आजादी के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के समर्थक महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी थे. इन्होंने एक या दो भाषाओं को पूरे देश की भाषा बनाने की मुहिम चला रखी थी. जबकि हिंदी विरोधी गुट इसका विरोध कर रहा था और अंग्रेजी को ही राज्य की भाषा बनाए रखने के पक्ष में था. 1949 में भारत की संवैधानिक समिति एक समझौते पर पहुंची. इसे मुंशी-आयंगर समझौता कहा जाता है. इसके बाद जिस भाषा को राजभाषा के तौर पर स्वीकृति मिली वह हिंदी (देवनागरी लिपि में) थी. संविधान में भारत की केवल दो ऑफिशियल भाषाओं का जिक्र था. इसमें किसी 'राष्ट्रीय भाषा' का जिक्र भी नहीं था. इनमें से ऑफिशियल भाषा के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग अगले पंद्रह सालों में कम करने का लक्ष्य था. ये पंद्रह साल संविधान लागू होने की तारीख (26 जनवरी, 1950) से अगले 15 साल यानी 26 जनवरी, 1965 को खत्म होने वाले थे. संविधान लागू होने के 15 साल बाद भी हिंदी को लेकर हुआ था बहुत बवाल जिसके बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने तय किया कि संविधान के लागू हो जाने के 15 साल बाद भी अगर हिंदी को हर जगह लागू किए जाने पर अगर भारत के सारे राज्य राजी नहीं हैं तो हिंदी को भारत की एकमात्र ऑफिशियल भाषा नहीं बनाया जा सकता है. शायद ऐसा हो जाता तो भारत की यह एकमात्र ऑफिशियल भाषा, राष्ट्रभाषा कही जा सकती थी. इसके बाद सरकार ने राजभाषा अधिनियम, 1963 लागू किया. इसे 1967 में संशोधित किया गया. जिसके जरिए भारत ने एक द्विभाषीय पद्धति को अपना लिया. ये दोनों भाषाएं पहले वाली ही थीं, अंग्रेजी और हिंदी. बढ़ चुकी थी क्षेत्रीय भाषाओं के पहचान पाने की चिंता वर्तमान सरकार ने भी जगाई थी आशा दरअसल जितना बताया जाता है उतने लोग भी नहीं बोलते हिंदी अक्सर कहा जाता है कि करीब 125 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत में 50 फीसदी से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं. साथ ही गैर हिंदी भाषी जनसंख्या में भी करीब 20 फीसदी लोग हिंदी समझते हैं. इसलिए हिंदी भारत की आम भाषा है. लेकिन कई भाषाविदों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के लोगों को हिंदी भाषियों में गिन लिया जाता है, वे लोग हिंदी भाषी नहीं हैं. और उनमें से बहुत से लोगों की भाषा जनजातीय या क्षेत्रीय है. ऐसे में इन्हें हिंदीभाषी के तौर पर गिन लेना सही नहीं है. देश के 29 में से 20 राज्य हैं गैर हिंदी-भाषी इसके अलावा भारत में ही हिंदी से कहीं पुरानी भाषाएं तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, मराठी, गुजराती, सिंधी, कश्मीरी, ओड़िया, बांग्ला, नेपाली और असमिया हैं. ऐसे में एक नई भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे देना सही नहीं होगा. हटके डेस्क : पूरे देश में आज हिंदी दिवस (hindi diwas) मनाया जा रहा है। हम सभी बड़े गर्व से कहते हैं - हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्ता हमारा... हिन्दुस्तान के नाम में भी पहले हिन्दी आता है, फिर भी हमारे देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा (National language) दर्जा नहीं मिला। भारत में ज्यादातर लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं लेकिन हिंदी इस देश की राष्ट्रभाषा नहीं है। दरअसल, 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया गया था कि हिंदी (hindi) भारत की राजभाषा ही होगी। आखिर आज तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा को नहीं मिला आइए जानते हैं। हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। पूरे देश में हिंदी के प्रति इस दिन सम्मान प्रकट करने के लिए आज के दिन कई कार्यक्रम होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं भारत में केवल 43.63 प्रतिशत लोग ही हिंदी बोलते हैं। हिंदी दुनिया में चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं। दुनिया में 80 करोड़ ऐसे लोग हैं जो हिंदी को समझते और बोलते हैं। भारत में हिंदी आजतक राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पाई? क्यों हिंदी अपने ही देश में सौतेलेपन का शिकार हुई? आइए जानते हैं। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को हमारी राजभाषा बनाया था। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू तक ने मुहिम चलाई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। उस समय कई हिंदी विरोधी गुट इसका विरोध कर रहे थे और अंग्रेजी को ही राज्य की भाषा बनाए रखने के पक्ष में थे। 1949 में भारत की संवैधानिक समिति ने मुंशी-आयंगर समझौता किया। इसके बाद जिस भाषा को राजभाषा के तौर पर स्वीकृति मिली वह हिंदी (देवनागरी लिपि में) थी। 1965 में जब हिंदी को सभी जगहों पर आवश्यक बना दिया गया तो तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन हुए। उनका कहना था कि यहां के लोग हिंदी नहीं जानते है इसलिए उसे राष्ट्रभाषा नहीं बनाया जा सकता। आज भी दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों में हिंदी कम बोली जाती हैं। भारत के 20 राज्यों में हिंदी बोलने वाले लोग बहुत कम हैं। बाकी जिन राज्यों को हम हिंदी भाषी मानते हैं उनमें भी जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाएं बोलने वाले लोग ज्यादा है। भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत में ढेरों भाषा बोली जाती है और सरकार ने देश की एकता और अखंडता को ध्यान रखते हुए हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा बनाया। अन्य 21 भाषाएं को सरकारी कामकाज में उपयोग करने की अनुमति दी गई। हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों दिया गया?साल 1918 में महात्मा गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। साल 1950 में हिंदी को संघीय भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। जिसके बाद हिन्दी भाषा का उपयोग भारत के सभी सरकारी काम-काजों में अधिकारिक भाषा के रूप में किया जाने लगा।
हिंदी राष्ट्र भाषा कब बनी थी?हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला. इसके बाद 1953 से राजभाषा प्रचार समिति द्वारा हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जाने लगा. राजभाषा पर क्या कहता है देश का संविधान? भारत के संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343(1) में कहा गया है कि राष्ट्र की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागिरी होगी.
|