1 भारतीय संस्कृति - भारतीय संस्कृति के अनगिनत पहलू इसे और भी रंगबिरंगा, खनकदार और आकर्षक बनाते हैं, तभी तो पश्चिमी देशों के लोग इस मिट्टी की सौंधी महक लेने बड़ी संख्या में इधर का रूख करते हैं। इतना ही नहीं, इस मिट्टी के प्रेम के रंग में रंगकर कितनी ही विदेशी युवतियां यहीं बस जाने की चाह से भारतवासी होकर रह गईं। कभी योग ने दुनिया को अपनी ओर साधा, तो कभी आध्यात्म की परम शांति ने स्वत: ही दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा। कभी अतिथि देवो भव की हमारी परंपरा और अपनत्व की भावना दुनिया के लिए मिसाल बनी, तो कभी कोई अकेलापन अनायास ही यहां के समृद्ध इतिहास की ओर खिंचता चला गया। यह संस्कृति पूरी दुनिया में कहीं नहीं। Show bhumi ka arth paribhasha visheshtaye mahatva;साधारण बोलचाल की भाषा मे भूमि का अर्थ पृथ्वी की ऊपरी सतह से होता है पर अर्थशास्त्र मे भूमि शब्द के अंतर्गत प्रकृति से प्राप्त समस्त नि:शुल्क पदार्थों को सम्मिलित किया जाता है। नि:शुक्ल पदार्थो के अंतर्गत वे समस्त वस्तुएं सम्मिलित की जाती है जो कि भूमि की सतह के ऊपर मिलती है, जैसे वर्षा, वायु, वन, पहाड़, प्रकाश, नदी, तालाब, सम्रुद आदि। इसके अलावा सतह के नीचे मिलने वाली वस्तुओं जैसे-खनिज, जल स्त्रोत आदि को भी सम्मानित किया जाता है। भूमि की परिभाषा (bhumi ki paribhasha)प्रो. स्मिथ एवं पेटरसन के अनुसार," प्रकृति की कोई भी भेंट जिसे हम आवश्यकताओं की संन्तुष्टि के लिये प्रयोग मे लाते है, प्राकृतिक साधन या भूमि है।" प्रो. रिकार्डों के मतानुसार," भूमि प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है।" प्रो. एस. के रूद्रा के अनुसार," भूमि मे वे समस्त शक्तियाँ सम्मिलित है, जो प्रकृति नि: शुल्क उपहारों के रूप मे प्रदान करती है।" प्रो. रिचर्ड के अनुसार," भूमि शब्द मे अर्थशास्त्री केवल भूमि के तल को ही शामिल नही करते बल्कि पानी, धूप, और प्रकृति की दूसरी मुफ्त देन भी शामिल करते है।" जे. उल्मर के अनुसार," प्रकृति के द्वारा प्रदत्त समस्त आर्थिक पदार्थों तथा धन को भूमि कहा जाता है। प्राकृतिक साधनों को उनकी मौलिक अवस्था मे भूमि कहा जाता है।" प्रो. केयरनक्रास के शब्दों मे," सूर्य की रोशनी, वर्षा इत्यादि को भूमि के अंतर्गत शामिल नही करते, क्योंकि इन पर किसी का अधिकार एवं नियंत्रण नही होता।" प्रो. मार्शल के अनुसार," भूमि का अर्थ केवल जमीन की ऊपरी सतह से ही नही है, वरन् उन समस्त पदार्थों एवं शक्तियों से है जो प्रकृति ने भूमि, जल, वायू, प्रकाश, तथा गर्मी के रूप मे, मनुष्य की सहायता के लिये, निःशुल्क प्रदान की है।" भूमि की विशेषताएं (bhumi ki visheshta)भूमि की विशेषताएं इस प्रकार से है-- 1. भूमि की मात्रा का सीमित होना भूमि का क्षेत्र सीमित है, न तो इसे बढ़ाया जा सकता है और न ही घटाया जा सकता है। भूमि का जो क्षेत्रफल प्रकृति के द्वारा एक समय प्रदान कर दिया गया है इसमे कमी या वृद्धि नही की जा सकती। भूमि की पूर्ति की लोच बेलोचदार बनी रहती है। 2. भूमि प्राकृतिक उपहार है भूमि एक प्राकृतिक उपहार है भूमि को मानव से नही बनाया है। भूमि तो प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है। भूमि को कृषि योग्य बनाने हेतु पूंजी खर्च करनी पड़ती है परन्तु समाज ने प्रारंभ मे भूमि को प्राप्त करने के लिए कोई त्याग नही किया है। इस प्रकार व्यक्तिगत रूप से भूमि का क्रय-विक्रय होने से उसका मूल्य है लेकिन सामाजिक दृष्टि से भूमि प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है। 3. भूमि अविनाशी है भूमि अविनाशी है, इसे नष्ट नही किया जा सकता है। भूमि का निरंतर उपयोग होने से इसकी उर्वरा शक्ति अवश्य कम हो जाती है। अत्यधिक वर्षा तथा भूकंप के भू-भाग पर पानी आ सकता है लेकिन इससे भूमि के क्षेत्र पर कुछ भी प्रभाव नही पड़ता है क्योंकि उक्त परिवर्तन रूपांतर मात्र है। 4. गतिशीलता का अभाव भूमि उत्पत्ति का एक ऐसा साधन है जिसमे अन्य साधनों की अपेक्षा गतिशीलता का अभाव रहता है। भूमि का यह स्वभाव होता है कि वह अपने स्थान पर हमेशा स्थिर रहती है। 6. भूमि के गुणों मे विभिन्नता भूमि के सभी टुकड़े समान उपजाऊ नही होते है। इनमे विभिन्नताएं पाई जाती है। भूमि की यह विशेषता उत्पत्ति के अन्य साधनों की विशेषता से मिलती है। 7. भूमि उत्पादन का निष्क्रिय साधन है भूमि स्वयं उत्पादन नही कर सकती है। उत्पादन के कार्य के लिए भूमि के साथ श्रम तथा पूंजी का होना जरूरी है। तात्पर्य यह है कि भूमि स्वयं उत्पादन नही करती है। मनुष्य अपने श्रम एवं अन्य साधनों के सहयोग से भूमि को उत्पादन कार्य मे लगाता है। इस तरह भूमि उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन है। 8. मौलिक साधन भूमि उत्पादन का प्राथमिक साधन माना जाता है। संसार के समस्त कार्यों मे भूमि की आवश्यकता होती है। कृषि, उधोग, परिवहन सब भूमि पर ही आधारित है। भूमि के बहुतेरे प्रयोग संभव है। भूमि ऐसा भण्डार है जिससे खाद्य पदार्थ, पेय, पदार्थ, कच्चा माल, जलवायु, खनिज पदार्थ आदि प्राप्त होते है, जो अनेक उद्योगों का आधार है। 9. भूमि उत्पत्ति का अनिवार्य साधन है भूमि भले ही स्वयं कुछ उत्पादन नही करती हो किन्तु इसके बिना उत्पादन कर पाना असंभव होता है। हम श्रम व पूंजी की मात्रा मे चाहे जितनी वृद्धि कर लें किन्तु भूमि के अभाव मे उत्पादन कार्य संपन्न करना कठिन है। 10. भूमि के विभिन्न प्रयोग भूमि की एक विशेषता भूमि की विभिन्न उपयोगिताएं है। भूमि से कृषि उत्पादन किया जाता सकता है, उस पर मकान बनाया जा सकता है, कारखाने खोले जा सकते है। मनुष्य उपयोगिता एवं आवश्यकता के अनुसार भूमि का प्रयोग कर सकता है। 11. भूमि के मूल्यों मे अंतर भूमि के मूल्यों मे भी अंतर होता है, शहर के निकट या मूख्य बाजार मे स्थित एवं शहर से दूर स्थिति भूमि के मूल्यों मे काफी अंतर होता है। भूमि का महत्व (bhumi ka mahatva)भूमि के बिना उत्पादन करना संभव नही है भूमि उत्पादन का एक अनिवार्य साधन है। भूमि के अभाव मे मानव जीवन असंभव है। भूमि का महत्व इस प्रकार से है-- 1. भूमि आर्थिक विकास का आधार है भूमि आर्थिक विकास का आधार स्तम्भ है। भूमि से ऐसे शक्तिशाली साधनों को प्राप्त किया जा सकता है जिनके प्रयोग से तीव्र गति से विकास हो सकता है। इस प्रकार से मनुष्य सदैव प्रकृति का ॠणी होता है। 2. उत्पादन मे महत्व भूमि के बिना उत्पादन नही किया जा सकता। भूमि उत्पादन क्रिया का आधार है अर्थात् सम्पूर्ण उत्पादन भूमि पर ही निर्भर करता है। उद्योग, निवास आदि सभी कार्यों के लिए भूमि आवश्यक है। 3. प्राकृतिक स्त्रोतों की प्राप्ति जितने भी प्राकृतिक स्त्रोत है, वे सभी के सभी भूमि से ही प्राप्त होते है, जैसे-- जल स्त्रोत, खनिज स्त्रोत तथा शक्ति के स्त्रोत आदि। जिस देश के पास जितने अधिक प्राकृतिक स्त्रोत उपलब्ध होगे। वह देश उतना ही अधिक संपन्न होगा। 4. भूमि प्राथमिक उद्योगों का आधार यदि भूमि न होती तो उद्योग धन्धे भी न होते। भूमि के अभाव मे कृषि करना संभव नही नही है। भूमि की उर्वराशक्ति के कारण हमे भोजना प्राप्त होता है। उद्योग, वन आदि भी भूमि पर ही निर्भर है। मछली,पशुपालन, वन, खनिज आदि भूमि पर ही निर्भर है। 5. परिवाहन व संचार साधनो का विकास परिवहन व संचार के साधनों का विकास भूमि की सतह की बनावट पर निर्भर है। जैसे-- समतल भूमि पर इनका विकास सरलता से हो जाता है। 6. आर्थिक सम्पन्नता का आधार देश का विकास भूमि के गुणों पर निर्भर है। जिस देश मे प्राकृतिक साधन जितने होंगे वह देश उतना ही शक्तिशाली होगा। 7. प्राकृतिक जीवन की प्राप्ति भूमि द्वारा हमे हवा, प्रकाश, पानी, ॠतु, भिन्न-भिन्न जलवायु तथा अन्य आवश्यक वस्तुएं प्राप्त होती है जिन पर मनुष्य का जीवन निर्भर करता है। 8. कृषि का आधार भूमि कृषि का आधार है, क्योंकि बिना भूमि के खेती करना नही की जा सकती है। भूमि कृषि के लिए आधारभूत तत्व है। 9. व्यापारिक सुविधाओं का आधार व्यापारिक सुविधाएं जैसे-- यातायात व संदेशवाहन के साधन भी भूमि पर ही निर्भर करते है। समतल स्थानों पर यातायात के साधन अधिक विकसित होते है, व अन्य स्थानों पर कम। 10. निर्माण का आधार भूमि निर्माण का आधार है, भूमि की सतह पर ही मनुष्य रहते है तथा मकान, कारखाने आदि इसी पर ही बनाये जाते है। भूमि का प्रयोग मकान आदि बनाने मे किया जाता है। स्पष्ट है कि भूमि उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन है। समस्त आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कार्य भूमि के धरातल मे रहकर ही किये जाते है तथा बिना भूमि के कोई कार्य संभव नही है। भूमि के प्रयोगों पर ही राष्ट्र का विकास निर्भर करता है। यदि भूमि का उचित प्रयोग किया जाए तो राष्ट्र का विकास अवश्यंभावी है। इसलिये भूमि की महत्ता को अस्वीकार नही किया जा सकता। भारत भूमि की क्या क्या विशेषताएँ हैं?Answer: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। दूसरी सबसे बड़ी आबादी के साथ, हमारी मुख्य भूमि के एक विशाल सीमा है। ... राजनीतिक रूप से भारत में २९ राज्य और ७ केंद्र शासित प्रदेश हैं जिनमें भारत महासागर में अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीप शामिल हैं।
भूमि की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?भूमि की मात्रा सीमित होती है - भूमि की एक विशेषता यह भी पायी जाती है कि इसको मात्रा सीमित होती है। इसकी मात्रा को न तो घटाया जा सकता है और न ही बढ़ाया ही जा सकता है। अन्य शब्दों में भूमि की पूर्ति बेलोचदार होती है।
भारत भूमि कैसी है और यहाँ कौन लोग रहते हैं?अथवा, भारत भूमि कैसी है तथा यहाँ किस प्रकार के लोग रहते हैं ? उत्तर ⇒ भारतवर्ष अति प्रसिद्ध देश है तथा यहाँ की भूमि सदैव पवित्र और ममतामयी है। यहाँ विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एकता भाव को धारण करते हुए निवास करते हैं।
भारत को किसकी भूमि कहा जाता है?पद्मपुराण में एक दुराचारी ब्राह्मण भरत का उल्लेख बताया जाता है. ऐतरेय ब्राह्मण में भी दुष्यन्तपुत्र भरत ही भारत नामकरण के पीछे खड़े दिखते हैं. ग्रन्थ के अनुसार भरत एक चक्रवर्ती सम्राट यानी चारों दिशाओं की भूमि का अधिग्रहण कर विशाल साम्राज्य का निर्माण कर अश्वमेध यज्ञ किया जिसके चलते उनके राज्य को भारतवर्ष नाम मिला.
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