कवि चंद्र गहना से लौटते समय क्यों तथा कहाँ रुक गया था? - kavi chandr gahana se lautate samay kyon tatha kahaan ruk gaya tha?

काव्यांशों पर आधारित अति लघूत्तरीय एवं लघूत्तरीय प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

1.
देख आया चंद्र गहना!
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बित्ते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,

बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजा कर खड़ा है।
पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,

प्रश्न (क) चंद्र गहना क्या है ? कवि कहाँ बैठकर प्राकृतिक दृश्य देख रहा है ? 

उत्तरः चंद्र गहना एक गाँव का नाम है। कवि उस गाँव को देखकर लौटते हुए एक खेत की मेड़ पर बैठकर ये प्राकृतिक दृश्य देख रहा है।

प्रश्न (ख) कवि को चने का पौधा कैसा लग रहा है ? 
उत्तरः सजे-धजे दूल्हे के रूप में। चने ने अपने सिर पर गुलाबी फूल धारण किए है। लगता है पगड़ी बाँध ली हो।

प्रश्न (ग) अलसी वहाँ किस प्रकार खड़ी बताई गई है ?
उत्तरः अलसी नायिका की भाँति हठपूर्वक खड़ी हो गई है। अलसी हवा से झुककर पुनः सीधी खड़ी हो जाती है, अतः हठीली है।
अथवा
देख आया ..............................................................................है लचीली।

[C.B.S.E. 2012 Term II, HA-1071]

प्रश्न (क) कविता के आधार पर चने की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तरः
हरे चने का सौंदर्य अनुपम है। उसका कद एक बित्ते के बराबर है। उसके सिर पर गुलाबी फूल हैं जो मानो दूल्हे की पगड़ी जैसे है।

प्रश्न (ख) मेड़, मुरैठा, बित्ते में से किन्हीं दो का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 
उत्तरः मेड़-खेतों को बाँटने वाली छोटी सी दीवार; मुरैठा-पगड़ी- बित्ते-बालिश्त।

प्रश्न (ग) इन पंक्तियों के कवि का नाम बताइए।
उत्तरः इन पंक्तियों के कवि केदारनाथ अग्रवाल हैं।

2.
और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है,
प्रड्डति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है,

[C.B.S.E. 2012 Term II, HA-1066]

प्रश्न (क) ”हाथ पीले कर लिए हैं “ से कवि का क्या तात्पर्य है ? 
उत्तरः सरसों के फूल पीले हैं तथा हाथ पीले करने का तात्पर्य विवाह करने से होता है। सरसों का पौधा फूल खिलने पर अपने पूर्ण यौवन पर है, इसलिए हाथ पीले करने की कल्पना की गई है।
प्रश्न (ख) प्रेम की भूमि गाँव में कवि को शहर से अधिक उपजाऊ क्यों लग रही है ? 
उत्तरः शहरों में भावनाओं पर व्यापारिक एवं आर्थिक स्थितियाँ हावी हो जाती हैं। गाँव में अभी भी भावनाओं की निश्चलता पाई जाती है। इसीलिए प्रेम की व्यापकता में वहाँ स्वार्थ नहीं होता।

प्रश्न (ग) स्वयंवर किसका हो रहा है ? 
उत्तरः सरसों रूपी नायिका का जो फूली-फूली झूम रही है।

3.

देखता हूँ मैंः स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रही इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!

[C.B.S.E. 2012 Term II, HA-1057]

प्रश्न (क) प्रस्तुत पद्यांश में कवि किस स्वयंवर की बात कर रहा है ?
उत्तरः खेतों में सरसों, अलसी और चने की रंग-बिरंगी फसलें इस तरह सुशोभित खड़ी हैं मानो शादी का वातावरण हो। सरसों दुल्हन बनी मंडप में बैठी हो और चना दूल्हे के रूप में गुलाबी फूल सिर पर सजाए खड़ा हो।

प्रश्न (ख) प्रकृति के अनुराग अंचल का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः प्रकृति का आँचल अनुराग भरा प्रतीत हो रहा है। कवि को लगता है कि सरसों दुल्हन है और चना दूल्हा, अलसी अल्हड़ नायिका है। तीनों प्रेम के आनंद में मग्न हैं।

प्रश्न (ग) चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा किसे कहा गया है ? 
उत्तरः सरोवर के जल में पड़ रहे सूर्य के प्रतिबिम्ब को।

4.
और पैरों के तले है एक पोखर, उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी, ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा, आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे, पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी! चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल , ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में नीचे गलें में डालता है।

प्रश्न (क) पोखर में किसका प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा था? वह वैळसा लग रहा था ?
उत्तरः सूर्य का, चाँदी के गोल खंभे के समान चमकता हुआ।
व्याख्यात्मक हल:
पोखर में सूरज का प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा था। वह चाँदी के बड़े गोल खंभे वेळ समान लग रहा था।

प्रश्न (ख) पत्थरों को प्यासा कहने के पीछे क्या कारण है ? 

उत्तरः लहरों वेळ बार-बार आने जाने से किनारे पड़े पत्थर गीले होते हैं फिर सूख जाते हैं, मानो बार-बार पानी पीना चाहते हैं, बहुत प्यासे हैं। 

व्याख्यात्मक हल:

पत्थर लम्बे समय से पानी में पड़े हुए हैं, अतः कवि को लगता है जैसे वे चुपचाप पानी पी रहे हैं। इसलिए उसने पत्थरों को प्यासा कहा है।

प्रश्न (ग) बगुला किसे देख अपना ध्यान भंग करता है ?
उत्तरः पानी पर तैरती मछली को। 

व्याख्यात्मक हल:

बगुला ध्यानमग्न होकर मछली की ताक में रहता है, जैसे ही मछली उसवेळ पास आती है, वह अपना ध्यान भंग करता है।

5.
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी।
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है।

प्रश्न (क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा किसे और क्यों कहा है ?
उत्तरः चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा पानी में पड़ते हुए सूरज के अक्स को कहा गया है। लहरों के हिलने से उसकी रोशनी फैलकर खंभे जैसी लग रही थी।

प्रश्न (ख) बगुला अपनी नींद क्यों और कब त्यागता है ? 
उत्तरः बगुला जब पानी में मछली को देखता है तो फौरन ध्यान की नींद छोड़कर उसे चोंच से पकड़कर खा जाता है।

प्रश्न (ग) ”पत्थरों को पानी पीते हुए“ क्यों कहा गया है ? 
उत्तरः पानी में पत्थर डूबे हुए ऐसे लग रहे थे जैसे पानी पी रहे हों।
अथवा
एक चाँदी ........................................................................डालता है।

प्रश्न (क) बगुला कहाँ, कैसे खड़ा है तथा वह ध्यान-निद्रा कब त्यागता है ?
उत्तरः बगुला जल में टाँग डुबाए चुप ध्यान निद्रा में खड़ा है। जैसे ही जल में मछली को चपलता से इधर से उधर जाते देखता है वह अपनी ध्यान-अवस्था त्याग देता है और मछली पकड़ लेता है।

प्रश्न (ख) कवि ने पत्थरों के लिए ‘‘पी रहे चुपचाप पानी’’ क्यों कहा है ? क्या इसका कोई प्रतीकात्मक अर्थ है कि उनको प्यास बुझने की प्रतीक्षा है ?
उत्तरः पत्थर लम्बे समय से पानी में पड़े हैं, उनकी कोई आवाज नहीं है। अतः कवि को लगता है कि पत्थर चुपचाप पानी पी रहे हैं। धनिकों के कार्यकर्ता लोग सदा शोषित अतृप्त ही रहते हैं।

प्रश्न (ग) बगुला चंचल मछली को कैसे चट कर जाता है ? 
उत्तरः बगुला ध्यान त्याग कर मछली को झटपट चोंच में दबा सीधा गले में डालकर उसे चट कर जाता है।

6.
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले के डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में!

प्रश्न (क) काले माथे वाली चतुर चिड़िया की चतुराई का वर्णन कीजिए। 
उत्तरः काले माथे वाली चिड़िया अत्यंत चतुर व फुर्तीली है। दूर आकाश से ही तालाब में तैरती उजली मछली को देख, अचानक तालाब के जल पर आक्रमण करती है और अपनी पीली चोंच में मछली दबाकर उड़ जाती है।

प्रश्न (ख) ध्यान मग्न बगुला किस उद्देश्य से खड़ा है ? 
उत्तरः ध्यानमग्न बगुला मछली की ताक में खड़ा है। सरोवर में तैरती मछली को देख ध्यान निद्रा त्यागकर चोंच में दबाकर निगल लेता है।

प्रश्न (ग) ‘टूट पड़ना’ से क्या अर्थ है ? 
उत्तरः ‘टूट पड़ना’ का अर्थ है-तेजी से शिकार पर झपट पड़ना।

7.
चित्रकूट की अनगढ़ चैड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;

प्रश्न (क) चित्रकूट में कैसी पहाड़ियाँ हैं और वहाँ की धरती की क्या विशेषता है ? 
उत्तरः चित्रकूट में अनगढ़, चैड़ी और कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ हैं और वहाँ की धरती बंजर है।

प्रश्न (ख) चित्रकूट की पहाड़ियों पर खड़े पेड़ों तथा वहाँ के पक्षियों की विशेषताएँ बताइए। 
उत्तरः चित्रकूट की पहाड़ियों पर रींवा के कुरूप काँटेदार पेड़ खड़े हैं। साथ ही वहाँ तोते टें, टें, टें, टें, तथा सारस टिरटों-टिरटों के स्वर में बोल रहे हैं।

प्रश्न (ग) ‘काँटेदार कुरूप’ में कौन-सा अलंकार है ? 
उत्तरः अनुप्रास अलंकार।

चंद्र गहना से लौटते समय कवि कहां और क्यों रुक जाता है?

'चंद्र गहना से लौटती बेर ' कविता में कवि केदारनाथ अग्रवाल ने गाँव के रास्ते में पड़ने वाले खेतों और तालाब की सुंदरता का वर्णन किया है। एक बार लेखक चंद्र गहना नामक गाँव से आ रहा होता है। वहाँ उसे प्रकृति अपनी ओर आकर्षित करती हुई प्रतीत होती है।

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता में कवि ने चने के पौधे की क्या विशेषताएँ बताई हैं?

कविता में हरे चने के पौधे को ठिगना अर्थात् छोटे कद वाला बताया गया है। उसके सिर पर गुलाबी रंग का छोटा-सा फूल सुशोभित है। यह गुलाबी फूल हरे चने के पेड़ पर ऐसे शोभा दे रहे हैं जैसे साफा बँधा हुआ है और दूल्हे की तरह बन-ठन कर खड़ा है।

चंद्र गहना से लौटती बेर का क्या अर्थ है?

चंद्रगाहना से लौटती बेर कविता के कवि केदारनाथ अग्रवाल हैं | इस कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है | प्रस्तुत कविता में कवि का प्रकृति के प्रति गहन अनुराग व्यक्त हुआ है। वह चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते हुए उसके किसान मन को खेत-खलिहान एवं उनका प्राकृतिक परिवेश सहज आकर्षित कर लेता है।

चंद्र गहना से लौटती बेर किसकी रचना है?

देखा आया चंद्र गहना। मेड़ पर इस खेत पर मैं बैठा अकेला। सज कर खड़ा है।