मण के मन में पाप बताने लगीं। उन्हें भरत का गुप्तचर बता दिया। लाचार होकर लक्ष्मण को जाना ही पड़ा।

प्रश्न 3.
लक्ष्मण के राम की खोज में जाने के बाद रावण ने क्या किया?
उत्तर:
कुटी से लक्ष्मण के जाते ही रावण तपस्वी के वेश में वहाँ आ पहुँचा। सीता ने साधु रूप में उनका स्वागत करना चाहा तो उसने सीता को अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं लंकाधिपति रावण स्वयं यहाँ तुम्हें लेने आया हूँ। मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूगा। यह सुनकर सीता गुस्से में आ गईं। वह कहने लगीं-मैं प्राण त्याग दूंगी, पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी। रावण ने सीता की एक नहीं सुनी। उसने उन्हें खींचकर रथ पर बिठा लिया और रथ को लंका की ओर लेकर चल पड़ा।

प्रश्न 4.
सीता ने रावण से बचाव की आशा न देख पाने के बाद क्या किया?
उत्तर:
सीता ने रावण के चुंगल से छूटने का काफ़ी प्रयास किया। गिद्धराज जटायु ने भी सीता को रावण से छुड़ाने का काफ़ी प्रयास किया, लेकिन सीता रावण से नहीं छूट पाई। रथ टूटने पर रावण ने सीता को तुरंत बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। यह देखकर सीता को रावण से बचने की आशा नहीं रही। उन्होंने तब अपने अभूषण उतारने प्रारंभ किए और उन्हें नीचे फेंकना शुरू किया, ताकि राम को उसका पता चल जाए। आभूषण बंदरों ने उठा लिए। उन्हें आशा थी कि बानरों के पास ये आभूषण देखकर राम को पता चल जाएगा कि सीता किस मार्ग से गई हैं।

प्रश्न 5.
सीता ने रावण से राम के पराक्रम के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
सीता बार-बार रावण को धिक्कारती रहीं। वे कहती रहीं कि तुम राम की शक्ति को नहीं जानते। वे तुम्हें अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर देंगे। तेरा सारा वैभव मेरे लिए अर्थहीन है। तूने पाप किया है, राम के हाथों तेरा अंत निश्चित है। राम की इतनी प्रशंसा सुनकर रावण कुछ चिंतित हो गया।

प्रश्न 6.
जटायु कौन था? उसने रावण पर हमला क्यों किया?
उत्तर:
जटायु एक गिद्ध था। वह राम के पिता राजा दशरथ का मित्र था। रावण जब सीता को छल एवं बलपूर्वक हरण कर वायुमार्ग से ले जा रहा था तब उसने सीता का विलाप सुनकर ऊँची उड़ान भरी और रावण के रथ पर हमला कर दिया और रावण के रथ को क्षत-विक्षत कर दिया। रावण भी घायल हो गया। क्रोध में रावण ने जटायु के पंख काट डाले। जटायु ज़मीन पर आ गिरा और वह भी घायल हो गया।

प्रश्न 7.
रावण ने राक्षस-राक्षसियों को क्या निर्देश दिया?
उत्तर:
रावण ने राक्षस-राक्षसियों से कहा कि सीता को चोट न पहुँचाएँ, केवल उनको अपमानित करने का प्रयास करें।

प्रश्न 8.
सीता से राम के बल-पौरुष की प्रशंसा सुनकर रावण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
सीता से राम के बल-पौरुष की प्रशंसा सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने आठ बलिष्ठ राक्षसों को राम-लक्ष्मण की निगरानी करने के लिए भेजा। उसने यह भी आदेश दिया कि मौका मिलते ही उनका वध कर दे।

प्रश्न 9.
रावण ने सीता को कहाँ रखा? वहाँ पहरेदार को क्या निर्देश था?
उत्तर:
रावण ने सीता को अंत:पुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। उस पर पहरा कड़ा कर दिया गया। उसने राक्षस-राक्षसियों को स्पष्ट निर्देश दिए-सीता को किसी तरह का कष्ट न हो। इसके मन को दुख पहुँचाओ, अपमानित करो, लेकिन सीता को कोई हाथ न लगाए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मायावी हिरण की क्रियाकलापों का वर्णन करें तथा उसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
मायावी हिरण मारीच राम को कुटी से बाहर निकलते देखकर कुलाँचें भरने लगा। राम उसके पीछे भागने लगे। उसने राम को बहुत छकाया और झाड़ियों में लुकता-छिपता उन्हें अपने पीछे-पीछे कुटी से बहुत दूर ले गया। वह बराबर लुका-छिपी का खेल खेलता रहा। कभी पास आता और राम जब उसे पकड़ने का प्रयास करते तो दूर चला जाता। अंततः राम ने उसे जीवित पकड़ने का विचार त्याग दिया। उन्होंने धनुष से एक बाण मार दिया। बाण लगते ही हिरण धरती पर गिर पड़ा और वह ज़ोर से चिल्लाया-हा सीते! हा लक्ष्मण! ऐसे कहते समय उसने अपनी आवाज़ राम जैसी बना ली थी। उसकी आवाज़ ऐसी थी जैसे राम ही घायल होकर सहायता के लिए आवाज़ लगा रहे हों। इसके कुछ देर बाद ही प्राण निकल गए। इसका नतीजा यह रहा कि लक्ष्मण को सीता को अकेला छोड़ राम की खोज में निकलना पड़ा। सीता को अकेली देखकर रावण ने तपस्वी-वेश में वहाँ आकर छल से उनका हरण कर लिया।

प्रश्न 2.
सीता को लंका लेकर आने के बाद रावण ने क्या प्रयास किया?
उत्तर:
लंका में रावण ने सीता को अपने धन-वैभव सोहरत एवं शक्ति से प्रभावित करने का प्रयास किया। रावण सीता को लेकर अपने अंत:पुर में गया। राक्षसियों को सीता की निगरानी करने को कहा। फिर रावण ने धमकाते हुए सीता से कहा-सुंदरी। तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी। जब सीता ने बार-बार राम का गुणगान किया तब रावण ने क्रोध में कहा-“तुम्हारा राम यहाँ कभी नहीं पहुँच सकता। अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। तुम्हारी रक्षा केवल मैं कर सकता हूँ। मुझे स्वीकार करो और लंका में सुख से रहो।”

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुमान के आधार पर बताओ कि क्या होता यदि राजा दशरथ कैकेयी की प्रार्थना स्वीकार नहीं करते।
उत्तर:
यदि राजा दशरथ कैकेयी को अपना दिया हुआ वचन पूरा नहीं करते तो राम का राज्याभिषेक होता और अयोध्या के राजा बनते। राम को चौदह साल वनवास नहीं होता तथा सीता का हरण नहीं होता। अगर सीता का हरण नहीं होता तो राम-रावण का युद्ध नहीं होता। राम अगर वन नहीं जाते तो राक्षसों एवं रावण का संहार नहीं होता।

प्रश्न 2.
आपने बहुत-सी पौराणिक कथाएँ और लोक कथाएँ पढ़ी होंगी। उनमें क्या अंतर होता है? यह जानने के लिए पाँच पाँच के समूह में कक्षा के बच्चे दो-दो पौराणिक कथाएँ इकट्ठा करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. मारीच रावण का कौन था?
2. मारीच ने रावण को क्या समझाया?
3. मारीच किस रूप में पंचवटी गया?
4. बाण लगने पर मायावी हिरण ने क्या किया?
5. रावण के साथ किस पक्षी का युद्ध हुआ?
6. सीता ने अपने आभूषण उतारकर नीचे क्यों फेंके?
7. रावण चिंतित क्यों हो गया? उसने क्या किया?
8. रावण ने राक्षस-राक्षसियों को क्या निर्देश दिया?
9. रावण ने राक्षसियों को क्या निर्देश दिए?
10. रावण को अकंपन की क्या बात याद आ गई?
11. सीता ने लक्ष्मण को क्या धमकी दी?
12. मारीच की मायावी पुकार का लक्ष्मण और सीता पर क्या प्रभाव पड़ा?
13. हिरण को पकड़ने में राम असफल क्यों रहे?
14. सीता के क्रोध का क्या कारण था?
15. लक्ष्मण सीता को अकेला छोड़ने पर क्यों विवश हो गए?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. सीता ने राम के पराक्रम के बारे में क्या कहा?
2. मायावी हिरण की गतिविधियों का वर्णन करें तथा बताएँ कि उसका क्या परिणाम हुआ?
3. रावण ने किस प्रकार सीता का हरण किया?
4. असहाय सीता को अपने बचाव का क्या उपाय नज़र आया? रावण ने इसका विरोध क्यों नहीं किया?
5. सीता को लंका पहुँचाकर रावण ने क्या प्रयास किया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 7 Summary

राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलांचे भरने लगा। उसने राम को बहुत छकाया। राम को वह बहुत दूर ले गया। हिरण को पकड़ने के राम के सारे प्रयास विफल हुए। राम ने उसे जीवित पकड़ने का प्रयास छोड़ दिया। उन्होंने उस पर बाण चलाए। हिरण बाण लगते ही धरती पर गिर पड़ा। जमीन पर गिरते ही मारीच असली रूप में आ गया। उसने अपना रूप बदला और आवाज़ भी बदल ली। वह राम की सी आवाज़ में जोर से चिल्लाया-‘हा सीते! हा लक्ष्मण!’ ध्वनि ऐसी थी मानो राम सहायता के लिए पुकार रहे हों। मारीच के प्राण पखेरू उड़ गए। मारीच की आवाज़ सुनकर राम को समझने में देर नहीं लगी वे तुरंत तेज़ कदमों से कुटिया की ओर बढ़े।

मारीच की पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी। लक्ष्मण रहस्य समझ गए और चौकसी बढ़ा दिए। इधर रावण एक विशाल पेड़ के नीचे खड़ा था। उसका प्रपंच सफल होने पर था। रावण को अकंपन की बात स्मरण हो गई कि सीता का अपहरण होने पर राम के प्राण निकल जाएँगे। उधर सीता वह आवाज़ सुनकर विचलित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-“तुम जल्दी जाओ। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में फँस गए हैं। जाओ, लक्ष्मण जल्दी।” लक्ष्मण ने सीता को समझाया कि राम संकट में नहीं हैं। उनका कोई कुछ नुकसान नहीं कर सकता। वह आवाज़ मायावी राक्षसों की चाल है। इस पर सीता का क्रोध और बढ़ गया। क्रोध में आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होंने लक्ष्मण को भला-बुरा कहा तथा उन पर भरत के गुप्तचर होने का भी आरोप लगा दिया। सीता की बातों से लक्ष्मण काफ़ी आहत हो गए। लक्ष्मण चुप-चाप सिर झुकाकर खड़े थे। वे बार-बार सीता को समझाने का प्रयास करते रहे कि यह राक्षसों की चाल है, लेकिन सीता ने एक भी नहीं मानी और कहने लगीं कि-“मैं राम के बिना नहीं रह सकती। अपनी जान दे दूंगी। लक्ष्मण तुम जाओ और राम को जल्दी ले आओ।” इसके बाद लक्ष्मण ने सीता को प्रणाम किया और राम की खोज में निकल पड़े। लक्ष्मण के जाते ही रावण आ पहुँचा। रावण गेरुआ वस्त्र पहने कुटिया के पास आया। सीता ने साधु समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने सीता की खूब प्रशंसा की और लंका में जाकर रहने को कहा। उसने कहा-तुम सोने की लंका में मेरी रानी बनकर रहोगी। सीता क्रोधित हो उठीं। वे बोलीं-मैं प्राण त्याग दूंगी पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँ गी। रावण ने सीता की बात अनसुनी कर दी। उसने सीता को खींचकर रथ में बिठा लिया। सीता उसके चंगुल से बचने का प्रयास करती रही लेकिन सब व्यर्थ हुआ। वे राम और लक्ष्मण को पुकारती रहीं। वह विलाप करती रहीं-हा राम! हा लक्ष्मण! रावण का रथ लंका की ओर उड़ चला।

मार्ग में वे पशुओं, पक्षियों, पर्वतों से कहती जा रही थीं कि कोई राम को बता दे कि रावण ने उसका हरण कर लिया है। गिद्ध राज जटायु ने सीता का विलाप सुना और तुरंत रावण के रथ पर हमला किया। क्रोध में रावण ने उसके पंख काट दिए। अतः वह धरती पर आ गिरा। रावण का रथ टूट गया था। अतः वह उड़ान नहीं भर सकता था। उसने तत्काल सीता को अपनी बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता किसी तरह राम के पास सूचना पहुँचाना चाहती थीं। उन्होंने अपने आभूषण उतार कर नीचे फेंकने शुरू कर दिए ताकि राम को उसका पता चल जाए। रावण ने सीता को आभूषण फेंकने से नहीं रोका। उसे लगा कि सीता दुखी होकर ऐसा कर रही हैं।

कुछ समय में रावण लंका पहुँच गया। वह सीधा अंत:पुर गया। वह अपने धन वैभव से सीता को प्रभावित करना चाहता था। उसने सीता से कहा-मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी? ‘सीता बार-बार रावण को धिक्कारती रही और राम का गुणगान करती रही। उसने रावण को चेतावनी भरे स्वर में कहा। ‘राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता स्वीकार करते हैं। मैं उस राम की पत्नी हूँ, जिसके तेज के आगे कोई ठहर नहीं सकता। तेरा सारा वैभव मेरे लिए बेकार है। राम के हाथों तेरा संहार निश्चित है। सीता बार-बार धिक्कारती रहीं और राम का गुणगान करती रहीं। राम का गुणगान सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने आठ राक्षसों को बुलाकर पंचवटी भेज दिया ताकि वे राम-लक्ष्मण पर निगरानी रख सकें। इधर रावण ने सीता को अंत:पुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। उसने अनेक प्रयत्न किए पर सीता का मन नहीं बदला। वह रो-रोकर दिन काट रही थीं। रावण ने राक्षस-राक्षसियों को आदेश दिया कि सीता को कोई शारीरिक प्रताड़ना मत देना उसके मन को ठेस पहुँचाओ, अपमानित करो। रावण ने सब किया पर सीता बार-बार राम का नाम लेती रहीं।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 41
कुलांचे भरना – बहुत तेज़ दौड़ना। छकाया – थकाना। प्रयास – प्रयत्न, कोशिश। निशाना साधा – निशाना लगाया। प्राण-पखेरू उड़ना – मर जाना, मृत्यु होना। निशक्त – कामचोर। मंशा – इरादा, इच्छा।

पृष्ठ संख्या 43
रहस्य – राज, गुप्त बात। चौकसी – सावधानी। चूक – गलती। विचलित – बेचैन। आश्वस्त करना – विश्वास दिलाना। हितैषी – हित चाहने वाला। कलुषित – गंदा, अपवित्र । गुप्तचर – जासूस। आघात – दुख, चोट। पलटकर – मुड़कर। बौखलाना – क्रोधित होना। पीड़ा – तकलीफ।

पृष्ठ संख्या 45
विछोह – वियोग। साहस – हिम्मत। सुमुखी – सुंदर मुखवाली। क्रोधित – गुस्से में। ताकतवर। सर्वनाश – पूरी बर्बादी। प्रयास – कोशिश। असहाय – बेबस। विलाप करना – रोने-पीटने लगना। महाबलशाली – बहुत ताकतवर। वृद्ध – बूढ़ा। क्षतविक्षत – घायल।

पृष्ठ संख्या 46
आभूषण – जेवर। शोक – दुख। निर्णय – फैसला। दृष्टि – नज़र। अर्थहीन – बेकार। बलिष्ठ – ताकतवर। स्पष्ट – साफ़। निर्देश – आदेश।

पृष्ठ संख्या 47
सहमी – डरी हुई।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 6 दंडक वन में दस वर्ष

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 6 Question Answers Summary दंडक वन में दस वर्ष

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 6

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दंडक वन में राम-लक्ष्मण ने किसकी सहायता की?
उत्तर:
दंडक वन में राम-लक्ष्मण ने ऋषि मुनियों की सहायता की।

प्रश्न 2.
विंध्याचल पर्वत पार करने वाले सबसे पहले मुनि कौन थे?
उत्तर:
विंध्याचल पार करने वाले सबसे पहले मुनि अगस्त्य मुनि थे।

प्रश्न 3.
शूर्पणखा कौन थी?
उत्तर:
शूर्पणखा रावण की बहन थी।

प्रश्न 4.
नाक-कान कटने के बाद शूर्पणखा किसके पास गई?
उत्तर:
नाक-कान कटने के बाद शूर्पणखा खर-दूषण के पास आई।

प्रश्न 5.
चित्रकूट अयोध्या से कितनी दूर था?
उत्तर:
चित्रकूट अयोध्या से केवल चार दिन की दूरी पर था।

प्रश्न 6.
दंडक वन कैसा था?
उत्तर:
वन पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों से परिपूर्ण दंडकारण्य एक घना वन था, जहाँ मायावी राक्षस उपद्रव मचाते रहते थे।

प्रश्न 7.
राम चित्रकूट से दूर क्यों जाना चाहते थे?
उत्तर:
चित्रकट में अयोध्या से लोगों का आना-जाना लगा रहता था। वे राम से राय माँगते थे। राम इससे बचने के लिए चित्रकूट से दूर जाना चाहते थे।

प्रश्न 8.
जटायु कौन था? राम-लक्ष्मण से वह कहाँ मिला?
उत्तर:
जटायु एक विशालकाय गिद्ध था। वह राजा दशरथ का मित्र था। राम-लक्ष्मण से उसकी भेंट पंचवटी के मार्ग में हुई।

प्रश्न 9.
गोदावरी नदी के तट पर राम ने अपनी कुटिया के लिए किस स्थान को चुना?
उत्तर:
राम ने अपनी कुटिया के लिए पंचवटी नामक स्थान को चुना। वनवास का शेष समय वहीं बिताया।

प्रश्न 10.
पंचवटी में लक्ष्मण ने कैसी कुटिया बनाई ?
उत्तर:
पंचवटी में लक्ष्मण ने बाँस के खंभों, कुश और पत्तों के छप्पर तथा मिट्टी की दीवारों से एक बहुत सुंदर कुटिया बनाई।

प्रश्न 11.
मारीच ने रावण को क्या समझाया?
उत्तर:
मारीच ने रावण को राम की शक्ति के विषय में बताया तथा सीता-हरण से रोका। उसने रावण को समझाया कि ऐसा करना विनाश को निमंत्रण देना है।

प्रश्न 12.
सीता-हरण का सुझाव रावण को किसने दिया?
उत्तर:
सीता-हरण का सुझाव अकंपन नामक राक्षस ने दिया।

प्रश्न 13.
मारीच ने किसका रूप धारण कर लिया?
उत्तर:
मायावी मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 14.
स्वर्ण-हिरण देख सीता ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
स्वर्ण-हिरण पर सीता जी मुग्ध हो गईं तथा उन्होंने उसे पकड़ने को कहा।

प्रश्न 15.
राम ने लक्ष्मण को क्या आदेश दिया?
उत्तर:
राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया तथा कहा कि मेरे लौटने तक तुम उन्हें अकेला मत छोड़ना।

प्रश्न 16.
शूर्पणखा ने अपना परिचय किस रूप में दिया?
उत्तर:
शूर्पणखा ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वह रावण और कुंभकर्ण की बहन है और अविवाहित है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राक्षसों के प्रति सीता और राम के विचारों में क्या भिन्नता थी?
उत्तर:
राक्षसों के प्रति राम का यह मत था कि राक्षसों का अंत कर देना चाहिए ताकि वे देवताओं का अनिष्ठ न करें। वे अपनी मायावी शक्ति से ऋषि-मुनियों को भी कष्ट पहुँचाते हैं। दूसरी ओर सीता का यह मत था कि राम बिना वजह राक्षसों का वध न करें क्योंकि उन्होंने कोई अहित नहीं किया।

प्रश्न 2.
लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान क्यों काट दिए थे?
उत्तर:
शूर्पणखा राम को देखकर उन पर मोहित हो गई थी। वह राम से विवाह करना चाहती थी। उसने माया से सुंदर स्त्री का रूप बना लिया और राम के पास चली गई। राम ने सीता की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह मेरी पत्नी है। मेरा विवाह हो चुका है। राम के मना करने पर वह लक्ष्मण के पास गई। लक्ष्मण ने यह कहकर मना किया मैं राम का दास हूँ। तब शूर्पणखा ने क्रोध में आकर सीता पर झपट्टा मारा। उसने सोचा राम इसी के कारण उससे विवाह नहीं कर रहे हैं। लक्ष्मण तत्काल उठ खड़े हुए और तलवार खींचकर शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए। शूर्पणखा खून से लथपथ रोती-बिलखती अपने भाई खर-दूषण के पास पहुँच गई।

प्रश्न 3.
रावण सीता हरण के लिए क्यों तैयार हो गया था?
उत्तर:
जब राम पंचवटी पहुँचे तो उन्होंने वहाँ अनेक राक्षसों का संहार कर दिया था। एक बार खर-दूषण ने अपनी पूरी सेना के साथ आक्रमण कर दिया। राम-लक्ष्मण और राक्षसों की सेना के साथ घमासान युद्ध हुआ। अंत में राम की विजय हुई। कुछ राक्षस बचकर भाग निकले। उनमें अकंपन भी था। वह रावण के पास गया और उससे कहा कि राम को मारने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। इससे उनके प्राण स्वयं ही निकल जाएंगे। इससे रावण सीता-हरण के लिए तैयार हो गया।

प्रश्न 4.
अकंपन कौन था? उसने रावण को क्या बताया?
उत्तर:
अकंपन खर-दूषण की सेना का एक राक्षस था। राम के साथ युद्ध में जान बचाकर वह भाग आया था। वह सीधे रावण के पास पहुँचकर उसे युद्ध का सारा हाल सुनाया। उसने रावण से यह भी कहा कि राम कुशल योद्धा हैं। उनके पास विलक्षण शक्तियाँ हैं। उन्हें कोई नहीं मार सकता। उनको मारने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। इससे उनके प्राण ही निकल जाएँगे।

प्रश्न 5.
शूर्पणखा रावण के पास क्यों गई?
उत्तर:
शूर्पणखा लक्ष्मण द्वारा अपने अपमान से दुखी थी। उसने रावण को धिक्कारते हुए उसकी शक्ति को ललकारा और उससे कहा कि उसके शक्ति का क्या फायदा, यदि उसके होते हुए उसकी बहन की यह दुर्गति हो रही है। अपने साथ हुए अपमान का बदला लेने के लिए उकसाने के उद्देश्य से वह रावण के पास गई।

प्रश्न 6.
रावण ने सीता-हरण के लिए क्या योजना बनाई?
उत्तर:
रावण ने सीता हरण के लिए मारीच की सहायता लेने का निश्चय किया। उसने डरा-धमकाकर मारीच को इसके लिए तैयार कर लिया। इसके बाद रथ पर बैठकर रावण और मारीच पंचवटी पहुंच गए। राम की कुटी के समीप जाकर मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया तथा कुटी के आस-पास घूमने लगा। सीता उस सुंदर हिरण पर मुग्ध हो गई और राम से उसे पकड़कर लाने के लिए कहा। राम उसे पकड़ने के लिए बहुत दूर निकल गए।

प्रश्न 7.
शंका होते हुए भी राम हिरण के पीछे क्यों गए?
उत्तर:
दस वर्षों तक वन में रहते हुए भी सीता ने राम से कभी कुछ नहीं माँगा। इसलिए हिरण का संदेह होते हुए भी सीता की इच्छा पूर्ति के लिए राम उसके पीछे गए।

प्रश्न 8.
पंचवटी के मार्ग में राम को कौन मिला? उसने राम से क्या कहा?
उत्तर:
पंचवटी के मार्ग में राम को एक विशालकाय गिद्ध मिला। जिसका नाम जटायु था। सीता उसे देखकर डर गई तथा लक्ष्मण ने मायावी समझा। वे धनुष उठा ही रहे थे कि जटायु ने कहा-हे राजन। मुझसे मत डरो। मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में तुम्हारी सहायता करूँगा। जब आप दोनों बाहर जाएँगे तब मैं सीता की रक्षा करूँगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शूर्पणखा सीता पर क्यों झपटी? उसका क्या परिणाम रहा?
उत्तर:
राम तथा लक्ष्मण ने शूर्पणखा से विवाह करने से जब मनाकर दिया तो वह काफ़ी क्रोधित हो गई। उसने सोचा कि सीता के होते राम विवाह नहीं कर पा रहे हैं। क्रोध में आकर उसने सीता पर झपट्टा मारा। यह देखकर लक्ष्मण ने अपनी तलवार निकाली और उसके नाक-कान काट दिए। खून से लथपथ शूर्पणखा अपने सौतेले भाई खर-दूषण के पास भाग आई।

प्रश्न 2.
शूर्पणखा कौन थी? उसने रावण को सीता हरण के लिए कैसे उकसाया?
उत्तर:
शूर्पणखा रावण की बहन थी। वह राम से विवाह करना चाहती थी। वह राम को देखकर उन पर आसक्त हो गई थी। वह उन्हें पाना चाहती थी। राम और लक्ष्मण द्वारा विवाह के लिए मना करने के कारण उसने क्रोधित होकर सीता के ऊपर आक्रमण कर दिया। इस पर लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। शूर्पणखा अपने सौतेले भाईयों खर-दूषण के पास गई और खर-दूषण के पराजित होने के बाद वह सीधे रावण के पास गई और रावण के बल-पौरुष को ललकारा, फिर उसने रावण से सीता के रूप की प्रशंसा करते हुए कहा कि सीता को लंका में होना चाहिए। शूर्पणखा सीता को रावण के लिए ही लाना चाहती थी, पर क्रोधित लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट लिए। इस तरह वह अपनी बातों को रखकर उसने रावण को उकसाया।

प्रश्न 3.
सीता-हरण का फैसला एक बार छोड़कर रावण ने फिर सीता-हरण का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
एक बार मारीच के कहने पर रावण ने सीता-हरण का विचार छोड़ दिया। इस बीच शूर्पणखा लंका पहुँची। वह चीखते चिल्लाते और विलाप करते हुए रावण को लक्ष्मण द्वारा नाक-कान काटने की घटना की जानकारी दी। उसने रावण को धिक्कारते हुए कहा कि तुम्हारे महाबली होने का क्या लाभ। तुम्हारे रहते यह दुर्गति। तुम किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रह गए। उसने राम-लक्ष्मण की शक्ति की प्रशंसा की। सीता को उसने अतिसुंदर बताया और कहा कि वह तुम्हारे महलों में ही रहने के लायक है। मैं उसे तुम्हारे लिए लाना चाहती थी लेकिन लक्ष्मण ने क्रोध में मेरे नाक और कान काट दिए। शूर्पणखा से यह सुन रावण ने एक बार फिर सीता-हरण का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 4.
मारीच ने राम को आकर्षित करने के लिए क्या किया? मायावी हिरण की आवाज़ को सुनकर लक्ष्मण राम की खोज में क्यों निकल पड़े?
उत्तर:
मारीच, राम को आकर्षित करने के लिए सोने के हिरण का रूप बनाकर कुटी के आसपास घूमने लगा। मायावी हिरण की आवाज़ सुनकर लक्ष्मण और चौकस हो गए। राक्षसों की अगली चाल का सामना करने के लिए उन्होंने बाण चढ़ाकर धनुष को मज़बूती से पकड़ लिया, पर उस आवाज़ को सुनकर सीता विचलित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मण को राम की मदद के लिए जाने को कहा। लक्ष्मण ने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि राम का कोई कुछ हानि नहीं कर सकता। आप किसी प्रकार की चिंता न कीजिए, पर सीता संतुष्ट नहीं हुईं। अंत में उनके दबाव के कारण विवश होकर लक्ष्मण न चाहते हुए राम की खोज में निकल पड़े।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
सीता बिना बात के राक्षसों के वध के पक्ष में नहीं थीं जबकि राम राक्षसों के विनाश को ठीक समझते थे। तुम किससे सहमत हो? राम से या सीता से? कारण बताते हुए उत्तर दो।
उत्तर:
दृष्ट के साथ दुष्टता का परिचय देना आवश्यक है। मैं राक्षसों के विनाश के लिए राम के तर्क को सही मानता हैं। अगर साधारण एवं संत प्रकृति के व्यक्ति को दुष्ट कमज़ोर मानते हैं, वे प्रेम की बात को अनसुना करते हैं और हमेशा अन्याय तथा आतंक के मार्ग पर चलते हैं। अतः राम का तर्क राक्षसों के विनाश के लिए मैं सही मानता हूँ।

प्रश्न 2.
जंगल में तथा दंडक वन में आपने राक्षसों द्वारा मुनियों को परेशान करने की बात पढ़ी। क्या यह संभव नहीं था कि राक्षस एवं ऋषि मुनि दोनों प्रेम से रह सकते थे? कारण बताते हुए उत्तर दीजिए।
उत्तर:
राक्षस एवं मुनि दोनों के तौर तरीके एवं प्रवृत्ति में भिन्नता है। राक्षस हिंसा प्रवृत्ति के लोग होते हैं जबकि संत सामान्य कल्याणकारी तथा अहिंसा प्रकृति के। राक्षस नास्तिक होते हैं जबकि ऋषि और मुनि आस्तिक। अत: उपर्युक्त कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि दोनों शांतिपूर्वक इकट्ठे नहीं रह सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. चित्रकूट अयोध्या से कितनी दूरी पर था?
2. राम, लक्ष्मण और सीता चित्रकूट से कहाँ गए?
3. राम ने चित्रकूट प्रस्थान क्यों किया?
4. दंडकारण्य के मुनियों ने राम से क्या आग्रह किया?
5. सबसे पहले विंध्याचल पार करने वाले ऋषि का क्या नाम था?
6. रावण मारीच के पास क्यों गया?
7. राम चित्रकूट से दूर क्यों जाना चाहते थे?
8. जटायु कौन था? राम-लक्ष्मण से वह कहाँ मिला?
9. पंचवटी में लक्ष्मण ने कैसी कुटिया बनाई?
10. मारीच ने रावण को क्या समझाया?
11. रावण ने मारीच से क्या कहा?
12. राम की कुटी के समीप आकर मरीच ने क्या किया?
13. राम ने लक्ष्मण को क्या आदेश दिया?
14. रावण किसको अपने साथ लेकर पंचवटी पहुँचा?
15. पंचवटी के मार्ग में राम को कौन मिला? उसने राम से क्या कहा?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. अकंपन कौन था? उसने रावण से क्या कहा?
2. शूर्पणखा रावण के पास क्यों गई?
3. चित्रकूट से निकलकर राम कहाँ रुके? वहाँ के मुनि प्रसन्न क्यों हुए?
4. शूर्पणखा सीता पर क्यों झपटी? उसका परिणाम क्या रहा?
5. रावण मारीच के पास क्यों गया? मारीच ने रावण का आदेश क्यों माना?
6. शूर्पणखा कौन थी? उसने रावण को सीता हरण के लिए कैसे उकसाया?
7. मारीच ने राम को भ्रमित करने के लिए क्या किया? संदेह होते हुए भी राम उसके पीछे क्यों चल पड़े?
8. सीता हरण का विचार त्यागकर रावण ने फिर सीता हरण का निश्चय क्यों किया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 6 Summary

भरत अपनी प्रजा तथा सेना के साथ अयोध्या लौट चुके थे। राम पर्णकुटी के बाहर एक शिलाखंड पर बैठे थे। वे किसी सोच-विचार में मग्न थे। चित्रकूट अयोध्या से केवल चार दिन की दूरी पर था। लोगों का आना-जाना लगा रहता था। अयोध्या से लोग वहाँ आते रहते थे। कई कार्यों की राय माँगते थे और कई तरह के प्रश्न करते थे। इसलिए राम चित्रकूट से दूर जाना चाहते थे।

तीनों वनवासी मुनि अत्रि से विदा लेकर दंडक वन की ओर चल पड़े। यह वन घना था। इसमें अनेक तपस्वियों के आश्रम थे। राक्षस भी वहाँ बहत थे। राम को देखकर मुनिगण बहुत प्रसन्न हुए। मुनियों ने राम से कहा कि “आप मायावी राक्षसों से हमारी रक्षा कीजिए। वे राक्षस हमारे आश्रम को अपवित्र करते हैं तथा हमारी तपस्या भंग करते हैं।” सीता राक्षसों का अकारण वध करना नहीं चाहती थी। राम लक्ष्मण और सीता दंडकारण्य में दस वर्षों तक रहे। वे स्थान और आश्रम बदलते रहे। वे क्षरभंग मुनि के आश्रम में पहुँचे। मुनि ने राम को राक्षसों के अत्याचार की कहानी बताई और आश्रमवासियों ने राम को हड्डियों का ढेर दिखाया। ये ऋषियों के कंकाल थे जिन्हें राक्षसों ने मार डाला था। मुनि ने राम को अगस्त्य ऋषि से भेंट करने की सलाह दी। मुनि ने राम को गोदावरी नदी के तट पर जाने को कहा। उस स्थान का नाम पंचवटी था। वनवास का शेष समय दो राजकुमारों और सीता ने वहीं बिताया। पंचवटी के मार्ग में राम को जटायु मिला जिसे देखकर सीता डर गई। जटायु ने कहा कि-डरो मत, मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। ‘राम जटायु को प्रणामकर आगे बढ़ गए। पंचवटी में लक्ष्मण ने एक सुंदर कुटिया बनाई। कुटिया ने उस पंचवटी को और सुंदर बना दिया। इस बीच जो भी राक्षस आश्रम पर आक्रमण करते राम उसका संहार कर देते। वन से सभी राक्षसों का अंत हो गया। अब तपस्वी शांति से तप करने लगे।

एक दिन लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा वहाँ आई। वह राम को देखकर उन पर मोहित हो गई। वह राम के पास जाकर बोली ‘मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। राम ने कहा कि “मैं विवाहित हूँ, ये मेरी पत्नी है।” अब वह लक्ष्मण के पास आई। लक्ष्मण ने उसे पुनः राम के पास भेज दिया। वह कभी राम के पास जाती तो कभी लक्ष्मण के पास। क्रोध में आकर झपट्टा मारा। लक्ष्मण ने तत्काल उठाकर तलवार खींच ली और उसकी नाक काट डाली। खून से लथ-पथ शूर्पणखा रोती हुई अपने भाई खर-दूषण के पास पहुँची। शूर्पणखा की दशा देखकर खर-दूषण ने क्रोध में चौदह राक्षसों को भेजा। राम जानते थे कि राक्षस इस अपमान का बदला लेने ज़रूर आएँगे। अतः उन्होंने सीता को लक्ष्मण के साथ सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। राक्षस राम के सामने टिक नहीं सके। वे सभी मारे गए। इसके बाद खर-दूषण राक्षसों की पूरी सेना लेकर आए। घमासान युद्ध में राम की विजय हुई। खर और दूषण मारे गए तथा शेष राक्षस भाग गए। यह खबर अकंपन नामक राक्षस ने रावण को जाकर दी। उसने बताया कि राम कुशल योद्धा हैं उन्हें कोई नहीं मार सकता। उनको हराने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। रावण सीता के हरण के लिए तैयार हो गया। पर मारीच ने रावण को सीता का हरण न करने के लिए कहा। उसने रावण से कहा-सीता का हरण करना विनाश को आमंत्रण देना है। रावण मारीच की बात मानकर लौट आया। थोड़ी देर में शूर्पणखा रोती बिलखती रावण के पास गई और सारी घटना बताई। वह रावण को धिक्कारते हुए बोली ‘आप महाबली हैं। आपके रहते हुए यह दुर्गति।’ उसने रावण को राम-लक्ष्मण के अत्यंत बलशाली होने तथा सीता को अति सुंदरी बताया।

रावण फिर मारीच के पास गया। इस बार भी उसने सीता का हरण करने से मना किया किंतु इस बार रावण नहीं माना। उसने डाँटकर मारीच को आज्ञा दी कि तुम मेरी मदद करो। विवश होकर उसे रावण की आज्ञा माननी पड़ी। रथ पर बैठकर रावण और मारीच पंचवटी पहुँचे। कुटी के निकट आकर मायावी मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया और कुटी के आस पास घूमने लगा। इधर रावण तपस्वी का वेश धारण कर पेड़ की छाया में छिपा था। सीता इस संदर हिरण को देखकर मोहित हो गई और राम से हिरण पकड़ने के लिए कहा। राम को हिरण पर संदेह था। वे सोचने लगे कि वन में सोने का हिरण कहाँ से आएगा पर सीता के आग्रह पर राम उसके पीछे चले गए।

कुटी से निकलते समय राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया। राम की आज्ञा मानकर लक्ष्मण कुटी के बाहर खड़े हो गए।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 33
कोलाहल – शोर। पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटिया। हस्तक्षेप – दखल। विचार मग्न – विचारों में डूबा हुआ। राय – मत, विचार। मायावी – छल-कपट वाला। परिपूर्ण – भरा हुआ। विघ्न – बाधा, रुकावट। दैत्य – राक्षस । संहार – विनाश, मारना। कष्ट – तकलीफ। अपवित्र – गंदा।

पृष्ठ संख्या 35
कंकाल – अस्थि पिंजर, ढाँचा। असंभव – जो संभव न हो। अत्याचार – जुल्म। विशालकाय – लंबे चौड़े शरीर वाला। पुष्पलताएँ – फूलों वाली बेलें। आक्रमण – हमला। सौंदर्य – सुंदरता। विकृत – बिगड़ा हुआ। आसक्त – प्रेम।

पृष्ठ संख्या 36
स्वीकार – मंजूर। अविवाहित – कुँआरी। धाराशायी – धरती पर गिरकर समाप्त होना। लंकाधिपति – रावण।

पृष्ठ संख्या 37
स्वीकारना – मान लेना। परिचय – पहचान। अविवाहित – जिसका विवाह नहीं हुआ है। दास – नौकर। झपट्ट- झपटकर पकड़ने की क्रिया। दशा – हालत। मोह – माया। चकित – आश्चर्य। पिछलग्गू – पीछे-पीछे चलने वाला। विवरण – हाल।

पृष्ठ संख्या 39
अपहरण – अवसर मिलते ही किसी को चुरा ले जाना। पौरुष – बल, शक्ति, पराक्रम। ललकारना – चुनौती देना। महाबली – बहुत बलवान। दुर्गति – बुरी हालत। विनाश – अंत।

पृष्ठ संख्या 40
प्रवास – अपना देश छोड़कर दूसरे देश में जाकर बसना। संदेह – शंका। आग्रह – निवेदन।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 5 Question Answers Summary चित्रकूट में भरत

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुनि वशिष्ठ ने भरत से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
मुनि वशिष्ठ ने भरत से आग्रह किया कि आप आयोध्या का राज्य संभालें।

प्रश्न 2.
भरत द्वारा दिए गए किस समाचार को सुनकर राम सन्न रह गए?
उत्तर:
जब भरत ने पिता राजा दशरथ की मृत्यु की सूचना दी तो यह सुनकर राम सन्न रह गए।

प्रश्न 3.
कैकेयराज ने भरत को किसके साथ विदा किया?
उत्तर:
कैकेयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया।

प्रश्न 4.
मंथरा की भूमिका का पता चलने पर शत्रुघ्न ने क्या किया?
उत्तर:
मंथरा की भूमिका का पता चलने पर शत्रुघ्न उसके बाल पकड़कर खींचते हुए भरत के पास ले आए। वह उसे जान से मार देना चाहते थे लेकिन भरत ने उसे बचा लिया।

प्रश्न 5.
भरत ने ननिहाल में क्या सपना देखा था?
उत्तर:
भरत ने सपना देखा-समुद्र सूख गया, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए, एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है और रथ को गधे खींच रहे हैं।

प्रश्न 6.
भरत के अनुसार वन को किसे जाना चाहिए था?
उत्तर:
भरत के अनुसार वन को माता कैकेयी को जाना चाहिए था।

प्रश्न 7.
माता कौशल्या ने आहत अवस्था में भरत से क्या कहा?
उत्तर:
कौशल्या ने कहा पुत्र तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे, हो गया। राम अब जंगल में हैं। अयोध्या का राज तुम्हारा है।

प्रश्न 8.
कौशल्या को कैकेयी की किस बात का दख था?
उत्तर:
कौशल्या को इस बात का दुख था कि कैकेयी ने साम्राज्य हड़पने का जो तरीका अपनाया, वह अनुचित तथा अन्यायपूर्ण था।

प्रश्न 9.
राम ने लक्ष्मण को क्या समझाया?
उत्तर:
राम ने लक्ष्मण को समझाया कि वीर पुरुष धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। हमें समय का इंतजार करना चाहिए। व्यग्र होना बहादुरों के लिए ठीक नहीं होता।

प्रश्न 10.
चित्रकूट में किसका आश्रम था?
उत्तर:
चित्रकूट में महर्षि भारद्वाज का आश्रम था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अयोध्या पहुँचने पर भरत ने क्या महसूस किया?
उत्तर:
अयोध्या पहुँचने पर भरत को अयोध्या असामान्य लगी। वहाँ का माहौल उन्हें बदला-बदला लगा। उन्हें अनिष्ट की आशंका होने लगी। जब उन्होंने सड़कें सूनी होने और बाग-बगीचों में उदासी के माहौल का कारण पूछा, तो उन्हें इसका कोई उत्तर नहीं मिला।

प्रश्न 2.
भरत को रानी कौशल्या ने क्या कहा?
उत्तर:
आहत कौशल्या ने भरत से कहा कि तुम्हारे पिता का निधन हो गया है। अब अयोध्या का राज तुम्हारा है, लेकिन कैकेयी द्वारा राज लेने का अपनाया गया तरीका अनुचित था। राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं।

प्रश्न 3.
भरत ने अपनी माँ को किन शब्दों में धिक्कारा?
उत्तर:
भरत ने अपनी माँ को धिक्कारते हुए कहा-यह तुमने क्या किया, माते। ऐसा अनर्थ। घोर अपराध। अपराधिनी हो तुम। वन तम्हें जाना चाहिए था राम को नहीं। “तुमने पाप किया है माते। इतना साहस कहाँ से आया तुम्हें ? किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। उल्टा पाठ किसने पढ़ाया? यह अपराध अक्षम्य है।”

प्रश्न 4.
भरत ने सभासदों के सामने अपनी क्या मंशा जताई?
उत्तर:
भरत ने सभासदों के सामने अपनी मंशा जताते हुए कहा-मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ मैं वन में राम के पास जाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी संभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।

प्रश्न 5.
भरत वन जाने के लिए क्यों परेशान थे?
उत्तर:
राजा दशरथ की मृत्यु के बाद अयोध्या का सिंहासन खाली था। यह देखकर महर्षि वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को बुलाकर राजकाज संभालने के लिए कहा। भरत ने मुनि का अनुरोध स्वीकार करते हुए राजगद्दी पर राम का अधिकार बताया। राम ही राज्य के सच्चे अधिकारी हैं। राज्य का कार्य भार संभालना भी भरत पाप समझते थे। उन्होंने वन जाने का निश्चय किया ताकि राम को अयोध्या वापस ला सकें।

प्रश्न 6.
विराट सेना को आता देखकर लक्ष्मण को क्या संदेह हआ?
उत्तर:
लक्ष्मण पर्णकुटी के बाहर पहरा दे रहे थे। कोलाहल सुनकर वे वृक्ष पर चढ़ गए। उन्होंने विराट सेना को आते देखा। सेना का ध्वज उनका जाना-पहचाना था। यह अयोध्या की सेना थी। अयोध्या की सेना को अपनी ओर आता देख लक्ष्मण को संदेह हुआ कि भरत उन पर आक्रमण करने आए हैं और जान से मार डालना चाहते हैं।

प्रश्न 7.
पहाड़ी पर पहुँचकर भरत ने क्या देखा और क्या किया?
उत्तर:
पहाड़ी पर पहुँचकर भरत ने देखा कि राम एक शिला पर बैठे हुए थे। पास में ही सीता और लक्ष्मण बैठे थे। भरत दौड़ पड़े। वे राम के चरणों में गिर पड़े। शत्रुघ्न ने भी राम की चरण वंदना की।

प्रश्न 8.
महर्षि वशिष्ठ ने जब राम से अयोध्या लौटकर अपना दायित्व निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
महर्षि वशिष्ठ ने राम से कहा कि रघुकुल की परंपरा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र ही राज का अधिकारी होता है। इसलिए तुम अयोध्या लौट चलो और राज-कार्य के दायित्व को संभालो। तब राम ने कहा कि वे पिता की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद वे उनका वचन नहीं तोड़ सकते। उन्होंने यह भी कहा-“चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए, पर मैं पिता के वचनों का पालन करूँगा। मैं उनकी आज्ञा से वन में आया हूँ। अब भरत को ही राजगद्दी संभालनी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ननिहाल से अयोध्या लौटकर भरत और कैकेयी के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
उत्तर:
जब भरत ननिहाल से अयोध्या पहुंचे तो माता कैकेयी से पिता के बारे में पूछा। माता कैकेयी ने पिता के निधन का समाचार दिया। भरत यह सुनकर शोकाकुल होकर विलाप करने लगते हैं। फिर भरत ने माता कैकेयी से पूछा कि क्या पिता ने उनके लिए कोई अंतिम संदेश दिया था। माता ने इनकार किया। कैकेयी तब उन्हें अपने वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए कहती हैं कि उन्होंने ही राम को वन भेजने की प्रार्थना दशरथ से की थी। यह सब उन्होंने भरत के हित के लिए किया था इसलिए वह भरत से अयोध्या का राज संभालने को कहती हैं। तब भरत का क्रोध फूट पड़ा। उन्होंने माता कैकेयी को बहुत बुरा भला कहा। माता ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। उसने जो भी किया वह उसके भलाई के लिए किया। भरत माता को धिक्कारते हुए कहते हैं कि वह राम को मनाकर वापस लाएँगे और उनके दास बनकर रहेंगे। यह कहकर वे काफ़ी उत्तेजित हो गए और चकराकर धरती पर गिर पड़े।

प्रश्न 2.
भरत ने वन जाने का निर्णय क्यों लिया? उनकी चित्रकूट यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
भरत ने राम को वन से मनाकर वापस अयोध्या लाने के लिए वन जाने का निर्णय किया। वह अपने पूरे दल-बल के साथ चित्रकूट की ओर चल दिए। पहले तो निषादराज गुह को सेना देखकर कुछ संदेह हुआ पर सही स्थिति का पता चलते ही उन्होंने भरत की आगवानी की। उन्होंने गंगा पार करने के लिए भरत के लिए 500 नावें जुटा दीं। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ा। मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुँचकर भरत को राम का समाचार मिलता है। आश्रम में ही रात बिताकर सभी अगली सुबह उस पहाड़ी की ओर चल पड़ते हैं। जिस पर राम का पर्णकुटी निवास था। वे शत्रुघ्न के साथ नंगे पैर, पहाड़ी को प्रणाम कर उस पर चढ़ने लगते हैं। भरत की सेना देखकर लक्ष्मण को लगा कि भरत उन्हें मार डालना चाहते हैं। उन्हें सेना का औचित्य समझ नहीं आ रहा था। राम ने लक्ष्मण को समझाया कि शांत रहें। भरत राम के समीप पहुँचकर उनके चरणों में गिर पड़े। भरत पिता के निधन का दुखद समाचार राम को देने में हिचकिचा रहे थे। भरत ने राम से अयोध्या वापस जाकर राजग्रहण करने का अनुरोध किया जिसे राम ने दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया।

प्रश्न 3.
राम पिता के सच्चे भक्त थे कैसे? स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
राजा दशरथ व मुनि वशिष्ठ से परामर्श के बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई किंतु कैकेयी द्वारा राजा दशरथ की इच्छा का पता चलते ही राम राज्य का लोभ-मोह छोड़कर पिता का वचन निभाने वन चले गए। वन-गमन को उन्होंने राजाज्ञा नहीं पिताज्ञा मानकर स्वीकार किया। वन में जाकर जब भरत ने उनसे लौटने का आग्रह किया तब भी राम ने यह कहकर उसे अस्वीकार किया कि पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद भी राम पिता के वचन का पालन करते रहे। राम को मुनि वशिष्ठ द्वारा राज-काज संभालने के लिए कहने पर भी उनका जवाब था कि “चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए परंतु मैं पिता की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता।” इन उपयुक्त आधारों पर हम कह सकते हैं कि राम पिता के सच्चे भक्त थे।

प्रश्न 4.
भरत का त्याग इस पाठ में बहुत बड़ा उदाहरण है। कैसे? पाठ के आधार पर लिखए।
उत्तर:
भरत को आयोध्या के राज्य के प्रति ज़रा भी लोभ नहीं था। उन्होंने राम को सच्चा उतराधिकारी बताते हुए वहाँ का राज्य ठुकरा दिया। दूसरा उदाहरण भरत राम को मनाने माता कैकेयी एवं प्रजाजनों के साथ वन जाते हैं और राम को वापस लाने का प्रयास करते हैं। भरत राम के पास से खाली नहीं लौटते और राम से उनकी चरण पादुका लेकर आते हैं ताकि सिंहासन पर चरण पादुका रखकर उसी की आज्ञानुसार राज्य का कार्य कर सकें। उन्होंने राजा जैसा कोई अभिमान न करते हुए, नंदीग्राम में तपस्वी जैसा जीवन बिताते रहे। इन सब बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भरत के त्याग से बढ़कर कोई उदाहरण नहीं हो सकता है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आप कभी भरत की तरह अपने बड़े भाई या पिता से किसी बात को कहने का साहस जुटा पाने में असमर्थ रहे हैं? अगर हाँ तो कब और क्यों?
उत्तर:
हाँ, मैं अपने दादा जी की मृत्यु की सूचना पाकर भी पिता जी को समाचार देने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।

प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर अगर आप किसी आश्रम में गए हों तो वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में हमारे सात प्रमुख महर्षि थे। उनके गोत्र के आधार पर नाम इंटरनेट से या अध्यापक महोदय से पता करके लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना देखा?
2. दशरथ की मृत्यु के समय भरत कहाँ थे?
3. मृत्यु के समय दशरथ के मुख से क्या शब्द निकले?
4. महर्षि भारद्वाज का आश्रम कहाँ स्थित है?
5. भरत की चिंता का क्या कारण था?
6. अयोध्या नगरी को देख भरत के मन में क्या भाव उठे?
7. लक्ष्मण सेना देखकर उत्तेजित क्यों हो गए?
8. भरत को पिता दशरथ की मृत्यु का समाचार किसने दिया और कैसे?
9. राम ने क्या कहकर अयोध्या लौटने से इनकार कर दिया?
10. भरत वन जाने के लिए क्यों व्यग्र थे?
11. भरत के चरित्र से तम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
12. राम ने रहने के लिए कुटिया कहाँ बनाई थी?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ?
2. भरत की चित्रकूट यात्रा का वर्णन करो।
3. लक्ष्मण ने अचानक ऐसा क्या देखा कि आपा खो बैठे और आक्रामक मुद्रा में आ गए।
4. राम के अयोध्या लौटने के लिए तैयार न होने पर भरत ने राम से क्या अनुरोध किया?
5. भरत के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary

भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए।

माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा।

इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया।

मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया।

भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 26
सर्वथा – बिलकुल। अनभिज्ञ – जानकारी न होना। चिंतित होना – चिंता होना। मन न लगना – उदास होना। उतावले – आतुर, बेचैन। लाँघना – पार करना। तुमुलनाद – बहुत शोर। कलरव – पक्षियों की आवाजें। अशंका – डर।

पृष्ठ संख्या 27
निधन – मृत्यु। विलाप – रोना। ढाढस – हिम्मत। यशस्वी – यशवान। व्यस्त – काम में लगे होना। व्याकुल – बेचैन, दुखी। भ्राता – भाई। दंड – सजा। अहित – बुरा। निष्कंटक – बिना किसी बाधा के। अनर्थ – गलत। अर्थहीन – बेकार। साहस – हिम्मत। भ्रष्ट – गलत। अक्षम्य – जो क्षमा करने योग्य न हो। सौगंध – कसम।

पृष्ठ संख्या 28
उत्तेजित – जोश में आ जाना। नियंत्रण – काबू। आहत – दुखी। मनोकामना – मन की इच्छा। अनुचित – गलत। निर्मम – कठोर। ग्लानि – अपने ऊपर नफ़रत। व्यक्त – प्रकट। अहित – बुरा। खतरा – डर। दृष्टि – नज़र। लपककर – आगे बढ़कर। आग्रह – विनती।

पृष्ठ संख्या 29
चतुरंगिनी सेना – पैदल सैनिकों, घुडसवारों तथा रथों से सजी सेना। कोलाहल – शोर। खलबली – हल चल मचना। बसेरा – घर। पाँव – पैर। पहरा देना – रखवाली करना, देखभाल करना। विराट – बड़ी। एकछत्र – अकेला।

पृष्ठ संख्या 31
धैर्य – धीरज। उतावलापन – आतुरता, बहुत जल्दी करना। नैसर्गिक – स्वाभाविक, कुदरती। छवि – शक्ल। शिला – चट्टान। दुखद – दुखदायी, दुख देने वाला। अनिवार्य – बहुत आवश्यक। दायित्व – जिम्मेदारी निभाना पालन करना।

पृष्ठ संख्या 32
संयत – स्थिर। शीतल – ठंडा। मर्यादा – इज़्ज़त। विफल – असफल। सुसज्जित – अच्छी प्रकार सजा हुआ। प्रतिहारी – सेवक। पादुकाएँ – खड़ाऊँ। धरोहर – अमानत। गरिमा – सम्मान गौरव। आँच न आने देना – कोई हानि न पहुँचने देना।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 4 Question Answers Summary राम का वन-गमन

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 4

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम के वन-गमन की बात सुनकर लक्ष्मण क्या चाहते थे?
उत्तर:
राम के वन-गमन की बात सुनकर लक्ष्मण चाहते थे कि राम अपने बाहुबल से राज्य छीन लें।

प्रश्न 2.
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासी किसे धिक्कार रहे थे?
उत्तर:
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासी राजा दशरथ को धिकार रहे थे।

प्रश्न 3.
रानी कैकेयी ने राम, सीता और लक्ष्मण को वन-गमन के समय क्या दिया?
उत्तर:
रानी कैकेयी ने राम, सीता और लक्ष्मण को वन-गमन के समय वल्कल वस्त्र पहनने को दिए।

प्रश्न 4.
रानी कैकेयी ने दशरथ के बारे में सुमंत से क्या कहा?
उत्तर:
रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के बारे में सुमंत से कहा कि वे राम के राज्याभिषेक के उत्साह में सारी रात जागते रहे हैं और बाहर आने से पहले राम से कुछ बात करना चाहते हैं।

प्रश्न 5.
मुनि वशिष्ठ क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर:
सीता को तपस्विनी वेश में देखकर मुनि वशिष्ठ क्रोधित हो गए।

प्रश्न 6.
अयोध्या की सीमा पर पहुँचकर राम ने क्या किया?
उत्तर:
अयोध्या की सीमा पर पहुँचकर राम ने मुड़कर अपनी भूमि को प्रणाम किया और कहा हे माता मातृभूमि अब चौदह वर्ष बाद ही आपके दर्शन हो सकेंगे।

प्रश्न 7.
श्रृंगवेरपुर गाँव में वे किसके अतिथि बनकर रहे?
उत्तर:
शृंगवेरपुर गाँव में वे निषादराज गुह ने राम का स्वागत किया। वे निषादराज गुह के अतिथि बनकर रहे।

प्रश्न 8.
सीता ने जंगल जाने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:
सीता ने तर्क दिया- “मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।”

प्रश्न 9.
दशरथ ने प्राण कब त्यागे?
उत्तर:
राम के वन गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्यागे।

प्रश्न 10.
महाराज दशरथ के राज्य की सीमा कहाँ समाप्त होती थी?
उत्तर:
महाराज दशरथ के राज्य की सीमा सई नदी के तट पर समाप्त होती थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महामंत्री सुमंत ने महल में जाकर क्या देखा?
उत्तर:
सुमंत ने महल में जाकर देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। वे बीमार दीन-हीन से लगते थे। अर्धचेतन अवस्था में थे। कुछ बोल नहीं पा रहे थे।

प्रश्न 2.
राम के निवास का दृश्य कैसा था? सुमंत के वहाँ आगमन पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
राम निवास के सामने काफ़ी भीड़ लगी थी। लक्ष्मण जी भी वहीं मौजूद थे। चारों तरफ काफ़ी चहल-पहल थी। भवन को सजाया गया था। उसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। सुमंत के वहाँ पहुँचते ही शोर शराबा काफ़ी बढ़ गया। लोगों ने समझा कि वह राज्याभिषेक के लिए राम को आमंत्रित करने आए हैं। सुमंत ने राम को बताया कि महाराज दशरथ ने उन्हें बुलाया है। दोनों राजकुमार राजसी वस्त्रों में सुसज्जित होकर महाराज दशरथ से मिलने गए। अचानक बुलावे का कारण वे दोनों भाई नहीं समझ पा रहे थे। दरबार में जनता राम की जय जयकार में लगी हुई थी।

प्रश्न 3.
कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
कैकेयी ने राम से कहा कि महाराज दशरथ ने उन्हें एक बार दो वरदान दिए थे। उसने कल रात उनसे दोनों वरदान माँग लिए, अब वे दिए हुए वचन से पीछे हट रहे हैं। यह रघुकुल के रीति के विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। महाराज यह बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।

प्रश्न 4.
राम ने क्या-क्या तर्क देकर सीता को वन जाने से रोकना चाहा? और सीता ने राम के साथ वन जाने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:
राम ने सीता को साथ वन न जाने के लिए तर्क देते हुए समझाया कि वन का जीवन बहुत कठिन है। वहाँ न तो रहने का ठिकाना होता है और न ही अच्छा भोजन मिल पाता है। वहाँ कदम-कदम पर कठिनाइयाँ खड़ी होती रहती हैं। आप महलों में पली हैं। अत: आप महल में ही रहिए। सीता ने राम के साथ वन जाने के लिए तर्क देते हुए कहा कि मुझे पिता जी ने आदेश दिया था कि मैं छाया की भाँति सदा आपके साथ रहूँ। इसलिए मैं आपके साथ वन जाऊँगी।

प्रश्न 5.
राम के वन-गमन के दृश्य का वर्णन करें?
उत्तर:
राम-लक्ष्मण और सीता जब सबसे अनुमति लेकर वन गमन को निकले तो नगरवासी भी उनके रथ के पीछे दौडने लगे। राजा दशरथ और कौशल्या भी उनके पीछे-पीछे गए। उन सबकी आँखों में आँसू थे। पुरुष, महिलाएँ, बूढ़े, जवान, बच्चे उनके पीछे-पीछे मीलों तक नंगे पाँव दौड़ते रहे। यह देखकर राम भावुक हो गए। उन्होंने सुमंत से रथ और तेज़ चलाने को कहा ताकि लोग थककर उनके पीछे-पीछे आना बंद कर दें।

प्रश्न 6.
वन जाने से पूर्व जब राम पिता से आशीर्वाद लेने गए तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
जब राम वन जाने से पहले पिता से आशीर्वाद लेने पहुंचे तब राजा दशरथ ने कहा-‘पुत्र मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बनाकर राजपाट संभालो। यह राज सिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा।’

प्रश्न 7.
दीन-भाव दशरथ को देख सुमंत के मन में अनेक शंकाएँ उठीं। कैकेयी ने सुमंत की शंकाओं का निदान कैसे किया?
उत्तर:
सुमंत राजभवन जैसे ही पहुँचे तो उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। यह देखकर सुमंत के मन में शंकाएँ हुईं लेकिन उनके निवारण के लिए कैकेयी ने कहा कि मंत्रीवर, चिंता की कोई बात नहीं है। महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में पूरी रात जगे हैं लेकिन बाहर निकलने से पहले राम से बातचीत करना चाहते हैं। इसके बाद राजा दशरथ ने बहुत ही दीन-भाव से बुलाने की आज्ञा दी। इस तरह सुमंत की शंकाओं का निवारण हुआ।

प्रश्न 8.
राजा दशरथ कैकेयी को मनाने में असफल रहे पर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता कैसे जागी?
उत्तर:
राजा दशरथ कैकेयी को नहीं मना सके पर राम के आने के बाद कैकेयी ने बताया कि महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिये थे। मैंने कल की रात वही दो वरदान माँगे जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह रघुकुल की रीति के बिलकुल विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि भरत का राज्याभिषेक हो और तुम्हें चौदह वर्षों का वनवास।’ राम ने माता की बातों को सुनकर दृढ़ता से कहा कि-‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जायेगी और मैं आज ही वन को चला जाऊँगा।’ राम की ऐसी बात सुनकर कैकेयी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

प्रश्न 9.
सुमंत का खाली रथ अयोध्या पहुँचने पर अयोध्यावासियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
सुमंत का खाली रथ अयोध्या पहुँचने पर अयोध्या वासियों ने उन्हें घेर लिया। उनसे राम, सीता और लक्ष्मण के बारे में अनेक प्रश्न किए। उन्होंने पूछा-महामंत्री, राम कहाँ है? सीता कैसी है? लक्ष्मण कैसे हैं? वे कहाँ रहते हैं ? वे क्या खाते है? उनके उत्तरों से किसी को भी संतोष नहीं हुआ। महाराज दशरथ की बेचैनी बढ़ती गई और राम के वन-गमन के छठे दिन उन्होंने प्राण त्याग दिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तब कौशल्या की क्या दशा हुई?
उत्तर:
जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तो वह अपनी सुध खो बैठी। राम ने उन्हें समझाया और वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या का मन था कि राम को रोक लें, उसे वन में न जाने दें। भले ही राजगद्दी छोड़ दे पर अयोध्या में ही रहें। उसने यह भी कहा-‘पुत्र यह राजाज्ञा अनुचित है। इसे मानने की आवश्यकता नहीं है।’ राम ने नम्रता से उत्तर दिया-“यह राजाज्ञा नहीं पिता की आज्ञा है। आप मुझे आशीर्वाद दें।’ फिर कौशल्या ने स्वयं को संभाला।

प्रश्न 2.
राम के वन जाने का समाचार सुनकर नगर तथा महल में क्या प्रतिक्रिया हुई? उन घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
राम के वन जाने का समाचार तेज़ी से पूरे शहर में आग की तरह फैल गया। नगरवासी दशरथ तथा कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ समय पहले जहाँ काफ़ी खुशी का माहौल था, वहाँ अब उदासी में बदल गया। प्रजा के आँसुओं से सड़कें गीली हो गई थीं। सबकी यह इच्छा थी कि राम और सीता वन न जाएँ। वे उनको रोकना चाहते थे लेकिन बेबस थे। राम-सीता और लक्ष्मण जंगल जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राम के आने पर दशरथ उठकर बैठ गए और उनसे कहा कि वे विवश हैं, परंतु राम पर कोई विवशता नहीं है। वह चाहते थे कि राम उन्हें बंदी बनाकर राजसिंहासन पर अधिकार कर लें। राम यह सुनकर दुखित हो गए। उन्होंने कहा कि उन्हें राज्य का लालच नहीं है तथा पिता से आशीर्वाद माँगा। राम ने पुनः सभी से वन जाने की आज्ञा माँगी और महल से निकल पड़े।

प्रश्न 3.
राम दशरथ के बीच हुए संवाद को लिखिए।
उत्तर:
जब राम-सीता और लक्ष्मण पिता का आशीर्वाद लेने कक्ष में गए। दशरथ उठकर बैठ गए। उन्होंने राम से कहा कि “मैं वचनबद्ध हूँ पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बना लो और राज सम्भालो।” दशरथ ने कहा-“पुत्र, मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। यह राजसिंहासन तुम्हारा है, केवल तुम्हारा।” राम पिता की पीड़ा से दुखी हो गए और उन्होंने दशरथ से कहा, आपकी आंतरिक पीड़ा आपको ऐसा करने के लिए विवश कर रही है। मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। राम अनुमति लेकर वन को चले गए।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी कल्पना से वन में होने वाली असुविधा का वर्णन करें।
उत्तर:
वन मार्ग में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं। ऊँचा-नीचा, पथरीला मार्ग होता है। मार्ग में बड़े-बड़े पेड़ झाड़ियाँ, जंगली जानवर, जहरीले जीव-जंतु भी होते हैं। धूप के कारण धूल का गरम होना सर्दियों में सर्द हवा, कड़ाके की ठंड होती है। रहने-खाने की परेशानी लगी रहती है। अतः वन का मार्ग अनेक कठिनाइयों से भरा रहता है।

प्रश्न 2.
क्या आप अपने पिता के वचन को निभाते हैं। आप अपने अनुभवों की मदद से बताओ कि क्या पिता को दिया हुआ वचन हमेशा निभाते हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. लक्ष्मण ने राजसिंहासन के बारे में राम से क्या कहा?
2. सीता ने जंगल जाने के लिए क्या तर्क दिया?
3. शाम होते-होते राम-लक्ष्मण-सीता का रथ कहाँ पहुँच गया?
4. महामंत्री सुमंत असहज क्यों थे?
5. कैकेयी ने राम से राजा दशरथ की असहज स्थिति का क्या कारण बताया?
6. राम ने सीता को अपने साथ चलने की स्वीकृति क्यों दी?
7. राम अपने साथ सीता को वन क्यों नहीं ले जाना चाहते थे?
8. राम के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
9. महाराज दशरथ के राज्य की सीमा कहाँ समाप्त होती थी?
10. राम के वन-गमन के साथ राजा दशरथ की क्या दशा थी?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. राम के वन-गमन का समाचार प्रसारित होने के बाद नगर तथा राजभवन की घटनाओं का वर्णन करें।
2. जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तब कौशल्या की क्या प्रतिक्रिया हुई?
3. राम के वन-गमन के दृश्य का वर्णन कीजिए।
4. सुमंत का खाली रथ देखकर अयोध्यावासियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 4 Summary

कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। सारी रात राजा दशरथ कैकेयी को समझाते रहे, पर वह अपनी ज़िद पर अडी रही। राजा दशरथ उसे समझाते रहे। पूरे नगर में राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी। हर व्यक्ति शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में था। महामंत्री सुमंत कुछ परेशान लग रहे थे। वे महर्षि के पास गए। उन्होंने बताया कि पिछली शाम से किसी ने महाराज दशरथ को नहीं देखा। महर्षि ने सुमंत को राजभवन भेजा। वहाँ उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। कैकेयी ने कहा “मंत्रीवर महाराज बाहर निकलने से पहले राम से बात करना चाहते हैं। आप उन्हें बुला लाइए।” दशरथ ने बहुत ही क्षीणस्वर में राम को बुलाने की आज्ञा दी। सुमंत के मन में कई तरह की आशंकाएँ थीं।

राजमहल के बाहर काफ़ी भीड़ थी। भवन को खूब सजाया गया था। सुमंत राम के पास जाकर बोले-“राजकुमार, महाराज ने आपको बुलाया है। आप मेरे साथ चलें।” कुछ ही पल में राम-लक्ष्मण वहाँ पहुँच गए। राम समझ नहीं पा रहे थे कि महाराज ने उन्हें अचानक क्यों बुलाया है। सभी लोग समझ रहे थे कि राम राज्याभिषेक के लिए जा रहे हैं इसलिए लोग जय जयकार करने लगे। महल में पहुँचकर राम-लक्ष्मण ने माता-पिता को प्रणाम किया। राम को आया देखकर दशरथ बेसुध हो गए। उनके मुँह से हल्कीसी आवाज आई-‘राम’। आगे वे कुछ न बोल सके। राम ने कैकेयी से पूछा तो उसने बताया कि मैंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए हैं-‘मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।’ उन्होंने दृढ़ता से कहा ‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा, भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा। राम की बातें सुनकर रानी का चेहरा खिल उठा।

कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने अपनी माता को कैकेयी भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय भी बता दिया। यह सुनकर माता कौशल्या सुध-बुध खो बैठीं। लक्ष्मण क्रोध से भर गए, पर राम ने उन्हें शांत किया। राम ने लक्ष्मण से वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या की इच्छा थी कि राम राजगद्दी भले ही छोड़ दें, पर अयोध्या में रहें। राम ने अपनी माता से बताया कि यह राजाज्ञा नहीं यह एक पिता की आज्ञा है। मैं उनकी आज्ञा का पालन करूँगा। आप मुझे आशीर्वाद दें। लक्ष्मण राम की बात से सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि राम अपने शक्तिबल से अयोध्या का राजसिंहासन छीन लें और गद्दी पर बैठ जाएँ। इससे असहमति प्रकट करते हुए राम ने कहा कि अधर्म का सिंहासन मुझे नहीं चाहिए। मेरे लिए तो जैसा राजसिंहासन है वैसा ही वनवास। कौशल्या भी राम के साथ वन जाना चाहती थी, किंतु राम ने उन्हें मना कर दिया और समझाया कि इस समय पिता को सहारे की आवश्यकता है। अंततः कौशल्या ने राम को गले लगाया और आशीर्वाद देते हुए कहा-‘जाओ पुत्र, दसो दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक इंतजार करूंगी।’

कौशल्या भवन से निकलकर राम सीता के पास गए। सारा हाल बताकर विदा माँगी। पर सीता ने कहा-‘मेरे पिता का आदेश है कि छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।’ राम को सीता की बात माननी पड़ी। लक्ष्मण वहाँ आ गए। वह भी साथ चलने को तैयार थे। राम के वन जाने का समाचार पूरे शहर में तेजी से फैल गया। नगरवासी राजा दशरथ और कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ देर पहले तक वहाँ उत्सव की तैयारियाँ चल रही थीं अब उदासी ने घेर लिया। लोगों के आँखों में आँसू थे। सभी अयोध्यावासी रामसीता को वन जाने से रोकना चाहते थे। पर वे बेबस थे।

वन जाने की तैयारी होने लगी। राम-सीता और लक्ष्मण वन जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राजा दशरथ बेसुध दर्द से कराह रहे थे। राम के प्रवेश करने पर दशरथ में जीवन का संचार हुआ। वे उठकर बैठ गए। वे बोले- “पुत्र, मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए मैं विवश हूँ। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो। यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा है। पिता के वचनों ने राम को झकझोर दिया। वे बोले मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। इसी बीच कैकेयी ने राम-लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। तीनों ने तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और राजसी वस्त्र उतार कर रख दिए। सीता को तपस्वनी वस्त्र में देखकर वशिष्ठ मुनि को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि-‘अगर सीता वन जाएगी तो अयोध्यावासी उनके साथ जाएँगे।’ राम सबका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़े। आगे-आगे राम पीछे-पीछे सीता और उनके पीछे लक्ष्मण। महल के बाहर सुमंत रथ लेकर खड़े थे। नगरवासी रथ के पीछे-पीछे नंगे पाँव दौड़ रहे थे। रथ तेजगति से चला जा रहा था। राजा दशरथ उसी दिशा में नज़रें गड़ाए रहे। माता कौशल्या भी उनके पीछे गईं। बड़े-बूढ़े, बच्चे सबके आँखों में आँस थे। राम का यह दृश्य देखकर विचलित हो गए। तमसा नदी के तट पर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई। अगली सुबह दक्षिण दिशा की ओर चले। गोमती नदी पारकर राम-सीता और लक्ष्मण सई नदी के तट पर पहुंचे। यहीं अयोध्या राज्य की सीमा समाप्त होती थी। राम ने मुड़कर जन्मभूमि को प्रणाम किया। शाम होते-होते गंगा के किनारे पहुँच गए। शृंगवेरपुर गाँव में निषादराज गुह ने उनका स्वागत किया। राम ने वहीं रात्रि विश्राम किया। अगली सुबह राम ने महामंत्री सुमंत को वापस भेज दिया। सुमंत का खाली रथ देखकर नगरवासियों ने उन्हें घेर लिया। सुमंत बिना कुछ बोले राजभवन चले गए। उन्होंने राजा दशरथ को सारी स्थिति से अवगत करा दिया। दशरथ को उनकी बातों से संतोष नहीं हुआ। राजा दशरथ ने राम के वन-गमन के छठे दिन प्राण त्याग दिए। महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद से चर्चा की और भरत को तत्काल अयोध्या बुलाने का निर्णय किया गया। अयोध्या की घटनाओं के बारे में मौन रहने का निर्देश दिया गया। भरत को अयोध्या की घटनाओं को बताए बिना तत्काल अयोध्या बुलाया गया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 20
प्रतीक्षा – इंतजार। व्यस्तता – काम में लगे रहना। तत्काल – तुरंत। ज़िद – हठ। अड़ी रहना – टिकी रहना। घटनाक्रम – घटनाओं का सिलसिला। ज़िद – हठ। आयोजन – किसी काम के लिए पहले से किया जाने वाला प्रबंध। अनजान – जिसकी जानकारी न हो। क्षीण – कमज़ोर,धीमी। कोलाहल – शोर। संकेत – इशारा।

पृष्ठ संख्या 21
विस्मित – हैरान। पुष्पवर्षा – फूलों की वारिश। राजसी वस्त्र – राजा का वस्त्र। बेसुध – बेहोश। चुप्पी – कुछ न बोलना। वरदान – किसी से मांगी गई चीज। विवरण – हाल। सुध खो देना – होश न रहना, कुछ न समझना। राजाज्ञा – राजा का आदेश। उल्लंघन – इनकार।

पृष्ठ संख्या 22
भाग्यवश – किस्मत के कारण। कायर – डरपोक। आशंका – डर। व्याकुल – बेचैन। स्वीकृति – मंजूरी। प्रतिवाद – विरोध। अंततः – अंत में। पलटना – इनकार करना। धिक्कार – कोसना।

पृष्ठ संख्या 23
बेबस – लाचार। दर्द – पीड़ा। मति – बुद्धि, अकल। वचनवद्ध – वायदे से बँधा हुआ। वल्कल – वृक्ष की छाल। विचलित – व्याकुल, बेचैन। भावुक – भावपूर्ण ।

पृष्ठ संख्या 25
ओझल होना – नज़र न आना। तट – किनारा। मुड़कर – घूमकर। विश्राम – आराम। प्राण त्यागना – मृत्यु हो जाना। वियोग – विछोह। चर्चा – बातचीत। दूत – संदेहवाहक।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 3 दो वरदान

These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 3 दो वरदान are prepared by our highly skilled subject experts.

Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 3 Question Answers Summary दो वरदान

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 3

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम के विवाह के बाद राजा दशरथ के मन में क्या इच्छा थी?
उत्तर:
राम के विवाह के बाद राजा दशरथ के मन में राम का राज्याभिषेक करने की इच्छा थी।

प्रश्न 2.
राज्याभिषेक की घोषणा के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे?
उत्तर:
राज्याभिषेक की घोषणा के समय भरत और शत्रुघ्न अपने नाना कैकेयराज के यहाँ गए थे।

प्रश्न 3.
राम के किन गुणों से सभी प्रभावित थे?
उत्तर:
राम की विद्वता, विनम्रता तथा पराक्रम से सभी प्रभावित थे।

प्रश्न 4.
मंथरा कौन थी?
उत्तर:
मंथरा रानी कैकेयी की मुँहलगी दासी थी।

प्रश्न 5.
कैकेयी ने दशरथ से कितने वर माँगे थे?
उत्तर:
कैकेयी ने दशरथ से दो वर माँगे थे।

प्रश्न 6.
पहला वरदान क्या था?
उत्तर:
भरत के लिए राजगद्दी।

प्रश्न 7.
दूसरा वरदान क्या था?
उत्तर:
दूसरा वरदान था राम को चौदह वर्ष का वनवास।

प्रश्न 8.
राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर कैकेयी ने क्या किया?
उत्तर:
राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर कैकेयी ने प्रसन्न होकर अपने गले का हार मंथरा को दे दिया।

प्रश्न 9.
कैकेयी कोप भवन में क्यों चली गई?
उत्तर:
मंथरा के भड़काने पर राम के राज्याभिषेक की बात कैकेयी को षड्यंत्र जैसी लगी। इसलिए वह कोपभवन में चली गई।

प्रश्न 10.
वरदान न देने पर कैकेयी ने क्या धमकी दी?
उत्तर:
उसने धमकी दी कि वह विष पीकर आत्महत्या कर लेगी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा दशरथ राम का राज्याभिषेक क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे। उन्होंने राम को साम्राज्य के काम-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम इस जिम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे थे। प्रजा भी उन्हें चाहती थी इसलिए राजा दशरथ राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
राम के राज्याभिषेक की खबर सुनकर मंथरा क्यों जलभुन गई?
उत्तर:
मंथरा रानी कैकेयी की मुँहलगी दासी थी। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। वह रानी से बहुत अधिक प्रेम करती थी। रानी भी उसे बहुत मानती थी। राम का राज्याभिषेक मंथरा को कैकेयी के विरुद्ध एक षड्यंत्र लगा। इस कारण वह राज्याभिषेक की खबर सुनकर जलभुन गई।

प्रश्न 3.
मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या बात समझाई ?
उत्तर:
मंथरा ने रानी कैकेयी को यह बात कही कि तुम्हारे सुखों का अंत होने वाला है। महाराज दशरथ ने कल सुबह राम का राज याभिषेक करने का निर्णय लिया है। यदि राम राजा बने तो भरत उनके दास हो जाएंगे और उन्हें स्वयं कौशल्या की दासी बनना पड़ेगा। अतः अच्छा यही है कि वह दशरथ से समय रहते दो वचन माँग लें। वही वचन जिसे देने का संकल्प उन्होंने पहले दिया था। पहले वचन में भरत के लिए राजगद्दी तथा दूसरे वचन में राम के लिए 14 वर्ष का वनवास माँगने की सलाह मंथरा ने कैकेयी को दी।

प्रश्न 4.
मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या उपाय बताया?
उत्तर:
मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि वह मैले कपड़े पहनकर कोप भवन में चली जाए। महाराज आएँ तो उनकी ओर मत देखना, बात मत करना। वे तुम्हारा दुख नहीं देख सकेंगे। जब वे मनाने लगें बस उसी समय पिछली बात याद दिलाकर दोनों वचन माँग लेना।

प्रश्न 5.
कैकेयी ने अंतिम हथियार के रूप में राजा दशरथ के ऊपर क्या किया?
उत्तर:
रानी ने राजा दशरथ पर दवाब बनाने के लिए अपना अस्त्र चलाते हुए कहा-“अपने वचन के पीछे हटना रघुकुल की रीति नहीं है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर तब आप दुनिया को मुँह दिखाने योग्य नहीं रहेंगे। अगर आप वचन पूरा नहीं करेंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लँगी। यह कलंक आपके माथे रहेगा।”

प्रश्न 6.
कैकेयी द्वारा वरदान माँगे जाने पर दशरथ की क्या दशा हुई?
उत्तर:
कैकेयी द्वारा वरदान माँगे जाने पर महाराज दशरथ हैरान रह गए। उनका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उन पर मानो वज्रपात हो गया। वे कुछ बोल नहीं पाए। वे मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर बाद होश में आने पर वे कातरभाव से कैकेयी से बोले-“यह तुम क्या कह रही हो। वे बार-बार कैकेयी की माँग अस्वीकार करते रहे। पर कैकेयी अपनी ज़िद पर अड़ी रही। वे दोबारा बेहोश हो गए और रातभर बेसुध पड़े रहे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का निर्णय क्यों लिया?
उत्तर:
राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे। उन्होंने मुनि वशिष्ठ से विचार-विमर्श करके दरबार में कहा-मैंने लंबे समय तक राज-काज चलाया। अब मेरे अंग शिथिल हो गए हैं। राम चारों भाइयों में बड़े हैं। जब से वे सीता स्वयंवर के बाद अयोध्या वापस आए थे। राजा दशरथ ने उन्हें राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम भी यह जिम्मेदारी अच्छी तरह उठा रहे थे। इसके अतिरिक्त विद्वता, विनम्रता और पराक्रम में वे काफ़ी आगे थे। राज्य की प्रजा उन्हें काफ़ी चाहती थी। दशरथ उन्हें प्यार करते थे। दरबार में राम का काफ़ी सम्मान था। यह सब देखकर राजा दशरथ ने उन्हें युवराज बनाने का निर्णय लिया।

प्रश्न 2.
कोप भवन में कैकेयी और राजा दशरथ के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
उत्तर:
जब राजा दशरथ कोप भवन में पहुँचे तो वहाँ का दृश्य देखकर हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। महाराजा दशरथ ने कैकेयी से पूछा कि “तुम्हें क्या दुख है? तुम अस्वस्थ हो राज्य वैद्य को बुलाया जाए।” पर कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी रोती रही। दशरथ कैकेयी से बोले कि ‘तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ।’ किंतु कुछ भी उत्तर न मिला। तब कैकेयी ने कहा कि ‘हाँ, मैं बीमार हूँ। मैं अपनी बीमारी के बारे में आपको बताऊँगी पहले आप मुझे एक वचन दें कि जो माँगू उसे पूरा करेंगे।’ राजा दशरथ ने तुरंत हामी भर दी। उन्होंने राम की सौगंध खाकर वचन पूरा करने को कहा। राजा दशरथ राम की सौगंध ली तो कैकेयी उठकर बैठ गई और बोली “आप मुझे दो वरदान दें जो वर्षों पहले आपने रणभूमि में देने का संकल्प लिया था। मेरा पहला वरदान-भरत को राजगद्दी तथा दूसरा वरदान, राम को चौदह वर्ष का वनवास।” राजा दशरथ यह सुनकर मूर्छित हो गए। होश में आने पर बोले-“यह तुम क्या कह रही हो। मझे विश्वास नहीं होता कि मैंने सही सुना है।” कैकेयी अपनी बात पर अड़ी रही। उसने धमकी दी-“अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लूँगी। यह कलंक आपके माथे रहेगा।”

प्रश्न 3.
मंथरा पर कैकेयी की डाँट का असर क्यों नहीं हुआ? उसने कैकेयी से अपनी बात किस तरह मनवा ली?
उत्तर:
मंथरा कैकेयी की दासी थी। उसे कैकेयी से काफ़ी लगाव था। उसके लिए कैकेयी और भरत का हित ही सर्वोपरि था। कैकेयी भी उसे बहुत मानती थी। इसलिए उसे कैकेयी की डाँट का बुरा नहीं लगता था तथा उस पर कोई असर नहीं होता था। उसने अपनी बात मनवाने के लिए कैकेयी को भोली और नादान कहा। उसने कैकेयी से कहा कि तुम्हारे सुखों का अंत होने वाला है। आप कौशल्या के रानी बनते ही तुम दासी बन जाओगी और भरत दास बनकर रह जाएँगे। राम के बाद उसका पुत्र ही अगला राजा होगा। राम का राज्याभिषेक होते ही वे भरत को राज्य से बाहर निकाल देंगे। उसकी ऐसी बातें कैकेयी पर असर कर जाती हैं और वह राजा से अपनी बात मनवा ही लेती है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आप कभी ऐसी यात्रा पर गए हो जिसमें आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो? अपना अनुभव लिखो।
उत्तर:
हाँ, एक बार हमें भी ऐसी कष्टपूर्ण यात्रा करनी पड़ी। उस दिन दिल्ली बंद थी। स्कूटर-टैक्सियों की हड़ताल थी। मुझे स्टेशन जाना था। अतः मैं घर से पैदल ही चल पड़ा। मुझे स्टेशन तक पहुँचने में तीन घंटे लगे। मेरे पैर सूज गए। मैं थककर चूर हो गया था।

प्रश्न 2.
राम सीता का चित्र बनाकर उसमें रंग भरिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
मान लो कि आपके विद्यालय में राम कथा को नाटक के रूप में खेलने की तैयारी चल रही है। आप इस नाटक में कौन से पात्र की भूमिका अदा करोगे और क्यों?
उत्तर:
मैं नाटक में राम के पात्र की भूमिका अदा करना चाहूँगा। राम एक आदर्श पुरुष थे। उनमें विद्वता, विनम्रता तथा पराक्रम काफ़ी थे। उनके इन गुणों का अनुसरण सभी करना चाहते हैं। अयोध्या की आम जनता भी राम से काफ़ी खुश रहती थी। इसलिए मैं राम के पात्र की भूमिका अदा करना चाहूँगा।

अभ्यास प्रश्न

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. राम के राज्याभिषेक के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे?
2. रानी कैकेयी के दो वरदान क्या थे?
3. मंथरा को क्या देखकर अचंभा हुआ?
4. राजा दशरथ की क्या इच्छा थी?
5. मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या सलाह दी?
6. मंथरा की विद्रोह भरी बातों से कैकेयी पर क्या असर हुआ?
7. राजा दशरथ राम को ही युवराज क्यों बनाना चाहते थे?
8. उस घटना का वर्णन कीजिए जिससे दशरथ पर वज्रपात-सा हो गया?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का निर्णय क्यों और किस प्रकार लिया?
2. कैकेयी द्वारा वरदान माँगे जाने पर महाराज दशरथ की क्या दशा हुई?
3. कोप भवन में रानी कैकेयी और राजा दशरथ के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
4. कैकेयी ने ऐसा क्या सुना कि उसने अपने गले का हार मंथरा को दे दिया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 3 Summary

राजा दशरथ बूढे हो चले थे। उनके दिल में राम के राज्याभिषेक की इच्छा बची हई थी। दशरथ के लिए राम प्राणों से भी प्यारे थे। राम की विद्वता, विनम्रता और पराक्रम से सभी प्रभावित थे। सारी प्रजा राम को चाहती थी। राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से विचार-विमर्श किया और राज-काज राम को सौंपने का निश्चय हुआ। उसके बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई। समस्त सभा ने राजा दशरथ के प्रस्ताव का स्वागत किया। चारों ओर राम की जय-जयकार होने लगी। राजा जनक ने कहा- “शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए। मेरी इच्छा है कि राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कल सुबह कर दी जाएँ।” राजा दशरथ को यह जानकर काफ़ी संतोष हुआ कि प्रजा राम को राजा बनाये जाने से काफी खुश है। यह खबर पूरे नगर में फैल गई और राम के राज याभिषेक की तैयारियाँ होने लगीं।

उस समय भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में नहीं थे। वे अपने ननिहाल केकयराज के यहाँ गए हए थे। भरत को अयोध्या की घटनाओं की सूचना नहीं थी। उन्हें राज्याभिषेक की भी सूचना नहीं थी। राजा दशरथ ने इस संबंध में राम से चर्चा की। उन्होंने कहा कि”भरत यहाँ नहीं हैं पर मैं चाहता हूँ कि राज्याभिषेक का कार्यक्रम न रोका जाए। प्रजा ने तुम्हें अपना राजा चुना है। तुम राजधर्म का पालन करना।”

राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कैकेयी की दासी मंथरा भी देख रही थी। मंथरा कैकेयी की मुँहलगी दासी थी। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। यह सब देखकर वह जलभुन गई। उसने राजमहल में जाकर कैकेयी को भड़काया कि तेरे ऊपर भयानक विपदा आने वाली है। यह सोने का समय नहीं है। महाराज दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया है। अब राम युवराज होंगे। यह एक षड्यंत्र है। भरत को जान-बूझकर ननिहाल भेज दिया गया है। समारोह के लिए बुलाया तक नहीं है। कैकेयी ने पहले मंथरा को इस प्रकार के विचारों के लिए डाँटा-फटकारा। जब उसने और भड़काया तो कैकेयी पर मंथरा की बातों का असर होने लगा। उसका सिर चकरा गया। आँखों में आँसू आ गए। उसे प्रसन्नता की जगह क्रोध आने लगा। वह घबड़ाकर मंथरा से बोली तम्हीं बताओ कि मैं क्या करूँ। ‘कैकेयी ने इससे बचाव का उपाय पूछा तो मंथरा ने रानी को याद दिलाया-महाराज दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिए थे। उसने बताया कि ‘एक वरदान के लिए भरत को राज गद्दी तथा दूसरे वरदान के लिए राम को चौदह वर्ष का वनवास माँग लो।’ अब कैकेयी को मंथरा की बात अच्छी लगने लगी। कैकेयी इसके लिए तैयार हो गई। कैकेयी कोप भवन में चली गई। राजा दशरथ वहाँ पहुँचे। वहाँ का दृश्य देखकर वे हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। महाराज दशरथ ने कैकेयी से पूछा कि “तुम्हें क्या दुख है। तुम अस्वस्थ हो राज वैद्य को बुलाया जाए।” पर कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी रोती रही। दशरथ कैकेयी से बोले कि “तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ।” किंतु कुछ भी उत्तर न मिला। अब राजा दशरथ भूमि पर बैठ गए। विनती करते रहे। कैकेयी ने कहा कि ‘हाँ, मैं बीमार हूँ। मैं अपनी बीमारी के बारे में आपको बताऊँ गी लेकिन पहले आप मुझे एक वचन दें कि जो माँगू उसे पूरा करेंगे।’ राजा दशरथ ने राम की सौगंध खाकर वरदान देने का संकल्प दोहराया। कैकेयी ने मौका देखकर कह दिया कि कल सुबह राम के स्थान पर भरत का राज्याभिषेक होना चाहिए और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। यह सुनकर राजा दशरथ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। वे अवाक रह गए उनका सिर चकराने लगा और मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर में राजा को होश आया। वे बड़े कातर भाव से कैकेयी से बोले-‘यह तुम क्यों कह रही हो। मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने सही सुना है।’ कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी रही। कैकेयी ने स्मरण दिलाया कि अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष खाकर आत्महत्या कर लूंगी। यह कलंक आपके माथे होगा।’ राजा दशरथ यह सुन नहीं सके । वे बेहोश होकर गिर पड़े। बीच-बीच में होश आता रहा। वे रात भर कैकेयी के सामने गिड़गिड़ाते रहे, डराते रहे, धमकाते रहे पर कैकेयी टस-से-मस नहीं हुई। सारी रात इसी प्रकार बीत गई।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 14
विचार-विमर्श – सलाह करना। राज्याभिषेक – राज गद्दी पर बैठना। पराक्रम – ताकत। शिथिल – कमज़ोर। तुमुलध्वनि – ज़ोर की आवाज़। पलक झपकते – बहुत जल्दी। निर्णय – फैसला।

पृष्ठ संख्या 15
रौनक – शोभा। अचंभा – हैरानी। सर्वोपरि – सबसे ऊपर। मुँहलगी – बहुत प्रिय। विपत्ति – दुख। अमंगल – अशुभ, अनिष्ट।

पृष्ठ संख्या 16
उग्र – तेज। अगाध – बहुत। सर्वदा – हमेशा। ज्येष्ठ पुत्र – बड़ा बेटा। फटकार – डाँट-डपट । नादान – मासूम। आसन्न – निकट, समीप। संकट – विपत्ति, विपदा। तरस आना – दया आना। दासी – नौकरानी। अनर्थ – बिना अर्थ के। तिरस्कार – उपेक्षा। भाँपना – अनुमान लगाना। कोपभवन –जहाँ क्रोध में रहा जाता है।

पृष्ठ संख्या 17
तुरंत – फौरन। कक्ष – कमरा। प्रयास – कोशिश। बज्रपात – भारी संकट। सौगंध – कसम। भूमि – जमीन। विनती – प्रार्थना। संकल्प – पक्का इरादा। दृश्य – नजारा।

पृष्ठ संख्या 19
अवाक – चुप, स्तब्ध। कातर भाव – व्याकुल नगरों से। अस्वीकार – इनकार। अनादर – तिरस्कार। विष – ज़हर। आत्महत्या – जान देना। कलंक – बदनामी। दोबारा – दूसरी बार।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 2 जंगल और जनकपुर

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 2 Question Answers Summary जंगल और जनकपुर

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 2

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन में विश्वामित्र ने कौन-कौन-सी विद्याएँ सिखाईं?
उत्तर:
महर्षि विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को बला-अतिबला नामक विद्याएँ सिखाईं। इसके सीखने के बाद निद्रावस्था में भी कोई उन पर आक्रमण नहीं कर सकता था।

प्रश्न 2.
राजमहल से निकलने के बाद महर्षि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण ने रात में कहाँ विश्राम किया?
उत्तर:
राजमहल से निकलने के बाद महर्षि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण ने सरयू नदी के तट पर विश्राम किया।

प्रश्न 3.
ताड़का को किसने मारा?
उत्तर:
ताड़का को राम और लक्ष्मण ने मारा।

प्रश्न 4.
महर्षि ने आश्रम की जिम्मेदारी किसे सौंपी?
उत्तर:
महर्षि ने आश्रम की रक्षा की जिम्मेदारी राम-लक्ष्मण को सौंप दी?

प्रश्न 5.
राक्षस की सेना में कब भगदड़ मच गई?
उत्तर:
सुबाहु के मरने पर राक्षस की सेना में भगदड़ मच गई।

प्रश्न 6.
मारीच क्यों क्रोधित था?
उत्तर:
राम ने मारीच की माँ ताड़का का वध किया था, इसलिए वह क्रोधित था।

प्रश्न 7.
मिथिला के राजा कौन थे? उनकी क्या प्रतिज्ञा थी।
उत्तर:
मिथिला के राजा जनक थे। उनकी प्रतिज्ञा थी कि वह अपनी पुत्री सीता का विवाह उसी राजकुमार से करेंगे जो विशाल शिव के धनुष को तोड़ेगा।

प्रश्न 8.
शिव धनुष की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
शिव धनुष अत्यंत विशाल था। उसे आठ पहियों वाली लोहे की पेटी में रखा गया था, जिसे खिसकाकर अनुचर एक स्थान से दूसरे स्थान पर से जाते थे।

प्रश्न 9.
अयोध्या से बारात को मिथिला पहुँचने में कितना समय लगा?
उत्तर:
बारात को मिथिला पहुँचने में पाँच दिन लग गए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महर्षि विश्वामित्र ने नदी-तट पर राजकुमारों से क्या कहा?
उत्तर:
नदी तट पर विश्वामित्र ने राजकुमारों से कहा कि आज की रात्रि हम नदी के किनारे विश्राम करेंगे। मैं तुम्हें कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इन्हें सीखने के बाद कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा। उस समय भी नहीं जब तुम नींद में रहो। विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को बला-अतिबला विद्याएँ सिखाईं।

प्रश्न 2.
विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को असली खतरा किससे बताया?
उत्तर:
विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को असली खतरा राक्षसी ताड़का से बताया। वह नदी के पार जंगल में रहती थी।

प्रश्न 3.
विश्वामित्र कौन थे? वह राजा दशरथ के पास क्यों आए थे?
उत्तर:
विश्वामित्र स्वयं शक्तिशाली और वीर राजा थे। बाद में अपना राजपाट छोड़कर उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया। जंगल में उन्होंने सिद्धाश्रम बना लिया था। वह सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहे थे, जिसमें दो राक्षस बाधा डाल रहे थे। उन राक्षसों के वध के लिए राम को अपने साथ ले जाने वह दशरथ के पास आए थे।

प्रश्न 4.
किस-किस का विवाह किस-किसके साथ हुआ?
उत्तर:
राम का विवाह सीता के साथ, लक्ष्मण का विवाह उर्मिला के साथ, भरत का विवाह मांडवी के साथ और शत्रुघ्न का विवाह श्रुतकीर्ति के साथ संपन्न हुआ। मांडवी और श्रुतकीर्ति राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज की पुत्रियाँ थीं।

प्रश्न 5.
राजा दशरथ के दरबार में ऐसी कौन-सी घटना घटी जिससे वे काफ़ी उदास हो गए?
उत्तर:
राजा दशरथ के राज्य में चारों तरफ खुशियाँ छाई हुई थीं तभी वहाँ महर्षि विश्वामित्र जी आए। महर्षि के स्वागत सत्कार के बाद राजा दशरथ ने कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ। आपके आदेश का पूरी तरह पालन होगा। यह सुन विश्वामित्र ने अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम को माँगा, यह सुनकर राजा दशरथ काफ़ी उदास हो गए।

प्रश्न 6.
राजा दशरथ ने राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति कैसे दे-दी?
उत्तर:
जब मुनि वशिष्ठ ने राम की शक्ति के बारे में बताया। उनसे रघुकुल की रीति का पालन करते हुए अपना वचन निभाने को कहा। उन्होंने बताया कि विश्वामित्र के साथ रह कर राम उनसे अनेक नई विद्याएँ सीख सकेंगे। उनके समझाने पर राजा दशरथ ने राम को जाने की अनुमति दे दी, लेकिन उन्होंने राम के साथ लक्ष्मण को भी जाने को कहा।

प्रश्न 7.
विश्वामित्र की बात सुनकर राजा दशरथ की मनोस्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महर्षि विश्वामित्र की बात सुनकर पुत्र वियोग की आशंका से राजा काँप उठे और बेहोश होकर गिर पड़े। होश आने पर पुनः मूर्छित हो गए। वह राम से बहुत अधिक प्रेम करते थे। वे राम के बिना रहने में असमर्थ थे। उन्हें बार-बार यह आंशका भी सता रही थी कि 16 वर्षीय राम मायावी राक्षसों का मुकाबला कैसे कर पाएंगे। इसी चिंता से वे काफ़ी डरे हुए थे।

प्रश्न 8.
ताड़का कौन थी? उसका अंत कैसे हुआ?
उत्तर:
ताड़का एक राक्षसी थी। जब राम ने धनुष की प्रत्यंचा को खींचकर छोड़ा। उसकी टंकार सुनकर ताड़का गरजती हुई राम की ओर दौड़ी। वह क्रोध में भरकर राम की ओर दौड़ी उसने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। राम ने उस पर बाण चलाए। लक्ष्मण ने भी निशाना साधा। राम का एक बाण उसके हृदय में लगा और उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 9.
सुंदरवन का नाम ‘ताड़का वन कैसे पड़ गया।’
उत्तर:
ताड़का एक राक्षसी थी। जिस वन में रहती थी, उसके भय के कारण उसका नाम ही ताड़का वन पड़ गया था। सुंदर वन नदी के पार था। यह अत्यंत घना और दुर्गम जंगल था। उसके डर से वहाँ कोई नहीं आता जाता था। जो भी उधर आता था। ताड़का उस पर अचानक आक्रमण कर मार डालती थी। अतः उसके भय और आतंक के कारण सुंदर वन का नाम ताड़कावन पड़ गया।

प्रश्न 10.
विवाह से ठीक पहले विदेहराज ने राजा दशरथ से क्या कहा?
उत्तर:
विवाह से ठीक पहले विदेहराज ने महाराज दशरथ से कहा- ‘राजन। राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर बड़ी पुत्री सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की पुत्रियाँमांडवी और श्रुतकीर्ति भरत तथा शत्रुघ्न से ब्याही जाएँ। राजा दशरथ ने उनके इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 11.
जनकपुरी की शोभा का वर्णन पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
विवाह के अवसर पर जनकपुरी नगरी जगमगा रही थी। हर मार्ग पर तोरण दवार पर बने थे। प्रवेश दवारों पर बंदनवार एवं घरों में मंगलगीत गाए जा रहे थे। वहाँ की महिलाएँ राम-सीता की जोड़ी की झलक पाने को उत्सुक प्रतीत होती थीं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम-लक्ष्मण ने विश्वामित्र के आश्रम की रक्षा किस प्रकार की?
उत्तर:
महर्षि विश्वामित्र यज्ञ की तैयारियों में लग गए। उन्होंने आश्रम की सुरक्षा की जिम्मेदारी राम-लक्ष्मण को दे दी। राम लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक न सोने का निर्णय लिया। वे लगातार जागते रहे और चौकस रहे। हाथ में धनुष और कमर में तलवार लटकाए हुए हर स्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार थे। यज्ञ सपन्न होने के दिन सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। मारीच को क्रोध इसलिए भी था क्योंकि राम ने उसकी माँ का वध कर दिया था। राम ने मारीच को निशाना बनाया। वह बाण लगते ही मूर्छित हो गया। होश में आने पर वह उठकर भाग गया। राम का दूसरा बाण सुबाहु को लगा। वह वहीं ढेर हो गया। अन्य राक्षस जान बचाकर भाग गए।

प्रश्न 2.
विश्वामित्र राम को मिथिला क्यों ले गए? मिथिला की घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को मिथिला चलने को कहा, क्योंकि वहाँ उन्हें अद्भुत शिव धनुष दिखाना था और मिथिला में राजा जनक के एक आयोजन में उन्हें शामिल होना था। राजा जनक ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि जो यह धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, सीता का विवाह उसके साथ कर दिया जाएगा। अनेक राजकुमार तो इसे हिला भी न सके थे। धनुष सचमुच विशाल था, लेकिन महर्षि विश्वामित्र का आदेश पाकर राम ने यह धनुष उठा लिया, उसे आसानी से झुकाया और ऊपर से दबाकर प्रत्यंचा खींची। इस दबाव से धनुष बीच से टूट गया। सभी लोग वहाँ बैठे आश्चर्यचकित रह गए।

प्रश्न 3.
राजा जनक क्यों आश्चर्यचकित थे? उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से क्या पूछा?
उत्तर:
राजा जनक अपनी प्रतिज्ञा और सीता के विवाह को लेकर बहुत चिंतित थे, लेकिन राम द्वारा शिव धनुष के उठाने पर राजा जनक चकित हो गए। जब धनुष टूट गया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्हें अपनी पुत्री सीता के लिए योग्य वर मिल गया था। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से पूछा- “मुनिवर। आपकी अनुमति हो तो मैं महाराज दशरथ के पास संदेश भेजूं, बारात लेकर आने का आमंत्रण। यह शुभ संदेश उन्हें शीघ्र भेजना चाहिए।”

प्रश्न 4.
जनकपुरी को बारात के स्वागत के लिए कैसे सजाया गया था?
उत्तर:
बारात के स्वागत के लिए जनकपुरी में धूम मची हुई थी। पूरी जनकपुरी जगमगा रही थी। हर मार्ग पर तोरणद्वार बने थे। हर जगह फूलों की चादर बिछाई गई थीं प्रत्येक कोना सुंगधित था। हर कोने के प्रवेश द्वार पर बंदनवार लगे थे। प्रत्येक घर से मंगलगीतों की ध्वनि सुनाई देती थी। नगर में खुशी का माहौल था।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
तुम ऐसे कामों की सूची बनाओ जो हॉस्टल में छात्र स्वयं करते हैं?
उत्तर:
ऐसे कई काम हैं जो छात्र स्वयं प्रतिदिन करते हैं; जैसे-

  • अपना बिस्तर ठीक करना
  • कमरे में झाडू लगाना
  • चीजों को व्यवस्थित जगह पर रखना
  • अपनी प्लेट खुद धोना
  • अपने मोजे साफ़ करना
  • अपने जूते पॉलिश करना।

प्रश्न 2.
अपने घर के कामों में माँ का हाथ बँटाओ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. ताड़का कौन थी?
2. राम ने विश्वामित्र के साथ वन में जाकर क्या किया?
3. शिव धनुष कहाँ रखा हुआ था?
4. शिव धनुष को किसने उठाया?
5. महर्षि ने राजकुमारों को कौन-कौन सी विद्याएँ सिखाईं ?
6. विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को असली खतरा किससे बताया?
7. महर्षि ने आश्रम की जिम्मेदारी किसे सौंपी?
8. सुंदरवन का नाम ‘ताड़कावन’ कैसे पड़ गया?
9. ताड़का की मृत्यु के बाद वन में क्या परिवर्तन आया?
10. बारात के स्वागत में जनकपुर को कैसे सजाया गया?
11. किस-किसका विवाह किस-किसके साथ हुआ?
12. राजा जनक की क्या प्रतिज्ञा थी। इनकी यह प्रतिज्ञा कैसे पूरी हुई?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. विश्वामित्र राम को मिथिला क्यों ले गए? मिथिला की घटनाओं का वर्णन करें?
2. राम ने यज्ञ की रक्षा किस प्रकार की?
3. ताड़का कौन थी? उसका अंत कैसे हुआ?
4. राजा जनक क्यों चकित थे? उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से क्या पूछा?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 2 Summary

राजमहल से निकलकर महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों के साथ सरयू नदी के कनारे की ओर बढ़े। वे सधे कदमों से दूर तक सरयू के किनारे-किनारे चलते रहे। देखते ही देखते अयोध्या नगरी पीछे छूट गई। सब कुछ दृष्टि से ओझल हो गया। शाम हो गई। राजकुमारों के चेहरों पर थकान का कोई चिह्न नहीं था। दिनभर पैदल चलने के बाद भी वे थके नहीं थे। वे उत्साहित कदमों से आगे बढ़ते ही जा रहे थे। दिनभर पैदल चलने के बाद उन्होंने आसमान पर दृष्टि डाली। आसमान मटमैला हो गया था। पशु-पक्षी अपने घरों को लौट रहे थे। तभी महर्षि ने कहा-“हम आज रात नदी तट पर ही विश्राम करेंगे।” उन्होंने राम से कहा कि मैं तुम दोनों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इस विद्या को सीखने के बाद कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा।

दोनों भाई राम और लक्ष्मण नदी में हाथ मुँह धोकर विश्वामित्र के नजदीक आकर बैठे। उन्होंने दोनों भाइयों को “बला, अतिबला” नाम की दो विद्याएँ सिखाईं। रात में वे वहीं तिनकों और पत्तों का बिस्तर बनाकर सोए।

सुबह होते ही उन्होंने पुनः यात्रा शुरू कर दी। वे सरयू के किनारे चलते-चलते ऐसे स्थान पर जा पहुँचे जहाँ दो नदियाँ आपस में मिलती थीं। उस संगम की दूसरी नदी गंगा थी। अगली सुबह वे लोग नाव से गंगा पार करके आगे बढ़े। नदी के पार घना जंगल था। वहाँ डरावना वातावरण देखकर महर्षि ने राम-लक्ष्मण को समझाया-‘ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है। असली खतरा राक्षसी ताड़का से है, वह यहीं रहती है। तुम्हें यह खतरा हमेशा के लिए मिटा देना है। ‘उस सुंदर वन का नाम ही ‘ताड़कावन’ पड़ गया था। महर्षि की आज्ञा सुनकर राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। टंकार सुनते ही ताड़का गरजते हुए राम की ओर दौड़ी। ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए राम ने उस पर वाण चलाए। लक्ष्मण ने निशाना साधा। ताड़का राम का एक तीर लगते ही गिर पड़ी और फिर नहीं उठी। यह देखकर विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उन्हें सौ तरह के अस्त्र-शस्त्र दिए और उनके प्रयोग की विधि बताई। तीनों ने रात वहीं बिताई। ताड़का के वन में न होने के कारण वह स्थान अब पूरी तरह से भयमुक्त था। अब चारों तरफ शांति थी।

अगले दिन अंतिम पड़ाव था सिद्धाश्रम। वहाँ पहुँचकर महर्षि यज्ञ की तैयारियों में लग गए। आश्रम की सुरक्षा की जिम्मेदारी रामलक्ष्मण पर थी। पाँच दिन तक सब कुछ ढीक-ठाक चलता रहा। राम-लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक रात-दिन जगकर आश्रम को देखभाल की। अनुष्ठान के अंतिम दिन अचानक आवाजों से आसमान गूंज उठा। सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। मारीच इस बात से भी क्रोधित था कि राम-लक्ष्मण ने उसकी माँ को मारा था। वे दोनों राक्षस ताड़का के पुत्र थे। राम ने राक्षसों को देखते ही मारीच पर बाण चलाया। वह बाण लगते ही मूर्छित हो गया। वह बहुत दूर जाकर गिरा, पर मरा नहीं। होश आने तक वह दक्षिण दिशा को भागा। सुबाहु बाण लगते ही मर गया। सुबाहु के मरते ही राक्षस सेना में भगदड़ मच गई। महर्षि विश्वामित्र का अनुष्ठान संपन्न हो गया। इसके बाद जब राम ने अपने लिए आज्ञा पूछी तब विश्वामित्र ने कहा कि हम यहाँ से मिथिला जाएँगे।

दूसरे दिन विश्वामित्र राम-लक्ष्मण के साथ महाराज जनक के यहाँ पहुँचे। राजा जनक ने महल से बाहर आकर विश्वामित्र का स्वागत किया। राजकुमारों को देख विदेहराज चकित रह गए। महर्षि ने उन्हें बताया कि ये राजकुमार महाराज दशरथ के पुत्र हैं। अगले दिन ऋषि-मुनि और राजकुमार यज्ञशाला में उपस्थित हुए। शिव धनुष को विदेहराज की आज्ञा से यज्ञशाला में लाया गया। शिव धनुष विशाल था। वह लोहे की पेटी में रखा हुआ था। पेरी में आठ पहिए लगे थे। धनुष को खींचकर यज्ञशाला में लाया गया। राजा जनक ने बताया कि मैंने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो यह धनुष उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर छोड़ देगा। उसी के साथ पुत्री सीता का विवाह होगा। शिव के इस धनुष को अनेक राजकुमारों ने तोड़ने की कोशिश की, किंतु विफल रहे। ‘यह देखकर राजा जनक पलभर के लिए उदास हो गए। अंत में विश्वामित्र ने राम को संकेत किया। राम ने सिर झुकाकर गुरु की आज्ञा स्वीकार की और विशाल धनुष को सहज ही उठा लिया। विदेहराज यह देख चकित हो गए। राम ने आसानी से धनुष झुकाया और प्रत्यंचा खींची। बच्चों के खिलौने की तरह उन्होंने शिव के धनुष को तोड़ डाला। महाराज जनक की खुशी का ठिकाना न था। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हई और सीता के लिए योग्य वर मिल गया। महर्षि विश्वामित्र से अनुमति लेकर राजा जनक ने महाराज दशरथ के पास बारात लेकर आने का निमंत्रण भेजा। नगर में इस खबर से काफ़ी धूम मच गई। महाराज जनक का संदेश मिलते ही अयोध्या में खुशियाँ छा गईं। पाँच दिनों में बारात मिथिला पहुँची। जनकपुरी जगमग कर रही थी। चारों तरफ नगरी को दुल्हन की तरह सजाया गया था। नगर में फूलों की चादर बिछी हुई थी। विवाह से ठीक पहले राजा जनक ने दशरथ से कहा- ‘राजन। राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी करके बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं मांडवी और श्रुतकीर्ति। कृपया उन्हें भरत और शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें। ‘महाराज दशरथ ने राजा जनक के इस प्रस्ताव को अविलंब स्वीकार कर लिया। विवाह संपन्न हुआ। बारात बहुओं को लेकर अयोध्या लौट आई। रानियों ने पुत्र बधुओं की आरती उतारी। यह आनंद उत्सव कई दिनों तक चलता रहा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 7
दृष्टि-नज़र। ओझल-गायब। चिह्न-निशान। बसेरा-रहने का स्थान। चरवाहे-पशु चराने वाले। विश्राम-आराम। निकट-पास। प्रहार-चोट, हमला। बिस्तर-बिछावन।

पृष्ठ संख्या 9
वृक्ष-पेड़। कठिन–मुश्किल। दुर्गम-जहाँ जाना कठिन हो। क्रोधित-गुस्से में। विधि-तरीका।

पृष्ठ संख्या 10
भयमुक्त-बिना डर के। गायब होना-लुप्त हो जाना। प्राकृतिक-कुदरती। सौंदर्य-सुंदरता। आश्वस्त-भरोसेमंद। अनुष्ठान-यज्ञ। निर्विघ्न-बिना रुकावट के। चौकस-सावधान। धावा बोलना-हमला करना। मूर्च्छित होना-बेहाश होना। भगदड़-खलबली मचना।

पृष्ठ संख्या 11
उल्लेख-जिक्र, वर्णन। अनुचर-नौकर चाकर। लजित-शर्मिंदा। वत्स-बेटा। अद्भुत-अनोखा।

पृष्ठ संख्या 13
संकेत-इशारा। सहज-सरल, स्वाभाविक। हतप्रभ-हैरान। सन्नाटा-चुप्पी। योग्य-लायक। अनुमति-इजाजत। पुत्र-बधू-पुत्र की पत्नी।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 1 अवधपुरी में राम

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 1 Question Answers Summary अवधपुरी में राम

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 1

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अयोध्या नगरी कहाँ थी?
उत्तर:
आयोध्या नगरी सरयू नदी के तट पर थी।

प्रश्न 2.
कोसल राज्य की राजधानी कहाँ थी?
उत्तर:
अयोध्या कोसल राज्य की राजधानी थी।

प्रश्न 3.
अयोध्या के राजा कौन थे?
उत्तर:
राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे।

प्रश्न 4.
राजा दशरथ के पिता कौन थे?
उत्तर:
महाराज अज राजा दशरथ के पिता थे।

प्रश्न 5.
राजा दशरथ की कितनी रानियाँ थीं? उनके नाम लिखें।
उत्तर:
राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं। कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी।

प्रश्न 6.
विश्वामित्र के आश्रम का नाम लिखें।
उत्तर:
विश्वामित्र के आश्रम का नाम सिद्धाश्रम था।

प्रश्न 7.
राजा दशरथ के कितने पुत्र थे? उनके नाम लिखें।
उत्तर:
राजा दशरथ के चार पुत्र थे-राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न।

प्रश्न 8.
मुनि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को कौन-सा यज्ञ करने को कहा?
उत्तर:
मुनि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी।

प्रश्न 9.
राम का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
चैत्र मास की नवमी के दिन राम का जन्म हुआ।

प्रश्न 10.
राजा दशरथ को राम अधिक प्रिय क्यों थे?
उत्तर:
ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण और उनमें, विवेक, शालीनता, मानवीय गुणों के कारण राजा दशरथ को राम अधिक प्रिय थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा दशरथ कैसे शासक थे? उन्हें क्या दुख था?
उत्तर:
राजा दशरथ यशस्वी, न्यायप्रिय और कुशल शासक थे। उनके कोई संतान नहीं थी, इस कारण वे चिंतित एवं दुखी रहते थे।

प्रश्न 2.
विश्वामित्र राजा दशरथ के पास क्यों आए थे? उन्होंने राजा दशरथ से क्या कहा?
उत्तर:
विश्वामित्र सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहे थे। उसमें राक्षस बाधा डाल रहे थे। वे राक्षसों को मारने तथा यज्ञ की रक्षा के लिए दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम को ले जाना चाहते थे। इसलिए वे दशरथ के पास राम को लेने आए थे।

विश्वामित्र ने दशरथ से कहा कि मैं केवल कुछ दिनों के लिए राम को अपने साथ ले जाना चाहता हूँ। यज्ञ दस दिन में पूरा हो जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मैं स्वयं राक्षसों को मार सकता हूँ पर मैंने संन्यास ले लिया है। यदि आप राम को नहीं देंगे तो मैं खाली हाथ लौट जाऊँगा।

प्रश्न 3.
अयोध्या नगरी का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
अवध में सरयू नदी के किनारे अयोध्या एक अति सुंदर नगर था। अयोध्या कोसल राज्य की राजधानी थी। इसकी भव्यता देखने को बनती थी। यहाँ आलीशान इमारतें थीं, चौड़ी सड़कें थीं। लोगों के घर भी भव्य थे। बाग-बगीचे थे। चारों ओर खेतों में हरियाली थी। अयोध्या में कहीं पर भी गरीबी का कोई चिह्न नज़र नहीं आता था। सभी लोग संपन्नता का जीवन व्यतीत करते थे। दुख और विपन्नता का वहाँ वास न था। पूरा नगर विलक्षण, अद्भुत एवं मनोरम था। लोग मर्यादाओं का पालन करते थे। हर व्यक्ति सदाचारी था। अत: कहा जा सकता है कि हर तरह से अयोध्या संपन्न नगरी थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा दशरथ ने राम को वन में विश्वामित्र के साथ न भेजने के लिए क्या-क्या तर्क दिए?
उत्तर:
राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम थे, जिन्हें वे प्राणों से भी अधिक चाहते थे। जब ऋषि विश्वामित्र ने यज्ञ की रक्षा के लिए राम को माँगा तो राजा दशरथ ऋषि को सीधे शब्दों में मना नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने न भेज पाने की असमर्थता व्यक्त की। इसके उन्होंने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किएँ।

  1. उन्होंने कहा कि मेरा राम अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। वह राक्षसों से कैसे युद्ध कर पायेगा।
  2. राक्षस मायावी हैं। वह उनका छल-कपट कैसे समझेगा? उन्हें कैसे मारेगा। इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरी सेना ले जाएँ। मैं स्वयं ही आपके साथ चलकर युद्ध करूँगा।
  3. हे! महामुनि! प्राणों से प्रिय राम के बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकता हूँ।

प्रश्न 2.
महर्षि विश्वामित्र ने क्रोध में राजा दशरथ से क्या कहा?
उत्तर:
महर्षि विश्वामित्र ने क्रोध में राजा दशरथ से कहा कि आप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं। राजन, आप वचन देकर पीछे हट रहे हैं। आपका यह व्यवहार कुल के विनाश का सूचक है। मैं स्वयं दुष्ट राक्षसों का संहार कर सकता हूँ, लेकिन मैंने संन्यास ले रखा है। अगर आप राम को नहीं देंगे तो मैं यहाँ से खाली हाथ लौट जाऊँगा।

प्रश्न 3.
मुनि वशिष्ठ ने महाराज दशरथ को क्या समझाया?
उत्तर:
विश्वामित्र राम को अपने साथ ले जाना चाहते थे। राजा दशरथ इसके लिए तैयार नहीं थे। यह सुनकर महर्षि विश्वामित्र क्रोधित हो गए। बात बिगड़ती देख मुनि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को समझाते हुए कहा कि राजन, आपको अपना वचन निभाना चाहिए। यही रघुकुल की रीति रही है। आपके पूर्वजों ने सदा अपने वचनों को निभाया है। आप राम की चिंता न करें। महर्षि के रहते राम का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। स्वयं विश्वामित्र तपस्वी एवं सिद्ध पुरुष हैं। वे अनेक गुप्त विद्याओं के ज्ञाता हैं। राम का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। राम उनसे कई नई विद्याएँ सीख लेंगे। इसलिए आप राम को उनके साथ जाने दें।

प्रश्न 4.
राजा दशरथ को कौन सा दुख था? वह कैसे दूर हुआ?
उत्तर:
राजा दशरथ को निस्संतान होने का दुख था। संतान की कमी उन्हें हमेशा बहुत सताती थी। वशिष्ठ मुनि ने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। महान तपस्वी ऋष्यशृंग की देख-रेख में पुत्रेष्टि यज्ञ किया गया। इसके कुछ समय बाद राजा दशरथ की इच्छा की पूर्ति हुई। उनकी तीनों रानियाँ पुत्रवती हो गईं। इससे निस्संतान होने का दुख दूर हो गया।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रचंड गरमी के दिनों में कच्ची या पक्की सड़क की तपती धूप में नंगे पाँव चलने पर पाँव जलते हैं। इस परिस्थिति में पेड़ की छाया में खड़ा होने और पाँव धो लेने पर बड़ा आराम महसूस होता है। ठीक उसी तरह जैसे प्यास लगने पर पानी मिल जाए और भूख लगने पर भोजन। तुम्हें किसी वस्तु की आवश्यकता हुई होगी और वह कुछ समय बाद पूरी हो गई होगी। तुम सोचकर लिखो कि आवश्यकता पूरी होने के पहले तक आपकी मनोस्थिति कैसी थी?
उत्तर:
आवश्यकता न पूरी होने के पहले तक मन बहुत विचलित रहता है। मन में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि इच्छा पूरी होगी अथवा नहीं। मन में इस तरह की बेचैनी होती है कि जितना जल्दी हो सके आवश्यकता पूरी हो जाए।

प्रश्न 2.
क्या तुम राम की तरह अपने माता-पिता के निर्णय को स्वीकार करते हो?
उत्तर:
हाँ मैं श्रीराम की तरह अपने माता-पिता के निर्णय का हमेशा पालन करता हूँ।

अभ्यास प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. अयोध्या किस राज्य की राजधानी थी?
2. अयोध्या के राजा कौन थे?
3. राजा दशरथ के पिता कौन थे?
4. दशरथ के पुत्रों के नाम क्या थे?
5. राजा दशरथ राम से अधिक प्रेम क्यों करते थे?
6. द्वारपाल ने किसके आने की सूचना दी?
7. मुनि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को कौन सा यज्ञ करने को कहा?
8. राजा दशरथ कैसे थे?

लघुउत्तरीय प्रश्न

1. अयोध्या नगरी की विशेषताओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए?
2. राजा दशरथ कैसे शासक थे। उन्हें किस बात की चिंता थी?
3. राजकुमारों के जन्म पर नगर का माहौल क्या था?
4. महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को क्या परामर्श दिया?
5. चारों राजकुमारों में क्या विशेषता थी?
6. विश्वामित्र कौन थे? वह राजा दशरथ के पास क्यों आए थे।
7. राजा दशरथ ने कौन सा यज्ञ किया था? इसका क्या उद्देश्य था? यह यज्ञ किस प्रकार संपन्न हुआ?
8. पुत्रमोह में फंसे राजा दशरथ को कर्तव्यपालन के लिए कैसे प्रेरित किया गया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 1 Summary

यह कथा अवध की है। प्राचीन काल की बात है अवध में सरयू नदी के किनारे बसा बहुत ही सुंदर अयोध्या नगर था। वहाँ का राजमहल तो भव्य था ही, अन्य इमारतें भी आलीशान थीं। सड़कें चौड़ी थीं। बाग-बगीचे अत्यंत हरे-भरे थे। चारों तरफ खेतों में हरियाली नज़र आती थी। पानी से भरे सरोवर, हवा में हिलती फसलें देखने में मनमोहक लगती थीं। पूरा नगर संपन्न एवं विलक्षण था। अयोध्या कोसल राज्य की राजधानी थी। वहाँ राजा दशरथ राज करते थे। वे कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे। लोग मर्यादाओं का पालन करते थे। उनके राज्य में सभी खुश थे किंतु राजा के मन में एक दुख था। उनकी तीन-तीन रानियों के होते हुए भी उनके यहाँ कोई संतान न थी। इस कारण राजा दशरथ चिंतित रहते थे। राजा दशरथ की चिंता बढ़ती जा रही थी।

राजा दशरथ ने अपनी चिंता से वशिष्ठ मुनि को अवगत कराया। महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को सलाह दी-“आप पुत्रेष्ठि यज्ञ करें, महाराज। आपकी इच्छा पूरी होगी।” ऋष्यशृंग की देख-रेख में पूरी तैयारी के साथ सरयू नदी के किनारे यज्ञशाला बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया। इस यज्ञ में अनेक राजा आमंत्रित थे। अनेक ऋषि-मुनि भी पधारे। सभी ने एक-एक आहुति डाली। अंतिम आहुति राजा की थी। यज्ञ पूरा हुआ अग्निदेव ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद तीनों रानियाँ पुत्रवती हुईं। चैत्र मास की नवमी के दिन महारानी कौशल्या ने राम को जन्म दिया। रानी सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को तथा कैकेयी ने भरत को जन्म दिया। राजमहल में खुशियाँ छा गईं। नगर में एक बड़े समारोह का आयोजन किया गया। चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। वे बड़े सुंदर थे। बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा-दीक्षा के लिए गुरु के पास भेजा गया। चारों राजकुमार कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने शस्त्र विद्या तथा अन्य सभी प्रकार की विद्याओं में कुशलता प्राप्त की। चारों भाइयों में राम सर्वोपरि थे। उनमें विवेक, शालीनता एवं न्यायप्रियता के गुण थे। राजा दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े होने लगे। वे विवाह के योग्य हो गए। राजा दशरथ उनके लिए सुयोग्य बधुएँ चाहते थे। राजा दशरथ सोच ही रहे थे कि एक दिन अयोध्या के राजमहल में विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र कभी स्वयं राजा थे किंतु अपना राजपाट छोड़कर संन्यास ग्रहण कर जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे। उनके आश्रम का नाम था-सिद्धाश्रम। महल में उनका सत्कार किया गया। विश्वामित्र को दरबार में ऊँचा स्थान प्रदान किया गया। राजा दशरथ ने उनसे पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? महर्षि विश्वामित्र ने कहा-“मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। दो राक्षस उसमें विघ्न डाल रहे हैं। आपके बड़े पुत्र राम ही उन राक्षसों को मार सकते हैं। आप उसे मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो सके।” यह सुनकर राजा दशरथ चिंता में पड़ गए और बेहोश होकर गिर पड़े। विश्वामित्र राजा के मन की बात जानकर काफ़ी नाराज़ हो गए। राजा दशरथ ने कहा कि आप चाहें तो मेरी सारी सेना ले जाएँ। मैं खुद आपके साथ चलकर राक्षसों से युद्ध करूँगा। विश्वामित्र ने राजा दशरथ की दुविधा को समझ कर कहा कि मैं राम को केवल कुछ दिनों के लिए ही माँग रहा हूँ। यज्ञ दस दिनों में पूरा हो जाएगा। इस पर भी राजा दशरथ पुत्र वियोग की आशंका से काँप उठे, पर महर्षि वशिष्ठ शांत थे। महर्षि विश्वामित्र का क्रोध बढ़ता चला जा रहा था। वे बोले-‘आप रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं राजन। वचन देकर पीछे हट रहे हैं। यह वर्ताव कुल के विनाश का सूचक है।’ अगर आप राम को मेरे साथ नहीं जाने देंगे तो मैं खाली हाथ लौट जाऊँगा। राजा दशरथ यही कहते रहे कि मैं राम के बिना नहीं रह सकता। बात बिगड़ती देखकर मुनि वशिष्ठ आगे आए। उन्होंने राजा दशरथ को समझाया। महर्षि विश्वामित्र के साथ रहने पर राजकुमार राम को होने वाले लाभ के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आप राम को विश्वामित्र के साथ जाने दें। महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। उन्हें अनेक गुप्त विद्याओं की जानकारी है। राम उनसे अनेक नई विद्याएँ सीख सकेंगे। अंत में राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ की बात को दुखी मन से स्वीकार कर लिया, लेकिन वे राम को अकेले. नहीं भेजना चाहते थे। अत: लक्ष्मण को भी राम के साथ भेज दिया। राम-लक्ष्मण को दरबार में बुलाया गया। इसके अलावा वन जाने की सूचना माता कौशल्या को भी दी गई। दोनों भाइयों ने खुशी-खुशी निर्णय स्वीकार किया। शंखध्वनि हुई और नगाड़े बजे। महाराज दशरथ ने भावुक होकर दोनों पुत्रों का मस्तक सूंघकर उन्हें महर्षि को सौंप दिया। दोनों राजकुमार अपने पीठ पर तुणीर बाँधे कमर में तलवार लटकाए महर्षि के साथ चल पड़े। विश्वामित्र आगे-आगे चल रहे थे। राम-लक्ष्मण उनके पीछे। लक्ष्मण, राम से दो कदम पीछे चल रहे थे।

शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या 1
दर्शनीय-देखने योग्य। भव्य-शानदार। इमारत-भवन। लबालब-पूरा भरा हुआ। संपन्न-खुशहाल। विपन्नता-गरीबी, दरिद्रता। अनुमति-आज्ञा। विलक्षण-विचित्र। योद्धा-युद्ध में निपुण। उत्तराधिकारी-वारिस। मर्यादा-नियम। सदाचारी-अच्छे आचरण वाला। यशस्वी-प्रसिद्ध । आयु-उम्र।

पृष्ठ संख्या 3
सलाह-राय। पुत्रेष्टि यज्ञ-पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ । तमाम-सारे। मंत्रोच्चार-मंत्रों का उच्चारण। मंगलगीत-बधाई के गीत। मनोकामना-मन की इच्छा। समारोह-जलसा, आयोजन। आयोजित करना-प्रबंध करना, मनाना। सम्मान-आदर। सुदर्शन-देखने में सुंदर। दक्ष-चतुर। अर्जित किया-प्राप्त किया। कुशाग्र-तेज। पारंगत-चतुर, कुशल, दक्ष। सर्वोपरि सबसे ऊपर। विवेक-अच्छे बुरे की पहचान। शालीनता-अच्छे चाल चलन एवं व्यवहार वाला होना। न्यायप्रियता-न्यायपूर्ण कार्य करने के लिए प्रसिद्ध।

पृष्ठ संख्या 4
परिजन-रिश्तेदार। गहन मंत्रणा-गंभीर सोच-विचार। तत्काल-उसी समय। अगवानी करना-स्वागत करना। हिचक-संकोच। सिद्धि-किसी कार्य में विशेष सफलता प्राप्त करना। अनुष्ठान-धार्मिक कार्य। बिजली गिरना-अचानक विपत्ति आना। अचकचाना-घबरा जाना। दुविधा-असमंजस। अशंका-भय डर। सन्नाटा-चुप्पी। संज्ञाशून्य-बेहाश।

पृष्ठ संख्या 5
सशंकित-शंका। अनिष्ट-हानि। मायावी-छल-कपट। प्रतिक्रिया-बदले की क्रिया। व्यक्त-प्रकट। खंडित-भंग। संहार-नाश। शक्ति-ताकत। खिन्न-दुखी, परेशान। तर्क बहस।

पृष्ठ संख्या 6
स्वीकार-मंजूर। आग्रह-निवेदन। स्वस्तिवाचन-ईश वंदना से मंगल वचन। बीहड़-घना, उबड़ खाबड़। तुणीर-तरकश।

Law of Mass Action

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Law of Mass Action

In 1864 two Norwegian chemists namely Maximilian Guldberg and Peter Waage formulated the law of mass action, based on the experimental studies of many reversible reactions.

The law states that, “At any instant, the rate of a chemical reaction at a given temperature is directly proportional to the product of the active masses of the reactants at that instant”.

Rate α [Reactant]x

where, x is the stoichiometric coefficient of the reactant and the square bracket represents the active mass (concentration) of the reactants.

Active mass = ((frac{n}{V})) mol dm-3(or) mol L-1

where n is the number of moles and V is the volume of the container (dm3 or L)

Equilibrium constants (Kp and Kc):

Let us consider a reversible reaction,

xA + yB ⇄ lC + mD

where, A and B are the reactants, C and D are the products and x, y, l and m are the stoichiometric coeffients of A, B, C and D, respectively.

Applying the law of mass action, the rate of the forward reaction,

rfα[A]x[B]y (or) rf = kf[A]x[B]y

Similarly, the rate of the backward reaction,

rbα[C]l[D]m
(or)
rb=Kb[C]l[D]m

where kf and kb are proportionality constants

At equilibrium,

Rate of forward reaction (rf)
= Rate of backward reaction (rb)
kf[A]x[B]y = kb[C]l[D]m

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

where, Kc is the equilibrium constant in terms of concentration (active mass).

At a given temperature, the ratio of the product of active masses of reaction products raised to the respective stoichiometric coefficients in the balanced chemical equation to that of the reactants is a constant, known as equilibrium constant. Later when we study chemical kinetics we will learn that this is only approximately true.

If the reactants and products of the above reaction are in gas phase, then the equilibrium constant can be written in terms of partial pressures as indicated below,

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

Where, pA, pB, pC, and pD are the partial pressures of the gas A, B, C and D, respectively.

Relation Between Kp and Kc

Let us consider the general reaction in which all reactants and products are ideal gases.

xA + yB ⇄ lC + mD

The equilibrium constant, Kc is

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

and Kp is,

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

The ideal gas equation is

PV = nRT
or
P = (frac{n}{V})RT

Since

Active mass = molar concentration = n/V
P = active mass × (RT)

Based on the above expression the partial pressure of the reactants and products can be expressed as,

PxA = [A]x(RT)x
PyB = [B]y(RT)y
Plc = [C]l(RT)l
PmD = [D]m(RT)m

On substitution in Eqn.2,

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

By comparing equation (1) and (4), we get

Kp = kc(RT)∆ng ………… (5)

where, Δng is the difference between the sum of number of moles of products and the sum of number of moles of reactants in the gas phase.

The following relations become immediately obvious.

When Δng = 0
Kp = Kc(RT)°
Kp = Kc

Examples:

1. H2(g) + I2(g) ⇄ 2HI(g)
2. N2(g) + O2(g) ⇄ 2NO(g)

When Δng = +ve
Kp = Kc(RT)+ve
Kp > kc(RT)

Examples:

1. 2NH3(g) ⇄ N2(g) + 3H2(g)
2. PCI5(g) ⇄ PCl3(g) + Cl2(g)

When Δng = – ve
KP = KC(RT)-ve
KP < KC

Examples:

1. 2H2(g) + O2(g) ⇄ 2H2O(g)
2. 2SO2(g) + O2(g) ⇄ 2SO3(g)

Relation Between Equilibrium Constants for Some Reversible Reactions

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

Equilibrium Constants for Heterogeneous Equilibrium

Consider the following heterogeneous equilibrium.

CaCO3(s) ⇄ CaO(s) + CO2(g)

The equilibrium constant for the above reaction can be written as

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

A pure solid always has the same concentration at a given temperature, as it does not expand to fill its container. i.e. it has same number of moles L-1 of its volume. Therefore, the concentration of a pure solid is a constant. The above expression can be modified as follows.

KC = [CO2]
or
KP = PCO2

The equilibrium constant for the above reaction depends only the concentration of carbon dioxide and not the calcium carbonate or calcium oxide. Similarly, the active mass (concentration) of the pure liquid does not change at a given temperature. Consequently, the concentration terms of pure liquids can also be excluded from the expression of the equilibrium constant.

For example,

CO2(g) + H2O(l) ⇄ H+(aq) + HCO–3(aq)
Since, H2O((l)) is a pure liquid the Kc can be expressed as

अयोध्या की तैयारियों से खुश होकर हनुमान नंदीग्राम क्यों गए ?

Example

Write the KP and Kc for the following reactions

1. 2SO2(g) + O2(g) ⇄ 2SO3(g)
2. 2CO(g) ⇄ CO2(g) + C(s)

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NCERT Solutions for Class 10 Science Free PDF Download | Chapter Wise NCERT Science Solutions for Grade 10

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Chapter 1 Chemical Reactions and Equations

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Chapter 2 Acids Bases and Salts

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Chapter 3 Metals and Non-metals

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Chapter 4 Carbon and its Compounds

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Chapter 5 Periodic Classification of Elements

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Practical Based Questions for Class 10 Science Chemistry

Chapter 6 Life Processes

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Chapter 7 Control and Coordination

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Chapter 8 How do Organisms Reproduce

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Chapter 9 Heredity and Evolution

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Chapter 10 Light Reflection and Refraction

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Chapter 11 Human Eye and Colourful World

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Chapter 12 Electricity

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Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current

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Chapter 14 Sources of Energy

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Chapter 15 Our Environment

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Chapter 16 Management of Natural Resources

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Class 10 Science NCERT Solutions

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Summary

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राम ने हनुमान को अयोध्या जाते समय क्या निर्देश दिए?

मुझे अपने साथ चलने की अनुमति दें।" कर दें।" राम ने विभीषण की विनती मान ली तो सुग्रीव और हनुमान आगे आए। राम ने उन्हें भी अयोध्या आमंत्रित किया।

हनुमान को पहले अयोध्या क्यों भेजा गया?

आपके शहर से (अयोध्या)

राम ने हनुमान को अपने पहुँचने से पहले अयोध्या क्यों भेजा नंदीग्राम पहुँचने से पहले राम ने क्या किया?

उत्तर: राम ने हनुमान को सबसे पहले अयोध्या भेजा ताकि वे सबसे पहले ये जान सके कि भरत को उनके आने की ख़ुशी है या नहीं। इसीलिए वे सीधा अयोध्या नहीं जाना चाहते थे। उनके मन में यह भी संदेह था कि कहीं भरत को सत्ता का मोह तो नहीं आ गया है।

अयोध्या के नगरवासी क्यों प्रसन्न थे?

प्रश्न-5 अयोध्या के नगरवासी क्यों प्रसन्न थे? उत्तर - अयोध्या के नगरवासी प्रसन्न थे क्योंकि उन्हें उनके राम वापस मिल गए थे। प्रश्न-6 राम का राजतिलक किसने किया?