कौन सा पौधा सबसे अधिक बायोडीजल का उत्पादन करता है? - kaun sa paudha sabase adhik baayodeejal ka utpaadan karata hai?

अगर आपको एक लीटर पेट्रोल या डीज़ल के लिए 50 हज़ार रुपये से भी अधिक की क़ीमत चुकानी पड़ेगी तो आप क्या करेंगे?

आपका जवाब चाहे जो भी हो लेकिन छत्तीसगढ़ बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण तो अपने इस उत्पाद से बेहद ख़ुश है.

छत्तीसगढ़ में एक लीटर डीज़ल की क़ीमत 63 रुपये 48 पैसे है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि राज्य का बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण एक लीटर डीज़ल बनाने के लिए कम से कम 54 हज़ार रुपये ख़र्च करता रहा है.

बायोफ़्यूल से उड़ेंगे हवाई जहाज़

हालांकि छत्तीसगढ़ बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण के परियोजना अधिकारी सुमित सरकार के पास अपनी उपलब्धियों की एक लंबी सूची है.

वे बताते हैं कि कैसे राज्य सरकार ने राज्य भर में 2,774 लाख रतनजोत के पौधे लगाये हैं, कैसे 75 हज़ार लीटर सेमी फिनिश्ड बायोफ़्यूल की बिक्री की गई है, और कैसे अब जल्दी ही छत्तीसगढ़ के बायोफ़्यूल से हवाई जहाज़ उड़ान भरने वाले हैं.

असल में मामला बायोफ़्यूल से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़ सरकार ने 12 साल पहले कम क़ीमत का हवाला दे कर खुद ही बायो डीज़ल बनाने की शुरुआत की थी.

इसके लिए सरकार ने अमरीकन मूल के जटरोफ़ा यानी रतनजोत नामक पौधे को अपना हथियार बनाया और राज्य भर में रतनजोत लगाने की शुरुआत की गई.

कृषि, उद्यानिकी, पंचायत, ग्रामीण विकास, वन विभाग समेत तमाम सरकारी विभागों में रतनजोत लगाने की होड़ लग गई.

रोजगार गारंटी से लेकर तमाम सरकारी परियोजनाओं में रतनजोत को प्राथमिकता देने के निर्देश जारी किए गये.

सड़क के किनारे, तालाब की मेढ़ पर, तमाम कानूनों को ताक पर रख कर जंगलों के भीतर, चारागाहों पर, हर इलाके को रतनजोत से पाट दिया गया.

छत्तीसगढ़ बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण के अनुसार इस योजना में अलग-अलग विभाग कार्यरत थे, इसलिये यह स्पष्ट नहीं है कि छत्तीसगढ़ में रतनजोत लगाने और उसके रख रखाव के नाम पर कुल कितने अरब रुपये खर्च हुए.

सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2005 से 2009 तक कम से कम 1.65 लाख हेक्टेयर इलाके में रतनजोत लगाए गए.

इसे आसानी से समझना हो तो कहा जा सकता है कि सिक्किम और गोवा जैसे दो राज्यों से भी बड़े इलाके में रतनजोत लगा दिया गया.

दिल्ली राज्य का पूरा इलाक़ा 1,484 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और छत्तीसगढ़ ने इससे भी कहीं अधिक 1650 वर्ग किलोमीटर में केवल रतनजोत लगा दिया.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नारा दिया-"डीज़ल नहीं अब खाड़ी से, डीज़ल मिलेगा बाड़ी से."

उन्होंने 2014 तक डीजल के मामले में छत्तीसगढ़ के पूरी तरह से आत्मनिर्भर होने का दावा किया.

राज्य के दस लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलने की बात कही गई. मुख्यमंत्री ने अपनी गाड़ी भी बायोडीजल से चलानी शुरू की. सरकार ने रेलगाड़ियों को बायोडीजल से चलाने का प्रयोग शुरू किया.

रतनजोत के प्रति मुख्यमंत्री रमन सिंह का उत्साह देखते ही बनता था.

इंडियन ऑयल से लेकर रिलायंस पेट्रोलियम और विदेशी कंपनी डी-वन तक को न्यौता दिया गया.

रतनजोत लगाने के लिए 45 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन क्रेडा-एचपीसीएल बायोफ़्यूल लिमिटेड और इंडियन ऑयल क्रेडा बायोफ़्यूल लिमिटेड को लीज पर दी गई.

छत्तीसगढ़ बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण नाम से एजेंसी बनाई गई, जिलों में टास्क फ़ोर्स बनाया गया, निजी कंपनियों को ज़मीन देने के लिये ख़ास तौर पर अधिसूचनाएं जारी की गईं.

छत्तीसगढ़ सरकार ने कंपनियों के साथ मिलकर 'ज्वाइंट वेंचर' बनाया. इन कंपनियों ने भी 5889 हेक्टेयर में रतनजोत लगाए.

रमन सिंह ने दावा किया- अकेले छत्तीसगढ़ 2015 तक बायोफ़्यूल के मामले में भारत को आत्मनिर्भर कर देगा. लेकिन अब यह सब पुराने दिनों की बात है.

रमन सिंह की गाड़ी के लिए भी बायोडीजल नहीं मिला और गाड़ी कुछ ही दिनों बाद डीजल से चलने लगी. रेलवे ने कुछ किलोमीटर गाड़ियां चलाई और फिर यह प्रयोग बंद कर दिया.

आठ महीने में 2,494 लीटर बायोडीज़ल

26 फरवरी 2008 को मुख्यमंत्री ने विधानसभा में जानकारी दी कि 2005 में स्थापित प्लांट से आठ महीने में 2494 लीटर बायोडीज़ल मिला है.

और राज्य भर में पौधारोपण और उसके रख रखाव पर हुये करोड़ों रुपये के खर्च से अलग अकेले छत्तीसगढ़ बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण पर इन आठ महीनों में ही करीब 14 करोड़ रुपये खर्च हो गये.

यानी एक लीटर तेल निकालने के लिये करीब 54585 रुपये का खर्च हुआ.

2010 के आसपास जब सरकार को समझ में आया कि योजना पूरी तरह से फ़्लॉप हो गई तो उसने राज्य में पौधारोपण की सूची से रतनजोत को हटा दिया.

कैग ने कई इलाक़ों में जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में बताया कि बड़ी मुश्किल से महासमुंद इलाके से 50 किलोग्राम बीज एकत्र किया गया है.

जिन नमूने की जांच की गई थी, उनमें ही पांच करोड़ रुपये की गड़बड़ी पाई गई. अनुमान लगाया गया कि रतनोत के नाम पर कई करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है.

24 अगस्त 2016 को विधानसभा की लोकलेखा समिति के अध्यक्ष धनेंद्र साहु के समक्ष विभाग के अफसरों ने स्वीकार किया कि रतनजोत योजना असफल हो गई.

बायोफ़्यूल लिमिटेड बंद करने का फ़ैसला

इसी साल 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केंद्रीय समिति ने सीआरईडीए एचपीसीएल बायोफ़्यूल लिमिटेड और इंडियन ऑयल- छत्तीसगढ़ रिनेवल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी, बायोफ़्यूल लिमिटेड को बंद करने का आदेश जारी किया.

इस फ़ैसले में कहा गया- सीआरईडीए एचपीसीएल बायोफ़्यूल लिमिटेड और इंडियन ऑयल- सीआरईडीए बायोफ़्यूल लिमिटेड के बीच रतनजोत के प्लांटेशन एवं जैव-ईंधन के उत्पादन के लिए क्रमशः 2008 और 2009 में संयुक्त उपक्रम की शुरुआत की गई थी.

इंडियन ऑयल- छत्तीसगढ़ की शाखा सीआरईडीए ने लैंड यूज एग्रीमेंट के तहत रतनजोत के प्लांटेशन के लिए बंजर भूमि उपलब्ध कराई. विभिन्न बाधाओं जैसे बीज की बहुत कम उपज, बंजर भूमि की सीमित उपलब्धता, प्लांटेशन के रखरखाव की ऊंची क़ीमत आदि के चलते यह परियोजना अव्यवहारिक हो गई और रतनजोत प्लांटेशन की गतिविधियों को रोक दिया गया.

छत्तीसगढ़ ने जिस रतनजोत क्रांति के लिये रेलवे को प्रेरित किया था, उसने भी हाथ जोड़ लिए.

रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा के अनुसार- "भारतीय रेल की खाली पड़ी भूमि पर काफी मात्रा में जटरोफ़ा के पौघे लगाए गए किंतु इन पौधों की जीवन दर बहुत कम थी, ये पौधे प्रत्याशा से बहुत कम मात्रा में पनप पाए और इनमें दीमक लगने की संभावना था. रेलवे को इन जटरोफ़ा पौधों से कोई बायो-डीज़ल प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि यह वाणिज्यिक रूप से व्यहार्य नहीं पाया गया."

"बिना तैयारी लगाए गए रतनजोत"

छत्तीसगढ़ बायोफ़्यूल विकास प्राधिकरण के परियोजना अधिकारी सुमित सरकार भी मानते हैं कि राज्य में हर कहीं बिना तैयारी के रतनजोत के पौधे लगाये गये और उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया.

सरकार कहते हैं- "न तो पौधों की वेरायटी देखी गई, न उनमें सिंचाई की गई. पौधे सूखे तो दूसरे विभाग ने वहां पौधा लगा दिया. लेकिन उसके वैज्ञानिक पक्ष की तरफ ध्यान नहीं दिया गया. ऐसा नहीं होता कि किसी पौधे को लगा दिया जाए. और बिना देखभाल के ही उसमें फल आ जाए. ऐसे पौधे लगा दिए गए थे, जिनमें बीज की मात्रा कम थी."

करोड़ों की संख्या में लगाए गए रतनजोत के पौधे अपनी जगह, सुमित सरकार का दावा है कि अब उनका प्राधिकरण करंज जैसे पेड़ से बायोफ़्यूल बनाने की योजना पर काम कर रहा है.

हवाई जहाज़ के लिए बायोफ़्यूल

पूरे राज्य में छह हज़ार से अधिक करंज के पौधों की जीपीएस मैपिंग कर उनमें से 140 उन्नत किस्म की प्रजातियों की पहचान की जा रही है.

राज्य में बायोडीजल से मुख्यमंत्री की कार या भारत सरकार की रेलगाड़ी चलाने के दावे भले असफल हो गये हों और सरकार के सारे दावे पूरी तरह से ग़लत साबित हुए हों लेकिन प्राधिकरण ने अब हवाई जहाज़ उड़ाने के लिये बायोफ़्यूल निर्माण का क़रार किया है, ज़ाहिर है, असफलताओं की लंबी फेहरिश्त के बाद सरकार के इस करार पर भी सवाल हैं.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं- "झूठे दावे और फर्ज़ी योजनायें छत्तीसगढ़ सरकार की पहचान बन चुकी हैं. बायो डीज़ल का सपना दिखा कर सरकार ने पहले ही एक हज़ार करोड़ से अधिक की रक़म फूंक डाली. पहले सरकार को जनता के इन पैसों का हिसाब देना चाहिए. रतनजोत से हवाई जहाज़ उड़ाने का यह सरकारी दावा भी हवा-हवाई ही है."