UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 4 Climate (जलवायु) Show पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर बहुवैकल्पिक प्रश्न (ii) भारत के कितने भू-भाग पर 75 सेंटीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है? (iii) दक्षिण भारत के सन्दर्भ में कौन-सा तथ्य ठीक नहीं है? (iv) जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर सीधा चमकता है, तब निम्नलिखित में से क्या होता है? (v) कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार भारत में ‘As’ प्रकार की जलवायु कहाँ पाई जाती है? प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दो में दीजिए (ii) अन्तःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र क्या है? (iii) मानसून प्रस्फोट से आपका क्या अभिप्राय है?’भारत में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले| स्थान का नाम लिखिए। (iv) जलवायु प्रदेश क्या होता है? कोपेन की पद्धति के प्रमुख आधार कौन-से हैं? (v) उत्तर-पश्चिमी भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? वे चक्रवात कहाँ उत्पन्न होते हैं? प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में लिखिए| (ii) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार भारत में कितने स्पष्ट मौसम पाए जाते हैं? किसी एक मौसम की दशाओं की सविस्तार व्याख्या
कीजिए। शीत ऋतु। भारत में शीत ऋतु का प्रारम्भ मध्य नवम्बर से हो जाता है। इस समय उत्तरी भारत में तापमान में गिरावट आरम्भ हो जाती है तथा उत्तरी भारत के अधिकांश भागों में औसत तापमान 21°C से कम रहता है। (जनवरी-फरवरी) रात्रि का तापमान काफी कम हो जाता है, जो पंजाब और राजस्थान में हिमांक से भी नीचे चला जाता है। दक्षिणी भारत में सर्दी की ऋतु नहीं के बराबर होती है। यहाँ तापान्तर बहुत कम रहता हैं। तटीय प्रदेशों में तो यह बहुत कम रहता है। त्रिवेन्द्रम का तापमान जनवरी में 31C तथा जून में 29.5C तक रहता है। शीत ऋतु में पवनें उत्तर-पश्चिम से दक्षिण को चलती हैं जहाँ वायुदाब कम होता है। शीत ऋतु में वर्षा अल्पतम होती है। इस समय उत्तरी भारत में वर्षा शीतोष्ण चक्रवात, जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं, से होती है। यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभदायक रहती है। इसी समय भारत के पूर्वी तटीय भाग में भी विशेषकर तमिलनाडु में वर्षा होती है। परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर बहुविकल्पीय प्रश्न प्रश्न 2. भारत में अधिकतम तापमान कहाँ पाया जाता है? प्रश्न 3. भारत में अधिकतम वर्षा वाला स्थान है प्रश्न 4. भारत का नगर जो वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ता है प्रश्न 5. आम्रवृष्टि कहाँ होती
है? प्रश्न 6. ‘काल-बैसाखी कहाँ प्रचलित है? । प्रश्न 7. जेट धाराएँ हैं प्रश्न 8. उत्तर भारत में शीतकालीन वर्षा का कारण है प्रश्न 9. सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला महीना है प्रश्न 10. चेरापूंजी किस राज्य में स्थित
है? प्रश्न 11. भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र कौन-सा है? प्रश्न 12. दैनिक तापान्तर निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में सर्वाधिक पाया जाता है? प्रश्न 13. निम्नलिखित में से कौन राज्य भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र में सम्मिलित है? प्रश्न 14. भारत के किस राज्य में शीत ऋतु में वर्षा होती है? अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. मानसून से क्या अभिप्राय है? प्रश्न 2. भारत में अधिकांश वर्षा किस ऋतु में होती है ? प्रश्न 3. थार मरुस्थल में अल्प वर्षा क्यों होती है ? दो कारण लिखिए।
प्रश्न 4.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति का प्रमुख क्या कारण है ?
प्रश्न 5. जेट वायुधाराएँ किन्हें कहते हैं ? प्रश्न 6. भारत में पायी जाने वाली ऋतुओं के नाम लिखिए। प्रश्न 7. भारत में सर्वाधिक वर्षा किस राज्य में होती है ? प्रश्न 8. ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा का वर्णन कीजिए। प्रश्न 9. भारत में अधिकांश वर्षा किस प्रकार की होती है? प्रश्न 10. लौटते हुए मानसून से भारत के किन दो राज्यों में वर्षा होती है ? लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. वर्षा और वर्षण में अन्तर लिखिए। (ii) वर्षण—यह एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें वायुमण्डल की आर्द्रता संघनित होकर वर्षा, हिम, ओला, पाला आदि रूपों में धरातल पर गिरती है। जल-वर्षा, वर्षण का एक साधारण रूप है। हिमवृष्टि, ओलावृष्टि, हिमपात आदि इसके अनेक रूप हैं। प्रश्न 2. ‘आम्रवृष्टि’ और ‘काल-बैसाखी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (ii) काल-बैसाखी-ग्रीष्म ऋतु में बंगाल तथा असोम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा, वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं। यह वर्षा प्रायः सायंकाल में होती है। इसी वर्षा को ‘काल-बैसाखी’ कहते हैं। इसका अर्थ है-बैसाख मास का काल।। प्रश्न 3. भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु की तीन विशेषताएँ लिखिए।
प्रश्न 4. भारत में कम वर्षा वाले तीन क्षेत्र कौन-कौन-से हैं?
प्रश्न 5. जाड़ों में वर्षा वाले भारत के दो’क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। 1. देश के उत्तर-पश्चिमी भाग-भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा । देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है। 2. तमिलनाडु तट-तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसून पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं तो ये कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं तथा तटों पर वर्षा करती हैं। प्रश्न 6. जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ? 1. प्राकृतिक वनस्पति पर प्रभाव-किसी देश की प्राकृतिक वनस्पति न केवल धरातल और मिट्टी के गुणों पर निर्भर करती है, वरन् वहाँ के तापमान और वर्षा को भी उस पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि पौधे के विकास के लिए वर्षा, तापमान, प्रकाश और वायु की आवश्यकता पड़ती है; उदाहरणार्थ- भूमध्यरेखीय प्रदेशों में निरन्तर तेज धूप, कड़ी गर्मी और अधिक वर्षा के कारण
ऐसे वृक्ष उगते हैं; जिनकी पत्तियाँ घनी, ऊँचाई बहुत और लकड़ी अत्यन्त कठोर होती है। इसके विपरीत मरुस्थलों में काँटेदार झाड़ियाँ भी बड़ी कठिनाई से उग पाती हैं; क्योंकि यहाँ वर्षा का 2. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव-जलवायु की विविधता ने प्राणियों में भी विविधता स्थापित की है। जिस प्रकार विभिन्न जलवायु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, वैसे ही विभिन्न जलवायु प्रदेशों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु पाये जाते हैं;
उदाहरणार्थ-कुछ जीव-जन्तु वृक्षों की शाखाओं पर रहकर सूर्य की गर्मी और प्रकाश प्राप्त करते हैं; जैसे- नाना प्रकार के बन्दर, चमगादड़ आदि। इसके विपरीत कुछ जीव-जन्तु जल में निवास करते हैं; जैसे—मगरमच्छ, दरियाई घोड़े आदि। ठीक इससे भिन्न प्रकार के प्राणी टुण्ड्री प्रदेश में पाये जाते हैं जिनके शरीर पर प्रश्न 7. अल्पवृष्टि तथा अतिवृष्टि का वर्णन कीजिए। 2. अतिवृष्टि प्रश्न 8. भारत की चार प्रमुख ऋतुओं के नाम लिखकर उनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 2. ग्रीष्म ऋतु-21 मार्च के बाद सूर्य की स्थिति उत्तरायण हो जाती है। अब मार्च, अप्रैल और मई के बीच अधिक तापमान की पेटी दक्षिण से उत्तर की ओर खिसक जाती है। इस समय देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में तापमान 48° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। फलस्वरूप अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण इस भाग में निम्न वायुदाब के क्षेत्र बन जाते हैं। इसे ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त कहते हैं। इस ऋतु में शुष्क एवं गर्म पवनें चलने लगती हैं, जिन्हें ‘लू’ कहा जाता है। इन दिनों पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में धूलभरी आँधियाँ भी चलती हैं। 3. आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु-सम्पूर्ण देश में जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों में ही अधिकांश वर्षा होती है। वर्षा की अवधि एवं मात्रा उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में यह अवधि केवल दो महीनों की होती है। तथा वर्षा का 75% से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है। 4. पीछे लौटते हुए मानसून की ऋतु-अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में मानसूने पीछे लौटने लगता है। अक्टूबर माह के अन्त तक मानसून मैदान से पूर्णतः पीछे हट जाता है। इस समय शुष्क ऋतु का आगमन होता है तथा आकाश स्वच्छ हो जाता है। तापमान में कुछ वृद्धि होती है। उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायी हो जाता है। निम्न वायुदाब के क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इस अवधि में पूर्वी तट पर व्यापक वर्षा होती है। सम्पूर्ण कोरोमण्डल तट पर अधिकांश वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है। प्रश्न 9. मानसून से क्या अभिप्राय है? ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताएँ 2. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेजी से चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिमी भागों को छोड़कर ये एक महीने में सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से भरी इन पवनों के आने के साथ ही बादलों का प्रचण्ड ग़र्जन तथा बिजली चमकनी शुरू हो जाती है। इसे मानसून का फटना’ या टूटना’ कहते हैं। 3. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद मौसम सूखा रह्ता | है। मानसून के इस घटते-बढ़ते स्वरूप का कारण चक्रवातीय अवदाब हैं, जो मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी के शीर्ष भाग में उत्पन्न होते हैं और भारत-भूमि के ऊपर से गुजरते हैं। 4. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अपनी स्वेच्छाचारिता के लिए विख्यात है। इससे एक ओर तो कुहीं | भारी वर्षा से भयंकर बाढ़ आ सकती है तो दूसरे स्थान पर सूखा पड़ सकता है। इससे करोड़ों प्रश्न 10. भारत की जलवायु पर हिमालय पर्वत के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए। 2. हिमालय पर्वत दक्षिण की ओर से आने वाली ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों को रोककर उन्हें भारत में वर्षा करने को विवश कर देता है। यदि भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत न होता तो उत्तर का विशाल मैदान शुष्क मरुस्थल में परिणत हो गया होता। 3. हिमालय पर्वत के उच्च शिखरों पर जमी हुई हिम, ग्रीष्म ऋतु में भी नदियों को सतत रूप से जल प्रदान करती रहती है तथा उन्हें सदानीरा बनाए रखती है। इससे समस्त उत्तरी भारत को ग्रीष्म ऋतु | में भी कृषि फसलों की सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होता रहता है। प्रश्न 11. शीतकालीन वर्षा का भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है? प्रश्न 12. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति के क्या कारण हैं? प्रश्न 13. पश्चिमी विक्षोभ से क्या तात्पर्य है? प्रश्न 14. पर्वतीय वर्षा एवं वृष्टि-छाया प्रदेश किसे कहते हैं? वायुराशियों द्वारा अवरोध के सम्मुख वाले भाग में अत्यधिक वर्षा होती है, जबकि विमुख भागों तक पहुँचते-पहुँचते वायुराशियों की आर्द्रता समाप्त हो जाती है। इन प्रदेशों को वृष्टि-छाया प्रदेश के नाम से पुकारा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा पश्चिमी घाट के वायु अभिमुख ढाल पर 640 सेमी (महाबलेश्वर में) वर्षा हो जाती है, जबकि इसके विमुख ढाल पर पुणे में मात्रा 50 सेमी या उससे भी कम वर्षा होती है। अत: दक्षिण भारत का यह क्षेत्र वृष्टि-छाया प्रदेश कहलाता है। प्रश्न 15. उत्तरी भारत के किन राज्यों में बाढ़ (Flood) का प्रकोप रहता है और क्यों? प्रश्न 16. क्या कारण है कि चेरापूँजी में अत्यधिक वर्षा होती है? प्रश्न 17. ‘क्वार मास की उमस’ का क्या अर्थ है? प्रश्न 18. जेट पवनें किन्हें कहते हैं? जेट पवनों का नामकरण अमेरिकी बमवर्षक विमान बी-29 के नाम पर हुआ है। द्वितीय महायुद्ध में इन बमवर्षकों को जापान की उड़ान भरने पर प्रबल वेग वाली वायु का सामना करना पड़ता था, जिससे विमानों की गति मन्द पड़ जाती थी तथा कभी-कभी इनका आगे बढ़ना भी कठिन हो जाता था। परन्तु जब यही विमान अमेरिका की ओर वापस आते थे, तब इनके वेग में अपार वृद्धि हो जाती थी। इसी कारण इनका नामकरण जेट पवनों (जेट स्ट्रीम्स) के नाम पर हुआ। ये जेट धाराएँ पूर्व से पश्चिम की ओर 62 किमी की ऊँचाई पर चलती हैं। शीत ऋतु में ये विषुवत् रेखा के अधिक निकट परन्तु 20° अक्षांशों तक प्रवाहित होती हैं। ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु में इनका वेग दोगुना हो जाता है। सामान्य रूप से इनका वेग 480 किमी प्रति घण्टा होता है। प्रश्न 19, चेन्नई का तट शुष्क रहता है जबकि मालाबारं का तट जुलाई के महीने में वर्षा प्राप्त करता | है। कारण बताइए। प्रश्न 20. भारत में मानसून को ‘किसान के लिए जुआ क्यों कहा जाता है? प्रश्न 21. भारत के मानसून रचना तन्त्र का वर्णन कीजिए। प्रश्न 22. मानसून के ‘फटने या ‘टूटने से क्या तात्पर्य है ? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. जलवायु से आप क्या समझते हैं ? जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों (परिघटनाओं) का वर्णन कीजिए। भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक 2. पृष्ठीय पवनें-उपोष्ण कटिबन्धीय स्थिति के कारण भारत शुष्क व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में पड़ता है, किन्तु भारत की विशिष्ट प्रायद्वीपीय स्थिति, तापमानों-वायुदाब की भिन्नता आदि कारणों से भारत में मानसूनी पवनें सक्रिय रहती हैं। ये पवनें ऋतु-क्रम से अपनी दिशा बदलती रहती हैं। तदनुसार भारत में ग्रीष्मकालीन (दक्षिण-पश्चिमी) मानसून तथा शीतकालीन (उत्तर-पूर्वी) मानसून सक्रिय होते हैं। इन्हीं मानसूनों से भारत को अधिकांश वर्षा प्राप्त होती है। अत: भारतीय मानसून के अध्ययन के बिना उसकी जलवायु के विषय में नहीं जाना जा सकता। 3. उच्चावच (हिमाचल)–भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत-श्रेणी एक प्रभावशाली जलवायु विभाजक का कार्य करती है। यह उत्तरी बर्फीली पवनों को भारत में प्रवेश करने से रोकती है तथा 4. उपरितन वायु-उपरितन वायु से अभिप्राय ऊपरी वायुमण्डल में चलने वाली वायुधाराओं से है। ये भूपृष्ठ से बहुत ऊँचाई पर (9 किमी से 12 किमी तक) तीव्र गति से चलती हैं। इन्हें जेट वायुधाराएँ भी कहते हैं। ये बहुत सँकरी पट्टी में चलती हैं। शीत ऋतु में हिमालय के दक्षिणी भाग के ऊपर स्थित समताप मण्डल में पश्चिमी जेट वायुधारा चलती है। जून में यह उत्तर की ओर खिसक जाती है तथा 15° उत्तरी अक्षांश के ऊपर चलने लगती है। उत्तरी भारत में मानसून के . अचानक विस्फोट के लिए यही वायुधारा उत्तरदायी मानी जाती है। इसके शीतल प्रभाव से बादल उमड़ने लगते हैं, फिर बरसते हैं। आठ-दस दिनों में ही पूरे देश में मानसून का प्रसार हो जाता है। . ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु में इनका वेग दोगुना हो जाता है। साधारणतः इनका वेग लगभग 500 किमी प्रति घण्टा होता है तथा ध्रुवीं की ओर बढ़ने पर इनके वेग में कमी आ जाती है। 5. अलनिनो-यह एक ऐसी मौसमी परिघटना है, जिसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है। भारत की मानसूनी जलवायु भी इस परिघटना से प्रभावित होती है। इस तन्त्र में पूर्वी प्रशान्त महासागर के पीरू तट पर गर्म धारा प्रकट होने पर हिन्द महासागर में स्थित भारत में अकाल या वर्षा की कमी की स्थिति हो जाती है। अलनिनो के समाप्त होने पर प्रशान्त महासागर की सतह पर तापमान तथा वायुदाब की स्थिति पहले जैसी हो जाती है। इन उतार-चढ़ावों को दक्षिणी दोलन’ (Southern Oscillation) कहा जाता है। मानसूनों के प्रबल या दुर्बल होने में ‘दक्षिणी दोलन’ का बहुत प्रणव पड़ता है। प्रश्न 2. उत्तर-पूर्वी मानसून तथा लौटते हुए मानसून में अन्तर स्पष्ट कीजिए। प्रश्न 3. भारत की
ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन जलवायु का वर्णन कीजिए। 2. वायुदाब तथा पवनें-उत्तरी भारत में तापमानों की वृद्धि होने से वायुदाब घट जाता है। मई के अन्त तक एक लम्बा सँकरो निम्न वायुदाब गर्त थार मरुस्थल से लेकर बिहार में छोटा नागपुर के पठार तक विस्तृत हो जाता है। इस निम्न वायुदाब गर्त के चारों ओर वायु का संचरण होने लगता है। दोपहर के बाद शुष्क और गर्म ‘लू’ (पवने) चलने लगती हैं। पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में सायंकाल को धूलभरी आँधियाँ आती हैं। यदा-कदा आँधियों के बाद हल्की वर्षा हो जाती है तथा मौसम सुहाना हो जाता है। 3. वर्षण–यदा-कदा आर्द्रता से लदी पवनें मानसून के निम्न दाब गर्त की ओर खिंच आती हैं। तब शुष्क और आर्द्र वायु-राशियों के मिलने से स्थानीय तूफान आते हैं। तेज पवनें, मूसलाधार
वर्षा भारत की शीतकालीन जलवायु भारत में शीतकालीन जलवायु दिसम्बर से फरवरी तक रहती है। इस जलवायु की सामान्य दशाएँ निम्नलिखित हैं 1. तापमान-सामान्यतः देश में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा समुद्र तट से आन्तरिक भागों की ओर घटते हैं। तिरुवनन्तपुरम् तथा चेन्नई में दिसम्बर में औसत तापमान 25° से 27°C के लगभग रहते हैं। दिल्ली और जोधपुर में तापमान 15° से 16°C तक रहते हैं। लेह में औसत तापमान -6°C तक गिर जाते हैं। उत्तरी मैदान में व्यापक रूप से पाला पड़ता है। इस ऋतु में दिन सामान्यतः कोष्ण (कम उष्ण) एवं रातें ठण्डी होती हैं। 2. वायुदाब-देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में उच्च वायुदाब क्षेत्र स्थापित होता है। यहाँ से पवनें बाहर की ओर 3 किमी से 5 किमी प्रति घण्टा के वेग से चलने लगती हैं। इस क्षेत्र की स्थलाकृति 3. वर्षा-स्थलीय पवनें शुष्क होती हैं; अत: प्रायः सम्पूर्ण देश में मौसम शुष्क रहता है। भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है। हिमालय श्रेणी में हिमपात होता है। तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसूनी पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट प्रश्न 4. भारतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 2. वर्षा की अनिश्चितता—भारतीय मानसूनी वर्षा का प्रारम्भ अनिश्चित है। मानसून कभी शीघ्र | आते हैं तो कभी देर से। कभी-कभी वर्षा ऋतु में सूखा पड़ जाता है तथा कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़े तक आ जाती हैं। किसी वर्ष वर्षा नियत समय से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है एवं निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है। 3. वितरण की असमानता-भारतीय वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। कुछ भागों में वर्षा 490 सेमी या उससे अधिक हो जाती है, जबकि कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ वर्षा का औसत 12 सेमी से भी कम रहता है। 4. मूसलाधार वर्षा–भारत में वर्षा अनवरत गति से नहीं होती, वरन् कुछ दिनों के अन्तराल से होती है। कभी-कभी वर्षा मूसलाधार रूप में होती है और एक ही दिन में 50 सेमी तक हो जाती है। यह मिट्टी का अपरदन करती है, जिससे मिट्टी के उत्पादक तत्त्व बह जाते हैं। 5. असमान वर्षा–कुछ भागों में वर्षा बड़ी तीव्र गति से होती है तथा कुछ भागों में केवल बौछारों के रूप में। एक ओर मॉसिनराम गाँव (चेरापूँजी) में 1,354 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है, तो वहीं राजस्थान में केवल 10 सेमी से भी कम। कुछ स्थानों पर वर्षा की प्राप्ति असन्दिग्ध रहती है। वर्षा हो भी सकती है और नहीं भी। भारत के उत्तरी मैदान में तथा दक्षिणी भागों में ऐसी ही स्थिति पायी जाती है। 6. वर्षा की अल्पावधि-भारत में वर्षा के दिन बहुत ही कम होते हैं। उदाहरण के लिए–चेन्नई में | 50 दिन, मुम्बई में 75 दिन, कोलकाता में 118 दिन तथा अजमेर में केवल 30 दिन। 7. वर्षा की निश्चित अवधि–कुल वर्षा का लगभग 80% जून से सितम्बर तक प्राप्त हो जाता है, फलत: वर्ष का दो-तिहाई भाग सूखा ही रह जाता है, जिससे फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है। 8. पर्वतीय वर्षा–भारत की लगभग 95% वर्षा पर्वतीय है, जबकि मात्र 5% वर्षा ही चक्रवातों द्वारा होती है। 9. वर्षा की निरन्तरता—भारत में प्रत्येक मास में किसी-न-किसी क्षेत्र में वर्षा होती रहती है। शीतकालीन चक्रवातों द्वारा जनवरी एवं फरवरी महीनों में उत्तरी भारत में वर्षा होती है। मार्च में चक्रवात असोम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में सक्रिय रहते हैं। इनसे तब तक वर्षा होती है जब तक दक्षिण-पश्चिमी मानसून पुनः चलना न आरम्भ कर दें। प्रश्न 6. भारत में वर्षा के वार्षिक वितरण को स्पष्ट कीजिए तथा अपने उत्तर की पुष्टि रेखाचित्र से | कीजिए। 1. निश्चित वर्षा के प्रदेश–इस प्रदेश के अन्तर्गत हिमालय का तराई प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, असोम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, ऊपरी नर्मदा
घाटी तथा मालाबार तट सम्मिलित किये जाते हैं। 2. अनिश्चित वर्षा के प्रदेश–अनिश्चित वर्षा के प्रदेश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के मध्यवर्ती भाग, पूर्वी घाट, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश के दक्षिणी और पश्चिमी भाग, कर्नाटक, बिहार तथा ओडिशा सम्मिलित हैं। अनिश्चित वर्षा वाले प्रदेशों को अग्रलिखित । भागों में बाँटा गया है (i) अधिक वर्षा वाले क्षेत्र–इसके अन्तर्गत पश्चिमी तट के कोंकण, मालाबार, दक्षिणी (ii) साधारण वर्षा वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में बिहार, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी घाट के पूर्वोत्तर ढाल, पश्चिम बंगाल, दक्षिणी उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा का औसत 100 से 200 सेमी के मध्य रहता है। इन क्षेत्रों में वर्षा की विषमता 15 से 20% तक पायी जाती है। कभी-कभी इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होने से बाढ़ आ जाती है, जबकि कभी वर्षा की कमी से अकाल पड़ जाते हैं। इस प्रकार इन क्षेत्रों में वर्षा की अधिकता एवं कमी में मानसूनों का प्रमुख योगदान होता है। इसी कारण यहाँ बड़ी-बड़ी बहुउद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाएँ क्रियान्वित की गयी हैं। (ii) न्यून वर्षा वाले क्षेत्र–इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी अनुभव की जाती है। यहाँ पर वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 100 सेमी तक रहता है। इस प्रदेश के अन्तर्गत दक्षिण की प्रायद्वीप, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी एवं दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पंजाब तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश राज्यों के भाग सम्मिलित हैं। वर्षा की विषमता 20 से 25 सेमी तक तथा अपर्याप्त व अनिश्चित रहती है। इन प्रदेशों में अकाल की सम्भावना बनी रहती है। अतः यहाँ सिंचाई के सहारे गेहूँ, कपास, ज्वार, बाजरा, तिलहन आदि फसलें उत्पन्न की जाती हैं। (iv) अपर्याप्त वर्षा के क्षेत्र अथवा मरुस्थलीय क्षेत्र-ये भारत के शुष्क क्षेत्र हैं, जहाँ पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। वर्षा की कमी के कारण यहाँ सदैव सूखे की समस्या बनी रहती है। बिना सिंचाई के कृषि-कार्य इन क्षेत्रों में बिल्कुल असम्भव है। पश्चिमी राजस्थान के सम्पूर्ण क्षेत्र इसके अन्तर्गत आते हैं। तमिलनाडु का रायलसीमा क्षेत्र भी इसके अन्तर्गत आता है। प्रश्न 7.भारतीय जलवायु पर चक्रवातीय एवं प्रतिचक्रवातीय तूफानों को क्या प्रभाव पड़ता है? प्रतिचक्रवात सामान्यत: साफ मौसम का प्रतीक समझा जाता है, परन्तु इसमें सदैव मौसम साफ नहीं रहता। इसका मौसम इसकी वायुराशि के गुणों और ग्रीष्म एवं शीत ऋतु पर निर्भर रहता है। ग्रीष्म ऋतु में प्रतिचक्रवात में शुष्क, गरम मौसम एवं स्वच्छ आकाश होता है जिसमें उच्च दैनिक ताप परिसर पाए जाते हैं। शीत ऋतु में जिन प्रतिचक्रवातों में ध्रुवीय ठण्डी एवं शुष्क वायु होती है, उनमें निम्न ताप और स्वच्छ आकाश के साथ रात्रि में पाला पड़ता है। परन्तु जिन प्रतिचक्रवातों में ध्रुवीय समुद्री वायु होती है, उनमें आकाश स्तरी मेघों से ढक जाता है, जिसे प्रतिचक्रवाती अंधकार कहते हैं। ऐसी दशा में बड़े नगरों के उद्योगों द्वारा प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है और कुहरा छाया रहता है। प्रश्न 8. भारत की जलवायु दशाओं की क्षेत्रीय विषमताओं को उपयुक्त उदाहरण देते हुए समझाइए। 1. तापन्तर–तापमान का जलवायु पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। भारत में राजस्थान और दक्षिण-पश्चिमी पंजाब जैसे ऐसे भी स्थान हैं जहाँ तापमान 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है, जबकि दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर में कारगिल के समीप ऐसे स्थान हैं जहाँ तापमान -45° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। 2. वर्षा की निश्चित अवधि–सामान्यतया भारत में मानसूनी वर्षा की अवधि 15 जून से 15 सितम्बर तक होती है। इस समय देश में 75% से 90% तक वर्षा हो जाती है। इस अवधि को वर्षा ऋतु कहा जाता है। इस प्रकार वर्षा का अधिकांश भाग वर्षारहित रहता है, केवल कुछ छिट-पुट क्षेत्रों में ही सामान्य वर्षा हो पाती है। 3. मूसलाधार वर्षा-भारत में वर्षा बहुत ही तीव्र गति से (मूसलाधार) होती है। कभी-कभी एक ही दिन में 50 सेमी तक वर्षा हो जाना सामान्य-सी बात है। वर्षा की तीव्रता के कारण अधिकांश जल 4. अनिश्चित वर्षा–भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की सबसे बड़ी विषमता उसकी अनिश्चितता है। कभी-कभी वर्षा अत्यधिक हो जाती है जिससे बाढ़ आ जाती है या कभी-कभी वर्षा बिल्कुल ही नहीं हो पाती है जिससे सूखा पड़ जाता है। इसी कारण भारतीय कृषि मानसून का जुआ कहलाती है। 5. वर्षा की अनियमितता–भारत में वर्षा पूर्णतया मानसून पर निर्भर करती है। यदि मानसून शीघ्र आ जाता है तो वर्षा भी शीघ्र ही आरम्भ हो जाती है। इसके विपरीत मानसून के देर.से आने पर वर्षा भी देर से ही आरम्भ होती है। 6. वर्षा का असमान वितरण–देश में वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। एक ओर माँसिनराम गाँव (चेरापूंजी के निकट) में वार्षिक वर्षा का औसत 1,354 सेमी रहता है, तो दूसरी ओर राजस्थान में यह औसत केवल 5 सेमी से 10 सेमी के मध्य ही रहता है। प्रश्नं 9. भारत की अधिकांश वर्षा गर्मियों में होती है-कारणों का उल्लेख करते हुए भारत में वर्षा का वितरण लिखिए। दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति-ग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। जून के प्रारम्भ तक निम्न वायुदाब का यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिण गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर खिंचे आती हैं। इन दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों की उत्पत्ति समुद्र से होती है। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार करके ये पवनें बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में पहुँच जाती हैं । इसके बाद ये भारत के वायु-संचरण का अंग बन जाती हैं। विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। विषुवत् । वृत्त पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इसीलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहा जाता है। मानसून का फटना–वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेज चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किमी प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिम के दूरस्थ भागों को छोड़कर ये पवनें एक महीने के अन्दर-अन्दर सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से लदी इन पवनों के साथ ही बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे मानसून का ‘फटना’ अथवा ‘टूटना’ कहते हैं। दक्षिण-पश्चिमी मानसून की शाखाएँ–भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति के कारण मानसून की दो शाखाएँ हो जाती हैं (क) अरब सागर की शाखा-अरब सागर की शाखा सबसे पहले पश्चिमी घाट के पर्वतों से (ख) बंगाल की खाड़ी की शाखा-बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा म्यांमार (बर्मा) तट की ओर तथा बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भागों की ओर बढ़ती है। परन्तु म्यांमार के तट के साथ-साथ फैली अराकान पहाड़ियाँ इस शाखा के बहुत बड़े भाग को भारतीय उपमहाद्वीप की दिशा में मोड़ देती हैं। इस प्रकार यह पश्चिमी दिशा से न आकर दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वी दिशाओं से आती है। विशाल हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब के प्रभाव से यह शाखा दो भागों में बँट जारी है। एक शाखा पश्चिम की ओर बढ़ती है तथा गंगा के मैदानों को पार करती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुँचती है। इसकी दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र की घाटी की ओर बढ़ती है। यह उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। इसकी एक उपशाखा मेघालय में गारो और खासी की पहाड़ियों से टकराती है और वहाँ खूब वर्षा करती है। सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम (Mausinram) (मेघालय) में होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 1,354 सेण्टीमीटर है। वर्षा का वितरण–दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा के वितरण पर उच्चावच का बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए-पश्चिमी घाट के पवनविमुख ढालों पर 250 सेमी से अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी भारी वर्षा होती है, परन्तु उत्तरी मैदानों में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। इस विशिष्ट ऋतु में कोलकाता में लगभग 120 सेमी, पटना में 102 सेमी, इलाहाबाद में 91 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है। प्रश्न 10. भारत की जलवायु का कृषि तथा उद्योग-धन्धों/आर्थिक जीवन पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए। जलवायु का प्रभाव कृषि कार्य और उत्पादन भारत को उद्योग/आर्थिक जीवन पर भी पड़ता है, जो निम्नवत् है 2. जिन भागों में कम वर्षा होती है अथवा सूखा पड़ता है वहाँ कृषि फसलें सिंचाई के बिना पैदा नहीं की जा सकती हैं। 3. मूसलाधार वर्षा होते रहने से बाढ़ आ जाती है और बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में कृषि फसलें नष्ट हो ।जाती हैं तथा भारी धन-जन की हानि होती है। 4. समय से पूर्व वर्षा आरम्भ होने तथा समय से पहले वर्षा समाप्त होने से भी आर्थिक क्रियाकलाप प्रभावित होते हैं। 5. ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान बहुत ऊँचे हो जाते हैं और गर्म लू चलने लगती है जिससे | खेतों में काम करना कठिन हो जाता है अर्थात् आर्थिक क्षमता घट जाती है। 6. भारत में किसी वर्ष जलवृष्टि बहुत कम हो पाती है, जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं और देश में अकाल पड़ जाता है। इसके विपरीत कभी-कभी वर्षा इतनी अधिक हो जाती है, जिसके कारण नदियों में बाढ़ आ जाती है। इससे भी फसलें नष्ट हो जाती हैं। इस कारण भारत की कृषि को मानसून का जुआ कहा जाता है। 7. भारत की जलवायु के कृषकों को भाग्यवादी एवं निराशावादी बना दिया है। 8. चक्रवाती वर्षा के कारण पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में गेहूं व गन्ने की फसलों को लाभ | मिलता है। 9. भारत में ग्रीष्मऋतु में हरे चारे की कमी हो जाती है जिससे पशुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। (ख) उद्योग धन्ये/आर्थिक जीवन दक्षिणी भारत की जलवायु उत्तरी भारत की अपेक्षा अधिक सम है, समुद्री तट निकट होने के कारण यहाँ उष्णार्द्र जलवायु पाई जाती है। यही कारण है कि भारत में अधिकांश सूती वस्त्र की मिलें दक्षिणी भारत के महाराष्ट्र, गुजरात राज्यों के तटीय भागों में स्थित हैं। इसके विपरीत उत्तरी पर्वतीय भाग अधिक ठण्डा जलवायु प्रदेश है, इसीलिए वहाँ ऊनी वस्त्रों को कुटीर व लघु उद्योगों के रूप में विकसित किया गया है। इसी प्रकार मैदानी भाग में गन्ना उत्पादन की अनुकूल दशाओं के कारण चीनी उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ है। अत: भारत की जलवायु का कृषि प्रतिरूप एवं औद्योगिक विकास पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा है जिससे देश की अर्थव्यवस्था का जलवायु से व्यापक सम्बन्ध सिद्ध होता है। We hope the UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 4 Climate (जलवायु) help you. तमिलनाडु के तटीय प्रदेश में जाड़े के मौसम में अधिक वर्षा क्यों होती है?तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है। सर्दियों के समय देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें समुद्र की ओर बहती हैं। इसलिए देश के ज़्यादातर इलाकों में शुष्क मौसम होता है। तमिलनाडु का तट अधिकतम वर्षा इन्ही पवनों से प्राप्त करता है क्योंकि वहाँ ये पवनें समुन्द्र से स्थल की तरफ बहती है।
जाड़े में तमिलनाडु के तटीय भागों में वर्षा का कारण क्या है?तमिलनाडु में मानसूनी वर्षा उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण होती है।
तमिलनाडु के तट पर सर्दियों में वर्षा क्यों होती है?Explanation: सर्द ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर | बहती हैं इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। यद्यपि इन पवनों के कारण तमिलनाडु के तट पर वर्षा होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं और अपने साथ आर्द्रता लाती हैं।
तमिलनाडु में झाड़ू में वर्षा क्यों होती है?उत्तर. शीत ऋतु में उत्तर पश्चिमी भारतीय क्षेत्र में कम ताप के कारण अधिक वायुदाब के केन्द्र बनने से हवाएं दक्षिण पूर्व की ओर चलने लगती हैं जब ये बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरती है तो नमी धारण कर तमिलनाडू में शीत काल में वर्षा करती है।
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