भैंस की आवाज कैसी होती है - bhains kee aavaaj kaisee hotee hai

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दुग्ध पशुओं में प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए पशु पालक को मादा पशु में पाए जाने वाले मद चक्र का जानना बहुत आवश्यक है| गाय या भेंस सामान्य तौर पर हर 18 से 21 दिन के बाद गर्मी में आती है जब तक शरीर का वज़न लगभग 250 किलो होने पर शुरू होता है| गाय व भेंसों में ब्याने के लगभग डेढ़ माह के बाद यह चक्र शुरू हो जाता है| मद चक्र शरीर में कुछ खास न्यासर्गों (हार्मोन्स) के स्राव में संचालित होता है|
गाय व भेंसों में मदकल (गर्मी की अवधि) लगभग 20 से 36 घटे का होता है जिसे हम 3 भागों में बांट सकते हैं:- (1)मद की प्रारम्भिक अवस्था (2)मद की मध्यव्स्था (3)मद की अन्तिम अवस्था| मद की विभिन्न अवस्थाओं का हम पशुओं में बाहर से कुछ विशेष लक्षणों को देख कर पता लगा सकते हैं|

मद की प्रारम्भिक अवस्था:


(1)पशु की भूख में कमी आना|
(2)दूध उत्पादन में कमी|
(3)पशु का रम्भावना (बोलना)व बेचैन रहना|
(4)योनि से पतले श्लैष्मिक पदार्थ का निकलना|
(5)दूसरे पशुओं से अलग रहना|
(6)पशु का पूंछ उठाना|
(7)योनि द्वार (भग) का सूजना तथा बार-बार पेशाब करना|
(8)शरीर के तापमान में मामूली सी वृद्धि|

मद की मध्यव्स्था:


गर्मीं की यह अवस्था बहुत महवपूर्ण होती है क्योंकि कृत्रिम ग्रंह धान के लिए यही अवस्था सबसे उपयुक्त मानी जाती है| इसकी अवधि लगभग 10 घटे तक रहती है| इस अवस्था में पशु काफी उत्तेजित दीखता है तथा वह अन्य पशुओं में रूचि दिखता है|
यह अवस्था निम्नलिखित लक्षणों से पहचानी जा सकती है|
(1)योनि द्वार (भग) से निकलने वाले श्लैष्मिक पदार्थ का गढा होना जिससे वह बिना टूटे नीचे तक लटकता हुआ दिखाई देता है|
(2)पशु ज़ोर-ज़ोर से रम्भावना (बोलने) लगता हैं|
(3)भग (योनि द्वार)की सूजन तथा श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में वृद्धि हो जाती है|
(4)शरीर का तापमान बढ़ जाता हैं|
(5)दूध में कमी तथा पीठ पर टेढ़ापन दिखाई देता है|
(6)पशु अपने ऊपर दूसरे पशु को चढने देता हैं अथवा वह खुद दूसरे पशुओं पे चढने लगता|

मद की अन्तिम अवस्था:


(1)पशु की भूख लगभग सामान्य हो जाती है|
(2)दूध में कमी भी समाप्त हो जाती है|
(3)पशु का रम्भाना कम हो जाता हैं|
(4)भग की सूजन व श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में कमी आ जाती है|
(5)श्लेष्मा का निकलना या तो बन्द या फिर बहुत कम हो जाता है तथा यह बहुत गाढ़ा व कुछ अपारदर्शी होने लगता है|

गर्भधान करने का सही समय:


पशु में मदकल प्रारम्भ होने के 12 से 18 घटे बाद अर्थात मदकल के द्वितीय अर्ध भाग में उसमें गर्भधान करना सबसे अच्छा रहता है| मोटे तौर पर जो पशु सुबह गर्मीं में दिखाई डे उसमें दोपहर के बाद तथा जो शाम को मद में गिकाही से उसमें अगले दिन सुबह गर्भधान करना चाहिए| टीका लगाने का उपयुक्त समय वह है जब पशु दूसरे पशु के अपने ऊपर चढने पर चुपचाप खड़ा रहे| इसे स्टेंडिंग हित कहते हैं| बहुत से पशु मद काल में रम्भाते नहीं हैं लेकिन गर्मीं के अन्य लक्षणों के आधार पर उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता हैं|

गाय व भैंस में मदकाल, गर्भकाल एवं गर्भवती एवं गर्भित करने की समय सूचक सरणी-1

पशुसंभोग कालवर्ष में
ऋतुमती
होनाऋतुकाल
की
अवधिवीर्य
डालने
का समयगर्भ कालगर्भ न
ठहरने
परब्यांत
के
बादगाय
भैंसवर्ष भर
तथा
गर्मियों
में
अधिकहर 18-21
दिन बाद30-60
दिन में20-36
घण्टेमदकल
आरम्भ
होने के
12-18
घण्टे बाद 1गाय-280
दिन
भैंस-308
दिन

पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव:


वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आटे रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव भी देखने में आता हैं| हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में वर्ष 1990 से 2000 तक किये गये कृत्रिम गर्भधान कार्य के एक विश्लेषण के अनुसार माह जून में सबसे अधिक (11.1%) गये गर्मीं में देखी गयीं जबकि सबसे कम(6.71%) गयें माह अक्टूबर में मद में पाई गयीं|प्रजनन के दृष्टिकोण से गायों में सबसे अच्छा त्रैमास सितम्बर-अक्टूबर -नवम्बर में सबसे कम (21.9%)गयें गर्मीं प्राप्त हुई| भैंसों में ऋतुओं का प्रभाव बहुत अधक पाया जाता है| उपरोक्त वर्षों में माह मार्च से अगस्त तक छ: माह की अवधि में जिसमें दिन की लम्बाई अधिक होती है वर्ष की 26.17% भैंसें मद में रिकाड की गयीं जबकि शेष छ: माह सितम्बर से फरवरी की अवधि में जिसमें दिन छोटे होते हैं, वर्ष की बाकी 73.83% भैंसें गर्मीं में पायी गयीं|गायों के विरुद्ध भैंसों में त्रैमास मई-जून-जुलाई प्रजनन के हिसाब से सबसे खराब रहा जिसमें केवल 11.11% भैंसें गर्मीं में देखी गयी जनकी त्रैमास अक्टूबर -नवम्बर-दिसम्बर सर्वोतम पाया गया जिसमें 44.13% भैंसों को मद में रिकाड किया गया|पशु प्रबन्धन में सुधर करके तथा पशुपालन में आधुनिक वैज्ञानिक त्रिकोण को अपना कर पशुओं के प्रजनन पर ऋतुओं के कुप्रभाव को जिससे पशु पालकों को बहुत हानि होती है, काफी हद तक कम किया जा सकता हैं|

भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुत उपयोगी पशु है। भैंस का रंग काला होता है भारत में मुख्यत भैंस के निम्न नस्ल/प्रकार पाए जाते है मुर्रा सुरती जाफराबादी मेहसाना भदावरी गोदावरी नागपुरी सांभलपुरी

===भैंस की नस्लें=== संसार की कुल भैंसों का लगभग 95% एशिया महाद्वीप में भारत में अधिकांश भैंसे ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालकों द्वारा पाली जाती है। भैंस को मुख्य रूप से दुग्ध उत्पादन तथा नर भैंसों को कृषि कार्य करवाने के लिए पाला जाता है। विश्व की समस्त भैंसों को मुख्य रूप से 2 वर्गों में बांटा गया है अफ्रीकन और एशियन , एशियन भैंसों को पुनः दो वर्गों जंगली और पालतू में वर्गीकृत किया गया है। पालतू एशियन को पुनः रीवर और स्वेम्प भैंसों के रूप में जाना जाता है। रीवर भैंसे मुख्य रूप से अधिक दूध देने वाली होती है रीवर भैंसे भारत पाकिस्तान तथा मध्य पुर्वी एशियाई देश जैसे युनान, दक्षिण पूर्वी यूरोप, इटली तथा यू. एस.एस. आर. में पाई जाती है जबकि स्वैम्प भैंस मलेशिया ,सिंगापुर , बर्मा,लाओस, कंबोडिया, इंडोनेशिया, वियतनाम , थाईलैंड, फिलीपींस, ताईवान, चाइना हांगकांग तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के काफी भाग में पाई जाती है। राजस्थान में भैंसों की संख्या 12.97 मिलियन है। भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है, वैज्ञानिकों ने भैंस को ब्लेक डायमंड भी कहा है। पशुपालकों को भैंस की अच्छी नस्ल सम्बंधी उन्नत तकनीकी जानकारी प्राप्त करके ही भैंस पालन को बढ़ावा दे सकते हैं। हमारे देश में भैंस की तेरह नस्लें पाई जाती है। भैंसों की नस्ल के आकार के अनुसार तीन भागों में विभाजित किया है।

  1. भारी श्रेणी
  2. मध्यम श्रेणी
  3. हल्की श्रेणी


[1]===भैस[[भैंस]] की प्रमुख नस्लें===

  1. भदावरी
  2. मुर्रा
  3. सूरती
  4. नीली
  5. जाफराबादी
  6. मेहसाना


[2]====भदावरी==== इस नस्ल का मूल स्थान उत्तर प्रदेशउत्तर प्रदेश के आगरा जिले का भदावर गांव है। इसके अलावा यह यमुना चंबल की घाटी में बसे इटावा ग्वालियर के क्षेत्रों में पाई जाती है। इस पशु की मुख्य विशेषता तांबे जैसी लालिमा लिए बदामी रंग है। इन का शरीर मध्यम आकार का व आगे से पतला एवं पीछे से चौड़ा होता है। सींग चपटे मोटे तथा पीछे की ओर मुड़ कर ऊपर अंदर की ओर मुड़े होते हैं। अयन छोटा होता है, जिस पर दुग्ध शिराएं उभरी रहती है। इसके नर पशुओं का शरीर 400 से 500 के किग्रा. तथा मादा पशुओं का भार 350 से 400 किग्रा. होता है तथा इसकी प्रथम ब्यांत की उम्र 48 से 54 माह है। इस नस्ल के मादा पशुओं की दुग्ध क्षमता 900 से 1200 किग्रा. प्रति ब्यात तथा दूध में वसा 12 से 14% होती है।

[3]====मुर्रा====

इस भैंस मूल उत्पत्ति स्थान दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा है। यह उत्तरी राजस्थान के जयपुर, बिकानेर, जोधपुर, अजमेर तथा कोटा संभाग में पाई जाती है।  इस नस्ल के पशुओं के सींग छोटे एवं जलेबी के घेरे जैसे घुण्डीदार मुड़े हुए वह सिर छोटा होता है। इस नस्ल के पशु काले रंग के होते हैं तथा मुंह, पैर व पुंछ पर सफेद धब्बे पाये जाते हैं। इनकी त्वचा मुलायम व इनका शरीर भारी होता है। अयन विकसित होते हैं जिस पर थन छोटे एवं दुर-दुर होते हैं। यह नस्ल विश्व के दूध देने वाली भैंसों में से एक श्रेष्ठ नस्ल है। इस नस्ल की मादा पशुओं का भार 500-550 किग्रा. तथा नर पशुओं का भार 500-600 किग्रा. होता है। प्रथम ब्यांत की उम्र 36-48 माह है।

[4]====सूरती==== यह मूल रूप से गुजरात के आनन्द, बड़ोदा, खेडा तथा नाडियाद से है। इस नस्ल की भैंस दक्षिण राजस्थान में भी पाई जाती है। इस नस्ल के पशु मध्यम आकार, भूरा या हल्का काला रंग, सींग छोटे दरांती की आकृति के व चपटे होते हैं। इसके नर पशुओं का भार 450-500 किग्रा. व मादा पशुओं का भार 350-400 किग्रा. होता है तथा प्रथम ब्यांत की उम्र 42-48 माह है।

[5]====नीली==== यह नस्ल पंजाब के अमृतसर के रावी, नीली तथा सतलज नदियों के क्षेत्र में पाई जाती है। सतलज नदी का पानी नीला है इसलिए इस नस्ल का नाम भी नीली रखा है।

भैंस की आवाज को कैसे लिखें?

Sound of animals hindi – पशुओं की बोलियाँ.

भैंस की क्या पहचान है?

इस पशु को सामने से देखने पर आपको यह तिकोनी दिखाई दे रही है, तो आप समझिए कि भैंस दुधारू नस्ल की है। दुधारू भैंस की चमड़ी चिकनी और अधिक चमकदार होती है। इनकी आंखें चमकीली होती हैं और इनकी आंखों पर बेहद कम ही बाल देखने को मिलते हैं। दुधारू भैंस की नस्ल में मुर्रा को सबसे अधिक बेहतर माना जाता है।

भैंस कितने महीने तक दूध देती है?

ब्यांत अंतराल 13-14 महीने रहने पर भैंस अपने जीवनकाल में अधिक बच्चे देगी और अधिकतर समय दूध उत्पादन में भी रहेगी । मादा पशु की जनन क्षमता इसी से परखी जाती है कि उसके दो ब्यांत के बीच कितना अंतर है। दो ब्यांत के बीच का अंतराल दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है।