क आदिकाल के नामकरण की समस्या पर विचार करें तथा स्पष्ट करें कि आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है? - ka aadikaal ke naamakaran kee samasya par vichaar karen tatha spasht karen ki aadikaal ko veeragaatha kaal kyon kaha jaata hai?

हिंदी साहित्य का आदिकाल : नामकरण और औचित्य


हिंदी साहित्य को एक व्यवस्थित स्वरूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से विद्वानों ने साहित्य के इतिहास को कई काल-खण्डों में विभाजित किया है। साहित्य के काल विभाजन के बाद अध्ययन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए तथा तत्कालीन प्रवृत्तियों व समय के अनुरूप प्रत्येक काल-खण्ड को एक अलग नाम दिया गया, यथा- आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल व आधुनिक काल आदि। हिंदी साहित्य के काल विभाजन एवं नामकरण के पीछे विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने-अपने विचार रखते हुए उसके औचित्य को सिद्ध करने के प्रयास किए गए।

आइए, इस आलेख में हम हिंदी साहित्य के “आदिकाल के नामकरण और उसके औचित्य” के संबंध में हिंदी के कुछ प्रमुख आलोचकों और विद्वानों के विचारों और सिद्धांतों को जानने व समझने की कोशिश करते हैं -


आचार्य शुक्ल का नामकरण:-

  • 1929 ई. में प्रकाशित तथा शुक्ल जी द्वारा लिखित प्रथम तर्क संगत एवं अधिकांश विद्वानों द्वारा प्रमाणित “हिन्दी साहित्य का इतिहास” में आदिकाल (1050- 1375 ई.) को “वीरगाथा काल” नाम दिया गया ।
  • इस नामकरण का मुख्य आधार उस समय “वीरगाथाओं की प्रचुरता और उनकी लोकप्रियता” को माना गया।

साहित्य सामाग्री:-

शुक्ल जी ने “वीरगाथा काल” नामकरण के लिए निम्नलिखित 12 रचनाओं को आधारभूत साहित्य सामग्री के रूप में स्वीकार किया:-


क्र. सं.रचना का नामरचनाकाररचनाकालटिप्पणी
1. विजयपाल रासो नल्ल सिंह 1350 वि. मिश्र बंधुओं ने समय 1355 वि. माना है
2. हमीर रासो शारंगधर 1350 वि. यह ग्रंथ आधा ही प्राप्त है
3. कीर्ति लता विद्यापति 1460 वि. समय सीमा से बाहर
4. कीर्ति पताका विद्यापति 1460 वि. समय सीमा से बाहर
5. खुमान रासो दलपति विजय 1290 वि. मोतीलाल मेनारिया ने इसका समय 1545 वि. माना है
6. बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह 1292 वि. प्रामाणिकता संदिग्ध है
7. प्रथ्वीराज रासो चंद्रबरदाई 1225-40 वि. स्वयं शुक्ल जी ने इस ग्रंथ के अर्ध-प्रामाणिक माना है
8. जयचंद्र प्रकाश भट्ट केदार 1225 वि. रचना अप्राप्त है, उल्लेख मात्र मिलता है
9. जयमयंक जस चन्द्रिका मधुकर कवि 1240 वि. रचना अप्राप्त है, उल्लेख मात्र मिलता है
10. परमाल रासो जगनिक 1230 वि. मूलरूप अज्ञात
11. खुसरो की पहेलियां अमीर खुसरो 1350 वि. वीरगाथाओं की परिपाटी से विचलन
12. विद्यापति पदावली विद्यापति 1460 वि. समय सीमा से बाहर

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में:- “इसी संक्षिप्त सामाग्री को लेकर थोड़ा-बहुत विचार हो सकता है, इसी पर हमें संतोष करना पड़ता है।

शुक्ल जी के नामकरण की आलोचना:-

शुक्ल जी द्वारा आदिकाल का नामकरण वीरगाथा काल के रूप में किए जाने के संबंध में विभिन्न विद्वानों में मतभेद रहे हैं। इस बारे में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं:-

  • शुक्ल जी ने अनेक रचनाओं को अपभ्रंश की कहकर हिन्दी के खाने से अलग कर दिया है। जबकि स्वयं उनके द्वारा चुनी गई 12 राचनाओं में प्रथम 4 अपभ्रंश की ही शामिल हैं।
  • पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी के अनुसार “अपभ्रंश मिश्रित हिंदी ही पुरानी हिंदी है।
  • डॉ. त्रिगुणायत के अनुसार “अपभ्रंश मिश्रित तमाम रचनाएँ, जिनके संबंध में कुछ विद्वानों को अपभ्रंश की होने का भ्रम हो गया है, पुरानी हिंदी की रचनाएँ ही मानी जाएंगी।"
  • राहुल सांकृत्यायन हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि के अनुसार 850 वि. के आस-पास उपलब्ध अपभ्रंश की मानी जानी वाली रचनाएँ, हिन्दी के आदिकाल की सामाग्री के रूप में हैं। इसी आधार पर सिद्ध सरहपा को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाएगा।

क आदिकाल के नामकरण की समस्या पर विचार करें तथा स्पष्ट करें कि आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है? - ka aadikaal ke naamakaran kee samasya par vichaar karen tatha spasht karen ki aadikaal ko veeragaatha kaal kyon kaha jaata hai?


विभिन्न विद्वानों द्वारा दिए गए नाम और उनका औचित्य:-

हिंदी साहित्य के प्रथम पड़ाव अर्थात आदिकाल को विभिन्न विद्वानों द्वारा कई अलग-अलग नामों से अभिहित किया गया है। आदिकाल के के नामकरण के संबंध में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं -

  • आचार्य शुक्ल:-वीरगाथाओं की प्रचुरता और लोकप्रियता के आधार पर “वीरगाथा काल” नाम दिया।
  • डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी:- द्विवेदी जी के अनुसार वीरगाथा नाम के लिए कई आधार ग्रंथ महत्वपूर्ण और लोकप्रिय नहीं हैं तथा कइयों की प्रामाणिकता, समयसीमा आदि विवादित है। अत: “आदिकाल” नाम ही उचित है, क्योंकि साहित्य की दृष्टि से यह काल अपभ्रंश काल का विकास ही है।
  • रामकुमार वर्मा:- रामकुमार वर्मा ने इसे “चारण काल” कहा। उनके अनुसार इस काल के अधिकांश कवि चारण अर्थात राज-दरबारों के आश्रय में रहने वाले व सम्राटों का यशगान करने वाले ही थे।
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी:- आरम्भिक अवस्था या कहें कि हिंदी साहित्य के बीज बोने की समयावधि के आधार पर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने इस काल को “बीज-वपन काल” कहा। वैसे यह नाम भी आदिकाल का ध्योतक है।
  • राहुल सांकृत्यायन:- सिद्ध सामंत युग, उनके अनुसार 8वीं से 13 वीं शताब्दी के काव्य में दो प्रवृत्तियां प्रमुख हैं- 1.सिद्धों की वाणी- इसके अंतर्गत बौद्ध तथा नाथ-सिद्धों की तथा जैन मुनियों की उपदेशमूलक तथा हठयोग से संबंधित रचनाएँ हैं। 2.सामंतों की स्तृति- इसके अंतर्गत चारण कवियों के चरित काव्य (रासो ग्रंथ) आते हैं।
  • चंद्रधर शर्मा गुलेरी:- गुलारी जी ने अपभ्रंश और पुरानी हिंदी को एक ही माना है तथा भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश का समय होने का कारण उन्होने इसे “अपभ्रंश काल” का संज्ञा दी है।

निष्कर्ष:-

हिंदी साहित्य के प्रथम सोपान का नामकरण या कहें कि आदिकाल के नामकरण की समस्या पर अनेक विद्वानों ने अलग-अलग तर्कों व साक्ष्यों के आधार पर अपने-अपने मतानुसार किया है। जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अधिकांश विद्वान कोई सर्वमान्य नाम नहीं दे सके। वविश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को ‘वीर काल’ कहा जो शुक्ल जी द्वारा प्रदत्त नाम का ही संक्षिप्त और सारगर्भित रूप है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित “हिन्दी साहित्य का बृहद इतिहास” में अनेक ऊहापोह के बाद ‘वीरगाथा काल’ नाम को ही उचित माना गया। अत: जब तक कोई निर्विवादित रूप से स्वीकार्य और प्रचलित नाम नहीं आता तब तक ‘वीरगाथा काल’ को ही मानना समीचीन होगा।

आदिकाल को आदिकाल नामकरण किस आचार्य ने दिया है और क्यों?

हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है।

आदि काल को वीर गाथा काल क्यों कहा जाता है?

आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है? हिंद की भाषाओं के प्रारंभिक काल को चारण काल सर्वप्रथम अंग्रेज भाषा विज्ञानी सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने कहा। उन्होंने ही भारत की सम्पूर्ण भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन और सर्वेक्षण किया था। चूंकि चारण जाति के योद्धा वीर रस के कवि भी थे, इसे वीरगाथा काल भी कहा गया।

वीरगाथाकाल नामकरण क्यों अस्वीकार है?

वीरगाथाकाल : आ. रामचंद्र शुक्ल आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने इस काव्य को वीरगाथाकाल इस नाम से पुकारा है । हिन्दी साहित्य के इतिहास में इस नामकरण की चर्चा अधिक रही । शुक्ल जी का यह नामकरण तर्कसंगत नहीं है।

आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है PDF?

यह सियमान्य है कक इस काल में िीर रस प्रिान रचनाएं अधिक हुई है। इसललए इस काल को वीरगाथा काल कहा गया।