हिंदी साहित्य को एक व्यवस्थित स्वरूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से विद्वानों ने साहित्य के इतिहास को कई काल-खण्डों में विभाजित किया है। साहित्य के
काल विभाजन के बाद अध्ययन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए तथा तत्कालीन प्रवृत्तियों व समय के अनुरूप प्रत्येक काल-खण्ड को एक अलग नाम दिया गया, यथा- आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल व आधुनिक काल आदि। हिंदी साहित्य के काल विभाजन एवं नामकरण के पीछे विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने-अपने विचार रखते हुए उसके औचित्य को सिद्ध करने के प्रयास किए गए। आइए, इस आलेख में हम हिंदी साहित्य के
“आदिकाल के नामकरण और उसके औचित्य” के संबंध में हिंदी के कुछ प्रमुख आलोचकों और विद्वानों के विचारों और सिद्धांतों को जानने व समझने की कोशिश करते हैं - आचार्य शुक्ल का नामकरण:-
साहित्य सामाग्री:-शुक्ल जी ने “वीरगाथा काल” नामकरण के लिए निम्नलिखित 12 रचनाओं को आधारभूत साहित्य सामग्री के रूप में स्वीकार किया:-
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में:- “इसी संक्षिप्त सामाग्री को लेकर थोड़ा-बहुत विचार हो सकता है, इसी पर हमें संतोष करना पड़ता है।” शुक्ल जी के नामकरण की आलोचना:-शुक्ल जी द्वारा आदिकाल का नामकरण वीरगाथा काल के रूप में किए जाने के संबंध में विभिन्न विद्वानों में मतभेद रहे हैं। इस बारे में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं:-
विभिन्न विद्वानों द्वारा दिए गए नाम और उनका औचित्य:-हिंदी साहित्य के प्रथम पड़ाव अर्थात आदिकाल को विभिन्न विद्वानों द्वारा कई अलग-अलग नामों से अभिहित किया गया है। आदिकाल के के नामकरण के संबंध में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं -
निष्कर्ष:-हिंदी साहित्य के प्रथम सोपान का नामकरण या कहें कि आदिकाल के नामकरण की समस्या पर अनेक विद्वानों ने अलग-अलग तर्कों व साक्ष्यों के आधार पर अपने-अपने मतानुसार किया है। जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अधिकांश विद्वान कोई सर्वमान्य नाम नहीं दे सके। वविश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को ‘वीर काल’ कहा जो शुक्ल जी द्वारा प्रदत्त नाम का ही संक्षिप्त और सारगर्भित रूप है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित “हिन्दी साहित्य का बृहद इतिहास” में अनेक ऊहापोह के बाद ‘वीरगाथा काल’ नाम को ही उचित माना गया। अत: जब तक कोई निर्विवादित रूप से स्वीकार्य और प्रचलित नाम नहीं आता तब तक ‘वीरगाथा काल’ को ही मानना समीचीन होगा। आदिकाल को आदिकाल नामकरण किस आचार्य ने दिया है और क्यों?हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है।
आदि काल को वीर गाथा काल क्यों कहा जाता है?आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है? हिंद की भाषाओं के प्रारंभिक काल को चारण काल सर्वप्रथम अंग्रेज भाषा विज्ञानी सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने कहा। उन्होंने ही भारत की सम्पूर्ण भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन और सर्वेक्षण किया था। चूंकि चारण जाति के योद्धा वीर रस के कवि भी थे, इसे वीरगाथा काल भी कहा गया।
वीरगाथाकाल नामकरण क्यों अस्वीकार है?वीरगाथाकाल : आ. रामचंद्र शुक्ल आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने इस काव्य को वीरगाथाकाल इस नाम से पुकारा है । हिन्दी साहित्य के इतिहास में इस नामकरण की चर्चा अधिक रही । शुक्ल जी का यह नामकरण तर्कसंगत नहीं है।
आदिकाल को वीरगाथा काल क्यों कहा जाता है PDF?यह सियमान्य है कक इस काल में िीर रस प्रिान रचनाएं अधिक हुई है। इसललए इस काल को वीरगाथा काल कहा गया।
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