भारत में शैक्षिक प्रशासन की स्थिति - bhaarat mein shaikshik prashaasan kee sthiti

शैक्षिक प्रशासन के सिद्धांत principal of educational administration – शैक्षिक प्रशासन में सिद्धांतों का विशेष महत्व है। शैक्षिक प्रशासन के सफलतापूर्वक संचालन के लिए सुस्पष्ट सिद्धांत एक मजबूत आधार का कार्य करते हैं जिससे कि किसी शैक्षिक संस्था में शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति सरल एवं निश्चित हो जाती है। तथा इनके अभाव में शैक्षिक संस्था में बिखरा हुआ द्वंद की परिस्थितियां निर्मित होती है जिसमें संगठनात्मक उद्देश्यों की पूर्ति कठिन हो जाने का भय बना रहता है।

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शैक्षिक प्रशासन के मुख्य आधारभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं –

1. कार्य विभाजन का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को शिक्षण संस्था में शिक्षकों/कर्मचारियों की क्षमता, रूचि, अनुभव, कौशल एवं व्यवसायिक ज्ञान के आधार पर कार्य का उचित विभाजन करना चाहिए जिससे कि संस्थागत कर्मचारियों में अनावश्यक द्वंद, संघर्ष तथा अविश्वास की परिस्थितियां निर्मित न हो तथा सभी संस्थागत लक्ष्यों की प्राप्ति में अधिकतम योगदान दे सके।

2. आदेश की एकता का सिद्धांत – कर्मचारियों की क्षमताओं का समुचित उपयोग करने के लिए आवश्यक है कि उन्हें एक समय में एक ही आदेश दिया जाये ऐसा करने से भूमिका संशय की स्थिति से बचना संभव होगा।

3. अधिकार व उत्तरदायित्व का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन द्वारा समस्त समूह सदस्यों के अधिकारों व उत्तरदायित्व का निश्चयीकरण आवश्यक है। अधिकारों का विकेंद्रीकरण संस्था में प्रजातांत्रिक सिद्धांतों के उन्नयन हेतु किया जाना सर्वहित में जरूरी हो जाता है।

4. अनुशासन का सिद्धांत – हेनरी फेयाॅल के शब्दों में “bad discipline is an evil which comes usually from bad leadership” अतः शिक्षा प्रशासन द्वारा संस्थागत कर्मचारियों एवं उनके कार्यों में अनुशासन स्थापित किया जाना आवश्यक है जिससे शैक्षिक संस्था उत्तर उत्तर प्रगति की राह पर अग्रसर हो सके।

5. स्थाई तत्व का सिद्धांत – यह शिक्षा प्रशासन द्वारा कार्यरत कर्मचारियों की सेवादशाओं के स्थायी करने संबंधी सिद्धांत है।

6. सहयोग का सिद्धांत – प्रशासन को शैक्षिक संस्था में अधीनस्थों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निष्पक्षता पूर्ण व्यवहार करती हुए आपसी सहयोग का भाव विकसित करना चाहिए जिससे सभी कर्मचारी एकजुट होकर समूह भावना के साथ संस्था के हित में कार्य कर सके।

7. नियोजन का सिद्धांत – किसी कार्य के संपूर्ण निष्पादन हेतु कार्य योजना का निर्माण अत्यंत आवश्यक है।शैक्षिक प्रशासन को लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा नियोजन कार्य करना चाहिए।समस्त उपलब्ध भौतिक एवं मानव संसाधनों को दृष्टि में रखते हुए सफल, लचीला प्रगतिशील नियोजन शैक्षिक प्रशासन के महत्वपूर्ण कार्यों में एक है।

8. प्रेरणा का सिद्धांत – प्रशासन को संबंधित कर्मचारियों की बेहतर प्रयासों को पुनर्बलन प्रदान कर प्रेरणात्मक माहलों का निर्माण करना चाहिए।

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9. समता का सिद्धांत – संस्था के समस्त शिक्षकों/कर्मचारियों को कार्य एवं उन्नति के समान अवसर प्रदान करना प्रशासन के समता के सिद्धांत के अंतर्गत आता है। इस हेतु प्रशासन का निष्पक्षता एवं समानता के सिद्धांत में विश्वास आवश्यक है।

10. नेतृत्व का सिद्धांत – शैक्षिक प्रशासन को समस्त प्रशासकीय अधिकारों, नियम व सिद्धांतों का समुचित ज्ञान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त पहलकदमी, कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता निर्णय शक्ति आदि गुणों से आबद्ध शैक्षिक प्रशासन ही संस्था को सही नेतृत्व प्रदान कर पाता है।

11. प्रयासों के समन्वय का सिद्धांत – शैक्षिक प्रशासन को समस्त कर्मचारियों तथा शिक्षकों की प्रयासों के समन्वय हेतु हर संभव प्रयास करना चाहिए जिससे संस्था के संपूर्ण विकास में सभी योगदान कर सकें।

12. वैयक्तिक हित की अपेक्षा सामान्य हित का सिद्धांत – शैक्षिक प्रशासन को वैयक्तिक हित, स्वार्थ एवं लोभ से ऊपर उठकर संस्था एवं समस्त मानव संसाधन के हित में कार्य करना चाहिए। निष्पक्ष मनोचित आदरपूर्ण, सहानुभूति पूर्ण, उदार, मैत्री संबंधों पर आधारित सर्वजन सुखाय प्रशासन ही विकास के लिए कार्य कर सकता है।

13. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सिद्धांत – शैक्षिक प्रशासन को परंपराओं, पूर्वाग्रहों, क्षुद्र मानसिकता तथा मनोवृतियों का दास न होकर अपने व्यवहार, विचार, कार्य एवं अनुभवों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का यथासंभव प्रयोग करना चाहिए।

14. गत्यात्मकता का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन में कठोरता नहीं बल्कि गत्यात्मकता के गुणों का समावेश अत्यंत आवश्यक है। समाज, काल एवं बदलती हुई सामाजिक/राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं व अपेक्षाओं के अनुसार शैक्षिक प्रशासन में भी निरंतर अपेक्षित बदलाव की संभावना होनी चाहिए।

15. लोकतंत्रीय सिद्धांत – शैक्षिक प्रशासन को समता, मातृत्व तथा व्यक्तित्व के उचित सम्मान आधारित लोकतंत्रीय सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए जिससे वह शिक्षा से संबंधित समस्त भागीदारों (जैसे-शिक्षक, कर्मचारी, छात्र, अभिभावक आदि) के हित में कार्य कर सकें।

16. रचनात्मकता का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को रचनात्मकता के सिद्धांत पर कार्य करते हुए शिक्षा के विकास पर केंद्रित होना चाहिए। इसे किसी भी प्रकार के नकारात्मक व अवरोधात्मक कार्यों/विचारों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

17. विकेंद्रीकरण का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को अपने समस्त/अधिकाधिक अधिकारों का विकेंद्रीकरण करते हुए समस्त शैक्षिक कर्मचारियों, शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों, को स्वतंत्र होने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

18. स्थिरता एवं लचीलापन का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को आवश्यकतानुसार लचीला होना चाहिए परंतु इसमें स्थिरता का अत्यावश्यक गुण है जिसे किसी भी परिस्थिति में नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

19. शिक्षकों की व्यवसायिक उन्नति का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को कार्यरत शिक्षकों की व्यवसायिक उन्नति हेतु हर संभव प्रयास करना चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, आदि की व्यवस्था की जा सकती है।

20. व्यक्ति की महत्ता का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को प्रत्येक व्यक्तित्व को यथासंभव महत्व देते हुए कार्य करना चाहिए जो की मूलभूत प्रजातांत्रिक सिद्धांतों की भी अनुकूल है।

21. संसाधनों के उचित उपयोग का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को समस्त मानव व भौतिक संसाधनों के अधिकतम तथा उचित उपयोग हेतु प्रयासरत करना चाहिए जिससे संसाधनों के दुरुपयोग एवं अपव्यय को रोका जा सके।

22. पहलकदमी का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को हमेशा कार्य करने हेतु पहल करनी चाहिए जो कि नेतृत्व का आवश्यक गुण है।

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23. नियंत्रण का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को समस्त प्रशासनिक कार्यों तथा अधीनस्थों पर उचित नियंत्रण रखना आवश्यक है जिससे संस्था लगातार विकास की राह में आगे बढ़ सके।

24. संप्रेषण का सिद्धांत – शिक्षा प्रशासन को उचित संप्रेषण विधियों का प्रयोग करते हुए समस्त शैक्षिक कर्मचारियों, छात्रों एवं अभिभावकों में उचित समन्वय स्थापित करना चाहिए।

भारत में शैक्षिक प्रशासन का विकास कब हुआ?

१९४५ से भारत सरकार में शिक्षा के लिए पृथक्‌ विभाग की स्थापना की गई और १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत स्वर्गीय मौलाना अबुल कलाम अजाद के मंत्रित्व में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की स्थापना हुई। भारतीय संविधान के निर्माण के समय सन्‌ १९४४ से शिक्षा तथा विश्वविद्यालय राज्य सूची के अंतर्गत रखे गए।

शैक्षिक प्रशासन क्या है इसका महत्व एवं कार्य लिखिए?

शैक्षिक प्रशासन एक नवीन तत्व है, जिसका सम्बन्ध शिक्षा की योजना बनाना, शिक्षा की व्यवस्था व पर्यवेक्षण आदि कार्य करने से है। इसका प्रमुख उद्देश्य निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना है, विद्यालयों में उपयोगी उपकरणों को उपलब्ध कराना और कर्मचारियों में कार्यों का विभाजन करना है।

शैक्षिक प्रशासन के प्रकार कितने होते हैं?

शैक्षिक प्रशासन के प्रकार- शैक्षिक प्रशासन के मूलतः निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-.
(1) यह शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध तथा निःशुल्क होती है।.
(2) सभी स्थानों पर एकसमान उपलब्ध एवं अनिचार्य होती है।.
(3) शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक एकता, समता तथा संस्कृति के विकास को सुनिश्चित करना होता है।.

शैक्षिक प्रशासन के जनक कौन है?

लोक- प्रशासन के शैक्षिक अध्ययन का प्रारम्भ करने का श्रेय वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) को जाता है जिसने अपने लेख 'द स्टडी ऑफ ऐडमिनिस्ट्रेशन (The Study of Administration) जो 1887 में प्रकाशित हुआ, में इस शास्त्र की वैज्ञानिक बुनियादों को विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।