Show चौक के गीले होने का भावार्थ क्या है?कविवर शमशेर बहादुर सिंह ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका इसलिए कहा गया है क्योंकि सुबह का आकाश कुछ-कुछ धुंध के कारण मटमैला व नमी- भरा होता है। राख से लीपा हुआ चौका भी सुबह के इस कुदरती रंग से अच्छा मेल खाता है। अत: उन्होंने भोर के नभ की उपमा राख से लीपे गीले चौके से की है।
उषा कविता का मूल भाव क्या है?इस कविता में कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। कविता के इस अंश में सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया गया है। व्याख्या-कवि प्रात:कालीन आकाश का वर्णन करते हुए कहता है कि सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो हलकी लालिमा की रोशनी फैल जाती है। ऐसा लगता है कि काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है।
राख से लिखा हुआ चौका के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?'राख से लीपा हुआ चौका' के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ? उत्तर ⇒ सूर्योदय के समय आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा गीला चौका-सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। कवि ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिये बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके।
उषा कविता में भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका की संज्ञा क्यों दी गई है?उत्तर - कवि कहता है कि भोर के समय ओस के कारण आकाश नमीयुक्त व धुंधला होता है। राख से लिपा हुआ चौका भी मटमैले रंग का होता है। दोनों का रंग लगभग एक जैसा होने के कारण कवि ने भोर के नभ को 'राख से लीपा, गीला चौका' की संज्ञा दी है। दूसरे, चौके को लीपे जाने से वह स्वच्छ हो जाता है।
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