कुंई की चिनाई करने वाले को क्या कहते है? - kunee kee chinaee karane vaale ko kya kahate hai?

हिंदी कक्षा 11 में कई महत्वपूर्ण पाठ हैं, जिनमें से एक राजस्थान की रजत बूंदें भी है। यहाँ हम हिंदी कक्षा 11 “वितान  भाग-1” के पाठ-2 कहानी के सार के बारे में कठिन-शब्दों के अर्थ, लेखक के बारे में और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर, इन सभी के बारे में जानेंगे। तो चलिए जानते हैं Rajasthan Ki Rajat Boonde की कहानी के बारे में। 

This Blog Includes:
  1. लेखक परिचय
  2. पाठ सारांश
  3. कठिन शब्द उनके अर्थों के साथ
  4. प्रश्नोत्तर
  5. MCQs
  6. FAQs

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लेखक परिचय

Rajasthan Ki Rajat BoondeRajasthan Ki Rajat BoondeSource – Navodaya Times

नाम और परिचयअनुपम मिश्र लेखक, संपादक, छायाकार और पर्यावरणवादी थे। पर्यावरण के लिए उन्होंने काफी काम क किया है। गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में उन्होंने पर्यावरण विभाग खोला। वे इस प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘गाँधी मार्ग ‘ सं स्थापक और संपादक भी थे।जन्मसन् 1948, वर्धा महाराष्ट्रप्रमुख रचनाएँआज भी खरे है, आज भी खरे है तालाब, Rajasthan Ki Rajat Boonde आदि।पुरस्कारइंद्रा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार , चंद्र शेखर , जमनाना लाल बजाज।मृत्युसन् 2016,नई दिल्ली

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पाठ सारांश

Rajasthan Ki Rajat Boonde के लिए पाठ सारांश नीचे दिया गया है-

  • यह पाठ राजस्थान की रजत बूंदे अनुपम मिश्र द्वारा लिखा गया है इसमें राजस्थान के मरुस्थल में पाई जाने वाली कुईं के बारे में बताया गया है जिसका उपयोग पानी संग्रक्षण के लिए किया जाता है ।इसमें घेलवांजी कुईं का निर्माण कर रहे है जो तीस -पैंतीस गहरी खोदने पर कुई  का घेरा संकरा हो जाता है।कुईं की खुदाई और चिराई करने वाले को चेलवांजी यानी चेजरों के नाम से जाना जाता है। कुईं केअन्दर काम कर रहे चेलवांजी पसीने से तरबतर हो रहे है ।तक़रीबन तीस -पैंतीस गहरी खुदाई हो चुकी है। तापमान भीतर  बढते  ही जा रहा है। तामपान को घटाने के लिए ऊपर से रेत डाली जाती है, जिस वजह से ठंडी हवा नीचे की ओर और गर्म हवा ऊपर से चली जाती है। कुई का व्यास गहरा है जिसकी खुदाई का काम बसौली से किया जा रहा है। खुदाई से जो मलबा निकलता है उसे बाल्टी में इकठ्ठा कर के ऊपर भेजा जाता है।  
  • कुएँ की तरह कुईं का निर्माण किया जाता है। कुई कोई साधारण ढाँचा नहीं है।कुएँ और कुईं में बस व्यास का अंतर होता ही व्यास का अंतर है। कुएँ का निर्माण भूजल को पाने के लिए किया जाता है जबकि कुईं का निर्माण वर्षा का पानी इकट्ठा करने के लिए करते है। राजस्थान के अलग – अलग की इलोकों में एक विशेष कारण से कुईंयों की गहराई कुछ कम ज़्यादा होती है। मरुस्थल में रेत का विस्तार अथाह है। यहाँ पर कही कही रेत की सतह के पचास-साथ हाथ नीचे खड़िया पत्थर पट्टी मिलती है। कुएँ का पानी कहर होने के कारण पिया नही जा सकता। इसी कारण कुईंयाँ बनाने की आवश्यकता होती है। यह पानी अमृत के समान मीठा होता है। पहला रूप है पालरपानी  – इसका मतलब है बरसात के रूप में मिलने वाला पानी, बारिश का वो जल जो बहकर नदी , तालाबों आदि में एकत्रित होता है। दूसरा रूप है  पातालपानी – बारिश का पानी ज़मीन मे धसकर भूजल बन जाता है ,वह हमें कुओं,ट्यूबवेल द्वारा प्राप्त होता है । और तीसरा रूप है रेजाणपाणी – वह बारिश का पानी जो रेत के नीचे जाता तो है, लेकिन खड़िया मिट्टी के कारन भूजल नही मिल पाटा व नमी के रूप में समा जाता है।
  • वर्षा की मात्र नापने के लिए इंच या सेंटीमीटर का उपयोग नही बल्कि रेजा शब्द का प्रयोग किया जाता है।रेजाणपाणी खड़िया पट्टी के कारण पतालिपानी से अलग बनता है। इस पट्टी के न होने कारण से रेजानिपाणी और पतालिपानी खारा हो जाता है। रेजाणपाणी को समेटने के लिए कुईं का निर्माण होता है।कुईं निर्माण के बाद उत्सव महोत्सव मनाया जाता है, चेजरों को राजस्थान में विशेष दर्जा प्राप्त था। चेजरों की विदाई के समाये उन्हें अलग – अलग तरह की बेट दी जाती थी । कुईं के बाद भी उनका रिश्ता बना रहता था , तीज , त्योहारों और विवाह जैसे मांगलिक कार्यो में भी बेट दी जाती थी। फसल आने पर खलिहान का एक हिस्सा उनके लिए रखा जाता था।  लेकिन आज के समय में उन्हें वो सम्मान नही दिया जाता है उनसे बस एक मजदूर की तरह काम करते है।अब कुई में पानी नाम मात्र का ही रहेता है।दिन- रात मिलाकर बस  तीन – चार घड़े की भर पाते है। कुईं के हर घर में है लेकिन ग्राम पंचायत का नियन्त्र बना है।नए कुईं के निर्माण की अनुमति कम ही मिलती है क्योंकि श्री कुईं निर्माण से भूमि की नमी का बंटवारा हो जाता है।  चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर में खड़िया पत्थर की पट्टी पाई जाती है इसलिए यहां हर घर में कुईं पाया जाता है।  
     

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कठिन शब्द उनके अर्थों के साथ

Rajasthan Ki Rajat Boonde पाठ से संबंधित कठिन शब्द और उनके अर्थ इस प्रकार हैं-

  • चेलवांजी — कुईं की खुदाई और चिनाई करने वाले लोग।
  •  गोचर — चारागाह।
  •  तरबतर – अधिक भीगा हुआ 
  •  विचित्र – अजीब
  •  उखरूं-घुटने मोड़ कर बैठना 
  •  मरुभूमि – मरुस्थल
  •  डगालों  – मोटी टहनियों 
  •  विभाजन – बटँवारा 
  •  संकरा – थोड़ी जगह
  • आंच प्रथा – राजस्थानी प्रथा 
  • पेचीदा – उलझा हुआ
  •  खिम्प — एक प्रकार की घास जिसके रेसों से रस्सी बनती है।  
  •  आवक – जावक — आने जाने की क्रिया
       

प्रश्नोत्तर

Rajasthan Ki Rajat Boonde से संबंधित प्रश्नोत्तर इस प्रकार हैं:

प्रश्न 1. राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुंओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर-वर्षा जल का संग्रहण के लिए राजस्थान में कुंई का निर्माण किया जाता है। राजस्थान में रेत अति गहरा होने के कारण वर्षा का पानी मरुस्थल  में समा जाता है धीरे – धीरे इसमें कुंई में समा जाता है। कुईं यानी एक छोटा सा कुआँ। कुआँ पुल्लिंग है और कुईं स्त्रिलंग है।  कुईं की गहराई सामान्य कुँए जैसी ही होती है मगर इसके व्यास में अंतर होता है। कुओ का व्यास तकरीबन पंद्रह या बीस हाथ का होता है जबकि कुईं का व्यास लगभग पाँच या छह का होता है। 

 प्रश्न 2.“दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें?
उत्तर- दिनोंदिन पानी की समस्या भयानक रूप ले रही है। जैसा हम सब जानते है की जल ही जीवन है लेकिन लगातर बढ़ रही जनसख्या और घखखट रहे जल स्तोत्र है प्रकृति के अत्यधिक प्रयोग के कारण पानी की समस्या भयंकर होती जा रही है। हर  जगहों पर लोग पानी की कमी से जूझ रहें हैं। ऐसे माहौल में राजस्थान की रजत बूंदें पाठ से हमें जल प्राप्ति के अन्य स्तोत्र और पानी के उचित उपयोग पर विचार करने में मदद करता है।

पानी की समस्या से निपटने के लिए कई सरकारी और गैर सरकारी संगठन अभियान चला रहें हैं। लोगों कोअलग अलग माध्यम और कार्यक्रमों से हस्तियों द्वारा पानी के विषय मेंअवगत कराया जा रहा है। गाँवों में तालाबों का पुननिर्माण किया जा रहा है। छोटे कुएँ, बावडियों और जलाशयों का निर्माण कर पानी के भूमिगत जल-स्तर को बढ़ाया जा रहा है।

प्रश्न 3.चेजारों के साथ गाँव-समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है पाठ के आधार पर बताइए?
उत्तर – चेलवांजी यानी चेजरों, कुईं की खुदाई और एक विशेष तरह की चिनाई करने वाले दक्षतम लोग। चेजरों को राजस्थान में विशेष दर्जा प्राप्त था। चेजरों की विदाई के समाये उन्हें अलग – अलग तरह की बेट दी जाती थी । कुईं के बाद भी उनका रिश्ता बना रहता था , तीज , त्योहारों और विवाह जैसे मांगलिक कार्यो में भी बेट दी जाती थी। फसल आने पर खलिहान का एक हिस्सा उनके लिए रखा जाता था।  लेकिन आज के समय में उन्हें वो सम्मान नही दिया जाता है उनसे बस एक मजदूर की तरह काम करते है।

प्र्श्न4 निजी होते हुए भी सार्वजनिक छेत्रो में कुईयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है ।लेखक ऐसा क्यों कहा है।
उत्तर – राजस्थान के लोग जानते है कि भूमि के अन्दर मौजूद नमी को ही की कुईं के द्वारा पानी के रूप में प्राप्त किया जाता है।जितनी कुईं का निर्माण होगा उतना पानी का बटवारा होगा इससे कुईं की पानी एकत्र करने में असर पड़ेगा। इसी कारण ग्राम समाज नीजी होते हुए भी सार्वजनिक छेत्रो में कुईयों पर अंकुश लगा रहा है ।

प्रश्न5 कुईं निर्माण में निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करे,पालरपानी,पातालपानी,   ,रेजाणपाणी ।
उत्तर – राजस्थान में पानी के तीन रूप है -पालरपानी  – इसका मतलब है बरसात के रूप में मिलने वाला पानी, बारिश का वो जल जो बहकर नदी , तालाबों आदि में एकत्रित होता है।  
पातालपानी – बारिश का पानी ज़मीन मे धसकर भूजल बन जाता है ,वह हमें कुओं,ट्यूबवेल द्वारा प्राप्त होता है ।
रेजाणपाणी – वह बारिश का पानी जो रेत के नीचे जाता तो है, लेकिन खड़िया मिट्टी के कारण भूजल नही मिल पाटा व नमी के रूप में समा जाता है।

प्रश्न6 कुंई की खुदाई किससे की जाती है?
उत्तर – कुंई का व्यास बहुत कम होता है। इसलिए इसकी खुदाई फावड़े या कुल्हाड़ी से नहीं की जा सकती। बसौली से इसकी खुदाई की जाती है। यह छोटी डंडी का छोटे फावड़े जैसा औजार होता है जिस पर लोहे का नुकीला फल तथा लकड़ी का हत्था लगा होता है।

प्रश्न7 कुंई की खुदाई के समय ऊपर जमीन पर खड़े लोग क्या करते हैं?
उत्तर – कुंई की खुदाई के समय गहराई बढ़ने के साथ-साथ गर्मी बढ़ती जाती है। उस गर्मी को कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा नीचे की तरफ जाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गर्म हवा ऊपर लौटती है। इससे चेलवांजी को गर्मी से राहत मिलती है।

प्रश्न8 खड़िया पत्थर की पट्टी कहाँ चलती है?
उत्तर – मरुभूमि में रेत का विस्तार व गहराई अथाह है। यहाँ अधिक वर्षा भी भूमि में जल्दी जमा हो जाती है। कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी लंबी-चौड़ी होती है, परंतु रेत में दबी होने के कारण दिखाई नहीं देती।

प्रश्न9 खड़िया पत्थर की पट्टी का क्या फायदा है?
खड़िया पत्थर की पट्टी वर्षा के जल को गहरे खारे भूजल तक जाकर मिलने से रोकती है। ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र में बरसा पानी भूमि की रेतीली सतह और नीचे चल रही पथरीली पट्टी के बीच अटक कर नमी की तरह फैल जाता है।

प्रश्न10 कुंई के लिए कितने रस्से की जरूरत पड़ती है?
लेखक बताता है कि लगभग पाँच हाथ के व्यास की कुंई में रस्से की एक ही कुंडल का सिर्फ एक घेरा बनाने के लिए लगभग पंद्रह हाथ लंबा रस्सा चाहिए। एक हाथ की गहराई में रस्से के आठ-दस लपेटे लग जाते हैं। इसमें रस्से की कुल लंबाई डेढ़ सौ हाथ हो जाती है। यदि तीस हाथ गहरी कुंई की मिट्टी को थामने के लिए रस्सा बाँधना पड़े तो रस्से की लंबाई चार हजार हाथ के आसपास बैठती है।

प्रश्न11 रेजाणीपानी की क्या विशेषता है? ‘रेजा’ शब्द का प्रयोग किसलिए किया जाता है?
रेजाणीपानी पालरपानी और पातालपानी के बीच पानी का तीसरा रूप है। यह धरातल से नीचे उतरता है, परंतु पाताल में नहीं मिलता। इस पानी को कुंई बनाकर ही प्राप्त किया जाता है। ‘रेजा’ शब्द का प्रयोग वर्षा की मात्रा नापने के लिए किया जाता है। यह माप धरातल में समाई वर्षा को नापता है। उदाहरण के लिए यदि मरुभूमि में वर्षा का पानी छह अंगुल रेत के भीतर समा जाए तो उस दिन की वर्षा को पाँच अंगुल रेजा कहेंगे।

प्रश्न12 कुंई से पानी कैसे निकाला जाता है?
कुंई से पानी चड़स के द्वारा निकाला जाता है। यह मोटे कपड़े या चमड़े की बनी होती है। इसके मुँह पर लोहे का वजनी कड़ा बँधा होता है। आजकल ट्रकों की फटी ट्यूब से भी छोटी चड़सी बनने लगी है। चडस पानी से टकराता है तथा ऊपर का वजनी भाग नीचे के भाग पर गिरता है। इस तरह कम मात्रा के पानी में भी वह ठीक तरह से डूब जाती है। भर जाने के बाद ऊपर उठते ही चड़स अपना पूरा आकार ले लेता है।

प्रश्न13 गोधूलि के समय कुंइयों पर कैसा वातावरण होता है?
गोधूलि बेला में प्राय: पूरा गाँव कुंइयों पर आता है। उस समय-मेला सा लगता है। गाँव से सटे मैदान में तीस-चालीस कुंइयों पर एक साथ घूमती घिरनियों का स्वर गोचर से लौट रहे पशुओं की घंटियों और रंभाने की आवाज में समा जाता है। दो-तीन घड़े भर जाने पर डोल और रस्सियाँ समेट ली जाती हैं।

प्रश्न14 राजस्थान के रेत की विशेषता बताइए?
राजस्थान में रेत के कण बारीक होते हैं। वे एक-दूसरे से चिपकते नहीं है। आमतौर पर मिट्टी के कण एक-दूसरे से चिपक जाते हैं तथा मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से नमी गर्मी में वाष्प बन जाती है। रेत के कण बिखरे रहते हैं। अत: उनमें दरारें नहीं पड़तीं और अंदर की नमी अंदर ही रहती है। यह नमी ही कुंइयों के लिए पानी का स्रोत बनती है।

प्रश्न15 सजलता बनाए रखने के लिए आप लोगों को जागरूक करने के लिए क्या-क्या करेंगे?
सजलता बनाए रखने के लिए हम लोगों को पानी बर्बाद न करने, अत्यधिक वृक्ष लगाने, वृक्षों को कटने से बचाने तथा वर्षा का जल बचाने के लिए लोगों को जागरूक करेंगे।

MCQs

राजस्थान की रजत की बूंदे के पाठ लेखक है ?कुमार गंधर्व 
बेबी हालदार
सुमित्रानंदन पंत 
अनुपम मिश्र

उत्तर -(d) अनुपम मिश्र 

कुईं की कितनी गहरी खुदाई हो चुकी है ?दस – बीस हाथ
पंद्रह -बीस हाथ
तीस – पैंतीस हाथ 
बीस – पचिस हाथ

उत्तर -(c)तीस – पैंतीस हाथ 

कुईं शब्द से तात्पर्य है खुला स्थान
गहरा स्थान
छोटा सा कुआँ 
गहरा सा कुआँ 

उत्तर -(c)छोटा सा कुआँ

चेलवांजी का शाब्दिक अर्थ है ?चेजरों
निहारो
पुचकारो 
फटकारो 

उत्तर -(a)चेजरों

बड़े कुओं के पानी का स्वाद कैसा होता है ?मीठा 
खारा 
कड़वा 
नमकीन 

उत्तर -(b) खारा 

कुईं के पानी को साफ़ रखने के लिए उसे की ढक्कन से ढका जाता है ?पत्थर
लकड़ी 
लोहा
ताबा 

उत्तर -(b)लकड़ी 

कुईं की खुदाई किससे की जाती है ?बसौली से 
दराती से 
फफडे से 
हत्थी से 

उत्तर -(a)बसौली से 

वर्षा की मात्र नापने के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है ?रेजा 
पत्त्ती 
इंच 
सेंटीमीटर 

उत्तर -(a) रेजा 

कुंई की गरमी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग मुट्ठी भर-भरकर नीचे क्या फेंकते हैं?

 A. रेत
 B. पानी
 C. टोप
 D. रस्सी

उत्तर: A

बड़े कुओं में पानी कितनी गहराई पर निकलता है?

A. डेढ़ सौ-दो सौ हाथ
 B. दो सौ-तीन सौ हाथ
 C. सौ-दो सौ हाथ
 D. तीन सौ-चार सौ हाथ

उत्तर: A

बड़े कुओं के पानी का स्वाद कैसा होता है?

 A. मीठा
 B. नमकीन
 C. कडुवा
 D. खारा

उत्तर: D

जहाँ लगाव है, वहाँ ……… भी होता है?

 A. बिखराव
 B. अलगाव
 C. अवसान
 D. कुछ भी नहीं

उत्तर: B

मरुभूमि के विकसित किए गए समाज ने वहाँ उपलब्ध पानी को कितने रूपों में बांटा है?

A. चार
B. पाँच
C. सात
D. तीन

उत्तर: D

उपलब्ध पानी के तीन रूप हैं?

A. पालर पानी
B. पाताल पानी
C. रेजाणी पानी
D. उपरोक्त सभी

उत्तर: D

वर्षा की मात्रा मापने के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है?

A. पट्टी
B. इंच
C. सेंटीमीटर
D. रेजा

उत्तर: D

पाँच हाथ के व्यास की कुंई में रस्से की एक ही कुंडली का केवल एक घेरा बनाने के लिए लगभग कितना लंबा रस्सा चाहिए?

A. पंद्रह हाथ
B. बीस हाथ
C. पाँच हाथ
D. दस हाथ

उत्तर: A

FAQs

चेलवांजी सिर पर धातु का टॉप पहनते हैं क्योंकि?

चेलवांजी सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का बर्तन टोप की तरह पहनते हैं, ताकि चोट न लगे।

रेजाणीपानी क्या है?

रेजाणीपानी- धरातल से नीचे उतरा, लेकिन पाताल में न मिलने वाला पानी रेजाणीपानी कहलाता है। वर्षा-जल को मापने के लिए ‘रेजा’ शब्द का उपयोग होता है और रेजा का माप धरातल पर हुई वर्षा को नहीं, धरातल में समाई वर्षा को मापता है।

राजस्थान की रजत बूंदें पाठ किसने लिखा है?

राजस्थान की रजत बूंदे पाठ लिखा है भारत के जाने-माने कथाकार अनुपम मिश्र जी ने।

राजस्थान की रजत बूंदें कौन सी कक्षा का पाठ है?

राजस्थान की रजत बूंदे कक्षा 11 का पाठ है।

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कुई की चिनाई करने वाले को क्या कहते हैं?

मरुभूमि में कुंई के निर्माण का कार्य चेलवांजी यानी चेजार करते हैं। वे खुदाई व विशेष तरह की चिनाई करने में दक्ष होते हैं। कुंई बनाना एक विशिष्ट कला है। चार-पाँच हाथ के व्यास की कुंई को तीस से साठ-पैंसठ हाथ की गहराई तक उतारने वाले चेजारो कुशलता व सावधानी के साथ पूरी ऊँचाई नापते हैं

राजस्थान में कुंई खोदने वाला क्या कहलाता है?

कुंई खोदने का काम करने वाले चेजारे कहलाते हैं। कुंई बन जाने पर चेजारों का भरपूर सम्मान किया जाता था। इस अवसर पर उत्सव मनाने की परंपरा गाँव-समाज में रही है। तब एक विशेष उत्सव का आयोजन होता था।

कुई की खुदाई कैसे की जाती है?

कुंई का व्यास बहुत कम होता है। इसलिए इसकी खुदाई फावड़े या कुल्हाड़ी से नहीं की जा सकती। बसौली से इसकी खुदाई की जाती है। यह छोटी डंडी का छोटे फावड़े जैसा औजार होता है जिस पर लोहे का नुकीला फल तथा लकड़ी का हत्था लगा होता है

का मुंह छोटा क्यों रखा जाता है?

कुंई का मुँह छोटा रखा जाता है। यदि कुंई का व्यास बड़ा होगा तो उसमें कम मात्रा का पानी ज्यादा फैल जाता है और तब उसे ऊपर निकालना कठिन होता है