बालगोबिन भगत अपनी पतोहू का उत्सव मनाने के लिए क्यों कहते हैं? - baalagobin bhagat apanee patohoo ka utsav manaane ke lie kyon kahate hain?

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1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?

Solution

बालगोबिन भगत साधु की सभी चारित्रिक विशेषताओं में खरे उतरते थे। वे कबीर के भक्त थे, सदा सत्य बोलते और स्पष्टवादी थे।किसी से व्यर्थ झगड़ा मोल नहीं लेते। अपनी प्रत्येक वस्तु को साहब की मानते थे। गृहस्थ होते हुए भी वे मोह-माया से बंधे नहीं थे।

2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?

Solution

भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत जी बूढ़े थे पुत्रवधू को उनकी भोजन की चिंता थी तथा बीमार पड़ने पर उनकी सेवा कौन करेगा? यह सब सोचकर वह भगत जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी।

3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं किस तरह व्यक्त की?

Solution

भगत ने अपने बेटे की मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को एक चटाई पर लिटाकर उसे सफेद चादर से ढँक दी। अपने आंगन के फूल व तुलसीदल उसके ऊपर बिखेर दिए और स्वयं उसके सिरहाने चिराग जलाकर बैठ गए तथा खंजड़ी बजाते हुए गीत गाने लगे। बीच-बीच में अपनी पतोहू को समझाते हुए कहते कि यह उत्सव मनाने का समय है क्योंकि आत्मा परमात्मा से जाकर मिल गई।

4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Solution

बालगोबिन भगत मंझले कद गोरे चिट्टे आदमी थे। वे साठ साल के ऊपर के व्यक्ति थे।उनके बाल सफेद थे वह बहुत कम कपड़े पहनते थे,उनकी कमर में केवल लंगोटी बंधी रहती थी और सिर पर कबीरपंथी की कनपट्टी टोपी पहने रहते थे। मस्तक पर रामनंदी तिलक लगाए रहते थे और गले में तुलसी की जड़ों की बेडाल माला बांधे रहते थे।

5. बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?

Solution

बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी क्योंकि वह एक नियमित तरीके से चलती थी| वे प्रातःकाल उठकर दो मील दूर स्थित नदी में स्नान करने जाते थे। वापस आने पर वे गाँव के बाहर स्थित पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते थे और प्रभु-भक्ति के गीत टेरा करते थे। उनकी दिनचर्या माघ की सर्दी में भी नहीं बदलती थी। आसमान में तारों के दीपक बुझे नहीं कि काली कमली ओढ़े बालगोबिन भगत खजड़ी लेकर बैठ जाते और गाते-गाते मस्त हो जाते थे। गर्मियों में अपने आँगन में ही आसन जमा लेते थे और उनके संगीत के प्रेमी भी वहीं एकत्र हो जाते थे।

6. पाठ के आधर पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।

Solution

बालगोबिन भगत के गायन की प्रमुख विशेषता थी कि कबीर के सीधे-सादे पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते जिसे सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते। बच्चे झूम उठते, औरतों के होंठ बुदबुदाने लगते, हलवाहों के पैर थिरकने लगते तथा रोपनी करने वाले की अंगुलियां एक विशेष क्रम में चलने लगतीं । उनका मधुर गायन निस्तब्धता को भंग कर हरेक को चौंका देता। हर कोई उत्सुक हो उसे सुनना चाहता था। उनकी कार्तिक से लेकर फागुन तक की प्रभातियों में मधुर गान के साथ खजड़ी की मिठास लोगों को किटकिटाती ठंड में भी घरों से बाहर पोखर के भिंडे तक खींच लाती थी। गर्मियों में उमस से भरी शाम में उनका गायन स्त्री-पुरुषों और बच्चों को जुटा लेती थी और अपने पीछे-पीछे गाने और कभी-कभी मस्त होकर नाचने तक को मजबूर कर देती थी। इस प्रकार मिठास से भरा उनका गाना और बजाना सभी को मंत्रमुग्ध कर देता था।

7. कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

Solution

बालगोबिन भगत पुत्र की मृत्यु पर दुखी नहीं हुए। उन्होंने खुशी प्रकट की और पतोहू से उत्सव मनाने को कहा। पतोहू से पुत्र का दाह-संस्कार कराया। पुत्र के श्राद्ध के ही दिन उसे भाई के हाथों सौंप पुनर्विवाह हेतु मायके भेज दिया। इससे यह पता चलता है कि वे सामाजिक मान्यताओं को महत्व नहीं देते थे। इसके अलावा गृहस्थ बनकर पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए संन्यासी के रूप में जीवन जीना, किसी के आगे हाथ न पसारना, खुद मेहनत करना, खेती की पूरी उपज को दरबार में सौंप, बचे हुए अनाज में गुज़ारा करना और प्रतिवर्ष गंगा स्नान के लिए जाकर भी स्नान से अधिक महत्व संत-समागम और लोक-दर्शन को देना, भिक्षा न माँगना आदि बातों से उन के द्वारा प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को न मानने का पता चलता है।

8. धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Solution

धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियां अपने संगीत के जादू से चमत्कृत कर देती थीं । आषाढ़ की रिमझिम बारिश में समूचा गांव खेतों में उमड़ पड़ता। ठण्डी हवा व आकाश में बादलों के बीच भगत के कंठ से निकला एक-एक स्वर ऐसा लगता था, जैसे संगीत के जीने पर चढ़कर स्वर स्वर्ग की ओर जा रहा हो। बच्चे झूमने लगते, औरतें गुनगुनाने लगतीं, हलवाहों के पैर तथा रोपनी करने वालों की अंगुलियां एक विशेष क्रम में चलने लगतीं । समूचा माहौल संगीतमय हो जाता।

रचना और अभिव्यक्ति

9. पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?

Solution

बालगोबिन भगत के मन में कबीर के प्रति सच्ची श्रद्धा की भावना थी। उनके अनुसार आत्मा विरहिणी है। देह से मुक्त हो वह परमात्मा में मिलकर परम आनंद को प्राप्त होती है। अतः पुत्र की मृत्यु पर उन्होंने पतोहू से उत्सव मनाने को कहा। गृहस्थ होकर भी उन्होंने कबीर की तरह जीवन बिताया। एक लंगोटी, कनफटी टोपी, रामानंदी तिलक और तुलसी की जड़ों की बेडौल-सी माला पहनी। वे सत्यवादी, फसल पर ईश्वर का अधिकार मान भेंट स्वरूप देकर बचे अनाज को लेकर संतोषपूर्वक जीने वाले, सदा भजन गाने, खंजड़ी बजाने और नियमित दिनचर्या में सदा ईश्वर को भजने वाले व्यक्ति थे।

10. आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?

Solution

भगत कबीर की तरह जाति, वर्ग अथवा धर्म के आधार पर उपेक्षित रहे होंगे। कबीर जन्म के समय हुई उपेक्षा के कारण हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्मों के न हो सके थे। कबीर से प्रेरित हो वे यह सोचने लगे कि आत्मा को केवल परमात्मा ही अपनाता है, परम आनंद देता है। इसलिए देह रहते उसकी साधना अवश्य करनी चाहिए।

11. गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

Solution

गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ मास में अपना विशेष महत्त्व रखता है, क्योंकि आषाढ़ मास में रिमझिम बारिश प्रारम्भ होती है। खेतीबाड़ी ही ग्रामीणों की मुख्य आजीविका होने से सारे ग्रामीण खेतों में हल चलाने लगते हैं। उन दिनों बच्चे भी खेतों की गीली मिट्टी में लथपथ होकर आनन्द क्रीड़ा करते हैं। औरतें कलेवा लेकर खेतों की मेंड़ पर बैठ जाती हैं। ठंडी पुरवाई चलने लगती है। गाँव के लोग फसलों की आशा में उल्लास से भर जाते हैं। संगीत की स्वर-लहरियाँ गूंजने लगती हैं। गाँव का सारा सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण उल्लास से भर जाता है।

12. “ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिनभगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?

Solution

साधु की पहचान पहनावे के आधार पर नहीं अपितु उसके स्वभाव व कर्मों के आधार पर होनी चाहिए । सच्चा साधु वही है जिसमें त्याग व बलिदान की भावना हो, जिसकी वाणी दूसरों को शीतलता प्रदान करे, जो लोभ-लालच से कोसों दूर हो, जो परोपकारी तथा कर्मनिष्ठ हो।

13. मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?

Solution

मोह और प्रेम में अंतर होता है। मोह में मनुष्य केवल अपने स्वार्थ की चिंता करता है जबकि प्रेम में वह अपने प्रियजनों का हित देखता है। भगत को अपने पुत्र तथा अपनी पुत्रवधू से अगाध प्रेम था परंतु उनके प्रेम में कभी सीमा को पार कर मोह का रूप धारण नहीं किया। वह चाहते तो मोह वश अपनी पुत्रवधू को अपने पास रोक सकते थे परंतु उन्होंने अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ भेजकर उसके दूसरे विवाह का निर्णय किया।

भाषा और अध्ययन

14. इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिएऔर उनके भेद भी बताइए।

Solution

क्रियाविशेषण क्रियाविशेषण भेद
हमेशा कालवाचक
सवेरे कालवाचक
कभी-कभी कालवाचक
कुछ परिमाणवाचक
नजदीक स्थानवाचक
इस बार कालवाचक
पैदल रीतिवाचक
हर कालवाचक
वहाँ स्थानवाचक

बालगोबिन भगत रोती हुई पतोहू को उत्सव मनाने के लिए क्यों कह रहे थे?

Solution : (क) भगत अपनी रोटी हुई पतोहू को उत्सव मनाने के लिए आज इसलिए कह रहे थे क्योकि उनका मानना था कि आज आत्मा परमात्मा से जा मिली है। इस संबंध में उनका दर्शन कबीर से प्रभावित था।

बालगोबिन भगत की पतोहू क्या चाहती थी?

बालगोबिन भगत की पतोहू अपने भाई के साथ नहीं जाना चाहती थी, वह दूसरा विवाह भी नहीं करना चाहती थी। वह यहीं रहकर भगत जी की सेवा करना चाहती थी। वह उन्हें बुढ़ापे में बेसहारा छोड़ कर नहीं जाना चाहती। वह उनके लिए खाना बनाना, बीमारी में देखभाल करना आदि कार्य करना चाहती है।

बालगोबिन भगत ने पतोहू के भाई को क्यों बुलाया?

उत्तर- भगत ने अपने बेटे की श्राद्ध की अवधि खत्म होते ही अपनी पतोहू के भाई को बुलवाया और आदेश दिया कि इसकी दूसरी शादी कर देना। भगत की पतोहू उनके बुढ़ापे का ध्यान रखकर उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहती थी पर भगत ने कहा कि यदि तू न गई तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊंगा।

पतोहू बालगोबिन भगत को छोड़ कर जाना क्यों नहीं चाहती थी ?`?

उत्तर: भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह एकमात्र सहारा थी। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।