क्या मैं ट्रेन से नेपाल जा सकता हूं? - kya main tren se nepaal ja sakata hoon?

क्या मैं ट्रेन से नेपाल जा सकता हूं? - kya main tren se nepaal ja sakata hoon?

प्रतीकात्मक तस्वीर। - फोटो : अमर उजाला।

विस्तार

गोरखपुर से नेपाल जाने वाले पर्यटकों के लिए अच्छी खबर है। उन्हें इसी सप्ताह रोडवेज की जनरथ बस से नेपाल जाने की सुविधा मिलने लगेगी लगी। गोरखपुर से काठमांडू के बीच पहली अंतरराष्ट्रीय बस सेवा के लिए नेपाल सरकार ने अनुमति दे दी है।

रोडवेज के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक राम विजय विश्वकर्मा ने बताया कि परमिट के लिए दिल्ली आवेदन भेजा गया है। तीन से चार दिन में अनुमति मिल जाएगी। अगले सप्ताह में बस सेवा शुरू कर दी जाएगी। फिलहाल, गोरखपुर से काठमांडू के बीच सोनौली के रास्ते रोजाना एक जोड़ी एसी टू बाई टू की जनरथ बस चलेगी।

गोरखपुर से सुबह 11 बजे और काठमांडू से सुबह नौ बजे बस यात्रियों को लेकर रवाना होगी। गोरखपुर से काठमांडू के लिए जनरथ तो नेपाल से टाटा मार्को पोलो मैग्ना बस चलाई जाएगी। बसों की पार्किंग दोनों देशों के अधिकृत डिपो में ही होगी। गोरखपुर से काठमांडू के बीच लगभग 370 किमी की दूरी 12 घंटे में पूरी हो जाएगी। इसका किराया लगभग 875 रुपये निर्धारित किया गया है।

नेपाल यात्रा- गोरखपुर से रक्सौल (मीटर गेज ट्रेन यात्रा)

11 जुलाई की सुबह छह बजे का अलार्म सुनकर मेरी आंख खुल गई। मैं ट्रेन में था, ट्रेन गोरखपुर स्टेशन पर खडी थी। मुझे पूरी उम्मीद थी कि यह ट्रेन एक घण्टा लेट तो हो ही जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ठीक चार साल पहले मैं गोरखपुर आया था, मेरी ट्रेन कई घण्टे लेट हो गई थी तो मन में एक विचारधारा पैदा हो गई थी कि इधर ट्रेनें लेट होती हैं। इस बार पहले ही झटके में यह विचारधारा टूट गई।

यहां से सात बजे एक पैसेंजर ट्रेन (55202) चलती है- नरकटियागंज के लिये। वैसे तो यहां से सीधे रक्सौल के लिये सत्यागृह एक्सप्रेस (15274) भी मिलती है जोकि कुछ देर बाद यहां आयेगी भी लेकिन मुझे आज की यात्रा पैसेंजर ट्रेनों से ही करनी थी- अपना शौक जो ठहरा। इस रूट पर मैं कप्तानगंज तक पहले भी जा चुका हूं। आज कप्तानगंज से आगे जाने का मौका मिलेगा।

चार साल पहले मैं तीन दिनों के लिये गोरखपुर आया था- रेलवे का पेपर देने। उन तीन दिनों तक मैं स्टेशन पर ही रुका रहा। प्लेटफार्म नम्बर एक के एक सिरे पर बहुत बडा हाल है, पंखे भी चलते हैं, एक कोने में शौचालय भी है। तब मैं पूरी रात सोकर उठता और यहीं पर फ्रेश होकर अगले दिन पेपर देने चला जाता। तीन दिनों में दो पेपर थे। तब आनन्द नगर की तरफ यहां से मीटर गेज की लाइन थी, आज उससे भी आगे नौतनवा तक बडी लाइन बन गई है। एक दिन मैंने आनन्द नगर जाने के लिये टिकट भी ले लिया था, लेकिन मीटर गेज की ट्रेन के दो घण्टे लेट हो जाने के कारण यात्रा रद्द कर दी। इसी तरह एक बार मैं मौर्य एक्सप्रेस से छपरा तक भी गया था, जहां से वापस लौटते समय मुझ पर जुर्माना लगा। एक्सप्रेस का टिकट लेकर सुपरफास्ट में जा बैठा था- जानबूझकर। एक दिन वाराणसी का टिकट लिया पैसेंजर ट्रेन का लेकिन सोता रह जाने के कारण ट्रेन चली गई, तब अपनी खीझ मिटाने को कप्तानगंज का चक्कर काट आया। और हां, कप्तानगंज से थावे होते हुए छपरा तक मीटर गेज की लाइन थी। आज वो भी बडी हो गई है। एक ही झटके में वो पुरानी गोरखपुर यात्रा याद हो आई।

ठीक सात बजकर बीस मिनट पर ट्रेन चल पडी नरकटियागंज के लिये। पिछली बार जब इधर आया था तो धान की बुवाई हो चुकी थी, लोग गड्ढों में पानी रोक कर मछलियां पकड रहे थे। इस बार यह इलाका पूरी तरह धानमय हो गया है। हर तरफ बस धान की रोपाई ही दिखाई दे रही है। मानसून की शुरूआत है, इसलिये धरती पर पहली बारिश की महक बरकरार है, हालांकि कहीं कहीं पानी भरा रह जाने के कारण बदबू भी आती है।

कप्तानगंज आया, मैं बडी तेजी से उतरकर पूरी वाले के पास गया और दस रुपये की आठ पूरियां, सब्जी और जलेबी ले आया। जी हां, दस रुपये में पूरियां, सब्जी और जलेबी का एक छल्ला मिला। जी खुश हो गया। पहले पूरी सब्जी खाओ और फिर मुंह मीठा करते हुए जलेबी खाओ। ऐसा पहली बार देखा है। और कप्तानगंज (Kaptanganj/ CPJ) से मुझे बरेली वाला कलट्टरबकगंज (Clutterbuckganj/ CBJ) याद आ जाता है। दोनों की स्पेलिंग देखिये- एक तो ठेठ हिन्दी वाली स्पेलिंग- कप्तान मतलब Kaptan कैप्टेन (Captain) नहीं। और दूसरा इतना ठेठ अंग्रेज कि मेरे जैसे पढने में असमर्थ हैं।

उत्तर प्रदेश को छोडकर ट्रेन कब बिहार में प्रवेश कर गई, पता ही नहीं चला। और किसे नहीं पता? अच्छी तरह पता है कि पनियहवा के बाद वाल्मिकीनगर रोड और ट्रेन बिहार में। दूसरी बात कि सीमा के इस तरफ भी भोजपुरी और उस तरफ भी भोजपुरी। पता कैसे चलेगा कि अब तक उत्तर प्रदेश था, अब बिहार है? दो भिन्न भाषाओं वाले राज्यों का यही फायदा है कि पता चल जाता है कि ट्रेन अब किस राज्य में है। मैं एक बार रेवाडी से फाजिल्का वाली पैसेंजर ट्रेन में बैठा। सिरसा तक तो वही हरियाणवी बोली रही, उसके बाद धीरे धीरे पंजाबी का असर आना शुरू हो गया। जैसे ही ट्रेन ने रामां स्टेशन पार किया, गाडी पूरी तरह पंजाबी हो गई। लेकिन यह फर्क आपको पैसेंजर ट्रेन में ही पता चलेगा, किसी बडी एक्सप्रेस में यह अन्तर मालूम नहीं पडेगा। आप हिमसागर एक्सप्रेस में बैठकर चलो, आपके पडोसी अगर दक्षिण भारतीय होंगे तो आपको जम्मू से ही लगने लगेगा कि पहुंच गये दक्षिण में, लेकिन अगर आपके पडोसी उत्तर भारतीय हुए और वे केरल घूमने जा रहे हैं तो आप केरल पहुंच जाओगे, पता भी नहीं चलेगा, भाषा बदली हुई नहीं लगेगी। लेकिन यहां तो दोनों तरफ एक ही भाषा है- भोजपुरी, तो पता नहीं चलता कि बिहार आ गया। ऐसा नहीं है कि पूरे उत्तर प्रदेश में भोजपुरी का वर्चस्व है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरियाणवी बोली जाती है, जबकि केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही भोजपुरी है।

नरकटियागंज स्टेशन। मैं सोच रहा हूं कि अगर नरकटियागंज है तो नारीकटडागंज भी होगा। नर-कटिया-गंज से नारी-कटडा-गंज।

यहां से रक्सौल जाने के लिये दो रेल लाइनें हैं। एक तो है बडी लाइन जो अररिया होते हुए सुगौली और उसके बाद रक्सौल चली जाती है। और दूसरी लाइन है मीटर गेज जो सीधे रक्सौल जाती है। मुझे अपनी यात्रा मीटर गेज से करनी थी, इसलिये बडी लाइन पर आने वाली सत्यागृह एक्सप्रेस पर कोई ध्यान नहीं दिया। शाम सवा तीन बजे यहां से मीटर गेज की पैसेंजर गाडी (52512) रवाना होनी थी।

यहां एक दुर्घटना हो गई कैमरे के साथ। मैंने कैमरे को कवर में डालकर बेल्ट में टांग रखा था। नरकटियागंज में एक जगह मैं बैठा और जब उठकर चलने लगा तो पीछे से किसी की आवाज आई कि तुम्हारा कैमरा गिर गया है। पता चला कि कवर का नाडा टूट गया है। ऊपर वाले को धन्यवाद कहा। इसके बाद उस भले आदमी को भी दिल से बहुत शुभ वचन कहे। कैमरा तो पहले से ही खराब था, पुराना भी हो गया था लेकिन उसमें जो मेमोरी कार्ड था, उसमें फोटो के अलावा भी बहुत सी काम की चीजें पडी थीं। अगर वो आदमी मुझे आवाज ना लगाता, तो कैमरा मिलना असम्भव था।

पहले कभी पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तर बिहार में पूर्ण रूप से मीटर गेज की रेलवे लाइन हुआ करती थी, आज मीटर गेज कहीं नहीं बची। बची तो है, लेकिन ढूंढनी पडती है। उत्तर प्रदेश में कासगंज-बरेली-पीलीभीत-मैलानी-सीतापुर-ऐशबाग, शाहजहांपुर-पीलीभीत-टनकपुर, मैलानी-नेपालगंज रोड-गोण्डा ही बची हुई है जबकि बिहार में नरकटियागंज-भिखना ठोरी, नरकटियागंज-रक्सौल और एकाध जगह और छोटे छोटे रूट पर मीटर गेज चलती है। और ये भी बडी तेजी से सिमट रही हैं।

साढे तीन बजे ट्रेन रक्सौल के लिये चल पडी। ज्यादा भीड नहीं थी लेकिन ट्रेन की लम्बाई और रूट की लम्बाई के हिसाब से ज्यादा ही कही जायेगी। क्योंकि इस रूट पर कोई भी शहर नहीं है, रूट की लम्बाई भी मात्र चालीस किलोमीटर ही है।

बडा मजेदार अनुभव होता है किसी नये रूट पर इस तरह की पैसेंजर ट्रेनों में घूमना। नये नये नाम वाले स्टेशन मिलते हैं। इस रूट पर सबसे मजेदार स्टेशन है- मर्जदवा। वैसे तो इधर ज्यादातर नामों के साथ ‘वा’ लगाने का रिवाज है। काफी सारे स्टेशन भी ‘वा’ पर खत्म होते है- नौतनवा, सहजनवा, पनियहवा, सिसवा, गुरली रामगढवा। इसी तरह मर्जदवा भी हो सकता है- मर्जद-वा लेकिन मैं इसे मर्ज-दवा कहूंगा यानी हर मर्ज की दवा। और भारत में कुछ बीमार स्टेशन भी हैं जैसे कि पथरी, टीबी, फफूंद आदि, तो यह स्टेशन उनका इलाज है। अरे हां, एक बात और ध्यान आई कि फफूंद (कानपुर के पास) भले ही एक ‘बीमार’ और ‘इंफैक्शन’ वाला स्टेशन हो, लेकिन इसका कोड बडा धांसू है- PHD.

मुझे एक बात समझ नहीं आती कि भारत का यह इलाका इतना गरीब क्यों है? प्रकृति ने यहां की जमीन बेहद उपजाऊ बनाई है। बाढ आती है हर साल मानसून में। बाढ आने का अर्थ ही होता है कि जमीन उपजाऊ है। और बाढ भी क्यों आती है? इसका भी कारण मिल गया है मुझे। रक्सौल की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 80 मीटर ही है। यानी नेपाल सीमा 80 मीटर पर है। इसके बाद कई सौ किलोमीटर चलने के बाद नदियां समुद्र तक पहुंचती हैं। कहने का मतलब है कि यह कई सौ किलोमीटर एक तरह से नदियों के डेल्टा का काम करता है। पानी को बहते रहने के लिये पर्याप्त ढलान चाहिये। यहां कई सौ किलोमीटर तक ढलान ही नहीं है, तो नदियां बहेंगी कैसे? थोडा सा पानी बढते ही बाढ आनी तय है। रक्सौल के आसपास जहां गण्डक का ‘डेल्टा’ शुरू हो जाता है, तो जयनगर के आसपास कोसी का।

खैर चलिये, बॉर्डर की तरफ चलते हैं।

गोरखपुर स्टेशन

क्या मैं ट्रेन से नेपाल जा सकता हूं? - kya main tren se nepaal ja sakata hoon?
पिपराइच

कप्तानगंज स्टेशन। 

खड्डा स्टेशन। हमारे यहां खड्डे का मतलब गड्ढा होता है।


भैरोंगंज


हमारे दिन लद गये, अब हम भी लद जाते हैं- मीटर गेज का इंजन (YDM4)


नरकटियागंज- रक्सौल पैसेंजर


यह रहा मर्जदवा। अंग्रेजी स्पेलिंग से पता चलता है कि इसका उच्चारण मर्जद-वा होगा, ना कि मर्ज-दवा।

यह है यहां का परम्परागत तरीका। ऐसा तरीका मैंने और कहीं नहीं देखा। पूरी ट्रेन इसी तरीके से लदी होती है।


रक्सौल- भारत नेपाल सीमा के पास स्थित स्टेशन।

अगला भाग: काठमाण्डू आगमन और पशुपतिनाथ दर्शन


नेपाल यात्रा
1. नेपाल यात्रा- दिल्ली से गोरखपुर
2. नेपाल यात्रा- गोरखपुर से रक्सौल (मीटर गेज ट्रेन यात्रा)
3. काठमाण्डू आगमन और पशुपतिनाथ दर्शन
4. पोखरा- फेवा ताल और डेविस फाल
5. पोखरा- शान्ति स्तूप और बेगनासताल
6. नेपाल से भारत वापसी


भारत से नेपाल के लिए कौन सी ट्रेन चलती है?

भारत और नेपाल को जोड़ने वाली भारत गौरव ट्रेन को हरी झंडी दिखायी गई - bharat gaurav train connecting india and nepal flagged off - Navbharat Times.

मैं ट्रेन से नेपाल कैसे जा सकता हूं?

दिल्ली से रक्सौल तक सत्याग्रह एक्सप्रेस ट्रेन से जाना सबसे बेस्ट रहता है। यह ट्रेन दिल्ली से रक्सौल के लिए प्रतिदिन चलती है, जिसका स्लीपर कोच का किराया ₹ 470 है। अगर आप इस ट्रेन से नेपाल जाना चाहते हैं, तो आप इस ट्रेन का 2-3 दिन या फिर इससे भी पहले रिजर्वेशन करवा लें।

गोरखपुर से नेपाल ट्रेन जाती है क्या?

गोरखपुर से जनकपुर रोड तक चलने वाली सबसे तेज़ ट्रेन: यह ट्रेन गोरखपुर (GKP) से 08:05:00 बजे निकलती है और 14:18:00 बजे जनकपुर रोड (JNR)) पहुँचती है। यह Mon, Fri को चलती है।

इंडिया से नेपाल जाने के लिए क्या करना पड़ेगा?

आपको नेपाल घूमने के लिए अपना पासपोर्ट, कुछ पासपोर्ट साइज़ की फ़ोटो और अपना वोटर आई डी तैयार रखना है। अगर आप विदेशी मुद्रा के बारे में सोच रहे हैं तो यहाँ भी आप फ़ायदे में हैं। नेपाल में भारतीय रुपया चलता है तो जहाँ तक हो सके ₹100 के भारतीय नोट लेकर जाएँ।